जड़ी बूटी चिकित्सा चित्रकूट धाम उत्तर प्रदेश

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भारत जैसे देश में हजारों सालों से जब पूरी दुनिया को यह नहीं पता था ,की हार्ट कहां होता है?और हृदय का फंक्शन क्या है ?उस ...
02/04/2025

भारत जैसे देश में हजारों सालों से जब पूरी दुनिया को यह नहीं पता था ,की हार्ट कहां होता है?
और हृदय का फंक्शन क्या है ?
उस समय भारत में हृदय रोगों के ऊपर कितना गंभीर चिंतन करने का काम आचार्य चरक सुश्रुत व वाग्भट ने किया है कुछ उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत हैं
जो उन्होंने हजारों साल पहले लिखा वह आज भी पूरी तरह से वैज्ञानिक है प्रासंगिक है और प्रामाणिक है साथ ही इसके ऊपर एक रिसर्च करें या एक लाख रिसर्च करें
यह पूरी तरह से शाश्वत है
1. आहार और पोषण

सूत्र (चरक संहिता):
"हितभुक् मितभुक् ऋतभुक् च" – हितकर, संतुलित और मौसम के अनुसार भोजन करें।

आधुनिक रिसर्च:

DASH और Mediterranean डाइट हृदय रोगों को 40% तक कम कर सकती हैं। (The Lancet, 2024)

साबुत अनाज, फल, सब्जियां और हेल्दी फैट (ओमेगा-3) का सेवन हृदय के लिए लाभदायक है।

2. हृदय को मजबूत करने वाले आयुर्वेदिक और आधुनिक तत्व

सूत्र (चरक संहिता):
"अर्जुनं हृदयस्य रक्षणाय श्रेष्ठं" – अर्जुन की छाल हृदय रोगों में लाभदायक है।

आधुनिक रिसर्च:

अर्जुन में कोएंजाइम Q10 जैसे एंटीऑक्सिडेंट होते हैं, जो हार्ट मसल्स को मजबूत करते हैं। (Journal of Ethnopharmacology, 2023)

ओमेगा-3 फैटी एसिड और विटामिन D हृदय धमनियों को लचीला बनाए रखते हैं।

3. ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण

सूत्र (सुश्रुत संहिता):
"मधुरं स्निग्धं सात्म्यं च हृदयाय हितं" – मीठे, स्निग्ध (गुड फैट युक्त) और सुपाच्य भोजन हृदय के लिए लाभकारी हैं।

आधुनिक रिसर्च:

नट्स, बीन्स और फाइबर युक्त आहार LDL (खराब कोलेस्ट्रॉल) को 20% तक कम करता है। (American Heart Association, 2024)

हल्दी और अदरक में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखते हैं।

4. मानसिक तनाव और हृदय स्वास्थ्य

सूत्र (अष्टांग हृदयम्):
"चित्त प्रसादनं हृदयं रक्षति" – मानसिक शांति हृदय के लिए आवश्यक है।

आधुनिक रिसर्च:

ध्यान (Meditation) और योग से ब्लड प्रेशर 15-20 mmHg तक कम हो सकता है। (Harvard Medical School, 2023)

रोजाना 7 घंटे की नींद हृदय रोगों के खतरे को 30% तक घटा सकती है।

5. व्यायाम और दिनचर्या

सूत्र (योगसूत्र):
"वायुप्रवाहो नियतः हृदयं बलं प्रददाति" – नियंत्रित श्वसन (प्राणायाम) हृदय को बल प्रदान करता है।

आधुनिक रिसर्च:
30 मिनट की ब्रिस्क वॉक या कार्डियो एक्सरसाइज हृदय रोगों के खतरे को 50% तक कम कर सकती है। (World Health Organization, 2024)

अनुलोम-विलोम प्राणायाम से ब्लड प्रेशर और हृदय गति नियंत्रित रहती है।

निष्कर्ष

आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा मिलकर हृदय रोगों की रोकथाम और उपचार में प्रभावी हो सकते हैं।

आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां (अर्जुन, गुडूची, हल्दी) + वैज्ञानिक डाइट (ओमेगा-3, फाइबर, हेल्दी फैट) + योग और एक्सरसाइज = हृदय का संपूर्ण स्वास्थ्य।
साभार:- व्हाट्सएप्प

 #कामदेव_चूर्ण आज का युवक बचपन की गलतियों व कुसंगति के कारण अनजाने में ही अपनी यौवनशक्ति का दुरुपयोग कर डालता है। जिससे ...
21/03/2025

