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When a human being takes birth he has Karma attached to his soul which accrues in this life in the form of events and circumstances in all the twelve areas of life. Vedic Astrology interprets that Karma and times the events accurately as to when an individual will receive what he has sown. A Vedic Birthchart is a Karmic Blueprint of your life and destiny.

21/09/2024

।।पितृपक्ष में कर्तव्य।।

अपि धन्यः कुले जायादस्माकं मतिमान्नरः ।
अकुर्वन्वित्तशाठ्यं यः पिण्डान्नो निर्वपिष्यति ।।
रत्नं वस्त्रं महायानं सर्वभोगादिकं वसु ।
विभवे सति विप्रेभ्यो योsस्मानुद्दिश्य दास्यति ।।
पितृगण कहते हैं --- क्या, हमारे कुल में कोई ऐसा मतिमान् पुरुष होगा जो लालच त्याग कर हमारे उद्देश्य से पिण्डदान करेगा तथा ब्राह्मणों को रत्न, वस्त्र, यान और सम्पूर्ण भोग-सामग्री देगा ।

अन्नेन वा यथाशक्त्या कालेsस्मिन्भक्तिनम्रधीः ।
भोजयिष्यति विप्राग्र्यांस्तन्मात्रविभवो नरः ।।
अथवा श्राद्धकाल में भक्ति-विनम्र चित्त से ब्राह्मणों को यथाशक्ति अन्न ही भोजन करायेगा।

असमर्थोsन्नदानस्य धान्यमामं स्वशक्तितः ।
प्रदास्यति द्विजाग्र्येभ्यः स्वल्पाल्पां वापि दक्षिणाम् ।।
तत्राप्यसामर्थ्ययुतः कराग्राग्रस्थितांस्तिलान ।
प्रणम्य द्विजमुख्याय कस्मैचिद्भूप दास्यति ।।
तिलैस्सप्ताष्टभिर्वापि समवेतं जलाञ्जलिम् ।
भक्तिनम्रस्समुद्दिश्य भुव्यस्माकं प्रदास्यति ।।
यतः कुतश्चित्सम्प्राप्य गोभ्यो वापि गवाह्निकम् ।
अभावे प्रीणयन्नस्माञ्छ्रद्धायुक्तः प्रदास्यति ।।
अन्नदान में असमर्थ होने पर थोड़ा सा कच्चा धान्य और दक्षिणा ही देगा ।
यह भी न होने पर एक मुट्ठी तिल ब्राह्मण को प्रणाम कर देगा ।
इतनी सामर्थ्य न होने पर केवल सात-आठ तिलों से युक्त जलाञ्जलि ही भूमि पर देगा ।
इसका भी अभाव होने पर कहीं से एक दिन का चारा लाकर प्रीति और श्रद्धा पूर्वक हमारे उद्देश्य से गाय को खिलायेगा ।।

सर्वाभावे वनं गत्वा कक्षमूलप्रदर्शकः ।
सूर्यादिलोकपालानामिदमुच्चैर्वदिष्यति ।।
न मेsस्ति वित्तं न धनं च नान्य-
च्छ्राद्धोपयोग्यं स्वपितृ्ऋन्नतोsस्मि ।
तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ
कृतौ भुजौ वर्त्मनि मारुतस्य ।।
कुछ न हो और शरीर भी असमर्थ हो तब वन में जाकर हवा में दोनों हाथ उठाकर सूर्यादि लोकपालों के समक्ष उच्चवाणी से कहेगा --
"मेरे पास श्राद्ध के योग्य न धन है न धान्य है और न शरीर स्वस्थ है, अत: मैं अपने पितरों के समक्ष हाथ वायुमार्ग में जोड़कर श्रद्धा पूर्वक प्रणाम निवेदन करता हूँ।
इसी से मेरे पित्रगण तृप्त हों ।।"

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