26/11/2025
# # # ओशो और पीके के बीच पूरा संवाद (प्रवचन को सजीव वार्तालाप के रूप में लिखा गया)
पीके: ओशो, एक बात समझ में नहीं आती। लोग कहते हैं कि हर कर्म का फल तत्काल मिलता है। यह सच है या नहीं?
ओशो: बिलकुल सच है, पीके। हर कर्म का फल तत्काल मिलता है। एक सेकंड की देर नहीं लगती।
पीके: फिर कोई बच्चा अंधा क्यों पैदा होता है? कोई गरीब क्यों जन्म लेता है, कोई राजा बन जाता है? यह सब विरोधाभास क्यों दिखता है?
ओशो: अच्छा सवाल है। कर्म का फल तो तत्काल मिल जाता है, पर वह फल कुल योग के रूप में ईश्वर के पास, प्रकृति के पास, अस्तित्व के खाते में जमा हो जाता है।
तूने जीवन में हजारों बार क्रोध किया होगा, हजारों बार प्रेम भी किया होगा। दोनों का फल तत्काल मिला। लेकिन तू उसी कर्म की चिंता करता है जो तूने किया ही नहीं!
पीके: मतलब?
ओशो: तू एक घायल व्यक्तित्व है, पीके। तेरे भीतर हजारों-हजारों घाव हैं। गुस्सा किया, जलन की, हिंसा की, चोरी की, झूठ बोला… हर बार फल तत्काल मिला, पर एक सूक्ष्म छाप रह गई। ये सूक्ष्म छापें ही संस्कार हैं।
हर कर्म दो चीजें छोड़ जाता है –
1. तत्काल फल
2. एक स्थायी संस्कार
पीके: उदाहरण दो ना!
ओशो: मान ले, तूने गुस्से में कमरे में पानी का गिलास फेंक दिया। पानी गिरा, सूरज की किरणें आईं, पानी सूख गया। फल तत्काल मिल गया। लेकिन दीवारों-फर्श में हल्की-सी नमी की छाप रह गई। वह छाप सूखी है, दिखती नहीं। अब अगर तू दोबारा पानी डालेगा तो वह छाप फिर हरी हो जाएगी। पानी न डाला तो धूल चाटेगी और कमरा पहले से ज्यादा गंदा हो जाएगा।
ठीक यही तेरे भीतर होता है। कल तूने गुस्सा किया, फल तत्काल मिला – किसी ने जवाब दिया, चोट लगी। लेकिन गुस्से का एक सूखा संस्कार रह गया। वह बार-बार तुझे गुस्सा दिलवाएगा। जितना गुस्सा करेगा उतना मजबूत होगा, जितना दबाएगा उतना गहरा जाएगा।
पीके: तो पिछले जन्मों के संस्कार भी साथ आते हैं?
ओशो: बिलकुल। इसलिए कोई बच्चा जन्म से संगीतकार पैदा होता है, कोई जन्म से चोर। सब पिछले जन्मों के संस्कार।
पीके: अच्छा, एक और सवाल। अगर कर्म का फल तत्काल मिलता है तो कोई राजा अचानक कंगाल क्यों हो जाता है?
ओशो: क्योंकि हर व्यक्ति अलग-अलगल संस्कारों का कुल योग लेकर आता है। अंधापन भी संस्कार है, गरीबी भी संस्कार है, अमीरी भी संस्कार है।
पीके: गरीबी भी संस्कार है?
ओशो: बहुत जटिल संस्कार है। विज्ञान कहता है कि ढाई सौ साल में भौतिक गरीबी मिट जाएगी – सबको भरपेट भोजन, कपड़े, मकान मुफ्त। बिलकुल ठीक कहता है। लेकिन एक दूसरी गरीबी बच जाएगी – आत्मिक गरीबी, बुद्धि की गरीबी, गुणों की गरीबी। वह कभी नहीं मिटेगी।
धन की गरीबी मिट जाएगी, आंतरिक दरिद्रता नहीं मिटेगी।
पीके: कैसे?
