Dr Anshuman Gupta

Dr Anshuman Gupta Aayurvedic Medicine

अमलतास का पेड़ (Cassia fistula), जिसे गोल्डन शावर ट्री, इंडियन लेबर्नम या पर्जिंग कैसिया भी कहा जाता है, एक सुंदर और औषध...
17/08/2025

अमलतास का पेड़ (Cassia fistula), जिसे गोल्डन शावर ट्री, इंडियन लेबर्नम या पर्जिंग कैसिया भी कहा जाता है, एक सुंदर और औषधीय गुणों से भरपूर वृक्ष है। यह आमतौर पर पूरे भारत में सड़कों के किनारे, बगीचों तथा गाँवों में पाया जाता है। गर्मियों में इसमें पीले रंग के लटकते फूलों के गुच्छे निकलते हैं, जो देखने में बेहद आकर्षक होते हैं।

पहचान और विशेषताएँ
यह पर्णपाती (deciduous) वृक्ष 5 से 15 मीटर तक ऊँचा हो सकता है।

फूल: इसके पीले, सुगंधित फूल लटकती माला के जैसे होते हैं और अप्रैल–मई में खिलते हैं।

फल: इसके लंबे, बेलनाकार फल (फली) काले या गहरे भूरे रंग के और लगभग 25–50 सेमी लंबे होते हैं।

पत्तियाँ व शाखा: शाखाएँ छीलने पर लाल रस निकलता है, जो बाद में गोंद बन जाता है।

औषधीय उपयोग और लाभ
इस पेड़ के पत्ते, फूल, फल, छाल, जड़—हर भाग का इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियों में होता है।

कब्ज, पेट संबंधी रोगों, बुखार, पीलिया, सफेद दाग, त्वचा रोग, गठिया (जोड़ों का दर्द), थायराइड, डायबिटीज, प्रतिरक्षा बढ़ाने इत्यादि में लाभकारी है।

फली और उसके गूदे का उपयोग विरेचक (मल साफ करने वाली), पित्तनाशक और कफनाशक औषधि के रूप में किया जाता है।

पत्तियों का लेप एड़ी फटना और घाव ठीक करने में, जबकि फूलों का प्रयोग कब्ज में राहत के लिए किया जाता है।

अन्य जानकारी
अमलतास के फूल खिलने के बाद 40–45 दिन में वर्षा आने का अनुमान भी कई जगह माना जाता है, इसलिए इसे 'रेन इंडिकेटर ट्री' भी कहते हैं।

यह पौधा थाईलैंड का राष्ट्रीय वृक्ष और केरल राज्य का राजकीय वृक्ष भी है।

अमलतास न केवल सुंदरता और छाँव देने वाला वृक्ष है, बल्कि प्राकृतिक औषधीय गुणों के कारण भारतीय जीवन, संस्कृति और आयुर्वेद का महत्वपूर्ण भाग भी है

अष्टांग हृदयम आयुर्वेद का एक प्रमुख और प्रसिद्ध प्राचीन ग्रंथ है, जिसकी रचना महर्षि वाग्भट ने की थी। यह ग्रंथ लगभग 500 ई...
15/08/2025

अष्टांग हृदयम आयुर्वेद का एक प्रमुख और प्रसिद्ध प्राचीन ग्रंथ है, जिसकी रचना महर्षि वाग्भट ने की थी। यह ग्रंथ लगभग 500 ईसापूर्व से 250 ईसापूर्व के बीच लिखा गया माना जाता है। अष्टांग हृदयम में आयुर्वेद के आठ अंगों का सार बताया गया है और इसे आयुर्वेद का हृदय कहा जाता है क्योंकि यह संपूर्ण आयुर्वेद ज्ञान का एक संक्षिप्त और समग्र संग्रह है।

अष्टांग हृदयम की विशेषताएं:
इसमें औषध चिकित्सा (मेडिसिन) और शल्य चिकित्सा दोनों का विस्तार से विवरण है।

यह ग्रंथ चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता और अष्टांगसंग्रह के साथ आयुर्वेद की महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में गिना जाता है और इन तीनों को मिलाकर वृहत्त्रयी कहा जाता है।

अष्टांग हृदयम में कुल 6 खण्ड, 120 अध्याय और लगभग 7120 श्लोक हैं।

अष्टांग हृदयम के खण्ड:
सूत्रस्थान (30 अध्याय)

