RG-World of astrologer & Tarot Rrachita

RG-World of astrologer & Tarot Rrachita Contact information, map and directions, contact form, opening hours, services, ratings, photos, videos and announcements from RG-World of astrologer & Tarot Rrachita, Astrologist & Psychic, B-29 GEETANJALI ENCLAVE, GROUND FLOOR, NEW DELHI, Delhi.

Every item is packed in a beautiful velvet box and will be delivered to your desired destination. WhatsApp 91-9958067960...
16/09/2025

Every item is packed in a beautiful velvet box and will be delivered to your desired destination. WhatsApp 91-9958067960 to order.

Consult for: ASTROLOGY, NUMEROLOGY, TAROT LIFE MAPPING, GEM STONES, RUDRAKASHA AND REMEDIES GUIDANCE AND MORE...ACHARYA ...
16/07/2025

Consult for: ASTROLOGY, NUMEROLOGY, TAROT LIFE MAPPING, GEM STONES, RUDRAKASHA AND REMEDIES GUIDANCE AND MORE...
ACHARYA RRACHITA GUPTA WWW.ASTRORRACHITA.IN
AUTHOR OF 4 PUBLISHED BOOKS and LECTURER OF ASTROLOGICAL SCIENCES
Tarot Reader Astrorrachita Gupta

चातुर्मास किसे कहते हैं?????व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के 4 महीने को हिन्दू धर्म में 'चातुर्मास' कहा गया है। ध्यान और साधना...
01/07/2024

चातुर्मास किसे कहते हैं?????

व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के 4 महीने को हिन्दू धर्म में 'चातुर्मास' कहा गया है। ध्यान और साधना करने वाले लोगों के लिए ये माह महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती ही है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है। चातुर्मास 4 महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है।

जिन दिनों में भगवान् विष्णुजी शयन करते हैं उन चार महीनों को चातुर्मास एवं चौमासा भी कहते हैं, देवशयनी एकादशी से हरिप्रबोधनी एकादशी तक चातुर्मास हैं, इन चार महीनों की अवधि में विभिन्न धार्मिक कर्म करने पर मनुष्य को विशेष पुण्य लाभ की प्राप्ति होती है, क्योंकि इन दिनों में किसी भी जीव की ओर से किया गया कोई भी पुण्यकर्म खाली नहीं जाता।

वैसे तो चातुर्मास का व्रत देवशयनी एकादशी से शुरु होता है, परंतु जैन धर्म में चतुर्दशी से प्रारंभ माना जाता है, द्वादशी, पूर्णिमा से भी यह व्रत शुरु किया जा सकता है, भगवान् को पीले वस्त्रों से श्रृंगार करे तथा सफेद रंग की शैय्या पर सफेद रंग के ही वस्त्र द्वारा ढककर उन्हें शयन करायें।

पदमपुराण के अनुसार जो मनुष्य इन चार महीनों में मंदिर में झाडू लगाते हैं तथा मंदिर को धोकर साफ करते है, कच्चे स्थान को गोबर से लीपते हैं, उन्हें सात जन्म तक ब्राह्मण योनि मिलती है, जो भगवान को दूध, दही, घी, शहद, और मिश्री से स्नान कराते हैं, वह संसार में वैभवशाली होकर स्वर्ग में जाकर इन्द्र जैसा सुख भोगते हैं।

धूप, दीप, नैवेद्य और पुष्प आदि से पूजन करने वाला प्राणी अक्षय सुख भोगता है, तुलसीदल अथवा तुलसी मंजरियों से भगवान का पूजन करने, स्वर्ण की तुलसी ब्राह्मण को दान करने पर परमगति मिलती है, गूगल की धूप और दीप अर्पण करने वाला मनुष्य जन्म जन्मांतरों तक धनवान रहता है, पीपल का पेड़ लगाने, पीपल पर प्रति दिन जल चढ़ाने, पीपल की परिक्रमा करने, उत्तम ध्वनि वाला घंटा मंदिर में चढ़ाने, ब्राह्मणों का उचित सम्मान करने वाले व्यक्ति पर भगवान् श्री हरि की कृपा दृष्टि बनी रहती है।

किसी भी प्रकार का दान देने जैसे- कपिला गो का दान, शहद से भरा चांदी का बर्तन और तांबे के पात्र में गुड़ भरकर दान करने, नमक, सत्तू, हल्दी, लाल वस्त्र, तिल, जूते, और छाता आदि का यथाशक्ति दान करने वाले जीव को कभी भी किसी वस्तु की कमीं जीवन में नहीं आती तथा वह सदा ही साधन सम्पन्न रहता है।

