Kapil clinic पहाड़ियां दी हट्टी

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Kapil clinic पहाड़ियां दी हट्टी Complete Solution for all type of disese. specially for piles , jaundice, hair fall, skin and all types stomach disease with ayurvedic medicine

21/07/2025

क्या आप गुदा रोग बवासीर (Piles),भगंदर(Fistula) और फिशर(Fissure) से परेसान है???
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■जो लोग गुदा मार्ग की बीमारी जैसे बवासीर ,भगंदर एवं फिसर से परेशान है.
■गुदा मार्ग में खुजली और जलन होती है.
■गुदा मार्ग से खून आता है.
■गुदा मार्ग में दर्द बहुत रहता हो.

■बवासीर , भगंदर और फिशर का आयुर्वेदिक क्षार सूत्र पद्धति द्वारा बिना किसी जटिल सर्जरी के सफल इलाज होता है.

■क्षार सूत्र प्रक्रिया कराने के 30 मिनट बाद आप घर जा सकते हैं.

■क्षार सूत्र प्रक्रिया में ना किसी प्रकार का दर्द होता है ना ब्लड आता है.

■क्षार सूत्र प्रक्रिया कराने के बाद बवासीर (Piles) ,भगंदर (fistula) और फिशर(Fissure)आदि गुदा रोगों के फिर से होने की संभावना लगभग शून्य होती है

●हमारे यहां इन सभी गुदा मार्ग की बीमारियो का इलाज आयुर्वेदिक क्षार सूत्र और लेजर द्वारा कुशल चिकित्सकों द्वारा किया जाता है।

●जो इन परेशानियों से परेसान है वो एक बार आकर जरूर मिले..

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--------: रोजमेरी एसेंशियल ऑयल :---------              ( उपयोगिता और प्रयोग )       रोजमेरी एसेंशियल ऑयल (Rosemary Essen...
03/07/2025

--------: रोजमेरी एसेंशियल ऑयल :---------
( उपयोगिता और प्रयोग )
रोजमेरी एसेंशियल ऑयल (Rosemary Essential Oil) एक प्रसिद्ध औषधीय तेल है जो रोजमेरी पौधे (Rosmarinus officinalis) की पत्तियों से निकाला जाता है। यह तेल आयुर्वेद, यूनानी, और आधुनिक अरोमाथेरेपी में अत्यंत उपयोगी माना जाता है।
1- मुख्य उपयोगिताएँ ------
(1) स्नायु एवं मानसिक शक्ति बढ़ाने में ------
* याददाश्त बढ़ाने, एकाग्रता सुधारने और मानसिक थकान को दूर करने में सहायक।
* विद्यार्थियों और मानसिक कार्य करने वालों के लिए विशेष उपयोगी।
(2) बालों की देखभाल में ------
* बालों का झड़ना रोकता है।
* स्कैल्प को उत्तेजित कर नए बाल उगाने में सहायता करता है।
* डैंड्रफ कम करता है।
(3) त्वचा संबंधी समस्याओं में ------
* त्वचा को टोन करता है और मुंहासों को कम करता है।
* एंटीसेप्टिक गुणों के कारण संक्रमण से सुरक्षा करता है।
(4) मांसपेशियों एवं जोड़ों के दर्द में ------
* एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होने के कारण जोड़ों व मांसपेशियों के दर्द में राहत देता है।
(5) सांस संबंधी लाभ -------
* सर्दी, खांसी, जुकाम, ब्रोंकाइटिस आदि में उपयोगी।
* भाप में मिलाकर सूंघने से बलगम ढीला करता है।
2- प्रयोग विधियाँ ------
(1) अरोमाथेरेपी में ------
* डिफ्यूज़र में 3–5 बूंदें डालें।
* मानसिक तनाव, थकान, और उदासी दूर करने में सहायक।
(2) बालों के लिए -----
* नारियल या बादाम तेल में 4–5 बूंदें मिलाकर स्कैल्प पर मालिश करें।
* सप्ताह में 2–3 बार प्रयोग करें।
(3) त्वचा के लिए ------
* एलोवेरा जेल या कैरियर ऑयल में मिलाकर चेहरे पर लगाएं।
* सीधे न लगाएं, त्वचा पर जलन हो सकती है।
(4) मालिश के लिए ------
* सरसों, नारियल या तिल तेल में मिलाकर जोड़ों या पीठ पर मालिश करें।
(5) स्टीम इनहेलेशन ------
* गर्म पानी में 2–3 बूंदें डालें, सिर पर तौलिया रखकर भाप लें।
3- सावधानियाँ ------
(1) इसे कभी भी सीधे त्वचा या बालों पर न लगाएं। हमेशा कैरियर ऑयल में मिलाकर प्रयोग करें।
(2) गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली महिलाएं, और छोटे बच्चों पर उपयोग से पहले चिकित्सकीय परामर्श लें।
(3) आँखों और मुँह में न जाने दें।

