नाद पंथ Music Therapy & Counselling Center

नाद पंथ Music Therapy & Counselling Center Contact information, map and directions, contact form, opening hours, services, ratings, photos, videos and announcements from नाद पंथ Music Therapy & Counselling Center, Therapist, near Electricity office Nehru Nagar, Barabanki.

🕉️ नाद पंथ के पथिक |
🎶 आध्यात्मिक संगीत साधना |
🪔 ब्रह्मांडीय ऊर्जा से आत्मिक उत्थान |
🧘 नाद योग • ध्यान • जीवन जागरण
📿 गुरु परम्परा में दीक्षित |
🌕 गुरु पूर्णिमा दीक्षा समारोह |
📍 भारत की आध्यात्मिक धरोहर को समर्पित

28/08/2025

🌿 अध्यात्मिक दृष्टिकोण से मन और चुनौतियाँ

1. मन और विवेक का भेद

मन स्वभाव से चंचल है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है – "मनः चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद् दृढम्" – मन अस्थिर और प्रबल है।

मन अच्छाई-बुराई नहीं जानता, वह केवल इच्छाओं और वासनाओं की ओर भागता है।

अच्छाई-बुराई का ज्ञान केवल विवेक (बुद्धि) से आता है, और विवेक आत्मा के प्रकाश से जुड़ा है। जब साधक ध्यान, प्रार्थना और सत्संग करता है तो उसका विवेक जाग्रत होता है।

2. चुनौतियाँ ही आत्म-विकास का साधन

अध्यात्म कहता है कि हर कठिनाई केवल बाहरी घटना नहीं है, बल्कि आत्मा के उत्थान का अवसर है।

जो दुख, संघर्ष और विपरीत परिस्थितियाँ जीवन में आती हैं, वे हमारे भीतर छिपी हुई शक्ति और धैर्य को जगाने का साधन हैं।

उपनिषद कहते हैं – “क्षत्रियायं चिदानन्दः” – जो आत्मा को जान लेता है, वह किसी भी संघर्ष से पराजित नहीं होता।

3. साहस और स्वीकार

जब हम चुनौतियों से भागते हैं, तो मन भय से भर जाता है।

लेकिन जब हम उन्हें प्रसाद बुद्धि (ईश्वर का दिया हुआ मानकर) स्वीकार करते हैं, तो वही संघर्ष साधना बन जाता है।

गीता कहती है – “समत्वं योग उच्यते” – जो सुख-दुख, हार-जीत और लाभ-हानि में समान रहता है, वही योगी है।

4. पर्वत की तरह अडिग रहना

पर्वत की चोटी की तरह ही साधक को भी अडिग रहना है।

ध्यान और साधना से ऐसा साहस उत्पन्न होता है कि चाहे कितनी भी विपत्ति आए, मन विचलित नहीं होता।

यह स्थिरता ही अध्यात्मिक साधक का आधार (Root Chakra - मूलाधार चक्र) मजबूत करती है।

5. मन को जीतने की कला

अध्यात्म कहता है – “मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः” – मन ही बंधन और मुक्ति का कारण है।

यदि मन इच्छाओं का दास बन गया तो यह हमें दुख में बांधता है।

यदि मन को विवेक, ध्यान और आत्मचिंतन से साध लिया, तो यही मन मुक्ति का साधन बन जाता है।

6. विरोध की जगह स्वीकार और रूपांतरण

कोई भी आदत या बुरी प्रवृत्ति का विरोध करने से वह और प्रबल होती है, क्योंकि विरोध मन को उसी पर केंद्रित कर देता है।

साधक को चाहिए कि वह उस आदत या प्रवृत्ति को स्वीकार कर धीरे-धीरे रूपांतरित करे।

जैसे छोटा बच्चा शरारत करता है, तो हम उसे मारते नहीं बल्कि प्यार से समझाकर सही दिशा दिखाते हैं। यही अध्यात्मिक साधना है।

7. स्वतंत्रता – असली अध्यात्मिक विजय

अध्यात्मिक साधक को इतना मजबूत होना चाहिए कि कोई वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति, नशा, लोभ या मोह उसका गुलाम न बना सके।

जब मन की लगाम आत्मा और विवेक के हाथ में आ जाती है, तब साधक भीतर से स्वतंत्र हो जाता है।

यही मोक्ष का प्रारंभिक अनुभव है।

अध्यात्म की दृष्टि से यह शिक्षा है कि –

मन को बार-बार समझाने से कुछ नहीं होगा, उसे विवेक और आत्मचेतना के अधीन करना होगा।

जीवन की हर चुनौती को साधना का अवसर मानकर साहसपूर्वक स्वीकार करना चाहिए।

विरोध नहीं, बल्कि स्वीकार और रूपांतरण ही वास्तविक उपाय है।

अंततः, साधक को इतना मजबूत बनना है कि कोई भी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति उसे गुलाम न बना सके।

15/08/2025

ऊर्जा की दिशा तय करती है — आप ‘सुर’ हैं या ‘असुर’?

