19/11/2023
🌲"दो इच्छाएं और परमात्मा"🌲
(Two desires and God)
क्या हमें यह पता है कि जाने-अनजाने हम सब उस परमपिता परमात्मा की ही खोज में है? चौक गए ना यह सुनकर, लेकिन यह तो सच है। भले ही हमें अपनी चाहत के इस रूप का एहसास ना हो। दरअसल जिसे भी स्थाई सुख की तलाश है, उसे परमात्मा की ही तलाश है। आखिर किसमे है स्थाई सुख, और अस्थाई सुख की तलाश किसे हैं ..... जरा बताइए? कौन हमेशा किराए के मकान में रहना चाहता है, कौन जॉब सिक्योरिटी नहीं चाहता, कौन अपने चाहने वालों से बिछड़ना चाहता हैं? क्या मतलब है हमारे हर कार्य के पीछे छिपी स्थायित्व की इस भावना का? स्थिरता की चाहत ही इन सभी इच्छाओं का Highest common factor है।
इस पृथ्वी के सभी मनुष्यों की ये दो इच्छाएं हैं-
1. परम आनंद (Ultimate Joy)
2. हमेशा के लिए (Always)
क्या हमें इस बात का एहसास भी है कि हम सबका परिवेश चाहे कोई भी हो लेकिन आखिरकार हम सब इन्हीं दो इच्छाओं के अधीन होकर सभी काम करते हैं।
पहली इच्छा है- परम आनंद। हममें से ऐसा कौन हैं जो सबसे बड़ा आनंद नहीं चाहता? इस चाहत का रूप थोड़ा सा अलग है। हम सब यह चाहते हैं कि हमारे पास दुनिया की सबसे बढ़िया गाड़ी, जीवनसाथी, बच्चे, नौकरी, मकान आदि हो। हम हमेशा बेहतर की तलाश में रहते हैं लेकिन यह तलाश हमे बदतर बना देती है।
अब दूसरी इच्छा की बात करते है। इस इच्छा का संबंध स्थायित्व से है। अस्थाई सुख तो कोई भी नहीं चाहता। कोई भी प्राइवेट नौकरी नहीं चाहता, कोई भी किराए के मकान में नहीं रहना चाहता, सभी अपना घर चाहते हैं।
आखिर जीवन के हर रूप में ये दो इच्छाएं क्यों समाई हुई है? इसका जवाब मनोविज्ञान में नहीं है। लेकिन अध्यात्म विज्ञान में इसका जवाब है। अब सवाल ये है कि आखिर कौन सी ऐसी वस्तु है जिसमे ये दोनो बातें समाई हुई है? ऐसा क्या है जिससे बढ़कर आनंद और किसी में नहीं है, जिसे पाने के बाद लगे की सबकुछ पा लिया, और एक बार प्राप्त करने के बाद वह हमेशा हमारे साथ रहेगा। ये विशेषताएं जिसमे है उसे ही परमात्मा कहते है। अब बताइए क्या आप परमात्मा को नहीं चाहते? एक व्यक्ति कहता है कि मुझे एक रूपए तो नहीं चाहिए लेकिन चार चवन्नियाँ चाहिए, तो इसका मतलब क्या है? जो भी इन इच्छाओं की पूर्ति चाहता है उसे आध्यात्मिक मार्ग पर चलना चाहिए।
अध्यात्म दुखों से मुक्ति का वह स्थाई उपाय सुझाता है। भले ही हमारे पास सब कुछ हो फिर भी या तो वे चीजें हमसे छीन जाएगी या हम उनसे अलग हो जाएंगे। मृत्यु हमसे सब कुछ छीन लेंगी। तो हमारे सुखो का सबसे बड़ा शत्रु है- मृत्यु। उसी पर विजय बनाने प्राप्त करने के विज्ञान का नाम है- अध्यात्म। मेरे प्यारे साथियों हो सके तो कभी सूर्यास्त के सामने अकेले बैठकर अपनी चाहत के इस स्वरूप को महसूस करना। तुम्हें एक अकेलेपन का एहसास होगा और याद रखना इस अकेलेपन को दुनिया का कोई भी व्यक्ति और वस्तु नहीं भर सकते। क्या इस इच्छा का एहसास हम केवल तभी करना चाहते हैं, जब इसकी पूर्ति के लिए दिया गया वक्त समाप्त हो जाए।