
08/07/2025
जहाँ अस्पताल नहीं पहुँचते, वहाँ पहुँचती है हमारी स्क्रीनिंग टीम और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता।
शहरों में इलाज का मतलब होता है – अपॉइंटमेंट लेकर डॉक्टर से मिलना, एसी वाले वेटिंग एरिया में बैठना, और मोबाइल पर रिपोर्ट देखना।लेकिन गाँवों और दूर-दराज़ इलाकों में आँखों की देखभाल कुछ अलग ही तरीके से होती है।
यहाँ नज़र की जाँच कभी किसी पेड़ के नीचे, कभी सामुदायिक भवन में, तो कभी किसी के आंगन में होती है।
हम इंतज़ार नहीं करते कि लोग अस्पताल आएँ – हम ख़ुद लोगों तक पहुँचते हैं।घर-घर जाकर जागरूकता फैलाते हैं, आँखों की शुरुआती जाँच करते हैं, और ज़रूरत पड़ने पर इलाज के लिए समझाते हैं।
हमारे विज़न तकनीशियन, स्वास्थ्य साथी और स्वयंसेवक – खेतों में, गलियों में, और दरवाज़े-दरवाज़े जाकर नज़र की जाँच करते हैं।
अगर किसी को अस्पताल जाना हो और साधन न हो, तो हम आने-जाने में मदद भी करते हैं।
और सिर्फ़ जाँच ही नहीं – हमारी टीम यह भी देखती है कि किसी मरीज़ का इलाज अधूरा न रह जाए।
हाल ही में, हमारे समुदाय प्रमुख रचित निगम ने ऐसे ही एक जागरूकता कार्यक्रम की झलक साझा की –
यह किसी अस्पताल की चारदीवारी में नहीं, बल्कि एक खुले मैदान में हुआ, जहाँ दर्जनों लोगों की आँखों की जाँच हुई।
श्रोफ चैरिटी आई हॉस्पिटल और स्टैंडर्ड चार्टर्ड के सहयोग से अब तक 35 गाँवों को रोकथाम योग्य अंधेपन से मुक्त घोषित किया जा चुका है।
फिलहाल हम दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में सक्रिय हैं – और लगातार अपने काम का दायरा और असर दोनों बढ़ा रहे हैं।
हम लगातार अपने क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं – ताकि हर इंसान तक आँखों की देखभाल पहुँच सके।
हमारा मानना है, देखने का अधिकार सबका है।
यही असली जनस्वास्थ्य सेवा है।
और यही है जग्गनाथ, संता देवी, जोगेन्द्र और नूरजहां जैसे लोगों की नज़र वापसी की कहानी।