Mahashakti Ayurved Bhavan

Mahashakti Ayurved Bhavan Health by Ayurveda n Naturopathy..

07/02/2025
20/12/2024
03/05/2023

*कुछ आयुर्वेदिक चूर्ण का गुण एवं उपयोग*
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*आपातकाल में अन्य परिस्तिथतियों में हमारे दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी हैं।*

*🌷अश्वगन्धादि चूर्ण :-*
धातु पौष्टिक, दिमाग की कमजोरी, प्रमेह, शक्तिवर्द्धक, वीर्य-वर्द्धक, पौष्टिक तथा बाजीकर, शरीर की झुर्रियों को दूर करता है। मात्रा 5 से 10 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

*🌷अविपित्तकर चूर्ण :-*
अम्लपित्त की सर्वोत्तम दवा। छाती और गले की जलन, खट्टी डकारें, कब्जियत आदि पित्त रोगों के सभी उपद्रव इससे शांत होते हैं। मात्रा 3 से 6 ग्राम पानी के साथ।

*🌷आमलकी रसायन चूर्ण :-*
पौष्टिक, पित्त नाशक व रसायन है। नियमित सेवन से शरीर व इन्द्रियां दृढ़ होती हैं। मात्रा 3 ग्राम प्रातः व सायं पानी के साथ।

*🌷जातिफलादि चूर्ण :*-

अतिसार, संग्रहणी, पेट में मरोड़, अरुचि, अपचन, मंदाग्नि, वात-कफ तथा सर्दी-जुकाम को नष्ट करता है। मात्रा 1.5 से 3 ग्राम शहद से।

*🌷दाडिमाष्टक चूर्ण*
स्वादिष्ट एवं रुचिवर्द्धक। अजीर्ण, अग्निमांद्य, अरुचि गुल्म, संग्रहणी, व गले के रोगों में। मात्रा 3 से 5 ग्राम भोजन के बाद। पानी से।

*🌷चातुर्भद्र चूर्ण*
बच्चों के सामान्य रोग, ज्वर, अपचन, उल्टी, अग्निमांद्य आदि पर गुणकारी। मात्रा 1 से 4 रत्ती दिन में तीन बार शहद से।

*🌷चोपचिन्यादि चूर्ण :-*
उपदंश, प्रमेह, वातव्याधि, व्रण आदि पर। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः व सायं जल अथवा शहद से।

*🌷पुष्यानुग चूर्ण :-*
स्त्रियों के प्रदर रोग की उत्तम दवा। सभी प्रकार के प्रदर, योनि रोग, रक्तातिसार, रजोदोष, बवासीर आदि में लाभकारी। मात्रा 2 से 3 ग्राम सुबह-शाम शहद अथवा चावल के पानी में।

*🌷यवानिखांडव चूर्ण :-*
रोचक, पाचक व स्वादिष्ट। अरुचि, मंदाग्नि, वमन, अतिसार, संग्रहणी आदि उदर रोगों पर गुणकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम।

*🌷लवणभास्कर चूर्ण :-*
यह स्वादिष्ट व पाचक है तथा आमाशय शोधक है। अजीर्ण, अरुचि, पेट के रोग, मंदाग्नि, खट्टी डकार आना, भूख कम लगना आदि अनेक रोगों में लाभकारी। कब्जियत मिटाता है और पतले दस्तों को बंद करता है। बवासीर, सूजन, शूल, श्वास, आमवात आदि में उपयोगी। मात्रा 3 से 6 ग्राम मठा (छाछ) या पानी से भोजन के पूर्व या पश्चात लें।

*🌷लवांगादि चूर्ण :-*
वात, पित्त व कफ नाशक, कंठ रोग, वमन, अग्निमांद्य, अरुचि में लाभदायक। स्त्रियों को गर्भावस्था में होने वाले विकार, जैसे जी मिचलाना, उल्टी, अरुचि आदि में फायदा करता है। हृदय रोग, खांसी, हिचकी, पीनस, अतिसार, श्वास, प्रमेह, संग्रहणी, आदि में लाभदायक। मात्रा 3 ग्राम सुबह-शाम शहद से।

*🌷व्योषादि चूर्ण :*
श्वास, खांसी, जुकाम, नजला, पीनस में लाभदायक तथा आवाज साफ करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सायंकाल गुनगुने पानी से।

