30/07/2022
नमस्ते
अभिवादन के लिए नमस्ते शब्द सबसे उत्तम है।
आज काल समाज में परस्पर अभिवादन के लिए, एक दुसरे को सन्मान प्रोदर्शनार्थे पृथक पृथक अनेक शब्द का व्यवहार किया जाता है। जैसा कोई गुड मोर्निंग, गुड नाईट, गुड बाई, कोई आस्लाम वालेकुम, कोई जय माता जी, जय श्री कृष्णा, जय हरी, जय राम जी, जय राधेश्याम, जय शिव, जय महाकाल,राधे राधे, जय गोबिन्द, इतादी अनेक अभिवादन शब्द का प्रोयोग किया जाता है, परन्तु ये सबि अभिवादन शब्द में नमस्ते जैसा पूर्णता नेही है। नमस्ते शब्द एक सन्मान सूचक शब्द, जिसका अर्थ है" मैं र्हिदय से आप के प्रति सन्मान प्रकट करता हूँ, मैं र्हिदय से आप को आभार प्रकट करता हूँ, मैं र्हिदय से आप को मान्य करते है। नमस्ते छोटे, बड़े, स्त्री, पुरुष, समाज, परिवार, देश, परदेश, किसी भी बर्ग बिशेस में,किसी भी प्रान्त में, किसी भी समय बोला जा सकता है। और नमस्ते के प्रति उत्तर में नमस्ते से ही किया जाता है।परन्तु सामाजिक दुसरे अभिवादन शब्द में ऐसा नेही देखने मिलता है।
गुड मोर्निंग, गुड नाईट, गुड डे, गुड बाई ये सबि शब्द सुनने में तो अच्छा लगता है, पर जिस मित्र कुटुंब के लिए हम ये शब्द प्रोयोग करते, ऐसी शब्द से उनका कोई प्रकार सन्मान प्रदशन नेही होता, समय का जय घोषित होता मात्र। जैसा गुड मोर्निंग का मतलब सु प्रभात, इसमे सुन्दर प्रभात तो ठीक है परन्तु जिस मित्र के लिए ये शब्द प्रोयोग किया गया, उनका किसी प्रकार सन्मान नेही होता है।
अब आस्लाम वालेकुम शब्द को भी देख लेते।
आस्लाम वालेकुम का मतलब अल्लाह के कृपा दृष्टी आप के ऊपर हो, और इसका प्रति उत्तर में वालेकुम सलाम का अर्थ है आप के ऊपर भी अल्लाह के कृपा हो। अब देखे मुसलमान मित्र दुसरे मुसलमान मित्र को अभिवादन करते समय भी एक दुसरे का सन्मान प्रकट नेही करते, केबल अल्लाह का कृपा प्राथना करते। और आस्लाम वालेकुम और वालेकुम सलाम सिर्फ मुसलमान समाज में प्रोयोग किया जा सकता है। किसी अन्य समाज, स्थान, काल, प्रात्र में इसका प्रोयोग नेही है। जैसा कोई गैर मुसलमान( काफ़िर) अगर कोई मुसलमान को आस्लाम वालेकुम कहता है, तब मुसलमान मित्र उस सलाम के जवाब में कहता है हद्दाक अल्लाह यानि अल्लाह आप को हिदायत दे, आप गुमराह है, रास्ता भटक गए, अल्लाह आप को सही रास्ता दिखाये।
अब पौराणिक शिस्टाचार के अनुसार जब हम किसी मित्र, कुटुंब से जय हरी, जय राम जी, जय माता जी, जय श्री कृष्णा, जय महाकाल, जैसे अभिवादन शब्द कहते,ऐसा कहके हम सिर्फ कृषण जी, माता जी, राम जी, महाकाल का जय घोषणा करते परन्तु जिस मित्र के लिए हम ये अभिवादन किया, उनका सन्मान नही करते।और ये सबि अभिवादन शब्द साम्प्योदायिक होने के कारन, लोगो में साम्प्योदायिक भावना भी जाग्रत होता है। ये सबि काल्पनिक सम्भाषनिक शब्द व्यवहार करने से परस्पर सन्मान जैसा कोई भी भाव प्रकट नेही होता। जैसा कोई अगर अपनी माता पिता, गुरु जन, के प्रति जय माता जी, जय श्री कृष्ण, जय राम जी, जय महाकाल कहे उसमे अपनी माता पिता या गुरु जन के प्रति किसी प्रकार सन्मान ना होके कृषण जी का, राम जी का, माता जी का,महाकाल का जय घोषणा होता है। कृषण जी राम जी जैसे महात्मा का जय घोषणा करना ठीक है, परन्तु सर्व समय उन महात्मा जनो का जय घोषणा करना कौनसा ज्ञान है। राम जी कृषण जी का जय घोषणा करना उस समय उचीत होगा जहा राम जी का कृषण जी जय घोषणा करना चाहिए।इस लिए परस्पर अभिवादन के समय जय राम जी, जय कृषण जी,जय माता जी, जय महाकाल, राधे राधे इतादी अभिवादन शब्द ना कहके हात जोड़के, नम्रता पूर्वक नत मस्तक नमस्ते करना सर्व उत्तम है।
हमारा सबि पूर्वजो राम जी, कृषण जी के जन्म के पहले भी सबि एक दुसरे से नमस्ते ही करते थे,जय राम जी, जय श्री कृष्ण, जय माता जी, जय महाकाल, जय गणेशाय जैसा कोई भी अभिवादन शब्द वेद, रामायण और आर्य शास्त्र में नहीं है।