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---------: एडोमेट्रियोसिस में, पिचु-उपनाह उपचार :-------       एंडोमेट्रियोसिस एक जटिल स्त्री रोग है,  जिसमें गर्भाशय की...
03/07/2025

---------: एडोमेट्रियोसिस में, पिचु-उपनाह उपचार :-------
एंडोमेट्रियोसिस एक जटिल स्त्री रोग है, जिसमें गर्भाशय की अंदरूनी परत (एंडोमेट्रियम) की ऊत्तकें गर्भाशय के बाहर—जैसे डिंबग्रंथि, अंडवाहिनी या श्रोणि गुहा—में बढ़ने लगती हैं, जिससे तीव्र दर्द, अनियमित मासिक धर्म, बांझपन व सूजन आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं।
आयुर्वेद में इसे " वन्ध्यत्व हेतुक योनिविकार " और " वात-कफज योनिशूलय " की श्रेणियों में रखा जाता है।
1- एंडोमेट्रियोसिस में पिचु व उपनाह चिकित्सा ------
योनि पिचु (Yoni Pichu)
(1) उद्देश्य -------
* गर्भाशय की शुद्धि, वात-कफ शमन।
* दर्द व सूजन नियंत्रण।
* योनिकांठ, गर्भाशय की नसों में पौष्टिकता।
(2) सामग्री ---------
* सुपर्णिका तैल (स्त्रीजनन संस्थान हेतु विशेष तैल)।
* या बालान तैल (गर्भाशय व योनिशूल में लाभकारी)।
* रुई (स्वच्छ व कोमल)।
* गुनगुना जल।
(3) विधि -------
* रात्रि में सोने से पहले, सुपर्णिका तैल को थोड़ा गुनगुना करें।
* रुई में तैल भिगोकर निचोड़ें, ताकि वह टपके नहीं।
* उसे योनिमार्ग में धीरे-से प्रवेश कराएं (2–3 cm तक)।
* 3–4 घंटे तक रखें या पूरी रात।
* सुबह गुनगुने पानी से स्नान करें।
* 21 दिन तक रोज, फिर 7 दिन विराम। इस चक्र को 2–3 बार दोहराएं।
2- अधोवस्ति उपनाह (Lower Abdomen Upanaha)
(1) उद्देश्य -------
* श्रोणि क्षेत्र में रुके रक्त, कफ व वात का निवारण।
* सूजन, मासिक पीड़ा में आराम।
(2) सामग्री ------
* रसनादि चूर्ण या अरिष्टक चूर्ण या गोक्षुर + गुडुचि + अरंडी मूल।
* सुपर्णिका तैल या माष तैल।
* जौ या गेंहूं का आटा (संयोजन हेतु)।
* एरण्ड पत्र (बांधने के लिए)।
* गरम पट्टी या ऊन का कपड़ा
(3) विधि ------
* चूर्ण + तैल + आटा मिलाकर गाढ़ा लेप बना लें।
* हल्का गरम करके, नाभि के नीचे अधोवस्ति क्षेत्र पर लगाएं।
* ऊपर से एरण्ड पत्र या कपड़ा रखें।
* हल्की पट्टी से बांधें।
* 3–4 घंटे तक रखें या रातभर।
* दिन में एक बार, 21 दिन तक प्रयोग करें।
3- पूरक उपाय (With Pichu & Upanaha)
उपचार/ औषधि या विधि -----
(1) औषध सेवन/ अशोकघन वटी, सुपर्णिका वटी, राजःप्रवर्तिनी वटी (चक्रानुसार)
(2) क्वाथ या काढ़ा/ दशमूल क्वाथ + अशोक + लोध्र।
(3) वास्ति (बस्ती)/ स्नेहबस्ती – सुपर्णिका तैल (पंचकर्म वैद्य देखरेख में)।
(4) योग/ सुप्तबद्धकोणासन, मंडूकासन, पवनमुक्तासन।
(5) पथ्य आहार/ तिक्त-काशाय रस, त्रिकटु युक्त भोजन, तेल मुक्त, लघु सुपाच्य आहार।
4- सावधानी --------
(1) पिचु, मासिक धर्म के दिनों में न करें।
(2) संक्रमण, जलन, या अज्ञात योनि रोगों में पिचु न डालें।
(3) उपनाह, यदि बहुत गर्म हो, तो त्वचा जल सकती है — पहले हाथ पर परीक्षण करें।
(4) औषधि चयन हेतु, वैद्य की सलाह अवश्य लें।

