22/05/2025
💐 स्वामी आनंद प्रेम नहीं रहे 🙏
स्वामी आनंद प्रेम नहीं रहे, 19.05.25 को दिल्ली में अचानक सिने में दर्द उठा और अगली यात्रा पर निकल गए, बेटा पास में था, लेकिन हॉस्पिटल जाने का भी समय नहीं मिला. आज दिल्ली में ही अंतिम संस्कार किया जाएगा.जो मित्र आस पास हैं उनसे आग्रह है कि उनके बेटे से संपर्क कर इस अंतिम यात्रा में शामिल होने का प्रयास करे.
स्वामी आनंद प्रेम बोकारो झारखंड से थे. मेरा और आनंद प्रेम (उमेश सिंह) का संन्यास मा योग नीलम से बोकारो में आयोजित शिविर में 13.10.2002 को हुआ था, तब से वे ओशो जगत को और समृद्ध करने में लगे हुए थे. ओशो की देशना को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए ओशो की किताबें, सीडी, फोटो आदि लेकर गाड़ी से घूमते रहे. उन्होंने ने बक्सर, बिहार में आश्रम की भी स्थापना की और उसको समृद्ध करने में अपना पूरा जीवन लगा दिये. ओशो कहते हैं ' मेरी ध्यान विधियां रूपांतरण की कीमिया (chemistry) है, संन्यास के बाद स्वामी जी संसार का सारा जंजाल छोड़कर पूरी तरह से ध्यान और ओशो के लिए समर्पित हो गये. लाल गोराई, बलिष्ठ शरीर के मालिक उमेश बाबू बोकारो के अच्छे बिजनेस मैन थे और जब ओशो को पढ़कर संन्यास लिए थे , उस समय उनका वजन 110 किलो था, आंख खालिस भूरा, बेहद मृदुभाषी. ध्यान के जगत में आने के 4- 5 साल बाद उनका वजन 70 kg हो गया, शरीर जैसे अपने आप रूपांतरित होकर हलुआ हो गया, इतना हल्का, सहज की विश्वास करना कठिन कि कभी ये शानदार शरीर के मालिक थे. आवाज की मिठास कई गुना बढ़ गई, अंततः वे No Demand की स्थिति में चल रहे थे. मैने बहुत कम संन्यासियों को इस तरह रूपांतरित होते देखा. स्वामी जी आनंद प्रेम हो गये, उमेश सिंह का रौबदार चेहरा कब का बिलिन हो गया था. मुझे सौभाग्य मिला है उनके साथ ध्यान करने का और जीने का, कई ध्यान शिविरों के आयोजन में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई, कितने बदल गए थे उसका एक वाक्या साझा करना चाहूंगा. आसनसोल में एक दिन का शिविर था, जिसमें शामिल होने मैं अपनी पत्नी आनंद निधि के साथ गया, स्वामी जी Book stall लगाए थे, मैरून रोब में hat 🤠 लगाए बैठे थे. मैंने आनंद निधि से कहा कि इनको पहचानती हैं? निधि ने न में सिर हिलाया, हमने स्वामी जी से hat 🤠 हटाने के लिए कहा, फिर भी निधि नहीं पहचान कर पाई. तब मैने कहा कि अब आप एक लाइन कुछ बोलिए, स्वामी जी के बोलते ही आवाज पहचान गई और बदलाव देख आवक रह गई. बोकारो में शिविर आयोजन के सिलसिले में महीनों निधि हमलोगों को साथ खिलाती रहीं थी, कई वर्ष ये सिलसिला चलता रहा था, लेकिन बिल्कुल नहीं पहचान पाई, सही पूछिए तो मुझे भी झटका लगा था, उनकी पहचान को लेकर. कोई व्यक्ति ऐसे transform हो सकता है, यकीन नहीं होता. आप कहां चले गए स्वामी जी. आपकी आगे की यात्रा की मंगल कामना करता हूं.आपने ओशो जगत को समृद्ध किया, आप हमेश यादों में रहेंगे. अलविदा 🙏💐