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04/07/2022

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पीलिया (जॉन्डिस) क्या है?पीलिया होने का कारण बिलीरुबिन नामक पदार्थ है जिसका निर्माण शरीर के ऊतकों और रक्त में होता है। ज...
26/03/2022

पीलिया (जॉन्डिस) क्या है?

पीलिया होने का कारण बिलीरुबिन नामक पदार्थ है जिसका निर्माण शरीर के ऊतकों और रक्त में होता है। जब लिवर में लाल रक्त कोशिकाएं टूट जाती हैं, तब पीले रंग का बिलीरुबिन नामक पदार्थ बनता है। जब किसी परिस्तिथि के कारण यह पदार्थ रक्त से लिवर की ओर और लिवर द्वारा फिल्टर कर शरीर से बाहर नहीं जा पाता है, तो पीलिया होता है।

पीलिया एक ऐसा रोग है जिसमें टोटल सीरम बिलीरूबिन का स्तर 3 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर (mg/dL) से ऊपर बढ़ जाता है।

इसके मुख्य लक्षणों में आंखों के सफेद हिस्सा, म्यूकस मेम्बरेन (अंदरुनी नरम ऊतकों की परत) और त्वचा का रंग पीला पड़ जाता है। पीलिया आमतौर पर नवजात शिशुओं को होता है, लेकिन यह कुछ मामलों में यह वयस्कों को भी हो जाता है। पीलिया कई बार कुछ अन्य लक्षण भी महसूस होने लग जाते हैं, जैसे पेट में दर्द, भूख ना लगना और वजन घटना आदि।

बच्चों में पीलिया का इलाज करने के लिए फोटोथेरेपी की जाती है और खून चढ़ाया जाता है। वयस्कों में इस स्थिति का इलाज करने के लिए पीलिया का कारण बनने वाली स्थिति का इलाज करना, दवाएं व कुछ मामलों में ऑपरेशन आदि किया जा सकता है।

यदि इसको बिना इलाज किए छोड़ दिया तो यह मस्तिष्क को प्रभावित कर देता है। इससे अन्य कई प्रकार के जटिलताएं भी विकसित हो सकती हैं, जैसे सेप्सिस, लीवर काम करना बंद कर देना या इनसे संबंधी अन्य समस्याएं आदि।

पीलिया कितने प्रकार का होता है?

जॉन्डिस के तीन मुख्य प्रकार हैं:

हेमोलिटिक जॉन्डिस: अगर लाल रक्त कोशिकाएँ वक्त से पहले टूट जाएँ, तो बिलीरुबिन इतनी ज़्यादा मात्रा में पैदा हो सकता है जिसे लिवर संभाल ना पाए यानी फिल्टर ना कर पाए। इस कारण रक्त में अपरिष्कृत (unprocessed) बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ जाने से पीलिया होता है जिससे आँखें और त्वचा पीली दिखाई देने लगती हैं। इसे प्री-हिपेटिक पीलिया या हेमोलिटिक पीलिया कहते हैं। यह स्तिथि आनुवांशिक या कुछ दवाइयों के दुष्प्रभाव के कारण भी हो सकती है।


हेपैटोसेलुलर जॉन्डिस: कई बार लिवर की कोशिकाओं में समस्या की वजह से पीलिया होता है। नवजात शिशुओं में उन एंजाइमों की परिपक्वता की कमी होती है जो बिलीरूबिन की प्रक्रिया के लिए ज़रूरी हैं और उनका लिवर पूरी तरह से विकसित नहीं होता है जिसके कारण उनमें अस्थायी पीलिया हो सकता है। बड़ों में शराब, अन्य विषाक्त पदार्थ और कुछ दवाएं लीवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाने की वजह हैं जिससे हेपैटोसेलुलर पीलिया हो सकता है।

पीलिया के लक्षण क्या हैं?

पीलिया का सबसे बड़ा लक्षण है त्वचा और आँखों के सफेद हिस्सों का पीला हो जाना।

इसके अलावा, पीलिया के लक्षणों में निम्न शामिल हैं

बुखार

कमजोरी

थकान

भूख की कमी

वजन में कमी

मतली

हल्के रंग का मल

पेटदर्द

कब्ज

सिरदर्द

गहरे रंग का मूत्र

शरीर में जलन

कुछ मामलों में खुजली।

आप एक खुश और स्वस्थ जीवन चाहते हैं तो अपने लिवर को स्वस्थ रखें, शराब से दूर रहें, सरल आहार का पालन करें और पीलिया के लिए जीवनशैली में परिवर्तन करें।

जॉन्डिस क्यों होता है?

अगर रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा 2.5 से ज्यादा हो जाती है तो लिवर के गंदगी साफ करने की प्रक्रिया रुक जाती है और इस वजह से पीलिया होता है।

प्री-हिपेटिक पीलिया लाल रक्त कोशिकाओं के जल्दी टूटने से बिलीरुबिन की मात्रा में वृद्धि के कारण होता है। इसके पीछे काफी दिनों तक मलेरिया, थैलासीमिया, स्किल सेल एनीमिया, गिल्बर्ट सिंड्रोम और अन्य कई आनुवांशिक कारण हो सकते हैं।

हेपैटोसेलुलर पीलिया लीवर की कोशिकाओं में नुकसान या लीवर में किसी भी तरह के संक्रमण के कारण होता है जिसके पीछे शरीर में एसिडिटी के बढ़ जाने, ज्यादा शराब पीने, अधिक नमक और तीखे पदार्थों के सेवन जैसे कारण हैं।

पोस्ट-हिपेटिक पीलिया पित्त नलिका में रुकावट के कारण होता है जो की लिवर में घाव, पित्ताशय की पथरी, हेपेटाइटिस, किसी दवाई की अधिक मात्रा से विपरीत प्रतिक्रिया होने का परिणाम हो सकती है।

पीलिया होने के जोखिम कारक

पीलिया के प्रमुख जोखिम कारक, इसमें शामिल हैं:

समयपूर्व जन्म:
38 सप्ताह से पहले पैदा होने वाला बच्चा बिलीरूबिन की प्रक्रिया पूरी तरह से पूर्णकालिक के रूप में नहीं कर सकता है। साथ ही, वह कम खाता और कम मल त्यागता है, जिसके कारण मल के माध्यम से कम बिलीरूबिन का सफाया होता है।

जन्म के दौरान चोट:
अगर नवजात शिशु को प्रसव से चोट लग जाती है, तो उसमें लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बिलीरूबिन का स्तर बढ़ सकता है।


रक्त का प्रकार:
यदि मां के रक्त का प्रकार उसके बच्चे से भिन्न होता है, तो बच्चे को प्लेसेंटा के माध्यम से एंटीबॉडी प्राप्त हो जाती है, जिससे कि उसकी रक्त कोशिकाएं और अधिक तेज़ी से टूट जाती है।


स्तनपान:
नवजात शिशु खासतौर पर वो जिन्हे स्तनपान से सम्पूर्ण पोषण नहीं मिला है, उन्हें पीलिया होने का अधिक खतरा होता है।

पीलिया का परिक्षण कैसे किया जाता है?

