31/12/2023
बस इस हेडिंग वाली न्यूज पढ़कर सारे आयुर्वेद के लोग बहुत खुश!!
भारत में 7 लाख डॉक्टर्स हैं, इनमें से ज्यादातर तथाकथित आयुर्वेद का ज्ञान सिखाने वाले गुरु...शास्त्र और संहिताओं के नाम पर सिद्धांत तो बहुत सिखा रहे हैं लेकिन यह बिल्कुल नहीं बता रहे कि घर चलाने के लिए डिग्री, किताबी बातें और जय-जय बस से काम नहीं चलता, ऐसे महान गुरुओं के साथ एक और समस्या है कि वे खुद नहीं समझ पा रहे कि उन्हें खुद का घर कैसे चलाना है!!! अधिकांश ऐसे लोग अपने घर के लोगों का भी शोषण करते दिखते हैं क्योंकि अपने झूठे उसूलों के चक्कर में जिन शास्त्रों के नाम पर सही आचरण करने की बाते करते हैं उन्हीं शास्त्रों में लिखी मानव जीवन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात पुरुषार्थ चतुष्ट्य: धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में से "अर्थ" की अवेहलना करते हैं और इसके कारण सारी जिंदगी खुद झूठ में रहते हैं, अपने परिवार और बच्चों का शोषण करते हैं और कई आयुर्वेद के बच्चों एवं वैद्यों को गुमराह करते हैं और अंत में जीवन के लिए दूसरे नंबर की बेहद महत्त्वपूर्ण चीज "अर्थ" ही नहीं पा पाते और इसके कारण ही आगे के भी पुरुषार्थ चतुष्ट्य भी पूरा नहीं कर पाते और ऐसे ही हवा में कई लोगों को ख्याली सिद्धांतो से गुमराह करके दुनिया से विदा हो जाते हैं।
आयुर्वेद सिस्टम को बड़ा और बेहतर करना है तो देश के आयुर्वेद से जुड़े एक-एक व्यक्ति का और उससे जुड़े उसके परिवार का पेट पर्याप्त रूप से भरा होना चाहिए, कहा गया है कि "भूखे पेट भजन ना होई गोपाला" ...
किताबी बातें बहुत अच्छी हैं, संहिताओं की उपासना से बेहतर जीवन में कुछ भी नहीं है लेकिन आयुर्वेद के लोग जो डिग्री लेकर आ रहे हैं यदि वे भूखे होंगे तो फिर वे निश्चित ही एलोपैथ के अस्पतालों में आकर्षण देखेंगे या किसी जगह की छोटी सी नौकरी करके अपना शोषण करवाते रहेंगे और फिर इन सब से जो मानसिक फ्रस्ट्रेशन लेकर अपने घर जाते है उसे अपने परिवार पर ही निकालते हैं।
प्रतिदिन आयुर्वेद की डिग्री वाले कई साथी मिलते हैं जो महान-महान गुरुओं से सीखे और संहिता रटे, उनसे प्रभावित होकर आयुर्वेद में प्रयास भी किया लेकिन बाद में किसी जगह या तो छोटी सी नौकरी में लग गए या किसी एलोपैथ अस्पताल में RMO लग गए या बस संघर्ष की अनवरत यात्रा में लगे हुए हैं, किसी दैवीय चमत्कार की प्रतीक्षा में!!!
भारत में आयुर्वेद की प्रतिदिन लगभग 200 करोड़ की दवाइयां बिक रही हैं, यानी प्रत्येक वर्ष लगभग 70000 करोड़ की, इसमें डॉक्टर परामर्श, पंचकर्म चिकित्सा, खुली और बिना बिल के बिकने वाली दवाओं या जड़ी बूटियों के आंकड़े इसमें शामिल नहीं है। अंदाजा लगाइए कि भारत के कितने ऐसे आयुर्वेद के डॉक्टर्स हैं जिनकी इन आंकड़ों में थोड़ी सी भी हिस्सेदारी है?
7 लाख आयुर्वेद के डॉक्टर्स में देश में 700 भी ऐसे नहीं होंगे जो अपने परिवार की सामान्य इच्छाओं की पूर्ति कर पा रहे हों...सोशल मीडिया पर थोड़ा तीखा लिखना बिल्कुल भी सही नहीं लगता, विगत कई वर्षों से इस तरह से लिखने से बचता भी रहा हूं लेकिन आयुर्वेद में जय-जय की परंपरा बढ़ती जा रही है... आयुर्वेद के नाम पर हो तो बहुत कुछ रहा है, लेकिन उसमें अंत में आयुर्वेद का स्नातक न तो जीवन के अर्थ में और न ही आर्थिक अर्थों में किसी ठोस और स्पष्ट जगह पर खड़ा दिखता है।
अंग्रेज आयुर्वेद करके इस उपाधि से कुछ न कुछ कर लेंगे लेकिन मेरा इसमें बिल्कुल भी इंट्रेस्ट नहीं है और न ही इससे कुछ फर्क पड़ता है, मुझे सुकून सिर्फ तभी होगा जब देश का एक-एक आयुर्वेद का स्नातक फक्र के साथ सीना बड़ा करके सर उठा के और आर्थिक रूप से संपन्न होकर लोगों को बेहतर स्वास्थ्य समाधान दे रहा हो और साथ ही साथ आयुर्वेद को मुख्य चिकित्सा विकल्प बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा हो।
यह सब लिखने का अर्थ आयुर्वेद में प्रयासरत लोगों को नीचा दिखाना नहीं है, इसका अर्थ सिर्फ यह है कि आयुर्वेद के सभी विद्वानों और परिवर्तन के लिए प्रयासरत लोगों को गंभीरता से चिंतन की आवश्यकता है कि सिर्फ ज्ञान साझा तक सीमित नहीं रहा जाए, उस ज्ञान से सही में जीवन में और जेब में "अर्थ" आए वह भी बेहद महत्वपूर्ण है। बाकी किसी को शब्दों से ठेस लगी हो तो उनकी यह स्वयं की समस्या है, क्योंकि पोस्ट का अर्थ ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
जय-जय के साथ बाकी संतुलन भी आवश्यक हैं, आप सभी की जय हो!🙏🏻