Geeta Hospital Prayag Raj

Geeta Hospital Prayag Raj Today Medical services have become victim of Market force, Corporatocracy and Greed. Honest opinion

17/03/2023
14/02/2023

Non surgical management of pain due to sciatica, disc prolapse, brachial neuralgia, frozen shoulder, psuedecs dystrophy, osteoarthritis of Knee joint.

A new dimension of treatment for so many painful conditions, which are either difficult to treat or need surgery.
Pain starts vanishing within half and hour of treatment.
❤️❤️

12/01/2023

Celebrating my 2nd year on Facebook. Thank you for your continuing support. I could never have made it without you. 🙏🤗🎉

28/12/2022

सायटिका डिस्क प्रोलैप्स, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, brachial न्यूरेल्जिया, फ्रोजेन शोल्डर आदि के इलाज का एक नवीतम उपचार।
आधे घंटे के अंदर अस्सी प्रतिशत आराम।
Few magical drugs in perfect combination, used as injections in physiological pain portals.
Miracle happens.

24/12/2022

संता कोई संत था भी क्या?

24/12/2022

साइटिका और सर्वाइकल डिस्क के कारण हांथ में होने वाले दर्द में सीएसबी एकदम जादू करते हैं। मात्र कुछ इंजेक्शन और आधे घंटे में जादू।

यहां दो मरीजों के नंबर लिख रहा हूं।।
1= विनय सिंह
2= प्रवीण
विनय को दुबारा disc हुई उसी लेवल पर जिसका वह तीन साल पहले ऑपरेशन करवा चुका था। और पिछले छह माह से वह दुबारा ऑपरेशन के लिए पैसे इकट्ठा कर रहा था।
प्रवीण मेरा बहुत पुराना मरीज है। जिसे गर्दन और हांथ में दर्द था।

यहां फेसबुक पर उनका नंबर देना उचित न होगा। परंतु जिसको भी यह पता करना हो कि यह इलाज कितना प्रभावशाली हैं। उनको इनबॉक्स में नंबर दिया जा सकता है।

एक बीमारी होती है गठिया। रूमेटॉयड अर्थराइटिस और इसकी अनेक बहनें। हम लोग जब पढ़ रहे थे, तब भी यह  बीमारियां थीं। परंतु इन...
16/11/2022

एक बीमारी होती है गठिया।
रूमेटॉयड अर्थराइटिस और इसकी अनेक बहनें।

हम लोग जब पढ़ रहे थे, तब भी यह बीमारियां थीं। परंतु इनके बारे में बहुत सीमित जानकारी उपलब्ध थीं। और दवाएं भी नाम मात्र की थीं।

पिछले दो तीन दशकों में इन बीमारियों के बारे में अनेक सूचनाएं उपलब्ध हुई हैं, जिन्होंने इन बीमारियों के बारे में समझ को यू टर्न दे दिया है।

वैसे तो यह बीमारी फिजिशियन और रिएटोलॉजिस्ट के क्षेत्र में आती है। परंतु फिजिशियन डायबिटीज और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से ही फुर्सत नहीं मिलती, और rhematologist पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए इस बीमारी के रोगी, हम जैसे हड्डी के डॉक्टरों के हिल्ले ही लगते हैं।
इसलिए इस विषय में अपडेट होना आवश्यक हो गया है।

  :कोरॉना (Covid ) ने पिछले दो वर्षों में पूरे विश्व में मौत का जो खेल खेला उससे हम सब परिचित हैं। हम सबने न जाने कितने ...
07/11/2022

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कोरॉना (Covid ) ने पिछले दो वर्षों में पूरे विश्व में मौत का जो खेल खेला उससे हम सब परिचित हैं। हम सबने न जाने कितने संबंधियों और परिचितों को खोया है। परंतु जो लोग कोरोना के शिकार तो हुए परंतु उचित इलाज और देखभाल से बच गए, उनको अनेक नई समस्यायों का सामना करना पड़ रहा है।

उनमें से एक समस्या जो शरीर के अस्थियों और जोड़ों को प्रभावित कर रही है वह है Avascual Necrosis of femoral head (AVN) . जिसका अर्थ है कूल्हे की हड्डी में रक्त प्रवाह समाप्त होने के कारण उसमें होने वाली सड़न या अस्थि कोशिकाओं का मृत होना। कूल्हे के जोड़ में दो अस्थियां होती हैं : एक सॉकेट जिसे acetabulum, दूसरा Femoral head अर्थात कूल्हे का गोला। आपने सुना होगा कि कूल्हे का फ्रैक्चर होने पर ऑपरेशन किया जाता है। कम उम्र में फ्रेक्चर को जोड़ने का ऑपरेशन किया जाता है, और उम्र यदि अधिक है तो कूल्हा बदला जाता है, जिसे हिप रिप्लेसमेंट कहते हैं।

