Shashwat Ayurvedic Pharmacy

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With Our Ayurveda
With best suggestion


With
Vaidya Anil Kumar Pandey
B.A.M.S M.D.(A.M)
AYURVEDACHARYA

18/09/2024

☘️शीघ्र स्नेह लक्षण प्राप्ति विधि☘️
इसी प्रकरण में हम सद्यः स्नेह प्रयोगविधि का उल्लेख करना आवश्यक समझते हैं। क्योंकि कई बार अधिक व्यस्त व्यक्तियों स्नेह में शीघ्र स्नेह लक्षण प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है। दरअसल सम्यक स्नेह लक्षणों की आप्ति में सात दिन का समय लग सकता है। चार-पाँच दिन में स्नेह लक्षण प्राप्त हो इसके लिए निम्नांकित आनुभविक प्रयोग चिकित्सकों के लिए समालोचनीय हैं -
सूत्रम
1-
घृत 80 मि.ली. + मूंग के दाल और चावल की खिचड़ी लवणयुक्त पकाकर 200 ग्राम मात्रा में सुबह खाली पेट सेवन करा दें और पूरा दिन आराम करें तथा गरम जल का सेवन करें। ध्यान रहे कि यह खिचड़ी गरमागरम सेवन न करें अन्यथा दस्त लग सकते हैं। इस प्रयोग से तीन दिन में ही स्नेहलक्षण प्राप्त हो जाते हैं। किसी भी स्नेह में सैन्धव लवण मिलाकर सेवन करने से अपेक्षित स्नेह लक्षण शीघ्र मिल जाते हैं। शास्त्र में पाँच प्रसूत की पेया का उल्लेख इसी उद्देश्य से किया गया था। स्नेह प्रविचारणा-🌷
स्नेहद्विषः स्नेहनित्या मृदुकोष्ठाश्च ये नराः। क्लेशासहा मद्यनित्यास्तेषांमिष्टा विचारणा।।
च.सू. 13/28
जो व्यक्ति स्नेह से नफरत करते हों, जो नित्य स्नेह का सेवन करते हो जिनके कोष्ठ मृदु हों, जो व्यक्ति सुकोमल प्रकृति के हों, जो प्रतिदिन मद्य का सेवन करते हो और उन्हें स्नेह सेवन कराना आवश्यक हो तो ओदन, विलेपी, मांसरस, दूध, दही,या फल, सूप, शाक, यूष. काम्बलिक, खंड, सत्तू, तिलकल्क, मद्य, लेह, भक्ष्य, अभ्यञ्जन, बंस्ति, उत्तरवस्ति, गण्डूष, कर्णतैल, नस्य और नेत्रतर्पण के माध्यम से उनके शरीर में पहुँचाना चाहिए।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जो स्नेह खिचड़ी, भात, सूप आदि या किसी शरीरोपयोगी अन्य द्रव्यों का योग कर उनके साथ मिलाकर प्रयोग किया जाता है उसे प्रविचारणा कहते हैं। चक्रपाणि ने कहा है कि स्नेह का किसी अन्य पदार्थ के साथ प्रयोग करने को प्रविचारणा कहते हैं।
स्नेह के योग्य व्यक्ति -🌷स्वेद्याः शोधयितव्याश्च रुक्षवातविकारिणः। व्यायाममद्यस्त्रीनित्याः स्नेह्याः स्युर्ये च चिन्तकाः॥
च.सू. 13/51 जिन व्यक्तियों को स्वेदन कराना हो वे प्रायः स्नेहन योग्य होते हैं। जो रुक्ष हो और वात विकारों से पीड़ित हों, जो नित्य व्यायाम, मद्य, स्त्री सेवन और मानसिक श्रम करते हों।
जिनका वमन विरेचन आदि से शोधन कराना हो, कृश व्यक्ति योद्धा, वृद्ध, बालक, स्त्रियाँ, क्षीणरक्त, क्षीणवीर्य तथा निद्रारोग पीड़ित स्नेहन योग्य है।
स्नेहन के अयोग्य व्यक्ति-
स्नेहन किसे नहीं कराना चाहिए इस सम्बन्ध में चरक संहित सूत्रस्थान 13/53-55 दृष्टव्य है-
🌷1- जो रुक्षण चिकित्सा करने योग्य हों। जो कफ और मेद वृद्धि से प्रस्र हों उन्हें बिना स्नेहन के ही स्वेदन कराना चाहिए।
🌷2- प्रवाहिका, लाला स्त्रावयुक्त, मन्दाग्नि, तृष्णा, मूर्च्छा, जिनका अर के प्रति द्वेष हो (भोजन से अरुचि हो), जिन्हें लगातार वमन हो रहा हो, स्नेहपान से ग्लानियुक्त, मदपान से पीड़ित, गर्भिणी, तालुशोषी
आमज विकार ग्रस्त तथा विष पीड़ित को स्नेहन नहीं कराना चाहिए।
🌷3- जिन्हें नस्य और बस्ति का प्रयोग किया जा रहा हो, अत्यन्त दुर्वल क्षीण, अजीर्णरोगी, तरुणज्वरी, अकालप्रसूता, उरुस्तम्भग्रस्त तथा अतितीक्ष्ण रोगी स्नेहन के अयोग्य होते हैं।
स्नेहपान की तैयारी-
चिकित्सक का कर्तव्य है कि स्नेहपान के पूर्व प्रयोग की जाने वाली सामग्री, स्नेहद्रव्य का पर्याप्त संग्रत कर लें। यह निर्णय का लेना चाहि
■ कि यह रोगी ■ स्नेहनयोग्य या नहीं। संभावित उपद्रवों के शमनार्थ साधन जुटा लेना चाहिए। इसमें अग्निमांद्य, अरोचक, शूल भ्रम, मूच्छा
अतिसार और वमन होने की संभावना होती है अतः शिवक्षार पाक ■चूर्ण, हिंग्वादिवटी, संजीवनी वटी, चित्रकादि वटी आदि औषधियों क संग्रह रखना चाहिए। अन्य कोई उपद्रव हो तो उसका सम्भावित उपव करना चाहिए।
घृतपान में उष्णजल, तैलपान में यूष (मूंग दाल 50 ग्राम + 14 पानी में पकाकर), वसा, मज्जा का स्नेहपान के रूप में प्रयोग करना। तो मण्ड को अनुपान के रूप में देना चाहिए, इसके अभाव में सर्वत्र अ जल देना चाहिए। नींबू, आलूबुखारा, इलायची आदि भी अरुचि। - करने में चुसवाने हेतु रखना चाहिए। आहांगसंग्रहकार ने निर्देश दियाहै। स्नेहादिषूपयोगाय तदव्यान
कुर्यात् प्रागेव तद्योगी द्रव्यसम्भार संग्रहम्॥
अ.सं.सू. 25/3 में
स्नेहपान की विधि🌷
रोगी को आस्था और विश्वास उत्पन्न करें। कोष- रोगी को धैर्य, आश्वासनयुक्त करें।
