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26/10/2017

*आम धारणा है कि बीमार होने पर ज्यूस पीना चाहिए।
लेकिन किस बीमारी में कौनसा ज्यूस लाभदायक होगा क्या आप जानते है,शायद नहीं*

कोई बात नहीं मैं हूँ न😊😊😊
आईये जानिए......
*विभन्न बीमारियों में*
*लाभदायक ज्यूस*
1. *भूख लगाने के हेतुः-*
प्रातःकाल खाली पेट नींबू का पानी पियें। खाने से पहले अदरक को कद्दूकस करके सैंधा नमक के साथ लें।
2. *रक्तशुद्धि हेतु :-*
नींबू, गाजर, गोभी, चुकन्दर, पालक, सेव, तुलसी, नीम और बेल के पत्तों का रस प्रयोग करें।
3. *दमाः-*
लहसुन, अदरक, तुलसी, चुकन्दर, गोभी, गाजर, मीठी द्राक्ष का रस, भाजी का सूप अथवा मूँग का सूप और बकरी का शुद्ध दूध लाभदायक है। घी, तेल, मक्खन वर्जित है।
4 *उच्च रक्तचापः-*
गाजर, अंगूर, मोसम्मी और ज्वारों का रस। मानसिक तथा शारीरिक आराम आवश्यक है।
5. *निम्न रक्तचाप*
मीठे फलों का रस लें, किन्तु खट्टे फलों का उपयोग ना करें। अंगूर और मोसम्मी का रस अथवा दूध भी लाभदायक है।
6. *पीलिया*
अंगूर, सेव, रसभरी, मोसम्मी, अंगूर की अनुपलब्धि पर लाल मुनक्के तथा किसमिस का पानी। गन्ने को चूसकर उसका रस पियें। केले में 1.5 ग्राम चूना लगाकर कुछ समय रखकर फिर खायें।
7. *मुहाँसों के दाग*
गाजर, तरबूज, प्याज, तुलसी, घृतकुमारी और पालक का रस।
8. *संधिवात*
लहसुन, अदरक, गाजर, पालक, ककड़ी, गोभी, हरा धनिया, नारियल का पानी तथा सेव और गेहूँ के ज्वारे।
9. *एसीडिटी*
गाजर, पालक, ककड़ी, तुलसी का रस, फलों का रस अधिक लें। अँगूर मौसम्मी तथा दूध भी लाभदायक है।
10. *कैंसर*
गेहूँ के ज्वारे, गाजर और अंगूर का रस।
11. *सुन्दर बनने के लिए*
सुबह-दोपहर नारियल का पानी या बबूल का रस लें। नारियल के पानी से चेहरा साफ करें।
12. *फोड़े-फुन्सियाँ*
गाजर, पालक, ककड़ी, गोभी और नारियल का रस।
13. *कोलाइटिस*
गाजर, पालक और अन्नानास का रस। 70 प्रतिशत गाजर के रस के साथ अन्य रस समप्राण। चुकन्दर, नारियल, ककड़ी, गोभी के रस का मिश्रण भी उपयोगी है।
14. *अल्सर*
अंगूर, गाजर, गोभी का रस, केवल दुग्धाहार पर रहना आवश्यक है, खूब गर्म दूध में 2 चम्मच देशी गाय का घी डालकर मिलाकर करके पियें।
15. *सर्दी-कफ*
मूली, अदरक, लहसुन, तुलसी, गाजर का रस, मूँग अथवा भाजी का सूप।
16. *ब्रोन्काइटिस*
पपीता, गाजर, अदरक, तुलसी, अनन्नास का रस, मूँग का सूप। स्टार्चवाली खुराक वर्जित।
17. *दाँत निकलते बच्चे के लिए*
अन्नानास का रस थोड़ा नींबू डालकर रोज चार औंस (100-125 ग्राम)।
18. *रक्तवृद्धि के लिए*
मौसम्मी, अंगूर, पालक, टमाटर, चुकन्दर, सेव, रसभरी का रस रात को। रात को भिगोया हुआ खजूर का पानी सुबह में। इलायची के साथ केले भी उपयोगी हैं।
19. *स्त्रियों को मासिक धर्म कष्ट*
अंगूर, अन्नानास तथा रसभरी का रस।
20. *आँखों के तेज के लिए*
गाजर का रस तथा हरे धनिया का रस श्रेष्ठ है।
21. *अनिद्रा*
अंगूर और सेव का रस। पीपरामूल शहद के साथ।
22. *वजन बढ़ाने के लिए*
पालक, गाजर, चुकन्दर, नारियल और गोभी के रस का मिश्रण, दूध, दही, सूखा मेवा, अंगूर और सेवों का रस।
23. *डायबिटीज*
गोभी, गाजर, नारियल, करेला और पालक का रस।
24. *पथरी*
पत्तों वाली सब्जी, पालक, टमाटर ना लें। ककड़ी का रस श्रेष्ठ है। सेव अथवा गाजर या कद्दू का रस भी सहायक है। जौ एवं सहजने का सूप भी लाभदायक है।
25. *सिरदर्द*
ककड़ी, चुकन्दर, गाजर, गोभी और नारियल के रस का मिश्रण।
26. *किडनी का दर्द*
गाजर, पालक, ककड़ी, अदरक और नारियल का रस।
27. *फ्लू*
अदरक, तुलसी, गाजर का रस।
28 *वजन घटाने के लिए*
अन्नानास, गोभी, तरबूज,लौकी और नींबू का रस।
29. *पायरिया*
गेहूँ के ज्वारे, गाजर, नारियल, ककड़ी, पालक और सोया की भाजी का रस। कच्चा अधिक खायें।
30. *बवासीर*
मूली का रस, अदरक का रस घी डालकर, नागर मोथा, नारियल पानी।