ओशो: कुछ लोग दुर्घटना के संस्कार लेकर पैदा होते हैं। कितना भी अमीर हो जाएँ, दुर्घटनाएँ होती रहेंगी। कुछ लोग गरीबी के संस्कार लेकर पैदा होते हैं। कितना धन कमा लें, दरिद्र ही रहेंगे।
भारत के गरीब की बड़ी अजीब आदत है – बचत नहीं करता। सदियों से बचाने लायक कुछ था ही नहीं, अब यह आदत संस्कार बन गई।
एक गरीब को अचानक निन्यानबे रुपये मिल जाएँ तो रात भर सो नहीं पाएगा – कहीं चोरी न हो जाएँ। एक रुपया और मिल जाता तो सौ पूरे होते, चैन से सो जाता। सौ में सुरक्षा का भाव है, निन्यानबे में नहीं। यह संस्कार है, पीके।
पीके: तो जब भौतिक गरीबी मिट जाएगी तब भी…?
ओशो: तब भी एक सूक्ष्म गरीबी बचेगी। वैज्ञानिक कहते हैं – मानव समाज में सिर्फ पाँच प्रतिशत लोग असाधारण होते हैं, पचानबे प्रतिशत औसत। ये पाँच प्रतिशत ही हर क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं – विज्ञान में, कला में, धर्म में, अपराध में भी।
पीके: सच में?
ओशो: चीन में प्रयोग हुआ। युद्धबंदियों को बाँटा – पाँच प्रतिशत अलग, पचानबे प्रतिशत छोड़ा। बाद में नेता वही पाँच प्रतिशत बने।
जेलों में भी यही होता है। पचानबे प्रतिशत कैदी आज्ञाकारी, पाँच प्रतिशत विद्रोही।
मंदिरों में भी – पचानबे प्रतिशत भक्त आज्ञाकारी, पाँच प्रतिशत संत विद्रोही।
बंदरों पर प्रयोग हुआ – सौ में पाँच बहुत अनुशासित, पाँच बहुत उद्दंड।
जंगल में पेड़ – सिर्फ पाँच प्रतिशत सूरज तक पहुँचते हैं।
जहरीले पानी में मछलियाँ – पाँच प्रतिशत ही बचती हैं।
तेरे शरीर में भी जब रोग आता है – पाँच प्रतिशत कोशिकाएँ लड़ती हैं, पचानबे प्रतिशत आत्मसमर्पण कर देती हैं।
पीके: तो गरीबी कभी पूरी तरह नहीं मिटेगी?
ओशो: समाज में हमेशा पाँच प्रतिशत अमीर रहेंगे, पचानबे प्रतिशत गरीब। समाजवाद-साम्यवाद पचानबे प्रतिशत के संस्कारों से मेल खाते हैं, इसलिए लोकप्रिय होते हैं।
व्यक्ति को बदलना लगभग असंभव है, परिस्थितियाँ बदलना संभव है। विज्ञान परिस्थितियाँ बदल रहा है, व्यक्ति को नहीं। इसलिए बाहरी गरीबी मिटेगी, भीतरी गरीबी बनी रहेगी।
पीके: मतलब हर कर्म हमें बदल देता है?
ओशो: बिलकुल। तू विश्वास करता है और कोई धोखा दे दे तो विश्वास कमजोर पड़ता है। धोखा न दे तो और मजबूत होता है। लेकिन अविश्वास की आदत बहुत गहरी है। अच्छे आदमी को बार-बार साबित करना पड़ता है, बुरे को कभी नहीं।
गुस्से का संस्कार जितना दबाओगे उतना मजबूत, जितना व्यक्त करोगे उतना कमजोर।
पीके: तो हम कर्मों से जीते हैं या संस्कारों से?
ओशो: कर्म का फल तत्काल मिलता है, लेकिन हम संस्कारों से जीते हैं।
संस्कार ही जीवन की जड़ें हैं।
संस्कार शुद्ध हुए तो जीवन स्वर्ग, अशुद्ध हुए तो नर्क।
पीके: …वाह ओशो!
ओशो: (मुस्कुराते हुए) बस इतना सा राज है, पीके। 🙏🏿😊