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अच्छा "स्वास्थ" ही आपका असली "धन" है। बाकी सब बाद में ......आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें!! फाइबर युक्त आहार लें, खूब ...
01/07/2025

अच्छा "स्वास्थ" ही आपका असली "धन" है।
बाकी सब बाद में ......

आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें!! फाइबर युक्त आहार लें, खूब पानी पीएं, चीनी नमक और फूड ऑयल का संतुलित मात्रा में उपयोग करें।

एसिडिक फूड जैसे - चाय बिस्कुट नमकीन, फास्ट फूड और मिठाईयां को अपनी डाइट से कम करें।

एल्कलाइन जैसे - ताजे फल और हरी सब्जियों को अपनी डाइट में शामिल करें तथा रोजाना कम से कम 10,000 कदम जरूर चलें।

थोड़ा सा बदलाव आपके जीवन में बड़ी खुशी लेकर आएगा और अलग पहचान भी दिलाएगा 🎉🎉

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---------: थायराइड में औषधीय प्रयोग : -----------      थायरॉयड के दोनों प्रकार — हाइपोथायरॉयडिज्म और हाइपरथायरॉयडिज्म — ...
28/06/2025

---------: थायराइड में औषधीय प्रयोग : -----------
थायरॉयड के दोनों प्रकार — हाइपोथायरॉयडिज्म और हाइपरथायरॉयडिज्म — में आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करते समय -- मात्रा, अनुपान (सेवन के साथ लिया जाने वाला द्रव्य) और अवधि (कोर्स की लंबाई) बहुत महत्वपूर्ण होती है। नीचे दोनों प्रकार के अनुसार विवरण दिया गया है --------
1- हाइपोथायरॉयडिज्म में औषधीय विवरण -----
(1) कचनार गुग्गुल ------
2 से 3 गोली ( 500mg) लगभग, गुनगुने पानी के साथ, भोजन के बाद दिन में दो बार, 3 या 6 महीने ( चिकित्सक परामर्श अनुसार )।
(2) अश्वगंधा चूर्ण / घन वटी ------
3 से 5 ग्राम ( एक चम्मच )/ घन वटी 1से 2 गोली, दूध या गर्म पानी के साथ, रात को सोते समय, 3 महीने से अधिक समय तक।
(3) त्रिफला चूर्ण -----
3 से 5 ग्राम ( एक चम्मच ) , गरम पानी के साथ, रात में भोजन के बाद, लम्बे समय तक लें।
(4) ब्राह्मी वटी / चूर्ण ------
1-2 गोली चूर्ण 3-5 ग्राम ( एक चम्मच ) लगभग, पानी या शहद के साथ, सुबह खाली पेट या रात में, 2 से 3 महीने तक ले सकते है।
(5) पुनर्नवा मण्डूर --------
1-2 गोली, गुनगुने पानी के साथ, भोजन के बाद दोनों समय, 2-3 महीने तक ले सकते है।
2- हाइपरथायरॉयडिज्म में औषधीय विवरण -------
(1) प्रवाल पिष्टी -----
125/ 250 mg तक, ठंडे पानी या शहद के साथ, सुबह खाली पेट, 1-2 महीने तक सेवन करें।
(2) मुक्ता पिष्टी ------
125/250mg तक, ठंडे ताजी पानी या गुलाब जल के साथ, सुबह खाली पेट, 1 से 2 महीने तक ले सकते है।
(3) ब्राह्मी घन वटी ------
1-2 गोली , पानी या शहद के साथ, सुबह और रात को , 2-3 महीने तक ले सकते है।
(4) जटामाशी चूर्ण / वटी -----
500mg या एक ग्राम, दूध या शहद के साथ, रात को सोने से पहले, 1से 3 महीने तक।
(5) गिलोय सत्व वटी -----
250 से 500 mg तक, गुनगुने पनी के साथ, सुबह खाली पेट, तीन महीने तक ले सकते है।
महत्वपूर्ण सुझाव --------
(1) औषधियों का सेवन किसी आयुर्वेद चिकित्सक के मार्गदर्शन में करें। क्योंकि , शरीर प्रकृति, अन्य रोग, पाचन शक्ति और जीवनशैली के अनुसार मात्रा में परिवर्तन संभव होता है।
(2) यदि आप एलोपैथिक थायरॉयड की गोली (जैसे Eltroxin) ले रहे हैं, तो पहले उस चिकित्सक से परामर्श लें। क्योंकि , आयुर्वेदिक औषधीय के साथ समन्वय आवश्यक होता है।
(3) औषधि सेवन के समय योग, निद्रा, और मानसिक शांति का विशेष ध्यान रखें।
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-------: IBS का आयुर्वेदिक दृष्टिकोण :-------      आयुर्वेद में,  इसे " ग्रहणी दोष " की संज्ञा दी गई है। यह अग्निमांद्य ...
27/06/2025