#कामदेव_चूर्ण आज का युवक बचपन की गलतियों व कुसंगति के कारण अनजाने में ही अपनी यौवनशक्ति का दुरुपयोग कर डालता है। जिससे वह स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, की समस्या से पीड़ित हो शर्मिंदगी का सामना करता है। इन सभी समस्याओं को दूर करने हेतु कठोर परिश्रम द्वारा शास्त्रोक्त रीति से स्वर्ण बंग युक्त #कामदेव_चूर्ण का निर्माण किया गया। कामदेव चूर्ण का उपयोग वीर्य का पतलापन दूर कर उसे गाढ़ा करने के लिए किया जाता है स्वप्नदोष, अति स्त्री प्रसंग, हस्तमैथुन अथवा अप्राकृतिक ढंग से शुक्र का नाश करने से वीर्य पतला हो जाता है वीर्य पतला हो जाने से मनुष्य सांसारिक सुख-भोगादि से वंचित रह जाता है ऐसे मनुष्य को जीवन बेकार सा प्रतीत होने लगता है इसलिए यदि अपने जीवन को आनंद के साथ बिताना तथा शरीर को पुष्ट और सुंदर बनाना चाहे तो इस कामदेव चूर्ण का उपयोग कर लाभ उठाएं शुक्र को गाढ़ा करने के लिए यह बड़ी अच्छी निर्दोष औषधि है। जिसके सेवन से शरीर में दिव्य ऊर्जा का संचार होता है और वह अपनी खोई हुई शक्ति को पुनः प्राप्त कर स्वप्नदोष, शीघ्रपतन आदि समस्याओं से मुक्ति पा जाता है और जीवन का आनंद प्राप्त करता है।
#कामदेव_चूर्ण में 5 आयुर्वेदिक जड़ी–बूटियों का समावेश होता है |

शुद्ध कौंच गिरी – 6 किलोग्राम
सफ़ेद मुसली – 12 किलोग्राम
मखाने की ठुड़ी (छिलका रहित) – 24 किलोग्राम
तालमखाना – 24 किलोग्राम
माखन मिश्री – 30 किलोग्राम

#कामदेव_चूर्ण लें या नहीं

बिल्कुल ये बात तकरीबन सबके मन में चलती है ,क्योंकि कामदेव चूर्ण लेने की वही सोचता है जिसमें कमजोरी बहुत ज्यादा आ जाती है।
जिसमें कमजोरी बहुत ज्य़ादा आती है ,और ये कमजोरी एक ही दिन या एक ही रात मेँ आती नहीं ,और इस दौरान व्यक्ति कई जगहों से दवाई खाकर तंग आ चुका होता है।
तो उसको किसी भी नयी जगह दवाई लेने से डर लगता है।
उसको यकीन नहीं आता कि उसकी समस्या ठीक भी हो पाएगी या नहीं।
इससे समस्या दिन प्रति दिन बढ़ती जाती है और उसका अपना घर बार नष्ट हो जाता है।
क्योंकि अगर सहवास सही नहीं तो ,पति पत्नी के संबंध मधुर नहीं रहते।

हमारे संस्थान का कामदेव केवल 15 दिनों मेँ लाभ देना शुरू कर देता है ,मगर लाभ मिलेगा शरीर कमजोरी के हिसाब से।
➖ज्यादा कमजोरी 15 दिनों मेँ कम लाभ ,कम कमजोरी तो 15 दिनों मेँ बढ़िया लाभ।
➖हमारा मुख्य उद्देश्य आपको लाभ देना है ताकि सभी स्वस्थ रहें ,जो लाभ अन्य लोग उठा रहें है ,वो आप भी उठाएं।

शीघ्रपतन, नामर्दी, नपुंसकता और इंद्रिय दुर्बलता जैसी सभी यौन समस्याओं की आयुर्वेदिक दवा कामदेव चूर्ण
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https://wa.me/p/8621428787965904/919336055537

वैद्य पंडित पुष्पराज त्रिपाठी
093363 77701

औषधि बनाने के लिए बरगद का दूध इकट्ठा करते हुए  #निर्माण_विधि- आवश्यकतानुसार मोचरस(सेमल के पेड़ से निकलने वाला गोंद होता ...
20/03/2025

औषधि बनाने के लिए बरगद का दूध इकट्ठा करते हुए #निर्माण_विधि- आवश्यकतानुसार मोचरस(सेमल के पेड़ से निकलने वाला गोंद होता है इसे आयुर्वेद में मोचरस कहा जाता है) लेकर बड़ के दूध में पूरी तरह से भिगो दें और छाव में ही सूखने दें जब बरगद का दूध सूख जाए दोबारा उसी मोचरस में फिर से बरगद का दूध डालकर भिगो दें दोबारा भी छाव में ही सूख जाने पर तीसरी बार फिर से बरगद के दूध में भिगो दे और छाया में सुखा करके पत्थर के खरल में घोटकर जंगली बेर के बराबर गोलियां बनायें । सम्भोग से आधा घंटा पहिले एक गोली गाय के दूध के साथ लें। इसकी बाजीकरण शक्ति आपको प्रसन्न कर देगी अंग्रेजी दवाईयों से अधिक शक्तिशाली है।

