26/08/2024
_*सरकार-नामा उर्फ सरकार की खोज*_
_डॉ. अरविंद दुबे की कलम से: -_
_जीवन के 12 वर्ष हमने उस दुर्गति-विधि में गुज़ारे जिसे आप सरकारी नौकरी कहते हैं।_
_शुरूआत में तो लगा कि जैसे कुवांरी लड़की पराये घर में रह रही हो, न जाने कौन कब दबो ले पर आपका यह खिद़मतगार कम छिछोरा नहीं है।
_जल्दी ही हमने जान लिया कहां पल्लू गिराकर उकसाना है, कहां छुपाकर तरसाना है और कहां से बचकर निकल जाना है।_
_बस ये हुनर एक बार आ जाये तो मक्कारी, मगरूरी, और मसखरी के लिये सरकारी नौकरी से अच्छी कोई जगह नहीं।_
_हां अवकाश शास्त्र का ज्ञान आवश्यक है।_
_हमने प्रारंभिक दिनों में ही गहन अध्ययन कर इस शास्त्र पर पांडित्यपूर्ण अधिकार जमा लिया था।_
_कैजुअल लीव, मेडीकल लीव, अर्जित लीव, हाफ डे लीव, हाफ पे लीव, रेस्ट्रीक्टेड लीव, फेस्टीवल लीव, और कई अन्य किस्म की लीव, के इतने समीकरण हमने बना लिये थे, कि आप मेरा यकीन करें बड़े-बड़े गणितज्ञ और वैज्ञानिक जिनमें वाणभट्ट और आइंस्टाईन, प्रमुख हैं, हमसे पिछले दरवाजे से ट्यूशन लेने आते थे।_
_शुक्रवार का दिन था, शनिवार सरकारी छुट्टी और इतवार, इतवारी छुट्टी। हमने अड़ा दी मेडीकल लीव की एप्लीकेशन।_
_गज़ब का आयटम है मेडीकल लीव।_
_बढ़ा दो, क्या करें बीमारी बिगड़ गई, छोटी कर दो क्या करें जल्दी ठीक हो गये, एकदम लचीली पर बेहद मजबूत और भरोसेमंद होती है मेडीकल लीव।_
_अब हमारे एक दोस्त हुआ करते थे कनुआ परसाद, एक आंख की पुतली सफेद थी, भैया शादी के बड़े शौकीन थे, शहर - शहर जाते थे लड़की देखने और बैरंग वापिस आते थे।_
_हमने समझाया मत करो शादी अभी एक आंख से नहीं देखते हो,फिर दूसरी से भी न देख पाओगे।_
_नहीं माने,तो हमने पुतली बदलने के लिये उनका नाम लिखा दिया_ _अस्पताल के रजिस्टर में_
_शनिवार को किसी सद्आत्मा ने_ _नेत्रदान कर दिये, हमने जाकर भैया का आपरेशन कर दिया।_
_सरकारी नौकरी में एक नियम और है, दफ्तर के हों या विभाग के, लेकिन नम्बर 1 और नम्बर 2 में कभी पटनी नहीं चाहिये ,और हमारे विभाग के जो हेड थे,वे इस नियम का निष्ठा पूर्वक पालन करते थे।_
_हम सोमवार को विभाग में पहुंचे और उन्होनें हमें एक पत्र दिया। जिसका आशय था कि मेडीकल_ _अवकाश पर रहते हुये, बिना फिटनेस सर्टीफिकेट दिये आपने सरकारी अवकाश अर्थात् शनिवार को आकर औपरेशन किया, यह नियम विरूद्ध है *क्यों न आपके विरूद्ध कार्यवाही की जाये।*_
_हमने उस कागज पर जबाव लिखा ‘‘कार्यवाही की जायें’’।_
_दूसरे दिन उन्होने दूसरा पत्र दिया आपका उत्तर वरिष्ठ अधिकारी की अवमानना है, यह कदाचार की श्रेणी में आता है, कृपया पूर्व के आरोपों और अपने व्यवहार का स्पष्टीकरण तीन दिन में प्रस्तुत करें अन्यथा समस्त प्रकरण उच्च अधिकारी को कार्यवाही हेतु प्रेषित किया जायेगा।_
_हमने जबाव लिखा ‘‘प्रेषित करें’’।_
_दो दिन बाद हमारे डीन का हमें फोन आया,_
_डाॅ. दुबे आप तुरंत आईये।_
