Astrologer of India

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AWARDE BY
SHRI JYOTISH RATN
GOLD MEDALIST
&
LIFETIME ACHIVMENT IN ASTROLOGY,
TANTRA MANTRA,

INICIATED FROM SHRI RAMAKRISHAN MISSION
BELUR MATH KOLKATTA

DEVOTEE OF
SWAMI SHIVA NANDA JI MAHARAJ
SWAMI CHIDANANDA JI MAHARAJ
RISHIKESH

STUDANT OF YOGA VEDANTA FOREST ACEDEMY
DIVINE LIFE SOCIATY, RISHIKESH

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APPEASE ASTROLOGY & HOMEOPATHY RESEARCH
4-A-53, PAWAN PURI, BIKANER-334003
RAJASTHAN INDIA

31 अक्टूबर को दीपावली पूजन का पहला मुहूर्त 👉प्रदोष काल में शाम 5:28 बजे से 6:25 बजे तक.👉स्थिर लग्न में वृष लग्न का मुहूर...
18/10/2024

31 अक्टूबर को दीपावली पूजन का पहला मुहूर्त
👉प्रदोष काल में शाम 5:28 बजे से 6:25 बजे तक.
👉स्थिर लग्न में वृष लग्न का मुहूर्त शाम 6:28 बजे से 8:30 बजे तक.
👉सिंह लग्न का मुहूर्त रात 12:36 बजे से 3:21 बजे तक.
वैदिक शास्त्रों अनुसार दीपावली पूजन में अमावस्या की रात्रि, प्रदोषकाल, स्थिर लग्न होने पर पूजन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. और प्रसिद्ध विश्वसनीय पंचांगों अनुसार यह तीनों संयोग 31 अक्टूबर 2024 को देखे गए हैं. दीपावली में रात्रि व्यापिनी अमावस्या का महत्व होता है. 31 अक्टूबर की रात ही अमावस्या है. अमावस्या की रात मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और भक्तों के घर जाती हैं.
धनतेरस, नरक चतुर्दशी और दीपावली को अपने घर और व्यवसाय स्थल पर हर्षो उल्लास से मिट्टी के दीपक जलाने करने की परम्परा होती है. मेरे व्यक्तिगत विचार अनुसार इन पर्वों में उदया तिथि नहीं ली जानी चाहिए...
Sadhak Karan Chandrani
Astrologer Dr.Karan Chandrani Bikaner

हमारी जन्म कुंडली बहुत कुछ बताती है, हमारे किससे कैसे संबंध रहेंगे...हम पूर्व जन्म में कौन थे, अगले जन्म में क्या बनेंगे...
30/07/2024

हमारी जन्म कुंडली बहुत कुछ बताती है, हमारे किससे कैसे संबंध रहेंगे...
हम पूर्व जन्म में कौन थे, अगले जन्म में क्या बनेंगे ?
हमारी शिक्षा कैसी रहेगी ?
हमारी नौकरी व्यापार कैसा रहेगा ?
हमारी तरक्की उन्नति कैसी रहेगी ?
हमारे संतान से कैसे संबंध रहेंगे आदि ?

पिता के लग्न से दशम राशि में यदि पुत्र का जन्म लग्न में हो तो पुत्र-पिता तुल्य गुणवान होता है. यदि पिता के द्वितीय, तृतीय, नवम व एकादश भावस्थ राशि में पुत्र का जन्म लग्न हो तो पुत्र पिता के अधीन रहता है. यदि पिता के षष्ठम व अष्टम भाव में जो राशि हो, वही पुत्र का जन्म लग्न हो तो पुत्र, पिता का शत्रु होता है और यदि पिता के द्वादश भाव गत राशि में पुत्र का जन्म हो तो, भी पिता-पुत्र में उत्तम स्नेह नहीं रहता.

यदि पिता की कुंडली का षष्ठेश अथवा अष्टमेश पुत्र की कुंडली के लग्न में बैठा हो तो पिता से पुत्र विशेष गुणी होता है. यदि लग्नेश की दृष्टि पंचमेश पर पड़ती हो और पंचमेश की दृष्टि लग्नेश पर पड़ती हो अथवा लग्नेश पंचमेश के गृह में हो और पंचमेश नवमेश के गृह में हो अथवा पंचमेश नवमेश के नवांश में हो तो, पुत्र आज्ञाकारी और सेवक होता है.

