19/04/2025
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जब अधिकांश लोग स्वयं को अधिक बुद्धिमान मानते हैं, तो उनमें स्वाभाविक रूप से मिथ्या अभिमान नामक दोष उत्पन्न हो जाता है, जिसके कारण वे कम बुद्धि वाले होते हुए भी अपने से अधिक बुद्धिमान हितकारी व्यक्ति के सही सुझाव को भी नहीं मानते, और अपनी अनेक प्रकार से हानियां कर लेते हैं। जब दूसरा व्यक्ति उन्हें बढ़िया सुझाव देता है, तो उन्हें अपने अभिमान के कारण वह सुझाव गलत प्रतीत होता है, और वे सुझाव देने वाले को ही अपने से कम बुद्धिमान या मूर्ख समझते हैं। बाद में जब अपनी मनमानी के दुष्परिणाम उन्हें भोगने पड़ते हैं, तब वे दुखी होते हैं। बस, सारा संसार इसी मनोविज्ञान के आधार पर चल रहा है जब कोई विशेष बुद्धिमान या महापुरुष व्यक्ति जीवित होता है, और वह अपने आसपास वाले लोगों को उनकी उन्नति के लिए अनेक उत्तम सुझाव देता है, तब वे कम बुद्धि वाले दुरभिमानी लोग उसकी योग्यता को ठीक से न समझ पाने के कारण उसके उत्तम सुझावों की उपेक्षा करते हैं, और उनसे लाभ नहीं ले पाते। ऐसे दुरभिमानी और स्वार्थी लोग केवल उसकी जय जयकार अवश्य करते हैं। और उसके नाम पर समाज के लोगों से अनेक प्रकार के लाभ उठाते तथा अपने स्वार्थ सिद्ध करते रहते हैं।और जब वह विशेष बुद्धिमान या महापुरुष व्यक्ति संसार छोड़कर चला जाता है, तब उन दुरभिमानी अज्ञानी लोगों को कुछ कुछ समझ में आता है, कि वह महापुरुष कितना विशेष व्यक्ति था, और उससे हम कितना अधिक लाभ ले सकते थे अब उस महापुरुष के संसार से जाने के बाद वे अज्ञानी लोग प्रतिवर्ष उसके गीत गाते हैं, स्मृति दिवस मनाते हैं, आदि आदि।" "परन्तु महान आश्चर्य की बात तो यह है, कि वे दुरभिमानी और अज्ञानी लोग अब भी उसके उपदेशों पर आचरण नहीं करते और उसके उपदेशों से लाभ नहीं उठाते। केवल उसके गीत गा गा कर ही अपने कर्तव्य की समाप्ति मान लेते हैं जिन महापुरुष और दुरभिमानी अज्ञानी लोगों की कथा मैंने ऊपर लिखी है, उनके उदाहरण निम्नलिखित व्यक्ति हो सकते हैं, जो अपने आप को अधिक बुद्धिमान और दूसरे को कम बुद्धिमान या मूर्ख समझते हैं। जैसे आजकल के पिता पुत्र। या गुरु शिष्य। या स्कूल कॉलेज गुरुकुलों आदि में पढ़ने वाले विद्यार्थी और उनके आचार्य। ऐसे ही दो मित्र, दो पड़ोसी, अथवा संस्थाओं में काम करने वाले अनेक सहकर्मी लोग मैंने गीता आदि शास्त्रों का लंबे समय तक लगभग 5वर्ष तक गंभीर अध्ययन आचार्य का प्रवचन श्रवण किया है। वेदों और ऋषियों के दृष्टिकोण से संसार को समझने का प्रयत्न किया है। मैं एक मनोवैज्ञानिक पुस्तक भी पड़ा, और ऐसा मैंने संसार में अनुभव किया है, जैसा मैंने ऊपर लिखा है। शायद आप भी कुछ ऐसा अनुभव करते हों।
यदि आप भी ऐसा अनुभव करते हों, तो मेरे इस लेख से लाभ उठाएं। और अपने आसपास जो भी व्यक्ति आपको वैदिक शास्त्रों के अनुसार महापुरुष प्रतीत हो, उसके जीवन आचरण से तथा उसके उपदेशों से शीघ्र ही लाभ लेवें। अन्यथा उसके संसार से चले जाने के बाद आप भी इसी ढर्रे पर चलेंगे, और केवल गीत ही गाते रहेंगे, वास्तविक लाभ से आप भी वंचित ही रहेंगे।
आचार्य अनुराग मिश्र
आध्यात्मिक प्रवक्ता
Istagram:rooh.spiritual
Facbook: Acharya Anurag