Kavi Manish Kumar Indore

Kavi Manish Kumar Indore जो हमे पथ से डिगा दे बनी वह धारा नही है ।
पार जाएगा हमारा मन कभी हारा नही है ।

12/10/2024

मैने बहुत पोस्ट करने के बाद ये पता लगाया,
कि कमेन्ट सिर्फ़ कुछ पढ़े लिखे लोग ही करते हैं,
बाकि सब तो अंगुठा छाप हैं 😀😋😀

11/10/2024

Smart Phone आने से सबसे ज़्यादा नुकसान इस शायरी का हुआ है .....🙄
लिखता हूँ खत खून से .. स्याही न समझना "
😉 🤓🤓🤓 😉

08/10/2024

आपके राशिफल में अगर आगामी कुछ दिनों
में "ऊंचाई छूने का योग" लिखा है तो•••

समझ लेना पंखे व छत के जाले साफ करने का समय आ गया है•••

07/10/2024

स्वर्ग के बाद फेसबुक और इंस्टाग्राम ही वो जगह है जहां
हर महिला सबको अप्सरा ही नज़र आती है 😊 😝😝🤣😁
💃

30/09/2024

पुरानी chat संभाल के रखने का कोई

फायदा नहीं है ....

खुद पढ़ोगे तो दिल टुटेगा

और अगर .....

घरवाली पढ़ लेगी तो हड्डियां .....😂😂

25/09/2024

एक लड़की नये टाइट जूते पहन कर मुश्किल से चल पा रही थी।
एक बुढ़िया ने देख कर पूछा: छोरी जूते ऑनलाइन खरीद के लाई के।
लड़की हरयाणे की थी।
हरयाणवी ही क्या जो सीधा जवाब दे। बोली: ना ताई पेड़ से तोड़े।
ताई भी हरयाणवी थी।
जवाब दिया: छोरी, जल्दी कर दी।
पकने देती तो तेरे नाप के हो जाते।
😀

22/09/2024

आजकल पाइप से चढ़कर लड़कियों के कमरे मे आने वाले आशिक नहीं रहे। अब सिर्फ़ इनबॉक्स में घुसने वाले बचे हैं। 😃😃

आज इंदौर का जन्मदिन है       इंदौर की स्थापना की भूली हुई कहानीयह तब की बात है, जब इंदौर में होल्कर नहीं आए थे। आज से लग...
09/12/2023