यह बीमारी पहले भी होती थी, विशेषकर कूल्हे का फ्रैक्चर या जोड़ के खिसकने पर (dislocation)। इसके अतिरिक्त कुछ दवाओं के प्रयोग यथा स्टीरॉयड और कैंसर की दवाओं के उपयोग के कारण, रक्त में कुछ विशेष बदलाव होने यथा सिकल सेल डिजीज, शराब के सेवन के कारण, और अन्य कारणों से भी यह बीमारी होती है।

बच्चों में भी यह बीमारी होती है जिसे Perthes disease कहते हैं, जिसके कारण कूल्हे के गोले ( femoral head) का आकार बदल जाता है।

एक और कारण से भी यह बीमारी होती है जिसे idiopathic कहते हैं। अर्थात अज्ञात कारणों से।

परंतु कोरोना महामारी के उपरांत इस बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या में अचानक वृद्धि देखी जा रही है। कारण बहुत स्पष्ट नहीं हैं, परंतु अनुमान लगाया जा रहा है कि बीमारी के इलाज में जीवन रक्षक स्टीरॉयड के प्रयोग के कारण इस बीमारी में बढ़ोत्तरी हुई है।

इस बीमारी में कूल्हे के गोले का रक्त संचार अवरुद्ध हो जाता है जिसके कारण गोले की अस्थि कोशिकाएं मृत हो जाती हैं जिसे necrosis कहते हैं। शरीर इन मृत कोशिकाओं को नवीन और जीवित कोशिकाओं से बदलने का प्रयास करता है। परंतु यह कार्य अत्यंत दीर्घकालिक होता है। ऐसे में शरीर के वजन और बीमारी के स्वभाव के कारण कूल्हे के गोले का आकार बदल जाता है, जो जीवन के उत्तरार्ध में कूल्हे की गठिया ( Osteoarthritis of hip) के रूप में विकसित होता है।

यदि यह बीमारी वयस्क व्यक्ति में होती है तो उसका भी यदि समय से निदान और उपचार न हो तो वह भी कूल्हे की गठिया में परिवर्तित हो जाता है। जिसमें अंततः कूल्हा बदलना ( Hip Replacement : THR) ही पड़ता है।

परंतु यदि इसका निदान उचित समय में हो जाय तो कूल्हा बचाने वाला ऑपरेशन करके ओरिजिनल कूल्हे को बचाया जा सकता है। आजकल डायग्नोसिस के उत्तम साधन हैं, जिसके माध्यम से इसे शुरुवाती अवस्था में पकड़ा जा सकता है और ओरिजिनल कूल्हा बचाया जा सकता है।

इस के बीमारी में कूल्हे में दर्द होता है जो जांघ या पृष्ठभाग ( buttock) में फैलता है विशेष कर जब भी रोगी सक्रिय रहता है। आराम करने पर दर्द कम या समाप्त हो जाता है। परंतु एडवांस स्टेज में आराम के समय भी कूल्हे में दर्द हो सकता है।

इसलिए इस बीमारी का समय पर निदान करना जीवन दायक होता है। क्योंकि प्रायः यह बीमारी वयस्क उम्र में होती है। वयस्क उम्र में यदि इस बीमारी का समय से निदान नहीं हो पाता है तो अंततः कूल्हा बदलना पड़ता है। नकली कूल्हे की भी अपनी एक उम्र होती है। इसलिए यदि कम उम्र में कूल्हा बदला जाएगा तो उसको दुबारा बदलने की आवश्यकता पड़ेगी। इसलिए आवश्यक यह है कि सावधानी बरती जाए, और यदि ऐसे कोई लक्षण दिखें तो उचित डॉक्टर के पास तुरंत पहुंचे।
धन्यवाद।
नोट: यह एक जागरूकता अभियान हेतु लिखा गया लेख है।
नीचे कुछ चित्र हैं जो संभवतः आपको इस बीमारी के बारे में मार्गदर्शित करेंगे।

Dr Tribhuwan Singh
Geeta Hospital Prayag Raj

Phone number for consultation : 9919776651

 #विटामिन_सी : वोकल अबाउट लोकल इस समय आंवले का सीजन है। प्रतिदिन एक या दो आंवला आपको अवश्य खाना चाहिए। आंवला में विटामिन...
02/11/2022

