Ayurveda Acharya Malwinder Bhardwaj

Ayurveda Acharya Malwinder Bhardwaj Physical, Mental and Spiritual Well Being of Body and Mind by balancing Elements and Doshas using Ayurveda

भोजन करते समय अक्सर हम सबने तेजपत्ते को थाली से बाहर कर दिया होगा पर जब आप इसके औषधीय मूल्य को जानेंगे तो इसको थाली से ब...
07/03/2025

भोजन करते समय अक्सर हम सबने तेजपत्ते को थाली से बाहर कर दिया होगा पर जब आप इसके औषधीय मूल्य को जानेंगे तो इसको थाली से बाहर न करके बड़े चाव से इसका सेवन शुरू कर देंगे..!

तेजपत्ता को तेजपत्र, तेजपान, तमालका, तमालपत्र, तेजपात, इन्डियन केसिया आदि आदि नामों से जाना जाता है।
तेजपत्ता की खेती हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू- कश्मीर, सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश में की जाती है, ये हमेशा हरा रहने वाले तमाल वृक्ष के पत्ते हैं ।
👉 तेजपत्ता के औषधीय गुण🍾👌
तेजपत्ता मधुमेह, अल्ज़ाइमर्स, बांझपन, गर्भस्त्राव, स्तनवर्धक, खांसी जुकाम, जोड़ो का दर्द, रक्तपित्त, रक्तस्त्राव, दाँतो की सफाई, सर्दी जैसे अनेक रोगो में अत्यंत उपयोगी है।

👉तेजपत्ता में दर्दनाशक, एंटी ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। आयुर्वेद में अनेक गंभीर रोगो में इसके उपयोग किये जाते रहे हैं।*

👉चाय-पत्ती की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से सर्दी-जुकाम, छींकें आना, बुखार, नाक बहना, जलन, सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है।

👉तेजपात के पत्तों का बारीक चूर्ण सुबह शाम दांतों पर मलने से दांतों पर चमक आ जाती है।

👉तेजपात के पत्रों को नियमित रूप से चूंसते रहने से हकलाहट में लाभ होता है।

👉एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है।
👉कपड़ों के बीच में तेजपात के पत्ते रख दीजिये, ऊनी, सूती, रेशमी कपडे कीड़ों से बचे रहेंगे।

👉अनाजों के बीच में 4-5 पत्ते डाल दीजिए तो अनाज में भी कीड़े नहीं लगेंगे लेकिन उनमें एक दिव्य सुगंध जरूर बस जायेगी।

👉अनेक लोगों के मोजों से दुर्गन्ध आती है, वे लोग तेजपात का चूर्ण पैर के तलुवों में मल कर मोज़े पहना करें। पर इसका मतलब ये नहीं कि आप महीनों तक मोज़े धुलें ही न.!

👉तेजपात का अपने भोजन में लगातार प्रयोग कीजिए, आपका ह्रदय मजबूत बना रहेगा, कभी हृदय रोग नहीं होंगे।

👉इसके पत्ते को जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
🙏

इम्यूनोग्लोबुलीन ई( आई जी ई )शरीर में विशेष प्रकार का प्रतिरक्षा प्रोटीन/ एंटीबॉडी है जो एलर्जी व वायरल ,बैकटीरीयल इन्फे...
05/08/2025