शारीरस्थान (6 अध्याय)

निदानस्थान (16 अध्याय)

चिकित्सास्थान (22 अध्याय)

कल्पस्थान (6 अध्याय)

उत्तरस्थान (40 अध्याय)

उद्देश्य और महत्व:
यह ग्रंथ शरीर के रोगों और उनके उपचार का सम्पूर्ण ज्ञान प्रदान करता है।

वाग्भट ने इस ग्रंथ में व्यापक आयुर्वेदिक सिद्धांतों को समाहित किया है, जो स्वास्थ्य और रोगों के प्रबंधन के लिए आज भी प्रासंगिक हैं।

इस ग्रंथ में 7000 से अधिक सूत्र हैं जो विभिन्न रोगों के निवारण, औषधि, दैनिक जीवन और मौसम अनुसार आचार विचार आदि का वर्णन करते हैं।

समकालीन उपयोग:
अष्टांग हृदयम न केवल आयुर्वेदिक चिकित्सा का आधार है, बल्कि यह जीवनशैली, स्वास्थ्य निवारण, और प्राकृतिक उपचारों का भी मार्गदर्शन करता है। इसमें हार्ट अटैक जैसी आधुनिक बीमारियों के लिए भी आयुर्वेदिक उपाय बताए गए हैं।

इस प्रकार, अष्टांग हृदयम आयुर्वेद का एक अनमोल और सर्वांगीण ग्रंथ है जो जीवन भर स्वास्थ्य के लिए मार्गदर्शन देता है। यह आयुर्वेद के आठ अंगों का संक्षिप्त परन्तु समृद्ध विवरण प्रस्तुत करता है, जो शरीर और मन के संतुलन के लिए आवश्यक है।

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पंचगव्य घृत क्या है?पंचगव्य घृत एक आयुर्वेदिक औषधि है, जो पाँच मुख्य गौ-सम्बंधी वस्तुओं—गाय का दूध, दही, घी, मूत्र और गो...
13/08/2025

पंचगव्य घृत क्या है?
पंचगव्य घृत एक आयुर्वेदिक औषधि है, जो पाँच मुख्य गौ-सम्बंधी वस्तुओं—गाय का दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर—से मिलकर बनती है। इसे विशेष रूप से शुद्ध देसी गाय (अक्सर गिर गाय) के उत्पादों से तैयार किया जाता है.

मुख्य लाभ
तंत्रिका तंत्र और मानसिक रोग: मिर्गी, उन्माद, डिप्रेशन, अल्ज़ाइमर, O.C.D. जैसी समस्याओं में लाभकारी.

यकृत स्वास्थ्य: पीलिया, जिगर के विकारों, बुखार आदि में असरकारी.

रक्त शोधन: रक्त को शुद्ध करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है.

पाचन, कब्ज़ और पेट के रोग: पाचन शक्ति सुधारने और कब्ज़ में राहत देने के लिए उपयोगी.

शारीरिक और मानसिक शक्ति: स्मरणशक्ति और बुद्धि को बढ़ाता है, शरीर की कमजोरी और थकावट में ऊर्जा देता है.

त्वचा के रोग: कुष्ठ, टीबी, त्वचा रोगों में भी इसका उपयोग होता है.

घटक (Ingredients)
घटक मात्रा
गोमय रस (गाय का गोबर) ~3 लीटर
गाय का दूध ~3 लीटर
गाय का दही ~3 किलो
गाय का मूत्र ~3 लीटर
गाय का घी ~768 ग्राम
(कुछ उत्पादों में आयुर्वेदिक जड़ीबूटियाँ भी मिलाई जाती हैं।)

उपयोग विधि
सामान्य तौर पर 5-12 ग्राम दिन में दो बार दूध या गर्म पानी के साथ लेना चाहिए।

छोटे बच्चों के लिए या विशेष रोग के लिए मात्राएं कम हो सकती हैं।

नस्य (नाक में डालना) के रूप में भी प्रयोग होता है—प्रत्येक नथुने में 2 बूँद.

हमेशा प्रमाणित वैद्य या डॉक्टर की सलाह पर ही लें.

ध्यान दें
मोटापा, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और उच्च कोलेस्ट्रॉल वाले व्यक्ति इसे केवल विशेषज्ञ की सलाह से लें.