#विटामिन_सी : वोकल अबाउट लोकल

इस समय आंवले का सीजन है। प्रतिदिन एक या दो आंवला आपको अवश्य खाना चाहिए। आंवला में विटामिन C की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन A, विटामिन E तथा कैल्शियम और आयरन भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। विटामिन ए आंखों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयोगी है, इसके अतिरिक्त यह बढ़ती उम्र के साथ मैक्यूलर डिजनरेशन जैसी घातक बीमारी से भी बचाती है। यह बीमारी आंख की रोशनी को बाधित करती है।
विटामिन सी एक अत्यंत महत्वपूर्ण विटामिन है जिसका उपयोग शरीर के अनेक प्रक्रियाओं में होता है, विशेष कर collegen निर्माण में। Collagen की आवश्यकता शरीर में निरंतर हो रही, कोशिकाओं और ऊतकों ( Cells and Tissues) के टूटफूट के पुनर्निर्माण के लिए पड़ती है। इसके अतिरिक्त यह एंटी ऑक्सीडेंट है। जो स्ट्रेस डिसऑर्डर से लड़ने में सहायक होता है। मानसिक और शारीरिक तनाव दोनों।
विटामिन सी की कमी से त्वचा की चमक खतम हो सकती है, एक्ने जैसे बीमारी। इसके अतिरिक्त रक्त नलियों से रक्त लीक ( Bruising), अस्थियों की छिद्रता ( ओस्टियोपोरोसिस), और उसके कारण फ्रैक्चर, एनीमिया ( रक्त की कमी) आदि आदि बीमारियो का जन्म इसकी कमी के कारण होता है।
इसके अतिरिक्त इसकी कमी से बालों की चमक और उसके स्वरूप में बदलाव ( फटे हुए बाल ), नाखूनों के शक्ल में चम्मच जैसा बदलाव, घावों के ठीक होने में देरी, जोड़ों में रक्तस्राव, और अस्थियों का कमजोर होना, मसूड़ों से रक्तस्राव, इम्यूनिटी का कमजोर होना, आयरन deficeimcy एनामिया, थकान और मानसिक अवसाद, और अकारण वजन में बढ़ोत्तरी आदि इसके अन्य लक्षणों में से हैं।
आंवला नींबू जैसे स्थानीय फल हैं जो सहज इसकी कमी को पूरी कर सकते हैं। इसे अपने आहार का नियमित हिस्सा बनाकर आप उपरोक्त व्याधियों से मुक्त रह सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, कैंसर, हार्ट डिजीज, डिमेंशिया ( याददाश्त का कम होना) आदि के बचाव में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है।

Tribhuwan Singh

Geeta Hospital Prayag Raj

For Health Awareness purposes only. Consult your doctor before self medication in case of above mentioned diseases.

अभी कुछ दिन पूर्व एक सम्मानित फेसबुक मित्र और ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर DrKripa Kinjalkam ने मुझे मोतीलाल नेहरू...
31/10/2022

अभी कुछ दिन पूर्व एक सम्मानित फेसबुक मित्र और ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर DrKripa Kinjalkam ने मुझे मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रायोद्यिकी संस्थान ( MNNIT) और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सहयोग से आयोजित एक सेमिनार में अभिभाषण हेतु आमंत्रित किया था। विषय था " भारतीय ज्ञान परंपरा का ऐतिहासिक परिपेक्ष्य और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020" ।
मैने उनसे निवेदित किया कि भाई मुझे इस विषय में कुछ पता नहीं है। परंतु उनका विश्वास और आग्रह ऐसा था कि मैंने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
मैं कुछ निजी कारणों से भी अब इन विषयों पर बोलना और लिखना बंद कर चुका हूं। उसका कारण बहुत ही व्यावसायिक है। मुझे पिछले दिनों में कुछ सहृदय स्नेहियों ने अवगत कराया कि प्रयागराज के मेडिकल जगत में ऐसी अफवाह है कि मैने डॉक्टरी और ऑर्थोपेडिक सर्जरी करना बंद कर दिया है।
मानव मन का साधारण नियम है ऐसी अफवाहों से चिंतित होना। क्योंकि अभी तो मैने न वानप्रस्थ अपनाया है और न ही सन्यास ग्रहण किया है। और अभी पारिवारिक जिम्मेदारियां भी हैं।
प्रोफेसर साहब को मैने हामी तो भर दिया परंतु मन में चिंता बनी रही। एक दिन एक कनिष्ठ और अनुज डॉक्टर के साथ मैं इफको से लौट रहा था। मैं सप्ताह में एक दिन अपनी सेवाएं देने इफको जाता हूं। मैंने अफवाह की सत्यता जानने के लिए उससे कहा कि भाई एक ऐसे विषय पर बोलने के लिए आमंत्रण मिला है। मैं बहुत संशय में हूं। और आमंत्रित करने वाले मित्र को मैने निवेदित किया है कि भैया सेमिनार में मेरा परिचय सामाजिक चिंतक की तरह न देना बल्कि एक ऑर्थोपेडिक सर्जन की तरह देना। उसने पूछा कि ऐसा क्यों बॉस? मैने उसे अफवाह के बारे में बताया। वह बहुत जोर से ठटठा मारकर हंसा। बोला बॉस आप बोल तो सही रहे हैं। लोग यह बात करते तो हैं। इस बात पर मैंने अट्टहास किया। वह बोला आप क्यों हंस रहे हैं। मैने उसे समझाया कि भाई देख कितना छोटा नुकसान कर रहे हैं। उनका आभार व्यक्त कर, क्योंकि वे यह भी बोल सकते थे कि अरे वे, वे तो कब के गुजर गए।😀
क्योंकि एक ऐसा प्रोफेशन है प्रयाग में, जहां यह वक्तव्य आम बात है। 😀
प्रयागराज में Geeta Hospital Prayag Raj एक मात्र अस्पताल ऐसा है जहां पांच वरिष्ठ ऑर्थोपेडिक सर्जन अपने मरीज भर्ती करते हैं। और मैं नए ऑर्थोपेडिक सर्जनों से आग्रह करूंगा कि वे अपने मरीज भी यहां भर्ती कर सकते हैं। उन्हें अपने मरीज के ऑपरेशन के लिए अपने इंस्ट्रूमेंट्स लेकर आने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। क्योंकि लगभग 90% अस्पतालों का हाल यही है कि यदि उनमें अपना मरीज भर्ती करो तो उसे ऑपरेशन करने का औजार भी ढो के ले जाओ।
दूसरी बात मेरे अस्पताल में हड्डी के अतिरिक्त सर्जरी, gyane and obstetrics, यूरोसिर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी और मेडिसिन के मरीजों के भी उपचार की सुविधा उपलब्ध है।
यह पूर्णतया व्यावसायिक पोस्ट है। इसका कोई सामाजिक सरोकार नहीं है।