जो व्रत की समाप्ति यानि उद्यापन करने पर अन्न, वस्त्र और शैय्या का दान करते हैं वह अक्षय सुख को प्राप्त करते हैं तथा सदा धनवान रहते हैं, वर्षा ऋतु में गोपीचंदन का दान करने वालों को सभी प्रकार के भोग एवं मोक्ष मिलते हैं, जो नियम से भगवान् श्री गणेशजी और सूर्य भगवान् का पूजन करते हैं वह उत्तम गति को प्राप्त करते हैं, तथा जो शक्कर का दान करते हैं उन्हें यशस्वी संतान की प्राप्ति होती है।

माता लक्ष्मी और पार्वती को प्रसन्न करने के लिए चांदी के पात्र में हल्दी भर कर दान करनी चाहिये तथा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बैल का दान करना श्रेयस्कर है, चातुर्मास में फलों का दान करने से नंदन वन का सुख मिलता है, जो लोग नियम से एक समय भोजन करते हैं, भूखों को भोजन खिलाते हैं, स्वयं भी नियमवद्घ होकर चावल अथवा जौं का भोजन करते हैं, भूमि पर शयन करते हैं उन्हें अक्षय कीर्ती प्राप्त होती है।

इन दिनों में आंवले से युक्त जल से स्नान करना तथा मौन रहकर भोजन करना श्रेयस्कर है, श्रावण यानि सावन के महीने में साग एवम् हरि सब्जियां, भादों में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक में दालें खाना वर्जित है, किसी की निंदा चुगली न करें तथा न ही किसी से धोखे से उसका कुछ हथियाना चाहियें, चातुर्मास में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिये और कांसे के बर्तन में कभी भोजन नहीं करना चाहियें।

जो अपनी इन्द्रियों का दमन करता है वह अश्वमेध यज्ञ के फल को प्राप्त करता है, शास्त्रानुसार चातुर्मास एवं चौमासे के दिनों में देवकार्य अधिक होते हैं जबकि विवाह आदि उत्सव नहीं किये जाते, इन दिनों में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा दिवस तो मनाए जाते हैं परंतु नवमूर्ति प्राण प्रतिष्ठा व नवनिर्माण कार्य नहीं किये जाते, जबकि धार्मिक अनुष्ठान, श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ, श्री रामायण और श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ, हवन यज्ञ आदि कार्य अधिक होते हैं।

गायत्री मंत्र के पुरश्चरण व सभी व्रत सावन मास में सम्पन्न किए जाते हैं, सावन के महीने में मंदिरों में कीर्तन, भजन, जागरण आदि कार्यक्रम अधिक होते हैं, स्कन्दपुराण के अनुसार संसार में मनुष्य जन्म और विष्णु भक्ति दोनों ही दुर्लभ हैं, परंतु चार्तुमास में भगवान विष्णु का व्रत करने वाला मनुष्य ही उत्तम एवं श्रेष्ठ माना गया है।

चौमासे के इन चार मासों में सभी तीर्थ, दान, पुण्य, और देव स्थान भगवान् विष्णु जी की शरण लेकर स्थित होते हैं तथा चातुर्मास में भगवान विष्णु को नियम से प्रणाम करने वाले का जीवन भी शुभफलदायक बन जाता है, भाई-बहनों! चौमासे के इन चार महीनों में नियम से रहते हुयें, शुभ कार्य करते हुये, भगवान् श्री हरि विष्णुजी की भक्ति से जन्म जन्मांतरों के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करें।

जय श्री हरि!
हरि ओऊम् तत्सत्

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल आषाढ़ माह की शुरुआत 23 जून, 2024 को होगी। वहीं, इसका समापन 21 जुलाई, 2024 को होगा।आषाढ़ म...
23/06/2024

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल आषाढ़ माह की शुरुआत 23 जून, 2024 को होगी। वहीं, इसका समापन 21 जुलाई, 2024 को होगा।

आषाढ़ मास का नाम पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र ऊपर रखा गया है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन चंद्र इन दोनों नक्षत्रों के मध्य रहता है। जिसकी वजह से इस महीने को आषाढ़ कहा जाता है।


1. किसानों का माह : आषाढ़ माह से ही वर्षा ऋतु की विधिवत शुरुआत मानी जाती है। कृषि के लिए ये मास बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।

2. स्वच्छ जल ही पिएं : आषाढ़ माह में पौराणिक मान्यता के अनुसार इस माह में जल में जंतुओं की उत्पत्ति बढ़ जाती है अत: इस माह में जल की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