यदि पंचम स्थान में लग्नाधिपति और त्रिकोणाधिपति साथ होकर बैठे हों और उन पर शुभग्रह की दृष्टि भी पड़ती हो तो जातक के लिए केवल राज योग ही नहीं होता वरन् उसके पुत्रादि सुशील, सुखी, उन्नतिशील और पिता को सुखी रखने वाले होते हैं.
परंतु यदि षष्ठेश, अष्टमेश अथवा द्वादशेश पाप ग्रह और दुर्बल होकर पंचम स्थान में बैठे हों तो, ऐसा जातक अपनी संतान के रोग ग्रस्त रहने के कारण उससे शत्रुता के कारण, संतान से असभ्य व्यवहार के कारण अथवा संतान-मृत्यु के कारण पीड़ित रहता है.

यदि पंचमेश पंचमगत हो अथवा लग्न पर दृष्टि रखता हो अथवा लग्नेश पंचमस्थ हो तो पुत्र आज्ञाकारी और प्रिय होता है. स्मरण रहे कि, जितना ही पंचम स्थान का लग्न से शुभ संबंध होगा, उतना ही पिता-पुत्र का संबंध उत्तम और घनिष्ठ होगा.
यदि पंचमेश 6, 8 व 12 स्थान में हो और उस पर लग्नेश की दृष्टि न पड़ती हो तो पिता पुत्र का संबंध उत्तम होता है.

यदि पंचमेश 6, 8 व 12 स्थानगत हो तो, उस पर लग्नेश, मंगल और राहू की दृष्टि भी पड़ती हो तो पुत्र-पिता से घृणा करेगा और पिता को गाली गलौच तक करने में बाज नहीं आएगा.
पद लग्न से पुत्र और पिता का भी विचार किया जाता है. पद लग्न से केंद्र अथवा त्रिकोण में अथवा उपचय स्थान में यदि पंचम राशि पड़ती हो तो पिता-पुत्र में परस्पर मित्रता होती है.
परंतु लग्न से पंचमेश 6, 8, 12 स्थान में पड़े तो पिता-पुत्र में शत्रुतापूर्ण व्यवहार होता रहता है.

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एस्ट्रोलॉजर होमियोपैथ डॉ. करण चंद्राणी बीकानेर
Sadhak Karan Chandrani
Astrologer Dr.Karan Chandrani Bikaner

2019 ke Lok Sabha Election ke purv Shri Govind dev Mandir me yah Mulakat Photo Shayad Deeya Kumari ji ke sath hai... jo ...
12/04/2024

2019 ke Lok Sabha Election ke purv Shri Govind dev Mandir me yah Mulakat Photo Shayad Deeya Kumari ji ke sath hai... jo vartman me Up Mukhy Mantri hai. Shubhkamnaye..

12/04/2024
श्री शिव महापुराणश्रीरुद्र संहिता (पंचम खंड)(चवालीसवां अध्याय)अंधक की अंधता... (भाग 1)सनत्कुमार जी बोले- हे व्यास जी ! ए...
15/03/2024

श्री शिव महापुराण
श्रीरुद्र संहिता (पंचम खंड)

(चवालीसवां अध्याय)
अंधक की अंधता... (भाग 1)
सनत्कुमार जी बोले- हे व्यास जी ! एक बार हिरण्याक्ष के पुत्र अंधक से उसके भाइयों ने मजाक उड़ाते हुए कहा - अंधक ! तुम तो अंधे और कुरूप हो! भला तुम राज्य का क्या करोगे? दैत्यराज हिरण्याक्ष तो मूर्ख थे, जो भगवान शिव की इतनी कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करके भी तुम जैसा कुरूप, नेत्रहीन और बेडौल पुत्र वरदान में प्राप्त किया। कभी दूसरे से प्राप्त पुत्र का भी पिता की संपत्ति पर अधिकार होता है? इसलिए इस राज्य के स्वामी हम ही हैं, तुम तो हमारे सेवक हो।

