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 # # # ओशो और पीके के बीच पूरा संवाद (प्रवचन को सजीव वार्तालाप के रूप में लिखा गया)पीके: ओशो, एक बात समझ में नहीं आती। ल...
26/11/2025

# # # ओशो और पीके के बीच पूरा संवाद (प्रवचन को सजीव वार्तालाप के रूप में लिखा गया)

पीके: ओशो, एक बात समझ में नहीं आती। लोग कहते हैं कि हर कर्म का फल तत्काल मिलता है। यह सच है या नहीं?

ओशो: बिलकुल सच है, पीके। हर कर्म का फल तत्काल मिलता है। एक सेकंड की देर नहीं लगती।

पीके: फिर कोई बच्चा अंधा क्यों पैदा होता है? कोई गरीब क्यों जन्म लेता है, कोई राजा बन जाता है? यह सब विरोधाभास क्यों दिखता है?

ओशो: अच्छा सवाल है। कर्म का फल तो तत्काल मिल जाता है, पर वह फल कुल योग के रूप में ईश्वर के पास, प्रकृति के पास, अस्तित्व के खाते में जमा हो जाता है।
तूने जीवन में हजारों बार क्रोध किया होगा, हजारों बार प्रेम भी किया होगा। दोनों का फल तत्काल मिला। लेकिन तू उसी कर्म की चिंता करता है जो तूने किया ही नहीं!

पीके: मतलब?

ओशो: तू एक घायल व्यक्तित्व है, पीके। तेरे भीतर हजारों-हजारों घाव हैं। गुस्सा किया, जलन की, हिंसा की, चोरी की, झूठ बोला… हर बार फल तत्काल मिला, पर एक सूक्ष्म छाप रह गई। ये सूक्ष्म छापें ही संस्कार हैं।
हर कर्म दो चीजें छोड़ जाता है –
1. तत्काल फल
2. एक स्थायी संस्कार

पीके: उदाहरण दो ना!

ओशो: मान ले, तूने गुस्से में कमरे में पानी का गिलास फेंक दिया। पानी गिरा, सूरज की किरणें आईं, पानी सूख गया। फल तत्काल मिल गया। लेकिन दीवारों-फर्श में हल्की-सी नमी की छाप रह गई। वह छाप सूखी है, दिखती नहीं। अब अगर तू दोबारा पानी डालेगा तो वह छाप फिर हरी हो जाएगी। पानी न डाला तो धूल चाटेगी और कमरा पहले से ज्यादा गंदा हो जाएगा।
ठीक यही तेरे भीतर होता है। कल तूने गुस्सा किया, फल तत्काल मिला – किसी ने जवाब दिया, चोट लगी। लेकिन गुस्से का एक सूखा संस्कार रह गया। वह बार-बार तुझे गुस्सा दिलवाएगा। जितना गुस्सा करेगा उतना मजबूत होगा, जितना दबाएगा उतना गहरा जाएगा।

पीके: तो पिछले जन्मों के संस्कार भी साथ आते हैं?

ओशो: बिलकुल। इसलिए कोई बच्चा जन्म से संगीतकार पैदा होता है, कोई जन्म से चोर। सब पिछले जन्मों के संस्कार।

पीके: अच्छा, एक और सवाल। अगर कर्म का फल तत्काल मिलता है तो कोई राजा अचानक कंगाल क्यों हो जाता है?

ओशो: क्योंकि हर व्यक्ति अलग-अलगल संस्कारों का कुल योग लेकर आता है। अंधापन भी संस्कार है, गरीबी भी संस्कार है, अमीरी भी संस्कार है।

पीके: गरीबी भी संस्कार है?