3. सेहत का रखें ध्यान : आषाढ़ माह में पाचन क्रिया भी मंद पड़ जाती है अत: इस मास में सेहत का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस मास ही नहीं बल्की अगले तीन माह तक सेहत का ध्यान रखना चाहिए। इस महीने में जल युक्त फल खाने चाहिए। आषाढ़ में बेल बिलकुल भी न खाएं।

4. विष्णु उपासना और दान : आषाढ़ मास में भगवान विष्णु की पूजा करने से पुण्य प्राप्त होता है। आषाढ़ मास के पहले दिन खड़ाऊं, छाता, नमक तथा आंवले का दान किसी ब्राह्मण को किया जाता है।

5. सो जाते हैं देव : इसी माह में देव सो जाते हैं। इसी माह में देवशयनी या हरिशयनी एकादशी होती है। इसी दिन से सभी तरह के मांगलिक और शुभ कार्य बंद हो जाते हैं।


6. चतुर्मास का माह : आषाढ़ माह से ही चतुर्मास प्रारंभ हो जाता है। चातुर्मास 4 महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। इस अवधि में यात्राएं रोककर संत समाज एक ही स्थान पर रहकर व्रत, ध्यान और तप करते हैं।

7. कामनापूर्ति का माह : इस महीने को कामना पूर्ति का महीना भी कहा जाता है। इस माह में जो भी कामना की जाती है उसकी पूर्ति हो जाती है। आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का महान उत्सव भी मनाया जाता है।वर्ष के इसी मास में अधिकांश यज्ञ करने का प्रावधान शास्त्रों में बताया गया है।
8. गुप्त नवरात्रि का माह : वर्ष में चार नवरात्रि आती है:- माघ, चैत्र, आषाढ और अश्विन। चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी या बसंत नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी या शारदीय नवरात्रि कहते हैं। दोनों के बीच 6 माह की दूरी है। बाकी बची दो आषाढ़ और माघ माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। आषाढ़ माह में तंत्र और शक्ति उपासना के लिए 'गुप्त नवरात्रि' होती है।

9. मंगल और सूर्य की पूजा : इस माह में विष्णुजी के साथ ही जल देव की उपासना से धन की प्राप्ति सरल हो जाती है और मंगल एवं सूर्य की उपासना से ऊर्जा का स्तर बना रहता है। इसके अलावा देवी की उपासना भी शुभ फल देती है।

10. गुरु पूर्णिमा का महत्व : आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को बहुत ही खास माना जाता है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को ही गुरु पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

मान्यता है कि इस मास तप, ध्यान, पूजा पाठ करने से व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान, सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही हर तरह के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही इस माह में दान देने से कई गुना अधिक फलों की प्राप्ति होती है।

कैलाश पर्वत एक अनसुलझा रहस्य, कैलाश पर्वत के रहस्य- कैलाश पर्वत, इस एतिहासिक पर्वत को आज तक हम सनातनी और भारतीय लोग शिव ...
17/05/2024

कैलाश पर्वत एक अनसुलझा रहस्य,

कैलाश पर्वत के रहस्य- कैलाश पर्वत, इस एतिहासिक पर्वत को आज तक हम सनातनी और भारतीय लोग शिव का वास स्थान मानते हैं. शास्त्रों में यही लिखा है कि कैलाश पर शिव का वास है. किन्तु वहीँ नासा जैसी वैज्ञानिक संस्था के लिए कैलाश एक रहस्यमयी जगह है. नासा के साथ-साथ कई रूसी वैज्ञानिकों ने कैलाश पर्वत पर अपनी रिपोर्ट पेश की है.

सभी का मानना है कि कैलाश वाकई कई अलौकिक शक्तियों का केंद्र है. विज्ञान यह दावा तो नहीं करता है कि यहाँ शिव देखे गये हैं किन्तु यह सभी मानते हैं कि यहाँ कई पवित्र शक्तियां जरुर काम कर रही हैं. तो आइये आज हम आपको कैलाश पर्वत से जुड़े हुए कुछ रहस्य बताते हैं- कैलाश पर्वत के रहस्य

रहस्य 1– रूस के वैज्ञानिको का ऐसा मानना है कि कैलाश पर्वत आकाश और धरती के साथ इस तरह से केंद्र में है जहाँ चारों दिशाएँ मिल रही हैं. वहीँ रूसी विज्ञान का दावा है कि यह स्थान एक्सिस मुंडी है और इसी स्थान पर व्यक्ति अलौकिक शक्तियों से आसानी से संपर्क कर सकता है. धरती पर यह स्थान सबसे अधिक शक्तिशाली स्थान है.