हां नीचे कुछ फोटूवें डाल रहा हूं उन मित्रों , सुहृदयों और सहयोगियों को जो उनके उस दुष्प्रचार अभियान को बल दे सकें कि मैंने डॉक्टरी प्रैक्टिस बंद कर दिया है।
क्योंकि महाभारत है तो इतिहास, लेकिन उसकी सुंदरता यही है कि वह प्रत्येक मनुष्य के जीवन में घटती रहती है, घटती रहेगी। क्योंकि कौरव और पांडव दोनों भाई ही थे। तो यह अफवाह फैलाने वाले मेरे मित्र और सहयोगी ही हैं, ऐसा मुझे लगता है और पता भी है।

परन्तु आप जानते हैं कि दिन और रात, धर्म और अधर्म, न्याय और अन्याय सब सापेक्षिक हैं।
तो अपना अपना पक्ष तय करने की स्वतंत्रता तो होनी ही चाहिए। युधिष्ठिर ने महाभारत के आरंभ यह विकल्प अपने पक्षधरों और विपक्षियों, दोनों को दिया था।

❤️❤️🙏🙏

 #डेंगू: सीरीज 3 विश्व के लगभग 128 देश इस बीमारी  WHO के अनुसार प्रतिवर्ष इस बीमारी से लगभग 390 मिलियन ( एक मिलियन=10 ला...
28/10/2022

#डेंगू: सीरीज 3
विश्व के लगभग 128 देश इस बीमारी WHO के अनुसार प्रतिवर्ष इस बीमारी से लगभग 390 मिलियन ( एक मिलियन=10 लाख) लोग प्रभावित होते हैं जिनमें से अधिकांश लोगों में इस बीमारी के लक्षण प्रकट नहीं होते। लगभग 96 मिलियन में इस बीमारी के लक्षण प्रकट होते हैं,उनमें से भी अधिकांश लोगों में बहुत हल्के फुल्के यथा फ्लू जैसे लक्षण प्रकट होते हैं, जो स्वचिकित्सा या बिना किसी चिकित्सा के ठीक हो जाते हैं। इन मरीजों को हो सकता है कि गंभीर बीमारी न हो लेकिन यह डेंगू फैलाने में सहायक होते हैं।
डेंगू के मच्छर काटने के लगभग एक सप्ताह बाद इसके लक्षण प्रकट होते हैं, इस अवधि को मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इनक्यूबेशन पीरियड कहते हैं।
इस बीमारी से शिशु, बच्चे, युवा सभी प्रभावित होते हैं।
जैसा कि पूर्व लेख में बताया गया है कि डेंगू वायरस चार प्रकार का होता है, और एक प्रकार के डेंगू से पीड़ित होने के उपरांत हमारे शरीर में उस प्रकार के वायरस के प्रति इम्यूनिटी विकसित हो जाती है, परंतु अन्य तीन प्रकार के वायरस से आप फिर भी ग्रसित हो सकते हैं। और दुबारा ग्रसित हुए व्यक्तियों में रोग अधिक गंभीर हो जाता है। डेंगू के बुखार का समयकाल 2 से सात दिन तक का होता है।
WHO ने डेंगू को दो श्रेणियों में बांट रखा है।
1. Dengu with/ without warning signs
2. Severe Dengu अर्थात गंभीर डेंगू
डेंगू के लक्षण:
तेज बुखार के साथ, बदन में अत्यधिक पीड़ा, जोड़ों में दर्द, आंखों के पीछे दर्द, उबकाई, उल्टी, ग्रंथियों में सोथ, शरीर में बहुत महीन चकत्ते ( rash) जैसे पिन चुभोने पर चमड़ी में लालिमा आ जाती है।
गंभीर डेंगू: बीमारी के लक्षण प्रकट होने के बाद 3 से 7 दिन का समयकाल क्रिटिकल पीरियड या अवस्था कहलाती है। इस समयकाल में कुछ मरीज 24 से 48 घंटे के लिए गंभीर स्थित में जा सकते हैं, और बीमारी के वार्निंग लक्षण प्रकट हो सकते हैं। इस दौरान शरीर का तापमान गिर जाता है, और शॉक जैसे लक्षण, या फिर हेम्मोरहेज ( रक्तस्राव) के लक्षण दिख सकते हैं। यह अवस्था प्राणघातक सिद्ध हो सकती है।

