
26/12/2024
26 दिसंबर वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना: एक प्रेरणादायक यात्रा
वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना वनयोगी बालासाहब देशपांडे जी द्वारा 26 दिसंबर 1952 को छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश) के जशपुर में, जनजाति बच्चों के लिए एक छात्रावास खोलकर की गई थी। 1978 में इस संगठन के कार्यों को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार दिया गया। आज, अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़ी प्रांतीय इकाइयों के माध्यम से देशभर में 16,624 स्थानों पर 21,829 सेवा प्रकल्प संचालित किए जा रहे हैं।
**स्थापना की पृष्ठभूमि**
देश की स्वतंत्रता के बाद, मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित रवीशंकर शुक्ल प्रदेश के दौरे के दौरान जशपुर रियासत पहुंचे। वहां उन्हें विदेशी ईसाइयों के प्रभाव के चलते "रवि शुक्ला वापस जाओ" और देशविरोधी नारों का सामना करना पड़ा। इस चुनौतीपूर्ण समय में, बालासाहब देशपांडे को रणनीति के तहत इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए भेजा गया। उनके अदम्य साहस और दृढ़ निश्चय के परिणामस्वरूप, आज वनवासी क्षेत्रों में सेवा कार्य करने वाला सबसे बड़ा संगठन खड़ा है।
**विकास और उद्देश्य**
प्रतिकूल परिस्थितियों में शुरू हुए इस संगठन ने बालासाहब देशपांडे जी की प्रेरणा से जनजाति समाज की धर्म-संस्कृति, परंपरा, और रीति-रिवाजों के संरक्षण के साथ उनके सर्वांगीण विकास के लिए कार्य किया। यह संगठन आज देशभर में जनजाति हित में समर्पित होकर सेवाएं दे रहा है।
**आज की प्रासंगिकता**
72 वर्षों की इस यात्रा के बाद, हमें अपने कार्यों का पुनर्मूल्यांकन करते हुए बालासाहब जी के आदर्शों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहिए। स्वतंत्रता के समय जनजाति समाज जिन समस्याओं का सामना कर रहा था, वे आज भी बनी हुई हैं। उन्हें दिग्भ्रमित करने के षड्यंत्र अभी भी जारी हैं। बालासाहब कहते थे कि देशविरोधी तत्व सेवा के नाम पर वनवासी समाज की धर्म, संस्कृति और परंपरा को नष्ट कर उनका धर्मांतरण कर रहे हैं। यह षड्यंत्र जनजाति संस्कृति के लिए गंभीर खतरा है।
आज, जनजाति समाज वनवासी कल्याण आश्रम को अपना संगठन मानते हुए स्वाभिमान के साथ खड़ा है। वे अपनी धर्म-संस्कृति को बचाने के लिए खुद नेतृत्व कर रहे हैं। बालासाहब जी के विचार और योगदान हमें प्रेरणा देते हैं कि हम इस यात्रा को और आगे ले जाएं।
– मृत्युंजय सिंह