-------: IBS का आयुर्वेदिक दृष्टिकोण :-------
आयुर्वेद में, इसे " ग्रहणी दोष " की संज्ञा दी गई है। यह अग्निमांद्य (पाचन अग्नि की दुर्बलता), दोषों के विषम अवस्था और मनसिक कारणों से उत्पन्न होता है।
(ख)
IBS (ग्रहणी) का उपचार – आयुर्वेदिक व प्राकृतिक पद्धति --------
1- अग्नि दीपन और आमपाचन (Digestive correction) --------
(1) हिंग्वाष्टक चूर्ण – 1-2 ग्राम भोजन से पहले या बाद में।
(2) अविपत्तिकर चूर्ण – IBS-D में।
(3) त्रिफला चूर्ण – IBS-C में, रात को गुनगुने जल से।
(4) शंखवटी, चंद्रप्रभा वटी – वात-कफज IBS में।
(5) तक्र (छाछ) सेवन – सैंधव लवण व अजवायन मिलाकर।
2- मानसिक संतुलन हेतु -------
(1) ब्राह्मी घृत या सर्पगंधा वटी – नींद व चिंता नियंत्रण हेतु।
(2) अश्वगंधा चूर्ण – 3–5 ग्राम, दूध के साथ।
3- पंचकर्म (यदि गहन स्थिति हो) ------
(1) वमन (यदि कफ प्रधान हो)।
(2) विरेचन (यदि पित्त या मलसंचय अधिक हो)।
(3) बस्ती (यदि वात प्रधान हो, विशेषतः कब्ज वाले IBS में अत्यंत लाभकारी)।
4- खानपान व दिनचर्या -------
(1)पथ्य -------
* सादा दलिया, मूँग की खिचड़ी, पतली मूँग दाल।
* छाछ (buttermilk), जीरा-हींग का जल
* पके फल – केला, सेब, पपीता।
* हल्दी, सौंठ, अजवायन, धनिया, सैंधव।
(2) निषेध -------
* दूध, आइसक्रीम, ब्रेड, मैदा।
* तैलीय, अधिक मिर्च-मसाले।
* चाय-कॉफी, शराब, धूम्रपान।
* मानसिक उत्तेजना के कारण बन सकने वाले सोशल मीडिया या टीवी आदि।
5- योग व प्राणायाम -------
पवनमुक्तासन, अपानासन, भुजंगासन, मंडूकासन।
नाड़ी शोधन प्राणायाम ------
शीतली-शीतकारी,
योगनिद्रा / ध्यान।
6- विशेष घरेलू उपाय -------
(1) 1 चम्मच सौंफ + अजवायन + जीरा मिलाकर भून लें, भोजन के बाद सेवन करें।
(2) तुलसी का काढ़ा + सेंधा नमक – अपच व ऐंठन में आराम।
(3) छाछ + हिंग + पुदीना रस – IBS-D में तुरंत लाभ।
IBS कोई जानलेवा रोग नहीं है। लेकिन, जीवन की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करता है। शरीर-मन-आहार का संतुलन, सही दिनचर्या, आयुर्वेदिक औषधियां, और नियमित योग के द्वारा, इसे पूर्णतः नियंत्रित किया जा सकता है।
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------: Agglutination Grade 3 :------     स्पम रिपोर्ट के अनुसार agglutin grade 3, pus cell 10-14%, RBC5% है तो आयुर्वेद...
16/06/2025