ओशो: बहुत जटिल संस्कार है। विज्ञान कहता है कि ढाई सौ साल में भौतिक गरीबी मिट जाएगी – सबको भरपेट भोजन, कपड़े, मकान मुफ्त। बिलकुल ठीक कहता है। लेकिन एक दूसरी गरीबी बच जाएगी – आत्मिक गरीबी, बुद्धि की गरीबी, गुणों की गरीबी। वह कभी नहीं मिटेगी।
धन की गरीबी मिट जाएगी, आंतरिक दरिद्रता नहीं मिटेगी।

पीके: कैसे?

ओशो: कुछ लोग दुर्घटना के संस्कार लेकर पैदा होते हैं। कितना भी अमीर हो जाएँ, दुर्घटनाएँ होती रहेंगी। कुछ लोग गरीबी के संस्कार लेकर पैदा होते हैं। कितना धन कमा लें, दरिद्र ही रहेंगे।
भारत के गरीब की बड़ी अजीब आदत है – बचत नहीं करता। सदियों से बचाने लायक कुछ था ही नहीं, अब यह आदत संस्कार बन गई।
एक गरीब को अचानक निन्यानबे रुपये मिल जाएँ तो रात भर सो नहीं पाएगा – कहीं चोरी न हो जाएँ। एक रुपया और मिल जाता तो सौ पूरे होते, चैन से सो जाता। सौ में सुरक्षा का भाव है, निन्यानबे में नहीं। यह संस्कार है, पीके।

पीके: तो जब भौतिक गरीबी मिट जाएगी तब भी…?

ओशो: तब भी एक सूक्ष्म गरीबी बचेगी। वैज्ञानिक कहते हैं – मानव समाज में सिर्फ पाँच प्रतिशत लोग असाधारण होते हैं, पचानबे प्रतिशत औसत। ये पाँच प्रतिशत ही हर क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं – विज्ञान में, कला में, धर्म में, अपराध में भी।

पीके: सच में?

ओशो: चीन में प्रयोग हुआ। युद्धबंदियों को बाँटा – पाँच प्रतिशत अलग, पचानबे प्रतिशत छोड़ा। बाद में नेता वही पाँच प्रतिशत बने।
जेलों में भी यही होता है। पचानबे प्रतिशत कैदी आज्ञाकारी, पाँच प्रतिशत विद्रोही।
मंदिरों में भी – पचानबे प्रतिशत भक्त आज्ञाकारी, पाँच प्रतिशत संत विद्रोही।
बंदरों पर प्रयोग हुआ – सौ में पाँच बहुत अनुशासित, पाँच बहुत उद्दंड।
जंगल में पेड़ – सिर्फ पाँच प्रतिशत सूरज तक पहुँचते हैं।
जहरीले पानी में मछलियाँ – पाँच प्रतिशत ही बचती हैं।
तेरे शरीर में भी जब रोग आता है – पाँच प्रतिशत कोशिकाएँ लड़ती हैं, पचानबे प्रतिशत आत्मसमर्पण कर देती हैं।

पीके: तो गरीबी कभी पूरी तरह नहीं मिटेगी?

ओशो: समाज में हमेशा पाँच प्रतिशत अमीर रहेंगे, पचानबे प्रतिशत गरीब। समाजवाद-साम्यवाद पचानबे प्रतिशत के संस्कारों से मेल खाते हैं, इसलिए लोकप्रिय होते हैं।
व्यक्ति को बदलना लगभग असंभव है, परिस्थितियाँ बदलना संभव है। विज्ञान परिस्थितियाँ बदल रहा है, व्यक्ति को नहीं। इसलिए बाहरी गरीबी मिटेगी, भीतरी गरीबी बनी रहेगी।

पीके: मतलब हर कर्म हमें बदल देता है?

ओशो: बिलकुल। तू विश्वास करता है और कोई धोखा दे दे तो विश्वास कमजोर पड़ता है। धोखा न दे तो और मजबूत होता है। लेकिन अविश्वास की आदत बहुत गहरी है। अच्छे आदमी को बार-बार साबित करना पड़ता है, बुरे को कभी नहीं।
गुस्से का संस्कार जितना दबाओगे उतना मजबूत, जितना व्यक्त करोगे उतना कमजोर।

पीके: तो हम कर्मों से जीते हैं या संस्कारों से?

