
14/09/2025
*“कुछ गुरु सिर्फ सिखाते नहीं… वो हमारी ज़िंदगी बदल देते हैं”*
ऐसे ही हैं हमारे गुरुवर Vd. Prashant Tiwari Sir, जिनका स्नेह, मार्गदर्शन और समर्पण पिछले पंद्रह वर्षों से निरंतर आयुर्वेद जगत को आलोकित कर रहा है। आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि आज विदेशों में भी—विशेषकर दक्षिण कोरिया में—वे आयुर्वेद का परचम लहरा रहे हैं। उनके अथक प्रयासों और दृष्टिकोण ने यह साबित कर दिया है कि आयुर्वेद केवल चिकित्सा नहीं, बल्कि एक वैश्विक आंदोलन बन सकता है।
गुरुजी का मानना है कि जब तक विद्यार्थी शास्त्र से गहराई से नहीं जुड़ते, तब तक वास्तविक आयुर्वेद का अनुभव अधूरा है। इसी सोच के चलते वे वर्षों तक ऑनलाइन माध्यम से Ayurveda Rheumatology Workshops करते रहे। लेकिन हर शिष्य की यह चाह बनी रही कि एक दिन उन्हें प्रत्यक्ष रूप से गुरुजी से सीखने का अवसर मिले। व्यस्त कार्यक्रम, विदेश प्रवास और समय की कमी के बीच यह सपना दूर लगता था—परंतु उनके भीतर विद्यार्थियों को सिखाने की जो ललक है, उसने इस सपने को साकार कर दिखाया।
इसी भावना से जन्म हुआ GURUCOOL का। और हमारे cool guru ने अचानक ही हम सभी को एक नई दिशा दी—DRUSHTAKARMA 1.0। इस घोषणा ने हमारे भीतर नई ऊर्जा भर दी। हम सभी Dharma Ayurved परिवार के वैद्य इस अवसर के लिए उतने ही उत्साहित थे, जितने एक विद्यार्थी अपने पहले पाठ के लिए होता है।
फिर शुरू हुआ Drushtakarma 1.0 का अविस्मरणीय सफर। देशभर से 70 से भी अधिक वैद्य एकत्र हुए और तीन दिनों तक न केवल Rheumatology की 17 बीमारियों को समझा, बल्कि Panchakarma के प्रत्येक पहलू को गहराई से सीखा। अभ्यंग से लेकर बस्ती निर्माण, पोटली, अग्निकर्म, विध्दकर्म और कपिंग—हर अभ्यास में यह अनुभव रहा कि जैसे हम केवल तकनीक नहीं, बल्कि गुरु का आशीर्वाद भी ग्रहण कर रहे हों। इतना ही नहीं, prescription कैसे लिखना है, दवाओं का चुनाव कैसे करना है और रोगी को किस संवेदनशीलता के साथ समझाना है—ये सभी पहलू भी इस ज्ञानयात्रा का हिस्सा बने। सच कहूँ तो यह अनुभव ऐसा था मानो तीन दिनों में ही Rheumatology की एक संपूर्ण डिग्री पूरी कर ली हो।
आज जब पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो महसूस करती हूँ कि Drushtakarma केवल एक workshop नहीं थी, यह एक जीवनानुभव था। यह केवल सीखने का अवसर नहीं था, बल्कि आत्मविश्वास वापस पाने, खुद को निखारने और अपने गुरु के ज्ञान को अपने भीतर उतारने का अवसर था।