सावधान होने के लक्षण: ( Warning Signs) पेट में तेज दर्द लगातार उल्टी का होनासांस तेज चलनामसूड़ों या नाक से रक्तस्राव होनाबेचैनीउल्टी या पाखाने में रक्त आना।

ऐसी स्थिति में मरीज को भर्ती कराने की आवश्यकता होती है।
रोगियों में प्राणघात के दो मुख्य कारण हैं। रक्त कणिकाओं विशेष कर प्लेटलेट की कमी और अन्य शारीरिक परिवर्तनों के कारण रक्तस्राव का होना।
दूसरा डेंगू शॉक सिंड्रोम।
दूसरा कारण होता है रक्त की धमनियों से fluid अर्थात रिसाव होना, जिसके कारण शरीर के अंग काम करना बंद कर सकते हैं। यह मृत्यु का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण है जिसका कोई इलाज नहीं है सिवा रोगी के vitals को मेंटेन करने के मेडिकल उपायों के।
इलाज: इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, जैसा कि प्रायः सभी वायरल इन्फेक्शन के साथ है। अभी corona virus के आतंक से हम जूझ चुके हैं। इसलिए मात्र symptomatic treatment ही इसका एकमात्र इलाज है। यदि अस्पताल में भर्ती नहीं है तो आराम, बुखार को कम करने के लिए पैरासिटामोल ( Dolo 😀) और पर्याप्त मात्रा में लिक्विड डाइट।
असली खेल जो चल रहा है वह है प्लेटलेट का जिसके लिए यह लेख लिखा जा रहा है।
करेंट मेडिकल डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट 2022 की पुस्तक बोल रही है कि प्लेटलेट कणिकाओं को तभी चढ़ाया जाना चाहिए जब उनकी संख्या 10,000 से कम हो जाय, या फिर उपरोक्त वर्णित रक्तस्राव का कोई लक्षण न हो। पुस्तक यह भी वार्निंग दे रही है कि यदि अनावश्यक रूप से प्लेटलेट चढ़ाया जाता है तो शरीर में स्वत: प्लेटलेट निर्मित होने वाली प्रक्रिया धीमी हो सकती है।
स्नैप शॉट यहां देखिए और स्वयं पढ़ लीजिए।

27/10/2022

हमारे मस्तिष्क में भूसा भरा जाता है कि यह अच्छा, वह बुरा। और हम उसे मान लेते हैं, बिना सोचे समझे।

गांधी जी ने 1908 में लिखी अपनी पुस्तक में ब्रिटिश संसद के बारे में लिखा कि संसद बांझ और वेश्या है : pr******te and sterile.

परंतु हम उनसे सहमत नहीं हुए। भारत में लोकतंत्र को सर्वोच्च व्यवस्था बताया गया। हम मानते रहे। वोटिंग को लोकतंत्र का सर्वोत्तम पर्व। ठीक है यह पर्व है। लेकिन इसी पर्व से देश को लूटने वाले ... पैदा हुए, और हो रहे हैं।
परंतु ब्रिटेन में अभी हाल में हो रही राजनीतिक घटनाएं, संसदीय लोकतंत्र, और लोकतंत्र के संदर्भ में गांधी के आंकलन को सत्य ही ठहरा रही हैं।

आज किसी ने व्हाट्सएप पर इन्हीं अफवाहजनक सूचनाओं से प्रभावित होकर लिखा कि आप डॉक्टर लोग भगवान हैं।

मैने उन्हें उत्तर दिया :
"धन्यवाद। मेरा अनुग्रह मात्र इतना है कि हमें भी मनुष्य माना जाय: काम क्रोध लोभ मोह और मद मत्सर से संक्रमित"।

©Dr Tribhuwan Singh M.S.( Ortho)

