10/09/2025
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस: भारत में मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या की गहरी चुनौती:-
हर साल 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य केवल आत्महत्या के मामलों की चर्चा करना ही नहीं, बल्कि समाज में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना और उससे जुड़े कलंक को मिटाना भी है। भारत के संदर्भ में यह दिवस और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि देश में आत्महत्या की दर लगातार बढ़ रही है और इसका प्रभाव समाज के लगभग हर वर्ग पर देखा जा रहा है।
भारत में आत्महत्या की स्थिति चिंताजनक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2022 में देश में 1.71 लाख से अधिक लोगों ने आत्महत्या की। यह अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है और आने वाले वर्षों में भी इसमें कमी के संकेत नहीं दिख रहे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्या का संकेत है। आत्महत्या अब केवल व्यक्तिगत स्तर की समस्या नहीं रही, बल्कि यह एक राष्ट्रीय संकट का रूप ले चुकी है।
सबसे ज्यादा चिंता का विषय छात्रों के बीच आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति है। 2024 की रिपोर्टें बताती हैं कि छात्रों में आत्महत्या की दर हर साल लगभग चार प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, जो राष्ट्रीय औसत से लगभग दुगनी है। वर्ष 2022 में कुल आत्महत्याओं में से लगभग 13,000 से अधिक मामले छात्रों से जुड़े थे, जो पिछले दशक की तुलना में दोगुने हैं। पढ़ाई का दबाव, प्रतियोगी परीक्षाओं का तनाव, असफलता का डर और पारिवारिक अपेक्षाएँ इस समस्या को और गंभीर बना रही हैं। दुखद पहलू यह भी है कि जहाँ पुरुष छात्रों में आत्महत्याओं की संख्या में थोड़ी कमी आई है, वहीं महिला छात्रों में यह बढ़ोतरी दर्शा रही है कि समाजिक दबाव और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी उनके लिए और अधिक घातक साबित हो रही है।
भारत में आत्महत्या की एक और बड़ी तस्वीर किसानों से जुड़ी हुई है। हर साल हजारों किसान कर्ज़ के बोझ, फसल खराब होने, प्राकृतिक आपदाओं और आर्थिक तंगी के कारण अपनी जान ले लेते हैं। NCRB की रिपोर्ट बताती है कि देश में हर साल लगभग दस हजार से अधिक किसान और खेत मज़दूर आत्महत्या करते हैं। यह केवल आर्थिक संकट का परिणाम नहीं है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ ग्रामीण क्षेत्रों तक कितनी सीमित हैं। किसान अपनी समस्याओं के साथ अकेले जूझते हैं और सहायता न मिलने की वजह से आत्महत्या को अंतिम विकल्प मान बैठते हैं।
इसी प्रकार गृहिणियों की आत्महत्या भी एक गंभीर समस्या है। 2022 के आँकड़े बताते हैं कि आत्महत्या करने वालों में लगभग चौदह प्रतिशत गृहिणियाँ थीं। घरेलू तनाव, दांपत्य जीवन में असमानता, सामाजिक दबाव और आर्थिक निर्भरता उन्हें मानसिक रूप से इतना कमजोर कर देती है कि वे आत्महत्या का रास्ता चुन लेती हैं। यह स्थिति इस ओर संकेत करती है कि मानसिक स्वास्थ्य केवल युवाओं या किसानों तक सीमित मुद्दा नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज की हर परत को प्रभावित करता है।
हालाँकि, कुछ सकारात्मक उदाहरण भी सामने आए हैं। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) ने अपने बलों में आत्महत्या के मामलों को कम करने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। वर्ष 2023 में जहाँ 25 जवानों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2024 में यह संख्या घटकर 15 रह गई। अधिकारियों का मानना है कि यह कमी जवानों के साथ लगातार संवाद, काउंसलिंग और पोस्टिंग नीतियों में सुधार का परिणाम है। यह पहल इस बात को दर्शाती है कि यदि सही दिशा में कदम उठाए जाएँ तो आत्महत्या को काफी हद तक रोका जा सकता है।
भारत में आत्महत्या की समस्या का सबसे बड़ा कारण मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा है। अवसाद, चिंता, नशे की लत और अकेलापन इस संकट की जड़ हैं। फिर भी, समाज में मानसिक स्वास्थ्य को अब भी कलंक से जोड़ा जाता है। लोग “लोग क्या कहेंगे” के डर से मदद लेने से कतराते हैं। यही वजह है कि लोग समय रहते डॉक्टर, काउंसलर या मनोचिकित्सक तक नहीं पहुँच पाते और अंततः स्थिति आत्महत्या तक पहुँच जाती है।
समाधान के तौर पर यह आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थ्य को उतनी ही प्राथमिकता दी जाए जितनी शारीरिक स्वास्थ्य को दी जाती है। स्कूलों और कॉलेजों में काउंसलिंग सेवाओं को अनिवार्य किया जाए, किसानों को आर्थिक मदद के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक परामर्श भी मिले, गृहिणियों के लिए सपोर्ट ग्रुप बनाए जाएँ और हेल्पलाइन सेवाओं को गाँव-गाँव तक पहुँचाया जाए। भारत सरकार द्वारा शुरू की गई किरण हेल्पलाइन (1800-599-0019) और Tele-MANAS जैसी पहलें सही दिशा में उठाए गए कदम हैं, लेकिन इन्हें और व्यापक स्तर पर लागू करने की आवश्यकता है।
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस हमें यह याद दिलाता है कि आत्महत्या कोई समाधान नहीं है। संवाद, सहयोग और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ ही इस संकट का वास्तविक उत्तर हैं। जीवन अनमोल है, और सहायता लेना कमजोरी नहीं बल्कि साहस की निशानी है। यदि समाज एकजुट होकर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर संवेदनशीलता और समर्थन का माहौल बनाए, तो निश्चित ही आत्महत्या के मामलों में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है।
स्थानीय पहल और भूमिका
इसी दिशा में प्रदीप डागुर अस्पताल, भरतपुर विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जाना जाता है। यह अस्पताल मुख्य रूप से मनोचिकित्सा (psychiatric treatment), काउंसलिंग और मनोवैज्ञानिक देखभाल प्रदान करता है। यहाँ अनुभवी मनोचिकित्सक और प्रशिक्षित काउंसलर मरीजों को अवसाद, चिंता, नशे की लत, तनाव और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से बाहर आने में मदद करते हैं। अस्पताल नियमित रूप से व्यक्तिगत और समूह परामर्श (counseling sessions) आयोजित करता है, ताकि लोग अपनी भावनाओं को साझा कर सकें और समाधान की ओर बढ़ सकें।
प्रदीप डागुर अस्पताल की पहल यह संदेश देती है कि मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि जीवन बचाने का अनिवार्य हिस्सा है। अस्पताल का उद्देश्य है कि समाज में कोई भी व्यक्ति अकेलेपन या निराशा की वजह से आत्महत्या जैसा कदम न उठाए, बल्कि समय रहते विशेषज्ञ सहायता प्राप्त कर सके।
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Pradeep dagur hospital