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13/09/2017

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10/08/2017

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05/08/2017

ईन बीमारीयों की वज़ह से होती है कब्‍ज ।

1बीमारियों के कारण कब्‍ज

कब्‍ज पेट से संबंधित ऐसी समस्‍या है जिसके लिए खराब खान-पान और लाइफस्‍टाइल को जिम्‍मेदार माना जाता है। इसके अलावा दिन भर एक ही जगह पर बैठकर घंटों काम करना और एक्सरसाइज न करना भी कब्ज का कारण हो सकता है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि आपकी बीमारी भी आपको कब्‍ज का शिकार बना सकती हैं। तो आइए जानें कि ऐसी कौन सी बीमारियां आपको कब्‍ज का शिकार बनाती है ताकी समय रहते उसका इलाज करवाकर आप कब्‍ज से मुक्ति पा सकें।

2मानसिक रोग

मानसिक रोग जैसे पार्किन्सन डिजीज आदि के चलते भी कब्‍ज की शिकायत अधिक रहती है। मानसिक तनाव, चिंता, हड़बड़ी, दु:ख इत्यादि अनेक कारणों से आंतों की चाल में बदलाव होने लगता है जिससे दस्त, अपच, पेट दर्द जैसी अनेक समस्‍याओं के साथ कब्‍ज की शिकायत भी अधिक रहती है। जी हां मानसिक तनाव से जुड़ी समस्याओं का सीधा असर आपके ब्लैडर पर पड़ता है साथ ही इससे वे नसें भी प्रभावित होती हैं जो आपकी आंतों से जुड़ी हुई होती हैं। इसलिए इन समस्याओं के कारण कब्ज की समस्या होने लगती है।

3हाइपोथायरायडिज्म

थायराइड ग्रंथि के ठीक से काम ना करने की वजह से कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं, कब्ज भी उन्ही में से एक है। हाइपोथायरायडिज्म की वजह से शरीर का पाचन तंत्र प्रभावित होता है। ऐसे व्यक्ति को खाना नहीं पचता है जिससे उसे कब्ज की समस्या होने लगती है।

4डिप्रेशन

हालांकि यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि डिप्रेशन से ग्रस्‍त लोगों को भी कब्‍ज की समस्‍या होती है। इसलिए डिप्रेशन से बचने की कोशिश करें। इसके लिए आप योग, एक्‍सरसाइज और मेडिटेशन का सहारा ले सकते हैं।

5इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम एक ऐसा विकार होता है, जिसमें बड़ी आंत प्रभावित होती है। इस समस्या से पीड़ित होने पर भी कब्ज की समस्या हो जाती है और कुछ मामलों में मरीज की स्थिति बहुत बिगड़ जाती है। लगातार कई दिनों तक कब्ज की समस्या रहना और डायरिया इस सिंड्रोम के मुख्य लक्षण हैं।

6दवाइयों के कारण कब्‍ज

कई दवाइयों के कारण भी आपाको कब्‍ज की समस्‍या हो सकती है। पेनकिलर, एलर्जी की दवाइयां या फिर आयरन कैप्सूल ले रहे हैं तो इनके सेवन से कब्ज़ होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। ऐसे में डॉक्टर से अपनी परेशानी बताएं और सही इलाज करवाएं।

04/08/2017

कई गंभीर बिमारियों से बचाव के साथ ही वजन घटाने में काफी सहायक है वॉटर फास्टिग

इसे करने से रोज करीब एक पौंड वजन घटता है. (फाइल फोटो)

वजन कम करने और शरीर से प्रदूषित तत्वों को बाहर निकालने के लिए फास्टिंग एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है. वॉटर फास्टिंग के दौरान कुछ लोग खाना छोड़ सिर्फ पानी का ही उपयोग करते हैं. यह अपनी जरुरत के हिसाब से अलग-अलग अवधी के लिए हो सकता है. जैसे शुरुआत में एक दिन फिर धीरे-धीरे इसकी अवधि बढ़ाई भी जा सकती है.