चिकित्सक रोगी के इतिहास और शारीरिक परीक्षा के आधार पर पीलिया का निदान करते हैं, जिसमें पेट पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है और लिवर की जांच की जाती है।

पीलिया की गंभीरता कई परीक्षणों द्वारा निर्धारित की जाती है, जिनमें पहले लिवर कार्य परीक्षण होता है यह देखने के लिए कि लिवर ठीक से काम कर रहा है या नहीं।

यदि लक्षणों का कारण नहीं पहचाना जा रहा, तो रक्त परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है ताकि बिलीरुबिन के स्तर की जांच हो सके और रक्त की संरचना का मूल्यांकन किया जा सके। इनमें से कुछ परीक्षण शामिल हैं:

बिलीरुबिन टेस्ट - संयुग्मित बिलीरुबिन के स्तर के बराबर असंतुलित बिलीरुबिन का स्तर हेमोलिसिस (लाल रक्त कोशिकाओं के त्वरित विघटन) को इंगित करता है।

कम्प्लीट ब्लड काउंट टेस्ट (complete blood count test) - रक्त कोशिकाओं की गणना करने के लिए

हेपेटाइटिस ए, बी, और सी का परीक्षण

यदि लिवर में खराबी है, तो लिवर को इमेजिंग टेस्ट की मदद से देखा जाता है। इनमें कुछ परीक्षण शामिल हैं:



पोस्ट-हिपेटिक जॉन्डिस या ऑब्सट्रक्टिव जॉन्डिस: पित्त नलिका में रुकावट के कारण बिलीरुबिन बढ़ जाता है जिसके मूत्र में फैलने से उसका रंग पीला हो जाता है। इसे पोस्ट-हिपेटिक पीलिया या ऑब्सट्रक्टिव पीलिया कहते हैं।

Thyroid profile 60% off , only 250Thyroid test: थायराइड के मरीज कैसे चेक करें अपनी टेस्‍ट रिपोर्ट, जानें क्‍या होता है T...
06/03/2022

Thyroid profile 60% off , only 250

Thyroid test: थायराइड के मरीज कैसे चेक करें अपनी टेस्‍ट रिपोर्ट, जानें क्‍या होता है T1, T2, T3, T4 और TSH का मतलब

अगर आप थायरॉइड के मरीज हैं, तो थायरॉइड हार्मोन के तकनीकी नामों जैसे T1, T2, T3, T4 और TSH से परीचित तो होंगे। लेकिन आपके लिए इतना ही काफी नहीं है, बल्कि ये क्या होते हैं, इसकी जानकारी होना भी जरूरी है।
थायरॉइड एक ऐसी बीमारी है, जो दुनियाभर में बहुत लोगों को होती है। आज 10 में से 4 लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं। थायरॉइड हार्मोन बॉडी के मेटाबॉलिज्म को रेगुलेट करते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जहां आप जो खाना खाते हैं, वह ऊर्जा में बदल जाता है और इसी ऊर्जा का इस्तेमाल शरीर द्वारा पूरे सिस्टम को काम करने के लिए किया जाता है।

कहने को तो यह बीमारी बहुत आम है, बावजूद इसके लोग थायरॉइड के बारे में नहीं जानते। इनमें वो लोग भी हैं, जिन्हें खुद ये बीमारी है। इनमें से एक हैं इसके मेडिकल टर्म्स । अगर आप थायरॉइड से पीड़ित हैं और जब थायरॉइड के लिए खुद का टेस्ट कराते हैं, तो रिपोर्ट में T1, T2, T3, T4 TSH जैसे टर्म्स लिखे होते हैं। लेकिन क्या आप इनके बारे में जानते हैं । शायद नहीं। अगर आप खुद एक थायरॉइड रोगी हैं, तो रिपोर्ट में दिए गए इन टर्म्स के बारे में जरूर पता होना चाहिए। बता दें कि ये सभी थायरॉइड हार्मोन्स के तकनीकी नाम हैं ।
थायरॉइड एक एंडोक्राइन ग्लैंड है, जो गर्दन के अंदर और कोलरबोन के ठीक ऊपर स्थित होती है। यह तितली के आकार की एक ग्रंथि है, जो आपके शरीर की अन्य ग्रंथियों की तरह ही काम करने में मदद करती है। थायरॉइड ग्रंथि हार्मोन बनाती है। अगर ग्रंथि ठीक से काम न करे, तो यह शरीर में कई समस्याओं का कारण बन सकती है। आमतौर पर थायरॉइड दो प्रमुख हार्मोन पैदा करती है ट्राईआयोडीनथायरोक्सिन यानी T3 और थायरॉक्सिन यानी T4 ।

