Shreyansh Homoeo Clinic

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साधो जग बौराणा, सांची कहूँ तो मारण धावे, झुंठे जग पतियाना, साधो जग बौराणा.
16/07/2023

साधो जग बौराणा,
सांची कहूँ तो मारण धावे,
झुंठे जग पतियाना,
साधो जग बौराणा.

10/07/2023

Cured case
Skin Allergy after Co-vid vaccination

09/07/2023

यौन रोग

जीवन ऊर्जा है. रोग भी ऊर्जा है. उसे ठीक करने के लिए ऊर्जा ही चाहिए. होमियोपैथिक औषधियाँ शक्तिकृत होती है. इनकी पोटेंसी को नियंत्रित किया जा सकता है. रोग की तीव्रता, उसकी प्रकृति, के अनुसार उचित शक्ति की औषधी देने से रोग जड़ से नष्ट होता है. फिर चाहे रोग का नाम कोई हो.
होमियोपैथी में व्यक्ति को केंद्र में रख कर औषधी का चयन किया जाता है.

डॉ. विनोद
होमियोपैथिक चिकित्सक
मो. 08504978108

*सुखी जीवन के लिए दो अतियों से बचना. ये दो विपरीत किनारे हैं. पहला, छः इंद्रियों के सुख में डूबे रहना और दूसरा, काया को ...
07/07/2023

*सुखी जीवन के लिए दो अतियों से बचना. ये दो विपरीत किनारे हैं. पहला, छः इंद्रियों के सुख में डूबे रहना और दूसरा, काया को अतिकष्ट देना. इसलिए मध्यम मार्ग पर चलना.*
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बुद्धत्व प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध सारनाथ में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को अपने पहले धम्म उपदेश में कहते हैं- भाईयों! धम्मपथ पर इन दो अतियों, अंतों (extremes) से बचना. इन दोनों का अंत दुखदायी है. मनुष्य के लिए कल्याणकारी नहीं है. सुख, शांति व निर्वाण का मार्ग नहीं है.
पहला- छः इंद्रियों (sense organs ) के अतिसुख में आकंठ डूबे रहना. आंख, कान, नाक, जीभ, त्वचा एवं मन का सुख. विषय वासना का सुख. जैसे किसी के रुप में मोहित होना, स्वयं की प्रशंसा सुनकर अतिप्रसन्न होना, सुगंध या भोजन के स्वाद से चिपके रहना और स्पर्श सुख में पागल हो जाना, पद- प्रतिष्ठा का अहंकार आदि.
दूसरा- कुछ पाने के लिए शरीर को घोर कष्ट देना. जैसे तप के लिए उल्टे लटकना, नंगे रहना, शरीर को बिंधना या व्रत उपवास में लंबे समय तक भूखे रहना, नंगे पांव लंबी पैदल यात्रा करना आदि.
भगवान बुद्ध कहते है, इन दोनों प्रकार की अतियों का मार्ग ज्ञान, ध्यान, सुख शांति व निर्वाण का मार्ग नहीं है.
इन दोनों के बीच का रास्ता मनुष्य के कल्याण व निर्वाण का मार्ग है. वह है तथागत का जाना हुआ- मध्यम मार्ग. middle path. (मज्झिम पटिपदा).अरिय अष्टांगिक मार्ग. शील, समाधि, प्रज्ञा का मार्ग. यह दुखों से मुक्ति, ज्ञान, शांति व आनंद का मार्ग है. यह बुद्ध के धम्म का मार्ग है जिसका केन्द्र बिन्दु है- मनुष्य और मनुष्य का कल्याण, वह भी इसी जीवन में.
मध्यम मार्ग कहता है वीणा के तार को इतना अधिक भी मत कसो कि सुर ही नहीं निकले, टूट जाए और इतना ढ़ीला भी मत रखो कि मधुर की बजाय बेसुरा सुर निकले. इसी प्रकार अपने मन को ध्यान साधना द्वारा मध्यम मार्ग पर रखो. संयमित रहो. काम, क्रोध, मोह, लोभ, घृणा, अहंकार जैसे विकारों से मुक्त करो. यही सुख का मार्ग है.
दरअसल तथागत बुद्ध ने इन दोनों अतियों को बहुत करीबी से देखा और भोगा था. राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में इंद्रियों का अतिसुख और गृहत्याग के बाद व बुद्धत्व से पहले एक सन्यासी के रूप में घोर तपस्या करते हुए शरीर को हद से ज्यादा कष्ट की अति. इसी अनुभव के बाद बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और मानव कल्याण के लिए मध्यम मार्ग को खोजा.