अपने भाइयों के इस प्रकार के कटु वचनों को सुनकर अंधक निराश और उदास हो गया। रात के समय जब सब सो रहे थे तो वह अपने राजमहल को छोड़कर निर्जन सुनसान और भयानक डरावने वन में चला गया। वहां उस सुनसान वन में जाकर उसने तपस्या आरंभ कर दी। वह दस हजार वर्षों तक घोर तपस्या करता रहा परंतु जब कोई परिणाम नहीं निकला तो उसने अपने शरीर को अग्नि में जलाकर होम करना चाहा। ठीक उसी समय स्वयं ब्रह्माजी वहां प्रकट हो गए।

ब्रह्माजी बोले-पुत्र अंधक! मांगो क्या मांगना चाहते हो? मैं तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हूं। तुम अपना इच्छित वर मांग सकते हो। मैं तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूरी करूंगा। यह सुनकर अंधक बहुत प्रसन्न हुआ। उसने हाथ जोड़कर ब्रह्माजी की स्तुति की और बोला- हे कृपानिधान ब्रह्माजी! यदि आप मुझ पर प्रसन्न होकर मुझे कोई वर देना चाहते हैं तो आप कुछ ऐसा करें कि मेरे निष्ठुर भाइयों ने जो मुझसे मेरा राज्य छीन लिया है,

वे सब मेरे अधीन हो जाएं। मेरे नेत्र ठीक हो जाएं अर्थात मुझे दिव्य दृष्टि की प्राप्ति हो तथा मुझे कोई भी न मार सके - वह देवता, गंधर्व, यक्ष, किन्नर, मनुष्य, नारायण अथवा स्वयं भगवान शिव ही क्यों न हों। अंधक के इन वचनों को सुनकर ब्रह्माजी बोले- हे अंधक !

तुम्हारे द्वारा कही हुई दोनों बातों को मैं स्वीकार करता हूं परंतु इस संसार में कोई भी अजर-अमर नहीं है। सभी को एक न एक दिन काल का ग्रास बनना पड़ता है। मैं सिर्फ तुम्हारी इतनी मदद कर सकता हूं कि जिस प्रकार की और जिसके हाथ से तुम चाहो अपनी मृत्यु प्राप्त कर सकते हो।

तब ब्रह्माजी के वचन सुनकर अंधक कुछ देर के लिए सोच में डूब गया। फिर बोला- हे प्रभु! तीनों कालों की उत्तम, मध्यम और नीच नारियों में से जो भी नारी सबकी जननी हो, सबमें रत्न हो, जो सब मनुष्यों के लिए दुर्लभ तथा शरीर व मन के लिए अगम्य है, उसको अपने सामने पाकर जब मेरे अंदर काम भावना उत्पन्न हो, उसी समय मेरा नाश हो। इस प्रकार का वरदान सुनकर ब्रह्माजी ने 'तथास्तु' कहा और उससे बोले, दैत्येंद्र ! तेरे सभी वचन अवश्य ही पूरे होंगे. अब तू जाकर अपना राज्य संभाल.

भक्ति बीज पलटे नहीं, जो जुग  जाय अनन्त।ऊंच  नीच  बर अवतरै,  होय सन्त  का सन्त।।👉भक्ति का बोया बीज कभी व्यर्थ नहीं जाता च...
15/03/2024

