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Satya Meditation  and ReikiCentre The Truth is not hidden from us.The truth is always with us around us and we are embedded in TRUTH every moment. Satya Reiki
guides U to Truth.
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मुझे पहचानो अरे दीवानों
20/06/2025

मुझे पहचानो अरे दीवानों

I think you might like this book – "SO BE IT: Self-communication and talk - First step to Self-Realization" by Satya Mah...
20/06/2025

I think you might like this book – "SO BE IT: Self-communication and talk - First step to Self-Realization" by Satya Mahesh Seth, Manjuu Seth.

Start reading it for free:

Dear Aatman,this book is not just a collection of words – it is a journey of insight, written to acquaint you with the truth within you. "Self-communication and talk" is a rediscovery of the silent dialogue that we often forget in the hustle and bustle of life—the dialogue we have with ourselves...

https://youtu.be/rJJDGHzmsDQLive in gratefulness
09/06/2025

https://youtu.be/rJJDGHzmsDQ
Live in gratefulness

May all Be Happy. Everything else is illusion.Energy Healing Session for Your Divine Life || ...

07/06/2025

*जीवन पर एक कविता*

जीवन है एक मधुर सुरों की तान,
कभी मुस्कान, कभी आँसू की पहचान।
हर सुबह एक नई कहानी लाए,
हर साँझ नए रंग दिखलाए।

चलते रहो चाहे राहें कठिन हों,
हर अंधेरे के बाद सवेरा तो निश्चित हो।
जो गिरते हैं, वही उड़ना सीखते हैं,
जो सहते हैं, वही दीप बन दीप्ति बिखेरते हैं।

हर दिन एक अवसर है जीने का,
हर क्षण एक वरदान है पाने का।
जो हो गया, उसे मुस्कुरा कर छोड़ो,
जो आएगा, उसका स्वागत प्रेम से करो।

बूंद-बूंद से सागर बनता है,
सपनों से ही तो जीवन सजता है।
विश्वास रखो अपनी राह में,
ईश्वर साथ है हर आह में।

तो चलो, जीवन को गीत बना लें,
हर दुख-सुख को मित्र बना लें।
क्योंकि यही तो है असली सफलता,
हर पल को प्रेम से जीना — यही है सकारात्मकता।

*सत्य महेश भोपाल*

Be Happy
30/05/2025

Be Happy

30/05/2025

सत्यमहेश भोपाल: Gurudev says: “You are not the mind. You are the Self.” But how do you experience that Self? ✨ Today at the Unic...

मृत्यु एक उत्सव मृत्यु को उत्सव की दृष्टि से देखना कोई साधारण बात नहीं है, लेकिन यह एक गहरी आध्यात्मिक समझ और आत्मबोध से...
27/05/2025

मृत्यु एक उत्सव
मृत्यु को उत्सव की दृष्टि से देखना कोई साधारण बात नहीं है, लेकिन यह एक गहरी आध्यात्मिक समझ और आत्मबोध से संभव होता है। इसके लिए निम्न दृष्टिकोण और अभ्यास सहायक हो सकते हैं:
1. मृत्यु को अंत नहीं, रूपांतरण समझे।
जैसे बीज मिट्टी में विलीन होकर वृक्ष बनता है, वैसे ही मृत्यु आत्मा की यात्रा का एक चरण मात्र है। यह शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं। आप वह हो जो अमर है।
दृष्टिकोण:
> "मैं शरीर नहीं हूँ। मैं चेतना हूँ, जो कभी जन्मी नहीं और कभी मरेगी नहीं।"
2. मृत्यु का स्वागत एक प्राकृतिक घटना के रूप में करना
हर श्वास के साथ मृत्यु निकट आती है, इसलिए जीवन की प्रत्येक साँस को पूर्णता से जीना और हर क्षण का सम्मान करना मृत्यु की तैयारी है।
अभ्यास:
प्रत्येक दिन कुछ क्षण मृत्यु का स्मरण करें – जैसे: "यदि यह मेरा अंतिम दिन हो, तो मैं कैसे जीऊँगा?"
3. मृत्यु को एक उत्सव के रूप में देखना
जिसने जीवन को पूर्णता से जिया, जो अहंकार, भय और अपेक्षाओं से मुक्त हुआ, उसके लिए मृत्यु मोक्ष का द्वार है — एक विलय, एक मिलन।
कबीर कहते हैं:
> "मरण बात की जो कोई जाने, मरे बिना कैसे जीये।"
4. संस्कार और उत्सव
भारतीय परंपरा में "अंत्येष्टि" को भी एक यात्रा मानते हैं, जहाँ दीप, गंगाजल, गीत और मंत्रों के साथ आत्मा को विदा किया जाता है — यह भी एक प्रकार का उत्सव है।
अनुभव कीजिए:
किसी प्रिय की मृत्यु पर शोक से अधिक कृतज्ञता रखें – कि उन्होंने जीवन में क्या दिया, सिखाया और उनका होना कितना अमूल्य था।
5. ध्यान और साक्षीभाव
ध्यान मृत्यु की तैयारी है। जब आप ध्यान में बैठते हैं और साक्षीभाव से शरीर, विचार और भावनाओं को देखते हैं, तब मृत्यु का भय कम होने लगता है।
अभ्यास:
> "मैं शाश्वत साक्षी हूँ, यह शरीर एक वाहन है।"
"मृत्यु – एक उत्सव"
सत्य महेश, भोपाल।
२६.०५.२०२५