 #शक्तिवर्धक_वटी :- 9336377701  एक बलवर्धक व पुष्टिदायक श्रेष्ठ रसायन औषधि है। यह मधुर व स्निग्ध होने के कारण वात शमन कर...
09/03/2025

#शक्तिवर्धक_वटी :- 9336377701 एक बलवर्धक व पुष्टिदायक श्रेष्ठ रसायन औषधि है। यह मधुर व स्निग्ध होने के कारण वात शमन करने वाली एवं रस रक्तादि सप्तधातुओं का पोषण करने वाली है। इससे विशेषतः मांस व शुक्रधातु की वृद्धि होती है। यह शक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक, स्नायु और मांसपेशियों को ताकत देने वाली व कद बढ़ाने वाली एक पौष्टिक रसायन है। धातु की कमजोरी, शारीरिक-मानसिक कमजोरी आदि में भी लाभदायी है। बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए यह वरदान स्वरुप है।
▪️जिम में एक्सरसाइज वर्कआउट करने वालों के लिए बेस्ट हेल्थ सप्लीमेंट है।
▪️शरीर को रोग मुक्त तथा हस्टपुस्ट बनाती है।
▪️पाचन तंत्र बेहतर करती है, और भूख बढ़ाती है।
▪️मांशपेशियों के विकास में मदद करती है।
▪️कैल्शियम बढ़ती है जिससे हड्डी मजबूत होती है।
▪️यह शरीर के सप्त धातुओं का पोषण प्रदान करती है।
▪️शरीर में नयी ऊर्जा का संचार करती है।
▪️शरीर को बलवान बनाने में मदद करती है।
▪️साधारण दुर्बलता और शारीरिक थकान की समस्या को खत्म करती है।

#मात्रा_व_सेवन_विधि :- 2-2 गोली सुबह-शाम खाली पेट मिश्रीयुक्त गुनगुने दूध के साथ लें।

 #शोभान्जन_वटी_पेट_के_सभी_रोगों_की_एक_ही_सटीक_औषधि शोभान्जन वटी के सेवन से पाचक अग्नि की शिथिलता दूर हो पुनः उसमें चेतना...
05/03/2025

#शोभान्जन_वटी_पेट_के_सभी_रोगों_की_एक_ही_सटीक_औषधि शोभान्जन वटी के सेवन से पाचक अग्नि की शिथिलता दूर हो पुनः उसमें चेतना आ जाती है अधिक भोजन या गरिष्ठ भोजन करने से अजीर्ण हो गया हो तो शोभान्जन वटी की दो गोली खा लेने से भोजन जल्दी पच जाता है शोभान्जन वटी के सेवन से अम्लपित्त में मुंह में खट्टा या कड़वा पानी आना बंद हो जाता है और अन्न का परिपाक भली-भांति होने लगता है पेट के दर्द को कम करने के लिए शोभान्जन वटी की गोली गर्म जल के साथ खा लेने से दर्द में आराम हो जाता है। यह मंदाग्नि, अजीर्ण, अम्लपित्त, उदरशूल और वायूगोला आदि का शीघ्र नाश करती है। अधिक भोजन या गरिष्ठ भोजन, बासी आदि भोजन करने से उत्पन्न मंदाग्नि कब्जियत आदि इसके सेवन से नष्ट हो जाते हैं। यह मंदाग्नि को नष्ट कर जठराग्नि को प्रदीप्त करती है। इसकी दो तीन खुराक खाने से ही भूख खूब खुलकर लगती है और भोजन भी ठीक-ठीक पचने लग जाता है। किसी भी तरह का अजीर्ण हो उसे नष्ट करने के लिए शोभान्जन वटी का प्रयोग अवश्य करें। मात्रा से अधिक भोजन कर लिया हो तो उसे भी यह पचा देती है। पेट में वायु भर जाने से पेट फूल जाता हो उस समय शोभान्जन वटी की दो गोली गर्म जल के साथ देने से तत्काल लाभ होता है। शोभान्जन वटी बड़ी आंत तथा छोटी आंत की विकृति को नष्ट करती है। किसी भी कारण से अग्नि मन्द होकर भूख ना लगती हो, अन्न में अरुचि हो, जी मिचलाता हो, पेट भारी रहता हो, वमन की इच्छा हो या वमन हो जाता हो, अपच दस्त होते हों, या कब्ज रहता हो आदि उपद्रव होने पर शोभान्जन वटी अद्भुत कार्य करती है। इसके सेवन से भोजन पच कर खूब भूख लगती है और दस्त साफ आता है। जिन्हें बार बार भूख कम लगने की शिकायत हो उन्हें शोभान्जन वटी अवश्य लेनी चाहिए। अजीर्ण की शिकायत अधिक दिनों तक बनी रहने पर पित्त कमजोर हो जाता है और कफ तथा आंव की वृद्धि हो जाती है इसमें हृदय भारी हो जाना, पेट में भारीपन बना रहना, शरीर में आलस्य, किसी भी काम में उत्साह नहीं होना की गति और नाड़ी की चाल मंद हो जाना आदि लक्षण होने पर शोभान्जन वटी देने से बहुत शीघ्र लाभ होता है। शोभान्जन वटी पित्त को जागृत कर कफ और आंव के दोष को पचाकर बाहर निकाल देती है और पाचक रस की उत्पत्ति कर भूख जगा देती है। यह दीपक पाचक तथा वायुनाशक है। अजीर्ण के कारण पेट में वायु भर जाती है जिससे डकारें आने लगती हैं इस वायु को पचाने तथा डकारों को बंद करने के लिए शोभान्जन वटी बहुत उपयोगी है। पेट में वायु कुपित होकर उर्ध्व गति हो जाती है, सामान्य लोग इसे गोला बनना कहते हैं। दिमागी काम करने वालों को यह शिकायत बहुत होती है।इसमें जी मिचलाना, सिर भारी रहना, दिल धड़कना, भ्रम, चक्कर आना, खट्टी डकार आना, पेट फूलना या अफरा आदि लक्षण होते हैं। शोभान्जन वटी के प्रयोग से उर्ध्ववात का शमन शीघ्र ही हो जाता है। शोभान्जन वटी आम को पचाती तथा अजीर्ण मन्दाग्नि पेट दर्द-परिणाम-शूल, पित्तज शूल आदि रोगों को दूर करती है। इसके नियमित सेवन से पेट-सम्बन्धी किसी व्याधि(रोग) के होने का डर नहीं रहता है, क्योंकि उदर सम्बन्धी व्याधियों का मूल अजीर्ण और कब्ज, इसके सेवन से ना तो अजीर्ण ही हो सकता है और न कब्ज ही होता है। इसलिए उदर सम्बन्धी व्याधियों से रक्षा के लिए शोभान्जन वटी का नियमित प्रयोग करना अति श्रेष्ठ उपाय है।