_हम तुरंत गये उन्होने सारे कागज हमें दिखाकर कहा यह आप क्या कर रहे हैं ?_
_हमने कहा कि ये आपके पास कैसे आ गया, हमारे हेड तो कहते थे उच्च अधिकारी को प्रेषित करेगें।_
_उन्होनें कहा मैं ही उच्च अधिकारी हूँ।हमने कहा माफ करे सर, बाहर_ _आपका चपरासी तो कह रहा था, कि आप बड़े निच्च अधिकारी हैं, लायब्रेरी के_ _अखबार व मेग्जीन घर ले जाते है, डीजल का झूठा बिल बनवाते हैं।_
_उन्होनें हमें कमरे से बाहर धकेल दिया और चिल्लाकर अपने चपरासी को बुलाया।_
_हमने बाहर आकर चपरासी को एक बीस का नोट दिया, यार माफ करना, मैने तुम्हारी_ _शिकायत कर दी है, उसने बीस का नोट जेब में रखा, और मुस्कराकर बोला मैं कौन डीन हूँ, साहब,जो शिकायत से डरूं, मै किसी से नहीं डरता।_
_दो दिन बाद हमे डीन का पत्र मिला_
_तमाम आरोपों को दोहराते हुये उन्होनें लिखा कि यदि आप तीन दिन के अंदर स्पष्टीकरण नहीं देते है तो सारा प्रकरण भोपाल मुख्यालय भेजा जायेगा।_
_हमने संक्षिप्त जबाव लिखा ‘‘भेजा जायें’’।_
_फिर 15 दिन खामोशी रही।_
_15 दिन बाद हमें_ _एक प्रमुख सचिव नामक व्यक्ति का पत्र आया जिन्होनें दोहराया कि हमने अवकाश नियम तोड़े है, वरिष्ठ_ _अधिकारियों का अपमान किया है, और छुट्टी के दिन एक रोगी का औपरेशन करने जैसा जघन्य अपराध किया है, अतः क्यों न आपके विरूद्ध विभागीय जांच की स्थापना की जाये।_
_हमने जबाव दिया ‘‘स्थापना की जाये" । दो हफ्ते बाद फिर उनका पत्र आया कि आपको अंतिम अवसर दिया जाता है,अपना_ _स्पष्टीकरण दें।_
_हमने लिखा कि हम अवसरवादी नहीं है,आप हमारी आदतें न बिगाड़े हम सिद्धांतवादी है आप जांच की स्थापना करें।_
_तीन महीने तक फिर खामोशी, तब तक हमारे अंतर का कुटिल ब्राम्हण पूर्ण रूप से जाग्रत हो गया था।_
_हमने अपने साथ के चिकित्सकों से भारी भरकम बीमारियों के प्रमाण पत्र लिये।_
_हाईपर ऐसीडिटी, ब्लडप्रेशर, क्रोनिक मेनियक डिप्रेशन, एन्गजाईटी_ _न्यूरोसिस, गेस्ट्रिक अलसर,आदि इत्यादि हम प्रमाण सहित अनेक रोगों से ग्रस्त हो गये।_
_सारे कागज इकट्ठे कर आपका यह सेवक पहुंच गया उच्च न्यायालय में।_
_हमने गुहार लगाई, हुजूर माई बाप मैं पिछले तीन माह से भीषण मानसिक प्रताड़ना और दबाव में शासकीय सेवा कर रहा हूॅं।_
_मुझे लगातार धमकाया जा रहा है कि विभागीय जांच होगी, होगी, होगी, और होती नहीं है, अनिश्चय की स्थिति में मै त्रिशंकु इतने सारे रोगों से घिर गया हूँ।_
_एक वृद्ध सरदार जी जज थे उन्होनें मुझे ध्यान से ऊपर से नीचे तक देखा, खासा पट्ठा था मै बिलकुल फिट।मैने तुरंत पुकार लगाई हुजूर, आपका दायित्व मुझे देखना नहीं, न्यायालय में कागज देखा जाता है, आप कागज देखिये, मैने प्रमाण दिये है कि मैं गंभीरतम बीमारियों से ग्रसित हूँ।_
