Unani__And Ayurved Dawa

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15 جولائی سے 15 ستمبر تک مِیل اور فی مِیل سانپوں کے ملاپ ے مہینے ہوتے ہیں، اور سانپوں کی تقریباً تمام اقسام ہی اِن مہینو...
19/07/2025

15 جولائی سے 15 ستمبر تک مِیل اور فی مِیل سانپوں کے ملاپ ے مہینے ہوتے ہیں، اور سانپوں کی تقریباً تمام اقسام ہی اِن مہینوں میں اپنے سامنے آنے والی کسی بھی انسان، جانور پر حملہ کر دیتی ہیں، ان دو ماہ میں شام سے لیکر اگلے روز صبح تک سانپ باہر نکلتے ہیں، سانپ زیادہ تر نمی والی جگہ یا ایسی جگہ جہاں پانی کھڑا ہو اُسکے کنارے پر موجود ہوتے ہیں، گاؤں کے لوگ ان دو ماہ میں خاص احتیاط کریں، رات کے وقت ٹارچ اپنے ہاتھ میں رکھیں اور نظریں زمین پر رکھیں
یاد رکھیں ان دو ماہ میں سانپ انسانوں پر باقاعدہ حملہ آور ہوتے ہیں لہٰذا خود بھی احتیاط کریں اور اپنے بچوں کا خاص خیال رکھیں، رات کو ہر صورت بچوں کو زمین پر نہ کھیلنے دیں, یہ معلومات تمام لوگوں تک پہنچائیں...شکریہ #

15 जुलाई से 15 सितंबर तक का समय सांपों के निकलने का महीना होता है।इन महीनों में लगभग सभी प्रकार के सांप अपने बिलों से बा...
09/07/2025

15 जुलाई से 15 सितंबर तक का समय सांपों के निकलने का महीना होता है।
इन महीनों में लगभग सभी प्रकार के सांप अपने बिलों से बाहर निकलते हैं। ये सांप इंसानों और जानवरों पर भी हमला कर सकते हैं।
इन दो महीनों में शाम से लेकर अगली सुबह तक सांप ज्यादा सक्रिय रहते हैं।

सांप ज़्यादातर नमी वाली जगहों पर, झाड़ियों में, गड्ढों में या वहाँ पर पाए जाते हैं जहाँ पानी खड़ा हो या कोई जल स्रोत हो।
गाँव के लोगों को इन दो महीनों में विशेष सावधानी रखनी चाहिए।
रात को सोते समय अपने हाथ-पैर कम्बल या चादर में रखें और ज़मीन पर न लटकाएं।
ज़मीन पर ध्यान रखें।

ध्यान दें: इन दो महीनों में सांप इंसानों पर बार-बार हमला करते हैं।
इसलिए खुद भी सावधानी रखें और अपने बच्चों का खास ख्याल रखें।
रात को बच्चों को ज़मीन पर न सुलाएं।

यह जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाएं। धन्यवाद।

09/07/2025

आयुर्वेद में सफेद दाग को "श्वित्र" या "किलास" कहा गया है। यह एक त्वचा विकार है जिसमें त्वचा पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। यह रोग तब होता है जब त्वचा में मेलेनिन (रंग बनाने वाला तत्व) बनना बंद हो जाता है। आधुनिक चिकित्सा में इसे विटिलिगो (Vitiligo) कहा जाता है।

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🔍 सफेद दाग के कारण

आयुर्वेद के अनुसार यह त्रिदोषज (वात, पित्त और कफ) विकार होता है, लेकिन प्रायः पित्त दोष का इसमें मुख्य योगदान होता है।

प्रमुख कारण:

1. अहितकर आहार-विहार:

दूध और मछली का एक साथ सेवन

खटाई के साथ दूध, दही या अन्य विपरीत आहार

अधिक तेलीय, तले हुए और गरिष्ठ भोजन का सेवन

2. अजीर्ण या मंदाग्नि (पाचन शक्ति की कमजोरी)

3. मानसिक तनाव और क्रोध

4. आनुवंशिक कारण (वंशानुगत दोष)

5. रासायनिक या विषैले पदार्थों का संपर्क

6. अत्यधिक धूप में रहना या त्वचा पर चोट लगना

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⚠️ लक्षण (Symptoms)

1. त्वचा पर दूधिया सफेद या हल्के रंग के चकत्ते

2. चकत्तों का धीरे-धीरे बढ़ना

3. बालों का सफेद हो जाना (यदि चकत्ता बालों वाली जगह पर है)

4. आमतौर पर खुजली नहीं होती

5. कुछ मामलों में चकत्ते पर संवेदनशीलता कम हो सकती है

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🧘‍♂️ आयुर्वेदिक उपचार और उपाय

1. शोधन चिकित्सा (Detoxification Therapies)

पंचकर्म के अंतर्गत वमन, विरेचन और बस्ती चिकित्सा की जाती है, ताकि दोषों का शुद्धिकरण हो।

2. संशोधन औषधियाँ (Internal Medicines)

प्रमुख आयुर्वेदिक औषधियाँ:

खादिरारिष्ट

आरोग्यवर्धिनी वटी

गंधक रसायन

महामंजिष्ठादि काढ़ा

पंचतिक्त घृत गुग्गुलु

👉 इन्हें किसी वैद्य की सलाह से ही सेवन करें।

3. संप्राप्ति-विघटन औषधियाँ (विशेष योग)