शोभान्जन वटी की पूरी जानकारी हमारे यूट्यूब चैनल पर👇
https://youtu.be/uFqgVDAPaMw?si=y4f1Eb7wqw9OtWRX

वैद्य पंडित पुष्पराज त्रिपाठी
मो०- 9336377701

03/03/2025

कौंच बीज का शोधन (शुद्धिकरण) क्यों है आवश्यक

26/02/2025

अमृतधारा बनाने का पूरा फार्मूला अमृतधारा घर का वैद्य
यह एक ऐसी दिव्य औषधि है जो हर घर मे अवश्य होनी चाहिये। जो बच्चे से लेकर बूढ़े तक काम आती है।

आयुर्वेदिक घरेलू औषधियों में अमृतधारा का अपना विशेष स्थान हैं। साधारण सी दिखने वाली औषधि रोगग्रस्तों के लिए वरदान है।

अमृतधारा ऐसी हर्बल आयुर्वेदिक दवा है जो जीवन रक्षक है. हालांकि ये बाजार में भी मौजूद है लेकिन इसे आसानी से घर पर बनाया जा सकता है.

अमृतधारा अमृत के समान है। यह अनेक बीमारियों की अनुभूत घरेलू दवा है। इसे आयुर्वेदिक घरेलू औषधियों में अपना विशेष स्थान प्राप्त हैं। साधारण सी दिखने वाली यह औषधि रोगियों के लिए वरदान है। यह औषधि शरीर में पहुंचते ही इतनी जल्दी असर दिखाती है कि रोगी का रोग दूर होकर राहत मिलती है। यह अनेकों बीमारियों की अनुभूत घरेलू दवा है। इसकी मुख्य विशेषता यही है कि इसका शरीर पर कोई विषाक्त प्रभाव नहीं पड़ता।

#अमृतधारा_क्या_है ?

*अमृत धारा आयुर्वेद की एक बहुत ही जानी - मानी औषधि है जो कई बीमारियों को आसानी से उपचार कर देती है । ब दलते मौसम , गर्मी की तपन , लु , धूल भरी हवाओं , खान - पान में गड़बड़ी के कारण सिरदर्द , उल्टी , अपच , हैजा , दस्त , बुखार , शरीर में दर्द , अजीर्ण जैसे रोग घेर लेते हैं । ऐसे में आयुर्वेदिक औषधि अमृतधारा इन रोगों में रामबाण की तरह सहायक हो सकती है । इस दवा की दो - चार बूढे एक कप सादे पानी में डालकर पीने मात्र से ही तुरन्त लाभ मिलता है । सिरदर्द हो , जहरीला ततैया काट ले तो इसे लगाते मात्र से ठीक हो जाता है । गले के दर्द व सूजन में गरारे करने पर तुरंत लाभ मिलता है । यह दवा पूरे परिवार के लिए लाभदायक है क्योंकि यह पूर्ण प्राकृतिक हैं ।*