_दकियानूसी कानून से बंधे जज साहब को सरकार को नोटिस भेजना पड़ा। तारीख लगी, सरकारी वकील ने आकर जबाव के लिये अगली तारीख मांगी। अगली तारीख पर फिर अगली तारीख के लिये आवेदन दिया, मै खड़ा हो गया मैने कहा माई बाप जिस तरह इन्होनें मुझे प्रताड़ना दी है उसी तरह अब यह आपको परेशान करेगें, मुझे डर है कि कहीं आप जैसे देवस्वरूप न्यायमूर्ति को ये भयंकर रोग न हो जायें जो मुझे हुये है। जज साहब ने पूछा आप क्या चाहते हो ?_
_मैने कहा इन तीनो अधिकारियों की व्यक्तिगत उपस्थिति इस न्यायालय में हो ताकि आपकाजो फैसला हो इनके सामने हो।व्यक्तिगत उपस्थिति केनोटिस जारी किये गये।_
_प्रमुख सचिव भोपाल से एक दिन पहले आ गये, हमारे हेड अंगूर का रस एवं काजू की व्यवस्था में लग गये, डीन साहब ने एक मुर्गी को विधवा और उसके बच्चों को अनाथ कर उस परिवार के मुखिया को खाने की टेबल पर सजा दिया। शाम को लगभग 7 बजे हमें फोन आया हमारे डीन महोदय का, हमें ससम्मान उन्होनें अपने बंगले पर भोजन के लिये बुलाया था।_
_हम पहुंचे और अंगूर का रस, जो कि बहुत पुराना और पका हुआ था, हमने गिलास में डाला ही था कि प्रमुख सचिव ने हमसे कहा कि आप सरकार के नौकर है और कैसा व्यवहार करते है?हमने कहा सर ये सरकार कोैन है हम सरकार से मिलना चाहते है।उन्होनें कहा सरकार ......... भई सरकार गर्वनमेंट होती है।_
_हमने कहा सर पहले तो ये बताईये कि ये हिन्दी में होती है या अंग्रेजी में।_
_सचिव महोदय बौखला गये जोर से बोले भाई सरकार गर्वनमेंट होती है, शासन,शासन होता है। हमने कहा सर अब आपने लिंग भी बदल दिया। *पहले थी, होती थी, अब होता है, सर आप हमें कन्फ्यूज कर रहे हैं।*_
_हमें बाहर निकाल दिया गया, बड़े बेआबरू होकर निकले डीन के कूचे से हम। सुबह सब न्यायालय पहुंच गये । जज महोदय कुछ खफा थे तीनो अधिकारियों से बोले आप लोग क्या चाहते है, तारीख पर तारीख लेते है, उनके वकील ने कहा मी लाँर्ड हम कोई कार्यवाही नहीं करेगें, डाॅक्टर साहब के विरूद्ध हम सारी कार्यवाही विलोपित करते है।मैने फिर गुहार लगाई हुजूर माई बाप मेरी बीमारियां कैसे ठीक होगी?_
_जज साहब ने उनकी तरफ देखा,_
_*मैने कहा कि मेरा चिकित्सकीय ज्ञान कहता है अगर ये सरकार के अधिकारी क्षमा याचना कर लें, तो मेरा रोग ठीक हो जायेगा जज साहब ने क्षमा याचना का आदेश दिया, क्षमा याचना के संस्कार को लिपिबद्ध किया गया, हस्ताक्षरित किया गया और हम घर आ गये।_
_कुछ समय बाद हमने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दिया, जो_ _आनन-फानन में मंजूर किया गया।_
_अब सब कुछ ठीक है परंतु एक सवाल परेशान करता है कि,_
_*बारह वर्ष जिस सरकार की नौकरी की उससे मिल ही नहीं पाये, ये सरकार है क्या, क्या करती है, कुछ करती है या बैठे बैठे खाती है, स्त्री है या पुरूष है?*_
_मुझे लगता है ये बीच की है, न स्त्री न पुरूष तभी छिपकर रहती है और सामने नहीं आती।_
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_जब एक ईमानदार डॉक्टर को सरकारी नौकरी में परेशान किया जाता है, एक व्यंगात्मक रचना एवं प्रतिक्रिया।_
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