------: Agglutination Grade 3 :------
स्पम रिपोर्ट के अनुसार agglutin grade 3, pus cell 10-14%, RBC5% है तो आयुर्वेद में उपचार :-----
आपकी स्पर्म रिपोर्ट में निम्नलिखित प्रमुख समस्याएं सामने आ रही हैं ------
रिपोर्ट का विश्लेषण -------
1. Agglutination Grade 3 -------
इसका अर्थ है शुक्राणु आपस में चिपक रहे हैं।
यह Autoimmune Reaction या संक्रमण का संकेत है — जिससे शुक्राणु गतिशीलता घटती है, और निषेचन (fertilization) नहीं हो पाता।
2. Pus Cells: 10–14% -------
यह स्पष्ट रूप से गंभीर संक्रमण का लक्षण है – संभवतः वीर्य वाहिनियों या प्रोस्टेट ग्रंथि में।
3. RBCs: 5% -------
वीर्य में रक्त – Inflammation या किसी आंतरिक चोट/अवरोध (obstruction) का संकेत।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण ------
इस स्थिति को आयुर्वेद में “ शुक्रदुष्टि, शुक्रस्राव गड़बड़ी, और गुप्तमार्ग शोथ/विद्रधि ” के रूप में समझा जाता है।
मुख्य दोष -----
पित्त + कफ दोष, रक्तदूष्यता, शुक्रवाहिनी शोथ और रक्तप्रदोषज विकार।
चरणबद्ध आयुर्वेदिक उपचार ------
चरण 1----
संक्रमण और सूजन का निवारण (पहले 4 सप्ताह)।
औषधि/ मात्रा/ सेवन विधि
* चंद्रप्रभा वटी/ 2-2 गोली/ भोजन बाद, गुनगुने पानी से।
* गोक्षुरादि गुग्गुलु/ 2-2 गोली/ सुबह-शाम, दूध या पानी से।
* त्रिफला घृत/ 1 छोटी चम्मच/ रात को गुनगुने दूध से।
* शुद्ध शिलाजीत (कफ़ मुक्त)/ 250 mg/ सुबह खाली पेट, दूध से।
* नीम + मंजीष्ठा चूर्ण/ 3-3 ग्राम शहद के साथ सुबह खाली पेट।
( ये औषधियाँ संक्रमण कम करेंगी, रक्तदोष शुद्ध करेंगी और वीर्य में सूजन एवं चिपचिपाहट को दूर करेंगी। )
चरण 2 -----
Agglutination व Auto-immune प्रतिक्रिया का समाधान (सप्ताह 5–8)।
औषधि कार्य -------
* शतावरी घृत/ शुक्रधातु शोधन/ उष्णता व श्लेष्म को शांत करता है।
* अश्वगंधा चूर्ण + कौंच बीज चूर्ण/ (3g + 3g) सुबह-शाम दूध से लें/ शुक्रवर्धक।
* सप्तधातु वटी/ शुक्र, मज्जा, रस आदि धातुओं की पुष्टता हेतु।
चरण 3 ------
पुष्टिकारक रसायन चिकित्सा (8 सप्ताह से आगे)।
औषधि उपयोग -------
* अश्वगंधा लेह्य/ बल, शुक्र वृद्धि, वीर्य की गुणवत्ता सुधार।
* सुवर्ण वंग युक्त योग (जैसे “ वृष्य वटी ” ) /अगर उपलब्ध हो तो वैद्य निर्देश से लें।
* उत्तर बस्ती (क्लिनिकल ट्रीटमेंट) शुक्रवाहिनी में औषध का प्रवेश – विशेषतः agglutination व obstruction हटाने हेतु।
अनुपूरक चिकित्सा -------
गिलोय स्वरस + शुद्ध हल्दी/ संक्रमण व रोग प्रतिरोधक क्षमता हेतु।
त्रिफला काढ़ा + नीम काढ़ा (1:1)/ सुबह खाली पेट (100 ml)।
पथ्य (Strict Avoidance) ------
* मांसाहार, शराब, धूम्रपान, चाय–कॉफी, गरिष्ठ व खट्टे पदार्थ।
* रात्रि जागरण, अधिक मैथुन।
* तंग अंडरवियर, गर्म वातावरण।
विशेष निर्देश ------
Pus cells > 10% ---- यह प्राथमिकता है, पहले इसे खत्म करना जरूरी है।
Agglutination Grade 3 ---- यह तब सुधरेगा जब संक्रमण व सूजन ठीक होगी।
कृपया, 5–7 दिन में एक बार रिपोर्ट दोहराएं और सुधार का मूल्यांकन करे
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--------: केवड़ा फेस एंड टोनिंग मिस्ट :-------      एक हल्का, प्राकृतिक और शीतल प्रभाव देने वाला सौंदर्य उत्पाद है जो त्...
14/06/2025

