Acharya Ashok Dinbandhu

Acharya Ashok  Dinbandhu Founder Director SSWF

साथियों.! अपनी अपनी योग्यता अनुसार आवेदन तैयार तैयार करे और निर्धारित समय सीमा में जमा करे।
01/02/2024

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Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Vijay Kumar Basapati, Prashant Pillai
31/01/2024

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हमारे स्वर्गीय पिताश्री ठाकुर रामप्यारेसिंह की १०वी पुण्यतिथी के पावन अवसर पर सेवा सदभावना वेल्फेयर फाउंडेशन के तत्वाधान...
17/01/2024

हमारे स्वर्गीय पिताश्री ठाकुर रामप्यारेसिंह की १०वी पुण्यतिथी के पावन अवसर पर सेवा सदभावना वेल्फेयर फाउंडेशन के तत्वाधान में सरुवावां, जिला-अमेठी, उत्तर प्रदेश में गरीब ग्रामजनों को ४०० गरम कंबल वितरीत किए गए।

आचार्य अशोक" दीनबंधु "

ब्राहमण भाग - २ ईसापूर्व  ३३०० और ३००० के आसपास अरबी समुद्र,भूमध्य समूद्र एवम कैस्पियन सागर,नील, युक्रेतिस, ताइग्रीस, सि...
13/01/2024

ब्राहमण भाग - २

ईसापूर्व ३३०० और ३००० के आसपास अरबी समुद्र,भूमध्य समूद्र एवम कैस्पियन सागर,नील, युक्रेतिस, ताइग्रीस, सिंधू आदि नदियां समेत सम उष्णतावाले इलाकों जहा शिकार एवम घांस चारे की प्रचुर उपलब्धता थी,ऐसे प्रदेशों में पुरे विश्व के कबीले आ आ कर बसने लगे। इसबात की पूरी सम्भावना थी की हर कबीले के किसी एक या अधिक नीडर एवम दीर्घद्रष्टा लड़ाके जो उस दल या समूह के या तो सरदार होते थे, या उपेक्षित युवा रहे होंगे जो घुमक्कड़ प्रकृति के होने के कारण सूर्य,चंद्र,अग्नि, वरूण,पृथ्वी,आकाश, ज्वालामुखी आदी कुदरती शक्तियों से भली भांति परिचित हो गए थे तथा पृथ्वी के भिन्न भिन्न क्षेत्रों की जलवायु को समझने लगे थे। भिन्न भिन्न ऋतुओंके कारण पृथ्वी पर होनेवाले भौतिक बदलावों से अपने कबीलों की सुरक्षा करना सीख गए थे। इसके लिए उन्हें लंबे लंबे खोज अभियानों में जाना पड़ता था। जिस कारण ज्यादातर वे सामुहिक शिकार अभियानों में हिस्सा नही ले पाते थे।
उनके उपकारी कार्यों से सरदार समेत कबीले के सभी सदस्य प्रभावित होने के कारण शिकार अभियानों में उनकी अनुपस्थिति सभी को स्वीकार्य थी। धीरे धीरे शिकार, खेत उत्पाद एवम मवेशियों में उनका हिस्सा अलग से लगाया जानें लगा। इस प्रकार कबीले,गांवों एवम समाजो में सरदार के बाद इनका महत्व बढ़ता चला गया। इस वर्ग में आनेवाले विशेष मनुष्य पांच तत्वों से निर्मित इस ब्रह्माण्ड का संचालन करनेवाली कुदरती शक्तियों को, उनके भौतिक स्वरूप तथा उनकी कार्य प्रणाली को समझने लगे थे। इसलिए श्रुतियों में उन्हे " ब्रह्म " को जानने वाले यानी " ब्राहमण" कहकर पुकारा गया। इस तरह वेद कालीन भारतीय समाज में ब्राह्मणों को विशेष स्थान दिया जानें लगा। पर एकबात निश्चित रूप से तय है, की ब्राह्मण मूलरूप से "क्षत्रिय" थे।

जैसे जैसे मानव सभ्यता का विकास होता गया, वैसे वैसे मानव समाज में ओझा, पुजारी एवम पुरोहित आदि पद प्रचलित हुवे। जिनका काम भिन्न भिन्न अवसरों पर भिन्न भिन्न सरल या जटिल पुजा एवम साधना की विधियों का संचालन करना एवम अपने परिवार,समुह,गांव के लोगों को मार्गदर्शन देना था।
धीरे धीरे बदलाव आए। इन विशेष पदों के लिए निर्धारित योग्यता का होना जरूरी समझा जानें लगा। उनके लिए विशेष शिक्षा दीक्षा का विधान था। ऋग्वेद काल तक समाज के किसी भी वर्ग एवम स्तर का व्यक्ति अपनी विद्वता एवम अनुभव के आधार पर " ब्रह्मणतव" धारण कर पुजारी, पुरोहित, आचार्य, ऋषि बन सकता था। पर उन्हें
धन संपत्ति धारण करने का विधान नही था। वह जीवन पर्यंत ज्ञान की उपासना एवम समाज कल्याण के लिए प्रयत्नरत रहते थे।
समाज को ही ऊसके लिए घर, स्त्री और जीवनयापन के लिए जरूरी साधन सामग्री की व्यवथा करनी होती थी। उसकी संताने अपने कर्म के हिसाब से तत्कालिन वर्ग या स्तर में सामिल हो सकती थी। इस समाज में वंश परम्परागत वर्ण, जाति या वर्ग का अस्तित्व अभी प्रचलन में नही था।
ईशा पूर्व २९०० के आसपास सप्तसिंधु संस्कृति एवम उत्तर भारत के क्षेत्रों की बस्तियों को प्रलय ने नेस्त नाबुद कर दिया। यहां बसने वाले रुद्र, इंद्र के उपासक एवम नागवंशी मिश्र जातियां सब से ज्यादा प्रभावित हुई। सिंधु संस्कृति के हड़प्पा तथा मोहेंजो दरों, कालीबंगा जैसे व्यापारिक नगर भूतल में विलीन हो गए। मेशोपोटेमिया के कुशल नाविकों ने गंगा किनारे बसे लोहे के हथियार धारण करने वाले नागवंशी मिश्र जाति के लोगों को बचाया । प्रलय में बचे मवेशी, अन्न, फल, सब्जी के बीज के साथ उन्हें आज के अजरबैजान क्षेत्र में पहुंचाया। लोहे के हथियार धारण करने वाले भारत के मूल निवासीयो को स्थानिक लोगों ने " आर्यन" नाम दिया। यही बाद में विष्व इतिहास कोश में " आर्य" जाति के नाम से प्रसिद्ध हुए।
क्रमश:

