Divine Play : Happiness Unlimited

Divine Play : Happiness Unlimited Ram Seva ( राम सेवा )
Bhakti se Shakti ( भक्ति से शक्ति )
Healing through Bhakti ( भक्ति से उपचार)

✨✨✨ अंजनी कौन हैं? ✨✨✨हनुमान जी के जन्म की कथा बहुत गहन विषय है, इसे बहुत ध्यान से समझना होगा।भगवान के अवतार की तरह ही ह...
03/06/2025

✨✨✨ अंजनी कौन हैं? ✨✨✨

हनुमान जी के जन्म की कथा बहुत गहन विषय है, इसे बहुत ध्यान से समझना होगा।

भगवान के अवतार की तरह ही हनुमान जी के अवतार का स्थान भी हृदय है। हनुमान जी के हृदय में आने पर ही भगवान का कार्य पूर्ण होता है।

देखिए, हनुमान जी का जन्म अंजनी से हुआ था। इसलिए हनुमान जी को हृदय में प्रकट करने के लिए हमें अंजनी बनना होगा। अंजनी कौन है? जिसकी आँखों में सुरमा लगा है, वह अंजनी है। यह कौन सा सुरमा (अंजन) है? और यह क्या करता है?

"गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन।
नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥'

गुरु जी के चरणों की रज ( धूल) कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, ऐसा सुरमा है जो नेत्रों के दोषों को दूर करता है।

अब ध्यान दें कि यह धूल क्या है?

"बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमिअ मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥"

अर्थात: मैं गुरुजी के चरण कमलों की रज की वंदना करता हूं, जो सुंदर स्वादिष्ट, सुगंध युक्त व अनुराग रूपी रस से परिपूर्ण है। वे अमर संजीवनी बूटी रुपी सुंदर चूर्ण के समान हैं, जो समस्त पारिवारिक मोह रुपी महान रोगों का नाश करने वाला है।

गुरु जी के चरणों में प्रेम होना, उनके चरणों की धूलि प्राप्त करना, दृष्टि में सुरमा लगाना, आंखों में सुरमा लगाना और यही अंजनी होने की प्रक्रिया है।

यहाँ शंकर कौन है? आपके गुरु-

"वंदे बोधमयं नित्यं गुरु, शंकर रूपिणम।
यमाश्रितो हि वक्रोपि, चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते।।"

अर्थात जिनके शरणागत(आश्रित) होकर टेढ़ा( दूज का) चन्द्रमा भी समस्त संसार में पूजनीय हो गया,मैं उन शंकर (कल्याण कर्ता) स्वरूप ,बोध( ज्ञान) स्वरूप, गुरुदेव जी को नित्य वंदन करता हूँ।

जब आदिगुरु शंकर ने माया पर विजय प्राप्त की, तो उनके मुख से जैसे ही शब्द निकले, ज्ञान की धारा बहने लगी, उपदेश आने लगे, वह शब्द वायु के द्वारा अंजनी के कान में गिरा। हमारे आपके कान में भी गुरु जी का उपदेश वायु के द्वारा स्पंदित होता है।

शंकर जैसे प्रबुद्ध ऋषि और सद्गुरु का यह उपदेश वायु के द्वारा सबके कानों में पड़ता है, लेकिन हनुमान जी उसकी अंतरात्मा में ही अवतार लेते हैं, जो गुरु जी के चरणों से प्रेम करते हैं, जिनकी आंखों में सुरमा है, जो अंजनी हैं।

जो अंजनी नहीं है, वह वंचित रह जाता है और बहस करता रहता है। अंजनी के बिना हनुमान जी को प्राप्त करना संभव नहीं है।

🙏🌷🙏 जय श्री राम 🙏🌷🙏
🙏🌷🙏 जय आंजनेय हनुमान 🙏🌷🙏

#रामायण

✨ हनुमान जी के समान प्रभु राम की कृपा पाने का उपाय ✨हनुमान जी को भगवान् सदा अपने पास बैठाते है, क्यों ? क्यों कि हनुमान ...
03/06/2025