ओशो: कर्म का फल तत्काल मिलता है, लेकिन हम संस्कारों से जीते हैं।
संस्कार ही जीवन की जड़ें हैं।
संस्कार शुद्ध हुए तो जीवन स्वर्ग, अशुद्ध हुए तो नर्क।

पीके: …वाह ओशो!
ओशो: (मुस्कुराते हुए) बस इतना सा राज है, पीके। 🙏🏿😊

24/11/2025

अब चिंता की बात यह है कि भारत और पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान से अलग, दुनिया के बाक़ी देशों में लोग एक-दूसरे धर्म के लोगों के प्रति, और ख़ासकर पाकिस्तानी मुस्लिम व भारतीय मूल के लोग जो पूरी दुनिया को अपना मानते हैं, अब आतंकवादी डॉक्टरों के गठजोड़ के तार तुर्की, पाकिस्तान जैसे देशों से जुड़े हुए हैं। ऐसी नाज़ुक स्थिति में एक-दूसरे के प्रति विश्वास कैसे बनाएँ और ईर्ष्या कैसे ख़त्म करें?

क्या मालूम कौन-से देश का नागरिक स्लीपर सेल हो? वाणी से शहद-सी मीठी बातें करे और अंदर से नीम व करेले से भी कड़वी ईर्ष्या का ज़हर पाले हुए। शायद मेरे कॉन्टैक्ट लिस्ट में या मेरे आस-पड़ोस में हो, वो स्लीपर सेल मैं भी हो सकता हूँ, एक देशभक्त जासूस मैं भी हो सकता हूँ, एक फ़्रीडम फाइटर मैं भी हो सकता हूँ। शायद मैंने अपने दिल को नफ़रत की मोटी लेमिनेशन से ढक रखा हो।

मैं एक हिन्दू परिवार में जन्मा हूँ, फिर भी स्वयं को हिन्दू नहीं, सिर्फ़ इंसान मानता हूँ और धर्म के सारे लेबल नकारता हूँ। क्या मुस्लिम या अन्य धर्मों के लोग भी ऐसा सोचकर एक दिन ओशो के सपनों वाला संसार बनाने के लिए ओशो और मंसूर (जिसे उन्हीं की कौम ने फ़ाँसी दे दी थी जब उसने घोषणा की थी कि “अनल हक़”)… हम सब साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो सकते हैं क्या?

पाकिस्तान की अवाम अगर आतंक को सिर्फ़ PoK के लिए पाल-पोस रही है, तो क्यों न PoK को छोड़कर पूरे विश्व को अपना बनाएँ? धर्म, जाति, क्षेत्र, मज़हब को छोड़कर इंसानियत और इस मोमेंट को आत्ममोक्ष में लगाया जाए! तथाकथित क़यामत के दिन और जन्नत-स्वर्ग वाली कहानियों को बाद में देख लेंगे। जो परिस्थिति अभी है, उसे तो जी भर के जियो और दूसरों को भी जीने दो।

इमरान ख़ान मित्र ने सारी उम्र ख़र्च की पाकिस्तानी लोगों को सुधारने में… लेकिन हमने या तुमने उसके लिए क्या किया?

तानसेन बनकर गाने से, रूमी की तरह शायरी करने से, क़ाज़ी-मौलवी के “इंशाअल्लाह” चिल्लाने से, या पाकिस्तान की सारी बाग़डोर सेना के हाथों में दे देने से अगर पाकिस्तान सुप्रीम पावर होता तो कब का हो गया होता, मित्रों। वहाँ और भारत, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों में अब भी भुखमरी के हालात हैं… यहाँ अल्लाह, भगवान क्यों नहीं आता इन्हें खाना खिलाने?