*🌷शतावरी चूर्ण*
धातु क्षीणता, स्वप्न दोष व वीर्यविकार में, रस रक्त आदि सात धातुओं की वृद्धि होती है। शक्ति वर्द्धक, पौष्टिक, बाजीकर तथा वीर्य वर्द्धक है। मात्रा 5 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

*🌷विरेचन चूर्ण) :-*
हल्का दस्तावर है। बिना तकलीफ के पेट साफ करता है। खून साफ करता है तथा नियमित व्यवहार से बवासीर में लाभकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम रात्रि सोते समय गर्म जल अथवा दूध से।

*🌷सारस्वत चूर्ण :-* *
दिमाग के दोषों को दूर करता है। बुद्धि व स्मृति बढ़ाता है। अनिद्रा या कम निद्रा में लाभदायक। विद्यार्थियों एवं दिमागी काम करने वालों के लिए उत्तम। मात्रा 1 से 3 ग्राम सुबह शाम दूध से।

*🌷सितोपलादि चूर्ण :*
पुराना बुखार, भूख न लगना, श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, अरुचि जीभ की शून्यता, हाथ-पैर की जलन, नाक व मुंह से खून आना, क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 1 से 3 ग्राम सुबह-शाम शहाद से।

*🌷महासुदर्शन चूर्ण :-*
सब तरह का बुखार, इकतरा, दुजारी, तिजारी, मलेरिया, जीर्ण ज्वर, यकृत व प्लीहा के दोष से उत्पन्न होने वाले जीर्ण ज्वर, धातुगत ज्वर आदि में विशेष लाभकारी। कलेजे की जलन, प्यास, खांसी तथा पीठ, कमर, जांघ व पसवाडे के दर्द को दूर करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ।

सैंधवादि चूर्ण :-
०००००००००
अग्निवर्द्धक, दीपन व पाचन। मात्रा 2 से 3 ग्राम प्रातः व सायंकाल पानी अथवा छाछ से।

*🌷हिंग्वाष्टक चूर्ण :-*
पेट की वायु को साफ करता है तथा अग्निवर्द्धक व पाचक है। अजीर्ण, मरोड़, ऐंठन, पेट में गुड़गुड़ाहट, पेट का फूलना, पेट का दर्द, भूख न लगना, वायु रुकना, दस्त साफ न होना, अपच के दस्त आदि में पेट के रोग नष्ट होते हैं तथा पाचन शक्ति ठीक काम करती है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।

*🌷त्रिकटु चूर्ण :-*

खांसी, कफ, वायु, शूल नाशक, व अग्निदीपक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम प्रातः-सायंकाल शहद से।

*🌷त्रिफला चूर्ण :*-

कब्ज, पांडू, कामला, सूजन, रक्त विकार, नेत्रविकार आदि रोगों को दूर करता है तथा रसायन है। पुरानी कब्जियत दूर करता है। इसके पानी से आंखें धोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। मात्रा 1 से 3 ग्राम घी व शहद से तथा कब्जियत के लिए 5 से 10 ग्राम रात्रि को जल के साथ।

*🌷श्रृंग्यादि चूर्ण :-*

बच्चों के श्वास, खांसी, अतिसार, ज्वर में।
मात्रा 2 से 4 रत्ती प्रातः-सायंकाल शहद से।

*अग्निमुख चूर्ण :-*
००००००००००००
उदावर्त, अजीर्ण, उदर रोग, शूल, गुल्म व श्वास में लाभप्रद। अग्निदीपक तथा पाचक। मात्रा 3 ग्राम प्रातः-सायं गरम जल से।

14/04/2023

"गाय का जूठा गुड़"

आज एक आपबीती पढ़ी जो आत्मा ,अंतर्मन को छू गई।

लेख का शीर्षक पढ़ कर ही मन में उत्सुकता जाग गई यह तो सुना था कि गाय को गुड़ खिलाना बहुत अच्छा माना जाता है।

परंतु शीर्षक कुछ भिन्न था।

जिससे उत्सुकता बढ़ी और पूरा लेख एक लगातार पढ़ता गया शायद आप लोगों को यह लेख पसंद आए।

एक विवाह के निमंत्रण पर जाना था, मैं वहां जाना नहीं चाहता था, वजह थी कि विवाह गांव में थी।