--------: केवड़ा फेस एंड टोनिंग मिस्ट :-------
एक हल्का, प्राकृतिक और शीतल प्रभाव देने वाला सौंदर्य उत्पाद है जो त्वचा को हाइड्रेट करता है, टोन करता है और उसकी प्राकृतिक चमक बनाए रखता है। यह विशेष रूप से गर्मियों और तैलीय/संवेदनशील त्वचा वालों के लिए लाभकारी है।
1- उपयोगिता -----
(1) त्वचा को ठंडक व ताजगी देता है -- तुरंत स्फूर्तिदायक अनुभव।
(2) PH बैलेंस बनाए रखता है -- प्राकृतिक टोनर का कार्य।
(3) एंटी-बैक्टीरियल गुण -- मुहांसों में आराम।
(4) एल्कोहल फ्री व केमिकल फ्री -- संवेदनशील त्वचा के लिए उपयुक्त।
(5) मेकअप सेटिंग स्प्रे की तरह उपयोग -- मेकअप के बाद प्रयोग योग्य।
2- सामग्री -------
सामग्री/ मात्रा/ कार्य
(1) केवड़ा जल (शुद्ध आसवनित)/ 70 ml/ मुख्य सुगंधित व टोनिंग घटक।
(2) गुलाब जल/ 20 ml/ स्किन सॉफ्टनर।
(3) एलोवेरा जेल (liquid form)/ 5 ml/ हाइड्रेशन।
(4) विच हैज़ल (Witch Hazel)/ 3 ml/ पोर्स टाइटनर व एंटीसेप्टिक।
(5) ग्लिसरीन या पैंथेनॉल (optional)/ 1–2 ml/ मॉइस्चराइजिंग।
(6) टी ट्री ऑयल या तुलसी अर्क (optional)/ 1 ml/ मुंहासों में उपयोगी।
(7) शेल्फ लाइफ ----- 2–3 माह (रेफ्रिजरेट करें)।
3- निर्माण विधि -------
(1) सभी सामग्री को स्टरलाइज़ की गई काँच की कटोरी में मिलाएँ।
(2) अच्छी तरह हिला लें। ताकि, मिश्रण सम हो जाए।
(3) स्प्रे बॉटल में भरें।
(4) उपयोग से पहले हल्के से हिलाएँ।

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-----: Azoospermia, Oligospermia :-------      स्पम रिपोर्ट के अनुसार, pus cell-7-8%, RBC:2. 4 % है,  तो इसका समाधान है ...
13/06/2025