25/05/2025

आदि अंत कोउ जासु न पावा।
मति अनुमानि निगम अस गावा॥

बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥

आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥

तन बिनु परस नयन बिनु देखा।
ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा॥

असि सब भाँति अलौकिक करनी।
महिमा जासु जाइ नहिं बरनी॥

जेहि इमि गावहिं बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान।
सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान ॥

जिनका आदि और अंत किसी ने नहीं (जान) पाया। वेदों ने अपनी बुद्धि से अनुमान करके इस प्रकार (नीचे लिखे अनुसार) गाया है-॥

वह (ब्रह्म) बिना ही पैर के चलता है, बिना ही कान के सुनता है, बिना ही हाथ के नाना प्रकार के काम करता है, बिना मुँह (जिव्हा) के ही सारे (छहों) रसों का आनंद लेता है और बिना ही वाणी के बहुत योग्य वक्ता है॥
वह बिना ही शरीर (त्वचा) के स्पर्श करता है, बिना ही आँखों के देखता है और बिना ही नाक के सब गंधों को ग्रहण करता है (सूँघता है)। उस ब्रह्म की करनी सभी प्रकार से ऐसी अलौकिक है कि जिसकी महिमा कही नहीं जा सकती॥
जिसका वेद और पंडित इस प्रकार वर्णन करते हैं और मुनि जिसका ध्यान धरते हैं, वही दशरथनंदन, भक्तों के हितकारी, अयोध्या के स्वामी भगवान श्री रामचन्द्रजी हैं॥

*ईश्वर एक है, अकेला है*(एक कविता)ईश्वर एक है, अकेला है,न नाम में है, न रूप का मेला है।ना मंदिर में, ना मस्जिद में,वो तो ...
22/05/2025

*ईश्वर एक है, अकेला है*
(एक कविता)

ईश्वर एक है, अकेला है,
न नाम में है, न रूप का मेला है।
ना मंदिर में, ना मस्जिद में,
वो तो हर धड़कते दिल में देखा है।

न रंग है उसका, न कोई रूप,
सांझ-सवेरा, दिन-रात का आधार।
कभी न दिखा, फिर भी सदा है,
हर श्वास में जैसे बहता जलप्रवाह है।

भीड़ में है, फिर भी तन्हा,
सभी में समाया, फिर भी अनजाना।
कभी मौन बन, कभी राग-रस,
हर प्राणी के अंतर का मधुर प्रकाश।

ईश्वर एक है, ईश्वर से भिन्न कुछ नहीं,
सबके भीतर बाहर है, पर दिखता कहीं नहीं।
अकेला है, पर सबका सहारा,
अदृश्य सा, फिर भी सबसे प्यारा।

जब भीतर उतर कर देखो स्वयं को,
उस अकेले में मिल जाएगा सबकुछ।
न द्वंद्व रहेगा, न भय कोई,
ईश्वर में ही खो जाएगा ‘मैं’ रूपी अज्ञान।
सत्य महेश भोपाल

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