✨ हनुमान जी के समान प्रभु राम की कृपा पाने का उपाय ✨

हनुमान जी को भगवान् सदा अपने पास बैठाते है, क्यों ? क्यों कि हनुमान जी ने तीन काम किये और जो ये तीन कार्य करता है भगवान् उसे अपने पास सदा रखते है ।

1. हनुमान जी ने नाम त्यागा-

हनुमान जी ने अपना कोई नाम नहीं रखा ! हनुमान जी के जितने भी नाम है सभी उनके कार्यों की वजह से रखे गए।
किसी ने हनुमान जी से पूछा -आपने अपना कोई नाम क्यों नहीं रखा तो हनुमान जी बोले -जो है नाम वाला वही तो बदनाम है! नाम तो दो ही सुन्दर है प्रभु राम और भोले बाबा का !
सीता जी को ढूंढते हुये लंका पहुँच कर जब हनुमान जी विभीषण जी को मिले तब विभीषण जी बोले – आपने भगवान् की इतनी सुन्दर कथा सुनाई आप अपना नाम तो बताईये ! हनुमान जी बोले - नाम की तो बड़ी महिमा है-

"प्रात लेई जो नाम हमारा
तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।।"

भला कहिए, मैं ही कौन बड़ा कुलीन हूँ? (जाति का) चंचल वानर हूँ और सब प्रकार से नीच हूँ, प्रातःकाल जो हम लोगों (बंदरों) का नाम ले ले तो उस दिन उसे भोजन न मिले।

हनुमान जी ने नाम छोड़ा और हम नाम के पीछे ही मरे जाते है ! मंदिर में एक पत्थर भी लगवाते है तो पहले अपना नाम उस पर खुदवाते है।

एक व्यक्ति ने एक मंदिर में पंखे लगवाए, पंखे की हर पंखङी पर अपने पिता जी का नाम लिखवाया। एक संत ने पूछा -ये पंखे पर किसका नाम लिखा है ! उसके बेटे ने कहा -मेरे पिता जी का नाम है। संत बोले -जीते जी खूब चक्कर काटे कम से कम मरने के बाद तो छोड़ दो क्यों चक्कर लगवा रहे हो।

2. हनुमान जी ने रूप त्यागा-

हनुमान जी बंदर का रूप लेकर आये। हमें किसी का मजाक उड़ाना होता है तो हम कहते है कैसा बंदर जैसा मुख है कैसे बंदर जैसे दाँत दिखा रहा है।

हनुमान जी से किसी ने पूछा -आप रूप बिगाड़कर क्यों आये तो हनुमान जी बोले यदि मै रूपवान हो गया तो भगवान् पीछे रह जायेगे।

इस पर भगवान् बोले -चिंता मत करो हनुमान मेरे नाम से ज्यादा तुम्हारा नाम होगा और ऐसा हुआ भी राम जी के मंदिर से ज्यादा हनुमान जी के मंदिर है।

मेरे दरबार में पहले तुम्हारा दर्शन होगा ( राम द्वारे तुम रखवाले ) !

3. हनुमान जी ने यश त्यागा-

हम थोड़ा सा भी बड़ा और अच्छा काम करते है तो चाहते है पेपर में हमारी फोटो छपे, नाम छपे... पर हनुमान जी ने कितने बड़े-बड़े काम किये पर यश स्वयं नहीं लिया !

एक बार भगवान वानरों के बीच में बैठे थे, सोचने लगे हनुमान तो अपने मुख से स्वयं कहेगा नहीं इसलिए हनुमान की बडाई करते हुए बोले..

हनुमान तुमने इतना बड़ा सागर लांघा जिसे कोई नहीं लांघ सका !

हनुमान जी बोले -प्रभु इसमें मेरी क्या बिसात-

"प्रभु मुद्रिका मेल मुख माही
आपके नाम की मुंदरी ने पार लगाया।।"
भगवान् बोले -अच्छा हनुमान चलो मेरी नाम की मुंदरी ने उस पार लगाया फिर जब तुम लौटे तब तो मुंदरी जानकी को दे आये थे फिर लौटते में तो नहीं थी फिर किसने पार लगाया ?