Geeta hospital
Tagore Town
Prayagraj

❤️❤️

27/10/2022

#डेंगू: सीरीज 2
Who की रिपोर्ट यह बताती है कि डेंगू विश्व के 128 देशों में फैला हुआ है, विशेष कर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में। प्रति वर्ष 100 से 400 लोग डेंगू के चपेट में आते हैं। बुखार से पीड़ित होने वालों में मलेरिया के बाद डेंगू का नंबर आता है। दोनों ही बीमारियां मच्छर के काटने से होती हैं।
डेंगू के मच्छर बहुत दहपट होते हैं जो दिन में काटते हैं। ये मच्छर ठहरे हुए पानी में यथा बरसात के बाद इकट्ठा हुए जल में प्रजनन करते हैं जैसे किसी उपेक्षित टायर या फिर कनस्तर आदि में एकत्रित जल में।
तो पहली सावधानी तो यह है कि ध्यान रखें कि बरसात और उसके उपरांत ऐसे स्थानों पर एकत्रित जल को ठहरने न दें।
दूसरी सावधानी यह है कि पूरी स्लीव की शर्ट और पूरे पैर को ढकने वाले वस्त्रों को धारण करें, जिससे शरीर का निम्नतम भाग ही मच्छरों को मिले आपका खून चूसने को। अन्य मच्छर निरोधक तरीकों से आप सब परिचित हैं।
मच्छर काटने के बाद वायरस आपके शरीर में प्रवेश करता है और उसको अपनी संख्या बढ़ाने में लगभग एक सप्ताह लगता है, जिसे इनक्यूबेशन पीरियड कहते हैं। एक सप्ताह के बाद बुखार आना शुरू होता है जिसकी मियाद लगभग एक सप्ताह की होती है।
इस वायरस को flavivirus की श्रेणी में रखते हैं। जिसके चार प्रकार होते हैं। एक प्रकार के वायरस ग्रसित होने पर, शरीर में मात्र उसी प्रकार के वायरस के प्रति इम्यूनिटी विकसित होती है। परंतु अन्य तीन वायरस अभी भी प्रभावित व्यक्ति को बुखार से पीड़ित कर सकते हैं। विशेष बात यह है कि प्रथम बार के इन्फेक्शन के बाद यदि व्यक्ति दुबारा, दूसरे किस्म के वायरस से पीड़ित होता है, तो उसके अधिक गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा रहता है।

©Dr Tribhuwan Singh
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26/10/2022

#डेंगू: सीरीज 1
डेंगू नामक बीमारी ने समाज में भय व्याप्त कर रखा है।
सब लोग इस बात से परिचित हैं कि यह बीमारी घातक स्वरूप धारण कर सकती है। मीडिया ने लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक तो किया है परंतु अधकचरा ज्ञान बांटकर समाज में भय भी पैदा किया है। विशेषकर प्लेटलेट को लेकर। अभी प्रयागराज में खबर छपी है कि किसी अस्पताल में मुसम्मी का जूस चढ़ा दिया गया प्लेटलेट के स्थान पर। इस विषय पर पुलिस अभी जांच कर रही है।
इसलिए मैंने तय किया कि डेंगू के बारे में लोगों को जागृत किया जाय, और प्लेटलेट के कारण समाज में उपजे भय को कम करने का प्रयास किया जाय। क्योंकि डेंगू में मृत्यु का कारण प्लेटलेट की कमी से कम मृत्यु होती है, डेंगू शॉक सिंड्रोम से अधिक मृत्यु होती है, जिसका कोई इलाज नहीं है, सिवाय सपोर्टिव और symptomatic ट्रीटमेंट के।
इस विषय को दो या तीन लेखों में विस्तारित किया जाएगा।

वर्ल्ड  #ओस्टियोपोरोसिस ( अस्थि क्षरण)  दिवस पर आज इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन ने समाज जागरूकता लाने हेतु,  ओस्टियोपोरोसिस ...
21/10/2022