नई दिल्ली: वजन कम करने और शरीर से प्रदूषित तत्वों को बाहर निकालने के लिए फास्टिंग एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है. वॉटर फास्टिंग के दौरान कुछ लोग खाना छोड़ सिर्फ पानी का ही उपयोग करते हैं. यह अपनी जरुरत के हिसाब से अलग-अलग अवधी के लिए हो सकता है. जैसे शुरुआत में एक दिन फिर धीरे-धीरे इसकी अवधि बढ़ाई भी जा सकती है.

खाना और अन्य पेय पदार्थ प्रतिबंधित

वॉटर फास्टिंग के दौरान सिर्फ पानी पिया जाता है. इस दौरान किसी भी तरह का खाना और अन्य पेय पदार्थ प्रतिबंधित होते हैं. इस फास्टिंग के दौरान शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं. वजन कम होना, शरीर से प्रदूषित तत्वों का बाहर निकलना इनमें से मुख्य है. इसके अलावा कई तरह की बीमारियों और चोट पर भी इसका प्रभाव पड़ता है.

मानसिक तैयारी जरुरी

वॉटर फास्टिंग करने के मानसिक रूप से तैयार होना जरूरी है. शुरूआती दिनों में यह थोड़ा मुश्किल होता है, लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ यह आदत में आ जाता है. इसके लिए जरूरी है कि आप दो से तीन दिन पहले से ही अपने आहार और अपनी दिनचर्या में अनुशासन के साथ जरुरी बदलाव लाएं.

बिमारियों से रहेंगे दूर

शुरूआत में इसके लिए कम से कम दो लीटर पानी रोज पिएं. इससे आपके शरीर को पानी में मौजूद पौष्टिक तत्व ही मिलेंगे क्योंकि वॉटर फास्टिंग के दौरान पानी के अलावा कुछ और नहीं ले सकते. इसमें मौजूद तत्व आपके शरीर से गन्दगी और कीटाणु बाहर निकालने में सहायक होते हैं.

वजन घटाने में लाभकारी

अगर आप चाहें तो इसमें नींबू के टुकड़े भी डाल सकते हैं. वॉटर फास्टिंग वजन घटाने में सबसे लाभकारी होता है. जानकारी के मुताबिक इसे करने से रोज करीब एक पौंड वजन घटता है और यदि आप वजन घटाने के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं तो इसे विशेषज्ञ की सलाह के मुताबिक करें.

04/08/2017

रोजाना शराब पीने से हो सकता है स्किन कैंसर

अंतिम अपडेट: बुधवार अगस्त 2, 2017 02:12 PM IST

शराब और कैंसर का संबंध सटीक तौर पर परिभाषित नहीं है.

'ब्रिटिश जर्नल ऑफ डर्मेटोलॉजी' में किया गया है शोध का प्रकाशन

न्यूयॉर्क: ज्यादा शराब पीने वाले व्यक्तियों में नॉन मेलोनोमा त्वचा कैंसर के होने का खतरा बढ़ जाता है. एक शोध में पाया गया है कि रोजाना दस ग्राम ज्यादा शराब लेने से बेसल सेल कार्सिनोमा (बीसीसी) का खतरा 7 फीसदी और स्किन स्क्वमस सेल कार्सिनोमा (सीएससीसी) का खतरा 11 फीसदी बढ़ जाता है. इस शोध का प्रकाशन 'ब्रिटिश जर्नल ऑफ डर्मेटोलॉजी' में किया गया है. ये नॉन-मेलनोमा त्वचा कैंसर के दो सामान्य प्रकार हैं.

शोध में कहा गया है कि पराबैंगनी विकिरण सीधे तौर पर बीसीसी और सीएससीसी से जुड़ा है, जबकि शराब और कैंसर का संबंध सटीक तौर पर परिभाषित नहीं है. शोध के लिए दल ने मेटा-विश्लेषण किया और 13 नियंत्रित मामलों/समूहों के निष्कर्षो की समीक्षा की.

हॉर्वर्ड ची.एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एच. येन ने कहा, "मेटा विश्लेषण से शराब के बीसीसी और सीएससीसी से जुड़े होने के सकारात्मक साक्ष्य मिले हैं. बीसीसी व सीएससीसी के जोखिम शराब की खुराक पर निर्भर करते हैं."