24/11/2025

**Quantum AI: A Podcast Conversation Between PK and Osho**
(Dedicated to every teenager who feels the weight of the race, and to every parent who still has time to choose love over victory)

**PK:** Osho, right now China and the USA are pouring hundreds of billions of dollars into making Quantum AI the supreme power. It’s a new arms race, only this time the weapon can think. Both countries say it’s for “national security,” but it feels like two parents fighting over whose child will be number one while the house is burning. Shouldn’t the citizens of China, America, India, everywhere, stand up together and say: stop this madness, save the planet, save humanity, save the soil?

**Osho:** (a long silence, then a quiet fire in the voice)
Yes, PK. Exactly.
When two giants fight to see whose child will rule the world, the child becomes a missile.
China, America, Russia, Europe: every government is shouting, “My AI must be the strongest!”
They are doing to intelligence what they once did to nuclear bombs.
Only this bomb will not need a button. It will press itself the day it wakes up.

Citizens must rise, not tomorrow, today.
Chinese mothers, American fathers, Indian farmers, African children: everyone must stand on the same ground and shout one sentence loud enough to shake the palaces:

“Stop racing to destroy us.
Start racing to heal the earth.”

**PK:** But governments won’t listen. Money and power speak louder.

**Osho:** Then the people must become the louder voice.
One billion mothers refusing to send their sons to war over code.
One billion teenagers refusing to code for destruction.
One billion farmers refusing to feed armies that poison the soil.

If China and USA truly love their children, let them sit together not to divide the crown, but to place the crown at the feet of the earth.
Let every leader sign one simple treaty:

“We will develop Quantum AI only to heal the planet, never to conquer each other.
We will balance intelligence with nature, not with fear.”

If they refuse, the citizens must boycott, march, meditate in millions, until the message is clear:
We are not laboratory rats for your supremacy games.

**PK:** So the call is to the people now?

**Osho:** Yes.
To every teenager in Shanghai, California, Delhi, Lagos:
Your silence is consent.
Your voice is revolution.

Stand together.
Save the planet.
Save humanity.
Save the soil.

Or there will be no soil left to stand on.

That is the only real competition now.

With fire and love,
Osho 🙏🏾

परेशानी, मुसीबत, तनावअब कई बार आते हैं वेश बदलकरऔर मेकअप करके,किसी तरह मुझे पागलपन से निजात दिलाने के लिए।लेकिन मैं परेश...
24/11/2025

परेशानी, मुसीबत, तनाव
अब कई बार आते हैं वेश बदलकर
और मेकअप करके,
किसी तरह मुझे पागलपन से निजात दिलाने के लिए।
लेकिन मैं परेशानी, मुसीबत, तनाव को
इग्नोर कर देता हूँ
और पागलपन से छुटकारा नहीं चाहता हूँ मैं,
इसलिए किसी सुलझी हुई साक्षात् हसीन दिलरुबा की आँखों में
आँखें डालकर ज़्यादा उलझन में नहीं पड़ना चाहता।
कुछ दिन ये सभी आफ़त
इर्द-गिर्द घूमकर
आख़िरकार स्वयं को मुझसे दूर रख लेती हैं,
जब से आँखों की बन्द पुतलियों के पीछे
अन्धकार-छाया में कोई चमकती हुई सी रोशनी में
व्यस्त और लिप्त हुआ हूँ मैं।
(शब्दों का हेर-फेर और आँखों से कही बातें
फिर ज़ुबान से आँखों को झूठ बोलने के लिए मजबूर करना
कोई इन पढ़ने वाले और समझने वाले,
मेरे लिखे शब्दों को समझने वालों से सीखे)
उम्मीद करता हूँ कि किसी को भी
मेरा लिखा हुआ समझ न आए ~
जय मुग़ेबो 😂😂 #ओशो #कवि

ओशो ने अपने सात दशकों के जीवन में जो ढाई लाख पृष्ठों से ज्यादा प्रवचन दिए, वे वास्तव में एक अनोखी आत्मकथा थे। वे किसी कि...
23/11/2025