यदि आपका शरीर बहुत अधिक थायरॉइड हार्मोन बनाता है, तो यह हायपरथायरॉइडिज्म नामक स्थिति का संकेत है और अगर आपका शरीर बहुत कम थायरॉइड हार्मोन बनाता है, तो इसे हाइपोथायरायडिज्म कहा जाता है। दोनों ही स्थितियों में चिकित्सा की जरूरत होती है। देखा जाए, तो डॉक्टर थायरॉइड हार्मोन लेवल के बारे में जानने के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट जैसे T4 और TSH करवाने का सुझाव देते हैं.
थायराइड की रिपोर्ट में लिखे जाने वाले टर्म्स जैसे T0, T1, T2, T3, T4 और TSH क्या हैं, आप शायद नहीं जानते होंगे। दरअसल, ये थायरॉइड के लेवल के लिए किए जाने वाले टेस्ट होते हैं। इससे ये पता चलता है कि आपकी थायरॉइड ग्रंथि कितने अच्छे से काम कर रही है।ये हार्मोन प्रीकर्सर्स और थायरॉइड हार्मोन के उपोत्पाद हैं। ये थायरॉइड हार्मोन रिसेप्टर पर काम नहीं करते और पूरी तरह से निष्क्रिय रहते हैं।T3 टेस्ट ट्राईआयोडोथायरोनिन लेवल की जांच करता है। यह टेस्ट आमतौर पर तब कराने के लिए कहा जाता है जब T4 और TSH के बाद हाइपोथायरायडिज्म की आंशका हो। अगर आपमें ओवरएक्टिव थायरॉइड ग्लैंड के लक्षण दिख रहे हैं, तो इस स्थिति में भी डॉक्टर T3 टेस्ट करवाने के लिए कह सकते हैं। । T3 की नॉर्मल रेंज 100-200 ng/dL होती है। अगर रेंज इससे ज्यादा हो जाए, तो यह ग्रेव्स नामक बीमारी का संकेत देता है। यह हाइपोथायरायडिज्म से जुड़ा एक ऑटो इम्यून विकार है।एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में थायरॉइड T3 और T4 हार्मोन्स सही मात्रा में बनाता है। अगर जरा भी गड़बड़ी हो जाए, तो ये घट बढ़ सकते हैं। शरीर में इन दो लेवल को कंट्रोल करता है टीएसएच हार्मोन। जिसे थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन कहते हैं। आमतौर पर T4 और TSH को साथ में कराने की सलाह दी जाती है। T4 टेस्ट को थायरॉक्सिन टेस्ट कहते हैं। T4 का हाई लेवल ओवरएक्टिव थायरॉइड ग्लैंड की ओर इशारा करता है। इसके सामान्य लक्षणों में चिंता, वजन घटना, कंपकंपी और दस्त शामिल हैं।जबकि TSH टेस्ट आपके ब्लड में थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन्स को मापते हैं। इसमें पता लगाया जाता है कि थायरॉइड ग्रंथि ठीक से काम कर रही है या नहीं। ये अंडरएक्टिव या ओवरएक्टिव तो नहीं है। क्योंकि ये दोनों ही स्थितियां खतरनाक होती हैं। इसका नॉर्मल टेस्ट रेंज 0.4 -4.0 mIU/L के बीच होती है। यदि आपका TSH का स्तर 2.0 से ज्यादा है, तो अंडरएक्टिव थायरॉइड यानी हाइपोथायरॉडिज्म बढ़ने का खतरा है। इसमें आपको वजन बढ़ने , थकान , अवसाद और नाखूनों के टूटने जैसे लक्षणों का सामना करना पड़ सकता है। जबकि TSH का कम स्तर ओवरएक्टिव थायरॉइड की निशानी है। इसका मतलब ये है कि शरीर में आयोडीन का स्तर बहुत बढ़ गया है।
कम काम करने वाली थायरॉइड ग्लैंड में नवजात शिशुओं में T4और TSH दोनों ही टेस्ट नियमित रूप से किए जाते हैं। यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो यह डेवलपमेंट डिसेबिलिटी का खतरा बढ़ा सकता है।

हेपेटाइटिस बी क्या है – लक्षण, बचाव के उपाय .मनुष्य के शरीर में लिवर भोजन को पचाने और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर न...
04/03/2022

हेपेटाइटिस बी क्या है – लक्षण, बचाव के उपाय .
मनुष्य के शरीर में लिवर भोजन को पचाने और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकलने के लिए होता है। पर बहुत बार यह इन्फेक्टिड हो जाता है और लिवर में सूजन आ जाती है। जिस कारण यह सही से कार्य नहीं कर पाता। उस इन्फेक्शन से होने वाली बीमारी को हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B in Hindi) कहते हैं। यह लिवर के सबसे आम इन्फेक्शन्स में से एक है। यह हेपेटाइटिस वायरस के कारण होता है। आमतौर पर यह 2 तरह का होता है, हेपेटाइटिस ‘ए’ और हेपेटाइटिस ‘बी’ , पर इसके अन्य प्रकार ए, सी, डी, और ई भी हैं।

हेपेटाइटिस HBV वायरस (Hepatitis B Virus) के कारण भी हो सकता है। कभी कभी यह बैक्टीरिया के संक्रमण और लंबे समय से लिए जाने वाली दवाइयों के साइड इफ़ेक्ट से भी हो सकता है। ऐसी ही कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी हमने इस लेख में दी हुई है। आइये जानते हैं हेपेटाइटिस का मतलब (Hepatitis B Meaning in Hindi), इसके कारण, लक्षण (Hepatitis B Symptoms in Hindi) और संभव इलाज (Hepatitis B Ka Ilaj in Hindi).

हेपेटाइटिस बी क्या होता है?
हपेटाइटिस बी वायरस के कारण होने वाला एक लिवर का इन्फेक्शन हेपेटाइटिस बी है। HBV पांच प्रकार के वायरल हेपेटाइटिस में से एक है। इसके अन्य प्रकार हेपेटाइटिस ए, सी, डी, और ई हैं। हेपेटाइटिस का प्रत्येक प्रकार एक अलग प्रकार का वायरस है, जिनमे बी और सी सबसे पुराने प्रकार हैं। The Centers for Disease Control and Prevention (CDC) के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)में लगभग 3,000 लोग हर साल हेपेटाइटिस बी के कारण मर जाते हैं।

HBV का इन्फेक्शन काफी तेज़ी से फैलता है और ऐसा माना जाता है कि यह बहुत ही पुराना इन्फेक्शन होता है। तीव्र हेपेटाइटिस बी के लक्षण वयस्कों में सबसे जल्दी दिखाई देते हैं वहीं जिन शिशुओं को हेपेटाइटिस बी होता है, उन्हें कभी तीव्र हेपेटाइटिस बी नहीं होता और न ही उनमे इसके लक्षण विकसित होंगे। संक्रमित शिशु जैसे – जैसे बड़ा होगा उसमे हेपेटाइटिस बी का इन्फेक्शन पुराना होता जायेगा।