अधिक मात्रा में लेने से डायरिया या अपच की शिकायत हो सकती है.

संक्षिप्त लाभ सूची
यकृत एवं पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद

तंत्रिका तंत्र एवं मानसिक रोग में लाभकारी

रक्त शुद्ध करता है

त्वचा रोगों के लिए असरदार

स्मरण शक्ति बढ़ाता है

कब्ज़ दूर करता है

शरीर को ताकत देने वाला

नोट: पंचगव्य घृत कोई आम घरेलू खाद्य पदार्थ नहीं, बल्कि एक औषधि है—इसे हमेशा चिकित्सकीय मार्गदर्शन में ही सेवन करें।

फिटकरी, जिसे अंग्रेज़ी में Alum कहा जाता है, आयुर्वेद में एक पारंपरिक औषधि के रूप में व्यापक रूप से इस्तेमाल होती रही है...
12/08/2025

फिटकरी, जिसे अंग्रेज़ी में Alum कहा जाता है, आयुर्वेद में एक पारंपरिक औषधि के रूप में व्यापक रूप से इस्तेमाल होती रही है। आयुर्वेदाचार्य इसे त्रिदोषनाशक—यानी वात, पित्त और कफ तीनों को संतुलित करने वाली—औषधि मानते हैं।

मुख्य औषधीय गुण
एंटीसेप्टिक, एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल गुण: फिटकरी में ये तीनों गुण मौजूद होते हैं, जिससे यह घाव, त्वचा संबंधी रोग, फंगल या बैक्टीरियल संक्रमण, मुंहासे आदि के इलाज में प्रभावी होती है।

त्वचा, दांत, और पाचन तंत्र के लिए लाभकारी:

शेविंग के बाद फिटकरी लगाने से कट पर इंफेक्शन नहीं होता।

दांत, मसूड़ों और मुंह के छालों पर इसका पानी या पाउडर राहत देता है।

सीमित मात्रा में सेवन करने पर पाचन संबंधी शिकायत (गैस, भारीपन) में भी राहत मिल सकती है।

पानी की शुद्धता: फिटकरी पानी के अशुद्ध कणों को बगैर किसी रसायन के हटाने में मददगार है, इसी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पानी साफ करने के लिए इसका इस्तेमाल होता है।

आयुर्वेदिक उपयोग
घाव व सूजन के इलाज के लिए फिटकरी का बाहरी उपयोग।

त्वचा पर लगाने, नहाने के पानी में डालने अथवा माउथवॉश की तरह उपयोग करने के लिए।

महिलाओं में व्हाइट डिस्चार्ज की समस्या और पुरुषों में स्पर्म से जुड़ी कुछ समस्याओं में (डॉक्टर की सलाह से)।

पाचन सुधारने के लिए (बहुत सीमित मात्रा में, डॉक्टर की सलाह पर)।

पिंपल, झाइयां, पिगमेंटेशन और त्वचा को टाइट करने में लाभकारी।

सावधानियां और नुकसान
किडनी या लिवर की समस्या, हाई ब्लड प्रेशर, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं तथा छोटे बच्चों को फिटकरी का पानी बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं लेना चाहिए।

अधिक मात्रा में सेवन हानिकारक हो सकता है।

बाहरी उपयोग के दौरान, त्वचा पर जलन या एलर्जी हो तो तुरंत बंद करें।

निष्कर्ष
फिटकरी आयुर्वेद में प्राकृतिक, सस्ती और असरदार औषधि के रूप में मानी जाती है, परंतु किसी भी प्रकार के आंतरिक सेवन या इंटेंसिव उपयोग से पहले हमेशा आयुर्वेदाचार्य या डॉक्टर से सलाह लेना अधिक सुरक्षित है







10/08/2025

आयुर्वेद में शुगर (मधुमेह) को नियंत्रित करने के लिए कई प्राकृतिक उपाय और जड़ी-बूटियाँ उपयोग की जाती हैं:

मेथी: मेथी दानें को गुनगुने पानी में भिगोकर सुबह खाली पेट सेवन करने से शुगर नियंत्रित होती है। मेथी इंसुलिन की क्रिया सुधारती है और कार्बोहाइड्रेट के पाचन को धीमा करती है.