सबका मंगल हो..सभी प्राणी सुखी हो.

डॉ. विनोद
होमियोपैथिक चिकित्सक
मो.8504978108
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29/06/2023

हेयर फाल..?

होमियोपैथी में है ईलाज.

बाल झड़ना व समय से पहले सफेद होना आज एक बड़ी समस्या बनी हुई है. हर आयु के स्त्री, पुरुष में यह रोग ज्यादतर मिल रहा है. जिसके परिणाम स्वरूप गंजा पन एक ला इलाज बीमारी बनता जा रहा है.

इसके अलग अलग लक्षण है.

1. सिर मे स्पॉट मे बाल गिरना. इसमे पूरे सिर में बाल नहीं गिरते हैं केवल स्पॉट-पैचेज बन जाते हैं.
2. कंघी करने पर बाल झड़ना.
3. बाल धोने पर गुच्छे-गुच्छे झड़ना.
4. जड़ सहित झड़ना.
5. खुजाने पर.
6. सुबह जगने पर बिस्तर में बाल गिरना.
7. सिर में हाथ फेरते ही बाल हाथ में आ जाना.

कारण

1. शैंपू का अधिक उपयोग.
2. कॉस्मैटिक् ऑयल.
3. मानसिक तनाव
4. कोई लंबी बीमारी
5. वायु प्रदूषण
6. अनिद्रा
7. असंतुलित आहार
8. डाई व रंग करना

वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ना एक चिंता जनक स्थिति है. बालों के झाड़ने में यह भी एक कारण है.
किसी लंबी बीमारी के कारण जैसे टाईफाईड के बाद बाल सफेद होना व झड़ना. पुराना सिर दर्द के साथ बाल सफेद होना.

होमियोपैथिक समाधान

यह रोग के कारण का इलाज करती है. ऊपर बताये गये सभी कारणों के लिए इसमे दवाइयाँ हैं. इनका कोई साइड इफेक्ट्स नहीं होता है.

बिना चिकित्सकीय सलाह के कोई दवाई नहीं लेनी चाहिए.

डॉ. विनोद
होमियोपैथिक चिकित्सक
391 अपना घर शालीमार विस्तार गेट-3 अलवर, राजस्थान
मो.854978108

साइटिका का दर्दजीवन निरंतर गतिमान है. इस गति में एक लयबद्धता है. तारतम्यता है. संगीत है. आनंद है. तभी स्वास्थ्य है.स्वास...
17/06/2023

साइटिका का दर्द

जीवन निरंतर गतिमान है. इस गति में एक लयबद्धता है. तारतम्यता है. संगीत है. आनंद है. तभी स्वास्थ्य है.
स्वास्थ्य को खरीदा नहीं जा सकता. पाया नहीं जा सकता. स्वास्थ्य को जिया जा सकता है.स्वास्थ्य में हुआ जा सकता है. यह स्वभाव है. जो प्रकृति से मिलता है.
इस स्व से विचलन ही रोग है. जब किसी बाहिए या आंतरिक अवरोध के कारण जीवन की वह तारतम्यता और वह संगीत, वह लयबध्दता अपने मार्ग से विचलित हो जाती है. तब रोग उत्पन्न होता है. यह विचलन ही रोग है. जिसके परिणाम स्वरूप शरीर में मानसिक स्तर पर, बौद्धिक स्तर पर, शारीरिक स्तर पर लक्षण और संकेत उत्पन्न होते हैं. यही लक्षण व संकेत रोग को बयां करते हैं.
साइटिका भी उसी का ही परिणाम है. हमारे शरीर में सेंट्रल नर्वस सिस्टम और पेरीफेरी नर्वस सिस्टम यह दो प्रकार का नसों का जाल है. जिसके कारण हम भिन्न भिन्न प्रकार की क्रियाएं कर पाते हैं और ठंड, गरम, दर्द स्पर्श आदि संवेदना को समझ पाते हैं.
रीड की हड्डी से तंत्रिका निकलती है और पूरे शरीर के मोटर और सेंसरी फंक्शन को कंट्रोल करती है. जिनमें साइटिका नाम की भी एक नस होती है. जो सैक्रल वर्तिब्रा से निकल कर पांव की उंगलियों तक जाती है. जो हमारी टांगों की मांसपेशियों को ताकत देती है जिसके कारण हम चल फिर सकते हैं. जब किसी कारण से इस नस में कोई दबाव या खिंचाव हो जाए तो यह दर्द, साइटिका का दर्द कहलाता है.