बखुची चूर्ण (Psoralea corylifolia): यह सफेद दाग में प्रमुख औषधि मानी जाती है। इसे अंदरूनी रूप से लेने और बाहरी रूप से लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रयोग:

बखुची चूर्ण को गोमूत्र या तिल तेल में मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाया जाता है।

अंदरूनी उपयोग के लिए – 1 से 3 ग्राम प्रतिदिन (वैद्य के निर्देश अनुसार)

4. बाह्य चिकित्सा (External Application)

बखुची तेल, अर्क तेल या ताम्र भस्म युक्त मरहम

सूरज की हल्की किरणों में बैठना (UV प्रभाव के लिए)

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🍲 आहार-विहार (Diet and Lifestyle)

क्या करें:

सादा, सुपाच्य और हल्का भोजन करें

त्रिफला का नियमित सेवन करें

मौसमी फल, हरी सब्जियाँ, अंकुरित अनाज लें

सुबह सूर्योदय के समय ध्यान और योग करें

क्या न करें:

दूध और नमक, दूध और मछली का एक साथ सेवन न करें

अधिक खट्टी, तीखी और तली-भुनी चीज़ें न लें

मानसिक तनाव और क्रोध से बचें

रासायनिक सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग न करें

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🌞 योग और प्राणायाम

1. अनुलोम-विलोम प्राणायाम – त्वचा रोगों में अत्यंत लाभकारी

2. कपालभाति – पाचन और त्वचा के लिए उत्तम

3. सूर्य नमस्कार – रक्तसंचार बेहतर करता है

आयुर्वेद के अनुसार, सफेद दाग केवल त्वचा का रोग नहीं है बल्कि यह शरीर के अंदर पाचन और त्रिदोषों के असंतुलन का परिणाम है। इसके उपचार में शुद्ध आहार, जीवनशैली, औषधियाँ, योग और मन की शांति अत्यंत आवश्यक हैं।

नियमित आयुर्वेदिक चिकित्सा, अनुशासित दिनचर्या और धैर्य के साथ यह रोग काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।कोई भी उपाय अपने चिकित्सक की सलाह अनुसार ही करें!!
#सफ़ेद #दाग

08/07/2025
08/07/2025

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تاریخ عالم کا وہ واحد ہندو جس کی چتا پر کئی من گھی ڈالا گیا ، مگر اُس کے جسم کو آگ نہ لگی، اُس کا قرآن سے کیا تعلق تھاتق...
12/06/2025

تاریخ عالم کا وہ واحد ہندو جس کی چتا پر کئی من گھی ڈالا گیا ، مگر اُس کے جسم کو آگ نہ لگی، اُس کا قرآن سے کیا تعلق تھا

تقسیم ہند کے زمانے میں لاہور کے 2 اشاعتی ادارے بڑے مشہور تھے ۔ پہلا درسی کتب کا کام کرتا تھا اس کے مالک میسرز عطر چند اینڈ کپور تھے۔ دوسرا اداره اگرچہ غیر مسلموں کا تھا لیکن اس کے مالک پنڈت نول کشور قرآن پاک کی طباعت و اشاعت کیا کرتے تھے نول کشور نے احترام قرآن کا جو معیار مقرر کیا تھا وہ کسی اور ادارے کو نصیب نہ ہوسکا۔ نول کشور جی نے پہلے تو پنجاب بھر سے اعلی ساکھ والے حفاظ اکٹھے کئے اور ان کو زیادہ تنخواہوں پر ملازم رکھا احترام قرآن کا یہ عالم تھا کہ جہاں قرآن پاک کی جلد بندی ہوتی تھی وہاں کسی شخص کو خود نول کشور جی سمیت جوتوں کے ساتھ داخل ہونے کی اجازت نہیں تھی