गुड़मार (Gymnema Sylvestre): इसे "चीनी को मारने वाला" कहा जाता है, यह पैंक्रियास को इंसुलिन उत्पादन में मदद करता है और मीठे की लालसा कम करता है। गुड़मार के पाउडर का सेवन दिन में दो बार गुनगुने पानी के साथ किया जाता है.

जामुन: जामुन की गुठली शुगर नियंत्रण में अत्यंत लाभकारी होती है। इसे पीसकर पाउडर बना के सुबह खाली पेट लेना चाहिए.

नीम और तुलसी: नीम की पत्तियाँ और तुलसी भी शुगर को कम करने में सहायक मानी जाती हैं। नीम और करेला के मिश्रण से पैरों के मसाज से भी इंसुलिन उत्पादन बढ़ता है.

दालचीनी और काली मिर्च: दालचीनी और काली मिर्च में ब्लड शुगर नियंत्रण के गुण होते हैं। खासकर काली मिर्च इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ाने में मदद करती है.

हल्दी: हल्दी में करक्यूमिन होता है जो रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है और सूजन को कम करता है.

योग और व्यायाम: प्राणायाम, कपालभाति, मंडूकासन जैसे योगासन और रोजाना 30 मिनट टहलना शुगर नियंत्रण में मददगार है.

इसके साथ-साथ, आयुर्वेद में तनाव कम करना, सही और संतुलित आहार लेना भी जरूरी माना जाता है। शुगर रोगी को अधिक मीठा, तैलीय और अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट वाले भोजन से बचना चाहिए.

इन उपायों को अपनाने के लिए किसी अनुभवी आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श अवश्य करें ताकि आपकी स्थिति के अनुसार सही नुस्खा और मात्रा निर्धारित की जा सके.

संक्षेप में, शुगर के लिए आयुर्वेद में मेथी, गुड़मार, जामुन, नीम, तुलसी, और दालचीनी जैसी हर्ब्स का सेवन, योग, और स्वस्थ जीवनशैली की सलाह दी जाती है। यह उपाय शुगर नियंत्रित करने में सहायक होते हैं





























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माधव निदान आयुर्वेद का एक प्रमुख प्राचीन ग्रंथ है, जिसका मूल नाम 'रोगविनिश्चय' है और इसे आचार्य माधवकर ने 7वीं शताब्दी म...
10/08/2025

माधव निदान आयुर्वेद का एक प्रमुख प्राचीन ग्रंथ है, जिसका मूल नाम 'रोगविनिश्चय' है और इसे आचार्य माधवकर ने 7वीं शताब्दी में लिखा था।

यह ग्रंथ विशेष रूप से रोगों के निदान (डायग्नोसिस) तथा उनके नैदानिक लक्षणों के विस्तारपूर्वक वर्णन के लिए जाना जाता है। माधव निदान में 'पञ्चनिदान' (निदान, पूर्वरूप, रूप, उपशय, संप्राप्ति) के अनुसार रोग-विश्लेषण किया गया है तथा लगभग सभी आयुर्वेदिक रोगों—ज्वर, गुल्म, मेदोरोग, श्लीपद, योनि विकार, मूत्ररोग आदि—के कारण, लक्षण, उपशय तथा भेद स्पष्ट किए गए हैं।

मुख्य बिंदु:

संरचना: यह ग्रंथ दो भागों में तथा कुल 69 अध्यायों में विभाजित है। पहले अध्याय में पंचनिदान का वर्णन है, और बाकी अध्यायों में विभिन्न रोगों का निदान मिलता है।

महत्व: रोगों की सही पहचान, उनके कारण और लक्षण जानकर ही सफल चिकित्सा संभव है, इसीलिए यह ग्रंथ आयुर्वेदिक चिकित्सकों के लिए अत्यंत उपयोगी एवं सर्वमान्य है।

टीकाएँ: 'मधुकोश' (विजयरक्षित एवं श्रीकंठदत्त द्वारा रचित) और 'आतंकदर्पण' (वाचस्पति द्वारा रचित) इस ग्रंथ की प्रमुख टीकाएँ हैं।

विशेषताएँ: माधव निदान ने अपने समय के अन्य ग्रंथों (चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, अष्टांगहृदय आदि) का सार भी समाविष्ट किया जिससे यह व्यावहारिक दृष्टि से और अधिक लाभकारी बनता है।