इम्यूनोग्लोबुलीन ई( आई जी ई )
शरीर में विशेष प्रकार का प्रतिरक्षा प्रोटीन/ एंटीबॉडी है जो एलर्जी व वायरल ,बैकटीरीयल इन्फेक्शन से बचाता है। इसका इम्बैलंस कैंसर जैसी घातक बीमारियों की आशंका बढ़ा सकता है। ये एक छिपा खतरा है ,आई जी ई।
इस का निर्माण मुख्यत: प्लाज्मा कोशिकाओं द्वारा बोन मैरो में होता है। यह ब्लड में सक्रिय रूप से कार्य करता है। जब आई जी ई का लेवल सामान्य से बढ़ जाता है तो यह शरीर की इम्यून सिस्टम को बहुत एक्टिव कर देता है ।इससे कई प्रकार की एलर्जिक बीमारियां जैसे अस्थमा एटॉपिक डर्मेटाइटिस , राइनाइटिस, फूड एलर्जी हो सकती है। कुछ दुर्लभ रोग जैसे हाइपर आई जी ई में भी इसका सतर अत्यधिक देखा गया है। और अगर इसका लेवल कम हो जाए तो बॉडी बाहर के संक्रमण से लड़ नहीं पाती, बार-बार बीमार होने का खतरा बना रहता है। आजकल आई जी ई से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। इसे केवल एलर्जी तक सीमित ना रखा जाए। बल्कि आने वाले किसी संभावित रोग के लक्षण के रूप में देखना चाहिए।आई जी ई त्वचा त्वचा और रक्त के कुछ कैंसर का कारक भी माना जा रहा है ।
कानपुर मेडिकल कॉलेज में हुए एक अध्ययन में एक हर्बल मिनरल आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन को आई जी ई लैवल को कम करने में प्रभावी पाया गया है इसके गंभीर दुष्प्रभाव भी नहीं देखे गए।

समस्याओं के बारे में विचार करोगे तो बहाने ढूंढने लगोगे ,और 10 बहाने मिलेंगे पलायन के। समाधान के बारे में विचार करोगे तो ...
03/18/2025

समस्याओं के बारे में विचार करोगे तो बहाने ढूंढने लगोगे ,और 10 बहाने मिलेंगे पलायन के।
समाधान के बारे में विचार करोगे तो रास्ते मिलेंगे उसे हल करने के लिए।

केवल गूगल से ज्ञान प्राप्त मत करें उपयोग में भी लाएं जौ,,,यव      के औषधीय गुण ..................प्राचीन काल से ही ऋषियो...
03/17/2025

केवल गूगल से ज्ञान प्राप्त मत करें उपयोग में भी लाएं
जौ,,,यव के औषधीय गुण ..................

प्राचीन काल से ही ऋषियों मुनियों के आहारों में जौ भी शामिल होता था। जौ गेंहूं के जाति का ही एक आहार है जिसको पीसकर आटा बनाकर खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

जौ का प्राचीन वैदिक काल तथा आयुर्वेदीय निघुण्टुओं एवं संहिताओं में वर्णन मिलता है। भावप्रकाश-निघण्टु में तीन प्रकार के भेदों का वर्णन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त अथर्वेद में भी यव का वर्णन प्राप्त होता है।

जौ प्रकृति से कड़वा, मधुर, तीखा, ठंडा, लघु, फिसलने वाला, रूखा, कफ पित्त कम करने वाला, बल बढ़ाने वाला यह व्रण,मधुमेह, रक्तपित्त (कान-नाक से खून बहना), कण्ठ रोग (गले का रोग), त्वक् रोग (त्वचा संबंधी रोग), पीनस (Rhinitis), श्वास, खांसी, पाण्डु या एनीमिया, ग्रहणी (Irritable bowel syndrome) , प्लीहारोग, अर्श या पाइल्स तथा मूत्र रोग नाशक होता है। शूक रहित जौ बलवर्द्धक, वीर्यवर्धक, वृष्य तथा पुष्टिकारक होता है।

मधुमेह : (डायबिटीज) छिलका रहित जौ को भून पीसकर शहद व जल के साथ सत्तू बनाकर खायें अथवा दूध व घी के साथ दलिया का सेवन पथ्य पूर्वक कुछ दिनों तक लगातार प्रयोग किया जा सकता है।

जलन : गर्मी के कारण शरीर में जलन हो रही हो, आग-सी निकलती हो तो जौ का सत्तू खाना चाहियें | यह गर्मी को शांत करके ठंडक पहुचाता है और शरीर को शक्ति प्रदान करता है।

मुत्रावरोध : जौ का दलिया दूध के साथ सेवन करने से मूत्राशय सम्बन्धी अनेक विकार समाप्त हो जाता है।

अतिसार (दस्त) : जौ तथा मूग का सूप लेते रहने से आंतो की गर्मी शांत हो जाती है | यह सूप लघु पाचक व हितकर होता है।

मोटापा बढ़ाने के लिये : जौ को पानी में भिगोकर, कूटकर, छिलका रहित करके उसे दूध में खीर की भाँती पकाकर सेवन करने से शरीर पर्याप्त हष्टपुष्ट और मोटा हो जाता है।