इस पर हनुमान जी बोले -प्रभु आपकी कृपा ने (मुंदरी) ने उस पार किया और माता सीता की कृपा ने (चूड़ामणि) इस पार किया।

भगवान् ने मुस्कराते हुए पूछा, और लंका कैसे जली ?

हनुमान जी बोले लंका को जलाया आपके प्रताप ने, लंका को जलाया रावण के पाप ने, लंका को जलाया माँ जानकी के श्राप ने !
भगवान् ने मुस्कराते हुए घोषणा की.. हे हनुमान तुमने यश छोड़ा है इसलिए न जाने तुम्हारा यश कौन-कौन गायेगा !

"सहस बदन तुम्हारो यश गावे"

यानी सारा जगत तुम्हारा यश गायेगा।

अतः जो इन तीनों चीजों को छोड़ता है (प्रभु के चरणों में समर्पित कर देता है), भगवान् फिर उसे नहीं छोड़ते, सदा अपने साथ रखते है !

सभी भक्तजनों को चौथे बड़े मंगल की बहुत बहुत शुभकामनाएं, हम सभी पर श्री राम और हनुमान जी की कृपा और आशीर्वाद बना रहे |

🙏🌷🙏 जय श्री राम 🙏🌷🙏
🙏🌷🙏 जय रामभक्त हनुमान 🙏🌷🙏

#रामायण

🔱महाकाल- आरम्भ भी, अंत भी 🔱  अकाल मृत्यु वो मरे जो कर्म करे चांडाल का, काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का। कर्ता करे...
02/06/2025

🔱महाकाल- आरम्भ भी, अंत भी 🔱

अकाल मृत्यु वो मरे जो कर्म करे चांडाल का, काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का।

कर्ता करे न कर सकै, शिव करै सो होय। तीन लोक नौ खंड में, महाकाल से बड़ा न कोय।

अकाल मृत्यु वो मरे जो कर्म करे चांडाल का, काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का।

आँधी तूफान से वो डरते है, जिनके मन में प्राण बसते है, वो मौत देखकर भी हँसते है, जिनके मन में महाकाल बसते है।

काल का भी उस पर क्या आघात हो, जिस बंदे पर महाकाल का हाथ हो..!!

🔱महाकाल के बारे में ये बातें यूँ ही नहीं कही जाती कालों के काल महाकाल सिर्फ एक मूर्ति नहीं हैं मूर्ति तो एक एक प्रतीक प्रतिमान है लेकिन इसके पीछे छिपे हैं समय, काल, अकाल जन्म और मृत्यु जैसे जीवन व श्रृष्टि के अनंत रहस्य आज हम महाकाल से जुड़े ऐसे ही कुछ अनछुए पहलुओं पर बात करेंगे| सबसे पहले सुनते हैं मानव जाति से क्या कह रहे हैं महाकाल?

🔱मैं महाकाल हूं खंडहर हो गए लोकों को नष्ट कर नव सृजन करता हूँ | देखो मैं पूरी शक्ति के साथ खड़ा हुआ हूं, इसलिए तू उठ खड़ा हो और महान यश का लाभ कर, सब कुछ पहले ही किया जा चुका है, तू केवल निमित्त मात्र बन |

🔱महाकाल का ये सन्देश साफ़ है, हर एक व्यक्ति को सिर्फ उनकी इस रचना में एक छोटी सी भूमिका निभानी है | उन पर विश्वास रखना है और अपने काम को अच्छे ढंग से करते हुए, हर अच्छे बुरे परिणाम को सहज स्वीकार करना है, उसकी भक्ति में लगे हुए व्यक्ति को बहुत ज्यादा चिंता नहीं करनी, बस अपना कर्म करते जाना है |