#अमृतधारा_कैसे_बनती_है ?
1) पुदिना सत्व 50 ग्राम
2) अजवायन सत्व 50 ग्राम
3) भीमसेनी कापुर। 50 ग्राम

यह तीन चीजे आप पंसारी (जड़ी बूटी वाला दुकानदार ) से अलग अलग लाये
किसी कांच की बड़े मुंह वाली लेकर उसमे ये तीनो एकत्र डाल दीजिये।
कुछ देर में ही उसका पानी जैसा बन जायेगा और यही है अमृतधारा इसे 1 ग्लास पानी मे सिर्फ 4 बूंद डालना है।

#अमृतधारा_के_फायदे :-

*1 - अमृतधारा कई बीमारियों में दी जाती हैं , जैसे बदहजमी , हैजा और सिर - दर्द ।

*2 - #बदहजमी - थोड़े से पानीमें तीन - चार बूंद अमृतधारा की डालकर पिलाने से बदहजमी , पेटदर्द , दस्त , उलटी ठीक हो जाती है । चक्कर आने भी ठीक हो जाते हैं ।

*3 - #हैजा - एक चम्मच प्याजके रसमें दो बूंद अमृतधारा डालकर पीने से हैजा में फायदा होता है।

*4 . #सिरदर्द - अमृतधाराकी दो बूंद ललाट और कान के आस - पास मसलने से सिरदर्द को फायदा होता है।

*5 - #छाती_का_दर्द - मीठे तेल में अमृतधारा मिलाकर छाती पर मालिश करने से छातीका दर्द ठीक हो जाता है।

*6 - #जुकाम - इसे सूंघने से सांस खुलकर आता है तथा जुकाम ठीक हो जाता है।

*7 - #मुह_के_छाले - थोडे से पानीमें एक - दो बूद अमृतधारा डालकर छालों पर लगानेसे फायदा होता है।

*8- #दांत_दर्द - अमृतधारा की 2 बून्द रुई के सहारे रखने से दन्त शूल नस्ट होता है।

*9- #खाँसी_दमा_क्षयरोग :- 4 5 बून्द गुनगुने पानी में सुबह शाम पीने से नस्ट होता है*

*10- #हृदय_रोग- आंवले के मुरब्बे पर 2 3 बून्द डालकर खाने से*

*11- #पेट_दर्द- बताशे पर 2 बून्द अमृतधारा डालकर खाने से उदर शूल नस्ट होता है*

*12- #मन्दाग्नि-भोजन के बाद 2 3 बून्द सादे पानी में मिलाकर पीने से मन्दाग्नि दूर होती है*

*13- #कमजोरी- 10 ग्राम देशी गाय के मख्खन 5 ग्राम शहद व 2 3 बून्द अमृतधारा सुबह शाम सेवन से कमजोरी दूर होती है*

*14- #हिचकी- 2 3 बून्द सीधे जीभ पर लेने के बाद आधे घण्टे तक कुछ भी सेवन न करने से हिचकी नस्ट हो जाती है*

*15- #खुजली-10 ग्राम निम तेल में 5 बून्द अमृतधारा मिलाकर लगाने से खुजली नस्ट हो जाती है*

*16 - #मधुमक्खी_के_काटने_पर - ततैया , बिच्छू, भंवरा या मधुमक्खी के काटने की जगहपर अमृतधारा मसलने से दर्द में राहत मिलती हैं ।*

*17 - #बिवाई - दस ग्राम वैसलीनमें चार बूंद अमृतधार मिलाकर , शरीर के हर तरह दर्दपर मालिश करने दर्द में फायदा होता है । फटी बिवाई और फटे होंठों पर लगानेसे दर्द ठीक हो जाता है तथा फटी चमडी जुड़ जाती है ।*

*18 - #यकृत_की_वृद्धि - अमृतधारा को सरसों के चौगुने तेल में मिलाकर जिगर - तिल्ली पर मालिश करने से यकृत की वृद्धि दूर होती है ।*

* #अमृतधारा_के_नुकसान ( दुष्प्रभाव ) : अधिक मात्रा में लेने पर दस्त का कारण बन सकता है । -कुछ लोगों को इसके उपयोग के कारण चक्कर आ सकते है । सावधानियां पयोग करने से पहले चिकित्सक की सलाह आवश्यक है

अपने शरीर को किसी भी प्रकार की बीमारी से मुक्त करने के लिए आयुर्वेदिक उपचार अपनाएं।

#स्वस्थ रहना है तो भारतीय चिकित्सा पद्धति को अपनाना ही होगा अन्यथा एक बार एलोपैथी चिकित्सा के चक्कर में फंसे तो बिमारियों के जाल से निकलना मुश्किल होगा

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सभी प्रकार के पेट और लीवर के रोगों की अचूक औषधि #शोभान्जन_वटी  093363 77701 शोभान्जन वटी के सेवन से पाचक अग्नि की शिथिलत...
24/02/2025