भक्ति बीज पलटे नहीं, जो जुग जाय अनन्त।
ऊंच नीच बर अवतरै, होय सन्त का सन्त।।
👉भक्ति का बोया बीज कभी व्यर्थ नहीं जाता चाहे अनन्त युग व्यतीत हो जाये. यह किसी भी कुल जाति में ही, परन्तु इसमें होने वाला भक्त सन्त ही रहता है. छोटा बड़ा या ऊच नीच नही होता अर्थात भक्त की कोई जाति नहीं होती.
हमेशा की तरह सिमरन करते हुए अपने कार्य में तत्लीन रहने वाले भक्त रविदास जी आज भी अपने जूती गांठने के कार्य में तल्लीन थे.
अरे, मेरी जूती थोड़ी टूट गई है, इसे गाँठ दो, राह गुजरते एक पथिक ने भगत रविदास जी से थोड़ा दूर खड़े हो कर कहा आप कहाँ जा रहे हैं श्रीमान? भगत जी ने पथिक से पूछा.
मैं माँ गंगा स्नान करने जा रहा हूँ ,तुम चमड़े का काम करने वाले क्या जानो गंगा जी के दर्शन और स्नान का महातम.
सत्य कहा श्रीमान, हम मलिन और नीच लोगो के स्पर्श से पावन गंगा भी अपवित्र हो जाएगी. आप भाग्यशाली हैं जो तीर्थ स्नान को जा रहे हैं.
भगत जी ने कहा सही कहा तीर्थ स्नान और दान का बहुत महातम है. ये लो अपनी मेहनत की कीमत एक कोड़ी और मेरी जूती मेरी तरफ फेंको.
आप मेरी तरफ कौड़ी को न फेंकिए, ये कौड़ी आप गंगा माँ को गरीब रविदास की भेंट कह कर अर्पित कर देना.
पथिक अपने राह चला गया, रविदास पुनः अपने कार्य में लग गए
अपने स्नान ध्यान के बाद जब पथिक गंगा दर्शन कर घर वापिस चलने लगा तो उसे ध्यान आया, अरे उस शुद्र की कौड़ी तो गंगा जी के अर्पण की नही, नाहक उसका भार मेरे सिर पर रह जाता, ऐसा कह कर उसने कौड़ी निकाली और गंगा जी के तट पर खड़ा हो कर कहा, हे माँ गंगा, रविदास की ये भेंट स्वीकार करो.
तभी गंगा जी से एक हाथ प्रगट हुआ और आवाज आई
लाओ भगत रविदास जी की भेंट मेरे हाथ पर रख दो
हक्के बक्के से खड़े पथिक ने वो कौड़ी उस हाथ पर रख दी
हैरान पथिक अभी वापिस चलने को था कि पुनः उसे वही स्वर सुनाई दिया..
पथिक, ये भेंट मेरी तरफ से भगत रविदास जी को देना..
गंगा जी के हाथ में एक रत्न जड़ित कंगन था,
हैरान पथिक वो कंगन ले कर अपने गंतव्य को चलना शुरू किया,
उसके मन में ख्याल आया
रविदास को क्या मालूम, कि माँ गंगा ने उसके लिए कोई भेंट दी है, अगर मैं ये बेशकीमती कंगन यहाँ रानी को भेंट दूँ तो राजा मुझे धन दौलत से मालामाल कर देगा.
ऐसा सोच उसने राजदरबार में जा कर वो कंगन रानी को भेंट कर दिया. रानी वो कंगन देख कर बहुत खुश हुई, अभी वो अपने को मिलने वाले इनाम की बात सोच ही रहा था कि रानी ने अपने दूसरे हाथ के लिए भी एक समान दूसरे कंगन की फरमाइश राजा से कर दी.

पथिक, हमे इसी तरह का दूसरा कंगन चाहिए राजा बोला

आप अपने राज जौहरी से ऐसा ही दूसरा कंगन बनवा लें पथिक बोला.
पर इस में जड़े रत्न बहुत दुर्लभ हैं. ये हमारे राजकोष में नहीं हैं. अगर पथिक इस एक कंगन का निर्माता है तो दूसरा भी बना सकता है. राजजोहरी ने राजा से कहा

पथिक अगर तुम ने हमें दूसरा कंगन ला कर नहीं दिया तो हम तुम्हे मृत्युदण्ड देंगे, राजा गुर्राया
पथिक की आँखों से आंसू बहने लगे
भगत रविदास से किया गया छल उसके प्राण लेने वाला था.
पथिक ने सारा सत्य राजा को कह सुनाया और राजा से कहा केवल एक भगत रविदास जी ही हैं जो गंगा माँ से दूसरा कंगन ले कर राजा को दे सकते हैं.
राजा पथिक के साथ भगत रविदास जी के पास आया
भगत जी सदा की तरह सिमरन करते हुए अपने दैनिक कार्य में तल्लीन थे.
पथिक ने दौड़ कर उनके चरण पकड़ लिए और उनसे अपने जीवन रक्षण की प्रार्थना की.
भगत रविदास जी ने राजा को निकट बुलाया और पथिक को जीवनदान देने की विनती की.
राजा ने जब पथिक के जीवन के बदले में दूसरा कंगन माँगा तो भगत रविदास जी ने अपनी नीचे बिछाई चटाई को हटा कर राजा से कहा... आओ और अपना दूसरा कंगन पहचान लो