पथरी : मूत्रल होने से जौ का पानी पीने से पथरी निकल जायेगी | पथरी के रोगी जौ से बने पदार्थ लें।

03/16/2025

Om Namo Bhagvatey Basudevaye,,,

माली लीला राम की वाल से साभार,,, #मोंरिगा  #सहजन , ये कलयुग का कल्पवृक्ष हैं। आज सङक किनारे से निकल रहा था तो इस अनुपम व...
03/16/2025

माली लीला राम की वाल से साभार,,,

#मोंरिगा #सहजन , ये कलयुग का कल्पवृक्ष हैं। आज सङक किनारे से निकल रहा था तो इस अनुपम वृक्ष को देखकर सहसा ही गाङी रोकने को मजबूर हो गया ,आपने भी सफेद फूलों से जङित ऐसा नजारा कहीं न कहीं इन दिनों जरूर देखा होगा।

ये ओषधियों गुणों से गूंथा हुआ हैं। ऐसा वृक्ष जिसका पत्ता , फल , फूल , फलियां, गोंद तो बहुउपयोगी है तो छाल भी बहुत गुणकारी हैं। आर्युवेदाचार्य #सुश्रुत ऋषि ने अपनी #सुश्रुतसंहिता में भी इस वृक्ष का वर्णन किया हैं। खासकर इसके फूलों को सबसे अधिक गुणकारी बताया हैं। पुराने वक्त में जब रोग कम होते थे तब भी 150 रोगों को शमन करने के लिए वैद्य सहजन का प्रयोग करवाते हैं।

सौंठ सुहागा सैंधा गांधी , सहजन के रस बरिया बांधी ।
सत्तर सूल और अस्सी बाई , कहे धनंतर छन में जाई ।।

मोरिंगा भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला एक बहु उपयोगी वृक्ष है । जिसका हर भाग अनेकों औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। आधुनिक चिकित्सा जगत ने मोरिंगा के गुणों को पहचानने के बाद इसको #सुपरफूड का दर्जा दिया है। आधुनिक काल में अनेक प्रकार की बिमारियां होने लग गई हैं तब ये 300 बिमारियों को दूर करने में उपयोगी हैं

👀 कहा जाता है की 👀

⏩️आंख के लिए गाजर खानी चाहिए।
⏩️हड्डियों के लिए दूध पीना चाहिए।
⏩️शरीर की कमजोरी दूर करने के लिए केला खाना चाहिए। ⏩️मसल्स के लिए प्रोटीन के लिए दही खाना चाहिए।
⏩️खून हेतु आयरन के लिए पालक खाना चाहिए।
⏩️विटामिन सी के लिए नारंगी खानी चाहिए ।

इतने अलग-अलग फल फ्रूट को एक साथ खाना किसी के लिए भी संभव नहीं हो पाता है, परंतु एक चम्मच भर मोरिंगा पाउडर खा लिया जाए तो इन सभी सप्लीमेंट्स की सहज ही पूर्ति हो जाती है, इसीलिए इसको सुपर फूड कहा गया है।

✨️आपको बता दें, मोरिंगा में ✨️

⚡️गाजर से चार गुना ज्यादा विटामिन ए होता है ।
⚡️दूध से दोगुना ज्यादा कैल्शियम होता है ।
⚡️केले से तीन गुना ज्यादा पोटेशियम होता है ।
⚡️दही से दो गुना ज्यादा प्रोटीन होता है
⚡️पालक से 9 गुना ज्यादा आयरन होता है।
⚡️नारंगी से 6 गुना ज्यादा विटामिन सी होता है ।

इसके अलावा भी मैग्नीशियम , एंटीऑक्सीडेंट , अमीनो एसिड व बहुत सारे सप्लीमेंट्स एक साथ मोरिंगा से ही मिल जाते है।
हर प्रकार के विटामिन के लिए गोलियां खाना , उसके बाद वो गोलियां पचाते पचाते किडनी लीवर सब इंन्जर्ड हो जाते हैं। सब छोङो मोरिंगां लाओ।