क्या आपने कभी गौर किया है कि हममें से कई लोग बाहर से बहुत अच्छे दिखते हैं—अच्छे कपड़े, मीठी बातें, सोशल मीडिया पर प्रेरक पोस्ट… लेकिन किसी मुश्किल या लालच के समय अचानक गुस्सा, ईर्ष्या या स्वार्थ हावी हो जाता है?

असल में यह सब ऊर्जा की दिशा पर निर्भर करता है।
आपकी जीवन-ऊर्जा ऊपर उठ रही है या नीचे गिर रही है—यही आपका वास्तविक चरित्र बनाती है।

🔹 1. ऊर्जा की दिशा क्या है?

हमारी चेतना में हर पल ऊर्जा बह रही है—
ऊपर की ओर = जागरूकता, करुणा, संयम, प्रेम, धैर्य।
नीचे की ओर = काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या।

ऊर्जा ऊपर उठ रही हो तो मन हल्का, साफ़ और शांत होता है।
ऊर्जा नीचे जा रही हो तो भीतर भारीपन, उलझन और प्रतिक्रियाएँ बढ़ती हैं।

🔹 2. नीचे की ओर ऊर्जा जाने के कारण

1. अपने भीतर की ऊर्जा की गति से अनजान होना।
2. तात्कालिक सुख के पीछे भागना।
3. असंतुलित दिनचर्या—नींद कम, भोजन अनियमित।
4. नकारात्मक संगति—शिकायत, गॉसिप, आलोचना।
5. भीतर का डर, असुरक्षा और अधूरापन।

🔹 3. क्या असुर भी सुर बन सकता है?

बिल्कुल!
भारतीय परंपरा में अनेक उदाहरण हैं—
डाकू वाल्मीकि → महर्षि वाल्मीकि
अंगुलीमाल → बौद्ध भिक्षु

संदेश: यदि असुर भी प्रयास करे, तो वह सुर बन सकता है।
शुद्ध जीवन, तप, ध्यान और सेवा—ये ऊर्जा को ऊपर उठाते हैं।

🔹 4. संकेत—आपकी ऊर्जा अभी किस ओर बह रही है?

⬇️ नीचे की ओर (असुरभाव)

छोटी बात पर तुरंत गुस्सा।
दूसरों की सफलता से जलन।
लालच के कारण गलत निर्णय।
थकान, भारीपन, टालमटोल।

⬆️ ऊपर की ओर (सुरभाव)

कठिन परिस्थिति में भी ठहराव।
दूसरों की खुशी में सच्ची प्रसन्नता।
संयमित, नैतिक निर्णय।
स्फूर्ति, स्पष्टता, संतोष।

🔹 5. ऊर्जा को ऊपर उठाने के आसान तरीके

(क) शुद्धता

सात्त्विक भोजन, पर्याप्त पानी और नींद।

डिजिटल संयम—अनावश्यक नोटिफिकेशन बंद।

(ख) तप

छोटा-सा अनुशासन—20 मिनट वॉक, जंक/मीठा कम।

(ग) ध्यान

रोज़ 10–15 मिनट श्वास पर ध्यान या मंत्र-जप।

कृतज्ञता लेखन—रोज़ 3 बातें लिखें जिनके लिए आभारी हैं।

(घ) सेवा और संगति

बिना स्वार्थ के मदद।
सकारात्मक और प्रेरक संगति।

🔹 6. 21-दिन का “ऊर्जा-उदय” चैलेंज

रोज़

1. सुबह 2 मिनट मुस्कुराकर गहरी साँसें।
2. 15 मिनट ध्यान/मंत्र-जप।
3. 20 मिनट वॉक या योग।
4. दिन में 2 बार “रुककर” श्वास देखें।
5. रात को 3 बातें लिखें जिनके लिए आभारी हैं।

साप्ताहिक

1 दिन हल्का भोजन।

1 घंटा बिना फोन—परिवार या सेवा कार्य में।

🔹 7. असफल होने पर क्या करें?