-----: Azoospermia, Oligospermia :-------
स्पम रिपोर्ट के अनुसार, pus cell-7-8%, RBC:2. 4 % है, तो इसका समाधान है -------
यह संकेत करता है कि, शुक्राणु में सूजन (infection) या सूक्ष्म जंतु संक्रमण हो सकता है। यह संक्रमण वीर्य की गुणवत्ता को घटाता है और Azoospermia, Oligospermia, या शुक्राणु की गतिशीलता में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण -------
इस स्थिति को आयुर्वेद में, " शुक्रदोष ", " शुक्रमेह ", या " गुप्तमार्ग में शोथ (सूजन) " के रूप में देखा जाता है। मुख्य दोष हैं -------
पित्त और कफ दोष, रक्तदूष्यता, मूत्राशय एवं शुक्राशय में सूजन, मल-मूत्र मार्ग के जीवाणु संक्रमण का शुक्र में प्रवेश।
उपचार के प्रमुख अंग ------
1- संक्रमण व सूजन का शमन (Anti-infective & Anti-inflammatory Treatment) ------
औषधि/ मात्रा/ सेवन विधि ------
* चंद्रप्रभा वटी/ 2 गोली/ सुबह-शाम, गुनगुने पानी से।
* गोक्षुरादि गुग्गुलु/ 2 गोली/ सुबह-शाम, गुनगुने पानी से।
* त्रिफला घृत/ 1 छोटी चम्मच/ रात को गुनगुने दूध से।
* सुतशेखर रस/ 1 गोली/ दोपहर भोजन बाद।
( ये औषधियाँ मूत्राशय, शुक्राशय, और प्रजनन संस्थान की सूजन व संक्रमण को दूर करती हैं। )
2- रक्त शोधक व एंटीबायोटिक गुण वाली औषधियाँ ---
* मंजीष्ठा चूर्ण – 3 ग्राम।
* नीम चूर्ण – 3 ग्राम।
( दोनों को शहद या गर्म पानी के साथ, दिन में एक बार लें। )
3- शुक्र धातु वर्धक (Post-infection Rejuvenation) -------
जब pus cells और RBC सामान्य हो जाएं, तब 1 महीने बाद -------
औषधि/ कार्य
* अश्वगंधा लेह्य / पाक बल, वीर्य व शुक्रवर्धक।
* कौंच बीज चूर्ण/ शुक्रज उत्पत्ति में सहायक।
* शिलाजीत रसायन/ ओज-बल व शुक्रवर्धक।
4- पंचकर्म चिकित्सा (यदि संक्रमण पुराना है या बार-बार होता है) ------
* अवगाह स्नान – त्रिफला + नीम क्वाथ से शीतल जल में 15 मिनट।
* बस्ती चिकित्सा – विशेषतः योग बस्तियों द्वारा संक्रमण व शुक्रवृद्धि दोनों संभव होती है।
* उत्तर बस्ती – विशेषज्ञ वैद्य की देखरेख में शुक्रवाहिनी में औषध का स्नेहन।
5- जीवनशैली संबंधी सुझाव -------
* मसालेदार, खट्टे, तले हुए, और अत्यधिक गरम चीजें।
* शराब, धूम्रपान और संभोग ( चिकित्सा के समय के ) से परहेज।
* टाइट अंडरवियर या अंडकोष को गर्मी देने वाली आदतें (जैसे लैपटॉप गोद में रखना)।
विशेष सुझाव -------
(1) दूध + गिलोय स्वरस + हल्दी ( नित्य रात को ) संक्रमण को कम करता है।
(2) अधिक पानी पिएं, मूत्रदाह और संक्रमण कम होगा।
(3) सप्ताह में, 2-3 बार गुनगुने पानी से अंडकोष को धोएं।