सभी प्रकार के पेट और लीवर के रोगों की अचूक औषधि
#शोभान्जन_वटी 093363 77701
शोभान्जन वटी के सेवन से पाचक अग्नि की शिथिलता दूर हो पुनः उसमें चेतना आ जाती है अधिक भोजन या गरिष्ठ भोजन करने से अजीर्ण हो गया हो तो शोभान्जन वटी की दो गोली खा लेने से भोजन जल्दी पच जाता है शोभान्जन वटी के सेवन से अम्लपित्त में मुंह में खट्टा या कड़वा पानी आना बंद हो जाता है और अन्न का परिपाक भली-भांति होने लगता है पेट के दर्द को कम करने के लिए शोभान्जन वटी की गोली गर्म जल के साथ खा लेने से दर्द में आराम हो जाता है। यह मंदाग्नि, अजीर्ण, अम्लपित्त, उदरशूल और वायूगोला आदि का शीघ्र नाश करती है। अधिक भोजन या गरिष्ठ भोजन, बासी आदि भोजन करने से उत्पन्न मंदाग्नि कब्जियत आदि इसके सेवन से नष्ट हो जाते हैं। यह मंदाग्नि को नष्ट कर जठराग्नि को प्रदीप्त करती है। इसकी दो तीन खुराक खाने से ही भूख खूब खुलकर लगती है और भोजन भी ठीक-ठीक पचने लग जाता है। किसी भी तरह का अजीर्ण हो उसे नष्ट करने के लिए शोभान्जन वटी का प्रयोग अवश्य करें। मात्रा से अधिक भोजन कर लिया हो तो उसे भी यह पचा देती है। पेट में वायु भर जाने से पेट फूल जाता हो उस समय शोभान्जन वटी की दो गोली गर्म जल के साथ देने से तत्काल लाभ होता है। शोभान्जन वटी बड़ी आंत तथा छोटी आंत की विकृति को नष्ट करती है। किसी भी कारण से अग्नि मन्द होकर भूख ना लगती हो, अन्न में अरुचि हो, जी मिचलाता हो, पेट भारी रहता हो, वमन की इच्छा हो या वमन हो जाता हो, अपच दस्त होते हों, या कब्ज रहता हो आदि उपद्रव होने पर शोभान्जन वटी अद्भुत कार्य करती है। इसके सेवन से भोजन पच कर खूब भूख लगती है और दस्त साफ आता है। जिन्हें बार बार भूख कम लगने की शिकायत हो उन्हें शोभान्जन वटी अवश्य लेनी चाहिए। अजीर्ण की शिकायत अधिक दिनों तक बनी रहने पर पित्त कमजोर हो जाता है और कफ तथा आंव की वृद्धि हो जाती है इसमें हृदय भारी हो जाना, पेट में भारीपन बना रहना, शरीर में आलस्य, किसी भी काम में उत्साह नहीं होना की गति और नाड़ी की चाल मंद हो जाना आदि लक्षण होने पर शोभान्जन वटी देने से बहुत शीघ्र लाभ होता है। शोभान्जन वटी पित्त को जागृत कर कफ और आंव के दोष को पचाकर बाहर निकाल देती है और पाचक रस की उत्पत्ति कर भूख जगा देती है। यह दीपक पाचक तथा वायुनाशक है। अजीर्ण के कारण पेट में वायु भर जाती है जिससे डकारें आने लगती हैं इस वायु को पचाने तथा डकारों को बंद करने के लिए शोभान्जन वटी बहुत उपयोगी है। पेट में वायु कुपित होकर उर्ध्व गति हो जाती है, सामान्य लोग इसे गोला बनना कहते हैं। दिमागी काम करने वालों को यह शिकायत बहुत होती है।इसमें जी मिचलाना, सिर भारी रहना, दिल धड़कना, भ्रम, चक्कर आना, खट्टी डकार आना, पेट फूलना या अफरा आदि लक्षण होते हैं। शोभान्जन वटी के प्रयोग से उर्ध्ववात का शमन शीघ्र ही हो जाता है। शोभान्जन वटी आम को पचाती तथा अजीर्ण मन्दाग्नि पेट दर्द-परिणाम-शूल, पित्तज शूल आदि रोगों को दूर करती है। इसके नियमित सेवन से पेट-सम्बन्धी किसी व्याधि(रोग) के होने का डर नहीं रहता है, क्योंकि उदर सम्बन्धी व्याधियों का मूल अजीर्ण और कब्ज, इसके सेवन से ना तो अजीर्ण ही हो सकता है और न कब्ज ही होता है। इसलिए उदर सम्बन्धी व्याधियों से रक्षा के लिए शोभान्जन वटी का नियमित प्रयोग करना अति श्रेष्ठ उपाय है।

अपने शरीर को किसी भी प्रकार की बीमारी से मुक्त करने के लिए आयुर्वेदिक उपचार अपनाएं।