गिरना अपराध नहीं,
बिना सीखे बार-बार गिरना ही असली गलती है।

स्वीकार करें कि गिर गए।

श्वास से खुद को शांत करें।

सुधार करें और आगे बढ़ें।

🔹 8. याद रखें

> ऊर्जा ऊपर = सुरभाव | ऊर्जा नीचे = असुरभाव
दिशा बदलो—जीवन बदल जाएगा।

हर इंसान के भीतर सुर और असुर दोनों हैं।
आपकी ऊर्जा जिस दिशा में बहेगी—वही आपका असली रूप बनाएगी।

🌿 आज का कदम:
कमेंट में लिखें—आज आप ऊर्जा ऊपर उठाने के लिए कौन-सा छोटा-सा कदम उठाएँगे?

#आध्यात्मिकऊर्जा #जीवनपरिवर्तन #ध्यान #ऊर्जा_की_दिशा #प्रेरणा

14/08/2025

🕉 स्वास्थ्य और जीवन के 18 प्रमुख नियम

1. पानी पीने का सही तरीका – ताँबे या लोटे से बैठकर पानी पिएँ, RO का पानी न पिएँ, तेज धूप, श्रम या शौच के तुरंत बाद पानी न पिएँ।

2. हाई बीपी – सोने और स्नान से पहले पानी पिएँ, स्नान के पानी में थोड़ा नमक डालें।

3. लो बीपी – सेंधा नमक डालकर पानी पिएँ।

4. भोजन का समय व प्रकार – क्षारीय वस्तुएँ सूर्यास्त के बाद, अम्लीय व फल सूर्यास्त से पहले खाएँ।

5. रात का भोजन – रात में आलू या अधिक प्रोटीन (दाल, पनीर, राजमा) न लें।

6. भोजन की आदतें – ऊपर से नमक न डालें, भोजन के समय टीवी न देखें, मुँह बंद रखें, भोजन के बाद वज्रासन करें।

7. कब्ज और गैस – सुबह पानी पीकर एड़ियों के बल चलें, भोजन में अजवाइन लें, अदरक या सोंठ का प्रयोग करें।

8. करवट व सोने के नियम – पेट के बल न सोएँ, सुबह दाईं करवट से उठें, दिन में दाईं और रात में बाईं करवट लें।

9. रोग निवारण पौधों से – गहरे रंग की सब्ज़ियाँ अस्थमा, मधुमेह, कैंसर से बचाती हैं।

10. मासिक धर्म में देखभाल – 3–4 दिन उल्टा सोना लाभकारी, दर्द में घी वाला गर्म पानी पिएँ, ठंडे पानी से स्नान न करें।

11. सुबह उठने का समय – सूर्य निकलने के बाद न उठें, वरना पेट संबंधी रोग होते हैं।

12. मन का संतुलन – चिंता, क्रोध, ईर्ष्या से बचें, यह हार्मोन असंतुलन का कारण हैं।

13. घरेलू औषधियाँ – त्रिफला, अर्जुन की छाल, गुड़, शहद, बेल, गुलकंद मौसम के अनुसार लें।

14. रंग चिकित्सा – इंद्रधनुष के रंगों का क्रम समझकर लाभ लें।

15. एलोपैथी से सावधानी – यह सिर्फ दर्द कम करती है, कई दुष्प्रभाव देती है।

16. बच्चों का स्वास्थ्य – प्रसव के बाद माँ का पीला दूध बच्चे की रोग-प्रतिरोधक क्षमता 10 गुना बढ़ाता है।

17. लार का महत्व – यह प्रकृति की सबसे महँगी दवा है, इसे व्यर्थ न थूकें।

18. जीवन का उद्देश्य – जो अपने दुखों के साथ दूसरों के भी दुख दूर करे, वही मोक्ष का अधिकारी है।

13/08/2025
🕉️ नाथ पंथ – भीतर की आवाज़ सुनने की साधना 🕉️भाग-दौड़ भरी जिंदगी, प्रमोशन की चिंता, रिश्तों में तनाव, जलन और असुरक्षा…क्य...
12/08/2025

🕉️ नाथ पंथ – भीतर की आवाज़ सुनने की साधना 🕉️

भाग-दौड़ भरी जिंदगी, प्रमोशन की चिंता, रिश्तों में तनाव, जलन और असुरक्षा…
क्या आप भी इन सबके बीच सुकून ढूंढ रहे हैं?