🔱श्री महाकाल की सृष्टि की आदि से अंत तक सत्ता अनंत है , उज्जैन के श्री महाकालेश्वर काल के अधिष्ठाता के रूप हैं , काल-गणना के प्रवर्तक, वह विश्वात्मा जिसकी शक्ति हर जगह है, काल की शक्ति ही मानव की नियति का निर्माण करती है |

🔱 समय कभी रुकता नहीं, और समय महाकाल के अधीन है इसलिए उनका काम रुकता नहीं, जब से महाकाल ने अपने हाथों में दुनिया की बागडोर थामी है, संसार की समस्त शक्तियां एकजुट होकर उनके संकल्प की पूर्ति के लिए दिन-रात जुटी हुई है|

🔱महाकाल स्वयं को दो रूपों में प्रकट करते हैं अपने पहले रूप में वह रूद्र होते हैं और दूसरे में शिव | रूद्र की विनाशलीला शिव के सृजन के लिए भूमि तैयार करती है|

🔱श्री महाकालेश्वर सृष्टि की शुरुआत से लेकर अंत तक की काल-यात्रा के प्रतिबिंब हैं| ईश्वरीय प्रकाश का स्वरूप हैं| उनका उद्देश्य है मनुष्य की प्रकृति में फेरबदल कर नया इंसान गड़ना और इस धरती पर स्वर्ग युग लाना|

🔱दुनिया ने महाकाल के रूद्र रूप के अनेक नजारे उनके तांडव के रूप में देखे| लगा जैसे महा प्रलय आने वाला है, लेकिन रुद्र के क्रियाकलापों से लग रहा है कि अब वक्त बदलने लगा है|

🔱 महाकाल की लीला अनोखी है, अद्भुत है, अलौकिक है| उनका उन्मुक्त ईश्वरीय प्रकाश और बिखरने वाला है| यह महाकाल ही हैं जिनके अंदर सामर्थ्य है, रूद्र के तीव्र तांडव में छिपे हुए शिव सृजन की |

🔱जिस तरह मानव की उत्पत्ति से लेकर आज तक अनेक सुखद व दुखद घटनाओं से गुजरा है, उसी तरह महाकाल का ये भौतिक स्वरूप भी अनेक आघात-प्रतिघात के बाद आज नवसृजन के दौर से गुजर कर निखर चुका है| पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर आज तक की महाकाल की यात्रा अविश्वसनीय रूप से परिवर्तनशील है|

🔱महाकाल इस पूरे समाज को उस परिवर्तन की प्रक्रिया से गढ़ रहे हैं, जो भविष्य की सतयुगी पीढ़ी का निर्माण करेगी | हम सबके अंदर महाकाल ने आंतरिक और बाह्य ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी है जिनके दबाव में आकर कोयले रुपी मानव को हीरा बनना ही पड़े| महाकाल की अपरिवर्तनीय योजना का केंद्र है व्यक्ति, और परिधि है समाज|

🔱यह महाकाल की ही शक्ति है जो धरती से लाखों गुना भारी भरकम नक्षत्रों को उनकी कक्षा में घुमाती है| ऐसी आसानी से जैसे कोई बालक गेंद घुमाता है | कालों के महाकाल के लिए असंभव क्या है? असंभव को भी संभव करने में वो सिद्धहस्त है|

🔱उज्जैन में विराजमान महाकाल, सिर्फ उज्जैन के नहीं है वह पूरी दुनिया के हैं जो लोग संसार को उपलब्ध करना चाहते हैं उनके लिए महाकाल उमा महेश्वर के रूप में विराजित हैं|

🔱योगी और तपस्वी के लिए महाकाल आदियोगी के रूप में विराजित है, वे योगी के रूप में अचलेश्वर हैं|
काल के तीन अर्थ होते हैं एक समय, दूसरा अंधकार और तीसरा मृत्यु, इन पर विजय दिलाने में समर्थ कालों के काल महादेव को महाकाल भी कहा जाता है| पूरी दुनिया निरंतर गति कर रही है, एक चक्र की तरह एक वर्तुल में सब कुछ गति में है, अपनी धुरी पर और किसी दूसरे केंद्र के चारों ओर हर एक परमाणु समय की ऊर्जा से निरंतर गति कर रहा है|