क्या हेपेटाइटिस बी संक्रामक है?
हेपेटाइटिस बी अत्यधिक संक्रामक रोग है। जिसका मतलब है कि यह संक्रमित रक्त और कुछ अन्य शारीरिक तरल पदार्थ के संपर्क के माध्यम से फैलता है। इसके अलावा इन्फेक्टेड व्यक्ति के साथ सेक्स करने से ये सबसे जल्दी फैलता है। यद्यपि हेपेटाइटिस बी का वायरस लार में पाया जा सकता है, पर यह एक ही बर्तन में खाना खाने या चुंबन करने से नहीं फैलता है। यह छींकने, खाँसने, या स्तनपान (ब्रेस्टफीडिंग) से भी नहीं फैलता है। इसका वायरस शरीर के बाहर सात दिनों तक जीवित रह सकता है।

हेपेटाइटिस बी के कारण
हेपेटाइटिस बी वास्तव में बहुत ही संक्रामक बीमारी है। यह वीर्य (सीमेन), योनि के तरल पदार्थ (वेजिनल फ्लूड), ब्लड, और मूत्र के संपर्क में आने से फ़ैल सकता है। कोई व्यक्ति इन सभी के द्वारा हेपेटाइटिस बी का शिकार हो सकता है-

इन्फेक्टेड या संक्रमित व्यक्ति के साथ योनि (वेजिनल), गुदा (अनल), या ओरल सेक्स करने से (सेक्स के दौरान कंडोम या डेंटल बैंड का उपयोग करके इसे रोका जा सकता है)
संक्रमित व्यक्ति के टूथब्रश और रेज़र का इस्तेमाल करने से (उन पर लगे ब्लड से हेपेटाइटिस बी हो सकता है)
शूटिंग द्वारा दी जाने वाली दवाओं, piercings, टैटू, आदि के लिए एक ही सुई इस्तेमाल करने से
एक सुई का बार बार इस्तेमाल करने से जिसमें हेपेटाइटिस बी का वायरस हो
हेपेटाइटिस बी, जन्म के दौरान संक्रमित माँ से उसके पैदा होने वाले बच्चे को भी स्थानान्तरित हो सकता है.
हेपेटाइटिस बी लार (थूक) के माध्यम से नहीं फैलता, इसलिए आपको भोजन या पेय पदार्थ साझा करने से या कुछ खाने के लिए एक ही कांटे या चम्मच का उपयोग करने से हेपेटाइटिस बी नहीं हो सकता है।
हेपेटाइटिस बी चुंबन, गले लगाने, हाथ पकड़ने, खांसी, छींकने या स्तनपान कराने के माध्यम से भी नहीं फैलता है।
हेपेटाइटिस बी के लक्षण
तीव्र हेपेटाइटिस बी के लक्षण (Hepatitis B Symptoms in Hindi) कुछ महीनों तक स्पष्ट नहीं दिखते हैं। हालांकि, इसके कुछ आम लक्षणों में ये सभी शामिल हैं:

थकान – Fatigue Meaning in Tamil
गहरे रंग का मूत्र आना
जोड़ों में और मांसपेशियों में दर्द
भूख में कमी होना
बुखार
पेट में परेशानी होना
दुर्बलता
जी मिचलाना
उल्टी आना
आंखों (स्क्लेरा) और त्वचा (ज्योंडिस या पीलिया) का पीला पड़ जाना
हेपेटाइटिस बी के किसी भी लक्षण के दिखते ही तुरंत इसका इलाज (Hepatitis B Treatment in Hindi) करने की आवश्यकता है। तीव्र हेपेटाइटिस बी के लक्षण 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में समय के साथ और बदतर होते जाते हैं। अगर आप हेपेटाइटिस बी के संपर्क में आ चुके हैं तो अपने डॉक्टर को तुरंत बताएं। ऐसा करके आप संक्रमण को रोकने में सक्षम हो सकते हैं।

हेपेटाइटिस बी से बचाव
हेपेटाइटिस बी के संक्रमण को रोकने के लिए इसका टीकाकरण कराना सबसे अच्छा तरीका है। सभी डॉक्टर्स इससे बचने के लिए टीकाकरण की सलाह देते हैं। टीकाकरण की पूरी श्रृंखला में तीन टीके लगाए जाते हैं। निम्नलिखित समूहों को हेपेटाइटिस बी का टीका जरूर लगवाना चाहिए-

जन्म के समय सभी शिशुओं को
किसी भी बच्चे और किशोर को जिन्हें जन्म में टीका नहीं लगाया गया हो
जिन वयस्कों का यौन संक्रमित संक्रमण (STI) का इलाज चल रहा हो
संस्थागत सेटिंग्स में रहने वाले लोग
ऐसे लोग जिन्हें उनके काम के कारण ब्लड के संपर्क में आना पड़ता है
एचआईवी (HIV) पॉजिटिव व्यक्तियों को
पुरुष, जो पुरुषों के साथ यौन संबंध रखते हैं
ऐसे लोगों को जो एक से ज्यादा लोगों के साथ यौन सम्बन्ध रखते हों
जो लोग इंजेक्शन से दवा लेते हों
हेपेटाइटिस बी वाले परिवार के सदस्य
पुरानी बीमारियों वाले व्यक्तियों को
हेपेटाइटिस बी की उच्च दर वाले क्षेत्रों में यात्रा करने वाले लोग
HBV का टीका ज्यादा महँगा भी नहीं होता और यह काफी असरदार भी होता है। इसके टीके को सभी लोगों को लेने की सलाह भी दी जाती है।

HBV के संक्रमण के जोखिम को कम करने के अन्य तरीके भी होते हैं। हमेशा ऐसे व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध बनाये जो हेपेटाइटिस बी के लिए परीक्षण करा चुके हों। अनल, वेजिनल और ओरल सेक्स करते समय हमेशा कंडोम या डेंटल बैंड का प्रयोग करें। ड्रग्स लेने से बचें। यदि आप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यात्रा कर रहे हैं, तो पहले यह जांचें कि क्या आपके गंतव्य स्थान में हेपेटाइटिस बी की उच्च घटनाएं तो नहीं हैं और सुनिश्चित करें कि आप यात्रा से पहले पूरी तरह से टीकाकरण करा चुके हैं।

हेपेटाइटिस बी का निदान
आमतौर पर हेपेटाइटिस बी के निदान के लिए डॉक्टर ब्लड टेस्ट करते हैं। इसके अलावा हेपेटाइटिस बी के लिए स्क्रीनिंग भी की जा सकती है जो ऐसे लोगो के लिए होती है जो:

