
03/08/2025
"चीजों की कभी कमी नहीं रही, कमी रही तो उन्हें सहेज कर रखने वालों की।"
जिस भारत ने दुनिया को चिकित्सा विज्ञान की पहली रोशनी दी, आज उसी देश के हर घर में एलोपैथिक किट अनिवार्य हो गई है। नतीजा ये है कि 35 की उम्र पार करते ही बीपी, शुगर, थायराइड, कैंसर और किडनी फेल होना अब आम बात हो गई है।
अब आयुर्वेद की ओर लौटना भी आसान नहीं रह गया, क्योंकि उसके नाम पर भी भारी लूट और भ्रामक प्रचार का बोलबाला है। पारंपरिक वैद्यों की संख्या तेजी से घट रही है, और जो BAMS डॉक्टर हैं, उनमें से 90% एलोपैथिक इलाज की राह पकड़ चुके हैं।
सोशल मीडिया ने जैसे हर किसी को "ऑनलाइन वैद्य" बना दिया है – बिना आधार, बिना अनुभव। और जहां कुछ थोड़े-से सच्चे ऋषि और आयुर्वेद के संरक्षक अब भी बचे हैं, उन्हीं से एक अंतिम उम्मीद जुड़ी है कि शायद मूल, शुद्ध आयुर्वेद दोबारा खड़ा हो पाए।
अगर हमने परमात्मा और प्रकृति की ओर से मिले इस ज्ञान पर फिर से भरोसा नहीं किया, तो आने वाले 10–20 वर्षों में स्वास्थ्य का संकट विस्फोटक रूप ले सकता है – एक ऐसी स्थिति जहां इलाज नहीं, जीवनशैली ही मृत्यु का कारण बन जाएगी।