वर्ल्ड #ओस्टियोपोरोसिस ( अस्थि क्षरण) दिवस पर आज इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन ने समाज जागरूकता लाने हेतु, ओस्टियोपोरोसिस पर गोष्ठी आयोजित की, जिसमें चिकित्सकों, समाज के जागरूक नागरिकों और समाजसेवी संस्थाओं को इस विषय में जागरूकता अभियान चलाने के लिए आह्वाहन किया गया। 20 अक्टूवर को पूरे विश्व में यह अभियान चलाया जाता है। इस अवसर पर AMA के उपाध्यक्ष और शहर के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डॉ त्रिभुवन सिंह ने अपने संबोधन में ओस्टियोपोरोसिस का अर्थ समझाते हुए बताया कि ओस्टियो का अर्थ है हड्डी, और पोरोसिस का अर्थ है उसमें छिद्र होना। अर्थात इस बीमारी में मानव शरीर की हड्डियों में छिद्र होने के कारण वे कमजोर हो जाती हैं, जिनमें हल्की सी भी चोट लगने के कारण फ्रैक्चर हो जाता है, विशेष कर कूल्हे, रीढ़ और कलाई की हड्डियां। सबसे मजे की बात यह है कि यह एक ऐसी बीमारी है जिसके कारण तब तक कोई शारीरिक तकलीफ नहीं होती जब तक उपरोक्त वर्णित फ्रैक्चर न हो जाएं। इसलिए इसके बारे में कोई भी व्यक्ति सजग नहीं रहता। परंतु इस बीमारी के गंभीर परिणाम होते हैं । विश्व में लगभग 90 लाख लोगों का फ्रैक्चर इस बीमारी के कारण होता है, जिसे ओस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर कहते हैं। कूल्हे के फ्रैक्चर से प्रभावित लोगों में से, उचित चिकित्सा के उपरांत भी 20 प्रतिशत लोगों की मृत्यु, एक वर्ष के अंदर हो जाती है। इनमें से 50 प्रतिशत लोग उपचार के बाद भी सामान्य अवस्था को उपलब्ध नहीं हो पाते। मात्र 30 प्रतिशत लोग कूल्हा टूटने के पूर्ववत स्थित में आ पाते हैं। इसलिए ओस्टियोपोरोसिस को गुप्त महामारी भी कहा जा सकता है। इससे बचने की के लिए बचपन से लेकर बुढ़ापे तक सक्रिय प्रयास किया जाना चाहिए। क्योंकि यदि उचित खान पान और एक्सरसाइज का प्रशिक्षण हम अपने बच्चों को, बचपन और तरूणावस्था में दे सकें तो हमारे शरीर में ऊंची क्वालिटी का बोन बैंक निर्मित होता है जिसे पीक बोन मास कहते हैं। यदि पीक बोन मास अच्छा है तो हड्डियों पर अस्थि क्षरण का प्रभाव कम पड़ता है। इससे सबसे अधिक प्रभावित महिलाएं प्रभावित होती हैं। मासिक स्राव बंद होने के उपरांत उनके शरीर में तेजी से अस्थि क्षरण होता है। सामान्य तौर पर 60 वर्ष के उपरांत महिलाएं और 70 वर्ष के उपरांत पुरुष इस बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं। सिगरेट, शराब तथा कोल्ड ड्रिंक का सेवन अस्थिक्षरण की गति को बढ़ाता है। कुछ दवाएं यथा स्टीरॉयड का सेवन भी इसकी गति को तीव्र करता है। इसलिए इस बीमारी के बारे में सचेत रहने से वृद्धावस्था के फ्रैक्चर से बचा जा सकता है। इससे बचने के लिए उचित आहार और विहार की आवश्यकता होती है। आहार में कैल्शियम और विटामिन D से समृद्ध भोजन होना चाहिए, और विहार में नियमित व्यायाम वाली जीवन शैली। इस बीमारी का निदान बीएमडी नामक जांच से संभव होती है। पिछले कुछ दशकों में मेडिकल साइंस ने अस्थिक्षरण रोकने के लिए अनेक दवाएं विकसित की हैं। जो बहुत महंगी नहीं हैं। लेकिन उनका सेवन उचित चिकित्सा परामर्श के बाद ही करना चाहिए। इस गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ सुबोध जैन ने किया और संचालन डॉ अनुभा श्रीवास्तव ने किया।

प्रिंट मीडिया ने इस जन जागरण अभियान को आगे बढ़ाया। टाइम्स ऑफ इंडिया, आज, दैनिक जागरण और राष्ट्रीय सहारा आदि में छपी खबर की कटिंग संलग्न है।

कल विश्व ट्रॉमा दिवस पर इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन में आयोजित गोष्ठी में दिए गए महत्वपूर्ण सुझाव के बारे में ऑर्थोपेडिक सर...
18/10/2022

कल विश्व ट्रॉमा दिवस पर इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन में आयोजित गोष्ठी में दिए गए महत्वपूर्ण सुझाव के बारे में ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ त्रिभुवन सिंह ने बताया कि विश्व ट्रॉमा दिवस की शुरुवात 2011 में भारत में हुई, जिसे पूरे विश्व ने अंगीकार किया।
ट्रॉमा का अर्थ है चोट के कारण होने वाली दुर्घटनाएं, और उनसे होने वाली शारीरिक क्षति। विशेष कर सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्यु।

भारत में प्रतिदिन लगभग 400 लोगों की मृत्यु सड़क दुर्घटना के कारण होती है। और विश्व में लगभग 50 लाख लोगों की मृत्यु सड़क दुघटनाओं के कारण होती है।
इनमें मरने वाले लोगों की उम्र प्रायः 45 वर्ष से कम होती है, इसलिए इन दुर्घटनाओं में मृतकों के परिवार पर गंभीर आर्थिक संकट पड़ता है। इन दुर्घटनाओं में अनेक लोग मरते तो नहीं है परंतु आजीवन विकलांग हो जाते हैं।
यदि इन घायलों को यदि शीघ्रता पूर्वक सक्षम चिकित्सा मिल सके तो मृत्यु दर में लगभग 50% की घटोत्तरी हो सकती है। परंतु इनको ट्रांसपोर्ट करते समय अत्यंत सावधानी बरतने की आवश्यकता पड़ती है।
इसके अतिरिक्त वाहन चलाते समय उचित सावधानी, यथा सीटबेल्ट और हेलमेट का उपयोग, मोबाइल और शराब से परहेज, कम स्पीड जैसी चीजों का ध्यान रखा जाए तो भी दुर्घटना में गंभीर चोट से बचा जा सकता है।