دو ایسے ملازم رکھے گئے تھے جن کا صرف اور صرف ایک ہی کام تھا کہ تمام دن ادارے کے مختلف کمروں کا چکر لگاتے رہتے تھے کہیں کوئی کاغذ کا ایسا ٹکڑا جس پر قرآنی آیت لکھی ہوتی اس کو انتہائی عزت و احترام سے اٹھا کر بوریوں میں جمع کرتے رہتے پھر ان بوریوں کو احترام کے ساتھ زمین میں دفن کر دیا جاتا۔ وقت گزرتا رہا اور طباعت و اشاعت کا کام جاری رہا۔ پھر بر صغیر کی تقسیم ہوئی۔ مسلمان ہندو اور سکھ نقل مکانی کرنے لگے۔ نول کشور جی بھی لاہور سے ترک سکونت کرکے نئی دلی انڈیا چلے گئے۔ ان کے ادارے نے دلی میں بھی حسب سابق قرآن پاک کی طباعت و اشاعت کا کام شروع کر دیا۔ یہاں بھی قرآن پاک کے احترام کا وہی عالم تھا۔ ادارہ ترقی کا سفر طے کرنے لگا اور کامیابی کی بلندی پر پہنچ گیا۔ نول کشور جی بوڑھے ہو گئے اور اب گھر پر آرام کرنے لگے جبکہ ان کے بچوں نے ادارے کا انتظام سنبھال لیا اور ادارے کی روایت کے مطابق قرآن حکیم کے ادب و احترام کا سلسہ اسی طرح قائم رکھا۔ آخر کار نول کشور جی کا وقت آخر آگیا اور وہ انتقال کرکے خالق حقیقی سے جا ملے۔ ان کی وفات پر ملک کے طول و عرض سے ان کے احباب ان کے ہاں پہنچے۔ ایک بہت بڑی تعداد میں لوگ ان کے کریا کرم میں شریک ہونے کے لئے شمشان گھاٹ پہنچے . * ان کی ارتھی کو چتا پر رکھا گیا ۔ چتا پر گھی ڈال کر آگ لگائی جانے لگی تو ایک انتہائی حیرت انگیز واقعہ ہوا نول کشور جی کی چتا آگ نہیں پکڑ رہی تھی۔ چتا پر اور گھی ڈالا گیا پھر آگ لگانے کی کوشش کی گئی لیکن بسیار کوشش کے باوجود بے سود۔ یہ ایک ناممکن اور ناقابل یقین واقعہ تھا۔ پہلے کبھی ایسا نہیں ہوا تھا۔ لمحوں میں خبر پورے شہر میں پھیل گئی کہ نول کشور جی کی ارتھی کو آگ نہیں لگ رہی۔ مخلوق خدا یہ سن کر شمشان گھاٹ کی طرف امڈ پڑی۔ لوگ اپنی آنکھوں سے دیکھ رہے تھے اور حیران و پریشان تھے۔ یہ خبر جب جامع مسجد دلی کے امام بخاری تک پہنچی تو وہ بھی شمشان گھاٹ پہنچے۔ نول کشور جی ان کے بہت قریبی دوست تھے۔ اور وہ ان کے احترام قرآن کی عادت سے اچھی طرح واقف تھے۔ امام صاحب نے پنڈت جی کو مخاطب کرتے ہوئے کہا کہ آپ سب کی چتا جلانے کی کوشش کبھی کامیاب نہیں ہو پائے گی۔ اس شخص نے اللہ کی سچی کتاب کی عمر بھر جس طرح خدمت کی ہے اور جیسے احترام کیا ہے اس کی وجہ سے اس کی چتا کو آگ لگ ہی نہیں سکے گی چاہے آپ پورے ہندوستان کا تیل اور گھی چتا پر ڈال دیں۔ اس لئے بہتر ہے کہ ان کو عزت و احترام کے ساتھ دفنا
دیجئے۔

چنانچہ امام صاحب کی بات پر عمل کرتے ہوئے نول کشور جی کو شمشان گھاٹ میں ہی دفنا دیا گیا۔ یہ تاریخ کا پہلا واقعہ تھا کہ کسی ہندو کی چتا کو آگ نہ لگنے کی وجہ سے شمشان گھاٹ میں ہی دفنا دیا گیا

روزنامہ اوصاف
29-10-2019

 #बिल्व_बेल...बेल एक वृक्ष है जिसे बिल्व, बेलपत्थर या श्रीफल के नाम से भी जाना जाता है. यह भारत में पाए जाने वाले फल का ...
10/06/2025

#बिल्व_बेल...
बेल एक वृक्ष है जिसे बिल्व, बेलपत्थर या श्रीफल के नाम से भी जाना जाता है. यह भारत में पाए जाने वाले फल का एक पेड़ है, जो हिमालय की तराई और सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है. बेल का वृक्ष धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण है और इसके पत्तों को भगवान शिव को चढ़ाया जाता है.