हेपेटाइटिस बी से ग्रस्त किसी व्यक्ति के संपर्क में आ गए हों
किसी ऐसी जगह घूम कर आएं हों जहाँ हेपेटाइटिस बी आम है
जेल में रहें हों
IV drugs जैसे हेरोइन, कोकेन, अम्फेटामाइन, प्रेस्क्राइब्ड ड्रग्स इत्यादि का उपयोग करतें हों
उनकी किडनी का डायलिसिस हुआ हो
गर्भवती हों
वे पुरुष हैं जो पुरुषों के साथ यौन संबंध रखते .
जिन्हे एचआईवी हो
हेपेटाइटिस बी के लिए स्क्रीनिंग की प्रक्रिया में आपका डॉक्टर कई सारे ब्लड टेस्ट कर सकता है। कुछ टेस्ट के बारे में नीचे दिया गया है, आइये जानते हैं कौन-कौन से संभावित स्क्रीनिंग टेस्ट हो सकते हैं-

हेपेटाइटिस बी सरफेस एंटीजन टेस्ट
हेपेटाइटिस बी सरफेस एंटीजन टेस्ट से पता चलता है कि आप संक्रामक हैं या नहीं। पॉजिटिव परिणाम का मतलब है कि आप हैपेटाइटिस बी से ग्रस्त हो चुके हैं और यह वायरस आपसे किसी और को भी फैल सकता है।

हेपेटाइटिस बी कोर एंटीजन टेस्ट
हेपेटाइटिस बी कोर एंटीजन टेस्ट से पता चलता है कि क्या आप वर्तमान में HBV से संक्रमित हैं या नहीं। आमतौर पर पॉजिटिव परिणाम का मतलब होता है कि आप तीव्र या क्रोनिक हैपेटाइटिस बी से पीड़ित हैं।

हेपेटाइटिस बी सरफेस एंटीबॉडी टेस्ट
हेपेटाइटिस बी सरफेस एंटीबॉडी टेस्ट एचबीवी (HBV) के लिए लिये इम्युनिटी की जाँच करने के लिए किया जाता है। पॉजिटिव टेस्ट का मतलब है कि आप हेपेटाइटिस बी से प्रतिरक्षित (इम्यून) हैं।

लिवर फंक्शन टेस्ट
हेपेटाइटिस बी या किसी भी जिगर या लिवर की बीमारी वाले व्यक्तियों में लिवर फ़ंक्शन टेस्ट करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। लिवर फंक्शन टेस्ट आपके ब्लड में आपके लिवर द्वारा बनाये गए एंजाइमों की मात्रा की जाँच करता है। यदि आपके लिवर में एंजाइमों की उच्च मात्रा होगी तो यह आपके लिवर को क्षतिग्रस्त या लिवर में सूजन होने का संकेत देते है। इस टेस्ट के परिणाम यह निर्धारित करने में भी मदद कर सकते हैं कि आपके लिवर का कौन सा हिस्सा सही से या असमान्य रूप से कार्य कर रहा है।

हेपेटाइटिस बी का इलाज
हेपेटाइटिस बी का इलाज, लिवर की बीमारी के खतरे को कम करने में मदद करता है और आपके संक्रमण को दूसरों तक पहुँचने से रोकता है। क्रोनिक हेपेटाइटिस बी के लिए निम्नलिखित इलाज हो सकते हैं:

हेपेटाइटिस बी टीकाकरण और प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) ग्लोबुलिन
अगर आपको लगता है कि आप पिछले 24 घंटों में हेपेटाइटिस बी के संपर्क में आ चुके हैं तो तुरंत अपने डॉक्टर से तुरन्त बात करें। यदि आपने टीकाकरण नहीं कराया है, तो हेपेटाइटिस बी का टीका लगवायें और HBV प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) ग्लोबुलिन का इंजेक्शन लगवायें। ऐसा करके आप HBV के संक्रमण को रोक सकते हैं। यह एंटीबॉडी का एक समाधान है जो HBV के खिलाफ काम करता है।

एक्यूट हेपेटाइटिस बी के लिए कोई उपचार (Hepatitis B Treatment in Hindi) की आवश्यकता नहीं है, यह समय के साथ अपने आप सही हो जाता है, बशर्ते आपने इसके लिए टीकाकरण कराया हो। इससे जल्दी सही होने के लिए आप पर्याप्त आराम कर सकते हैं और जितना ज्यादा हो सके अपने आप को हाइड्रेटेड रखें।

हेपेटाइटिस बी के लिए इलाज के विकल्प
क्रोनिक हेपेटाइटिस बी के इलाज (Hepatitis B Treatment in Hindi) के लिए आप एंटीवायरल दवाइयों का प्रयोग कर सकते हैं। इससे आपको वायरस से लड़ने में मदद मिलती है। ये दवाइयां भविष्य में लिवर की जटिलताओं के जोखिम को भी कम कर सकते हैं।

यदि हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B in Hindi) के कारण आपका लिवर बेकार हो चुका है तो आपको लिवर ट्रांसप्लांट करने की आवश्यकता पड़ सकती है। लिवर ट्रांसप्लांट का मतलव होता है की आपका सर्जन आपका खराब लिवर किसी अन्य स्वस्थ लिवर से बदल देगा। ज्यादातर लिवर ट्रांसप्लांट के लिए उपयोग होने वाले लिवर मृत लोगों के होते हैं।

KFT टेस्ट किडनी की कार्यक्षमता पहचानने वाली जाँचों का एक समूह है, इसका पूर्ण रूप kidney function test है यानि किडनी कार्...
03/03/2022

KFT टेस्ट किडनी की कार्यक्षमता पहचानने वाली जाँचों का एक समूह है, इसका पूर्ण रूप kidney function test है यानि किडनी कार्यक्षमता जाँच। इसके अलावा इसे RFT भी कहा जाता है जिसका पूर्ण रूप renal function test है। KFT टेस्ट क्या है, और इसमें किस-किस जांच को शामिल किया जाता है यह अलग-अलग प्रयोगशालाओं पर निर्भर करता है।

आम तौर पर लगभग सभी प्रयोगशालाएँ KFT / RFT में रक्त यूरिया (blood urea) / रक्त यूरिया नाइट्रोजन टेस्ट (blood urea nitrogen), सीरम क्रिएटिनिन टेस्ट और eGFR शामिल करती हैं। इसके अलावा कुछ प्रयोगशालाएँ पेशाब में प्रोटीन की मात्रा पहचानने के लिए मूत्र विश्लेषण को भी KFT / RFT का हिस्सा बना सकती हैं।