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13/06/2025

------: जुड़वा बच्चे , गर्भ कमजोरी व रक्त की कमी :-----
Twins Pregnancy + गर्भ में कमजोरी + रक्त की कमी को ध्यान में रखकर बनाया गया एक मासिक आयुर्वेदिक पोषण और औषध योजना (Month-wise Plan)। यह योजना, माँ और दोनों भ्रूणों के संपूर्ण पोषण, शक्ति-वर्धन, रक्तवर्धन तथा सुरक्षित प्रसव हेतु तैयार की गई है -------
1- मासिक योजना (1 से 9 माह) ------
(जुड़वां गर्भ, कमजोरी व रक्त की कमी के अनुसार)
माह/ सुबह-दोपहर-शाम-रात्रि/ विशेष निर्देश
(1) 1वां माह/ गुनगुना दूध + 1 चम्मच घी व मूंग की खिचड़ी, सब्ज़ी अनार का रस (100 ml) दूध + मिश्री/ थकान से बचें, मानसिक विश्राम रखें।
(2) 2रा माह/ शतावरी चूर्ण 1g + दूध पालक + चावल, 1 अंजीर नारियल पानी दूध + 1 छुहारा/ कब्ज से बचें, गर्म चीज़ें कम सेवन करें।
(3) 3रा माह/ शतावरी + विदारीकंद 1-1g + दूध रोटी + हरी सब्ज़ी + गुड़ सेब / अनार दूध + 1 चम्मच च्यवनप्राश/ 15 मिनट हल्की सैर करें।
(4) 4था माह/ शतावरी + गिलोय सत्त्व 1-1g + दूध दाल + रोटी + चुकंदर की सब्ज़ी खजूर 2 नग + नारियल पानी दूध + गोण्ड लड्डू /हल्के योग, प्राणायाम (योगाचार्य से पूछकर)।
(5) 5वां माह/ शतावरी + विदारीकंद + अश्वगंधा (1-1g) + दूध खिचड़ी + हरी सब्जी + सलाद अनार, बेल, खजूर, दूध + लौहासव (15ml) + जल सप्ताह में 1 बार/ तिल-गुड़ लड्डू।
(6) 6ठा माह/ शतावरी 2g + च्यवनप्राश 1 चम्मच + दूध दलिया, पुलाव + घी चुकंदर-अनार का रस (100 ml) दूध + एरंड तैल 2 ml (अगर कब्ज हो) /भ्रूण वृद्धि तेज होती है — भरपूर आराम करें।
(7) 7वां माह/ विदारीकंद 2g + दशमूलारिष्ट (15 ml) + जल रोटी + पत्तागोभी , मेथी + खीर सूखे मेवे (भीगे हुए 5 बादाम), दूध + त्रिफला चूर्ण (कब्ज हेतु)/ पेट में खिंचाव से बचें, झुकें नहीं।
(8) 8वां माह/ शतावरी + लौह भस्म + दूध (सामान्य मात्रा) हल्का भोजन (दलिया, दही) अनार रस + लौहासव (15 ml) दूध + सोंठ 1g/ गर्भस्रावी घृत चिकित्सक से पूछकर लें।
(9) 9वां माह/ सोंठ + शतावरी + एरंड तैल (2-3 ml) + दूध हल्का सुपाच्य भोजन नारियल पानी + खजूर दूध + दशमूल घृत (डॉक्टर से पूछकर)/ अधिक विश्राम, सकारात्मकता, प्रसव की तैयारी।
2- दैनिक रूपरेखा ( नित्य का टाइमटेबल) ------
समय/ कार्य
(1) सुबह उठते ही – गुनगुना पानी, फिर औषधियाँ + दूध।
(2) 10 बजे फल/फलों का रस (अनार, नारियल पानी, चुकंदर)।
(3) दोपहर सुपाच्य भोजन (घीयुक्त), लौहयुक्त सब्जियाँ।
(4) शाम हल्का नाश्ता + सूखे मेवे।
(5) रात दूध + घी / चूर्ण / रसायन।
3- अपथ्य --------
(1) बासी, डिब्बाबंद, अधिक तला-भुना भोजन ।
(2) अत्यधिक गर्म मसाले, अचार, सोया उत्पाद ।
(3) मानसिक तनाव, अधिक देर जागना ।
090419 57604

14/04/2025

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ग्लूकोसाइनोलेट्स (जीएस) को आइसोथियोसाइनेट्स में चयापचयित किया जाता है जो विभिन्न प्रकार की पुरानी बीमारियों से सुरक्षा क...
14/04/2025

ग्लूकोसाइनोलेट्स (जीएस) को आइसोथियोसाइनेट्स में चयापचयित किया जाता है जो विभिन्न प्रकार की पुरानी बीमारियों से सुरक्षा करके मानव स्वास्थ्य को बढ़ा सकते हैं। ब्रोकोली से सल्फोराफेन जैसे आइसोथियोसाइनेट्स में एस्चेरिचिया कोली, साल्मोनेला टाइफिम्यूरियम, कैंडिडा एसपी और हेलिकोबैक्टर पाइलोरी सहित कई मानव रोगजनकों के खिलाफ एंटीबायोटिक गतिविधि होती है। इन औषधीय गुणों को क्रूसिफेरस पौधों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है जो ग्लूकोसाइनोलेट्स के प्रसिद्ध स्रोत हैं, और मोरिंगा ओलीफेरा के लिए। और ग्लूकोसाइनोलेट्स (जीएस) मोरिंगा ओलीफेरा की उल्लेखनीय औषधीय क्षमता के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार हैं। यही कारण है कि आयुर्वेदिक परंपरा में एम. ओलीफेरा का मुख्य उपयोग कैंसर का इलाज है। स्रोत

मोरिंगा आइसोथियोसाइनेट (MIC-1) मोरिंगा ओलीफ़ेरा में पाया जाने वाला मुख्य सक्रिय आइसोथियोसाइनेट है, जो सल्फोराफेन के समान आहार और पारंपरिक हर्बल दवा के रूप में सेवन किया जाने वाला पौधा है 090419 57604

#मोरिंगा
#सल्फोराफेन

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