चिलचिलाती गर्मी का दैवीय फल
★बेल का मूल स्थान भारत माना जाता है। यह प्रजाति प्रागैतिहासिक काल में निकटवर्ती देशों में पहुंची और हाल ही में मानव आंदोलनों के माध्यम से अन्य सुदूर देशों में पहुंची,
● बेल के पेड़ भारत, श्रीलंका, थाईलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, वियतनाम, फिलीपींस, कंबोडिया, मलेशिया, जावा, मिस्र, सूरीनाम, त्रिनिदाद और फ्लोरिडा के शुष्क, मिश्रित पर्णपाती और शुष्क डिप्टरोकार्प जंगलों और मिट्टी में अच्छी तरह से पनपते हैं।
●,ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार बेल भारत में 800 ईसा पूर्व से एक फसल के रूप में पाया जाता है
●बेल एक उपोष्णकटिबंधीय प्रजाति है, हालांकि यह उष्णकटिबंधीय वातावरण में अच्छी तरह से विकसित हो सकती है।
★बेल भोजन और औषधीय मूल्यों के अलावा, बेल फल के छिलके से उत्पादित सक्रिय कार्बन का उपयोग प्रदूषित या पीने के पानी से क्रोमियम जैसी भारी धातुओं को हटाने के लिए एक कुशल, कम लागत वाले अवशोषक के रूप में किया जा सकता है ।
★बेल की पत्तियों का उपयोग संभावित बायोसॉर्बेंट के रूप में भी किया जा सकता है।
●हानिकारक सीसा आयनों को बेल के पत्तों में अवशोषित करके जलीय घोल से निकालने का प्रदर्शन किया गया
●बेल के बीज के तेल में एक असामान्य फैटी एसिड, 12-हाइड्रॉक्सीओक्टाडेक-सीआईएस-9-एनोइक एसिड (रिसिनोलिक एसिड) मौजूद होता है,
जिसे भविष्य में बायोडीजल के रूप में निर्मित करने की क्षमता है।
●बेल को पर्यावरण के प्राकृतिक शोधक के रूप में जाना जाता है और इसे शहरी, ग्रामीण और शुष्क क्षेत्रों के पुनर्वनीकरण में वन्यजीवों और प्रमुख प्रजातियों के लिए एक सहायक पेड़ के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है,
★बेल फल का रस आपके पेट की सभी समस्याओं के लिए एक उत्कृष्ट पाचन टॉनिक है। यह टैनिन से भरपूर है जिसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण होते हैं जो इसे अपच और दस्त के दौरान सेवन के लिए आदर्श बनाते हैं। इसमें फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है जो मल त्याग को सुचारू बनाने में मदद करता है। गर्मियों के दौरान, जब आपकी पाचन क्रिया थोड़ी ख़राब हो जाती है, तो बेल का रस अपने वातहर गुण के कारण आपकी भूख को बहाल करता है। यह थकान दूर करता है और शरीर को ठंडक पहुंचाने में मदद करता है।
★बेल के फलों में पोटैशियम की मात्रा अधिक होती है। पोटेशियम से भरपूर खाद्य पदार्थ उच्च रक्तचाप वाले लोगों के लिए आदर्श हैं। यह धमनियों के कार्य में सुधार करता है और हृदय संबंधी कार्यों में सुधार करता है। खाली पेट बेल के पत्तों या बेल की जड़ों के काढ़े का सेवन हृदय स्वास्थ्य में सुधार के लिए एक पारंपरिक उपाय है।
★बेल फल गर्मियों का एक विशिष्ट फल है जो अपने आंत-उपचार लाभों के लिए जाना जाता है।
आयुर्वेद में बेल या बिल्व को एक शक्तिशाली पाचक जड़ी बूटी के रूप में वर्णित किया गया है।
बेल के कई फायदे हैं, जैसे रक्त शर्करा संतुलन को बढ़ावा देना, त्वचा के स्वास्थ्य में सुधार और कब्ज से राहत।
★बेल का उपयोग:
●बेल का शरबत शरीर को ठंडक देता है और इस जूस के सेवन से लू से बचा जा सकता है.
●फाइबर से भरपूर होने के चलते बेल का शरबत पीने पर कब्ज से छुटकारा मिलता है
●बेल के जूस में हेल्दी कैलोरी होती है जो वजन कम (Weight Loss) करने में मदद करती है
●मेटाबॉलिज्म को बूस्ट करने के लिए भी बेल का शरबत पिया जा सकता है
★बेल का मुरब्बा भी सीमित मात्रा में ही खाना चाहिए। दिनभर में 10 ग्राम से अधिक नहीं खाएं। इसकी इतनी ही मात्रा में शरीर को कई न्यूट्रिएंट्स मिल जाते हैं।
●आमतौर पर सुबह नाश्ते के समय बेल का मुरब्बा खाना बेहतर होता है।

पुत्रजीवा – संतान सुख प्रदान करने वाली चमत्कारी औषधि,,,।।पुत्रजीवा एक अद्भुत आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जिसे संतान प्राप्त...
04/06/2025

पुत्रजीवा – संतान सुख प्रदान करने वाली चमत्कारी औषधि,,,।।

पुत्रजीवा एक अद्भुत आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जिसे संतान प्राप्ति में कारगर माना जाता है। इसे कुमार जीवा, जियापोता, महापुत्र, पुत्रजीनवा आदि नामों से भी जाना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, इसके बीज और पत्तों में गर्भधारण को बढ़ावा देने वाले औषधीय गुण होते हैं, जो संतानहीन महिलाओं को संतान सुख प्राप्त करने में मदद करते हैं।

औषधीय गुण और लाभ,,,,,

गर्भधारण में सहायक: पुत्रजीवा के बीज वीर्यवर्धक, गर्भदायक और वात-कफ को दूर करने वाले होते हैं।

गर्भपात रोकने में प्रभावी: बार-बार गर्भपात होने वाली महिलाओं के लिए यह औषधि रामबाण सिद्ध होती है।

कम मात्रा में माहवारी की समस्या में उपयोगी: जो महिलाएं अनियमित या कम मासिक स्राव के कारण गर्भधारण नहीं कर पातीं, उनके लिए पुत्रजीवा का सेवन लाभकारी होता है।

माला पहनने का महत्व: आयुर्वेद के अनुसार, यदि संतानहीन महिला पुत्रजीवा के बीजों की माला पहनती है, तो गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।

गर्भधारण के लिए विशेष प्रयोग विधि ।।

पुत्रजीवा की जड़ को दूध में पीसकर पीने से गर्भ ठहरने में सहायता मिलती है।

शिवलिंगी बीज और पुत्रजीवा बीज को 2-2 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ नियमित रूप से सेवन करने पर गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।

इस औषधि का सेवन करते समय तेल, खटाई, मिर्च-मसाले और गरम पदार्थों से बचना आवश्यक है, ताकि इसका प्रभाव पूरी तरह से हो।

गर्भधारण में कारगर "गर्भधारक योग"