संक्षेप में, माधव निदान आयुर्वेद में रोग-निदान के क्षेत्र का एक सर्वाधिक प्रसिद्ध, व्यवस्थित और मान्य ग्रंथ है, जिसकी आज भी चिकित्साशास्त्र में महत्ता बनी हुई है






आचार्य चरक आयुर्वेद के प्रमुख विद्वान और प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान के मूल संस्थापक माने जाते हैं। उनका रचित ग्रंथ ...
09/08/2025

आचार्य चरक आयुर्वेद के प्रमुख विद्वान और प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान के मूल संस्थापक माने जाते हैं। उनका रचित ग्रंथ "चरक संहिता" आयुर्वेद का सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित ग्रंथ है।

चरक का जन्म लगभग 300 ईसा पूर्व हुआ था और उन्होंने तक्षशिला में शिक्षा प्राप्त की थी।

उन्हें भारतीय औषध विज्ञान का जनक कहा जाता है और वे कुषाण साम्राज्य के राजवैद्य भी थे।

चरक संहिता मूलतः अग्निवेश तंत्र का परिष्कृत रूप है, जिसमें चिकित्सा, शरीर रचना, औषधियों, रोगनिवारण, रोगउपचार और जीवनशैली सम्बंधी विस्तृत विवरण है।

उन्होंने “त्रिदोष सिद्धांत” (वात, पित्त, कफ) प्रतिपादित किया, जो आज भी आयुर्वेद की आधारशिला है।

चरक ने पंचकर्म चिकित्सा, दिनचर्या, ऋतुचर्या, भोजन, और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर बल दिया और हजारों औषधियों के प्राकृतिक स्रोतों का उल्लेख किया।

उनका योगदान केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि दर्शन और अर्थशास्त्र के विषयों को भी उन्होंने अपने ग्रंथ में समाविष्ट किया।

चरक ने शिक्षा एवं उपचार के दौरान मानवीय मूल्यों और चिकित्सक के आचार-विचार को महत्वपूर्ण माना—जैसे रोगी से पुत्रवत व्यवहार की सलाह।

चरक संहिता का विश्व के अन्य देशों की भाषाओं में अनुवाद हुआ, जिससे आयुर्वेद का ज्ञान वैश्विक स्तर पर फैला। आचार्य चरक को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में भी “Father of Medicine” की उपाधि दी जाती है।

उनकी विचारधारा व सिद्धांतों से आयुर्वेदिक चिकित्सकों को आज भी मार्गदर्शन मिलता है और उनकी स्मृति हमेशा भारतीय चिकित्सा विज्ञान की गरिमा बढ़ाती रही है























पंचकर्म आयुर्वेद की एक प्राचीन एवं विशेष उपचार पद्धति है, जिसका मुख्य उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि तथा समग्र स्व...
07/08/2025

पंचकर्म आयुर्वेद की एक प्राचीन एवं विशेष उपचार पद्धति है, जिसका मुख्य उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि तथा समग्र स्वास्थ्य को बहाल करना है। संस्कृत में 'पंच' का अर्थ है पाँच और 'कर्म' का अर्थ है कार्य या प्रक्रिया, इसलिए पंचकर्म का शाब्दिक अर्थ “पाँच शुद्धिकरण प्रक्रियाएँ” है।

पंचकर्म की पाँच प्रमुख प्रक्रियाएँ
वमन (Vomana):
यह प्रक्रिया कफ दोष के असर को कम करने और शरीर से निकालने के लिए की जाती है। सामान्यतः इसका उपयोग सांस-संबंधी समस्याओं, मोटापा और त्वचा रोगों में किया जाता है।

विरेचन (Virechana):
इसमें मुख्यतः पित्त दोष का शोधन किया जाता है। इसका उद्देश्य लीवर व आंतों को गहराई से साफ करना रहता है और यह कब्ज, एसिडिटी, त्वचा विकारों आदि में उपयोगी है।

बस्ति (Basti):
यह वात दोष को नियंत्रित करने के लिए एनिमा (औषधीय तेल/काढ़े के द्वारा) दी जाती है। यह जोड़ दर्द, गठिया, अपच व पुराने रोगों में लाभप्रद है।

