Pujya Chari Ji Yog Evam Prakritik Swasthya Sansthan

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26/06/2025

#खरल का आयुर्वेदिक औषधि बनाने में एक महत्वपूर्ण योगदान रहता है। पारद पर कार्य करते समय ये बात हमेशा दिमाग में आती है, कि खरल किस पत्थर की होनी चाहिये। कई प्रकार के पत्थर के खरलों में रस शास्त्रों में वर्णन मिलता है। आमतौर से लोगों के पास एक ही खरल होता है। इससे वो सभी कार्य कर लेते है, या फिर तामड़ा, कसौटी की खरलें ज्यादा प्रचलित हैं। वर्तमान समय में सही पत्थर की सही खरले मिल भी नहीं पाती है। खरल प्रयोग करते समय निम्न बातों पर जरूर गौर करें । यदि बाजार से खरीदे तो वो कच्चे पत्थर की नहीं होनी चाहिये । इसकी सीधी परख है, खरल को रात भर के लिये नीबू का रस भर कर छोड़ दे । यदि पत्थर घुलता है, तो वो काम की नहीं ।

१. मार्वल पत्थर की खरल कभी प्रयोग न करें ।

२. #कोटा_स्टोन_खरल - चित्तौड़ के आसपास मिलने वाला पत्थर, या फिर मोती चूर, इसमें सफेद दाने होते हैं, ये खरल कच्चे पत्थर की होती है, इनका कभी उपयोग न करें ।

३. #कसौटी_पत्थर_खरल - ये काले पत्थर की खरल होती है, जिस पत्थर पर स्वर्ण की जांच की जाती है । ये खरल धातु को तेजी से पकड़ती है, पारद इसमें तेजी से पिष्ट हो जाता है । पारद पिष्टीकरण के लिये ये खरल सबसे श्रेष्ठ है । इस खरल में लम्बे समय तक पारद या अन्य कुछ भी मर्दन नहीं किया जा सकता है, ये पत्थर जल्दी कट जाता है । आज इस पत्थर की खरल मुश्किल से मिलती है । यदि पूरी खरल न मिले, तो ग्रेनाईट की खरल की तली काट कर तली इसकी भी बनाई जा सकती है ।

४. #तामड़ा_पत्थर_खरल - ये खरल जयपुर में मिल जाती है । लेकिन इसमें भी ऐक कच्चा पत्थर भी आता है । गया जी में बनी तामड़े की खरले सबसे अच्छी होती हैं । यदि आप खुद जाकर बनवायेंगे तो बहुत सस्ती पड़ेगी । और अच्छी चीज भी मिल जायेगी । कसौटी की खरल भी यहां मिल जाती है । ये खरल भी सिर्फ पिष्टी बनाने के लिये ही श्रेष्ठ है । अन्य कार्यों में ठीक नहीं, ज्यादा समय मर्दन से पत्थर कटता है ।

५. #ग्रेनाईट_पत्थर_खरल - ये पारे के बहुत लम्बे समय तक मर्दन करना हो तो सबसे श्रेष्ठ खरल यही है । चित्तौड़ या उदयपुर क्षेत्र से इसे बनवा ले, सस्ती पड़ेगी । काला ग्रेनाईट बैंगलोर, हैदराबाद क्षेत्र से आता है, लाल ग्रेनाईट इसी क्षेत्र में मिल जाता है । लाल ग्रेनाईट को #लाखा_पत्थर भी कहते हैं । इसे यहां कोई भी काटता नहीं है, ये हार्डेस्ट पत्थर होता है । ये भी आप खुद बनवाये तो सस्ती पड़ेगी । ये दोनों पत्थर बिल्कुल नहीं घिसते ये मेरा अनुभव है।

६. #लकड़ी_की_खरल - बबूल या नीम की लकड़ी की खरल बना सकते हैं। दो अलग दृव्यों का जब उपयोग करना हो तब ये अच्छा काम करती है, खरल अन्य लकड़ी की, रस अन्य। पारद के जब कुछ खास संस्कार भी इसी खरल में किये जाते हैं। लकड़ी की खरलें आमतौर से चिटक जाती हैं। सूखी लकड़ी से ही बनवाना चाहिये।

७. #सिरेमिक_की_खरलें: ये ज्यादा घिसती नहीं है, इसे किसी भी जगह उपयोग में लाया जा सकता है। लेकिन पारद कर्म में इसे ड्राई खरल माना जाता है । इसमें द्रावड होता नहीं है । ये खरल बांझ स्त्री के समान होती है, जो पारद कर्म में गुणहीन है । लेकिन औषधिय कर्म में श्रेष्ठ खरल है। पारद भी इसमें मिक्स कर सकते हैं। लेकिन ये खरल वहां ज्यादा प्रभावी होती है, जहां खरल का रोल पारद कर्म में कम हो। ग्रेनाईट की जगह भी इसे प्रयोग कर सकते हैं। ये पारद कर्म में अपना कोई सहयोग नहीं देती है । यही इसकी खास बात है, यही इसकी कमी भी है ।

