12/09/2024
#जनेऊ
पटना के एक बड़े चिकित्सक बता रहे थे कि जनेऊ पहनने से दिल का दौरा पड़ने का खतरा उस समय कम होता है जब व्यक्ति यूरिन का त्याग कर रहा होता है शरीर में एक विशेष प्रकार का कंपन होता है ऐसे समय में जनेऊ धारण करने वाले लोग कान पर उसे चढ़ाए रहते हैं जिससे हार्टबीट नियंत्रित होता है।
तस्वीरों में दिख रहा यह महज पीला धागा मात्रा नहीं बल्कि सनातन धर्म से जुड़ा हुआ एक ऐसा ब्रह्मास्त्र है जिसे कलयुग के जागृत देवता बजरंगबली भी नहीं तोड़ पाए थे।
हमारे इलाके में इसे जनेऊ बोलते हैं। जिन लोगों का यज्ञपवित्र संस्कार हो जाता है वहीं से धारण करते हैं। ब्रह्मचर्य को धारण करने वाले लोगों के लिए अलग जनेऊ होता है और विवाहित लोगों के लिए अलग।जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है।
यह तीन धागों वाला सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात् इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे। जनेऊ में तीन सूत्र – त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक – देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक – सत्व, रज और तम के प्रतीक होते है।
साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक है तो तीन आश्रमों के प्रतीक भी। जनेऊ के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। अत: कुल तारों की संख्या नौ होती है।इनमे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। इनका मतलब है – हम मुख से अच्छा बोले और खाएं, आंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुने। जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक है। ये पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों के भी प्रतीक है।
जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होती है क्यूंकि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। 32 विद्याएं चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर होती है। 64 कलाओं में वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि आती हैं।