डैंडेलियन सिंहपर्णी सूजन व शरीर में जलभराव अद्वितीय लाभ सिंहपर्णी को डैंडेलियन भी कहते हैं. यह एक जंगली पौधा है. सिंहपर्...
02/11/2025

डैंडेलियन
सिंहपर्णी सूजन व शरीर में जलभराव अद्वितीय लाभ
सिंहपर्णी को डैंडेलियन भी कहते हैं. यह एक जंगली पौधा है. सिंहपर्णी के पत्तों के दाँत आमतौर पर पीछे की ओर होते हैं. सिंहपर्णी के नाम की उत्पत्ति फ़्रेंच शब्द 'डेंट डी लायन' से हुई है जिसका मतलब है 'शेर का दाँत'.
सिंहपर्णी के पत्ते गहरे हरे रंग के और लंबे होते हैं.
इनके पत्तों के किनारे दाँतेदार होते हैं व टूटने पर इनके पत्तों से दूधिया रस निकलता है.
सिंहपर्णी के फूल चमकीले पीले रंग के होते हैं.
इसके फूलों का सिर एकल डंठल पर होता है तथा इसके के फूलों का सिर 15 इंच तक लंबे चिकने डंठल पर बनता है तथा फूलों का सिर अनेक छोटे पुष्पों से बना होता है. पकने पर फूल सफेद रंग के रेशमी बीजों में बदल जाते हैं जो हवा चलने से दूर दूर उड़ जाते हैं

यह एक प्राकृतिक मूत्र वर्धक है, सिंहपर्णी की जड़ें शरीर में उपस्थित अधिक तरल पदार्थ के उपापचय में सहायता कर, शरीर में हो रही सूजन व जलन को समाप्त करती है। विशेष रूप से यह शरीर के निचले भाग जैसे की पैर में सूजन कम करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली है। इसमें अच्छी मात्रा में पोटैशियम निहित है जो शरीर में सोडियम के स्तर को संतुलित कर सूजन एवं जलन से छुटकारा दिलाने में सहायक है।
सूजन व जलन से राहत पाने के लिए रोजाना जब तक सूजन ठीक ना हो जाए, दिन में दो से तीन बार सिंहपर्णी की चाय पिएं। मात्रा सूखा चूर्ण एक चम्मच एक कप पानी में उबालकर ताजा जड़ दो तीन इंच के करीब

युरिनरी ट्रैक इंफेक्शन में ये गज़ब औषधि है
सिंहपर्णी बहुत ही सक्षम मूत्रवर्धक होते हैं जो किडनी एवं मूत्र पथ में उपस्थित एवं एकत्रित विषाक्त प्रदार्थों का नाश कर, मूत्र सम्बंधित विकारों से बचाव करते हैं !सिंहपर्णी की जड़ें मूत्र की मात्रा के उत्पादन को नियमित कर किडनी को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखने में मदद करती हैं। यह मूत्र पथ में विकसित हो रहे हानिकारक जीवाणुओं का नाश कर मूत्र-सम्बंधित विकारों को शरीर में आने से रोकती हैं। यह मूत्राशय सम्बंधित विकारों का भी एक सफल उपचार हैं। पेशाब की नली या मूत्राशय में फंसीं पथरी निकालने में बहुत सहायक है
सिंहपर्णी अग्न्याशय की कोशिकाओं को सक्रिय करता है और शरीर में इंसुलिन के उत्पादन को बढाने में मदद करता है। यह ब्लड शुगर की आवश्यक मात्रा को बनाए रखने में भी मदद करता है। दरअसल सिंहपर्णी में मूत्र वर्धक गुण होते हैं, जिसकी वजह से शरीर में मौजूद अतिरिक्त शुगर को बाहर निकालने में सक्षम बनाता है। अगर अग्न्याशय इंसुलिन को प्रभावी ढंग से संसाधित नहीं कर पाता है, तो शरीर में ग्लूकोज का ठीक से उपयोग नहीं हो पाता है और रक्तप्रवाह में जमा हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप मधुमेह होता है। चाय, जूस आदि के रूप में सिंह पर्णी के निरंतर उपयोग से इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है।
इसके सेवन से त्वचा में आकर्षक रंग लाया जा सकता है। बता दें कि यदि इसकी टहनी को बीच में से तोड़ा जाए तो इसके अंदर दूधिया सफेद जैसा रस निकलता है जो त्वचा के लिए बहुमूल्य है तथा इसके पीले फूलों का रस भी सौंदर्य प्रसाधनों में बहुतायत में प्रयोग होता है। इस रस का उपयोग अगर त्वचा पर किया जाए तो त्वचा में खुजली और जलन की समस्या दूर हो जाएगी। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि इसका रस आंखों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।