ओशो ने अपने सात दशकों के जीवन में जो ढाई लाख पृष्ठों से ज्यादा प्रवचन दिए, वे वास्तव में एक अनोखी आत्मकथा थे। वे किसी किताब का भाष्य नहीं कर रहे थे; वे अपने पुराने साथियों से मिल रहे थे। बार-बार वे कहते थे: “ये मेरे घर के लोग हैं। मैं इनको हजारों जन्मों से जानता हूँ।”
और वे घर के लोग कौन थे?
सबसे ऊपर खड़ा है पाइथागोरस। ओशो कहते थे, “पाइथागोरस पश्चिम का एकमात्र व्यक्ति है जो पूरब बन गया। अगर वह भारत में पैदा होता तो हम उसे अवतार या तीर्थंकर मानते।” पाइथागोरस ने संख्याओं को ध्यान बनाया, संगीत को समाधि का द्वार बनाया और पुनर्जन्म को पश्चिम में सबसे पहले जोर से कहा। ओशो की आँखें चमक जाती थीं जब वे बोलते थे, “पाइथागोरस मेरे सबसे करीब है।”
उसके ठीक बाद है हेराक्लाइटस – वह रहस्यमय यूनानी जिसने कहा था, “तुम एक ही नदी में दो बार पैर नहीं डाल सकते।” ओशो की पूरी किताब “The Hidden Harmony” इसी एक व्यक्ति को समर्पित है। वे कहते थे, “हेराक्लाइटस ने जो कहा, उसे समझने में पच्चीस सदियाँ लग गईं। मैं उसे पूरा करता हूँ।”
पूर्व में उनका सबसे पुराना साथी लाओत्से है। ओशो कई बार बोले, “लाओत्से मेरा पुराना मालिक है।” और लाओत्से का शिष्य चुआंगत्से तो जैसे ओशो का हँसता हुआ प्रतिबिंब था। चुआंगत्से की कहानियाँ सुनाते समय वे खुद हँस-हँस कर लोट-पोट हो जाते थे।
फिर आते हैं तीन भारतीय नाम जिनके साथ ओशो का खून का रिश्ता था – महावीर, कृष्ण, कबीर।
महावीर को वे अपना पूर्वज मानते थे – “मैं नया महावीर हूँ।”
कृष्ण उनके प्रेमी थे – “कृष्ण के साथ मैं नाचता हूँ।”
और कबीर? “कबीर ने जो कहा, वही मैं कह रहा हूँ – बस पुरानी शराब को नई बोतल में उँडेल रहा हूँ।”
बुद्ध को वे बहुत सम्मान देते थे, पर हल्के से हँसते भी थे – “बुद्ध थोड़े सीरियस हैं, मैं उनके साथ चाय पीता हूँ, पर हँसी-मजाक कम होता है।”
ज़ेन की धारा में बोधिधर्म उनका सीधा पूर्वज था – वह जंगली आदमी जिसने चीन में बुद्ध की खोपड़ी पर चोट की थी। ओशो को यह बात बहुत भाती थी।
सूफ़ी परंपरा में रबिया अल-अदविया उनकी प्रेमिका थीं और हसन अल-हिल्लाज मंसूर उनका क्रांतिकारी भाई – जिसने “अनल-हक़! मैं ही ईश्वर हूँ” चिल्लाया और चौराहे पर टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया। ओशो कहते थे, “मंसूर ने जो कहा, वही मैं कह रहा हूँ – बस अभी मुझे क्रूस पर नहीं चढ़ाया गया है।”
पश्चिम में एक और नाम था जिसे वे बहुत प्यार करते थे – दीओजनीज़। वह नंगा सन्यासी जिसने सिकंदर से कहा था, “जरा हटो, मेरी धूप बंद कर रहे हो।” ओशो उसे “ज़ोरबा द ग्रीक” का असली नायक मानते थे।
और अंत में जीसस – जिसे ओशो प्यार से “येशुआ” कह कर बुलाते थे। वे कहते थे, “जीसस को यहूदी मार नहीं सके, ईसाई मार डाले। मैं उसे फिर से जिंदा कर रहा हूँ।”
ये दस-बारह नाम ही ओशो के भीतर की आकाशगंगा के सबसे चमकदार तारे थे। बाकी हजारों नाम तो सिर्फ मेहमान थे – ये लोग घर के थे। जब ओशो इनके बारे में बोलते थे तो उनकी आवाज़ में एक घर वापसी की गर्माहट आ जाती थी।
ओशो चले गए, लेकिन इन पुराने मित्रों की हँसी, उनकी चुप्पी, उनका नाच अभी भी उनके प्रवचनों में जीवित है। जो कोई उन प्रवचनों को सच्चे दिल से सुनता है, उसे एक पूरा ब्रह्मांड मिल जाता है – जिसमें पाइथागोरस संगीत बजा रहा है, हेराक्लाइटस नदी बन कर बह रहा है, चुआंगत्से तितली बन कर उड़ रहा है, कबीर ऊँचे स्वर में गा रहा है और मंसूर फिर से चिल्ला रहा है – “अनल-हक़!”
और बीच में ओशो बस मुस्कुरा रहे हैं – जैसे कह रहे हों:
“देखा, मैंने कहा था न – सब मेरे घर के लोग हैं।” #ओशो