नाथ पंथ कहता है –

> "शांति बाहर नहीं, भीतर है। जिसे पाना है, वह तुम्हारे ही हृदय में है।"

✨ नाथ पंथ से आप पाएंगे:

🕉️ नाद योग से मन की चंचलता खत्म

🌿 प्राणायाम व ध्यान से मानसिक स्पष्टता

❤️ ईर्ष्या, चिंता और असुरक्षा से मुक्ति

🙏 गुरु परंपरा से जीवन का सही मार्ग

यह सिर्फ साधना नहीं, जीवन जीने की आध्यात्मिक कला है।
अपने भीतर छिपी शक्ति को पहचानें और हर परिस्थिति में संतुलित, प्रसन्न और आत्मनिर्भर बनें।

📌 अगर आप इस राह पर चलने के लिए तैयार हैं, तो कमेंट करें – "मैं तैयार हूँ"
📥 या हमें मैसेज करें और नाथ पंथ की साधना से जुड़ें।

🙏 नाथ पंथ – भीतर की शांति की कुंजी 🙏

12/08/2025

नाथ पंथ: आधुनिक जीवन में मानसिक शांति का मार्ग

आज का समय तेज रफ़्तार, प्रतियोगिता और लगातार बढ़ते तनाव का समय है। लोग दौड़ते जा रहे हैं, लेकिन भीतर की शांति खोते जा रहे हैं। दफ़्तर में प्रमोशन न मिलने का दुख, रिश्तों में जलन और असुरक्षा, एक-दूसरे को लेकर संदेह, और अनिश्चित भविष्य की चिंता — ये सब मनुष्य की मानसिक शक्ति को धीरे-धीरे खोखला कर रहे हैं। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या कोई ऐसा मार्ग है जो हमें इस मानसिक उथल-पुथल से बाहर निकाल सके?

नाथ पंथ इस प्रश्न का उत्तर देता है —

"सुख भीतर है, बाहर नहीं; शांति भीतर है, भीड़ में नहीं।"

नाथ पंथ की मूल शिक्षा

नाथ पंथ की साधना का केंद्र है — नाद (आंतरिक ध्वनि) और स्वरूप ध्यान (स्वयं की पहचान)। यह पंथ हमें यह सिखाता है कि जीवन की असली यात्रा बाहर की नहीं, भीतर की ओर है। जब व्यक्ति अपने भीतर की ध्वनि और शक्ति से जुड़ जाता है, तब बाहरी परिस्थितियाँ उसका संतुलन नहीं बिगाड़ पातीं।

आज की समस्याओं में नाथ पंथ की सहायता

1. भाग-दौड़ और मानसिक थकान से मुक्ति
नाथ योग में प्राणायाम और अंतः नाद सुनना (नादयोग) विशेष स्थान रखता है। नियमित अभ्यास से मन की चंचलता घटती है और एकाग्रता बढ़ती है।

नाद ध्यान से मस्तिष्क की तरंगें धीमी होती हैं, जिससे तनाव और थकान कम होती है।

2. चिंता और असुरक्षा का निवारण
नाथ पंथ कहता है – "जितना संसार को पकड़ोगे, उतना मन छूटेगा नहीं।"
यह हमें वैराग्य और स्वीकार्यता का अभ्यास सिखाता है। इससे मन भविष्य की अनिश्चितताओं के बजाय वर्तमान में टिकना सीखता है।

3. जलन और ईर्ष्या से मुक्ति
गुरु मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ की वाणी में बार-बार यह शिक्षा मिलती है कि दूसरों की सफलता में अपनी हार देखना अज्ञान है। नाथ साधना में अहंकार शमन और समभाव पर जोर है, जो ईर्ष्या को धीरे-धीरे खत्म करता है।

4. रिश्तों में सामंजस्य
नाथ पंथ के मौन साधन और सत्य वचन के सिद्धांत रिश्तों में अनावश्यक विवाद और गलतफहमियाँ घटाते हैं।

5. अंतरात्मा की शक्ति का अनुभव
नाथ योग के अभ्यास से व्यक्ति अपनी स्वसंरचना (Self-Structure) को समझता है, जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है और बाहरी मान्यता पर निर्भरता कम होती है।

नाथ पंथ का व्यवहारिक उपाय

नाद ध्यान – प्रतिदिन 15-30 मिनट शांत स्थान पर बैठकर भीतर की सूक्ष्म ध्वनियों को सुनना।

सिद्धासन/पद्मासन में प्राणायाम – गहरी और नियंत्रित श्वास-प्रश्वास से मन को स्थिर करना।