आयुर्वेद में "गर्भधारक योग" नामक औषधि का उल्लेख है, जो गर्भधारण में सहायता करती है। यह योग विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए प्रभावी है, जो गर्भाशय और डिंबवाहिनी नलिकाओं में समस्या के कारण गर्भधारण नहीं कर पातीं।

गर्भधारक योग की निर्माण विधि:

घटक द्रव्य:

रस सिंदूर – 10 ग्राम

जायफल – 10 ग्राम

सावित्री – 10 ग्राम

लौंग – 10 ग्राम

कर्पूर – 10 ग्राम

केसर – 10 ग्राम

रुद्रवंती – 10 ग्राम

पुत्रजीवक – 10 ग्राम

शिवलिंगी – 10 ग्राम

शतावरी – 250 ग्राम

बनाने की विधि:

शतावरी को छोड़कर सभी घटकों का बारीक चूर्ण बना लें।

शतावरी का काढ़ा (क्वाथ) तैयार करें और इसे इतना उबालें कि 100 ग्राम रह जाए।

अब इसमें घटक द्रव्यों का चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह घोटाई करें।

मिश्रण से 100-100 मिलीग्राम की गोलियां बना लें।

सेवन विधि:

मासिक धर्म के चौथे दिन से दिन में दो बार 2-2 गोली दूध के साथ लें।

अगले मासिक धर्म तक इसे बंद रखें।

मासिक धर्म के चौथे दिन से पुनः सेवन शुरू करें।

लगातार तीन मासिक धर्म तक इस योग का सेवन करने से गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।

⚠️
महत्वपूर्ण तथ्य:,,,,,,,,

पुत्रजीवा का नाम यह संकेत नहीं देता कि इससे पुत्र ही पैदा होगा। यह केवल एक संतानोत्पत्ति में सहायक औषधि है, जिससे पुत्र या पुत्री दोनों की संभावना होती है।

आयुर्वेद में कई औषधियों के नाम प्रतीकात्मक होते हैं, जैसे अश्वगंधा का अर्थ घोड़ा उत्पन्न करना नहीं है, बल्कि यह घोड़े जैसी ताकत प्रदान करती है।

निष्कर्ष:

पुत्रजीवा आयुर्वेद में संतानहीनता को दूर करने के लिए चमत्कारी औषधि मानी जाती है। यह न सिर्फ गर्भधारण में सहायक है, बल्कि बार-बार गर्भपात, मासिक धर्म की अनियमितता और गर्भाशय संबंधी विकारों में भी प्रभावी है। योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से इसका सेवन करने से निसंतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति हो सकती है।

😱यह पौधा पेट की लटकती चर्बी, सड़े हुए दाँत, गठिया, आस्थमा, बवासीर, मोटापा, गंजापन, किडनी आदि 20 रोगों के लिए किसी वरदान ...
02/06/2025

😱यह पौधा पेट की लटकती चर्बी, सड़े हुए दाँत, गठिया, आस्थमा, बवासीर, मोटापा, गंजापन, किडनी आदि 20 रोगों के लिए किसी वरदान से कम नही🙏

🇮🇳आज हम आपको ऐसे पौधे के बारे में बताएँगे जिसका तना, पत्ती, बीज, फूल, और जड़ पौधे का हर हिस्सा औषधि है, इस पौधे को अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree), लटजीरा कहते है। अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree) का पौधा भारत के सभी सूखे क्षेत्रों में उत्पन्न होता है यह गांवों में अधिक मिलता है खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पाया जाता है इसे बोलचाल की भाषा में आंधीझाड़ा या चिरचिटा (Chaff Tree) भी कहते हैं-अपामार्ग की ऊंचाई लगभग 60 से 120 सेमी होती है आमतौर पर लाल और सफेद दो प्रकार के अपामार्ग देखने को मिलते हैं-सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग के दाग युक्त होते हैं इसके अलावा फल चपटे होते हैं जबकि लाल अपामार्ग (RedChaff Tree) का डंठल लाल रंग का और पत्तों पर लाल-लाल रंग के दाग होते हैं।

इस पर बीज नुकीले कांटे के समान लगते है इसके फल चपटे और कुछ गोल होते हैं दोनों प्रकार के अपामार्ग के गुणों में समानता होती है फिर भी सफेद अपामार्ग(White chaff tree) श्रेष्ठ माना जाता है इनके पत्ते गोलाई लिए हुए 1 से 5 इंच लंबे होते हैं चौड़ाई आधे इंच से ढाई इंच तक होती है- पुष्प मंजरी की लंबाई लगभग एक फुट होती है, जिस पर फूल लगते हैं, फल शीतकाल में लगते हैं और गर्मी में पककर सूख जाते हैं इनमें से चावल के दानों के समान बीज निकलते हैं इसका पौधा वर्षा ऋतु में पैदा होकर गर्मी में सूख जाता है।

अपामार्ग तीखा, कडुवा तथा प्रकृति में गर्म होता है। यह पाचनशक्तिवर्द्धक, दस्तावर (दस्त लाने वाला), रुचिकारक, दर्द-निवारक, विष, कृमि व पथरी नाशक, रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला), बुखारनाशक, श्वास रोग नाशक, भूख को नियंत्रित करने वाला होता है तथा सुखपूर्वक प्रसव हेतु एवं गर्भधारण में उपयोगी है।
चिरचिटा या अपामार्ग (Chaff Tree) के 20 अद्भुत फ़ायदे :
1. गठिया रोग :