- स्नेहपान कराने वाले व्यक्ति का दोषबल, मनोबल, शरीरबल, कोष्ठबल और रोग तथा रोग बल देखकर चिकित्सक यह निश्चित करे कि कि कौन से स्नेह से स्नेहन करना है।
सूर्योदय के 15 से 30 मिनट के भीतर स्नेहपान कराना चाहिए। स्नेहन की पहली मात्रा 30 मि.ली. ही दें।
उत्तम स्नेह मात्रा में- प्रथम दिन 60 मि.ली., दूसरे दिन 90 मि.ली., तीसरे दिन 120 मि.ली., चौथे दिन 180 मि.ली., पाँचवे स दिन 240 मि.ली., छठवें दिन 300 मि.ली., सातवें दिन 360 यस मि.ली. मात्रा सेवन करावें। कुछ चिकित्सक इस मात्रा को प्रातः काल खाली पेट नाश्ता के समय गरम पानी के अनुपान से सेवन कराते हैं।
अन यद्यपि यह पद्धति उत्तम है परन्तु किसी-किसी को जब 180 रहा मि.ली. मात्रा सेवन का क्रम आता है तो अरुचि होने लगती है जोकि तो उन्हें विभाजित मात्रा में पूरे दिन में इतनी मात्रा स्नेह सेवन ही कराया जाता है। ध्यान रहे जब पूर्व दिन का स्नेहपान अच्छी तरह से र्बल, पच जाय तभी अगले दिन की मात्रा निर्धारित करनी चाहिए कि कितनी तथा मात्रा में स्नेह सेवन कराया जाय। इसके लिए स्नेह के पचने के समय होने वाले लक्षण और पचन हो जाने पर होने वाले लक्षणों का ज्ञान आवश्यक है।
उपर्युक्त जो मात्रा लिखी गयी है उसका कोई बन्धन नहीं है, बन्धन इस बात का है कि रोगी में सम्यक स्निग्ध लक्षण दिखायी पड़े।
बाधन कई बार यह मात्रा बढ़ानी भी पड़ती है और घटानी भी, इसके लिए कुशल चिकित्सक स्वतंत्र होता है।
स्नेह का पाचन लक्षण
सेवन किए गये स्नेह के पाचन के समय 🌷 "स्युः पच्यमानेतृड्दाहभ्रमसादारति क्लमाः ।। सु.चि. 31/33 के अनुसार शिर में पीड़ा, चक्कर आना, लालास्त्राव, मूर्च्छा, थकावट, क्लम, तृष्णा, दाह और अरति लक्षण हो सकते हैं। इन लक्षणों के आने पर चिकित्सक को निगरानी रखनी चाहिए और रोगी को सान्त्वना देना चाहिए कि ये लक्षण स्नेह के पाचन होने पर स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं।
🌷जीर्ण तत् शान्तिलाघवात्। अनुलोमोऽनिलः स्वास्थ्यं क्षुत्तृष्णोद्गारशुद्धिभिः ॥
अ.सं.सू. 25
के अनुसार स्नेहपान के पश्चात् जब शिर की रुग्णता का शमन हो जाय, शरीर में हल्कापन, वायु का अनुलोमन होता है, भूख और प्यास ० लगती है, शुद्ध डकार आती है।
वे सम्यक स्निग्ध लक्षण
वायु का अनुलोमन, अग्नि की प्रदीप्ति, मल में स्निग्धता, मल में ल द्रवता, अंगो में मुलायमता और स्निग्धता, त्वचा में स्निग्धता, गात्रलघुता, हैं। गुद से स्नेह निर्गमन, ग्लानि और क्लम। ये लक्षण स्नेहकर्म का • सम्यग्योग होने पर होते हैं।
स्नेह का अयोग लक्षण🌷
मल का गाँठदार और रुक्ष होना, वायु का अनुलोमन न होना, से जठराग्नि की मन्दता अंगो में खरता और रुक्षता, छाती में जलन, नी दुर्बलता, वायु का प्रतिलोम होना तथा अन्नपचन में कठिनाई ये लक्षण य स्नेह के अयोग लक्षण होते हैं।
न स्नेह के अतियोग लक्षण🌷
शरीर में पाण्डुता, अंगगौरव, जड़ता, मल का अपक्व निस्सरण, न तन्द्रा, अरुचि, उत्क्लेश, मुखस्स्राव, गुददाह, प्रवाहिका, मल की अतिप्रवृत्ति, भोजन से अरुचि नाक से स्त्राव, गुदा से स्राव ये स्नेह के अतियोग के लक्षण हैं।
स्नेहकर्म के दौरान🌷-
उपर्युक्त लक्षणों को ध्यान में रखना चाहिए जैसे ही सम्यक स्निग्ध • लक्षण प्राप्त हो वैसे ही स्नेहपान रोक देना चाहिए और स्वेदन एवंशोधन की व्यवस्था करनी चाहिए। जैसे ही स्नेह लक्षण मिल जायें तो उसी दिन सायंकाल और दूसरे, तीसरे दिन सर्वांग वाष्प स्वेदन कराकर को वमन कर्म कराना चाहिए।
स्नेह व्यापद (उपद्रव) और चिकित्सा-
यदि चिकित्सक यह ज्ञान न कर पाये कि अमुक रोगी स्नेहन योग्य या नहीं या स्नेह लक्षण प्राप्त हो चुके या नहीं? स्नेहन प्रारम्भ करने के पूर्व रोगी साम या निराम ? यदि साम रोगी को बिना निराम किए स्नेहन प्रारम्भ करा दिया जाये तो भी स्नेहव्यापद होने लगता है।
ऐसे में रोगी को घबराना नहीं चाहिए। स्नेह व्यापद की चिकित्सा अत्यन्त सरल है। गरम जल का सेवन स्नेहपान से उत्पन्न हुए उपद्रवों को दूर करता है, स्रोतों का विस्तार करता है, स्नेह को पचाता है, मन्दाग्नि को दूर करता है और वायु का अनुलोमन करता है। इसके अलावा लंघन और स्वेदन कर्म कराना चाहिए (मालिश तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए)। 3-4 दिन में स्नेह का पाचन स्वतः ही हो कर सम्पूर्ण उपद्रव समाप्त हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त स्नेह व्यापद में जो-जो लक्षण उत्पन्न हो उनकी लाक्षणिक चिकित्सा भी करते रहें। त्रिकटु, गोमूत्र, आसव, अरिष्ट, शंखद्राव, रुक्ष, अन्न-पान का सेवन करते रहें।
स्नेहन के पश्चात् कर्म और पथ्यापथ्य-🌷
उष्णोदकोपचारी स्याद् ब्रह्मचारी क्षपाशयः । न वेगरोधी व्यायामक्रोधशोक हिमातपात्।। • प्रवातयामयानाध्वभाष्यात्यासनसंस्थितीः । नीचाव्युच्चोपधानाहः स्वप्नधूमरजांसि च। यान्यहानि पिवेत्तानि तावन्त्यान्यपि त्यजेत्। सर्वकर्मस्वयं प्रायो व्याधिक्षीणेषु च क्रमः ।।
अ.हृ. 16/26-28।