गुरु उपदेश – जीवन की दिशा स्पष्ट करने के लिए किसी अनुभवी साधक या गुरु से मार्गदर्शन लेना।

मौन व्रत – सप्ताह में एक दिन मौन साधना करना, ताकि अनावश्यक मानसिक शोर कम हो।

वैराग्य साधना – भौतिक वस्तुओं और उपलब्धियों से चिपकाव कम करना, ताकि हानि-लाभ में मन स्थिर रहे।

आज के इस अशांत और प्रतिस्पर्धी समय में नाथ पंथ केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक मानसिक-आध्यात्मिक थेरेपी है। यह व्यक्ति को भीतर से मजबूत करता है, उसे मानसिक स्पष्टता देता है, और जीवन में समभाव बनाए रखने की कला सिखाता है।

नाथ पंथ की यह सीख हर व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है:

"मन को अपने स्वामी बनाओ, दास नहीं। भीतर के नाद को सुनो, वहीं असली शांति है।"

12/08/2025

नाद पंथ की साधना – दार्शनिक एवं शास्त्रीय दृष्टि से

नाद पंथ की साधना केवल ध्वनि का अभ्यास नहीं, बल्कि वह आंतरिक यात्रा है, जिसमें साधक ध्वनि से मौन और मौन से परम तत्त्व तक पहुँचता है।
नाथ पंथ में "नाद" को परमेश्वर का साक्षात् स्वरूप माना गया है —

“नादः परं ब्रह्म”
(नाद ही परम ब्रह्म है।)

1. नाद का स्वरूप

नाद दो प्रकार का माना गया है—

◆ आहत नाद – बाहरी, वाद्य, वाणी या किसी वस्तु के आघात से उत्पन्न ध्वनि।

◆ अनाहत नाद – आंतरिक, जो हृदय-गुहा में या सूक्ष्म चेतना में बिना किसी बाहरी आघात के प्रकट होता है।

नाद पंथ की साधना का लक्ष्य अनाहत नाद का अनुभव करना है, क्योंकि वही आत्मा और परमात्मा का सेतु है।

2. साधना का मूल दर्शन

नाथ सिद्धों के अनुसार, जब मन इन्द्रियों के बाह्य विषयों से हटकर भीतर की ओर लौटता है, तब चित्त आकाश में एक सूक्ष्म ध्वनि गूँजती है।
यह ध्वनि — ओंकार से लेकर अनंत सूक्ष्म स्वर-तरंगों तक — साधक को क्रमशः समाधि में प्रवेश कराती है।

3. नाद पंथ की साधना की अवस्थाएँ

◆ श्रवण अवस्था

साधक एकांत में बैठकर ध्यानपूर्वक भीतर की ध्वनि को सुनता है।

प्रारंभ में यह ध्वनि झंकार, घंटी, वीणा या शंख जैसी प्रतीत होती है।

◆ मनोनिवृत्ति अवस्था

जब साधक ध्वनि में तल्लीन हो जाता है, तो विचार-तरंगें शांत होने लगती हैं।

मन विषय-चिंतन से हटकर नाद पर केंद्रित हो जाता है।

◆ लय अवस्था

ध्वनि के साथ साधक की चेतना एकाकार होने लगती है।

यह वह बिंदु है जहाँ ‘मैं’ और ‘ध्वनि’ का भेद मिट जाता है।

◆ समाधि अवस्था

अनाहत नाद साधक को परम मौन में ले जाता है।

"जहाँ ध्वनि भी विलीन हो, वही परम तत्त्व है।"

4. साधना के अंग

◆ आसन – सिद्धासन, पद्मासन या सुखासन, जिससे मेरुदंड सीधा रहे और नाड़ी शुद्धि हो।
◆ प्राणायाम – नाड़ी शुद्धि, अनुलोम-विलोम, और धीमे दीर्घ श्वास से मन को स्थिर करना।
◆ धारणा – ध्यान को श्रवणेंद्रिय पर केंद्रित करना और भीतर की ध्वनि पर मन टिकाना।
◆ श्रवण – आंतरिक अनाहत नाद का सुनना।
◆ लययोग – नाद में चित्त का पूर्ण विलय।