राजा जब निकट गया तो क्या देखता है
भगत जी के निकट जमीन पारदर्शी हो गई है और उस में बेशकीमती रत्न जड़ित असंख्य ही कंगन की धारा अविरल बह रही है.
पथिक और राजा भगत रविदास जी के चरणों में गिर गए और उनसे क्षमा याचना की.
प्रभु के रंग में रंगे देवमाला अम्बाशरणं महात्मा लोग, जो अपने दैनिक कार्य करते हुए भी प्रभु का नाम सिमरन करते हैं उन से पवित्र और बड़ा कोई तीर्थ नही.
उन्हें तीर्थ वेद शास्त्र क्या व्यख्यान करेंगे उनका जीवन ही वेद है उनके दर्शन ही तीर्थ है.

कुंडली में गुरु  राहु युति अस्थमा फेफड़े की बीमारी.साथ मे सूर्य, शनि का सम्बन्ध भी बन रहा हो तो तपेदिक नामक बीमार.कुंडली ...
16/07/2023

कुंडली में गुरु राहु युति अस्थमा फेफड़े की बीमारी.
साथ मे सूर्य, शनि का सम्बन्ध भी बन रहा हो तो तपेदिक नामक बीमार.

कुंडली में चंद्र के साथ शुक्र स्किन एलर्जि की परेशानी. और व्यक्ति की माता को भो स्किन और आँखों में परेशानी होती है.

सूर्य देव के साथ जब शुक्र देव बैठ जाएँ तब ऐसे जातक के शरीर में जोश की कमी आ जाती है. साथ ही शरीर के अंदर की ताकत भी नष्ट हो जाती है.

मंगल देव के साथ जब बुध देव एक साथ बैठ जाएँ तब खून से समबन्धित बीमारी होती है।साथ ही पेट में तेजाब बनना एसिडिटी की परेशानी और बाद में केंसर तक बन जाता है.

गुरु देव के साथ जब बुध देव भी बैठ जाएँ तो अस्थमा साइनस की बीमारी होती है ।और जिस घर में यह बुरा योग बन रहा हो उस घर से सम्बंधित बीमारी भी बन जाती है.

राहु के साथ जब शुक्र देव बैठ जाएँ तो नपुनशक्ता वीर्य में कमी शरीर की हड्डियां कमजोर । गुप्तांग की बीमारी पैदा होती हैं.

शुक्र देव के साथ जब केतु देव हों तो जातक को शुगर पेशाब ,धातु गिरना की परेशानी होती है.

चंद्र देव के साथ जब राहु बैठ जाये तो निमोनिया और पागल पन के दौरे पड़ने लगते हैं.

जब किसी की कुंडली में सूर्य देव मन्दे हो, शनि या राहु से पीड़ित हों, और बुध +गुरु भी एक साथ बैठ जाएँ तो पीलिया हो जाता हैं.

पंचम स्थान संतान व विद्या का भी माना जाता है. पंचम स्थान कारक गुरु और पंचम स्थान से पंचम स्थान (नवम स्थान) पुत्र सुख का ...
03/06/2023

