14/11/2025
🌿मैथीदाना-आरोग्य का खजाना🌿
मैथीदाना, जितने साल जिसकी आयु हो उतने दाने लेकर रोजाना प्रातः खाली पेट, धीरे-धीरे खूब चबा-चबाकर (अथवा यदि शाम को ले तो मैथीदाना पानी की सहायता से निगलना चाहिए) खाता रहे तो व्यक्ति सदैव निरोग और चुस्त बना रहेगा और मधुमेह, जोड़ों के दर्द, शोथ, रक्तचाप, बलगमी बीमारियाँ, अपचन आदि अनेकानेक रोगों से बचाव होगा। वृद्धावस्था की व्याधियां (यथा-सायटिका, घुटनों का दर्द, हाथ पैरों का सुन्न पड़ जाना, मांसपेशियों का खिंचाव, भूख न लगना, बार-बार मूत्र आनां, चक्कर आना आदि) उसके पास नहीं फटकेगी। ओज, कान्ति, और स्फूर्ति में वृद्धि होकर व्यक्ति दीर्घायु होगा।
यद्यपि अलग-अलग बीमारियों के इलाज के लिए मैथीदाना का प्रयोग कई प्रकार से किया जाता है जैसे-मैथीदाना भिगोकर उसका पानी पीना या भिगाये मैथीदाना को घाट छानकर पीना, उसे अंकुरित करके चबाना या रस निकालकर पीना, उसे उबालकर उसका पानी पीना या सब्जी बनाकर खाना, खिचड़ी या कढ़ी पकाते समय उसमें डालकर सेवन करना, साबुत मैथीदाना प्रातः चबाकर खानाऔर रात्रि में पानी संग निगलना, - भुनकर या वैसे ही उसका दलिया या चूर्ण बनाकर ताजा पानी के साथ फक्की लेना, मैथीदाना के लड्डू बनाकर खाना अदि परन्तु मैथी के सेवन का निरापद और अच्छा तरीका है उसका काढ़ा या चाय बनाकर पीना।
मैथी का काढ़ा या चाय बनाने की विधि
🌿पांच ग्राम (एक डेढ़ चम्मच) मैथीदाना (दरदरा मोटा कूटा हुआ) 200 ग्राम पानी में डालकर धीमी आंच पर उबलने रख दें। लगभग दस मिनट उबलने के बाद जब पानी 150 ग्राम या पौन कप) शेष रह. जाए तब बर्तन को आग पर से नीचे उतार लें। पीने लायक गर्म रहने पर इसे स्वच्छ कपड़े से छानकर चाय की भांति घूंट-घूंट कर गर्म-गर्म पी लें।
🌿यदि कोई व्यक्ति कड़वा काढ़ा न पी सकें तो वह इस काढ़े में थोड़ा गर्म दूध और गुड़ या खांड मिलाकर चाय के रूप में भी ले सकता है। बलगमी खांसी, छाती के दर्द और पुराने हृदय रोग में थोड़े गर्म मैथी के काढ़े में एक-दो चम्मच शहद मिलाकर लेना विशेष लाभप्रद रहता है। काढ़ा बनाने के लिए यदि रात में एक कांच के गिलास में पानी में मैथीदाना भिगोने को रखने के बाद सवेरे उसी पानी में भिगोया मैथीदाना उबालकर उसका काढ़ा बनाया जाय तो वह जल्दी भी बनेगा तथा मैथीदाना का कस ज्यादा आने के कारण वह काढ़ा ज्यादा गुणकारी भी रहेगा।
🌿यह दानामैथी का काढ़ा (बिना कुछ इसमें मिलाए) दिन में दो बार, प्रथम सवेरे नाश्ते से लगभग आधा घंटे पहले और रात्रि में सोने से पहले पीना चाहिए। इसे निरन्तर पीते रहने से आंव नहीं बन पायेगी क्योंकि मैथीदाना विशेष रूप से आंवनाशक और पाचन-क्रिया सुधारक है।
🌿मैथी उष्ण-रुक्ष-लघु गुणों से युक्त होने के कारण आंवनाशक, कफ निस्सारक और वातनाशक है। मैथी पाचन-अवयवों, श्वसन-संस्थान, रक्तवाहिनियों, आंतों एवं भीतरी त्वचा (झिल्ली) से चिपकी हुई आंव या चिकनाई (म्यूकस) और संचित गन्दगी और विषों को देह से बाहर कर देती है और भीतरी अवयवों की शुद्धि करके अंगों की सूजन, जलन और पीड़ा मिटाकर उन्हें पुनः आरोग्य प्रदान कर कार्यक्षम बनाती है। मैथी के प्रयोग से पाचन-क्रिया सुधरने से शरीर में रस. आदि का निर्माण ठीक से होने लगता है। मल बंधकर आने लगता है, पेट ठीक प्रकार से साफ होने लगता है, यकृत आदि अवयव सशक्त बनते हैं और उनकी कार्य शिथिलता दूर होती है जिससे शरीर में स्फूर्ति और ताकत का अनुभव होने लगता है।