सिंहपर्णी में विटामिन-सी और ल्यूटोलिन भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है। विटामिन-सी और ल्यूटोलिन में कैंसर पैदा करने वाले मुक्त कणों को ख़त्म करने के गुण होते है। यही वजह है कि सिंहपर्णी शरीर को डिटॉक्सीफाई तो करता ही है, साथ ही ट्यूमर के विकास और कैंसर कोशिकाओं की प्रगति को भी रोकता है। चूंकि ल्यूटोलिन कैंसर कोशिकाओं को ख़त्म करने में सहायक है इस वजह से सिंहपर्णी के सेवन से कैंसर कोशिकाओं के प्रजनन गुण ख़त्म हो जाते हैं। यह प्रोस्टेट कैंसर के खिलाफ सबसे सफल औषधियों में सिंहपर्णी की गिनती की जाती है।
DrJaibir Singh जी साभार🙏

Colon cancer is the third most common cancer among men and women in the US Over 93000 people are diagnosed each year. 44...
02/04/2025

Colon cancer is the third most common cancer among men and women in the US
Over 93000 people are diagnosed each year. 44000 cases in man and about 50000 cases in women
Don't think it's in the US The figure is scary worldwide.
EAT MORE FIBRE STAY HEALTHY

*अस्थि संहार (हड़जोड़) हड्डी जोड़ने वाला पौधा  हिंदी में इसको हर जोरा कहा जाता है गुजराती में बेदारी कहते हैं  इसकी डालिया ...
02/02/2025

*अस्थि संहार (हड़जोड़)
हड्डी जोड़ने वाला पौधा

हिंदी में इसको हर जोरा कहा जाता है गुजराती में बेदारी कहते हैं इसकी डालिया चौकोर होती है और शाखाएं भी चौकोर होती इसके फूल कुछ-कुछ गुलाबी रंग के होते हैं और कुछ पीच कलर लिए हुए होते हैं
सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी डाल पर लाल रंग के मटर के आकार के फल लगते हैं इसके फलों को एकत्र करके नींबू के रस में घोटा जाए और गाढ़ा लेप बन जाएगा और यह गाढा लेप आयुर्वेद की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि है अगर किसी व्यक्ति के शरीर में चाकू से या किसी अन्य चीज से
चमडी या मांस कट जाए तो उस कटे हुए स्थान पर अच्छी तरह से पौछकर कर उस पर उपरोक्त प्रकार से बनाया हुआ लेप लगाकर पट्टी बांधने से जल्दी ही वह घाव पूरी तरह से भर जाता है और पट्टी खोल कर हटा देने पर उस घाव का निशान भी शरीर पर नहीं रहता दूसरा प्रयोग यदि गिरने से या मारपीट से शरीर में अत्यधिक चोट पहुंची हो और यदि कोई हड्डी टूट गई हो इसके प्रयोग से वह हड्डी पूरी तरह से जुड़ जाती है और किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती |
इसके अलावा शरीर किसी भी प्रकार से घायल हो गया हो या हड्डियों में सूजन आ गई हो या किसी प्रकार गिरने से कोई चोट या फैक्चर हो गया हो इसका उपयोग करना चाहिए
इसके माध्यम से महिलाओं में अनियमित मासिक स्राव को भी दूर किया जाता है

यदि किसी की रीढ़ की हड्डी में किसी भी प्रकार दर्द या पीड़ा हो, ऐसी स्थिति में इस का उपयोग लाभदायक है
इस द्वारा लकवा,गठिया आदि रोगों को भी दूर करने में पूर्ण सहायता मिलती है इसको 64 दिव्य जड़ी बूटियों में स्थान प्राप्त है।

