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17/10/2024
ALOPECIA AREATAThe loss of hair in patches is known as alopecia areata. In alopecia areata, usually hair loss is seen on...
18/09/2024

ALOPECIA AREATA
The loss of hair in patches is known as alopecia areata. In alopecia areata, usually hair loss is seen on the scalp, but any body part covered with hair can be affected. When alopecia areata appears in the beard, it is known as alopecia areata barbae. Homeopathy is an advanced science and treats many diseases of autoimmune origin including alopecia areata. Homeopathic medicines works by stopping the progress in the size of the bald spots and help in the regrowth of hair. Homeopathic treatment for alopecia areata helps by optimizing the overactive immune system that is destroying the hair follicles. Homeopathic medicines for treating alopecia areata originate from natural sources which exclude any risk of side effects. Homeopathic medicines that are highly useful in alopecia areata are Fluoric Acid, Phosphorus, Lycopodium, and Baryta Carb.

Homeopathic Medicines for Alopecia Areata-
1. Fluoric Acid - Fluoric Acid is among the top grade homeopathic remedies for alopecia areata. Fluoric Acid helps in the regrowth of hair in the bald patches. Fluoric Acid is also a highly suitable homeopathic medicine for hair fall after fever.
2. Phosphorus – Another homeopathic medicine that has shown its effectiveness in alopecia areata cases is Phosphorus. Phosphorus works well in cases where a person suffers from the loss of hair in patches. Along with hair loss, dandruff on the scalp is also present. In some cases, there is itching on the scalp along with hair fall. Phosphorus also seems to help cases of traction alopecia. In such situations, there is a receding hairline. Hair fall from the forehead is prominent. A person needing Phosphorus may crave cold drinks and ice creams.
3. Baryta Carb, Lycopodium, and Silicea – Homeopathic Medicines for Alopecia Areata in Young People

The most prominently indicated homeopathic medicines for alopecia areata in young people are Baryta Carb, Lycopodium, and Silicea. Baryta Carb helps in recovering from bald patches that occur on the top of the scalp. Lycopodium works well for bald patches on the temples. Silicea is a good homeopathic treatment for alopecia areata occuring on the back of the scalp.

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18/09/2024

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18/09/2024

| होमियो वन |होम्योपैथी |इलाज जड़ से| दुनिया का एक ऐसा नाम जो पिछले १० सालों से अपने होम्योपैथी अनुभव के द्वारा | सोराईसिस | (Psoriasis) जैसी त्वचा की बीमारियों से ग्रस्त देश व विदेश में रह रहे हजारों लोगों का सफल इलाज करके उन्हें एक नया जीवन दे चुके हैं !
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दमाASTHMA  सांस नलिकाओं को प्रभावित करने वाली बीमारी।सांस संबंधी रोगों में सबसे अधिक कष्टदायी है।वायु-मार्ग संकरा तथा मा...
18/09/2024

दमा
ASTHMA

सांस नलिकाओं को प्रभावित करने वाली बीमारी।
सांस संबंधी रोगों में सबसे अधिक कष्टदायी है।
वायु-मार्ग संकरा तथा मांसपेशियों में जकडन आ जाती है।
अस्‍थमा के दौरे से फेफड़ों के बड़े वायु-मार्ग प्रभावित होते हैं।
परिचय-
किसी भी व्यक्ति के गले में जो सांस की नली होती है उसे ट्रैकिया (ट्रेचेय) कहा जाता है। ये नली दो भागों में बंट जाती है जिन्हे ब्रौंकाई कहते है। इन दोनों नलियों में से एक नली तो दाएं फेफड़े में चली जाती है और दूसरी बाएं फेफड़े में चली जाती है। जब इन दोनों नलियों में बलगम जमा हो जाता है जो निकालने से भी नहीं निकलता या बहुत ही मुश्किल से निकलता है। तब इसको दमा रोग कहा जाता है।

अस्‍थमा श्‍वास नलिकाओं को प्रभावित करने वाली गंभीर बीमारी है। श्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं। अस्थमा में इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन आ जाती है। यह सूजन नलिकाओं को बेहद संवेदनशील बनाकर, किसी भी बेचैन करने वाली चीज के स्पर्श से तीखी प्रतिक्रिया करती है। जब नलिकाएं प्रतिक्रिया करती हैं, तो उनमें संकुचन होता है और उस स्थिति में फेफड़े में हवा की कम मात्रा जाती है। इससे खांसी, नाक बजना, छाती का कड़ा होना, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ आदि जैसे लक्षण पैदा होते हैं। अस्‍थमा का दौरा पड़ने से श्वास नलिकाएं पूरी तरह बंद हो सकती हैं, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को आक्सीजन की आपूर्ति बंद हो सकती है।यह सांस संबंधी रोगों में सबसे अधिक कष्टदायी है। अस्थमा के रोगी को सांस फूलने या सांस न आने के दौरे बार-बार पड़ते हैं और उन दौरों के बीच वह अकसर पूरी तरह सामान्य भी हो जाता है। अस्थमा को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है, ताकि अस्‍थमा से पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सके। अस्‍थमा के दौरे के दौरान जिन लोगों को कभी-कभी दौरा पड़ता है उसके लक्षण हलके होते हैं और जिन लोगों को लगातार दौरे पड़ते है उनके लक्षण गम्भीर होते है जिनसे जीवन को खतरा हो सकता है।
अस्‍थमा के दौरे के दौरान सूजन के कारण वायु-मार्ग संकरा तथा मांसपेशियों में जकडन आ जाती है। हवा का प्रवाह बंद हो जाने से श्लेष्ण उस संकरे वायु- मार्ग में पैदा हो जाता है। अस्‍थमा के दौरे से फेफड़ों के बड़े वायु-मार्ग प्रभावित होते हैं जिसे ब्रोची (वायु प्रणाली के दो प्रधान कोष्ठों में से एक ) कहते हैं। अस्थमा का इलाज सूजन की रोकथाम और मांसपेशियों को आराम देने पर ही केन्द्रित रहता है।