15/09/2024

गैस व् बदहजमी दूर करने के लिए

1 . भोजन हमेशा समय पर करें .

2 . प्रतिदिन सुबह देसी शहद में निम्बू रस मिलाकर चाट लें .

3 . हींग , लहसुन , चद गुप्पा ये तीनो बूटियाँ पीसकर गोली बनाकर छाँव में सुखा लें , व् प्रतिदिन एक गोली खाएं .

4 . भोजन के समय सादे पानी के बजाये अजवायन का उबला पानी प्रयोग करें .

5 . लहसुन , जीरा 10 ग्राम घी में भुनकर भोजन से पहले खाएं .

6 . सौंठ पावडर शहद ये गर्म पानी से खाएं .

7 . लौंग का उबला पानी रोजाना पियें .

8 . जीरा , सौंफ , अजवायन इनको सुखाकर पावडर बना लें , शहद के साथ भोजन से पहले प्रयोग करें .

14/09/2024

*❝पुनर्नवा ➨अर्क के फायदे➾*

*✦ यह उत्तम शोथ नाशक*➳ शरीर के सभी प्रकार के सूजन को दूर करने वाला होता है *जैसे* हाथ पैर सूजन, पेट का सूजन, किडनी का सूजन, आत का सूजन लिवर का सूजन में लाभप्रद.
*✦ कमला ➳* पीलिया में लाभदायक,
*✦ पाण्डु हलिमक ➾* रक्त अल्पता खून की कमी, रक्त धातु का कमजोर होना, लिवर का सही तरीके से काम ना करना.
*✦ उदर रोग ➾*
*✦ मूत्रकृच्छ➾* पेशाब में जलन होना, मूत्र का पीला निकलना, पेशाब रुक-रुक कर आना, किसी प्रकार के संक्रमण होना, पेशाब से झाग आना सभी में लाभप्रद...
*✦ प्रमेह ➾* मधुमेह (शुगर) में भी लाभदायक है.
*✦ रक्तपित्त* शरीर के किसी अंग से खून निकलने में लाभदायक जैसे__ नाक से खून निकलना, योनि मार्ग से खून निकलना, गुदा मार्ग से खून निकलना सभी में लाभदायक,
*✦ वृक्क विकार*_ किडनी में यूरिया क्रिएटिनिन का बढ़ना, सूजन का होना, पथरी का होना, गुर्दे के सभी प्रकार के रोगों नीम लाभप्रद.

*✦ यकृतशोथ ➨* लिवर में सूजन होना, भूख ना लगना, हेपिटेटिश A,B,C,D, लिवर में sgot
बस्ती शोथ, गर्भाशय शोथ आदि विकारों में उत्तम गुणकारी है लाभदायक है...

