
29/09/2023
ऋषि पराशर ने 2200 से 3000 ई पूर्व सप्तर्षि तारा मंडल पर सटीक सप्तर्षि तारा मंडल की सभी जानकारी दी है।
सप्तर्षि में कश्यप नाम से एक तारा है जिस से हमारा सूर्य उत्पन्न हुआ है। इसलिए आज भी हिन्दू लोग सूर्य को कश्यपनंदन मानते है। आज तक किसी भी वैज्ञानिक संस्था ने इस पर अभी खोज भी शुरू नही की।
यदि भविष्य में सूर्य के बारे में ऐसी बात सामने आती है, तब विज्ञान भी मान ही लेगा, आज भी भारत के कश्मीर व हिमाचल प्रदेश में एक संवत चलती है जिसे लौकिक संवत कहते है, जो सप्तर्षि तारा मंडल के आधार पर चलती है।
लौकिक संवत यानी सप्तर्षि तारा मंडल एक नक्षत्र में जाते है। 27 नक्षत्र का एक चक्र पूर्ण करने में 2700 वर्ष लगते है तब यह लौकिक संवत का एक साल पूरा होता है यानी हमारे पृथ्वी पर 2700 वर्ष निकल जाए तब सप्तर्षियों का एक वर्ष बनता है।
वर्तमान में सप्तर्षि रोहिणी नक्षत्र में है जो 1948 में रोहिणी नक्षत्र में आए थे। अब 19 जनवरी 2048 रविवार को वसंत पंचमी के दिन अगले नक्षत्र में आएगे,
अभी रोहिणी नक्षत्र मे हैं नमन् सनातन धर्म🙏
हर हर महादेव
जय सनातन धर्म की 🙏🙏