एक व्यस्त होने का बहाना और दूसरा गांव की विवाह में शामिल होने से बचना, लेकिन घर परिवार का दबाव था सो जाना पड़ा।

विवाह के घर में हर किसी को कोई ना कोई काम सौंप दिया जा रहा था।

उस दिन विवाह के सुबह मैं काम से बचने के लिए सैर करने के बहाने दो-तीन किलोमीटर दूर जाकर गांव को जाने वाली रोड पर बैठा हुआ था।

हल्की हवा और सुबह का सुहाना मौसम बहुत ही अच्छा लग रहा था।

शहर में देर उठना और काम पर लग जाना कहां इतना सुहाना मौसम मिल पाता ,खैर पास के खेतों में कुछ गाय चारा खा रही थी।

तभी वहां एक लग्जरी गाड़ी आकर रुकी उसमें से एक वृद्ध उतरे अमीरी उनके लिबास और व्यक्तित्व दोनों बयां कर रहे थे।

वह पॉलिथीन बैग लेकर मुझसे कुछ दूरी पर ही एक सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गए, पॉलिथीन चबूतरे पर उड़ेल दी, उसमें गुड़ भरा हुआ था।

जब उन्होंने आकर के पास में खड़ी और बैठी गायों को आओ आओ बुलाया सभी गाय पलक झपकते उन बुजुर्ग के इर्द-गिर्द आ गई ,जैसे की महीनों बाद मिलने पर बच्चे अपने मां बाप को घेर लेते हैं।

वह कुछ गाय को गुड़ खिला रहे थे कुछ स्वयं खा रही थी, बड़े प्रेम से उनके सिर पर गले पर हाथ फेर रहे थे।

कुछ ही देर में गाय अधिकांश गुड़ खाकर चली गई।

इसके बाद जो हुआ वह वाक्या जिसे मैं जिंदगी भर नहीं भूला सकता।

हुआ यूं की गाय के गुड़ खाने के बाद जो गुड़ बच गया था वो बुजुर्ग उन टुकड़ों को उठा उठा कर खाने लगे।

मैं उनकी क्रिया से अचंभित हुआ, उन्होंने बिना किसी परवाह के कई टुकड़े खाए और अपनी गाड़ी के ओर चल पड़े।

मैं दौड़ के नजदीक पहुंचा और बोला श्रीमान जी क्षमा चाहता हूं पर अभी जो हुआ उससे मेरा दिमाग घूम गया।

क्या आप मेरी जिज्ञासा को शांत करेंगे कि आप इतने अमीर होकर भी गाय का झूठा गुड़ क्यों खा रहे थे ?

उनके चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान उभरी उन्होंने कार का गेट वापस बंद करा और मेरे कंधे पर हाथ रख कर वापस सीमेंट के चबूतरे पर आ बैठे, और बोले यह जो गुड़ के झूठे टुकड़े देख रहे हो ना बेटे मुझे इनसे स्वादिष्ट आज तक कुछ नहीं लगा।

जब भी वक्त मिलता है अक्सर इसी जगह अपनी आत्मा में इस गुड़ की मिठास घोलता हूं, मैं अब भी नहीं समझा, श्रीमान जी ?

आखिर ऐसा क्या है इस गुड़ में ?

मैंने बड़ी उत्सुकता से कहा वह बोले ये बात आज से कोई 40 वर्ष पहले की है ,उस वक्त मैं 22 साल का था घर में जबरदस्त आंतरिक कलह के कारण घर से भाग आया था।

परंतु दुर्भाग्यवश ट्रेन में कोई मेरा सारा सामान और पैसे चुरा ले गया।

इस अजनबी छोटे शहर में मेरा कोई नहीं था भीषण गर्मी में खाली जेब के 2 दिन भूखे रहकर इधर से उधर भटकता रहा और शाम को भूख मुझे निगलने को आतुर थी।

तब इसी जगह ऐसी ही एक गाय को एक महानुभाव गुड़ डाल कर चले गए।

वहां पीपल के पेड़ हुआ करता था, तब चबूतरा नहीं था मैं उसी पेड़ की जड़ों पर बैठा भूख से बेहाल हो रहा था।

मैंने देखा गाय ने गुड़ को छुआ तक नहीं और उठ कर वहां से चली गई।

मैं कुछ देर तक कर्तव्यविमुढ़ सोचता रहा और फिर मैंने गुड़ उठा लिया और खा लिया, मेरी मृतप्राय आत्मा में प्राण से आ गए।