साइटिका दर्द होने के संभावित कारण

० झटके से कोई वजन को उठाना.
० ऊंची-नीची सतह पर टांगो का संतुलन बिगड़ जाना.
० पीठ के बल गिरने से चोट लगना.
० व्यायाम करने पर नस में खिंचाव आना.
० कूल्हे में इंजेक्शन नस में लग जाना. जिसे सायटिक नर्व का पंचर कहा जाता है.
० गलत पोजीशन में सोना और बैठना जिससे निरंतर नस पर दबाव बने रहना.
० ओवरहीटिंग और ओवर कोल्ड.
० कोई ऑपरेशन का इतिहास होना
मुख्य रूप से यह प्रमुख कारण होते हैं.

लक्षण

साइटिका का दर्द हर व्यक्ति में अलग अलग तरीके से हो सकता है
किसी को केवल कमर में ही दर्द होता है. किसी को कमर और कूल्हे में दर्द होना. जांघ के पिछले हिस्से में दर्द होना. केवल पिंडलियों में ही दर्द होना और खिंचाव होना. एडी और तलवों में दर्द होना. कमर से लेकर और पांव के आखरी उंगली तक एक लाइन में धागा नुमा दर्द होना तेज खिंचाव होना.
यह दर्द एक खिंचाव के रूप में होता है किसी किसी रोगी में इस दर्द के साथ में नसों में जलन भी होती है और चटके के जैसा दर्द भी चलता है.
इस दर्द में चलना, उठना, बैठना, लेटना सब दुभर हो जाता है.

साइटिका का होमियोपैथिक उपचार

होम्योपैथी में रोग के नाम से औषधि का चयन नहीं होता है. लक्षणों की समग्रता पर औषधि का चयन किया जाता है जिससे रोग अपने मूल कारण से हटता है और स्वास्थ फलित होता है.
मेरे पास एक महिला आई. मेरे रूम में जैसे ही प्रवेश किया कुर्सी के पास आकर खड़ी हो गई. मैंने कहा बैठो, उन्होंने कहा बैठा नहीं जाता है. बैठने पर टांग में दर्द होता है. चलने फिरने से आराम मिलता है दर्द नहीं होता है. एक जगह लंबे समय तक खड़ी भी नहीं रह सकती मुझे बार-बार हिलना-डुलना पड़ता है. यह लक्षण होम्योपैथिक की रस टॉक्स नमक दवाई में प्रमुखता से पाया जाता है. जब मैंने यह औषधि उन महिला को दी और उसे लेकर जब वह 7 दिन के बाद लौट कर आई तो इस बार खड़े होकर नहीं कुर्सी पर बैठकर अपनी बात सुनाई. चेहरे पर खुशी थी, कि अब उनको दर्द नहीं रहा. अब बैठ सकती हैं. लंबे समय तक खड़े रहकर काम कर सकती हैं. और उनको दर्द नहीं होता है.
एक बारह-तेरह साल का बच्चा जिसे बुखार होता है और गांव में स्थानीय चिकित्सक को दिखाता है. उसे कुल्हे पर एक इंजेक्शन लगाया जाता है. इंजेक्शन लगने के बाद उसकी टांग काम करना बंद कर देती है और धीरे-धीरे पूरी टांग सूख जाती है जैसे लकवा आ गया हो. शहर के प्रमुख चिकित्सकों को दिखाने के बाद हताशा और निराशा लिए हुए घर लौट आते हैं.कि अब यह ठीक नहीं हो सकता. किसी से सुना और वह मेरे पास आए पूरा वृतांत सुनने और समझने के बाद उनको हाइपरिकम नामक औषधि दी गई. धीरे-धीरे टांग में जान आने लगी. वह बिना लाठी के चलने लगा और अब खूब दौड़ लगाता है. शादी हो गई है दो बच्चे हैं.
इस प्रकार हर रोगी के अलग-अलग लक्षण होते हैं.
एक दिन दाएं टांग में दर्द हुआ तो दूसरे दिन बाईं टांग में दर्द होगा. इसी प्रकार यह क्रम से होता है. लैक् कैनऔषधि का यह प्रमुख लक्षण है.
पैर की उंगली, तलवे और टकने से शुरू होकर ऊपर जांघ तक दर्द जाता है. लीडम पाल इसको ठीक करती है.
ठंडे पानी में भीगने से दर्द बढ़ जाना. लक्षण मैग्नीशियम फोस में पाया जाता है.
लेटने पर दर्द होना, चलने-फिरने से आराम मिलना. बादल होने पर बारिश होने पर दर्द का बढ़ जाना. किसी विशेष टाइम पर ही दर्द होना जैसे आधी रात और दोपहर को ही दर्द होता है. किसी को शाम को चार से आठ के बीच में ही दर्द होता है. इस प्रकार अलग-अलग लक्षण अलग-अलग औषधि को संकेतिक करते हैं. इन लक्षणों की समग्रता के आधार पर रोग को समझ कर उसकी जड़ मूल से चिकित्सा की जाती है. पीठ के बल गिर गए या फिर किसी वस्तु से चोट लगी जिसके कारण कमर में दर्द बना रहता है और यह नीचे पिंडलियों तक जाता है इस प्रकार के लक्षणों को अरनिका से ठीक किया जाता है.
यह इलाज पूर्णतः प्राकृतिक है प्रकृति के नियम अनुसार है और इनका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है तथा यह रोग को अल्प समय में शोम्य व पीड़ा रहित तरीके से चिकित्सा करती हैं.