5. लाभ और उद्देश्य

मनशांति – नाद साधना से चित्त की चंचलता मिटती है।

आध्यात्मिक उन्नति – साधक अहंकार से मुक्त होकर आत्मा में स्थित होता है।

आत्म-परमात्मा का मिलन – नाद ही वह नौका है जो जीव को सागर पार कराती है।

6. सिद्ध वचन

> "नादमाश्रित्य योगीना मनो निश्चलतां नयेत्।
नादांतं परमं ब्रह्म तेन ब्रह्माणि लीयते॥"
(योगी नाद का आश्रय लेकर मन को निश्चल करता है। नाद का अंत ही परम ब्रह्म है, जिसमें योगी लीन हो जाता है।)

11/08/2025

नाथ पंथ का समाज में सहयोग

1. आध्यात्मिक मार्गदर्शन

◆ योग, ध्यान, और नाद साधना के माध्यम से आत्मज्ञान का मार्ग दिखाना।
◆ लोगों को आंतरिक शांति और आत्म-शुद्धि की दिशा में प्रेरित करना।

2. समानता और जाति-भेद का उन्मूलन

◆ जाति, धर्म, लिंग या वर्ग के आधार पर भेदभाव का विरोध।
◆ सभी को साधना और ज्ञान का समान अधिकार देना।

3. लोक-शिक्षा का प्रसार

◆ संस्कृत के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं में आध्यात्मिक ग्रंथ और भजन रचना।
◆ गीत, कथा और नाट्य के माध्यम से नैतिक शिक्षा फैलाना।

4. योग और स्वास्थ्य सेवा

◆ हठयोग, प्राणायाम और ध्यान की तकनीकें जन-जन तक पहुँचाना।
◆ औषधीय पौधों और आयुर्वेदिक चिकित्सा का प्रचार।

5. संस्कृति और कला का संरक्षण

◆ लोकनृत्य, लोकगीत, और शास्त्रीय संगीत को साधना का हिस्सा बनाना।
◆ मंदिर वास्तुकला और लोक परंपराओं का संरक्षण।

6. संकट के समय जन-सेवा

◆ अकाल, महामारी, या युद्ध में राहत कार्य करना।
◆ मठ और आश्रमों को भोजन व आश्रय केंद्र बनाना।

7. स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का संदेश

◆ भिक्षाटन को केवल आत्मसंयम और त्याग का साधन बनाना, परिश्रम और स्वावलंबन को बढ़ावा देना।
◆ व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वतंत्र बनाना।

8. समाज सुधार आंदोलन

◆ अंधविश्वास, पशुबलि और हानिकारक सामाजिक प्रथाओं के खिलाफ जन-जागरण।
◆ संयमित, नैतिक और करुणामयी जीवन का प्रचार।

9. पर्यावरण संरक्षण

◆ पंचतत्व और प्रकृति के संतुलन की शिक्षा देना।
◆ वृक्षारोपण, जल संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा पर जोर।

10. वैश्विक आध्यात्मिक प्रभाव

◆ योग और ध्यान की शिक्षाओं को देश-विदेश तक पहुँचाना।
◆ भारत की आध्यात्मिक पहचान को विश्व मंच पर स्थापित करना।

11/08/2025

नाथ पंथ में “नाद” (Nada) केवल “ध्वनि” या “आवाज़” नहीं है

नाथ पंथ में “नाद” (Nada) केवल “ध्वनि” या “आवाज़” नहीं है, बल्कि यह साधना और आध्यात्मिक अनुभव का एक अत्यंत गूढ़ और केंद्रीय तत्व है।
नाथ योगियों के अनुसार, नाद ब्रह्म — ध्वनि ही परमात्मा का स्वरूप है।

1. नाद का शाब्दिक अर्थ
संस्कृत में “नाद” का अर्थ है—
न = “जीवन”
अद = “गति/कंपन”
यानी जीवन से उत्पन्न सूक्ष्म कंपन।
यह कोई साधारण आवाज़ नहीं, बल्कि वह कंपन है जो ब्रह्मांड के उद्गम से चला आ रहा है और हर जीव-निर्जीव में मौजूद है।

2. नाद पंथ का दृष्टिकोण

नाथ पंथ, जिसे गोरखनाथ और उनके गुरु मत्स्येंद्रनाथ ने व्यवस्थित किया, योग और तंत्र की गहन साधना से जुड़ा है। इसमें नाद को दो रूपों में समझाया गया है:

(क) आहत नाद (Aahata Nada) –

यह वह ध्वनि है जो भौतिक स्तर पर किसी वस्तु के टकराने या गति से उत्पन्न होती है।

वाद्ययंत्र की आवाज़
वाणी / बोल
हाथ-पाँव की थाप
आहत नाद स्थूल है और कान से सुना जा सकता है। यह साधना का प्रारंभिक माध्यम है।