*✦ गर्भाशय शोथ*➾
पुनर्नवा अर्क+ दशमुल अर्क
समान मात्रा मिलाकर ले.

*✦ पाण्डु कमला हालिमक में ➾*
पुनर्नवा अर्क +गन्ना के रस
सेवन करे..

*✦ गर्भाशय शोथ में ➾*
पुनर्नवा अर्क + दशमुल अर्क दोनो मिलाकर दे समान मात्रा जल मिलाकर ..

*✦ मात्रा*⤵
10 ml से 30 ml समान मात्रा जल मिलाकर ले....( रोग अनुशार या शारीरिक बल व जठरअग्नि अनुसार मात्रा तय करें)..

*➥ निर्माण विधि* ➾

☛ पुनर्नवा पंचांग 2 !! सेर को जौ कूट करके सायकल 20 सेर जल में भिगोकर प्रात:काल अर्क पात्र में डालकर यथाविधि _20 बोतल अर्क निकाल ले...

*✦ नोट*➨
*अगर आप बनाने में असमर्थ है ➞ तो निर्माण किया हुआ भी हमारे संस्थान से प्राप्त कर सकते हैं...*

12/09/2024

*याद रखें बगैर वायु (गैस) के दर्द नहीं होता चोट को छोड़कर आप जानते है वात पित्त कफ के बारे मे जब कफ बढ़ता है तो गांठ बनती जब पित्त बढ़ता है तब गांठ पकती है मतलब पस पड़ता है और जब वात (वायु) बढ़ती है तब उसमें दर्द शुरू होता हैं*
दर्द कोई रोग नहीं वह केवल आपको सूचित करता है आप कुछ गलत कर रहे हैं।
*उसमें सुधार किजिए ओर आप है। आप सूचना देने वाले को ही खत्म करने के चक्कर में पूरी जिंदगी गुजार देते हैं।*
घुटनों के दर्द, कमर दर्द, सायटिका, सर्वाइकल की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जिसका कारण गलत खानपान, बदलती दिनचर्या, एक्सरसाइज की कमी या लिमिट से अधिक, पोषक तत्वों की कमी, नाभि केंद्र का अपने स्थान पर नहीं होना, कब्ज, गैस आदि कोई भी कारण हो सकते

*1. वात होने का कारण*

गलत भोजन, बेसन, मैदा, बारीक आटा तथा अधिक दालों का सेवन करने से शरीर में वात दोष उत्पन्न हो जाता है।
दूषित भोजन, अधिक मांस का सेवन तथा बर्फ का सेवन करने के कारण वात दोष उत्पन्न हो जाता है।

आलसी जीवन, सूर्यस्नान, तथा व्यायाम की कमी के कारण पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है जिसके कारण वात दोष उत्पन्न हो जाता है।
इन सभी कारणों से पेट में कब्ज (गंदी वायु) बनने लगती है और यही वायु शरीर में जहां भी रुकती है, फंसती है या टकराती है, वहां दर्द होता है। यही दर्द वात दोष कहलाता है।

*वात के कारण होने वाले रोग*

अफारा, टांगों में दर्द, पेट में वायु बनना, जोड़ों में दर्द, लकवा, साइटिका, शरीर के अंगों का सुन्न हो जाना, शिथिल होना, कांपना, फड़कना, टेढ़ा हो जाना, दर्द, नाड़ियों में खिंचाव, कम सुनना, वात ज्वर तथा शरीर के किसी भी भाग में अचानक दर्द हो जाना आदि।

*वात से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार*

*आहार चिकित्सा*

वात से पीड़ित रोगी को अपने भोजन में रेशेदार भोजन (बिना पकाया हुआ भोजन) फल, सलाद तथा पत्तेदार सब्जियों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।

मुनक्का अंजीर, बेर, अदरक, तुलसी, गाजर, सोयाबीन, सौंफ तथा छोटी इलायची का भोजन में अधिक उपयोग करना चाहिए जिसके फलस्वरूप रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में लहसुन की 2-4 कलियां खानी चाहिए तथा अपने भोजन में मक्खन का उपयोग करना चाहिए इसके फलस्वरूप वात रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

*उपवास*

वात रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले कुछ दिनों तक सब्जियों या फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए तथा इसके बाद अन्य चिकित्सा करनी चाहिए।

"🙏🏻करें योग, रहें निरोग "🙏🏻

10/09/2024

*🌹होममेड ग्रीन टी / हर्बल टी 🌹*

यक़ीन करे, घर मेँ बनी ग्रीन टी, बहुत सस्ती, बढ़िया व रियल भी होती हेँ ___. बनाये और पिये___

100 ग्राम तुलसी पत्ता, धोकर छाँव मेँ या माइक्रोवेव मेँ सुखा ले,

100ग्राम हरी इलायची के दाने निकाल ले___ और अगर चाहे तो, छिलके सहित भी पीस सकते हेँ,

और 5 ग्राम मुलेठी कूट ले या पाऊडर ले ले.