नस्य (Nasya):
नाक के माध्यम से औषधीय तेल या काढ़ा ग्रहण कराया जाता है। सिरदर्द, माइग्रेन, साइनस व स्नायु संबंधी समस्याओं में उपयोगी रहती है।

रक्तमोक्षण (Raktamokshana):
इसमें शरीर के दूषित रक्त को बाहर निकालने की प्रक्रिया होती है, जिससे फोड़े-फुंसी, सोरायसिस, एक्जिमा आदि रक्तविकारों में राहत मिलती है।

पंचकर्म के लाभ
शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकालता है।

प्रतिरक्षा (इम्यूनिटी) मज़बूत करता है।

पाचन और चयापचय को सुधारता है।

मानसिक तनाव को कम करता है।

त्वचा एवं बालों की गुणवत्ता में सुधार करता है।

विशेषताएँ
यह पूरी तरह व्यक्ति विशेष की प्रकृति, उम्र और रोग अनुसार किया जाता है।

पंचकर्म करवाने से पहले और बाद में उचित आहार और जीवनशैली अपनाने की सलाह दी जाती है।

यह योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में ही करना चाहिए।

संक्षेप में: पंचकर्म आयुर्वेद में शरीर, मन और आत्मा के शुद्धिकरण का सम्पूर्ण उपचार है, जो पाँच प्रक्रियाओं से मिलकर बनता है और शरीर को प्राकृतिक रूप से स्वस्थ, संतुलित एवं ऊर्जावान रखने में मदद करता है

06/08/2025

वर्तमान में कई फर्जी कॉल सेंटर और ठग लोग आयुर्वेद के नाम पर लोगों से धोखाधड़ी कर रहे हैं। ये लोग आम जनता की भरोसेमंद भावनाओं और आयुर्वेद की सदियों पुरानी प्रतिष्ठा का गलत फायदा उठाकर नकली या घटिया दवाइयां ऊंची कीमतों पर बेचते हैं, जिससे न केवल लोगों का स्वास्थ्य नुकसान में पड़ता है, बल्कि पूरे आयुर्वेदिक सिस्टम व आयुर्वेद डॉक्टर की साख भी खराब होती है।







































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हिंग्वाष्टक चूर्ण क्या है?हिंग्वाष्टक चूर्ण एक आयुर्वेदिक पाउडर है, जिसे मुख्य रूप से पेट के पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याओ...
05/08/2025

हिंग्वाष्टक चूर्ण क्या है?
हिंग्वाष्टक चूर्ण एक आयुर्वेदिक पाउडर है, जिसे मुख्य रूप से पेट के पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याओं, जैसे गैस, अपच, कब्ज, पेट दर्द, पेट फूलना, अरुचि, भूख न लगना आदि में उपयोग किया जाता है। यह चूर्ण पेट के वात दोष को संतुलित करता है और पाचन शक्ति को बढ़ाता है।

मुख्य घटक:

हींग (Asafoetida)

सौंठ (Dry Ginger)

कालीमिर्च (Black Pepper)

पिप्पली (Long Pepper)

जीरा (Cumin)

अजवाइन (Carom seeds)

सैंधा नमक (Rock Salt)
यह सभी जड़ी-बूटियाँ समान मात्रा में मिलाई जाती हैं और पेट के लिए लाभकारी मानी जाती हैं।

मुख्य फायदे:

गैस, अपच, पेट फूलना और कब्ज में राहत

भूख न लगना या भोजन का स्वाद न आना

पाचन शक्ति को मजबूत बनाना

पेट में ऐंठन, दर्द या भारीपन की समस्या में राहत

शरीर में वात दोष को संतुलित करना

पाचन अग्नि (Digestive Fire) को प्रज्वलित करना और विषाक्त पदार्थों (Toxins) को जलाना

चयापचय (Metabolism) को बढ़ाना और शरीर को ऊर्जावान बनाना।

सेवन विधि व मात्रा:
आम तौर पर 3–5 ग्राम चूर्ण गुनगुने पानी, दूध या घी के साथ भोजन के बाद या चिकित्सक के निर्देशानुसार लेना चाहिए। खुराक उम्र, स्वास्थ्य व समस्या के अनुसार बदल सकती है।

विशेष सावधानी:

गर्भवती महिलाएं व बच्चों को चिकित्सक की सलाह से ही लें।

यदि कोई दवा या लगातार स्वास्थ्य समस्या है तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

