
02/09/2025
#दैव व्यपाश्रयी चिकित्सा
#मंत्र चिकित्सा
#गणपतीअथवॅशीर्ष
श्री गणेशाय नमः।। आज का विषय देखकर सबको हैरानी होना स्वाभाविक है। आयुर्वेद में मुख्यतया तीन प्रकार से चिकित्सा की जाती है युक्तिव्यपाश्रय, दैव व्यपाश्रयी और सत्वावजय चिकित्सा। सामान्य रूप से इसे समझें तो पहले प्रकार की युक्ति व्यपाश्रयी चिकित्सा में वैद्य शास्त्र के ज्ञान के अनुसार रोगी को उसकी अवस्था, प्रकृति, काल,बल आदि देखकर युक्ति पूर्वक औषधि या पंचकर्म चिकित्सा देते हैं। परंतु कुछ बीमारियां या तकलीफें ऐसी होती है जिसमें दवा के साथ दुआ भी अत्यंत आवश्यक है। आयुर्वेद में वर्णित बाकी की दो चिकित्सा पद्धति को अत्यंत आवश्यक बता कर उसका भी यथा योग्य प्रयोजन किया जाना जरूरी है। जिसमें दैव व्यपाश्रयी चिकित्सा में मंत्र जाप होम हवन आदि का भी समावेश है। सत्वावजय- काउंसलिंग थेरेपी चिकित्सा यानी रोगी के मन को सकारात्मक बनाना और उसके सत्व को बढ़ाना। कहा जाता है कि एक बीमार मन स्वस्थ शरीर को नहीं चला सकता किंतु एक स्वस्थ व मजबूत मन बीमार शरीर को भी ठीक कर सकता है। यह दोनों चिकित्साऐं लगभग साथ में की जाती है। आयुर्वेद में स्पष्ट रूप से शरीर आत्मा और मन इन तीनों के संयोग को ही व्यक्ति मानकर उसकी संपूर्ण चिकित्सा की जाती है। मात्र शरीर या मात्र मन की नहीं।
आज उसी के भाग रूप अगर मंत्र जाप आदि के बारे में बात करें तो भारतवर्ष में हजारों सालों से यह सब हमारी परंपराओं में रहा है। परंतु चिकित्सा में विशेष रुप से इन सब का क्या प्रयोजन है यह जानना अत्यंत आवश्यक है। जो सिद्ध मंत्र होते हैं जैसे कि गायत्री मंत्र, शिव पंचाक्षर मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, देवी कवचम, गणपति अथर्वशीर्ष,हनुमान चालीसा आदि। इन सबके उच्चारण से एक विशिष्ट प्रकार की तरंगे उत्पन्न होती है, पॉजिटिव वाइब्रेशंस, जिसका हमारे शरीर,मन और हमारी चेतना पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वैसे ही अगर गणपति अथर्व शिर्ष की बात करें तो हर शुभ कार्य की शुरुआत हमेशा से गणपतिजी के आह्वान से वंदना से शुरू होती है। गणपति जी बुद्धि के देवता है। वास्तव में वह सिर्फ मूर्ति में विराजमान नहीं है या कोई एक धर्म के लोगों के लिए नहीं है। सही दृष्टिकोण में देखा जाए तो हम किसी भी कार्य की शुरूआत में गणपति वंदना करके हमारी बुद्धि को शुद्ध करने के लिए प्रार्थना या संकल्प करते हैं। किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए मनका स्वस्थ और शुद्ध होना अत्यंत आवश्यक है। गणपति का बड़ा सिर बहुत सा ज्ञान अत्यंत मात्रा में होने का द्योतक है ,साथ ही में उनके हाथ में अंकुश भी है, जो शुद्ध बुद्धि और बढ़ी हुई ऊर्जा को सही नियंत्रण में रखने का सूचक है। थवॅ यानी अस्थिर, अथर्व यानी जो स्थिर है, अथर्व शीर्ष का पाठ करने या सुनने से व्यक्ति की बुद्धि स्थिर और शुद्ध होती है। विचार अच्छे और सही दिशा में होने से सभी कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है। ध्यान के साथ तन्मय हो कर अगर इसका नियमित रूप से श्रवण या पाठ किया जाए तो एपिलेप्सी, स्ट्रेस, डिप्रेशन ,मन की चंचलता, निणॅय शक्ति का अभाव होना आदि मन से जुड़ी हुई समस्याओं में पूर्ण लाभ मिलता है । यह अन्य मुख्य चिकित्सा के साथ पूरक चिकित्सा के रूप में किया जा सकता है। नियमित रूप से अगर सही तरीके से मंत्र जाप किया जाए तो यह एक कवच के रूप में व्यक्ति की सदैव रक्षा करता है। काल दोष हो या ग्रहों का प्रभाव, इस की शरण में आने से व्यक्ति सभी दुष्प्रभावों से मुक्त होते हैं।
🙏सह आभार---स्वामी पूर्ण चैतन्य आनंद जी और
प्रोफेसर डॉक्टर देशपांडे।
🙏 सर्वे संतु निरामया। 🙏
Vaidya Komal Patel
Ex. Nadi consultant and panchkarma physician (Sri Sri ayurveda - The art of living foundation Bangalore
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