अब इन तीनो को मिक्सी मेँ ग्राइंड कर ले___ और एक एयरटाइट डब्बे मेँ रख ले___ हो गयी ग्रीन टी तैयार ___ जब पीनी हो, 2 कप पानी मेँ, आधा चम्मच टी डालिये ___. अच्छे से ऊबालिये, और छान कर पीजीए ।

सुबह पीजिए या रात को सोते____ होममेड ग्रीन टी का फ़ायदा ही फ़ायदा हेँ____

# अगर कभी मन लेमन टी पीने का करे, तो इस चाय को छान कर, उसमे थोड़ा सा नीम्बू का रस निचोड़ ले___
# # और अगर जिंजर टी पीने का मन हो, तो चाय उबालते वक्त, एक छोटा सूँठ पाउडर ही डाल दे___

*🍁 घर में हर्बल टी बनाने का तरीका : -*

आज के समय में, भारी संख्या में ऐसे लोग मौजूद हैं जो बढ़ते वजन से परेशान हैं___ भागदौड़ भरी जिंदगी, अनियमित खानपान और तनाव भरे जीवन के चलते, लोगों में वजन बढ़ना आम बात हो गई है___ लोगों का लाइफस्टाइल ऐसे है, कि वजन घटाने के लिए उन्हें सिर्फ जिम का एकमात्र सहारा दिखता है___ जबकि ऐसा नहीं है___ ऐसे घरेलू नुस्खे भी हैं, जिनकी मदद से आसानी से वजन घटा सकते हैं___

पेट की चर्बी कम करने, और वजन घटाने के लिए ग्रीन टी सबसे आसान और जबरदस्त उपाय है___ जो महिलाएं शादी के बाद घर पर ही रहती हैं, और पहले जैसा आकर्षक फिगर खो बैठी हैं, ये ग्रीन टी उनके लिए और भी बेहतर विकल्प है___ इस ग्रीन के सेवन का सबसे अच्छा फायदा ये है, कि अगर इससे कोई फायदा नहीं तो नुकसान भी नहीं होगा___ इस ग्रीन टी को बनाने के लिए, जिन सामान की जरूरत होगी वो लगभग सभी घर में होंगे___ बनाएं, घर में हर्बल ग्रीन टी :

🍁 पुदीने के कुछ पत्ते साफ कर के धो लें___ अब इन पत्तों को पानी में उबालें और पानी को ठण्डा कर पी लें___ पुदीने में खासा मैंथाल होता है जो फैट सैल्स को कम करने में मदद करता है___

🍁 लगभग 1 चम्मच जीरे को पानी में उबालें और गुनगुना होने के बाद, पी लें___ ग्रीन टी की तरह बना ये मिश्रण, चर्बी को कुछ ही दिनों में पूरी तरह से बर्न कर देता है___ अच्छे टेस्ट के लिए, इसमें नींबू का रस भी मिला सकते हैं___

🍁 दालचीनी में पाॅलीफेनाल्ज पाए जाते है, जो कैलोरी बर्न करने में काफी मददगार साबित होते है___ इसकी चाय बनाने के लिए, गर्म पानी में दालचीनी का पाउडर, चाय की पत्ती और दूध डालकर 5 मिनट तक उबालें और फिर छानकर पीएं___ वजन घटाने का ये बहुत आसान और कारगार नुस्खा है___

🍁 एक बर्तन में पानी उबालें और उसमें लगभग 5 पत्ते तुलसी के, डाल दें___. ठण्डा होने के बाद, इस मिश्रण को पीएं, लाभ मिलेगा___

🍁 काली मिर्च को गर्म पानी में 5 मिनट तक उबालकर और छानकर थोड़ा गुनगुना रहने पर पीएं___. इसमें मौजूद पाइपेरीन फैट बर्न करने में मदद करता है___
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀

06/09/2024

*सूतशेखर रस ( साधारण )➠*

❛❛आज के ➛आधुनिक और दौड़ धूप भरी ➛व्यस्त जिंदगी में , हमारा रहन–सहन–खान-पान अवश्य प्रभावित है । _*इसी कारण से – पाचन विकार , अम्ल पित्त , वमन , मंदाग्नी , आमाशय में शोध, आमाशय में शूल होना, वात के कारण – शिर:शूल वगैरा, अनेक उपद्रव के कारण– स्वस्थ व्यक्ति भी, रोगी बना हुआ है ।*_ इस अवस्था में- सभी चिकित्सक , भिन्न-भिन्न – मिश्रण के साथ , प्रयोग करते हैं । ❜❜

╰┈➤इस विषय पर➛मेरे कुछ अनुभव , लिखने का एक प्रयास है ।╰┈➤

*❥घटक ➳* शुद्ध पारद + शुद्ध गंधक + रौप्य भस्म + सोंठ + काली मिर्च + पीपल + शुद्ध धतूरा बीज + शुद्ध टंकण + ताम्र भस्म + दालचीनी + तेजपान + छोटी इलायची के बीज + नागकेसर + शंख भस्म + बेलगिरी + कचूर तथा भृंगराज के रस की *➛21 भावना देकर*, दो-दो रत्ती की गोली का निर्माण ।

*➥मात्रा ▶︎* दो-दो गोली ➛सुबह शाम या भोजन के एक घण्टा पूर्व ।

*➥अम्लपित्त की सभी अवस्था में➛* सूतशेखर रस – दो रत्ती, कामदुधा रस – दो रत्ती, शंख भस्म – दो रत्ती, नारिकेल लवण – दो रत्ती...यह एक मात्रा है ,सोफ अर्क से – दिया जा सकता है – *शीघ्र ही लाभ होना आरम्भ हो जाता है*, दिन में दो–तीन बार ।

*➥वमन – पित्त की उग्रता के कारण ➛* सुतशेखर रस, जवाहर मोहरा...संमभाग मिलाकर, दिन में – चार–पांच बार,दिया जा सकता है ।

*➥वातज शिर:शुल ➛* पेट की खराबी के कारण , वात की उग्रता बढ़कर, शिर:शूल होता है ➥ सूतसेकर रस , गोदन्ती भस्म , कपर्द भस्म...सभी संमभाग मिलाकर , मात्रा 1 ग्राम तक, दिन में दो-तीन बार।