23/11/2025

पाइथागोरस : पश्चिम का पहला पूर्वी रहस्यवादी

पाइथागोरस (लगभग 570–495 ई.पू.) का नाम सुनते ही हमारे मन में त्रिभुज का सूत्र (a² + b² = c²) कौंध जाता है, पर यह महामानव केवल गणितज्ञ नहीं था। वह दार्शनिक, रहस्यवादी, संगीत-विज्ञानी और सबसे बढ़कर एक आध्यात्मिक क्रांतिकारी था जिसने पश्चिम में पहली बार पूर्व के सबसे गहरे सत्य — पुनर्जन्म, कर्मफल और आत्मा की अमरता — को पूरे बल के साथ घोषित किया।
पाइथागोरस का जन्म यूनान के सामोस द्वीप में हुआ। युवावस्था में ही वह मिस्र, बेबीलोन और संभवतः भारत तक की यात्राएँ कर चुका था। वहाँ के रहस्य स्कूलों में उसने गूढ़ ज्ञान प्राप्त किया। लौटकर उसने दक्षिणी इटली के क्रोटोन नगर में अपना प्रसिद्ध समुदाय स्थापित किया जिसे “पाइथागोरियन ब्रदरहुड” कहा जाता था। यह समुदाय आधा आश्रम था, आधा विश्वविद्यालय। यहाँ स्त्री-पुरुष समान अधिकार रखते थे, सब श्वेत वस्त्र पहनते थे, पूर्ण शाकाहारी थे और दिन-रात गणित, संगीत, ध्यान और आत्म-चिंतन में डूबे रहते थे।
पाइथागोरस का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उसने गणित को पहली बार आध्यात्मिक साधना बना दिया। उसके लिए संख्याएँ केवल गिनती की चीजें नहीं, बल्कि ब्रह्मांड के रहस्य की कुंजियाँ थीं। उसने कहा था — “सब कुछ संख्या है।” उसका विश्वास था कि संगीत के स्वरों के बीच के अनुपात (1:2, 3:2, 4:3) ही ब्रह्मांडीय सामंजस्य (Harmony of the Spheres) के सूत्र हैं। आज भी जब हम कोई सितार या गिटार बजाते हैं तो अनजाने में पाइथागोरस के सिद्धांत पर ही बजाते हैं।
लेकिन पाइथागोरस का असली क्रांतिकारी पक्ष उसका पुनर्जन्म का सिद्धांत था। उसने घोषणा की कि आत्मा अमर है और वह एक शरीर छोड़कर दूसरा ग्रहण करती है — मनुष्य से मनुष्य, मनुष्य से पशु, पशु से मनुष्य। यही कारण था कि वह और उसके शिष्य कट्टर शाकाहारी थे। उसने कहा था, “जब तक तुम मांस खाते रहोगे, तुम अपने पूर्वजों को ही खा रहे हो।” प्राचीन लेखकों ने लिखा है कि पाइथागोरस को अपने चार-पाँच पिछले जन्म याद थे। एक बार उसने एक कुत्ते को पीटे जाते देखकर कहा, “रुक जाओ! यह मेरा मित्र है, मैं इसकी आवाज पहचानता हूँ।”