अपामार्ग (चिचड़ा) के पत्ते को पीसकर, गर्म करके गठिया में बांधने से दर्द व सूजन दूर होती है।

2. पित्त की पथरी :

पित्त की पथरी में चिरचिटा की जड़ आधा से 10 ग्राम कालीमिर्च के साथ या जड़ का काढ़ा कालीमिर्च के साथ 15 ग्राम से 50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से पूरा लाभ होता है। काढ़ा अगर गर्म-गर्म ही खायें तो लाभ होगा।

3. यकृत का बढ़ना :

अपामार्ग का क्षार मठ्ठे के साथ एक चुटकी की मात्रा से बच्चे को देने से बच्चे की यकृत रोग के मिट जाते हैं।

4. लकवा :

एक ग्राम कालीमिर्च के साथ चिरचिटा की जड़ को दूध में पीसकर नाक में टपकाने से लकवा या पक्षाघात ठीक हो जाता है।

5. पेट का बढ़ा होना या लटकना :

चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ 5 ग्राम से लेकर 10 ग्राम या जड़ का काढ़ा 15 ग्राम से 50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम कालीमिर्च के साथ खाना खाने से पहले पीने से आमाशय का ढीलापन में कमी आकर पेट का आकार कम हो जाता है।

6. बवासीर :

अपामार्ग की 6 पत्तियां, कालीमिर्च 5 पीस को जल के साथ पीस छानकर सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है और उसमें बहने वाला रक्त रुक जाता है।
खूनी बवासीर पर अपामार्ग की 10 से 20 ग्राम जड़ को चावल के पानी के साथ पीस-छानकर 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाना गुणकारी हैं।

7. मोटापा :

अधिक भोजन करने के कारण जिनका वजन बढ़ रहा हो, उन्हें भूख कम करने के लिए अपामार्ग के बीजों को चावलों के समान भात या खीर बनाकर नियमित सेवन करना चाहिए। इसके प्रयोग से शरीर की चर्बी धीरे-धीरे घटने भी लगेगी।

8. कमजोरी :

अपामार्ग के बीजों को भूनकर इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर पीस लें। 1 कप दूध के साथ 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है।

9. सिर में दर्द :

अपामार्ग की जड़ को पानी में घिसकर बनाए लेप को मस्तक पर लगाने से सिर दर्द दूर होता है।

10. संतान प्राप्ति :

अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित रूप से 21 दिन तक सेवन करने से गर्मधारण होता है। दूसरे प्रयोग के रूप में ताजे पत्तों के 2 चम्मच रस को 1 कप दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित सेवन से भी गर्भ स्थिति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

11. मलेरिया :

अपामार्ग के पत्ते और कालीमिर्च बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें, फिर इसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां तैयार कर लें। जब मलेरिया फैल रहा हो, उन दिनों एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं होगा। इन गोलियों का दो-चार दिन सेवन पर्याप्त होता है।

12. गंजापन :

सरसों के तेल में अपामार्ग के पत्तों को जलाकर मसल लें और मलहम बना लें। इसे गंजे स्थानों पर नियमित रूप से लेप करते रहने से पुन: बाल उगने की संभावना होगी।

13. दांतों का दर्द और गुहा या खाँच (cavity) :

इसके 2-3 पत्तों के रस में रूई का फोया बनाकर दांतों में लगाने से दांतों के दर्द में लाभ पहुंचता है तथा पुरानी से पुरानी गुहा या खाँच को भरने में मदद करता है।

14. खुजली :

अपामार्ग के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल और फल) को पानी में उबालकर काढ़ा तैयार करें और इससे स्नान करें। नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही दिनों cavity में खुजली दूर जाएगी।

15. आधाशीशी या आधे सिर में दर्द :

इसके बीजों के चूर्ण को सूंघने मात्र से ही आधाशीशी, मस्तक की जड़ता में आराम मिलता है। इस चूर्ण को सुंघाने से मस्तक के अंदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के द्वारा निकल जाता है और वहां पर पैदा हुए कीड़े भी झड़ जाते हैं।

16. ब्रोंकाइटिस :

जीर्ण कफ विकारों और वायु प्रणाली दोषों में अपामार्ग (चिरचिटा) की क्षार, पिप्पली, अतीस, कुपील, घी और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में पूर्ण लाभ मिलता है।

17. खांसी :

खांसी बार-बार परेशान करती हो, कफ निकलने में कष्ट हो, कफ गाढ़ा व लेसदार हो गया हो, इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में आधा ग्राम अपामार्ग क्षार व आधा ग्राम शर्करा दोनों को 30 मिलीलीटर गर्म पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में बहुत ही लाभ होता है।

18. गुर्दे का दर्द :

अपामार्ग (चिरचिटा) की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से बड़ा लाभ होता है। यह औषधि मूत्राशय की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। गुर्दे के दर्द के लिए यह प्रधान औषधि है।

19. गुर्दे के रोग :