🌿मैथी के बीज की रासायनिक बनावट 'कॉड-लीवर आयल' के समान है अतः शाकाहारियों के लिए मैथी मछली के तेल का अच्छा विकल्प है और उसी की तरह यह भी खून की कमी (एनीमिया), दुर्बलता, स्नायु-रोग, घुटनों का दर्द, संधिवात, सूखा रोग (रिकेट्स), छूत के रोगों के पश्चात बचने वाली कमजोरी, बहुमूत्रता, मधुमेह आदि रोगों में बहुत लाभदायक है। पाचन संस्थान के रोगों यथा- शूल, अफारा, अग्निमांद्य, अरुचि, आमातिसार (पेचिश); प्लीहा व जिगर की वृद्धि, अल्सर, कोलाइटिस, आदि के अतिरिक्त श्वसन संस्थान के रोग यथा-बलगमी खांसी, दमा, श्वसन अंगों में सूजन, ब्रोंकाइटिस, छाती के पुराने रोगों आदि में मैथी का सेवन लाभकारी है। अंगों का प्रदाह एवं सूजन मिटाकर उन्हें पुनः कार्यक्षम बनाने का गुण होने के कारण मैथी अमेन्डिसाइटिस, टांसिल्ज एवं साइनसाइटिस आदि रोगों को दूर करने में सहायता करती है और उनसे बचाव भी। मुख, कंठ और जीभ के रोगों का नाश करती है।
🌿महिलाओं की मासिक धर्म कीगड़बड़ियों, लिकोरिया, बच्चेदानी में सूजन, में लाभ करती है तथा आर्तव के स्रोतों की शुद्धि कर उनकी सूजन मिटाकर महिलाओं को आरोग्य प्रदान करती है। प्रसूतावस्था में शिथिल बने हुए अंगों को शुद्ध करती है और मां के दूध के प्रवाह की रुकावटों को दूर करती है। मैथी पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के कारण सामान्य शक्तिवर्धक (टॉनिक) का कार्य करती है।
🌿आधुनिक खोजों से सिद्ध हो चुका है कि मैथी के प्रयोग से मूत्र और रक्त की शक्कर (डायबीटिज) में कमी आ जाती है, रक्त में कोलेस्ट्रोल का स्तर घट जाता है और उच्च रक्तचाप संतुलित होता है तथा ट्राइग्लीसराइड्स भी नियन्त्रित हो जाता है। अंकुरित मैथीदाना में कैंसर को नियन्त्रित करने वाली विशेष विटामिन बी-16 भी विशिष्ट मात्रा में पाया जाता है तथा अंकुरित मैथी का रस आमाशय के अल्सर, आतों की सूजन (कोलाइटिस) आदि रोगियों के
लिए अत्याधिक लाभकारी सिद्ध हुआ है। कफ और वात प्रकृति वाले व्यक्तियों के लिए मैथी के बीज किसी वरदान से कम नहीं है फिर भी मैथी का सेवन करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखना जरूरी है :-
🌿सावधानियाँ -पित्त प्रकृति वालों को या जिन्हें रक्तपित्त, रक्त प्रदर, खूनी बवासीर, नकसीर, मूत्र में रक्त आना या शरीर में कहीं से भी खून गिरने की शिकायत हो उन्हें पैथी का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि मैथी रष्ण और खुश्क होती है। तेज गर्मी के मौसम में भी मैथी का प्रयोग करना उचित नहीं है।
🌿जिन्हें गर्म तासीर की वस्तुएं अनुकूल नहीं पड़ती हो तथा जिनके शरीर में दाह अथवा आग की लपटों जैसी जलन महसूस होती हो।
🌿 जो रोगी अत्यन्त दुर्बल व कृशकाय हो, चक्कर आने की बीमारी से पीड़ित हो तथा लगातार धातु-क्षय के कारण जिनका शरीर सूखकर मात्र हड्डियों का पिंजर रह गया हो।
🌿गुरु आयुर्वेद 🌿
वैद्य से परामर्श हेतु 7042699044