पंचम स्थान संतान व विद्या का भी माना जाता है. पंचम स्थान कारक गुरु और पंचम स्थान से पंचम स्थान (नवम स्थान) पुत्र सुख का स्थान होता है. पंचम स्थान गुरु का हो तो हानिकारक होता है, यानी पुत्र में बाधा आती है.
सिंह लग्न में पंचम गुरु वृश्चिक लग्न में मीन का गुरु स्वग्रही हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है, परन्तु गुरु की पंचम दृष्टि हो या पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो संतान सुख उत्तम मिलता है.
पंचम स्थान का स्वामी भाग्य स्थान में हो तो प्रथम संतान के बाद पिता का भाग्योदय होता है. यदि ग्यारहवें भाव में सूर्य हो तो उसकी पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो पुत्र अत्यंत प्रभावशाली होता है. मंगल की यदि चतुर्थ, सप्तम, अष्टम दृष्टि पूर्ण पंचम भाव पर पड़ रही हो तो पुत्र अवश्य होता है.
पुत्र संततिकारक चँद्र, बुध, शुक्र यदि पंचम भाव पर दृष्टि डालें तो पुत्री संतति होती है। यदि पंचम स्थान पर बुध का संबंध हो और उस पर चँद्र या शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो तो वह संतान होशियार होती है। पंचम स्थान का स्वामी शुक्र यदि पुरुष की कुंडली में लग्न में या अष्टम में या तृतीय भाव पर हो एवं सभी ग्रहों में बलवान हो तो निश्चित तौर पर लड़की ही होती है। पंचम स्थान पर मकर का शनि कन्या संतति अधिक होता है। कुंभ का शनि भी लड़की देता है। पुत्र की चाह में पुत्रियाँ होती हैं। कुछ संतान नष्ट भी होती है.
पंचम स्थान पर स्वामी जितने ग्रहों के साथ होगा, उतनी संतान होगी। जितने पुरुष ग्रह होंगे, उतने पुत्र और जितने स्त्रीकारक ग्रहों के साथ होंगे, उतनी संतान लड़की होगी। सप्तमांश कुंडली के पंचम भाव पर या उसके साथ या उस भाव में कितने अंक लिखे हैं, उतनी संतान होगी। एक नियम यह भी है कि सप्तमांश कुंडली में चँद्र से पंचम स्थान में जो ग्रह हो एवं उसके साथ जीतने ग्रहों का संबंध हो, उतनी संतान होगी.

संतान सुख कैसे होगा, इसके लिए भी हमें पंचम स्थान का ही विश्लेषण करना होगा। पंचम स्थान का मालिक किसके साथ बैठा है, यह भी जानना होगा। पंचम स्थान में गुरु शनि को छोड़कर पंचम स्थान का अधिपति पाँचवें हो तो संतान संबंधित शुभ फल देता है। यदि पंचम स्थान का स्वामी आठवें, बारहवें हो तो संतान सुख नहीं होता। यदि हो भी तो सुख मिलता नहीं या तो संतान नष्ट होती है या अलग हो जाती है। यदि पंचम स्थान का अधिपति सप्तम, नवम, ग्यारहवें, लग्नस्थ, द्वितीय में हो तो संतान से संबंधित सुख शुभ फल देता है। द्वितीय स्थान के स्वामी ग्रह पंचम में हो तो संतान सुख उत्तम होकर लक्ष्मीपति बनता है.

पंचम स्थान का अधिपति छठे में हो तो दत्तक पुत्र लेने का योग बनता है। पंचम स्थान में मीन राशि का गुरु कम संतान देता है। पंचम स्थान में धनु राशि का गुरु हो तो संतान तो होगी, लेकिन स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। गुरु का संबंध पंचम स्थान पर संतान योग में बाधा देता है। सिंह, कन्या राशि का गुरु हो तो संतान नहीं होती। इस प्रकार तुला राशि का शुक्र पंचम भाव में अशुभ ग्रह के साथ (राहु, शनि, केतु) के साथ हो तो संतान नहीं होती.

पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक राशि हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो पुत्र संतान सुख नहीं होता। पंचम स्थान पर पड़ा राहु गर्भपात कराता है। यदि पंचम भाव में गुरु के साथ राहु हो तो चांडाल योग बनता है और संतान में बाधा डालता है यदि यह योग स्त्री की कुंडली में हो तो। यदि यह योग पुरुष कुंडली में हो तो संतान नहीं होती। नीच का राहु भी संतान नहीं देता। राहु, मंगल, पंचम हो तो एक संतान होती है। पंचम स्थान में पड़ा चँद्र, शनि, राहु भी संतान बाधक होता है. यदि योग लग्न में न हों तो चँद्र कुंडली देखना चाहिए. यदि चँद्र कुंडली में यह योग बने तो उपरोक्त फल जानें.