*➥चक्कर आना ➛भ्रम ➥* सूतसेखर रस ➛ तीन-चार रत्ती, स्वर्णमाक्षिक भस्म➛तीन-चार रत्ती...शहद से , दिन में तीन चार बार।

*➥कास(खाँसी) की अवस्था में➛* सूतशेखर रस ➛ दो-तीन रत्ती, सितोफला ➛चार रत्ती , मलाई मे – मिश्री मिलाकर ।

*➥अमाशय दाह➛* सूतशेखर रस , गिलोय सत्त या इसी में प्रवाल पिष्टी मिलाकर , भोजन के एक घंटा पूर्व देने से, आमाशय का पित्त–नीचे चला जाता है । *इससे बुखार की स्थिति भी, सामान्य होना–आरंभ हो जाती है ।*

☛या सुतशेखर रस को ➛ सामान्य अवस्था में, अकेले ही- प्रयोग किया जा सकता है; मात्रा ➛दो-तीन गोली–भोजन के एक घंटा पूर्व ।

_*❛❛ मित्रों➛चिकित्सा वर्ग हेतु , सूतशेकर रस महत्वपूर्ण योग है , अवश्य अपने चिकित्सा में , शामिल करने का प्रयास करें। ❜❜*_

06/09/2024

सभी स्नेहिल मित्रो को सादर नमन
आज आयुर्वेद से सम्बंधित कुछ भिन्न लिख रहा हु
लेखन शैली सरल रखने का प्रयास करूंगा ताकि जो मैं लिखना चाह रहा हु वही सहज समझ आ जाये फिर भी शंका लगे तो पूछ सकते है
आयुर्वेद में दो सामग्री प्रकृति प्रदत्त होकर भी हमे कुछ परिश्रम करके मार्जन परिमार्जन और परिवर्तन करके प्राप्त होती है
जिसमे से एक है शहद और दूसरा है घी
विडम्बना ये है कि आज दोनो ही आयुर्वेद के अनुरुप सुद्ध नही मिल रहे
फिर भी प्रयास रहेगा कि इनकी भ्रांतियां दूर की जा सके
दोस्तों प्रथम बात यह है कि शहद जिसे हम प्राकृतिक मानते है पर यह प्राकृतिक होता नही बस शहद के गुण प्रकृति प्रदत्त होते है इसलिये हम इसे प्राकृतिक मानते है जबकि शहद मक्खी का उच्छिष्ट मात्र वह रस है जो पराग कणों को संकलित करके अपने मुख में रहकर मक्खी छत्ते के कोष्ठक को पूरित करती है
यह तो हुई रचना और निर्माण तथा प्रकृति प्रदत्त होने की बात
अब बात यह है कि
शहद असली है फिर भी प्रभाव हीन क्यो
कई बार देखते है कि छत्ते से निकाला शहद भी अपना गुणधर्म नही प्रकट करता
इसका कारण जो ध्यान देने योग्य है वो ये है कि इसका रख रखाव और शहद को आहार में प्रयोग करते समय अनुपान और मिश्रित औषधि के संयोजन में होने वाली हमारी त्रुटियां है जो शहद के गुणधर्म का प्रभाव शरीर मे परिलक्षित नही होने देता
कारण शहद के लिए दो बातों की विशेष सावधानी रखनी होती है
पहली सावधानी की बात शहद रखने का पात्र केवल और केवल मिट्टी या कांच के पात्र होना चाहिए अन्य किसी भी पात्र में रखने पर शहद के गुणधर्म क्षय होते है
दूसरी सावधानी की बात शहद को कभी भी उष्ण किरणें स्पर्श न करें या शहद पात्र भी अनवरत दो मुहूर्त तक यानी 48 मिनिट तक उष्ण किरणों के प्रभाव में न रहे
चाहे वह उष्ण किरणें सूर्य की हो या अग्नि की लपटें हो या जल की वाष्प हो
यदि उपरोक्त तीनो में से कोई एक असावधानी हुई तो शहद के गुणधर्म स्वतः ही क्षय हो जाएंगे बस दिखने में और स्वाद में शहद है पर गुणहीन
इसलिये शहद को औषधि के रूप में लेते समय ध्यान रखे कि सामान्य से अधिक तापमान के साथ मिश्रण न करें
हमारे सनातन वैदिक ग्रन्थों में कहीं भी उल्लेख नही है
आजकल बहुत से लोग शहद को निम्बू गर्म पानी मे मिक्स करके लेते है
जिससे उनका पाचनतन्त्र और नाड़ी तन्त्र दोनो विकृत हो जाते है जिसका कोई उपचार भी सहज नही है
मर्म समझना मेरे दोस्तों
शहद का उपद्रव कभी न समझ आ सकता है और न उसका कोई उपचार है
इसलिये शहद को लेने से पूर्व सावधानी अवश्य रखे ताकि उसका लाभ ही मिले
दूसरी महत्वपूर्ण बात आजकल जो बाजार में शहद जैसा मिलता है वह शहद नही है क्योंकि कम्पनियां जो भी शहद जैसा बनाती है उसको पेकिंग करती है तो उनका पेकिंग का प्रॉसिजर सरकारी नियमानुसार शहद को उष्ण ताप देकर फिर उसमें सुरक्षात्मक रसायन का समिश्रण करके ही पैक करती है यही सरकारी आदेश वर्तमान में सभी कम्पनियो के लिए अनिवार्य है
इसलिये शहद का प्रयोग करने से पहले उसके उपयोग विधि और सावधानियों का विशेष ध्यान रखे!अन्यथा लाभ तो दूर की बात एक बार प्रयोग करने के बाद अन्य औषधि भी उस उपचार में सहज प्रभावी नही रहती
लेख मेरा मौलिक एवं अनुभव जन्य है किसी तरह की उचित शंका हो तो अवश्य बताये अनुभव द्वारा समाधान बता सकू