आचार्य अशोक "दीनबंधु"
दि.१३-०१-२०२४ ( १९.२९)

25/11/2023
अपनी भिन्न मान्यताओं और सोच के बावजूद अपने पितरों की मुक्ति हेतु बिहार  जाकर पवित्र गया में अपने पितृ पक्ष, मातृपक्ष, सग...
10/11/2023

अपनी भिन्न मान्यताओं और सोच के बावजूद अपने पितरों की मुक्ति हेतु बिहार जाकर पवित्र गया में अपने पितृ पक्ष, मातृपक्ष, सगे संबंधियों, मृतक मित्र,प्रिय प्राणी, पशु- पक्षीयों की कवचिंत भटकती आत्माओं की मुक्ति के लिए विधि विधान से पिंड दान/पूजा में हिस्सा लिया।

आपको एवम आपके परिवार को समृद्धि के पर्व धन तेरस की हार्दिक शुभकामनाएं।🙏
10/11/2023

आपको एवम आपके परिवार को समृद्धि के पर्व धन तेरस की हार्दिक शुभकामनाएं।🙏

23/10/2023
सनातन धर्म*********अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च: | नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन: ||अर्थात- हे अर्जुन! ...
22/10/2023

सनातन धर्म
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अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य
एव च: | नित्य: सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातन: ||

अर्थात- हे अर्जुन! जो छेदा नहीं जाता। जलाया नहीं जाता। जो सूखता नहीं। जो गीला नहीं होता। जो स्थान नहीं बदलता। ऐसे रहस्यमय व सात्विक गुण तो केवल परमात्मा में ही होते हैं। जो सत्ता इन दैवीय गुणों से परिपूर्ण हो। वही सनातन कहलाने के योग्य है। इस श्लोक के माध्यम से भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो न तो कभी नया रहा। न ही कभी पुराना होगा। न ही इसकी शुरुआत है। न ही इसका अंत है। अर्थात ईश्वर को ही सनातन कहा गया है।

अर्थ विस्तार: जो आदि है, अनादि है। जिसका प्रारंभ अज्ञात है, जिसका अंत भी असंभव है , वो सनातन है। जो हमेशा विद्यमान था, हमेशा रहेगा वो सनातन है।
यानी सर्व शक्तिमान ईश्वर ही सनातन है। उसी ने पांच तत्वों की सहायता से इस ब्रमाण्ड की रचना की, फिर उसी ने इस सृष्टि की रचना भी की।
इस जगत की रचना के साथ जगत में सनातन धर्म ही व्याप्त था। पृथ्वी पर जीव जगत के आविर्भाव के साथ सनातन धर्म की भी उत्पत्ति मानी जा सकती है। ईश्वर की कृपा से सभी को ज्ञात है कि, पंच तत्वों मतलब १) पृथ्वि २) जल ३) वायु ४) आकाश और ५) अग्नि हैं। यानी शुरू से सभी जीवो का जीवन इन पांच तत्वों की गति पर अवलम्बित था।

१२००० साल पहले जब आख़िरी हिमयुग समाप्त हुआ और पृथ्वी का वातावरण मनुष्य सहित जीवों के रहने योग्य बना तब मनुष्य इन कुदरती शक्तियों से अनुकूलन करने का प्रयास कर रहा था। तभी उसे ज्ञात हुआ की यह शक्तिया ही मनुष्य सहित सभी जीवो के अस्तित्व का कारण है। इनसे टकराने के बजाय इनकी उपासना करके, इनसे अनुकूलन करके जीवन को अधिक सुरक्षित और दीर्घजीवी बनाया जा सकता है।
तत्कालीन सभ्यताओं के विद्वान ऋषि,मुनि यानी आज के वैज्ञानिक, विचारकों ने इस तथ्य को समझा अपने लोगों को इस ज्ञान से अवगत कराया एवम जब लिपि की खोज हुई तब उसे लिपिबद्ध भी किया।

दुःख की बात है,की आज सनातन धर्म कही खो गया है, आजके धर्मों में उसकी मात्र छाया ही देखने को मिलती है । धन, संपत्ति एवम सत्ता के मोह में मनुष्यने नाना प्रकार के धर्मों की स्थापना की है। जिन्हे सनातन धर्म से कोई लेना देना नहीं है। इस समय परम आवश्यक है,की सभी इस तथ्य को समझे की ईश्वर की अजोड़ कृति मनुष्यों में से जरुरतमंद मनुष्यों एवम अन्य अबोल जीवों की सेवा एवम सुरक्षा यानी " इन्सानियत" ही सबसे बड़ा धर्म है।

धन्यवाद।

आचार्य अशोक "दीनबंधु"
काल:०६:५६ /२२/०६/२३

22/10/2023

अफगानिस्तान कभी अखंड भारत का हिस्सा होने के प्रमाण।

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