भजन संध्या आत्मबोध पतंजलि वेलनेस सेंटर पुणे महाराष्ट्र
सुबह उठकर के जिस दिन यह संसार #योगाभ्यास और #अष्टांग योग के अनुकूल योग युक्त आचरण करने लग जाएगा उस दिन यह योगमय विश्व सुखमय, शांतिमय, पूर्ण समृद्धिमय विश्व बन जाएगा......
#योग से,यज्ञ से,प्राकृतिक चिकित्सा से,आयुर्वेद चिकित्सा से शरीर का शुद्धिकरण और शरीर का सशक्तिकरण होता है।जब मैं सशक्तिकरण की बात करता हूँ तो रस,रक्त,मांस,मेद,अस्थि,मज्जा और शुक्र ओज।इस ओज को ही इम्युनिटी कहते हैं, ओज को नापने का कोई तरीका नहीं पता लगा है पर यह अनुभव में आता है।
परमात्मा ने तीन प्रकार की शक्ति दी हैं।
#ज्ञानशक्ति, #भावशक्ति, #क्रियाशक्ति।
इन तीनों में ही शांति हो यह प्रार्थना करते हुए,
हम योगाभ्यास प्रारंभ करते हैं तो फिर योग पूरी तरह से हमारे जीवन में फलीभूत होगा उसका पूरा लाभ हमें प्राप्त होता
जीवन योग है, यज्ञ है। जीवन एक संघर्ष है, साधना है। जीवन एक युद्ध है। योगी हो करके जीवन का युद्ध हमें करना है और जीतना है।
प्राण ऊर्जा का सबसे बड़ा आधार है। प्राण रोगियों के लिए औषधि है, विद्यार्थियों के लिए प्राण ज्ञान है, गुरु, आचार्य हैं।
युवाओं के लिए प्राण ऊर्जा, शक्ति है। प्राण माता, पिता, भाई, बहन, आचार्य हैं।
प्राण साक्षात ब्राह्मण है, ब्रह्म है, ज्ञान है।
जीवन में सदा सहजता,आनन्द,उत्साह, विश्वास,शौर्य,पराक्रम,जागरूकता रखते हुए,अपने ध्येय के प्रति एकाग्रता,विकल्प रहित संकल्प व अखण्ड प्रचण्ड पुरुषार्थ,संकल्पवान होकर के पवित्र संकल्प व एकाग्रता केसाथ बस अपना पुरुषार्थ करते जाना है,
जीवन का प्रयोजन पूराहो जाएगा।
जब हमें समर्थ गुरुओं का आश्रय मिलता है और हम गुरुओं, शास्त्रों, वेदों, आत्मा के अनुकूल आचरण करने लगते हैं तो जीवन दिव्य जीवन में आरोहण पाता है और हमारे भीतर देवत्व के, ऋषित्व के, ब्रह्मत्व की प्रतिष्ठा होने लगती है। यह जीवन की क्रमशः यात्रा है।
अभ्यास का मतलब है
भगवान के साथ जीवन जीने का अभ्यास,
#गुरु के साथ उस परम् गुरु के साथ एकात्म होकर जीने के प्रयास,
#योग_निष्ठ होकर के,
#ब्रह्म_निष्ठ होकर के,
#सत्य_निष्ठ होकर के जीने का अभ्यास,
#आत्म_निष्ठ होकर के अपनी निजता को नहीं खोना, सत्य में जीना, सात्विकता में जीना है
ॐ श्रीगुरुभ्यो नमः
गुरुबिन ज्ञान न उपजे,
गुरुबिन मिटे न भेद।
गुरुबिन संशय ना मिटे,
जय जय जय गुरुदेव।
शरीर साधन है धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का, शरीर अंतिम गंतव्य, ध्येय, लक्ष्य नहीं है,
शरीर साधन है साधना का, शरीर साधन है भगवत प्राप्ति का,
आत्म दर्शन, प्रभु दर्शन का, प्रभु मिलन का।
अहिंसा से #योग शुरू होता है।
जब हम #अहिंसा, #सत्य, #अस्तेय, #ब्रह्मचर्य, #अपरिग्रह
यह #पाँच_यम और सोच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान यह पाँच नियमों का पालन करते हैं, यह सार्वभूमिक महाव्रत है।