05/09/2024

*अजिर्ण कंटक रस―( सि०यो०सं० )➠*

❛❛मित्रों–हमारे आयुर्वेद की चिकित्सा मे, *प्रथम–पाचन विकार सुधार से ही, आरंभ होती है ।* कारण आप सबको विदित है की – *पाचन विकार ठीक करने से ही , आपकी अन्य दवा की – सक्रियता बढ़ जाती है* और दवाई भी, कम मात्रा में , व्यवहार से–रोगी जल्दी स्वस्थ हो जाता है।❜❜

➥ *चिकित्सा योग घटक➠*

✦सुहागा की खिल✦पीपल✦शुद्ध वत्सनाभ✦शुद्ध हिंगुल सभी―10-10 ग्राम, ✦काली मिर्च 20 ग्राम, सबको पीसकर―जम्भीरी नींबू के रस में, घोट पीसकर– गोली बनाने लायक होने पर,एक एक रत्ती की गोली ।

➥ *गुणधर्म➠*
अजीर्ण ,मंदाग्नी एवं उदर शुल की यह अच्छी और अनुभूत दवा है ।

➥ *मात्रा➠* एक रत्ती से दो रत्ती तक , गर्म जल से ।
_*विशुचिका की – प्रारंभिक अवस्था में , प्याज के रस के साथ – देने से, सुंदर परिणाम - देखे जाते हैं। पाचन की कमजोरी में – शरीर की पाचन क्रिया, को बढ़ जाती है तथा अजीर्ण – होना ठीक होता है । पेट दर्द – किसी भी कारण से हो , ठीक होना – आरंभ हो जाता है।*_

03/09/2024

*●●माइग्रेन●●*
माइग्रेन के दर्द से छुटकारा पाने के लिये 10 रामबाण घरेलू नुस्खे और उपाय
माइग्रेन सिर दर्द का रोग है जो सिर के आधे हिस्से में होता है, इसलिए इस बीमारी को आधा सीसी के दर्द से भी जानते है।
माइग्रेन का दर्द कोई आम सिरदर्द नहीं बल्कि ये दर्द सिर के किसी भी एक भाग में बहुत तेज होता है जो इतना पीड़ा देने वाला होता है कि मरीज ना तो चैन से सो पता है और न ही आराम से बैठ पता है।
सिरदर्द होने के बाद जब उल्टी भी आने लगे तब ये और भी भयानक बन जाता है।
कुछ घंटो से कुछ दिनों तक माइग्रेन का दर्द रह सकता है।
इस रोग में सिर के नीचे वाली धमनी बड़ी होने लगती है और सिर दर्द वाले भाग में सूजन भी आ जाती है।
आधा सीसी के दर्द के उपचार में कभी लापरवाही नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये रोग लकवा और ब्रेन हैमरेज जैसी बीमारियों की वजह भी बन सकता है।

*माइग्रेन दर्द के कारण:*
सही तरीके से अभी तक माइग्रेन के कारणों का पता नहीं लगा है पर सिर में दर्द के दौरों को पहचान कर इस समस्या का आना कम कर सकते है।

● हाई ब्लड प्रेशर

● जादा तनाव लेना

● नींद पूरी ना होना

● दर्द निवारक दवाओं के अधिक सेवन से।

● मौसम में बदलाव से भी कई बार माइग्रेन हो जाता है।

*माइग्रेन के लक्षण
● आँखो में दर्द होना या धुंधला दिखाई देना।

● पूरे सिर या फिर आधे सिर में काफी तेज दर्द होना।

● तेज आवाज़ और अधिक रोशनी से घबराहट महसूस होना।

● उल्टी आना, जी मचलना और किसी भी काम में मन ना लगना।

● भूख कम लगना, पसीना अधिक आना और कमज़ोरी महसूस करना।

आधा सिर दर्द होने के साथ अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई दे तो आप डॉक्टर से जाँच ज़रूर करवाये।

*माइग्रेन का इलाज के घरेलू नुस्खे और उपाय*

● सिर दर्द जब इतना तेज हो जाए की किसी मेडिसिन से भी आराम न मिले, ऐसे में घरेलू नुस्खे प्रयोग करके माइग्रेन के दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है।

(1). हर रोज दिन में 2 बार गाय के देसी घी की दो–दो बूँदें नाक में डालें। इससे माइग्रेन में आराम मिलता है।

(2). तेल को हल्का गर्म कर ले और माइग्रेन का दर्द सिर के जिस हिस्से में हो वहां पर हल्के हाथों से मालिश करवाये। चम्पी (हेड मसाज) के साथ साथ कंधो, गर्दन, पैरों और हाथों की भी मालिश करे।

(3). सुबह खाली पेट सेब खाये। माइग्रेन से छुटकारा पाने में ये उपाय काफी असरदार है।

(4). माइग्रेन अटैक आने पर मरीज को बेड पर लेट दे और उसके सिर को बेड के नीचे की और लटका दे। सिर के जिस भाग में दर्द है अब उस तरफ की नाक में कुछ बूंदे सरसों के तेल की डाले और रोगी को ज़ोर से सांसों को उपर की और खींचने को कहें। इस घरेलू उपाय को करने पर कुछ ही देर में सिर दर्द कम होने लगेगा।

(5). घी और कपूर का इस्तेमाल करे। थोड़ा सा कपूर गाय के देसी घी में मिलाकर सिर पर हल्की हल्की मालिश करने पर सिरदर्द से आराम मिलता है।