अस्थमा के कारण-----

अस्थमा कई कारणों से हो सकता है। कुछ पदार्थ शरीर की इम्यून व्यवस्था का कारण बन अस्‍थमा एलर्जी को प्रेरित करते हैं। अनेक लोगों में इसमें एलर्जी मौसम, खाद्य पदार्थ, दवाइयों, परफ्यूम जैसी खुशबू और कुछ अन्य प्रकार के पदार्थों से हो सकती हैं। एक अनुमान के अनुसार, जब माता-पिता दोनों को अस्थमा होता है तो ऐसे में 75 से 100 प्रतिशत माता-पिता के बच्चों में भी एलर्जी की संभावनाएं पाई जाती हैं। आइए जानें कि अस्‍थमा के कारणों में क्‍या-क्‍या शामिल है।
केमिकल की तेज गंध
पारिवारिक इतिहास
धूलकण
सिगरेट का धुआं
जानवर (जानवरों की त्वचा, बाल, पंख या रोयें)
पेड़ और घास के पराग कण
वायु प्रदूषण
ठंडी हवा या मौसमी बदलाव
पेट या रसोई की तीखी गंध
परफ्यूम
मजबूत भावनात्मक मनोभाव (जैसे रोना या लगातार हंसना) और तनाव
एस्पिरीन और अन्य दवाएं

अस्थमा के लक्षण----

इस रोग के लक्षण व्यक्ति के अनुसार बदलते हैं। अस्थमा के कई लक्षण तो ऐसे हैं, जो अन्य श्वास संबंधी बीमारियों के भी लक्षण हैं। इन लक्षणों को अस्थमा के अटैक के लक्षणों के रूप में पहचानना जरूरी है। अस्‍थमा के लक्षणों में नीचे दिये लक्षण शामिल है। जैसे---

घरघराहट
सांस लेने में तकलीफ
लगातार छींक आना
अचानक शुरू होना
रुक-रुक कर होना
सांस फूलना
सीने में जकड़न
फेफड़ों में कफ
शरीर के अंदर खिंचाव
रात या सुबह बहुत तेज होना
ठंडी जगहों पर या व्यायाम करने से या भीषण गर्मी में तेजी

यद्यपि अस्‍थमा बहुत जल्दी भी विकसित हो सकता है, 5 साल की उम्र से भी पहले, इसके लक्षण किसी भी उम्र में प्रारम्भ हो सकते हैं। यह समस्‍या एक अनुवंशिक घटक है और पारिवारिक इतिहास से भी एलर्जी आ सकती है। अमेरिकन फेफड़े एसोसिएशन का अनुमान है कि 25 लाख लोगों को अपने जीवन काल में अस्‍थमा का निदान हो जाता है। अमेरिका के एक तिहाई बच्चों में अस्‍थमा के लक्षण पाए जाते है।

Sign and Symptoms----

लक्षण-

दमा रोग में रोगी को सांस बड़ी मुश्किल से आती है। रोगी सीधा बैठ जाता है तथा सिर को पीछे की तरफ करके दोनों हाथों को भी पीछे की ओर फैला देता है ताकि उसे सही तरह से सांस आ सके। रोगी की सांस की नलियों और फेफड़ों में बलगम भरा होने के कारण उसके फेफड़ों में से सांय-सांय की सी आवाज आती रहती है। रोगी की पूरी छाती में सीटियां सी बजती रहती है। रोगी का माथा ठण्डा पड़ जाता है और चेहरा पीला हो जाता है। दमे रोग के यह लक्षण अक्सर रात को ही उभरा करते हैं

दमा रोग में विभिन्न औषधियों का प्रयोग-

1. एलूमेन- अगर अचानक दमे का दौरा पड़ता है तो उस समय लगभग आधा ग्राम फिटकरी के चूर्ण को मुंह मे रखने से आराम मिलता है।

2. नैट्रम-सल्फ - रोगी को बरसात या नमीदार मौसम आते ही दमे का रोग तेज हो जाना या बच्चे को दमा रोग हो जाना जो सुबह के 4-5 बजे तेज हो जाता है आदि में नैट्रम-सल्फ औषधि की 6x या 12x की मात्रा देने से लाभ मिलता है।