5 ग्राम से 10 ग्राम चिरचिटा की जड़ का काढ़ा 1 से 50 ग्राम सुबह-शाम मुलेठी, गोखरू और पाठा के साथ खाने से गुर्दे की पथरी खत्म हो जाती है । या 2 ग्राम अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पानी के साथ पीस लें। इसे प्रतिदिन पानी के साथ सुबह-शाम पीने से पथरी रोग ठीक होता है।

20. दमा या अस्थमा :

चिरचिटा की जड़ को किसी लकड़ी की सहायता से खोद लेना चाहिए। ध्यान रहे कि जड़ में लोहा नहीं छूना चाहिए। इसे सुखाकर पीस लेते हैं। यह चूर्ण लगभग एक ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ खाएं इससे श्वास रोग दूर हो जाता है।
अपामार्ग (चिरचिटा) का क्षार 0.24 ग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने अथवा 1 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से छाती पर जमा कफ छूटकर श्वास रोग नष्ट हो जाता है।

सत्यानाशी एक कांटेदार पौधा हैं। इसके किसी भी भाग को तोड़ने से उसमें पीले रंग (स्वर्ण सदृश) का दूध निकलता हैं, इसलिए इसे ...
20/05/2025

सत्यानाशी एक कांटेदार पौधा हैं। इसके किसी भी भाग को तोड़ने से उसमें पीले रंग (स्वर्ण सदृश) का दूध निकलता हैं, इसलिए इसे "स्वर्णक्षीरी" भी कहते हैं। सत्यानाशी का फल चौकोर, कांटेदार, प्याले जैसा होता हैं। जिनमें राई की तरह छोटे-छोटे काले बीज भरे रहते हैं, जो आग में डालने पर भड़-भड़ की आवाज करते हैं, इसलिए इसे भड़भांड़, भटकटैया या भड़भड़वा भी कहते हैं। आयुर्वेदिक ग्रंथ "भावप्रकाश निघण्टु" में इस वनस्पति का नाम "स्वर्णक्षीरी" या "कटुपर्णी" बताया गया हैं। प्रायः यह खेतों में पानी की नाली, मेड़ आदि पर पाया जाता हैं।

■ सत्यानाशी के पौधे का औषधीय उपयोग :-

1. कुष्ठ रोग में :- आयुर्वेद में तथा भारतीय समाज में इसका प्रयोग कुष्ठ रोगों में भी किया जाता रहा हैं।

2. त्वचा रोगों में :- इसके दूधिया रस का उपयोग खुजली, फोड़े-फुंसी और अन्य त्वचा रोगों के इलाज के लिए किया जाता हैं।

3. जोड़ों के दर्द में :- इसके तेल और अर्क को जोड़ों के दर्द और सूजन में लाभकारी माना जाता हैं।

4. कफ और अस्थमा में :- इसके अर्क का उपयोग श्वसन संबंधी समस्याओं में किया जाता हैं।

5. घाव भरने में :- यह इतना गुणी पौधा हैं कि कितना भी पुराना घाव हो उसे चुटकियों में ठीक कर देता हैं।

■ नियंत्रण और सावधानियाँ :-
इसे खेती योग्य भूमि से हटाया जाता हैं क्योंकि यह विषाक्त होता हैं और पशुओं के लिए हानिकारक हो सकता हैं। इसका उपयोग औषधीय रूप में करने से पहले किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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20/05/2025

*हाई अलर्ट जारी किया गया है*

`20 मई से 2 जून तक सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक कोई भी व्यक्ति बाहर (खुले आसमान के नीचे) नही निकलेगा क्योंकि मौसम विभाग ने यह बताया है कि तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस तक जायेगा,` जिससे अगर किसी भी व्यक्ति को घुटन महसूस हो या अचानक तबियत खराब हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं रूम के अंदर दरवाजा खोल कर रखे ताकि विंटीलेशन ना रहे,मोबाइल का प्रयोग कम करे, मोबाइल फटने की संभावना जताई जा रही है,कृपया सावधान रहें और लोगो को सूचित करें,दही , मट्ठा, बेल का जूस आदि ठंडे पेय पदार्थ का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा करें।

अत्यधिक महत्वपूर्ण सूचना

नागरिक सुरक्षा महानिदेशालय नागरिकों और निवासियों को निम्नलिखित के प्रति सचेत करता है।

आने वाले दिनों में 47 से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ते तापमान और क्यूम्यलस बादलों की उपस्थिति के कारण अधिकांश क्षेत्रों में दमघोंटू माहौल होने के कारण, यहां कुछ चेतावनियां और सावधानियां दी गई हैं।

कारों में से इन्हें हटा दिया जाना चाहिए

1.गैस सामग्री 2 लाइटर 3. कार्बोनेटेड पेय पदार्थ 4. सामान्यतः इत्र और उपकरण बैटरियाँ 5. कार की खिड़कियाँ थोड़ी खुली (वेंटिलेशन) होनी चाहिए 6. कार के फ्यूल टैंक को पूरा न भरें 7.शाम के समय कार में ईंधन भरें 8.सुबह के समय कार से यात्रा करने से बचें 9. कार के टायरों को ज़्यादा न भरें, ख़ासकर यात्रा के दौरान।

बिच्छुओं और सांपों से सावधान रहें क्योंकि वे अपने बिलों से बाहर निकलेंगे और ठंडी जगहों की तलाश में पार्क और घरों में प्रवेश कर सकते हैं।