डॉ. विनोद
होम्योपैथिक चिकित्सक
श्रेयांश होमियो क्लिनिक
391 अपना घर शालीमार विस्तार गेट नंबर 3 अलवर, राजस्थान.
मो. 0854978108

लू? हीट स्ट्रोकलू, लू लगना, हीट स्ट्रोक या सनस्ट्रोक को सामान्य भाषा में लू लगना कहते हैं. गर्मियों के मौसम में लू लगना ...
13/06/2023

लू?
हीट स्ट्रोक

लू, लू लगना, हीट स्ट्रोक या सनस्ट्रोक को सामान्य भाषा में लू लगना कहते हैं. गर्मियों के मौसम में लू लगना कोई बड़ी बात नहीं है. जब हम लंबे समय तक धूप में अधिक टेंपरेचर में रहते हैं या काम करते हैं और हमारा शरीर अपने तापमान को नियंत्रित नहीं कर पाता है उस अवस्था को लू लगना या सन स्टॉक कहते हैं.
हमारे यहां ऋतुऔं का एक चक्र है. जिसमें ग्रीष्म ऋतु की अपनी ही पहचान है. ग्लोबल वार्मिंग के दिन-प्रतिदिन बढ़ने के कारण हम भीषण गर्मी का अनुभव करते हैं. देश के बहुत से हिस्सों को भीषण गर्मी का प्रकोप सहन करना पड़ता है. और यह गर्मी हर साल अपना रिकॉर्ड तोड़ती है. चिलचिलाती धूप और गर्म हवाओं में लोगों का घर से निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे में घर से बाहर निकल कर काम करने वाले लोगों के लिए हीटस्ट्रोक यानी लू लगने जैसी समस्याओं का खतरा बना रहता है.
लू लगने पर हमारे शरीर का तापमान बहुत तेजी से बढ़ता है और पसीना आना भी बंद हो जाता है, जिससे शरीर की गर्मी निकल नहीं पाती है. ऐसे में हमारे शरीर में मिनरल्स खास करके नमक और पानी की कमी हो जाती है. पसीना आना डिफेंस मेकैनिज्म की एक प्रोटेक्टिव प्रक्रिया है. प्रकृति ने हमारे शरीर को हर तरह की परिस्थिति का सामना करने का सिस्टम दिया है. बहुत तेज गर्मी लगने पर अगर पसीना आ रहा है तो इसका अर्थ है कि हमारा शरीर स्वस्थ है और हमारे शरीर का जो कूलिंग सिस्टम है वह ठीक प्रकार से काम कर रहा है. पसीना आना बंद होना खतरनाक है. इसका अर्थ है कि इतनी तेज गर्मी हुई है कि शरीर का सारा पानी सूख गया है और डिहाइड्रेशन जैसे हालात पैदा हो गए. इस अवस्था में बेहोशी जैसी समस्याएं देखने को मिल सकती हैं. हीटस्ट्रोक में शरीर का तापमान 105-106 डिग्री से भी अधिक होता है. और शरीर के सेंट्रल नर्वस सिस्टम में जटिलताएं उत्पन्न होती हैं. यदि समय रहते इलाज नहीं किया जाता है, तो यह जानलेवा भी हो सकता है.