वास्तव में प्रकृति की ओर से मनुष्य के लिए यह जड़ी वरदान स्वरुप जैसी है
डॉ मालविंदर भारद्वाज आयुर्वेद आचार्य सुनाम।

त्रिकटु यानी तीन तीक्ष्ण द्रव्य, (कड़वे नहीं) तीक्ष्ण तीखे काली मिर्च, सौंठ यानी सूखाअदरक, और मघ पीपल ये तीनों अद्भुत गु...
01/31/2025

त्रिकटु यानी तीन तीक्ष्ण द्रव्य, (कड़वे नहीं) तीक्ष्ण तीखे
काली मिर्च,
सौंठ यानी सूखाअदरक,
और मघ पीपल
ये तीनों अद्भुत गुण युक्त हैं, BMR यानी मैटाबॉलिज्म को ठीक करने वाले।
आज हम बात करते हैं मघ पीपल की। ये छोटी बड़ी दो प्रकार की होती है।

#छोटी_पीपल_
यह पौष्टिक और पाचक है। प्रातः दूध और शहद के साथ लें तो बलवर्धक है। बच्चों की पसली चलने पर भूनी पीपल का जरा सा चूर्ण शहद में मिलाकर खिलाने से आराम मिलता है। जिगर बढ़ना, तिल्ली बढ़ना, अफरा, अपच, वमन, अजीर्ण तथा श्वास खाँसी में लाभदायक है।

#मोटापा
छोटी पीपल मोटापे को कम करने में बहुत सहायक है. इसके लिए आपको पीपल के चूर्ण का लगभग आधा ग्राम की मात्रा रोजाना सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करना होता है. इसके अलावा छोटी पीपल के 1 से 2 दाने दूध में डाल कर उबालें और उसमें से छोटी पीपल को निकालकर खा लें. इसके दूध पिने से भी मोटापे कम होती है

हवा और सपर्ष से फैलने वाले रोग,,,
इसमें पाए जाने वाले प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के गुण से टी.बी. एवं अन्य संक्रामक रोगों में छोटी पीपल फायदेमंद है. इसके अलावा छोटी पीपल अनेक आयुर्वेदीय एंव आधुनिक दवाओं की कार्यक्षमता को बढ़ाने में मदद करती है. छोटी पीपल के कई फायदों में से एक ये भी है कि इसके 1-2 ग्राम चूर्ण में सेंधानमक, हल्दी और सरसों का तेल मिलाकर दांतों पर लगाने से दांत के दर्द से राहत मिलती है

#दिल
दिल की बीमारियों में भी छोटी पीपल के फायदे दिखाते हैं. इसका चूर्ण बनाकर शहद में मिलाकर सुबह खाने से कोलेस्ट्राल नियंत्रित होता है. इसके अलावा छोटी पीपल और छोटी हरड़ की समान मात्रा पीसकर एक चम्मच सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट दर्द, मरोड़ और दुर्गन्धयुक्त अतिसार में राहत मिलती है

#साँसों_की_बीमारी
यदि आपको साँसों की बिमारी है तो इसमें भी आप छोटी पीपल के फायदे से राहत पा सकते हैं. इसके लिए आपको 2 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण बनाकर 4 कप पानी में उबाल लें. जब यह 2 कप रह जाए तो इसे छान लें. इसे 2-3 घंटे के अंतर पर थोड़ा-थोड़ा दिन भर पीते रहने से कुछ ही दिनों में सांस फूलने की समस्या से राहत मिलेगी

#सिर_दर्द
इसे पानी में पीसकर माथे पर लेप लगाने से सिर दर्द में फायदा मिलता है. इसके लिए छोटी पीपल और वच चूर्ण को बराबर मात्रा में मिला लें. फिर इसकी 3 ग्राम नियमित रूप से दो बार दूध या गर्म पानी के साथ लेने से सर दर्द में राहत मिलती है. इस प्रकार आप चाहें तो सरदर्द में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं

#वात_से_उत्पन्न_रोग
इसके लिए आपको 5-6 पुरानी छोटी पीपल के पौधे का जड़ सुखाकर उसका चूर्ण बनाना होगा. आपको बता दें कि इस चूर्ण की 1-3 ग्राम मात्रा को गर्म पानी या गर्म दूध के साथ पिलाने से शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाले दर्द से 1-2 घंटे में ही राहत मिल जाती है. बुढ़ापे में इससे विशेष रूप से राहत मिलती है