इसके अलावा सोडियम, पोटेशियम, क्लोराइड, यूरिक एसिड का रक्त स्तर भी KFT का हिस्सा हो सकता है। शरीर में इन सभी रसायनों का संतुलन बनाने का काम किडनी करती है। किडनी की इसी कार्यक्षमता को जाँचने के लिए किए जाने वाले परीक्षणों को KFT / RFT कहा जाता है।

CBC complete blood cells count सीबीसी यानी कम्प्लीट ब्लड काउंट। यह जांच खून से जुड़ी कई बीमारियों की जानकारी देती है। इस...
02/03/2022

CBC complete blood cells count सीबीसी यानी कम्प्लीट ब्लड काउंट। यह जांच खून से जुड़ी कई बीमारियों की जानकारी देती है। इसमें ब्लड में मौजूद लाल रक्त कणिकाएं, सफेद रक्त कणिकाएं और प्लेटलेट्स की संख्या व उनका आकार देखा जाता है|

कैसे होती है जांच -
सीबीसी जांच के लिए ब्लड का सैंपल लेते हैं। ब्लड में सेल्स की संख्या व आकार के साथ हिमोग्लोबिन/हिमैटोक्रिट देखते हैं। इसके आधार पर रोग पकड़ में आता है।

कब होता यह टैस्ट-
थकान, कमजोरी, बुखार, चोट होने पर

कभी भी करा सकते हैं जांच
अचानक वजन घटने, खून की कमी, पॉलिसाइथिमिया, इंफेक्शन, रक्त विकार, सर्जरी से पहले, किसी हिस्से में रक्तस्त्राव होने के अलावा कुछ विशेष कैंसर जैसे लिम्फोमा, ल्यूकेमिया व बोनमैरो से जुड़े रोगों को पता लगाने के लिए यह टैस्ट किया जाता है।

क्या आपको पता है? क्यों कराते रहना चाहिए Blood Test?ब्लड टेस्ट के जरिए शरीर के कई दूसरे अंगों के बारे में भी पता किया जा...
27/02/2022

क्या आपको पता है? क्यों कराते रहना चाहिए Blood Test?

ब्लड टेस्ट के जरिए शरीर के कई दूसरे अंगों के बारे में भी पता किया जा सकता है कि वे ठीक प्रकार से काम कर रहे हैं या कोई दिक्कत है। जैसे किडनी, लीवर, हर्ट की जांच हो सकती है। इसके साथ ही कई तरह के इंफेक्शन और बीमारियों का भी समय रहते पता चल जाता है।
हमारा शरीर ठीक तरीके से काम करता रहे इसके लिए जरूरी है कि हमारा ब्लड भी शुद्ध और साफ बना रहे। क्योंकि ब्लड ही हमारे शरीर को चलाने और ऊर्जा देने का मुख्य स्त्रोत है। अगर हम अपने शरीर को स्वस्थ रखते हुए एक शानदार जीवन जीना चाहते हैं तो हमें अपने शरीर के ब्लड और ब्लड प्रेशर दोनों का सही से ध्यान रखना होगा। खून की जांच समय-समय पर कराते रहना चाहिए ताकि उन बीमारियों के बारे में भी पता चल सके, जो शरीर पर भविष्य में हावी हो सकती हैं...
शरीर में खून की कमी होना, ब्लड में किसी तरह का संक्रमण होना, ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा की जांच, रेड और वाइट ब्लड सेल्स की मात्रा , प्लेटलेट्स काउंट, प्लाजमा आदि की ठीक-ठीक उपस्थिति का पता ब्लड टेस्ट के जरिए ही चलता है। समय रहते अगर ब्लड के सभी कंपाउंड्स की बेहतरी पता चलती रहे तो फ्यूचर में किसी तरह की घातक बीमारी का अंदेशा काफी कम हो जाता है।
ब्लड टेस्ट के जरिए शरीर के कई दूसरे अंगों के बारे में भी पता किया जा सकता है कि वे ठीक प्रकार से काम कर रहे हैं या कोई दिक्कत है। जैसे किडनी, लीवर, हर्ट की जांच हो सकती है। साथ ही अनुवांशिक रूप से कोई बीमारी होने की आशंका तो आपको नहीं है इस बात का भी पता किया जा सकता है।
कब और कैसे कराएं?
आज के भागदौड़ भरे जीवन को देखते हुए, हर व्यक्ति को 20 साल की उम्र के बाद साल में एक बार कंप्लीट बॉडी चेकअप और ब्लड टेस्ट जरूर कराना चाहिए। इसके लिए आप हम से संपर्क कर सकते हैं 8077405159. आमतौर पर ब्लड से जुड़े सभी टेस्ट की रिपोर्ट 24 घंटे के अंदर-अंदर आ जाती है।

22/02/2022

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रक्त परीक्षण के कई लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं: *बीमारी और स्थितियों के लिए अपने जोखिम की स्थिति का निर्धारण *उपचार की सफल...
20/02/2022

रक्त परीक्षण के कई लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं:

*बीमारी और स्थितियों के लिए अपने जोखिम की स्थिति का निर्धारण

*उपचार की सफलता की जाँच

*लक्षणों या जटिलताओं के विकसित होने से पहले कुछ स्थितियों का शीघ्र निदान

*उपचार के दुष्प्रभावों की पहचान

*पुरानी बीमारी की स्थिति और प्रगति की निगरानी

जानें क्यों कराते रहना चाहिए समय-समय पर ब्लड टेस्ट?
शरीर के सारे अंग सही तरीके से काम करते रहें इसके लिए जरूरी है कि हम अपने अंगों के साथ ही रक्त की शुद्धता का भी ध्यान रखें। क्योंकि रक्त ही वो माध्यम है जिससे सारे अंग ठीक ढंग से काम करते हैं। तो अगर आप अपने जीवन में किसी तरह की बड़ी बीमारी और परेशानी से दूर रहना चाहते हैं तो जरूरी है कि कुछ समय बाद रक्त की जांच कराते रहे।
अगर आप समय-समय पर खून की जांच कराएंगे तो इससे आपको पता होगा कि खून में किसी तरह का कोई संक्रमण या फिर ग्लूकोज की कमी तो नहीं है। साथ ही श्वेत रक्त कणिका, प्लेटलेट्स काउंट, प्लाज्मा की उपस्थित खून में ठीक है या नहीं यह भी पता चल जाता है।