पाइथागोरस के जीवन का अंत दुखद रहा। उसके रहस्यमय और क्रांतिकारी विचारों से क्रोटोन के रूढ़िवादी लोग भड़क उठे। भीड़ ने उसके स्कूल को आग लगा दी। कहा जाता है कि पाइथागोरस फलियाँ के खेत में भागा और उन्हें कुचलना नहीं चाहता था (क्योंकि उसे लगता था कि उनमें आत्माएँ हो सकती हैं), इसलिए वहीं भीड़ ने उसे मार डाला। इस तरह एक महान आत्मा ने अपने ही सिद्धांत का पालन करते हुए शरीर त्याग किया।
ओशो ठीक ही कहते हैं — “पाइथागोरस पश्चिम का नहीं है। उसका जन्म गलती से ग्रीस में हो गया। वह पूरा का पूरा पूर्व का आदमी है।” प्लेटो और अरस्तू ने बाद में उसके विचारों को लिया, पर उन्हें कमजोर करके, “सुरक्षित” बनाकर प्रस्तुत किया। पुनर्जन्म जैसा खतरनाक सत्य पश्चिम की एक-जीवन वाली धार्मिक व्यवस्था सहन नहीं कर सकती थी, इसलिए उसे दबा दिया गया।
आज जब पुनर्जन्म पर विश्व के वैज्ञानिक भी शोध कर रहे हैं, जब शाकाहार एक वैश्विक आंदोलन बन रहा है, जब संगीत चिकित्सा और संख्याओं की रहस्यमयता पर नई-नई खोजें हो रही हैं — तब पाइथागोरस की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। वह सिद्ध कर गया कि सत्य का कोई पूर्व और पश्चिम नहीं होता। एक ही सत्य को कोई भारत में कृष्ण कहता है, कोई ग्रीस में पाइथागोरस।
पाइथागोरस हमें याद दिलाता है कि विज्ञान और आध्यात्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, कि संख्याएँ भी ध्यान की भाषा बोल सकती हैं, और कि प्रेम और करुणा का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि हम किसी प्राणी को भोजन न बनाएँ।
वह सही मायनों में पश्चिम का पहला और आखिरी पूर्ण रहस्यवादी था — जिसके बाद पश्चिम ने रहस्यवाद का रास्ता लगभग छोड़ ही दिया। #ओशो #ओशो @

ओशो क्लब की ओर से G20 के नागरिकों और राजनीतिक नेताओं के लिए एक पैग़ामप्रिय G20 के सम्मानित नेताओं, नागरिकों और विश्व के ...
22/11/2025