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लवण भास्कर चूर्ण एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है, जो मुख्यतः पाचन से जुड़ी समस्याओं के लिए उपयोग की जाती है। यह चूर्ण पेट...
04/08/2025

लवण भास्कर चूर्ण एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है, जो मुख्यतः पाचन से जुड़ी समस्याओं के लिए उपयोग की जाती है। यह चूर्ण पेट की गैस, अपच, भूख की कमी, कब्ज, और पेट के अन्य असुविधाजनक लक्षणों को दूर करने में मदद करता है।

मुख्य घटक
काला नमक

समुद्री लवण

सेंधा नमक

काली मिर्च

जीरा, काला जीरा

दालचीनी

इलायची

पीपलमूल

अनारदाना आदि

लाभ
पाचन शक्ति को बढ़ाता है

गैस, ऐंठन, अपच और पेट की सूजन से राहत देता है

वात और कफ दोष को संतुलित करता है

भूख बढ़ाता है

सेवन विधि
1 से 3 ग्राम चूर्ण, दिन में दो बार (भोजन के बाद)

गुनगुने पानी, मठ्ठा, दही के पानी या शहद के साथ सेवन करें

बच्चों को डॉक्टर की सलाह से ही दें, 5 वर्ष से छोटे बच्चों को आमतौर पर नहीं दिया जाता

सावधानियां
पित्त दोष, उच्च रक्तचाप, किडनी रोग, या जिन्हें नमक सीमित करना है, वे डॉक्टर की सलाह से ही इसका उपयोग करें

अधिक मात्रा में सेवन करने से एसिडिटी, डायरिया या शरीर में सोडियम की मात्रा बढ़ सकती है



ास्कर_चूर्ण













#आयुर्वेदिक_दवा

#पाचन_दवा

आयुर्वेद के अनुसार वर्षा ऋतु (मानसून) में वात दोष बढ़ता है, पाचन शक्ति (जठराग्नि) कमजोर हो जाती है और कफ दोष भी बढ़ने लग...
03/08/2025

आयुर्वेद के अनुसार वर्षा ऋतु (मानसून) में वात दोष बढ़ता है, पाचन शक्ति (जठराग्नि) कमजोर हो जाती है और कफ दोष भी बढ़ने लगता है। इसलिए इस ऋतु में हल्का, गर्म, सुपाच्य और ताजा भोजन करना चाहिए जिससे पाचन ठीक रहता है और बीमारियों से बचा जा सके। इस समय तले-भुने, भारी, ठंडे और बासी खाद्य पदार्थों का सेवन पूरी तरह से बचना चाहिए। मूंग की दाल, खिचड़ी, उबली सब्जियां, सूप, अदरक, काली मिर्च, जीरा, हींग जैसे पाचनवर्धक मसालों का प्रयोग लाभकारी होता है। तुलसी, गिलोय, हल्दी जैसे आयुर्वेदिक हर्बल पेय रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। दूध यदि लिया जाए तो हल्का गुनगुना और हल्दी डालकर पीना चाहिए। फलों में पपीता, अनार, सेब आदि लाभकारी होते हैं, लेकिन खुले में रखे फल खाने से बचना चाहिए। भोजन दिन में तीन बार सीमित मात्रा में और समय पर लेना चाहिए। इस ऋतु में स्वच्छता, शुद्ध जल का सेवन और संतुलित दिनचर्या को भी बनाए रखना जरूरी होता है ताकि वात, पित्त और कफ दोष संतुलित रहें और स्वास्थ्य समस्याएं न हों।

संक्षेप में, वर्षा ऋतु में आयुर्वेदिक दृष्टि से:

वात दोष बढ़ता है, इसलिए शरीर को धूप में सुखाना, हल्का व्यायाम करना लाभकारी होता है।

पाचन शक्ति कमजोर होती है, इसलिए सुपाच्य, हल्का और गर्म भोजन जरूरी।

कफ दोष बढ़ने की संभावना रहती है, इसलिए भारी और तैलीय पदार्थ न खाएं।

विशिष्ट आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और मसालों से इम्यूनिटी बढ़ाई जाती है।

यह वर्षा ऋतु में स्वस्थ रहने के लिए प्रमुख आयुर्वेदिक सुझाव हैं।
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