पंचम स्थान पर राहु या केतु हो तो पितृदोष, दैविक दोष, जन्म दोष होने से भी संतान नहीं होती. यदि पंचम भाव पर पितृदोष या पुत्रदोष बनता हो तो उस दोष की शांति करवाने के बाद संतान प्राप्ति संभव है. पंचम स्थान पर नीच का सूर्य संतान पक्ष में चिंता देता है. पंचम स्थान पर नीच का सूर्य ऑपरेशन द्वारा संतान देता है. पंचम स्थान पर सूर्य मंगल की युति हो और शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान की शस्त्र से मृत्यु होती है.

ज्योतिष में किसी व्यक्ति की कुंडली के चतुर्थ स्थान से विद्या का और पंचम से बुद्धि का विचार किया जाता है. साथ ही कुंडली म...
03/06/2023

ज्योतिष में किसी व्यक्ति की कुंडली के चतुर्थ स्थान से विद्या का और पंचम से बुद्धि का विचार किया जाता है. साथ ही कुंडली में बुध तथा शुक्र की स्थिति से विद्वत्ता तथा कल्पना शक्ति का और बृहस्पति से विद्या विकास का विचार किया जाता है. द्वितीय भाव से विद्या में निपुणता, प्रवीणता इत्यादि का विचार किया जाता है.
यदि ग्रह संयोग सही हो तो जातक शिक्षा और बुद्धिमत्ता उच्च कोटि की होती है और उसे समाज मान-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है.
इसी प्रकार चतुर्थ स्थान का स्वामी लग्न में अथवा लग्न का स्वामी चतुर्थ भाव में हो या बुध लग्नस्थ हो और चतुर्थ स्थान बली हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि न हो, तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है.

यदि बुध, बृहस्पति और शुक्र नवम स्थान में हो, तो जातक की शिक्षा उच्च कोटि की होती है. यदि बुध और गुरु के साथ शनि नवम स्थान में हो, तो जातक उच्च कोटि का विद्वान होता है. उच्च विद्या के लिए बुध एवं गुरु का बलवान होना जरूरी है. द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और नवम भावों का संबंध बुध से हो, तो शिक्षा उत्कृष्ट होती है.
ज्ञान का विचार शनि, नवम और द्वादश भाव की स्थिति के आधार पर किया जाता है. शनि की स्थिति से विदेशी भाषा की शिक्षा का विचार किया जाता है. चंद्र लग्न एवं जन्म लग्न से पंचम स्थान के स्वामी की बुध, गुरु या शुक्र के साथ केंद्र, त्रिकोण या एकादश में स्थिति से यह पता लगाया जा सकता है कि जातक की रुचि किस प्रकार की शिक्षा में होगी.

जन्म कुंडली का नवम भाव धर्म त्रिकोण स्थान है, जिसका स्वामी बृहस्पति है. यह भाव उच्च शिक्षा तथा उसके स्तर को दर्शाता है. यदि इसका संबंध पंचम भाव से हो, तो व्यक्ति की शिक्षा अच्छी होती है.

द्वितीयेश या गुरु की केंद्र या त्रिकोण में स्थिति. बुध की पंचम में स्थिति अथवा उस पर दृष्टि या गुरु और शुक्र की युति. पंचमेश की पंचम भाव में गुरु या शुक्र के साथ युति. गुरु, शुक्र या बुध की केंद्र या त्रिकोण में स्थिति.

वैदिक ज्योतिष के अनुसार शिक्षा के लिए विदेश यात्रा 5 वें भाव के ग्रह और 12 वें भाव के स्वामी से संबंध पर निर्भर करता है. यदि पंचम भाव का स्वामी 12वें भाव में हो या 12वें भाव का स्वामी 5वें भाव में हो तो जातक के उच्च शिक्षा या अन्य शिक्षा के लिए विदेश जाने की संभावना प्रबल होती है.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विदेश यात्रा संभव होने की अवस्था निम्नलिखित हो सकती हैं...