मैं उसी पेड़ के जड़ में रात भर पड़ा रहा, सुबह जब मेरी आंख खुली तो काफी रोशनी हो चुकी थी मैं नित्यकर्म से निपटकर किसी काम की तलाश में सारा दिन भटकता रहा।

पर दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था।

एक और थकान भरे दिन ने मुझे वापस उसी जगह निराश भूखा खाली हाथ लौटा दिया।

शाम ढल रही थी कल और आज में कुछ तो नहीं बदला वही पीपल वही भूखा मैं और वही गाय।

कुछ देर में वहां वही कल वाले सज्जन आए और गुड़ की डलिया गाय को डाल कर चलते बने गाय उठी बिना गुड़ के ओर देखे खाए चली गई।

मुझे अजीब लगा था, परंतु मैं बेबस था सो आज फिर गुड़ खा लिया वही सो गया सुबह काम तलाशने निकला तब शायद दुर्भाग्य कि चादर मेरे सर पर नहीं थी।

तो एक ढ़ाबे पर मुझे काम मिला कुछ दिन बाद मालिक ने मुझे पहली पगार दी तो मैंने 1 किलो गुड़ खरीदा किसी दिव्य शक्ति के वशीभूत 7 किलोमीटर पैदल चलकर उसी पेड़ के नीचे आया।

इधर उधर नजर दौड़ाई तो गाय भी दिख गई उस गाय को गुड़ डाल दिया इस बार मैं अपने जीवन में सबसे ज्यादा चौंका क्योंकि गाय सारा गुड़ खा गई।

इसका मतलब साफ था कि गाय ने दो दिन जानबूझकर मेरे लिए गुड़ छोड़ा था।

मेरा हृदय भर उठा उस ममतामई स्वरूप की ममता देखकर मैं रोता हुआ वापस ढाबे में पहुंचा।

बहुत सोचता रहा फिर एक दिन मुझे एक फर्म में नौकरी मिल गई दिन पर दिन में उन्नति और तरक्की के शिखर चढ़ता गया।

शादी हुई बच्चे हुए आज मैं खुद की पांच फर्म का मालिक हूं।

जीवन की इस लंबी यात्रा में मैंने कभी उस गाय माता को नहीं भुलाया।

मैं अक्सर यहां आता हूं और गायों को गुड़ डालकर जूठा गुड़ खाता हूं , जिससे मेरी हृदय और आत्मा तृप्त हो जाती है मैं लाखों रुपए गौशाला में भी चंदा देता हूं।

परंतु मेरी मृगतृष्णा मन की शांति यहीं आकर मिटती और मिलती है बेटे।

मैं देख रहा था वह बहुत भावुक हो चले थे समझ गए अब तो तुम ?

मैंने सिर हां में हिलाया, वे चल पड़े गाड़ी स्टार्ट हुई निकल गई।

मैं उन्हीं टुकड़ों में से एक टुकड़ा उठाया मुंह में डाला वापस विवाह में सच्चे मन से शामिल हुआ।

सचमुच वह कोई साधारण गुड़ नहीं था उसमें कोई दिव्य मिठास थी जो जीभ के साथ-साथ आत्मा को मीठा और तृप्त कर गई।

घर आकर गाय के बारे में जानने के लिए कुछ किताबें पढ़नी शुरू की पढ़ने के बाद जाना गाय गोलोक की अमूल्य निधि है।

जिसकी रचना भगवान ने मनुष्य के कल्याणार्थ और आशीर्वाद रूप से की है गौएं विकार रहित दिव्य अमृत धारण करती हैं और दुहने पर अमृत ही देती हैं।

वे अमृत का खजाना हैं।

सभी देवता गौ माता के अमृत रूपी को दूध का पान करने के लिए गौ माता के शरीर में सदैव निवास करते हैं।

ऋग्वेद में गो को अदिति कहा गया है दिती का नाम नाश का प्रतीक है और अदिति अविनाशी अमृतत्व का नाम है।

अतः गो को आदिती कह कर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है।

गावो विश्वस्य मातरम्
गोमाता विश्व माता
जय गोमाता ॐ जय गोपाल
वन्दे धेनु मातरम् 🙏

साभार प्रतिलिपि

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