कैसे पता चलेगा कि लो लगी है?

1. उल्टी और उल्टी का मन होगा
2. तेज बुखार आएगा.
3. दस्त लग सकते हैं.
4. शरीर की चमड़ी पर सूखापन होगा और गर्माहट महसूस होगी व रंग लाल होगा.
5. बेहोशी मूर्छा जैसी स्थिति होगी अल्पकालीन स्मरण शक्ति की विस्मृति होगी.
6. सिर दर्द व चक्कर देखने को मिल सकते हैं.
7. मांसपेशियों में ऐंठन व दर्द.
8. हृदय की धड़कन का तेज होना.

किन कारणों से लू लग सकती है?

बिना सावधानी के लंबे समय तक तेज धूप में काम करना व कभी गर्म हवा में तो कभी एसी की ठंडी हवा में आना-जाना भी लू लगने का कारण बनता है. चिलचिलाती तेज गर्मी से घर में आए, तुरंत कूलर व पंखे के नीचे बैठ गए और फ्रिज का ठंडा पानी पी लिया. यह भी लू लगने का कारण बनता है. खाली पेट धूप में काम करना भी प्रमुख कारण है.

बचाव के उपाय

जब भी धूप में घर से बाहर जाएं सिर के ऊपर कोई सूती कपड़ा अवश्य ढक कर जाएं या छाते का उपयोग करें. ऐसा करने से सूर्य की धूप सीधी सिर पर ना लग कर मस्तिष्क की चमड़ी में पसीना आएगा जोकि लू लगने से बचाएगा. कभी भी खाली पेट धूप में नहीं जाना चाहिए. जितना हो सके उतना तरल पदार्थों का सेवन करते रहना चाहिए. रसदार फलों का सेवन करना बहुत लाभकारी होता है. हल्के रंग के सूती व खुले कपड़े पहनने से हम गर्मी में होने वाले रोगों से बच सकते हैं. किसी भी प्रकार का मादक पदार्थ चाहे वह अल्कोहल हो या फिर कैफ़ीन युक्त कोई पदार्थ. फिर चाहे वह एनर्जी ड्रिंक्स के नाम से ही क्यों ना मिलते हो, इनका सेवन गर्मी में हानिकारक है जो लू लगने का एक बड़ा कारण हो सकता है.
एक युवक मेरी क्लीनिक पर आया. उनको पेट संबंधी कोई समस्या थी. उनका पूरा केस समझने के बाद, कहां गया कि आप कोल्ड्रिंक्स का परहेज रखेंगे. उनका जवाब आया, "क्या मैं स्टिंग पी सकता हूं?" मैंने कहा, यह अमृत है क्या? जबाब आया, मैं सब बंद कर सकता हूँ पर यह नहीं. पूरे दिन में बराह सौ रुपये की स्टिंग पी जाता हूँ.
?
अब बीमार होने के लिए और कारण खोजने की जरूरत नहीं.

लू लग जाए तो घर पर क्या उपचार किया जाना चाहिए?

* लू लगने पर सबसे पहले हमें छायादार और ठंडी जगह पर जाना चाहिए गर्म जगह को तुरंत छोड़ देना चाहिए.
* तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें और चिकित्सा करवाएं.
* बेहोशी की अवस्था में रोगी को शीतल कमरे में लेकर जाएं व शीतल पदार्थ का लेप करें.
* शीतल पेय पदार्थ का उपयोग करें जिनमें कैरी की छाच बहुत लाभकारी है.