#सर्दी_जुकाम
सर्दी जुकाम में छोटी पीपल का फायदा उठाने के लिए इसका मूल, काली मिर्च और सौंठ की बराबर मात्रा में चूर्ण लेकर इसकी 2 ग्राम की मात्रा शहद के साथ चाटने से जुकाम में राहत मिलती है. इसके अलावा आधा चम्मच छोटी पीपल चूर्ण में समान मात्रा में भुना जीरा तथा थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ सुबह खाली पेट लेने से बवासीर में भी लाभ होता है

जायफल एक अद्भुत आयुर्वेदिक दवा  जायफल पर हुई कई रिसर्च में ये बात सामने आई है कि पुरुष नियमित तौर पर इसका सेवन करने से उ...
01/30/2025

जायफल एक अद्भुत आयुर्वेदिक दवा

जायफल पर हुई कई रिसर्च में ये बात सामने आई है कि पुरुष नियमित तौर पर इसका सेवन करने से उनके स्टेमिना में बढ़ोतरी होती है। इतना ही नहीं जायफल पुरुषों की फर्टिलिटी बढ़ाने में भी मदद कर सकता है।
सुबह-सुबह खाली पेट आधा चम्मच जायफल चाटने से गैस्ट्रिक, सर्दी-खांसी की समस्या नहीं सताती है। पेट में दर्द होने पर चार से पांच बूंद जायफल का तेल चीनी के साथ लेने से आराम मिलता है।

आयुर्वेद में जायफल (Nutmeg) को एक महत्वपूर्ण औषधि माना जाता है। यह अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है और कई स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। इसके उपयोग के कुछ प्रमुख आयुर्वेदिक लाभ निम्नलिखित हैं:

1. पाचन
जायफल में पाचक गुण होते हैं जो अपच, गैस और एसिडिटी जैसी समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं। यह भूख बढ़ाने और पाचन तंत्र को संतुलित रखने में सहायक है।

2. नींद ,,,,,,
जायफल का सेवन अनिद्रा (Insomnia) जैसी समस्याओं में लाभकारी माना गया है। सोने से पहले गर्म दूध में चुटकी भर जायफल मिलाकर पीने से शांत नींद आती है।
3. तनाव और मानसिक स्वास्थ्य,,,,,
जायफल के शीतल गुण मन को शांत करने और तनाव व चिंता को कम करने में मदद करते हैं। यह मस्तिष्क के कार्य में सुधार करता है और स्मरणशक्ति को बढ़ाता है।
4. त्वचा ,,,,,
जायफल में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो त्वचा की समस्याओं जैसे मुंहासे, दाग-धब्बे और झाइयों को दूर करने में मदद करते हैं।
5. दर्द निवारक,,,,,,
जायफल का उपयोग मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द में राहत पाने के लिए किया जाता है। इसे तेल के रूप में उपयोग कर मालिश करने से दर्द में आराम मिलता है।
6. सांस संबंधी समस्याएं,,,,,,
जायफल बलगम को पतला करने और सांस की नलियों को साफ करने में सहायक होता है। यह खांसी और अस्थमा जैसी समस्याओं में राहत देता है।
7. कामोत्तेजक गुण,,,,
आयुर्वेद में जायफल को एक प्राकृतिक कामोत्तेजक (Aphrodisiac) के रूप में माना जाता है। यह यौन स्वास्थ्य में सुधार करने और कमजोरी को दूर करने में सहायक है।
उपयोग की विधि:
• दूध में मिलाकर: एक गिलास गर्म दूध में चुटकी भर जायफल मिलाकर पिया जा सकता है।
• लेप बनाकर: त्वचा की समस्याओं के लिए जायफल को पानी या गुलाबजल में घिसकर प्रभावित स्थान पर लगाया जाता है।
• तेल के रूप में: जायफल के तेल का उपयोग मालिश के लिए किया जा सकता है।
फिर भी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श कर लें,,,
डॉ मालविंदर भारद्वाज आयुर्वेद आचार्य सुनाम पंजाब

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