24/04/2025
एक सच्ची कहानी मेरे dog के ऊपर लिखने का मन किया, लिखने के बाद मुझे अच्छा लगा इस लिए शेयर कर दिया मेरे और रॉकी की कहानी।
जब मैं पढ़ाई पूरी कर के अपने घर लौटा, तो लॉन में गाड़ी से उतरते ही मेरी पहली नज़र एक साल के जर्मन शेफर्ड पर पड़ी। वो शांत खड़ा था और मुझे सीधे देख रहा था — एक ऐसी नजर से जो किसी अजनबी को नहीं, बल्कि जैसे मुझे जानता हो |
शुरुआत में रॉकी बेहद गंभीर स्वभाव का था। लेकिन जैसे-जैसे हम दोनों का साथ बढ़ा, वैसे-वैसे एक अनकहा रिश्ता बनता गया। शाम को जब मैं कामकाज से लौटता, तो रॉकी दरवाज़े तक आता, मुझे अंदर तक छोड़ता। उस वक़्त मेरा कोई दोस्त नहीं था, कोई साथ नहीं था — बस एक लॉन था और उसमें मैं रॉकी के साथ खेलता, साथ ही 1-2 घंटे लॉन में जॉगिंग करता, और रॉकी मेरे साथ चुपचाप चलता। वो सिक्योरिटी देता, बिना माँगे। किसी अनजान के पास आने पर उसकी निगाहें सतर्क हो जातीं। अगर कोई मुझे टच करने की कोशिश करता, तो रॉकी तुरंत अलर्ट मोड में आ जाता।
एक बार तो मेरे कज़िन भाई ने मज़ाक में मुझे मारने की एक्टिंग की, रॉकी ने इसे गंभीरता से लिया। और फिर ज़िन्दगी भर उसे घर के अंदर घुसने नहीं दिया। उसके लिए मैं ही उसकी पूरी दुनिया था।
फिर एक दिन... रॉकी को पैरालिसिस अटैक हुआ।
अब वो चल नहीं सकता था, गर्दन भी नहीं हिला पाता था। लेकिन उसका प्यार और सुरक्षा की भावना ज्यों की त्यों बनी रही।कोई मेरे पास आता था तो garrrr garrrrr करने लगता|
हर सुबह-शाम उसकी पोज़िशन बदलता, इंजेक्शन देता, syringe से खाना खिलाता। मेरे पास उस समय स्टाफ नहीं हुआ करते थे, सब खुद करता था।
धीरे-धीरे उसकी हालत और बिगड़ती गयी। शरीर पर घाव और कीड़े पड़ने लगे।एक दिन मैं ऑपरेशन में देर से लौटा, सीधा उसके पास गया तो देखा, उसे किसी ने ढक दिया था। मैंने जल्दी से साफ-सफाई की, पोजिशन बदली। और बोल बैठा — “अब चले जाओ…” ऐसा लगा जैसे वो मेरे आदेश के लिये रुका था, उसने मेरे आदेश का पालन किया। अगली सुबह खबर आई — रॉकी अब नहीं रहा।
मैं बहुत रोया… शायद किसी इंसान के जाने पर भी इतना नहीं रोया था।
आज भी जब ये कहानी लिख रहा हूँ तो उसकी हरकते याद कर मन खुश भी हुआ, आंखे नम भी..
रॉकी सिर्फ एक जानवर नहीं था, मेरा दोस्त था, मेरा परिवार था।