(ख) अनाहत नाद (Anahata Nada) –

यह वह ध्वनि है जो किसी टकराव से नहीं, बल्कि आत्मा और चित्त की गहराई से उठती है।
नाथ योग में इसे “अंदर की ध्वनि” या “आत्मिक संगीत” कहते हैं।

यह हृदय चक्र (अनाहत चक्र) में अनुभव होता है।
इसे सुनने के लिए साधक को गहन ध्यान, प्राणायाम और नाद योग करना पड़ता है।

यह अनंत और निरंतर है, बाहरी परिस्थितियों से अप्रभावित।

3. नाद योग — साधना का मार्ग

नाथ पंथ में नाद योग का अभ्यास आत्म-साक्षात्कार के चार प्रमुख चरणों में किया जाता है:
1. आहत नाद पर ध्यान —
वाद्य, मंत्र-जप, घंटी, वीणा, मृदंग आदि की ध्वनि पर मन को स्थिर करना।

2. अनाहत नाद का अनुभव —
धीरे-धीरे बाहरी ध्वनियों से मन हटाकर अंदर की सूक्ष्म ध्वनि को सुनना।

3. नाद में लय —
जब साधक पूरी तरह नाद में डूब जाता है, तब शरीर-मन का भान समाप्त होने लगता है।

4. नाद ब्रह्म में विलय —
साधक ध्वनि के स्रोत में लीन होकर परमात्मा से एकाकार हो जाता है।
यह मुक्ति (कैवल्य) की अवस्था है।

4. नाद और ब्रह्मांड

नाथ सिद्धांत के अनुसार—

सृष्टि का आरंभ नाद से हुआ (“शब्द ब्रह्म”)।
यह नाद ओंकार के रूप में भी जाना जाता है।
ब्रह्मांड में जो भी गति, तरंग या ऊर्जा है, वह नाद के ही विभिन्न रूप हैं।

5. नाद के साधक पर प्रभाव

नाथ पंथ के मतानुसार, नाद साधना से:
मन एकाग्र और शांत होता है।
अंतर्मुखी चेतना जाग्रत होती है।
प्राण और चित्त का शुद्धिकरण होता है।
आत्मा का परमात्मा से सीधा संबंध स्थापित होता है।

बाल दिवस (Children's Day) भारत में हर साल 14 नवंबर को मनाया जाता है। यह दिन बच्चों के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ाने, उन...
14/11/2024

बाल दिवस (Children's Day) भारत में हर साल 14 नवंबर को मनाया जाता है। यह दिन बच्चों के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ाने, उनके अधिकारों, देखभाल, और शिक्षा के महत्व को समझाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन को विशेष रूप से भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर मनाया जाता है, क्योंकि नेहरू जी बच्चों से बहुत स्नेह करते थे और उन्हें देश का भविष्य मानते थे।

पंडित नेहरू को बच्चों के बीच "चाचा नेहरू" के नाम से जाना जाता था। उनके अनुसार, बच्चे देश की सबसे महत्वपूर्ण पूंजी होते हैं और उनका सही दिशा में विकास ही एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकता है।

इसलिए, उनके सम्मान में और बच्चों के प्रति उनके प्रेम को याद करते हुए, उनकी जयंती को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि समाज बच्चों की शिक्षा, उनके अधिकारों और उनके भविष्य को लेकर सजग हो और उन्हें एक स्वस्थ, सुरक्षित और खुशहाल बचपन प्रदान कर सके।

बाल दिवस पर स्कूलों, संस्थाओं, और कई सामाजिक संगठनों द्वारा बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम, खेलकूद, सांस्कृतिक गतिविधियाँ और मनोरंजक आयोजन किए जाते हैं।

06/11/2024

शिशुओं के लिए संगीत थेरपी

क्‍या आपको यह जानकारी थी कि आपके शिशु में शुरुआत से ही ध्‍वनि, वाणी और संगीत को ग्रहण करने की क्षमता होती है? जब वे लगभग 24 दिन के होते हैं, तभी से वे लय में थोड़े से बदलाव को भी पहचान सकते हैं और यहां तक कि परिवार के अलग-अलग सदस्‍यों की आवाज को भी पहचान सकते हैं। यह सचमुच अद्भुत है – यदि एक पांच माह का शिशु प्रतिदिन किसी गीत को सुनता है, तो वह उसे सुनते ही उसकी संगीत रचना को पहचान सकता है!