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जिम जाने से पहले अपने बैग में ये चीजें रखना बिलकुल न भूलें

अंतिम अपडेट: बुधवार अगस्त 2, 2017 10:20 AM IST

इन एक्सेसरीज की मदद से आपको वर्कआउट करने में आसानी होगी.

नई दिल्ली: अगर आप अपने वर्कआउट को किसी परेशानी के बिना पूरा करना चाहते हैं, तो अपने जिम बैग में कुछ एक्सेसरीज जरूर रखें, ताकि अपने फिटनेस लक्ष्य पर टिके रहे. ऐसा विशेषज्ञों का कहना है. फिटपास के सह संस्थापक और रूपोसो के फैशन क्यूरेटर आरुषि वर्मा का कहना है कि अपने जिम बैग में निम्नलिखित एक्सेसरीज को जरूर रखें.

फोम रोलर्स एक किफायती उपकरण है, जो आपके दैनिक वर्कआउट सत्र में काफी मदद करता है. यह सरल और प्रभावी है. यह अलग-अलग प्रकार में उपलब्ध है, जिसमें ग्रिड, ब्लैक फोम रोलर और फर्म रंबल रोलर शामिल है. बाजार में आजकल फिटनेस आर्मबैंड की भारी मांग है, क्योंकि वे आपके स्मार्टफोन को सुरक्षित रखते हैं. जब आप बैंड की खरीदारी करें तो यह सुनिश्चित कर लें कि यह आपके स्मार्टफोन से संगत होगा. यह विभिन्न रंगों, भार और पैटर्न में उपलब्ध है. इसमें से जल प्रतिरोधी और अच्छी स्ट्रेच क्षमता वाले बैंड का चयन करें. वेट लिफ्टिंग ग्लब्स को ना भूलें. अगर आप नियमित रूप से वेट लिफ्टिंग वर्कआउट करते हैं, तो आप जानते होंगे कि आपके ग्रिप की सुरक्षा के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है. इसमें आप अच्छी पकड़ वाले ग्लब्स का चयन करें, जो नमी को अच्छी तरह सोंख ले और वजन उठाने के लिए आपके उंगलियों पर अच्छी तरह पकड़ कायम कर ले. कुछ हल्के और अच्छे फिटिंग की ब्रीथेबल कपड़ों का चयन करें, खासतौर पर तब आप कार्यालय से लौटने के बाद जिम का रुख कर रहे हों. अपने वर्कआउट का लेखाजोखा रखना भी काफी जरूरी है, ताकि आप अपनी प्रगति पर नजर रख सकें. अपनी डायरी में सेट, रैप, वेट और आराम की अवधि आदि सभी प्रमुख रिकार्ड रखें. अगर आप रियल टाइम में अपने हर कदम की प्रगति पर नजर रखना चाहते हैं तो एक बढ़िया हार्ट रेट मॉनिटर जरूर अपने जिम बैग में रखें. आप इसका इस्तेमाल कार्डियो और लिफ्टिंग सेशन में कर सकते हैं, ताकि अपने दिल की धड़कन पर नजर रख सकें और वांछित क्षेत्र में रह सके

04/08/2017

THURSDAY, July 27, 2017 (HealthDay News) -- From 1991 to 2005, there was an increase in the duration of assisted ventilation among survivors of extremely preterm birth, but no improvement in lung function in childhood, according to a study published in the July 26 issue of the New England Journal of Medicine.

Lex W. Doyle, M.D., from the University of Melbourne in Australia, and colleagues conducted longitudinal follow-up of survivors of extremely preterm birth who were born in 1991 and 1992 (225 infants), 1997 (151 infants), and 2005 (170 infants). Perinatal data were collected prospectively and expiratory airflow was measured at 8 years of age.

The researchers observed an increase in the duration of assisted ventilation over time, with a large increase in nasal continuous positive airway pressure duration. Although the use of less invasive ventilation increased over time, there were increases in the duration of oxygen therapy and rate of oxygen dependence at 36 weeks, and airflows at age 8 years were worse in 2005 than earlier periods. For the ratio of forced expiratory volume in one second to forced vital capacity, the mean difference in the z scores was −0.75 and −0.53 for 2005 versus 1991 to 1992 and 1997, respectively.

"Despite substantial increases in the use of less invasive ventilation after birth, there was no significant decline in oxygen dependence at 36 weeks and no significant improvement in lung function in childhood over time," the authors write.

06/12/2016

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Happy Dhasehra to all my customer. God bless u helthy life... Jay shree ram

05/09/2015

Happy Janamastmi to all of u. Jay shree krishna.

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Ahmedabad
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