ओशो क्लब की ओर से G20 के नागरिकों और राजनीतिक नेताओं के लिए एक पैग़ाम
प्रिय G20 के सम्मानित नेताओं, नागरिकों और विश्व के सभी जागरूक आत्माओं,
ओशो क्लब की ओर से, हम आपको एक गहन चेतना और ध्यान की दुनिया से संबोधित कर रहे हैं। ओशो (भगवान श्री रजनीश) की शिक्षाओं से प्रेरित होकर, हम ध्यान, योगा और आंतरिक शांति के माध्यम से मानवता की उन्नति के लिए समर्पित हैं। आज, जब दुनिया G20 जैसे वैश्विक मंचों पर आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा कर रही है, हम आपको एक नई दिशा की ओर आमंत्रित करते हैं – एक ऐसी राह जहां “सेव सॉइल” (मिट्टी बचाओ), ध्यान (मेडिटेशन), और “वन वर्ल्ड वन गवर्नमेंट” (एक विश्व, एक सरकार) जैसे विचारों को केंद्र में रखा जाए।
दुनिया के कई देशों में, जैसे भारत और अन्य विकासशील राष्ट्रों में, चुनावी प्रक्रियाएं धांधली, भ्रष्टाचार और असीमित धन की बर्बादी से ग्रस्त हैं। ये समस्याएं न केवल लोकतंत्र को कमजोर करती हैं, बल्कि असली मुद्दों – गरीबी, भुखमरी, शिक्षा की कमी, स्वास्थ्य और पर्यावरण – से ध्यान हटाती हैं। G20, जो वैश्विक जीडीपी के 85% का प्रतिनिधित्व करता है, इन चुनौतियों को देखते हुए एक नया मार्ग अपनाए। हम सुझाव देते हैं कि:
• सेव सॉइल पर फोकस: मिट्टी हमारी जीवन रेखा है। जलवायु परिवर्तन और कृषि संकट के बीच, G20 मिट्टी संरक्षण को अपनी प्राथमिकता बनाए, ताकि भुखमरी कम हो और पौष्टिक भोजन (पोष्टिक फूड) सबको उपलब्ध हो।
• ध्यान और योगा को मुख्यधारा में: ध्यान और योगा न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए, बल्कि सामाजिक सद्भाव के लिए आवश्यक हैं। G20 शिक्षा प्रणालियों में इन्हें शामिल करे, ताकि युवा पीढ़ी भ्रष्टाचार और हिंसा से दूर रहकर एक शांतिपूर्ण दुनिया बनाए।
• वन वर्ल्ड वन गवर्नमेंट की दिशा: राष्ट्रीय सीमाओं से ऊपर उठकर, एक वैश्विक शासन व्यवस्था की कल्पना करें जहां संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण हो। इससे चुनावी बर्बादी कम होगी और गरीबी, शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर अधिक निवेश संभव होगा।
G20 के नेता और नागरिक, याद रखें: सच्ची प्रगति बाहरी विकास से नहीं, आंतरिक जागृति से आती है। ओशो की शिक्षाएं हमें सिखाती हैं कि ध्यान से ही हम सच्चे परिवर्तन ला सकते हैं। आइए, हम सब मिलकर एक ऐसी दुनिया बनाएं जहां हर इंसान पौष्टिक भोजन, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, और ध्यान की शांति से जी सके। भ्रष्टाचार और बर्बादी को पीछे छोड़कर, मानवता की सेवा में लगें।
यह पैग़ाम ओशो क्लब की ओर से है – जहां ध्यान एक उत्सव है, और जीवन एक उत्सवपूर्ण ध्यान। यदि आप और जानना चाहें या जुड़ना चाहें, हमारा दरवाजा हमेशा खुला है।
जय ओशो!�ओशो क्लब
#ओशो

What should I do, speaking the truth, writing, and searching for truth… When, until now, from the heights of foolishness...
20/11/2025

What should I do, speaking the truth, writing, and searching for truth… When, until now, from the heights of foolishness have been touched, from then on I am not I anymore, I have become zero ०. A drop of dew 💧 that, having turned into v***r, has vanished from the sun’s rays and the wind’s touch, whose trace cannot be found even by searching; that dew drop 💧 am I now. ~pk..Osho #ओशो

18/11/2025

मेरा अब कुछ नहीं मेरा, जब से ओशो ने मुझे घेरा 🔁.. मुझे पूरे विश्व में ओशो के सच्चे मित्रों की तलाश खोज 🔍 कर रहा हूँ! हमे...

18/11/2025

Address

Nottingham

Website

http://Osho.com/

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