शोभान्जन वटी की पूरी जानकारी हमारे यूट्यूब चैनल पर 👇
https://youtu.be/uFqgVDAPaMw?si=yIClsJOvRFHTtDcw
वैद्य पंडित पुष्पराज त्रिपाठी
मो०- 9336377701

एक बहुत बड़ा नामी गिरामी वैद्य था । उसने अपने उपचार से असाध्य से असाध्य रोगियों को ठीक किया था । उसके विषय में कहा जाता थ...
24/02/2025

एक बहुत बड़ा नामी गिरामी वैद्य था । उसने अपने उपचार से असाध्य से असाध्य रोगियों को ठीक किया था ।
उसके विषय में कहा जाता था कि वह जिस भी रोगी को मात्र अगर एक बार छू भी ले तो वह रोगी बिल्कुल ठीक हो जाता था ।

उसका एक बेटा था । वह अपने पिता के पैसों में खेलता ही रहा और अपने पिता वैद्य से कुछ नहीं सीख पाया । उसके पिता उसे बोलते रहते थे कि कुछ तो सीख ले , पर वह जवानी के नशे में उनको टालता रहा कि बाद में सीख लूँगा , अपने घर की ही तो खेती है ।

उस वैद्य का जब अंत समय आया तो उसके बेटे को चटकना हुई कि वह तो अपने पिता से कुछ भी नहीं सीख पाया और अब आगे उसका गुजारा कैसे चलेगा !!!
वह रोते हुए अपने पिताजी के पास पहुँचा और उनसे कहा कि पिताजी कुछ तो बता दीजिए ।

वैद्य ने कहा कि बेटा यह इतना अथाह सागर है कि पूरा जीवन निकल जायेगा और मेरे पास समय बहुत कम है , तुमने बहुत देर कर दी ।

वैद्य ने कहा कि लेकिन मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूँ जिससे तुम्हारा कार्य चलता रहेगा ।

वैद्य ने बताया कि बेटा जो भी रोगी तुम्हारे पास आये , तो एक काम अवश्य करना । अपने हर रोगी को "हर्र" या "हरड़" या "हरीतकी" या "Terminalia Chebula" देना या उसे खाने को बोलना ।

चाहे उसे गर्म कर , भून कर , नींबू में भिगोकर , पानी में भिगोकर , ऐसे ही मुँह में रखकर चूसकर , या चूर्ण बनाकर किसी भी विधा खाने को बोलना ।

क्योंकि मनुष्य शरीर की हर बीमारी पेट से शुरू होती है जो कि ग़लत खान पान से होती है । इसीलिए जिसका पेट अगर ठीक है तो उसको कोई बीमारी आजीवन नहीं हो सकती ।

और हर्र या हरड़ या हरीतकी ( चाहे छोटी हो या बड़ी ) पेट के सभी व्याधियों की अचूक दवा है । अगर पेट ठीक है तो सब ठीक है ।
बस इतना और इससे बड़ी गूढ़ विद्या इतने कम समय में मैं तुम्हें नहीं बता सकता ।

यह घटना पूर्णतः वास्तविक है और इसका वास्तविकता से पूर्णतः लेना देना है ।

इसलिए पेट को दुरुस्त रखने के लिए हमेशा अपने पास हर्र, अजवाइन, मेथी , नींबू, इत्यादि साथ लिए रखना चाहिए ।
आयुर्वेद में तो त्रिफला से बड़ा कोई दूसरी औषधि बताई ही नहीं गयी है जिसमें आँवला, हर्र और बहेड़ा का फल 3:2:1 के अनुपात में भिगो कर सुबह सुबह पीने को कहा गया है।

#आयुर्वेद_अनमोल_तोहफा_त्रिफला_चूर्ण पूरी पोस्ट को ध्यान से पढ़े फायदे जानकर हैरान हो जाएंगे -