होम्योपैथिक उपचार

होम्योपैथिक उपचार लू लगने पर बहुत ही लाभकारी है. तुरंत प्रभाव से रोगी को लाभ मिलता है. जीभ पर रखते ही अल्प समय में रोगी स्वस्थ अनुभव करता है.
लू लगने पर यदि रोगी को तेज हार्ट बीट हो गई हो, जी घबरा रहा हो और सांस लेने में तकलीफ हो रही हो, साथ ही मुंह सूख रहा हो और तेज पानी की प्यास लगी हो. इस प्रकार के लक्षण रोगी में मौजूद हो उस समय बर्योनिया अल्ब नाम की दवाई अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है. यदि रोगी को चक्कर आ रहे हो सिर दर्द हो जी घबरा रहा हो और दस्त लगे हो व साथ ही जीभ पर सफेद रंग की परत आ गई हो, इन लक्षणों में एंटीमोनियम क्रूडूम अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है. तेज बुखार हो और सिर दर्द के मारे फटा जा रहा हो तो ग्लोनॉइन औषधि का उपयोग करना चाहिए. कुछ रोगियों में देखा जाता है कि गर्मियों में जोड़ों का दर्द बढ़ जाता है गर्मियों में जोड़ों का दर्द बढ़ने में कॉलचिकम लाभकारी होती है. अन्य और बहुत औषधियां हैं जो लक्षणों की समग्रता पर निर्भर करती है. बिना चिकित्सक की सलाह के कोई भी औषधि का उपयोग करना लाभकारी नहीं है. होम्योपैथी चिकित्सा को लेकर कुछ गलत धारणाएं बनी हुई है, जैसे यह दवाएं धीरे असर करती हैं, इलाज लंबा चलता है, पहले रोग को बढ़ाती है और फिर कम करती है. यह मान्यताएं गलत हैं. रोग अगर साध्य हो और औषधि का चयन सही हुआ हो तो यह दवाएं कुछ ही सेकंड में अपना असर दिखाती हैं और रोगी को रोग मुक्त करती है. रोग की प्रकृति पर निर्भर करता है कि रोग कितने समय में ठीक होगा.
दो प्रकार के रोग होते हैं एक एक्यूट यानी तरुण रोग और दूसरे क्रॉनिक यानी जीर्ण रोग कहलाते हैं. तरुण रोग तुरंत उत्पन्न होते हैं और उन्हें तुरंत मेडिसन मिल जाए तो वह तुरंत ही ठीक हो जाती है. क्रॉनिक रोग लंबे समय से रोगी को परेशान करते हैं जैसे गठिया बाय का दर्द, शुगर और बीपी की परेशानी, थायराइड और दमा की बीमारी, पुरानी कब्जियत और बवासीर की बीमारी. यह बीमारियां कोई 1 दिन में पैदा नहीं होती तो 1 दिन में ठीक कैसे हो सकती है. होम्योपैथी व्यक्ति के पूर्ण स्वास्थ्य के लिए है.यह लक्षणों की समग्रता पर आधारित है. रोग को उसके जड़ मूल से नष्ट करती है.

डॉ. विनोद
होम्योपैथिक चिकित्सक
श्रेयांश होमियो क्लिनिक
391 अपना घर शालीमार विस्तार गेट नंबर 3 बाबा ठाकुर कलाकंद वाले के सामने अलवर, राजस्थान.
मो. 08504978108

11/06/2023

गर्मी के मौसम में बीमार होने से कैसे बचे?