(6). माइग्रेन के इलाज में कुछ लोगों को ठंडी चीज़ से आराम मिलता है और कुछ को गरम से। अगर आपको गरम से आराम मिलता है है तो गरम पानी प्रयोग करे और अगर ठंडे से आराम मिलता है तो ठंडे पानी में तोलिये को भिगो कर कुछ देर दर्द वाले भाग पर रखे। कुछ देर में ही माइग्रेन से राहत मिलने लगेगी।

(7). नींबू के छिलके पीस कर पैस्ट बना ले और इसे माथे पर लगाए। इस उपाय से भी आधा सीसी सिर दर्द की समस्या से जल्दी निजात मिलती है।

(8). बंदगोभी की पत्तियां पीसकर उसका पेस्ट माथे पर लगाने से भी आराम मिलता है।

(9). माइग्रेन की बीमारी में पानी जादा पिए। आप चाय का सेवन भी कर सकते है।

(10). जब भी माइग्रेन हो आप किसी खाली रूम में बेड पर लेट जाए और सोने का प्रयास करे।

*जाने गर्दन दर्द का इलाज के घरेलू टिप्स*

*आधा सीसी सिर दर्द का उपचार
■ माइग्रेन के ट्रीटमेंट में पालक और गाजर का जूस पीना काफ़ी फायदेमंद होता है।
● 1 गिलास गाजर के जूस में 1 गिलास पालक का जूस मिलाये और पिये।

■ अधिक तनाव लेने से माइग्रेन दर्द का अटैक पड़ सकता है इसलिए कभी भी ज्यादा टेंशन ना ले। हर रोज प्राणायाम और योगा से खुद को तनाव मुक्त करने का प्रयास करे।

02/09/2024

*जब तक हम क्या करे , और कैसे सही करे पूछेंगे तब तक दवा खाते रहेंगे जब कारण को जानकर उसको हटाने के लिए *क्यों * पूछेंगे और जीवन में लागू करेंगे तो समस्याओं से छुटकारा पाना शुरू करेंगे।*

*ऊर्जा अगर मूलाधार और स्वाधिष्ठान पर ही रहेगी (हमेशा डर, मोह, अहंकार, क्रोध , जलन में फसे है) मणिपुर चक्र(नाभि तक) तक अच्छे से नही पहुंचेगी तो पाचन से जुड़ी समस्या शुरू हो जाएगी।*
*और हड्डियों से जुड़ी समस्या भी शुरू हो जाएगी जल चक्र यानी स्वाधिष्ठान बिगड़ा रहेगा तो मल, मूत्र, वीर्य, रज से जुड़ी समस्या होगी ।*

02/09/2024

*✍️✍️ मन के अजीब खेल:~*

*जीवन के हर पहलू पर या लोगो पर शक करना मन का सबसे बड़ा काम है मन जो लोगो पर अपनो पर शक करता है इससे स्वास्थ्य, रिश्ते, धन , समय सब खराब होता है ।*

*जब जब शक बढ़ता जाता है ये पाचन को disturb कर देगा शरीर में हमेशा कमजोरी/ जलन और क्रोध हमेशा बना रहेगा।*

*मन एक जगह स्थिर नहीं रहेगा वो सारे रास्ते खोजेगा जिससे वो अपने आपको (शक)सही कर सके ।*

*और धीरे धीरे ये आदत बन जाता है जिससे आय दिन हमारे लड़ाई होती है क्लेश होता है ।*

*जब भी आपका मन शक करता है यानी वो कभी अपने शरीर में नही रहेगा वो past की घटनाओं को उठाएगा और उसमे से सामने वाले की कमजोरी निकाल कर अपने शक को सही साबित करना चाहेगा या वो फ्यूचर के बारे में पहले ही गलत गलत चीजे सोचेगा।*

*जब भी मन किसी पर शक करे पहले हम इसी पर शक करे क्या सोचवा रहा है और ये समझे की हम मन नही ।*

*जितना ज्यादा इसके कार्यविधि को समझेंगे आप इस मचलते हुए मन को देखने लगेंगे।*

*जब भी मन शरीर में स्थिर नहीं रहेगा ज्यादा सोचेगा इसका असर आपके प्रणामय कोश यानी सांसों पर पड़ने लगेगा सासो को दर बदल जाएगी ।*

*इसका असर अन्नमय कोश यानी शरीर पर पड़ेगा और धीरे धीरे बीमार पड़ने लगेगा।*

🙏🙏🙏

02/09/2024

*✍️✍️प्राण एवं मन का सम्बन्ध*:~

*प्राण एवं मन का संबंध घनिष्ठ है परस्पर। क्योंकि हठप्रदीपिका में कहा है*
*'चले वातं चले चिन्त निश्चले निश्चलं भवेत्।*
*अर्थात् जब तक वायु चलती है तब तक मन भी अस्थिर रहता है तथा जब वायु अर्थात् प्राण स्थिर हो जाता है तब मन अपने-आप स्थिर हो जाता है। प्राण पर या श्वास-प्रश्वास पर जब हम एकाग्रता का अभ्यास करते हैं तो मन स्थिर हो जाता है। अन्य समय में, अर्थात् जब हम एकाग्रता का अभ्यास नहीं करते उस समय मन उत्प्रेरणा और मनोरंजन की खोज में एक से दूसरे पर, पुनः तीसरे, चौथे, पाँचवे, छठे आदि विषयों पर भटकता रहता है। इस प्रकार मानसिक क्षमतायें व शक्तियाँ बिखरी हुई अवस्था में रहती हैं, मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार बिखरे हुए रहते हैं। प्राण पर नियन्त्रण इन चार मानसिक उपखण्डों के बिखराव को रोकता है।*

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