👉नौवें या बारहवें भाव के स्वामी की दशा/अंतर्दशा या फिर बारहवें भाव के स्वामी के साथ अन्य ग्रहों की दशा विदेश यात्रा की पुष्टि करती है.
👉बारहवें भाव में स्थित किसी ग्रह की दशा/अंतर्दशा भी विदेश यात्रा की पुष्टि करती है.
👉अशुभ ग्रह राहु की दशा/अंतर्दशा विदेश यात्रा का संकेत देती है.

व्यक्ति की कुंडली में यदि भावेश सुदृण हों और नवांश में शुभ ग्रह हो तो उसके उच्च शिक्षा का योग बनता है. जातक की कुंडली में शिक्षा का के योग को देखने के लिए उसकी कुंडली के द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम तथा एकादश आदि भावों की विवेचना की जाती है. उच्च शिक्षा हेतु जातक की कुंडली में बुधादित्य योग, गज केसरी योग, उपाध्याय योग, हंस योग, सरस्वती योग आदि होने चाहिए.

द्वितीय भाव : आज के दौर में शिक्षा अर्जित करने के लिए आर्थिक स्थिति का मजबूत होना बहुत आवश्यक है, और आर्थिक स्थिति देखने के लिए जातक की कुंडली में द्वितीयेश तथा लाभेश केंद्र में हों तथा दोनों के बीच गृह परिवर्तन होना चाहिए.

चतुर्थ भाव : शिक्षा कैसे संस्थान में होगी इसकी जानकारी के लिए कुंडली के चतुर्थ भाव की पड़ताल की जाती है, यदि व्यक्ति की कुंडली में चतुर्थेश बली होता है तो व्यक्ति की शिक्षा बड़े संस्थानों में होती है.

पंचम भाव : व्यक्ति की बुद्धिमता का परीक्षण करने के लिए कुंडली के पंचम भाव का विश्लेषण किया जाता है. पंचमेश का अन्य ग्रहों से कैसा संबंध है आदि की पड़ताल करके व्यक्ति के बौद्धिक स्तर की जांच की जाती है.

नवम भाव : जातक की उच्च शिक्षा की जानकारी नवम भाव से की जाती है यदि कुंडली में नवमेश का नवांश वर्गोत्तम या शुभ वर्ग है तो व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करता है.

एकादश भाव : मजबूत एकादशेश का नवमेश तथा पंचमेश के साथ केंद्र त्रिकोण में दृष्टि या युति सम्बन्ध हो तो उच्च शिक्षा का योग बनता है.

👉ग्रह्स्थ के अलावा कुछ साधको द्वारा नवरात्रि पुजन मे क्लश स्थापना मे चान्दी, सिक्के और इलाईची लोन्ग आदी डाले जाते हैं. ग...
15/03/2023

👉ग्रह्स्थ के अलावा कुछ साधको द्वारा नवरात्रि पुजन मे क्लश स्थापना मे चान्दी, सिक्के और इलाईची लोन्ग आदी डाले जाते हैं.
गृहस्थ महिला को ससुराल में परेशानी हो, धन की परेशानी हो, या विवाह इच्छुक लड़कियां वह अपने आसपास के किसी साधक से श्रद्धा, प्रेम और विनम्रता भाव से कुछ इलायची लोन्ग लेकर बुधवार को एक इलायची, एक लोन्ग खुद खा ले और दो लोन्ग शिव को अर्पण कर कुछ पांच या ग्यारह बार मन्त्र "हे गोरि शन्कर अर्धांगिनी" जाप करते हुए विवाह हेतु और विवाहित महिला गृहस्थ जीवन की सुख शांति प्रगति हेतु प्रार्थना करे तो अगले आने वाले प्रदोष तक सकारात्मक समाचार अवश्य प्राप्त होते हैं.
क्लश का सिक्का मिल जाये तो पत्नि छोटी सी लाल चुन्नी मे बान्ध कर घर के मन्दिर या अलमारी मे रख दे.. धन की कमी से कोई कार्य नहीं रुकेन्गे. दिव्यऋषि ज्योतिष एवं हेल्थकेयर बीकानेर की और से डॉ. करण चंद्राणी.

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