८. #तीक्ष्ण_लोह - ये खरले आम तौर से मिल जाती है । पारद के रंजन कर्म में बहुत उपयोगी होती है। पारे के रंगने के काम में तीक्ष्ण लोह, लाल सेंधव ३, गंधक, हरताल आदि बहुत ही उपयोगी होते हैं । मैं इस कार्य के लिये जहाजों के स्क्रेप की भस्म बनाने के भी प्रयोग करता हूं , ये बहुत ही प्रभावी होती है । इसे भंगार खार भी कहा जाता है । तप्त खरल में भी इसका प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में जब हीमोग्लोबिन या रक्त संबन्धी औषधियों का निर्माण करना हो तो इसी का प्रयोग करते हैं।

९. #कांत_लोह : इस खरल को लोग ढूढ़ते रहते हैं, शास्त्रोक्त जो भी गुण धर्म कहे गये हैं, नीम की कड़वाहट को समाप्त कर दे, दूध गर्म करने पर न उफने आदि । पुराने समय में घरों में कढ़ाईयां आती थी वो इसी लोहे की होती थी । दूध को इसमें गर्म करने से मिठास आ जाती थी । अब भी नहीं मिलती हैं । यदि मिल जाये तो खुद ही ढलवा ले । पारद बंधन कर्म में ये श्रेष्ठ होती है । लेकिन इस खरल की ज्यादा उपयोगिता पारे के १२ वें संस्कार के बाद यदि २० संस्कार तक जाते हैं, तो ज्यादा पड़ती है। जो लोग भी पारे के जारण संस्कार से ऊपर के संस्कारों में गये होंगे, उन्हें ज्ञात होगा, कि यहां पारा थोड़ा ताप देने से ही भस्म हो जाता है । और आगे के संस्कार नहीं हो पाते हैं । यहां पर पारे को हर जगह ताप देना होता है । यहां पारे को पारा बनाये रखने के लिये प्रयोग किया जाता है । वर्तमान समय में black steel ये बाजार में बहुत मिल जाता है, इसकी खरल भी बनवा सकते हैं, ये समान प्रभावी है।

१०. तीक्ष्ण और कांत लोह की खरलें धातु कीमिया कर्म में ज्यादा उपयोगी होती हैं, लेकिन इनका हर जगह प्रयोग नहीं कर सकते हैं नहीं तो पारा बिगड़ जायेगा। कई बार जो खरल है, उसी को प्रयोग कर लिया जाता है, जो सही नहीं है ।

११. पुरानी खरलों को लेकर एक धारणा होती है, कि ये १०० साल या फिर ५० साल पुरानी है, तो बहुत अच्छी है । ये गलत है । मेरे पास १०० से ज्यादा खरलें कबाड़े में पड़ी होगीं । २५००० हजार की खरलें, ऐक बार भी उपयोग नहीं हुई । जालौर राजस्थान से खरल बनकर आई २५००० रु. में, नीबू का रस डाला, आधा घंटे में सफेद रंग छोड़ दिया । आज भी कबाड़े में पड़ी है । ये कभी उपयोग न होने वाली खरल है । ये १०० साल के बाद भी ऐसी ही मिलेंगी। तो जो पुरानी खरले नई जैसी दिखती है, वो उस समय उपयोग नही होती थी। पुरानी खरलों को लेकर भी अपनी धारणा बदले लें । इंदौर की एक फार्मेसी पर मैंने ऐक खरल रखी देखी , ५० साल से ज्यादा पुरानी, कीमत ६००००/ - साठ हजार । पास देखा तो पता चला कि ये तो चित्तौड़ के आसपास मिलने वाला पत्थर है , फ्री में भी महंगी। खरल खरीदते समय धोखा न खायें।

#नोट - आयुर्वेद की खरलों में कोई ज्यादा भेद नहीं मिलेगा। लेकिन रस शास्त्र में अलग अलग पत्थर या लोह की खरलों का प्रयोग का अपना अलग-अलग महत्व है, जिसको नजर अंदाज नहीं कर सकते है। पारे पर काम करते समय ध्यान रखना चाहिये । पारे को वीर्यहीन न बनायें, वीर्यवान पारा ही चाहिये। इसे क्रियाशील पारा भी कहा जाता है। सिरेमिक की खरल भी वही सब कार्य कर देगी जो अन्य खरल करेगी, लेकिन ये पारा वीर्य हीन होगा। ग्रेनाईट का भी यही हिसाब है। पारे में कब कहां, किस मात्रा में कौन से गुण देने हैं ये कार्य करते हुये ही पूरे होने चाहिये। पारे को अलग से कुछ नहीं कर सकते है । आपको मालूम होना चाहिये, स्वर्ण जारना, अभ्रक जारण सही खरलों के बिना संभव नहीं हो सकती है ।