नियमित रूप से खून की जांच कराने से कई सारे दूसरे अंगों के बारे में भी पता चल जाता है कि वो सही ढंग से काम कर रहे हैं या नहीं। जैसे अगर आपके हार्ट या किडनी में कोई परेशानी होगी तो इसका समय रहते पता चल जाएगा और उस बीमारी का इलाज समय पर मिल जाएगा। अगर किसी को मधुमेह हो गया है तो वो भी समय रहते पता चल जाएगा।
कब कराएं जांच
आजकल की व्यस्त दिनचर्या की वजह से तीस वर्ष की उम्र के बाद से ही पूरे शरीर का चेकअप और रक्त की जांच कराते रहना चाहिए।

प्रेग्नेंसी के दौरान कौन से टेस्ट होते हैं सबसे ज्यादा जरूरी?प्रेग्नेंसी वो समय है जब खुशी और घबराहट दोनों ही होती है और...
20/02/2022

प्रेग्नेंसी के दौरान कौन से टेस्ट होते हैं सबसे ज्यादा जरूरी?

प्रेग्नेंसी वो समय है जब खुशी और घबराहट दोनों ही होती है और ज्वार-भाटे की तरह भावनाएं आती हैं। एक तरफ तो आप इतनी एक्साइटेड होती हैं कि आपकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता है अगले ही पल आप बहुत ही गहरी सोच में डूब जाती हैं कि आखिर आगे क्या होगा। आप डॉक्टर के पास जाती हैं और डॉक्टर आपको तरह-तरह के टेस्ट्स के बारे में बताता है और आप ये सोचती हैं कि आप हेल्दी हैं तो फिर इतने टेस्ट्स और स्क्रीनिंग की जरूरत क्या है।
कौन से टेस्ट्स होते हैं?

1. सीबीसी काउंट (कम्प्लीट ब्लड काउंट)-

ये टेस्ट इस जानकारी के लिए किया जाता है कि आपके खून में मौजूद अलग-अलग सेल्स किन हालात में हैं। इसमें रेड ब्लड सेल काउंट (RBC काउट), व्हाइट ब्लड सेल काउंट (WBC काउंट) और प्लेटलेट काउंट मौजूद होते हैं।

क्यों जरूरी है ये टेस्ट- ये आपके शरीर की हेल्थ और किसी भी तरह के एक्टिव इन्फेक्शन की जानकारी लेने के लिए जरूरी होता है। हीमोग्लोबिन, आयरन लेवल आदि की जानकारी बहुत जरूरी है ये जानने के लिए कि कहीं मां को एनीमिया तो नहीं। अगर मां को एनीमिया होता है तो तुरंत ही सप्लीमेंट्स देने शुरू किए जाते हैं। WBC वैल्यू ये बताती है कि शरीर में कोई इन्फेक्शन तो नहीं। ये आमतौर पर अन्य लक्षणों से जुड़ा भी होता है। अगर ये बढ़ा हुआ पाया जाता है तो डॉक्टर बताते हैं कि किस तरह के ट्रीटमेंट की आगे जरूरत है।

2. ब्लड ग्रुप-

ये टेस्ट बताता है कि आपका ब्लड ग्रुप कौन सा है जैसे A, B, AB या O

ये क्यों जरूरी है- बच्चे के पैदा होने के दौरान किसी भी आपातकालीन स्थिति में आपको अगर खून की जरूरत हुई तो ब्लड ग्रुप की जानकारी पहले से तैयार रहने में मदद करेगी।

3. Rh फैक्टर टेस्ट-

ये टेस्ट खून में rhesus फैक्टर की मौजूदगी के बारे में बताता है। ये एक प्रोटीन है जो ब्लड सेल्स में मौजूद रहता है।

ये क्यों जरूरी है- अगर प्रोटीन मौजूद होता है तो ब्लड Rh-पॉजिटिव कहलाता है और अगर ये नहीं होता तो ब्लड Rh-नेगेटिव कहलाता है। अगर मां नेगेटिव है और बच्चा Rh-पॉजिटिव है तो शरीर में ऐसी एंटीबॉडी भी बन सकती हैं जो फीटस के लिए नुकसानदेह हो सकती है।
रूटीन यूरिन और यूरिन कल्चर टेस्ट्स -
कैसे कलेक्ट किया जाता है सैंपल?

यूरिन सैम्पल आपके हेल्थ स्टेटस के बारे में काफी कुछ बताता है और बहुत जरूरी होता है। जांच के लिए ताज़ा यूरिन सैम्पल लिया जाता है।

क्या चेक किया जाता है?

RBC की मौजूदगी- रेड ब्लड सेल्स और व्हाइट ब्लड सेल्स एक्टिव यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन की जानकारी देते हैं।
यूरिन में ग्लूकोज लेवल की स्क्रीनिंग होती है ताकि जेस्टेशनल डायबिटीज का स्टेटस पता चले।
ब्लड और यूरिन में हाई प्रोटीन लेवल बहुत खतरनाक प्रीक्लैम्पिया (preeclampsia) की जानकारी दे सकते हैं।
यूरिन कल्चर टेस्ट चेक करता है कि यूरिनरी ट्रैक्ट में किसी तरह का इन्फेक्शन या बैक्टीरिया तो मौजूद नहीं है।
रिसर्चर्स के अनुसार यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन फीटस के IQ लेवल को कम कर सकते हैं।
थायराइड टेस्ट-
हमारे गले में मौजूद वॉइस बॉक्स के नीचे एक छोटा सा ग्लैंड होता है जिसे थायराइड कहते हैं। ये छोटा सा ग्लैंड बहुत ही ताकतवर हार्मोन रिलीज करता है जिसे थायराइड हार्मोन कहते हैं जिसे TSH और फ्री T4 से नापा जाता है। ये हार्मोन हमारे पूरे शरीर का मेटाबॉलिज्म रेगुलेट करता है और होने वाली मां को इस हार्मोन की जरूरत बहुत ज्यादा होती है। ये बहुत जरूरी है कि होने वाली मां के थायराइड लेवल जांचे जाएं। ये सिर्फ फर्स्ट ट्राइमेस्टर में ही नहीं बल्कि प्रेग्नेंसी के अलग-अलग चरणों में भी चेक किया जाता है। ये टेस्ट थायराइड हार्मोन की खून में मौजूदगी को टेस्ट करता है।