3. लैकेसिस - रोगी जैसे ही रात को सो जाता है, उसके थोड़ी देर के बाद दमे का दौरा पड़ने के कारण रोगी को उठना पड़ता है। रोगी अपने गले या छाती पर किसी भी तरह का दबाव सहन नहीं कर पाता है और रोगी कपड़े आदि का स्पर्श भी सह नहीं सकता। इस तरह दमे के दौरे के उठने पर रोगी के जाग जाने के बाद खांसते-खांसते आखिरी में बहुत सारा पतला सा बलगम निकल जाता है और रोगी को आराम पड़ जाता है। इस तरह के दमे के रोग वाले लक्षणों में रोगी को लैकेसिस औषधि की 8 या 200 शक्ति देने से लाभ मिलता है।

4. कार्बो-वेज- कार्बो-वेज औषधि को खासतौर पर बूढ़े व्यक्तियों के दमे में प्रयोग किया जाता है। बुढ़ापे में व्यक्ति का बहुत ज्यादा कमजोर हो जाना, दमे का दौरा पड़ने के कारण रोगी को ऐसा महसूस होता है जैसे कि उसके अभी प्राण निकलने वाले है। रोगी सांस लेने के लिए बहुत ज्यादा बेचैन हो उठता है। जब रोगी को डकार आती है तब जाकर उन्हें आराम मिलता है। इस औषधि की 30 शक्ति दमे के उस दौरे में भी लाभकारी है जो पेट में गैस भर जाने के कारण पैदा होता है।

5. कैलि-कार्ब- अगर रोगी को दमे के रोग का दौरा सुबह के 3 बजे बहुत तेज होता है तो रोगी को कैलि-कार्ब औषधि की 30 शक्ति या 3x मात्रा बहुत ही लाभ करती है।

6. एकोनाइट तथा इपिकाक - दमा रोग की शुरुआती अवस्था में रोग को कम करने के लिए ऐकोनाइट औषधि की 2x मात्रा रोगी को देने के लगभग आधे घंटे के बाद इपिकाक औषधि की 2x मात्रा देनी चाहिए। इन दोनों औषधियों को एक के बाद एक सेवन करने से रोगी की सांस और कफ पर काबू पाया जा सकता है।

7. ब्लैटा ओरियेन्टेलिस - रोगी को जिस समय भी दमे का दौरा उठे उसे उसी समय ब्लैटा ओरियेन्टेलिस के रस की 25-25 बूंदे गर्म पानी में देने से या 3x मात्रा देने से दौरा रुक जाता है।

8. कैलि-बाईक्रोम - दमे का दौरा जब आधी रात के 3-4 बजे उठता है, रोगी को सांस नहीं आती और सांस लेने के लिए उसे उठना पड़ता है। रोगी के गले से तार की तरह का लंबा-लंबा बलगम निकलता है तब जाकर रोगी को आराम मिलता है। इस प्रकार के लक्षणों में रोगी को कैलि-बाइक्रोम औषधि की 30 मात्रा या 3x मात्रा देना लाभकारी रहता है।

9. सल्फर- अगर रोगी को अपनी छाती भारी सी महसूस होती है, सांस लेने में परेशानी होती है, बलगम गले में चिपक जाता है जिसे निकालने के लिए रोगी को काफी मेहनत करनी पड़ती है। ऐसे लक्षणों में अगर रोगी को सल्फर औषधि की 1 मात्रा दी जाए तो रोगी को बहुत आराम मिलता है।

10. इपिकाक - दमे के रोगी को अपनी छाती में सिकुड़न-सी महसूस होती हो, रोगी के खांसने पर छाती में बलगम की घड़घड़ सी आवाज आती रहती हैं लेकिन जितनी घड़घड़ाहट छाती से सुनाई देती है उससे ज्यादा बलगम निकलता है, उनका रोग जरा-सा भी हिलने-जुलने से बढ़ जाता है। ऐसे लक्षणों में रोगी को इपिकाक औषधि की 3 शक्ति देना लाभकारी रहता है।

11. ब्रोमियम - समुद्र के किनारे रहने वाले व्यक्तियों को होने वाला दमा रोग जो समुद्र में तो ठीक रहता है लेकिन समुद्र के किनारे पर आते ही दमे का दौरा उठ जाता है। ऐसे रोगियों को ब्रोमियम औषधि की 2-3 शक्ति देने से लाभ मिलता है।

12. मैडोराइनम- दमे के ऐसे रोगी जिनका रोग समुद्र के किनारे पर आकर कम हो जाता है। ऐसे रोगियों को मैडोराइनम औषधि की 200 शक्ति देना अच्छा रहता है। इसके अलावा दमे का रोगी अगर पेट, छाती या घुटनों के बल लेटे तो उसे मैडोराइनम औषधि देनी चाहिए।

13. जानकारी- अगर दमे के रोग में रोगी को दूसरी औषधियों से लाभ नहीं होता तो रोगी को मैडोराइनम या ट्युर्क्क्युलीनम (बैसीलीनम) को दूसरी औषधियों के बीच में सेवन कराना चाहिए।

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