आज इंदौर का जन्मदिन है
इंदौर की स्थापना की भूली हुई कहानी
यह तब की बात है, जब इंदौर में होल्कर नहीं आए थे। आज से लगभग 300 साल पहले ‘स्पेशल इकॉनोमिक ज़ोन’ के एक दूरदर्शी विचार के तहत इंदौर की स्थापना का बीज पड़ा और यह क्रांतिकारी कल्पना थी तब के इंदौर के ज़मींदार रावराजा नन्दलाल मंडलोई की. उन्होंने कर-मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने के लिए उस समय के दिल्ली के बादशाह को अर्ज़ी भेजी और उन्हें 3 मार्च 1716 को अनुमति मिल गई । यहाँ कारोबार करने पर कर-छूट की सुविधा से खिंचकर कई व्यवसायी और उत्पादक सियागंज से लेकर नन्दलालपुरा तक के क्षेत्र में बसने लगे । सियागंज तब ‘सायर’ (चुंगी नाका) के नाम से जाना जाता था और ‘नन्दलालपुरा’ नाम अपने संस्थापक नन्दलाल मंडलोई के कारण पड़ा। तेजकरनपुरा (जो आजकल ‘शनिगली’ के नाम से जाना जाता है), रावजी बाज़ार, निहालपुरा, निहालगंज मंडी जैसे इंदौर के कई स्थानों के नाम ज़मींदार परिवार के वंशजों के नाम पर पड़े।
मालवा सूबा मुग़ल बादशाह के अधीन था. सूबे का मुख्यालय उज्जैन था। नन्दलाल के पूर्वज तब इंदौर के देव गुराडिया के पीछे स्थित कम्पेल में रहते थे । वे मालवा के सूबेदार के मार्फत बादशाह को राजस्व का हिस्सा भेजते थे। एक संत की प्रेरणा से नन्दलाल के दादा ने खान (तब का नाम ‘ख्याता’) नदी के किनारे 1800 ई. में बड़ा रावला का निर्माण किया था । नदी पर पाल बांधी गई ताकि पानी इतना गहरा हो जाए कि हाथियों को नहलाया जा सके. वह स्थान ‘हाथीपाला’ कहलाया।
जब उज्जैन के सूबेदार गिरधर नागर और दया बहादुर दिल्ली के बादशाह की अंध-भक्ति में डूबे थे, नन्दलाल मंडलोई ने भांप लिया कि मुग़ल साम्राज्य का सूर्य अस्त होनेवाला है और मराठे नई शक्ति बननेवाले हैं. दक्षिण से आनेवाले मराठों के रास्ते में नर्मदा बड़ी बाधा थी। इसके उत्तरी तटों पर चुंगी वसूलने का अधिकार नन्दलाल मंडलोई का था।अपने मित्र जयपुर के सवाई जयसिंह के आग्रह पर नन्दलाल मंडलोई ने पेशवा की सेना को अपने घाटों से 1731 ई. में नर्मदा पार करने में और दया बहादुर को हराकर मालवा में पैर जमाने में मदद की।
जयसिंह ने जीत से प्रसन्न होकर नन्दलाल मंडलोई को आभार-पत्र में लिखा, “आपकी हज़ार-हज़ार तारीफ़. मैंने (बाजीराव) पेशवा को लिखा है कि वे मालवा के सारे सरदारों के मामले आपकी इच्छानुसार तय करें.” पर दस दिन के भीतर ही नन्दलाल मंडलोई की मृत्यु हो गई. सर जॉन मॉलकम के अनुसार, “मराठों के मालवा अभियान के दौरान नन्दलाल मंडलोई के मराठों के प्रति झुकाव और मराठों को समय-समय पर दिए गए धन के कारण नन्दलाल को पेशवा की मालवा-विजय के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान मिला ।
बाद में, पेशवा ने मालवा में चौथ वसूलने का अधिकार अपने सूबेदार मल्हारराव होल्कर को सौंप दिया। इस तरह होल्कर राज्य की नींव पड़ी, पर प्रारम्भ में राज्य की राजधानी मल्हारराव की पुत्रवधू अहल्याबाई ने अपनी धार्मिक वृत्ति के चलते नर्मदा तट पर महेश्वर बनाई।अहल्याबाई की मृत्यु के बाद यह भानपुरा अंतरित हो गई।
यहाँ दो भ्रांतियां दूर कर देना उचित होगा,पहली तो यह कि ‘इंदौर देवी अहल्या की नगरी है’ अहल्याबाई ने न केवल अपने राज्य के सभी स्थानों के विकास में समान रुचि ली, बल्कि पूरे भारत में कई जगहों पर निर्माण-कार्य कराए। दूसरी, यशवंतराव होल्कर तक के सारे महाराजा अहल्याबाई के वंशज हैं । दिवंगत होने के साथ ही अहल्याबाई का होल्कर वंश समाप्त हो गया था । उनके पति की युद्ध में मृत्यु हुई, पुत्र कपूत निकला और बाद में उसे भी खोना पड़ा—इन सब को उन्होंने ईश्वरीय न्याय मानकर झेला और दरबार में और पड़ोसी राज्यों में चलती दुरभिसंधि के बीच राजकाज की जिम्मेदारी इस दृढ़ता और कौशल से निबाही कि इतिहास में वे एक शलाका-नारी सिद्ध हुईं।अहल्याबाई ने तुकाजी का चुनाव अपने सेनापति के रूप में किया, जो समय की कसौटी पर सही साबित हुआ। तुकाजी वीर थे और अंत तक वफ़ादार रहे। तुकाजी भी होल्करों के पैतृक ‘होळ’ गांव के थे और खुद को ‘होल्कर’ ही कहते थे. वारिस-विहीन अहल्याबाई का राजकार्य तुकाजी होल्करके वंशजों ने संभाला, जबकि उनका अहल्याबाई के वंश से कोई सम्बन्ध नहीं था।
अहल्याबाईके बाद तुकाजीके पुत्रों में गद्दी हथियाने की जंग छिड़ी, जिसमें जसवंतराव होल्कर सफल हुआ। जसवंतराव ने जब सिंधिया-शासित उज्जैन और महाकाल को लूटा, तब बदले में सिंधिया ने भी इंदौर को पिंडारियों की मदद से लूटा और राजबाड़ा जला दिया।तब होल्करों ने इंदौर के पुनर्निर्माण के लिए तत्कालीन ज़मींदार दुलेराव और उनके पुत्र माधवराव से आग्रह किया ।
1818 ई. में होल्कर महिदपुर की लड़ाई में अंग्रेज़ों से हार गए और राजधानी इंदौर लाए. इंदौर तब तक कपास, गेहूं, अफ़ीम की मंडी और उद्योग-धंधों के केंद्र के रूप में विकसित हो चुका था। तब रेसिडेंसी के निर्माण के लिए तत्कालीन ज़मींदार के नवलखा बाग से जमीन दी गई, पिछली सदी में बने महाराजा यशवंतराव अस्पताल की ज़मीन भी जनकल्याण के काम को ध्यान में रखते हुए ज़मींदार-परिवार ने नाम-मात्र की राशि पर दे दी।
इंदौर को उद्योग-नगरी ही नहीं उद्यान-नगरी बनाने का सूत्रपात भी नन्दलाल मंडलोई ने किया था और इंदौर का वह स्वरूप आज भी कमो-बेश रूप में बना हुआ है।🙏

जिंदगी का भले कितना मुश्किल हो पथ थाम   हाथो   को   अब  हम  चलेंगे  यहां
17/07/2023

जिंदगी का भले कितना मुश्किल हो पथ
थाम हाथो को अब हम चलेंगे यहां

माँ शारदे की असीम अनुकम्पा से और मेरे काव्य गुरु आदरणीय श्री Kanhaiya Kumare  सर जिन्होंने मेरे भीतर काव्य के प्रति अनुर...
17/09/2022

माँ शारदे की असीम अनुकम्पा से और मेरे काव्य गुरु आदरणीय श्री Kanhaiya Kumare सर जिन्होंने मेरे भीतर काव्य के प्रति अनुरक्ति और निष्ठा के बीज का अंकुरण किया और फिर आदरणीय Ashok Charan भैया व श्री कांत सरल दादा ने उस नन्हे अंकुरित पौध को संरक्षित करके पल्लवित किया ,वही नन्ही पौध अपने सभी बड़ो के आशीष व आप सभी की शुभकामनाओं से ऊर्जा व पोषण प्राप्त करके अपने विकास की और, अपने गंतव्य को शनै: शनै: अग्रसर हो रही हैं ।
साहित्य सारथी संस्थान द्वारा 24 सितम्बर 2022 की संध्या को गीत वेणु महोत्सव और अखिल भारतीय कवि सम्मेलन ,प्रथम साहित्य सारथी सम्मान समारोह के साथ आयोजित किया जा रहा है ।
जिसमे आप सभी की शुभकामनाओं सहित आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है ।

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