 :विश्व मेरुदंड दिवस पर प्रयागराज में ऑर्थोपेडिक सर्जनों ने जागरूकता अभियान चलाया। प्रख्यात ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ त्रिभुवन...
17/10/2022

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विश्व मेरुदंड दिवस पर प्रयागराज में ऑर्थोपेडिक सर्जनों ने जागरूकता अभियान चलाया।

प्रख्यात ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ त्रिभुवन सिंह ने बताया कि मेरुदंड शरीर की आधार शिला है जिसके सहयोग से हम नित प्रतिदिन के कृत्य यथा बैठना, उठना, चलना, झुकना इत्यादि आसानी से कर पाते हैं।

एक स्वस्थ मेरुदंड ( स्पाइन) के कारण ही हम प्रतिदिन की दैनिक क्रियाओं को सहजता से कर पाते हैं। क्योंकि मेरुदंड की अस्वस्थता के कारण असहनीय कमर दर्द, डिस्क प्रोलैप्स, सायटिका, सर्वाइकल spondylosis और ब्रेचियल न्यूरेल्जिया जैसे रोगों का जन्म होता है, जो हमारे जीवन को अस्त व्यस्त कर देते हैं। उन्होंने जोर देकर बताया कि विश्व मेरुदंड दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को, विशेष कर वंचित समुदाय को स्पाइन के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना, और उसे स्वस्थ रखने के उपायों के प्रति सचेत करना है, क्योंकि लापरवाही के कारण यह बीमारियां असाध्य रूप धारण कर सकती हैं।
डॉक्टरों ने लोगों को नियमित व्यायाम और उचित पोस्चर ( उठने, बैठने, चलने के सही तरीके) अपनाने का सुझाव दिया। उन्होंने लंबे समय तक बैठने से बचने और पेट और पीठ की मांसपेशियों को मजबूत करने की राय दिया।
Dr अनिल कुमार ने वजन कम करने पर जोर दिया, और सलाह दिया कि जिन लोगों को लंबे समय तक बैठकर काम करने विवशता हैं, उन्हें कार्यस्थल पर ही बीच बीच में उठकर खड़े रहने और चलने की राय दी।

( Times of India से अनुवादित। व्हाट्सएप में प्राप्त पेपर की कटिंग से)

Dr Tribhuwan Singh MS ( Ortho)
Geeta Hospital
Tagore Town
Prayagraj
Mo: 9415215651

 :विश्व मेरुदंड दिवस पर प्रयागराज में ऑर्थोपेडिक सर्जनों ने जागरूकता अभियान चलाया। प्रख्यात ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ त्रिभुवन...
17/10/2022

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विश्व मेरुदंड दिवस पर प्रयागराज में ऑर्थोपेडिक सर्जनों ने जागरूकता अभियान चलाया।

प्रख्यात ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ त्रिभुवन सिंह ने बताया कि मेरुदंड शरीर की आधार शिला है जिसके सहयोग से हम नित प्रतिदिन के कृत्य यथा बैठना, उठना, चलना, झुकना इत्यादि आसानी से कर पाते हैं।

एक स्वस्थ मेरुदंड ( स्पाइन) के कारण ही हम प्रतिदिन की दैनिक क्रियाओं को सहजता से कर पाते हैं। क्योंकि मेरुदंड की अस्वस्थता के कारण असहनीय कमर दर्द, डिस्क प्रोलैप्स, सायटिका, सर्वाइकल spondylosis और ब्रेचियल न्यूरेल्जिया जैसे रोगों का जन्म होता है, जो हमारे जीवन को अस्त व्यस्त कर देते हैं। उन्होंने जोर देकर बताया कि विश्व मेरुदंड दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को, विशेष कर वंचित समुदाय को स्पाइन के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना, और उसे स्वस्थ रखने के उपायों के प्रति सचेत करना है, क्योंकि लापरवाही के कारण यह बीमारियां असाध्य रूप धारण कर सकती हैं।
डॉक्टरों ने लोगों को नियमित व्यायाम और उचित पोस्चर ( उठने, बैठने, चलने के सही तरीके) अपनाने का सुझाव दिया। उन्होंने लंबे समय तक बैठने से बचने और पेट और पीठ की मांसपेशियों को मजबूत करने की राय दिया।
Dr अनिल कुमार ने वजन कम करने पर जोर दिया, और सलाह दिया कि जिन लोगों को लंबे समय तक बैठकर काम करने विवशता हैं, उन्हें कार्यस्थल पर ही बीच बीच में उठकर खड़े रहने और चलने की राय दी।

( एक अंग्रेजी दैनिक से अनुवादित। व्हाट्सएप में प्राप्त पेपर की कटिंग से)

Dr Tribhuwan Singh MS ( Ortho)
Geeta Hospital
Tagore Town
Prayagraj
Mo: 9415215651

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