🔱सब कुछ चक्र की तरह घूम रहा है| और यह चक्र जिस अंतराल में घूमता है, उस अंतराल को समय कहते हैं, और यह सब कुछ जहां घटित हो रहा है, वह आकाश है| हम सब उस महाकाल के कारण ही अस्तित्व में है, यदि महाकाल ना होते तो हमारा जीवन ना होता, हम सबका आधार वह काल ही है| महाकाल सृष्टि के चक्र के प्रवर्तक हैं| महाकाल के सामने सृष्टि बहुत छोटी है, इतने बड़े ब्रह्मांड में हमारी धरती एक परमाणु की तरह है| बाकी चारों तरफ खाली स्थान है, अंधकार है, स्पेस है|

🔱महाकाल की गोद में ही यह सृष्टि घटित होती है| यह जगत बनता है और बिगड़ता है| महाकाल अपने परिवार के साथ संसार की गति को परिलक्षित करते हैं| लेकिन जब वैराग्य घटित होता है तो ज्योतिर्लिंग के रूप में विशुद्ध स्वरूप में, वैराग्य के पथ प्रदर्शक बन जाते हैं| जीवन चक्र के अंदर भी महाकाल है जो शिव के रूप में हैं| और जीवन चक्र के बाहर भी महाकाल है जो ज्योतिर्लिंग के रूप में है|

🔱कालचक्र की शुरुआत महाकाल से होती है। प्रलय काल में सारा संसार अंधेरे में डूबा था और महाकाल ने ब्रह्मा जी को सृष्टि का निर्माण करने को कहा।

🔱ध्यान देने योग्य बात है कि द्वाद्वश ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ महाकालेश्वर ही दक्षिणमुखी हैं। दक्षिण दिशा यमराज का स्थल है और यम पर महाकाल की दृष्टि उन्हें नियंत्रित करने के लिए है। काल का अर्थ समय है और महाकाल का समय पर नियन्त्रण है। काल या समय के समक्ष मनुष्य और देवता दोनों ही नतमस्तक हैं। जब काल की गति वक्र होती है, उस समय राजा हरिश्चन्द्र को भी चाण्डाल की चाकरी करनी पड़ती है। इसलिए समय अतिबलवान है। पर, इस काल पर अगर किसी का शासन स्थापित है, तो वह हैं महाकाल के रूप में शिव।

🔱इसलिए शिव की स्तुति में, शिव का अभिषेक कर भक्त अपने जीवन को आरोग्य, रस, रूप, गंध से सिंचित करने की कामना करते हैं और पूर्ण आयु को प्राप्त कर उन्हीं में विलीन होने की इच्छा प्रकट करते हैं। महाकाल की अर्चना जीवन के श्रेष्ठतम समय के आरम्भ का सूत्रपात है। जीवन अनगिनत क्षणों का संयोग है और प्रत्येक क्षण को पूर्णता के साथ जीना ही जीवन का आनन्द है। अक्सर हम आगामी समय की दुविधा को लेकर चिंतित रहते हैं, पर उत्तर तो हमेशा समय के गर्भ में है।

🔱महाकाल रूप में शिव एक परिपूर्ण स्वस्थ जीवन का आशीष देते हैं और अंतकाल में शिव में विलीन होकर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने का आश्वासन। इसी में जीवन की श्रेष्ठता है, क्योंकि भौतिक प्रगति व आध्यात्मिक उन्नति के बीच समन्वय स्थापित हो जाता है।

🔱धर्मग्रंथ कहते हैं- कालचक्र प्रवर्तकों महाकाल: प्रतापन:। अर्थात कालचक्र के प्रवर्तक महाकाल अत्यंत प्रतापी हैं।

🙏🔱🙏 जय महाकाल 🙏🔱🙏

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