क्यों है ये जरूरी- थायराइड हार्मोन के लो लेवल्स फीटल मेटाबॉलिज्म और फीटस के दिमाग के विकास पर असर करता है। इसके बहुत हाई लेवल गर्भपात का खतरा और अन्य जटिलताओं को पैदा कर सकते हैं।

कैसे किया जाता है ये टेस्ट- TSH और फ्री T4 लेवल को जांचने के लिए ब्लड सैम्पल लिया जाता है।

जेस्टेशनल डायबिटीज (GDM) स्क्रीन-
इंसुलिन एक ऐसा हार्मोन है जो हमारे शरीर की ग्लूकोज की जरूरत और उपलब्धता को कंट्रोल करता है। प्रेग्नेंसी एक ऐसी स्टेज है जिसमें ग्लूकोज की जरूरत कई गुना बढ़ जाती है। हमारी भारतीय शाकाहारी डाइट में कई सिंपल कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं। महिलाएं जिनके माता-पिता को डायबिटीज हुई है उन्हें प्रेग्नेंसी के दौरान जेस्टेशनल डायबिटीज होने का खतरा हो सकता है।

क्यों जरूरी है ये- शरीर में बढ़े हुए शुगर लेवल अगर लंबे समय तक रहते हैं तो ये अंदरूनी अंगों को खराब कर सकते हैं, खासतौर पर किडनी को और इनका कम उपयोग मां को ब्लड शुगर की कमी महसूस करवा देता है जबकि असल मायने में खून में भरपूर शुगर होती है। इसके कारण ऐसा हो सकता है कि बच्चे को ज्यादा खाना खिला दिया जाए और बच्चा ओवरवेट हो जिससे डिलीवरी के समय अन्य तरह की परेशानियां हो सकती हैं।

ब्लड शुगर लेवल टेस्ट-
पहले एक स्क्रीनिंग टेस्ट होता है जिसमें RBS-रैंडम ब्लड शुगर की जांच ब्लड सैम्पल में की जाती है। ये टेस्ट इसलिए किया जाता है ताकि ब्लड में शुगर की मौजूदगी को पहचाना जा सके। अगर ब्लड में ज्यादा बढ़े हुए शुगर लेवल पाए जाते हैं तो एक ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट किया जाता है। प्रेग्नेंट मां एक शुगर सॉल्यूशन पीती है और अलग-अलग समय पर ब्लड सैम्पल लिया जाता है जो ये बताता है कि शरीर शुगर लोड पर किस तरह से रिएक्ट करेगा।

हालांकि, HbA1c टेस्ट बहुत सटीक है और RBS टेस्ट के साथ ही इसे किया जाता है। ये टेस्ट आमतौर पर 24वें हफ्ते के बाद या प्रेग्नेंसी के दूसरे ट्राइमेस्टर में किया जाता है।
विटामिन-B12 -
विटामिन-B12 दिमाग और न्यूरोलॉजिकल विकास के लिए बहुत जरूरी है। भारतीय (खासतौर पर वेजिटेरियन डाइट) वाले लोगों को विटामिन-B12 की कमी होना आम बात है।

ये जरूरी क्यों है- इसकी किसी भी तरह की कमी बहुत गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती है जैसे स्पाइना बिफिडा (Spina bifida) या बच्चे में दिमाग और नर्व्स का खराब विकास।

विटामिन-D -
ये टेस्ट प्रेग्नेंट महिला की बाजू में मौजूद नसों से लिए ब्लड सैम्पल से किया जाता है।

ये क्यों जरूरी है- इसकी किसी भी तरह की कमी कमजोर हड्डियों के विकास और नवजातों में छोटे कद जैसी समस्याओं को जन्म दे सकती है।

इन्फेक्शन स्टेटस को चेक करने के लिए किए जाने वाले टेस्ट्स-
हेपेटाइटिस B एंटीजन टेस्ट- हेपेटाइटिस एक तरह का लिवर इन्फेक्शन है जो संक्रमित मां से फीटस तक पहुंच सकता है। ये विकसित होते बच्चे के लिए बहुत गंभीर जटिलताएं पैदा कर सकता है।

HCV टेस्ट- ये टेस्ट हेपेटाइटिस C इन्फेक्शन की जानकारी के लिए किया जाता है। हेपेटाइटिस C मां से फीटस तक पहुंच सकता है और नवजात में बहुत गंभीर बीमारियां पैदा कर सकता है।

रूबेला इन्फेक्शन (जर्मन मीजल्स)- इस टेस्ट में मां के खून में मौजूद किसी भी तरह की एंटीबॉडी का टेस्ट किया जाता है। ये प्रेग्नेंसी के पहले कुछ महीनों में होता है और इसमें ऐसी स्थितियों का पता लगाया जाता है कि कहीं बच्चे में गंभीर विकास से जुड़ी समस्याएं जैसे मेंटल रिटार्डेशन, आंखों और कानों का खराब काम आदि तो नहीं है। अगर ये अभी नहीं है तो क्या कभी भविष्य में ऐसा इन्फेक्शन हो सकता है।

HTV इन्फेक्शन- AIDS हमारे लिए कोई नई टर्म नहीं है और ये एक ऐसा गंभीर संक्रमण है जिसकी जांच बहुत ही अच्छे से की जानी चाहिए। होने वाली मां की ठीक से जांच बहुत जरूरी है और HIV इन्फेक्शन शरीर के इम्यून सिस्टम पर असर डालता है और मां से बच्चे को पास होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है।

VDRL टेस्ट/ सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज टेस्ट- वेनेरियल डिजीज रिसर्च लेबोरेटरी टेस्ट इसलिए किया जाता है ताकि सिफलिस इन्फेक्शन की जांच की जा सके। ये एक तरह का बैक्टीरियल इन्फेक्शन होता है जिससे कई तरह के कॉम्प्लिकेशन प्रेग्नेंसी के दौरान हो सकते हैं और ये मां से बच्चे तक भी पहुंच सकता है।

पैरेंट्रल ब्लड ग्रुप अनुकूलता (parenteral blood group compatibility) की जांच-
ये बहुत जरूरी है कि माता-पिता की ब्लड ग्रुप अनुकूलता की जांच की जाए क्योंकि अगर ये अनुकूल नहीं होंगे तो ऐसी संभावना हो सकती है कि बच्चे को थैलेसीमिया हो।

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Dehra Dun
248001

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