सबसे ज्यादा महत्व पूर्ण पारा गुणहीन होता है, लेकिन वो किसी अन्य के गुण को अपने अंदर तेजी से स्थाई तौर से स्थिर कर लेता है । पारा एक ही है, उसी से दस्त बंद करने की औषधि उसी से दस्त लगाने की औषधि । पारा योगवाही भी होता है । लेकिन उसके साथ आप बलपूर्वक नहीं कर सकते हैं । पारे को जब जो जितनी मात्रा में चाहिये, वो अपनी ही परिस्थियों के साथ कार्य कर सकता है, कृत्रिम परिस्थितियों से बचें। यदि कोई कार्य धूप में हो सकता है, तो बंद कमरे में पारे को गर्म करने से बचे। पारे के साथ ज्यादा चालाकी काम नहीं आती है, बेहतर है, समझदारी का प्रयोग करे । इसकी व्याख्या मैं पीपल खार निर्माण में करूंगा, कि कृत्रिम परिस्थियां क्यों नहीं करनी चाहिये।

यह खरल और मूसल ' #हंसराज_पत्थर' से बना है। यह भारत में उपलब्ध सबसे कठिन पत्थरों में से एक है जो की दशकों से आयुर्वेदिक दवाएं बनाने के लिए एवं जड़ी-बूटियों को कूटने और पीसने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है।आयुर्वेद के उद्देश्य के लिए इस खरल का उपयोग करने से दवा की प्रभावशीलता बढ़ जाती है। जैसा कि आप इसकी आवाज सुन सकते हैं यह बहुत सुखदायक और मंत्रमुग्ध कर देने वाला है इसी बात से इस खरल की मजबूती का अनुमान लगाया जा सकता है।
लगातार लंबे समय तक इस्तेमाल करने पर भी यह पत्थर पाउडर नहीं छोड़ता है। इस पत्थर की खरल का उपयोग किसी भी प्रकार की दवा के लिए किया जा सकता है चाहे वह अम्लीय हो या क्षारीय।

खरल काई प्रकार के पत्थरों से बनायी जाती है;
तामड़ा पत्थर खरल/ हंसराज पत्थर खरल/ मगैछा पत्थर खरल/ उड़दिया पत्थर खरल/ कसौटी पत्थर खरल

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गुड़ के कुछ घरेलू उपयोग....

गन्ने के रस से गुड़ बनाया जाता है। गुड़ में सभी खनिज द्रव्य और क्षार सुरक्षित रहते हैं।

पुराना गुड़ हल्का तथा मीठा होता है। यह आंखों के रोग दूर करने वाला, भुख को बढ़ने वाला, पित्त को नष्ट करने वाला, शरीर में शक्ति को बढ़ाने वाला और वात रोग को नष्ट करने वाला तथा खून की खराबी को दूर करने वाला होता है।

अदरक के साथ गुड़ खाने से कफ खत्म होता है। हरड़ के साथ इसे खाने से पित्त दूर होता है तथा सोंठ के साथ गुड़ खाने से वात रोग नष्ट होता है।

1.10 ग्राम गुड़ को खाना खाने के बाद लेने से पेट में गैस बनने की समस्यां दूर हो जाती है।

2.गुड़ को पानी में डालकर काढ़ा बनाकर 7 दिनों तक सेवन करने से खून में उत्पन्न दोष दूर हो जाते हैं।

3.10 ग्राम पानी में 2 ग्राम गुड़ और 2 ग्राम शुंठी के चूर्ण को अच्छी तरह मिलाकर कान में बूंद-बूंद करके डालने से बहरापन में फायदा होता है ।

4.अगर बच्चे को जल्दी बढ़ाना हो, तो गु़ड़ और प्याज को मिलाकर कुछ दिन तक खिलायें।

5.लगभग 10 ग्राम गुड़ को और 5 ग्राम घी में मिलाकर सेवन करने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।

6.गुड़ के साथ अदरक का रस 1 चम्मच से 2 चम्मच की मात्रा में सेवन करें। इससे शीत-पित्त रोग ठीक हो जाता है।

7.सूखी खांसी वाले रोगी को 15 ग्राम गुड़ के साथ 15 ग्राम सरसों के तेल मिलाकर सेवन कराएं इससे सूखी खांसी ठीक हो जाती है।

8.गुड़ की शर्बत के साथ अर्जुन पेड़ की छाल का चूर्ण सेवन करने से जीर्ण बुखार में बहुत लाभ मिलता है।

9.रोज़ाना दिन में सुबह और शाम गुड के साथ लगभग 4 ग्राम सज्जीखार का 21 दिन तक सेवन करने से हिचकी आना बंद हो जाता है।

10.12 ग्राम गुड़ को 6 ग्राम घी के साथ मिलाकर सुबह सूर्योदय से पहले तथा रात को सोते समय खाएं। इससे मायग्रेन में लाभ मिलेगा।

गुड़ का अधिक मात्रा में सेवन करना गर्म प्रकृति वाले व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकता है।
Suhana Safar
Health Today

28/04/2025
23/04/2025

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