त्रिफला तीन श्रेष्ठ औषधियों हरड, बहेडा व आंवला के पिसे मिश्रण से बने चूर्ण को कहते है।जो की मानव-जाति को हमारी प्रकृति का एक अनमोल उपहार हैत्रिफला सर्व रोगनाशक रोग प्रतिरोधक और आरोग्य प्रदान करने वाली औषधि है। त्रिफला से कायाकल्प होता है त्रिफला एक श्रेष्ठ रसायन, एन्टिबायोटिक वऐन्टिसेप्टिक है इसे आयुर्वेद का पेन्सिलिन भी कहा जाता है। त्रिफला का प्रयोग शरीर में वात पित्त और कफ़ का संतुलन बनाए रखता है। यह रोज़मर्रा की आम बीमारियों के लिए बहुत प्रभावकारी औषधि है सिर के रोग, चर्म रोग, रक्त दोष, मूत्र रोग तथा पाचन संस्थान में तो यह रामबाण है। नेत्र ज्योति वर्धक, मल-शोधक,जठराग्नि-प्रदीपक, बुद्धि को कुशाग्र करने वाला व शरीर का शोधन करने वाला एक उच्च कोटि का रसायन है। आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला पर भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर, ट्राम्बे,गुरू नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में रिसर्च करनें के पश्चात यह निष्कर्ष निकाला गया कि त्रिफला कैंसर के सेलों को बढ़नें से रोकता है।
#हरड़ -------
हरड को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली,पीलिया ,शोध ,मूत्राघात,दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा ।
त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड, बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग ओषधि विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गयी है
#बहेडा -------
बहेडा वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम है,लगाने में ठण्डा व रूखा है, सर्दी,प्यास,वात , खांसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेडा मन्दाग्नि ,प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेडा न मिले तो छोटी हरड का प्रयोग करते है
#आंवला ---------
आंवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती।आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक है। आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढाने वाला होता है।
कुछ विशेषज्ञों कि राय है की ———
तीनो घटक (यानी के हरड, बहेड़ा व आंवला) सामान अनुपात में होने चाहिए।
कुछ विशेषज्ञों कि राय है की यह अनुपात एक, दो तीन का होना चाहिए ।
कुछ विशेषज्ञों कि राय में यह अनुपात एक, दो चार का होना उत्तम है
और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात बीमारी की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग मात्रा में होना चाहिए ।एक आम स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह अनुपात एक, दो और तीन (हरड, बहेडा व आंवला) संतुलित और ज्यादा सुरक्षित है। जिसे सालों साल सुबह या शाम एक एक चम्मच पानी या दूध के साथ लिया जा सकता है। सुबह के वक्त त्रिफला लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है।
1.शिशिर ऋतू में ( 14 जनवरी से 13 मार्च) 5 ग्राम त्रिफला को आठवां भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
2.बसंत ऋतू में (14 मार्च से 13 मई) 5 ग्राम त्रिफला को बराबर का शहद मिलाकर सेवन करें।
3.ग्रीष्म ऋतू में (14 मई से 13 जुलाई ) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग गुड़ मिलाकर सेवन करें।
4.वर्षा ऋतू में (14 जुलाई से 13 सितम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सैंधा नमक मिलाकर सेवन करें।
5.शरद ऋतू में(14 सितम्बर से 13 नवम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग देशी खांड/शक्कर मिलाकर सेवन करें।
6.हेमंत ऋतू में (14 नवम्बर से 13 जनवरी) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सौंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
#औषधि_के_रूप_में_त्रिफला_चूर्ण_के_फायदे............
रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।
अथवा त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होता है।
इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंग।
शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।
एक चम्मच बारीख त्रिफला चूर्ण, गाय का घी10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते है। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते है।
त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।
चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।
एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुहं के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी ।
त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है।
त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।
त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।
मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।
त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।
त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है।
5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।
5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।
टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।
त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।
त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।
त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।
दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।
विधिः 500 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरदपूर्णिमा की रात को चाँदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढँक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन सुबह इस मिश्रण को काँच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।
सेवन-विधिः बड़े व्यक्ति10 ग्राम छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें दिन में केवल एक बार सात्त्विक, सुपाच्य भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करे। सुबह शाम गाय का दूध ले सकते हैं।सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है कल्प के दिनों में खट्टे, तले हुए, मिर्च-मसालेयुक्त व पचने में भारी पदार्थों का सेवन निषिद्ध है। 40 दिन तक मामरा बादाम का उपयोग विशेष लाभदायी होगा। कल्प के दिनों में नेत्रबिन्दु का प्रयोग अवश्य करें।
मात्राः 4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ ना खाएं और इस नियम का पालन कठोरता से करें ।
सावधानीः दूध व त्रिफला के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो और कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए।
घी और शहद कभी भी सामान मात्रा में नहीं लेना चाहिए यह खतरनाख जहर होता है ।
त्रिफला चूर्णके सेवन के एक घंटे बाद तक चाय-दूध कोफ़ी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिये।
त्रिफला चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में समाप्त हो जाये ) पीसकर तैयार करें व सीलन से बचा कर रखे और इसका सेवन कर पुनः नया चूर्ण बना लें।
#त्रिफला_से_कायाकल्प..........
कायाकल्प हेतु निम्बू लहसुन ,भिलावा,अदरक आदि भी है। लेकिन त्रिफला चूर्ण जितना निरापद और बढ़िया दूसरा कुछ नहीं है।
आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला के नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है, देखे कैसे ?
एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।
दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।
तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।
चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है।
पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।
छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।
सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।
आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वर्ध्दाव्स्था से पुन: योवन लोट आता है।
नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और शुक्ष्म से शुक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती हैं।
दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है।
ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाती है

त्रिफला चूर्ण की पूरी जानकारी हमारे यूट्यूब चैनल पर👇

https://youtu.be/W3j-YOZhXyA?si=PFxs5ncmnaj2Qt1d

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