इस बार तो ऐसा लगा कि सर्दियों के बाद सीधा बारिश का मौसम आ गया है. जहां मार्च के अंत से गर्मी की शुरुआत हो जाती है और अप्रैल में थोड़ी बढ़ती है, मई में और ज्यादा बढ़ती है और जून में गर्मी अपने चरम पर होती है वहीं इस वर्ष मई के आखिरी दिनों तक बारिश देखने को रही. जिस कारण मानव स्वास्थ्य पर असर देखने को मिला और फिर जून में एकदम शिखर वाली गर्मी.
कभी बारिश के कारण मौसम में ठंडक और कभी तेज गर्मी. इसके कारण बहुत से लक्षण शरीर में डिवेलप होने लगते हैं. मेरे पास कई रोगी आए जिनमें शरद-गरम के कारण जोड़ों का दर्द, खांसी, बुखार जैसी समस्याएं पाई गई. इस मौसम के बदलाव में ब्रायोनिया होम्योपैथिक की दवाई अति उत्तम और लाभकारी सिद्ध हुई.
गरम मौसम के कारण होने वाले घबराहट, बेचैनी, दस्त-उल्टी, हैजा, मांसपेशियों में दर्द, सांस की तकलीफ अन्य और भी कई लक्षण हो सकते हैं. जिनमें मुख्य रूप से होम्योपैथी में ग्लोनॉइन, एंटीमोनियम क्रूडूम, कोलचिकम, नेट्रम मयुर् प्रमुख औषधियां है. कोलचिकम को तो समर का रूमेटिज्म के नाम से भी जाना जाता है, गर्मियों में होने वाले गठिया की दवाई.
लक्षणों के आधार पर इनका चयन करके बहुत ही अल्प समय में शीघ्र और प्रभावशाली असर देखने को मिलता है. आईसीयू जैसी कंडीशन डिवेलप होने पर अगर सही औषधी का सिलेक्शन हो जाए तो सेकंड्स में हमें यह दवाइयां रोग को ठीक करती हैं. और स्वास्थ्य को प्राप्त होते हैं.
गर्मी के मौसम में कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए. एसी से एकदम गरम धूप में ना जाएं और गरम धूप से एकदम एसी कूलर के आगे ना जाए. जब पसीने आ रहे हो तो ठंडा पानी का परहेज करें, 10-15 मिनट में पसीने को सुखाने के बाद नार्मल पानी पिए. फ्रिज में से एकदम ठंडी वस्तुएं व पानी निकालकर नहीं पीना चाहिए. उनको सामान्य तापमान पर रखें फिर खाना चाहिए.
शरीर में पसीना आ रहा हो उस समय पर नहाना नहीं चाहिए. ऐसा करने से हम बीमार होते हैं.
बहुत से रोग हमारी जीवनशैली की वजह से पैदा होते हैं. अगर हम अपने दैनिक जीवन में मौसम और खानपान से संबंधित कुछ सावधानियां बरतें तो हम कम बीमार होंगें.

डॉ. विनोद
होम्योपैथिक चिकित्सा
391 अपना घर शालीमार विस्तार गेट नंबर 3 अलवर राजस्थान
मो. 8504978108

बदलते मौसम में होम्योपैथी सहायक हैहोम्योपैथी अपनाना है, रोग को भगाना है.आर्टिफिशियल, अप्राकृतिक जीवन शैली हमें प्रकृति स...
09/03/2023

बदलते मौसम में होम्योपैथी सहायक है
होम्योपैथी अपनाना है, रोग को भगाना है.

आर्टिफिशियल, अप्राकृतिक जीवन शैली हमें प्रकृति से दूर और बहुत दूर ले आई है. ग्लोबल वार्मिंग एक चुनौती है, बदलाव है. मौसम में हुए इन बदलावों के प्रति हमारा शरीर एडेप्टेबिलिटी की क्षमता खोता जा रहा है और हम अति संवेदनशील होते जा रहे हैं. यही कारण है कि हर मौसम के बदलाव पर हमें अनेक बीमारियां घेर लेती हैं. अब हम सर्दियों से गर्मियों की तरफ बढ़ रहे हैं. फागन चला गया है और चैत्र चल रहा है. धीरे-धीरे मौसम गर्म होता जा रहा है. इस बदलाव में कभी बहुत गर्मी पड़ने लगती है तो कभी एकदम ठंड का मौसम बन जाता है. यह अचानक बदलाव शरद-गरम कर देता है, जिसके कारण खांसी, जुखाम, बुखार, उल्टी-दस्त इस तरह के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं.
तेज गर्मी में लू लगने की समस्या बहुत ही साधारण है. हैजा जिसमें उल्टी-दस्त, चक्कर, सिर दर्द बहुत परेशान करता है.
बाहर तेज धूप और अंदर एसी की ठंडी हवा एकदम ठंडे से गर्म में आना और गर्म से ठंडे में जाना शरीर को हानि पहुंचाता है. बच्चे स्कूल से आते ही फ्रिज में से ठंडे ठंडे पानी की बोतल निकाल कर पी लेते हैं जो उन्हें बीमार करती है.
होम्योपैथी इन सब समस्याओं के लिए एक समाधान है. जो शरीर में मौसम के बदलाव के कारण उत्पन्न हुए रोग को जड़ से ठीक करती है और प्रकृति और शरीर के बीच में एक तारतम्यता एक सामंजस्य और एक ईकवीलिब्रियम स्थापित करती है. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है.

डॉ. विनोद | डॉ.शीला
श्रेयांश होमियो क्लिनिक
391 अपना घर शालीमार विस्तार गेट नंबर 3 अलवर, राजस्थान.
मो. 8504978108

26/01/2023

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