13/08/2025
आचार्य नागार्जुन (लगभग 150-250 ई.) एक महान भारतीय बौद्ध दार्शनिक और महायान बौद्ध धर्म के मध्यमिका (मध्य मार्ग) दर्शन के संस्थापक थे। उन्हें बौद्ध दर्शन में "शून्यता" (शून्यवाद) के सिद्धांत को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने के लिए जाना जाता है, जिसके कारण उन्हें "द्वितीय बुद्ध" की उपाधि भी दी गई।
नागार्जुन का जन्म दक्षिण भारत में, संभवतः विदर्भ क्षेत्र (आधुनिक महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। किंवदंतियों के अनुसार, जन्म के समय भविष्यवाणी की गई थी कि वे अल्पायु होंगे, लेकिन बौद्ध भिक्षु बनने और अमिताभ मंत्र के जाप से वे दीर्घायु हुए।
उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म, सूत्र और तंत्र की शिक्षा प्राप्त की। वे मंजुश्री और सरह जैसे गुरुओं से प्रज्ञापारमिता सूत्रों के गहन ज्ञान से प्रभावित हुए
कहा जाता है कि नागार्जुन को "नाग" नाम इसलिए मिला क्योंकि उन्होंने नागलोक से प्रज्ञापारमिता सूत्र प्राप्त किए, और उनकी तार्किकता अर्जुन के तीर की तरह थी, इसलिए "नागार्जुन" नाम पड़ा।
मध्यमिका दर्शन: नागार्जुन ने मध्यमिका दर्शन की स्थापना की, जो मध्य मार्ग पर आधारित है। यह दर्शन न तो सर्वास्तित्ववाद (सब कुछ है) और न ही नास्तित्ववाद (कुछ भी नहीं है) को स्वीकार करता है।
शून्यता का सिद्धांत: उनके अनुसार, सभी घटनाएँ और वस्तुएँ प्रतीत्यसमुत्पाद (परस्पर निर्भरता) के कारण उत्पन्न होती हैं और उनका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। शून्यता का अर्थ पूर्ण रिक्तता नहीं, बल्कि स्वतंत्र अस्तित्व का अभाव है।
चतुष्कोटि विधि: उन्होंने चार कोटियों (है, नहीं है, दोनों, न दोनों) के माध्यम से तर्क दिया कि कोई भी दृष्टिकोण अंतिम सत्य नहीं हो सकता।
सत्यद्वय: उन्होंने सांवृतिक सत्य (सापेक्ष सत्य) और परमार्थ सत्य (परम सत्य) का अंतर स्पष्ट किया। सांवृतिक सत्य व्यवहारिक जीवन के लिए है, जबकि परमार्थ सत्य शून्यता को दर्शाता है।
प्रमुख रचनाएँ
मूलमाध्यमककारिका: यह उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसमें 27 अध्यायों में शून्यता का विस्तार से वर्णन है।
विग्रहव्यावर्तनी: इसमें उन्होंने अन्य दार्शनिक मतों का खंडन किया।
शून्यतासप्तति: 70 श्लोकों में शून्यता को सरल रूप में समझाया गया।
रत्नावली: राजा को नैतिकता और शासन पर उपदेश।
सुहृल्लेख: सातवाहन राजा यज्ञश्री को लिखा पत्र, जिसमें बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ हैं।
युक्तिषष्टिका: तर्क के माध्यम से शून्यता की व्याख्या
रसायनशास्त्र और आयुर्वेद: कुछ विद्वानों के अनुसार, नागार्जुन ने रसायनशास्त्र में भी योगदान दिया, जैसे पारे का शोधन और धातुओं को सोने में बदलने की तकनीक। 'रस रत्नाकर' और 'रसेंद्र मंगल' जैसे ग्रंथ उन्हें समर्पित हैं, हालांकि कुछ इसे भिन्न नागार्जुन की रचनाएँ मानते हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय: वे नालंदा के मठाध्यक्ष रहे और वहाँ अनुशासन लागू किया।
नागार्जुन ने महायान बौद्ध धर्म को दार्शनिक आधार प्रदान किया, जिसने तिब्बती और चीनी बौद्ध संप्रदायों को प्रभावित किया।
भारतीय दर्शन: उनके दर्शन का प्रभाव वेदांत, विशेष रूप से आदि शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत पर देखा जाता है।
आधुनिक प्रासंगिकता: उनकी प्रतीत्यसमुत्पाद और शून्यता की अवधारणाएँ आधुनिक भौतिकी (क्वांटम सिद्धांत) और पर्यावरणीय नैतिकता से तुलनीय हैं।
किंवदंती के अनुसार, नागार्जुन की मृत्यु एक राजकुमार द्वारा कुश घास से सिर काटने के कारण हुई, क्योंकि उन्होंने पिछले जन्म में एक चींटी की हत्या की थी। कहा जाता है कि उनका कटा सिर और शरीर हर साल पास आ रहे हैं, और जब वे जुड़ेंगे, नागार्जुन पुनर्जनम लेंगे।
नागार्जुन का दर्शन आज भी बौद्ध धर्म और दार्शनिक अध्ययनों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी शिक्षाएँ करुणा, शून्यता और मध्य मार्ग को जोड़ती हैं, जो मानव जीवन को गहन दृष्टिकोण प्रदान करती