09/01/2023
"रामनाम" में छुपा है सम्पूर्ण ब्रहमांड।
रतन नाड़ी वैध फ़्री सलाह एवं उपचार
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* बिनु सतसंग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग।
मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग॥
भावार्थ:-सत्संग के बिना हरि की कथा सुनने को नहीं मिलती, उसके बिना मोह नहीं भागता और मोह के गए बिना श्री रामचंद्रजी के चरणों में दृढ़ (अचल) प्रेम नहीं होता॥
* मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा। किएँ जोग तप ग्यान बिरागा।।
प्रभु श्री राम ने हम सभी मानवों को मति देकर भेजा है.। इसका सदुपयोग अर्थात "सुमति" है.और इसका दुरपयोग "कुमति" है.मनुष्य मात्र स्वतंत्र है मति को 'सु' की ओर अथवा 'कु' की ओर ले जाने के लिए.यदि वह 'सु' की ओर ले जाता है तब भी दो पड़ाव मिलते हैं.सद्भाव और सद्भाव से शांति.और यदि वह 'कु' की ओर ले जाता है तब भी दो पड़ाव मिलते हैं। .दुर्भाव(क्लेश) और दुर्भाव से अशांति."सुमति" की खुराक है स्वाध्याय,परोपकार,नाम सुमिरन.और। "कुमति" की खुराक है परद्रोह,परधन हरण,पर निंदा.।
जो व्यक्ति "सुमति" के रास्ते पर अपनी मति को ले जाता है । वह सर्व संपत्ति युक्त होकर आनंद में जीवन व्यतीत करता है.। और परलोक में भी परमानन्द की प्राप्ति होती है.।
जो व्यक्ति "कुमति" के रास्ते पर अपनी मति को ले जाता है । धीरे-धीरे संपत्ति विहीन हो जाता है.विपत्तियों को प्राप्त होता है। .और अशांति मय जीवन व्यतीत करता है.।
जैसे छोटे से बीज में विशाल वट वृक्ष छिपा होता है । वैसे ही रामनाम में सम्पूर्ण ब्रह्मांड छिपा हुआ है। .बीज में से वृक्ष जादू की तरह नहीं प्रगट हो सकता उसके प्रगट करने की विधि है। .समय लगता है.साधन करना पड़ता है.तब जाकर बीज में से वृक्ष प्रगट होता है.फिर भी उसकी रक्षा करनी पड़ती है.कोई नष्ट न कर दे.।
उसी प्रकार "रामनाम" से कुछ भी प्रगट किया जा सकता है.।परन्तु उसकी भी विधि है.साधन करना पड़ता है.समय लगता है तब जाकर कंही "रामनाम" बीज अंकुरित होता है.। फिर भी उसकी रक्षा करनी पड़ती है। .कंही कोई कुसंगी इसे नष्ट न कर दे.।
"सुमति" के रास्ते पर चलने वाले को कष्ट कितने ही आ जाये परन्तु वह एक दिन परमानद को प्राप्त होता है.।"कुमति" के रास्ते पर चलने वाले को सुख कितना ही मिल जाये परन्तु परिणाम विपत्ति और अशांति में ही परवर्तित होता है.।चाहे देर कितनी ही क्यों न हो जाये.।* सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥
भावार्थ:-हे नाथ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि (अच्छी बुद्धि) और कुबुद्धि (खोटी बुद्धि) सबके हृदय में रहती है, जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार की संपदाएँ (सुख की स्थिति) रहती हैं और जहाँ कुबुद्धि है वहाँ परिणाम में विपत्ति (दुःख) रहती है॥
विश्व में केवल हिंदू धर्म ही ऐसा है जो सबको जियो और सबको जीने दो जैसे सिध्दांत व सोच रखता है,इसीलिए काश विश्व शांति के लिए विश्व में केवल हिंदू विचारों व धर्म का स्वागत होता।चारों ओर शान्ति और राम नाम की धुन वॐ की गुंजार हो रही होती!
आज की नई पीढ़ी के हालात बड़े भयंकर होते जा रहे हैं इसीलिए अपने बच्चों को संस्कार दीजिये,नहीं तो ये आपके अंतिम संस्कार में भी शामिल नही होंगे।मज़ाक़ नही है,भयंकर कलियुग चल रहा है।सेल्फिश होने की होड़ मची हुई है।