प्रत्‍येक परिवार (अथवा माता-पिता) अपने बच्‍चे को दिलासा देने के लिए कोई तराना अथवा गीत सुनाते हैं। जब आप कोई मधुर गीत बजाकर अपने बच्‍चे को गोद में लेकर इधर-उधर घूमते हैं, तो यह काफी आनन्‍ददायक और आसान होता है। संगीत कुछ नहीं करता है बल्कि काम की तरह कम और आराम की तरह अधिक बच्‍चे को शांति प्रदान करता है। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि शिशु भी संगीत के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं।

बच्चों के लिए गायन कई लोगों के लिए स्वाभाविक रूप से आते हैं। यहां तक की जब हम अपने शिशुओं से बात करते हैं तो अपनी आवाज को अधिक संगीतमय बनाने के लिए उसे बदलते हैं! हम अपनी आवाज को अधिक लयबद्ध बनाते हैं और दोहराते हैं, और कुछ पिच काउंटर पर विशेष जोर देते हैं। संगीतमय आवाज को भावनात्‍मक रूप से अधिक अभिव्यक्तिपूर्ण बनाती है और शिशु इसके प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। जब आप रिकार्ड किए गए संगीत पर गाते हैं, तो इसका एक फायदा है – व्‍यक्तिगत लगाव। यह आपके लगाव को न केवल और अधिक मजबूत बनाता है बल्कि आपके बच्‍चे को शांत बनाता है और उसके विकास को बढ़ावा देता है।गुनगुनाना और लोरी सुनाना नि:संदेह महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि ये शिशु को आनंद देते हैं और सुरक्षा की भावना प्रदान करते हैं। इसके अलावा, वे आपके शिशु के सीखने की लंबी यात्रा में पहले कदम हैं और वे बोलने और आवाज को समझने में शिशु की मदद करते हैं। आपने देखा होगा कि जब आप अपने शिशु के पास गुनगुनाते हैं अथवा गाना गाते हैं तो उसका चेहरा चमक उठता है; वे खिलखिलाते हैं और प्‍यार से आवाज निकालते हैं क्‍योंकि उन्‍हें आपकी आवाज की ध्‍वनि अच्‍छी लगती है! अपने बच्‍चे के लिए गाना उससे जुड़ने का एक जैविक तरीका है।

अपने बच्‍चे के लिए गाना गाने के कुछ फायदे नीचे दिए गए हैं:

शब्‍दावली:जब आप गाते हैं, तो आप अपने बच्‍चे की दुनिया में नए शब्‍द जोड़ते हैं जिससे उन्हें उनकी शब्‍दावली में मदद मिलती है। आप संबंधों का भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, किसी पक्षी के बारे में गीत गाते समय आप उस पक्षी की तरह का खिलौना अथवा तस्‍वीर हाथ में ले सकते हैं ताकि आपका शिशु समझ सके कि पक्षी क्‍या होता है।
सुनने के कौशल: गाना एक दूसरा तरीका है जिसके माध्‍यम से आपका बच्‍चा भाषा को और भाषा एवं गीत के माध्‍यम से व्‍यक्‍त की गई भावनाओं को समझना सीखता है, साथ ही साथ उसके सुनने के कौशलों में सुधार होता है।
लगाव: जब आप अपने बच्‍चे के लिए गाना गाते हैं, तो आप दोनों के बीच लगाव और अधिक मजबूत होता है। यह अपने शिशु के लिए प्‍यार और स्‍नेह व्‍यक्‍त करने का एक तरीका है।
दिनचर्या: यदि आप बच्‍चे के कपड़े बदलते समय अथवा उन्हें खाना खिलाते समय अथवा उन्हें सुलाते समय प्रतिदिन गाना गाते हैं, तो बच्‍चे अपनी दिनचर्या को समझने लगते हैं और जान जाते हैं कि अब क्‍या उम्मीद की जा रही सकती है! इससे उन्हें अतिरिक्‍त सुरक्षा मिलती है।
लेकिन यदि आप बहुत अच्‍छे गायक नहीं है, तो क्‍या होगा? इसके बारे में चिंता न करें। शिशु ही ऐसे श्रोता होते हैं जो कभी भी बिना किसी आलोचन के आपका गाना सुनते हैं! आप जैसा हैं वे वैसे ही पसंद करते हैं और बहुत से माता-पिता को पाते हैं कि अपने शिशु के सामने वे बिना किसी आत्म-समझ के गा सकते हैं।

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