खूब पानी और तरल पदार्थ पियें,सुनिश्चित करें कि गैस सिलेंडर को धूप में न रखें, सुनिश्चित करें कि बिजली मीटरों पर अधिक भार न डालें और एयर कंडीशनर का उपयोग केवल घर के व्यस्त क्षेत्रों में करें, विशेषकर अत्यधिक गर्मी के समय में। और दो तीन घंटे के बाद 30 मनिट्स का रेस्ट ज़रूर दे। बाहर 45-47° घर पे AC 24-25° पर ही चेलाएँ,सेहत और तबियत ठीक रहेगी सूरज की रोशनी के सीधे संपर्क में आने से बचें, खासकर सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच।

अंत में: कृपया इस जानकारी को साझा करें क्योंकि अन्य लोग नहीं जानते होंगे और हो सकता है कि वे इसे पहली बार पढ़ रहे हों।

सादर, नागरिक सुरक्षा महानिदेशालय
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पत्थरचट्टा (ब्रायोफिलम) जिसे चमत्कारी पौधा भी कहा जाता हैं, यह पौधा सदियों से आयुर्वेद में अपनी जगह बनाये हुए हैं, यह न ...
18/05/2025

पत्थरचट्टा (ब्रायोफिलम) जिसे चमत्कारी पौधा भी कहा जाता हैं, यह पौधा सदियों से आयुर्वेद में अपनी जगह बनाये हुए हैं, यह न केवल अपनी हरी-भरी पत्तियों से घर को सजाता हैं बल्कि सेहत से जुड़ी कई समस्याओं का समाधान भी देता हैं।

■ पत्थरचट्टा का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों में किया जाता हैं।

1. गुर्दे की पथरी को खत्म करता हैं :-
पत्थरचट्टा गुर्दे की पथरी को घोलने में मदद कर सकता हैं, खासकर कैल्शियम ऑक्सालेट से बनी पथरी को। इसमें सैपोनिन होते हैं, जो शरीर से पथरी को बाहर निकालने में मदद करते हैं।

2. पाचन तंत्र को मजबूत करता हैं :-
पत्थरचट्टा के पौधे में विटामिन और खनिज होते हैं, जो पाचन तंत्र को मजबूत करते हैं। पत्थरचट्टा एसिडिटी और सीने में जलन जैसी पाचन समस्याओं में भी मदद करता हैं।

3. प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता हैं :-
पत्थरचट्टा के पौधे में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ बनाते हैं।

4. त्वचा और बालों के लिए फायदेमंद :-
पत्थरचट्टा के पौधे में विटामिन और खनिज होते हैं जो त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाने में मदद करते है और बालों को भी मजबूत और स्वस्थ बनाते हैं।

5. मधुमेह को नियंत्रित करता हैं :-
पत्थरचट्टा के पौधे में मधुमेह रोधी गुण होते हैं जो मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। यह पौधा रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने और मधुमेह के लक्षणों को कम करने में मदद करता हैं।

6. लीवर को स्वस्थ बनाता हैं :-
पत्थरचट्टा लीवर को साफ और उसके कार्य को बेहतर बनाने में मदद करता हैं।

7. घाव भरने में मदद करता हैं :-
पत्थरचट्टा के पत्तों का लेप घाव और चोटों पर लगाने से जल्दी ठीक होते हैं।

8. वजन प्रबंधन में सहायता करता हैं :-
पत्थरचट्टा के रस में कैलोरी कम होती हैं और यह वजन घटाने या उसे बनाये रखने में मदद करता हैं।

9. श्वसन सबंधित समस्याओं के लिए :-
पत्थरचट्टा खांसी और अस्थमा जैसी श्वसन संबधित समस्याओं में मदद कर सकता हैं।

10. मौखिक स्वास्थ्य में सुधार करता हैं :-
पत्थरचट्टा दांत दर्द और मसूड़ों की सूजन और उपचार में मदद कर सकता हैं।

■ पत्थरचट्टा का सेवन कैसे करें :-
आप पत्थरचट्टा के पत्तों को उबालकर काढ़ा बनाकर पी सकते हैं। यदि आपको इसका स्वाद अच्छा नहीं लगता हैं तो आप काढ़े में थोड़ा सा शहद मिलाकर पी सकते हैं। इसका जूस या लेप बनाकर भी उपयोग कर सकते हैं हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण हैं कि पत्थरचट्टा के पौधे का उपयोग करने से पहले किसी योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह जरूर लें।

■ पौधा कैसे लगाए :-
पत्थरचट्टा का पौधा आप नर्सरी से खरीदकर लगा सकते हैं, इसे बीजों के अलावा पत्तों से भी उगा सकते हैं। पत्थरचट्टा को उगाने के लिए पॉटिंग मिक्स तैयार करने के लिए 60% मिट्टी, 20% वर्मीकम्पोस्ट और 20% रेत का इस्तेमाल करें।

■ पत्थरचट्टा की देखभाल कैसे करें :-
पत्थरचट्टा के पौधे को रोजाना कम से कम 4-5 घंटे धूप की जरूरत होती हैं। पौधे में पानी तभी डालें जब इसकी मिट्टी एक-तिहाई भाग तक सूखी दिखें। हर दो महीने में एक बार खाद अवश्य दें।

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