25/09/2023
करम परब विशेष:-
--------------------
Johar | दहाञ करम गसाञ! बहिनेक करम भाइएक धरम!!
करम परब मुलत: प्रकृतिक पर है यह परब झारखंड, बंगाल, ओडिशा के कुछ जिलों में बड़ा ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व भादो मास एकादशी को मनाया जाता है। चांद के हिसाब से यह पर्व प्रथमा से शुरू होकर एकादशी तक चलता है। प्रथमा के दिन जावा डाली उठा कर यह परब प्रारंभ होता है। कहीं कहीं तीज का डाली भासने के बाद जावा डाली उठाया जाता है। गांव घर की कुंवारी लड़कियां इस परब की तैयारी भादो माह के प्रवेश होने से ही आखड़ा में नाच गान प्रारंभ कर देती है ।यह परब मुलरुप से कृषि कर्म से जुड़ा हुआ सृजनकारी परब है एवं यह मुख्यरुप से जनजातियों का परब है। खासकर देखा जाए तो यह परब कुड़मी समुदाय द्वारा विशेष तौर पर बढ़-चढ़कर मनाया जाता है । गांव में कुंवारी लड़कियां अपना अपना "करम दहंगी" बनाती है और चयनित अखाड़ा में नाच गान करती है और जावा उठाने का दिन धार्ज करती है । जावा में 11 या 9 प्रकार का बीज डाला जाता है जैसे कुरथी, मूंग, बिरी ,रमहा, लाहइड़, बाजरा, मकाई, ,मटर ,चना,मैथी और धान । जावा पांच प्रकार का उठाया जाता है -
1)सांची जावा
2) मांची जावा
3)बन जावा
4)बागाल/गठ जावा
5)गेराम बसअमता जावा
सांची जावा मुख्य जावा होता है ।यह 11 दिन का और 11 प्रकार के बीज डाल के उठाया जाता है इसमें धान और मैथी का होना अनिवार्य है। बाकी जावा में 9 प्रकार के बीज डालकर उठाया जाता है और यह 9, 7 या 5 दिन का भी उठाया जाता है। सांची जवा उठाने का विशेष नियम है
1) यह 11 वर्ष के पूर्व की कुंवारी लड़कियां ही उठा सकती है यानी जब तक की उसमें मातृत्व शक्ति(मासिक चक्र) का प्रारंभ ना हो।
2) 4 लड़कियां मिलकर उठाती है और अपने-अपने भाग में खूंटी गाड़ती है।
3) ये लड़कियां सांग नहीं खाती है क्योंकि साग खाने से उसके हिस्सा का जावा हरा हो जाता है। 4)नून अपने हाथ में लेकर नहीं खाती क्योंकि नून लेकर खाने से उसके हिस्से का जावा गल जाता है ।
5)नदी में हाबु देकर नहाती नहीं है क्योंकि ऐसा करने से उसके हिस्से का जावा ढह जाता है।
6)खटिया में सोना मना रहता है ।
7)कंघी करना मना रहता है।
8) दही खाना मना रहता है।
9) चुल्हा में जलाकर कोई वस्तु खाना माना जाता है।
10) निरामिष खाना खाती है।
11) सांची जावा एक लड़की 3 साल ही उठा सकती हैं व भी लगातार।
सांची जावा को छोड़कर बाकी में सामान्यतः कुछ नियम का ही पालन होता है। जावा उठाने के बाद आखड़ा में सभी जावा मंडली सुबह-शाम जावा को करम गीत गाकर जागाती है। करम एकादशी के पूर्व दिन संजोत करती है ,फिर एकादशी को उपवास रखती है और गांव के विभिन्न अखाड़ों में जाकर करम गीत गाती और नाचती है । गांव के नाया द्वारा विधि पूर्वक लाया गया करम डाल नहा धोकर आखड़ा में नाया के द्वारा गाड़ती है फिर एक मूल बर्ती जो सांची जावा उठाई है वह करम डाल के चारों ओर चॉक पुरती है । करम गुसाईं की दीया जलाने के बाद सब करमती अपना अपना दिया जलाती है। फिर विधिवत करम डाल का सेंवरन कर करम गीत गाती है और रात भर दीया जलाकर आखड़ा को जगाती है ।
सुबह को जावा मेड़ती है और एक विशेष गित गाती है-
"जा जाहुँ करम गसाञ जा छहअ मास रे जा छहअ मास ,
आउतअ भादरअ मास आनउबअ घुराइ"।
इसके बाद जावा भासान करती है और कुछ जावा को लेकर घर आती है उसे घर की भुतपिड़ा , छान, लत पल्ला ,धान के खेत, बाड़ी में डालती है और आशीष मांगती है की यह घर संसार सुख शांति से रहे और खेती बाड़ी में फसल की उपज अच्छी हो यह कामना करती है, इसके बाद भाई के कलाई में जावा का राखी बांधती है और कहती है-
देहुँ देहुँ करम राजा देहुँ आशीष , भाइयों मोरो बाड़तो लाखों बारिश ।
इस प्रकार यह करम परब हर्ष उल्लास के साथ समापन होता है।
सभार-हरे किसनअ हिंदइआर