रहस्य 2- दावा किया जाता है कि आज तक कोई भी व्यक्ति कैलाश पर्वत के शिखर पर नहीं पहुच पाया है. वहीँ 11 सदी में तिब्बत के योगी मिलारेपी के यहाँ जाने का दावा किया जाता है किन्तु इस योगी के पास इस बात के सबूत नहीं थे या फिर वह खुद सबूत पेश नहीं करना चाहता था इसलिए यह भी रहस्य है कि इन्होनें यहाँ कदम रखा या फिर वह कुछ बताना नहीं चाहते थे.

रहस्य 3- कैलाश पर्वत पर दो झीलें हैं और यह दोनों ही रहस्य बनी हुई हैं. आज तक इनका भी रहस्य कोई खोज नहीं पाया है. एक झील साफ़ और पवित्र जल की है. इसका आकार सूर्य के बराबर बताया गया है. वहीँ दूसरी झील अपवित्र और गंदे जल की है तो इसका आकार चन्द्रमा के समान है. ऐसा कैसे हुआ है यह भी कोई नहीं जानता है.

रहस्य 4- अब यहाँ के आध्यात्मिक और शास्त्रों के अनुसार रहस्य की बात करें तो कैलाश पर्वत पर कोई भी व्यक्ति शरीर के साथ उच्चतम शिखर पर नहीं पहुच सकता है. ऐसा बताया गया है कि यहाँ देव लोग आज भी वास करते हैं. पवित्र संतों की आत्माओं को ही यहाँ वास करने का अधिकार दिया गया है.

रहस्य 5- कैलाश पर्वत का एक रहस्य यह भी बताया जाता है कि जब कैलाश पर बर्फ पिघलती है तो यहाँ से डमरू जैसी आवाज आती है. इसे कई लोगों ने सुना है. लेकिन इस रहस्य को आज तक कोई हल नहीं कर पाया है.

रहस्य 6– कई बार कैलाश पर्वत पर सात तरह की लाइट आसमान में देखी गयी है. नासा का ऐसा मानना है कि यहाँ चुम्बकीय बल है और आसमान से मिलकर वह कई बार इस तरह की चीजों का निर्माण करता है.

रहस्य 7- कैलाश पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्म का केंद्र माना गया है. यहाँ कई साधू और संत अपने देवों से टेलीपेथी तकनीक से संपर्क करते हैं. असल में यह आध्यात्मिक संपर्क होता है.

रहस्य 8- कैलाश पर्वत का सबसे बड़ा रहस्य खुद विज्ञान ने साबित किया है कि यहाँ प्रकाश और ध्वनी की बीच इस तरह का समागम होता है कि यहाँ से ॐ की आवाजें सुनाई देती हैं.

तो अब आप समझ गये होंगे कि कैलाश पर्वत क्यों आज भी इतना धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व रखे हुए है. हर साल यहाँ दुनियाभर से कई लोग अनुभव लेने आते हैं और वहीँ सनातन धर्म के लिए कैलाश सबसे बड़ा धार्मिक स्थल भी बना हुआ है l

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नहाने के समय यदि यहां बताए गए इन वस्तुओं को मिलाकर व्यक्ति नहाता है तो उसे कभी भी आर्थिक परेशा...
26/04/2024

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नहाने के समय यदि यहां बताए गए इन वस्तुओं को मिलाकर व्यक्ति नहाता है तो उसे कभी भी आर्थिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता. ऐसे में आइए विस्तार में इन खास वस्तुओं के बारे में जानें.*

हर व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि उस पर मां लक्ष्मी के साथ कुबेर देवता का आशीर्वाद बना रहे. जिससे कि उसे कभी आर्थिक परेशानी का सामना ना करना पड़े.

वहीं अगर वह व्यक्ति से नाराज हो जाए तो आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में व्यक्ति को कुबेर देवता और मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए नहाने के पानी में कुछ ऐसी खास वस्तुओं को मिलाना होगा, जिससे कि सालों उनकी तिजोरी भरी रहे. आइए विस्तार में नहाने के पानी में मिलाए जाने वाली इन खास वस्तुओं के बारे में जानें.

⚜️१. नमक

ज्योतिष शास्त्र की मानें तो यदि व्यक्ति सप्ताह में दो दिन नमक के पानी से नहाता है तो उस पर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. यदि व्यक्ति मंगलवार और शनिवार के दिन नमक के पानी से स्नान करता है तो मां लक्ष्मी के साथ कुबेर देवता का आशीर्वाद बना रहता है. नमक के पानी से लगातार व्यक्ति ६ महीने स्नान करता है तो उसे सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे.

⚜️२. दूध
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि व्यक्ति सोमवार के दिन नहाने के पानी में थोड़ा सा दूध डाल कर स्नान करता है तो उसे मानसिक शांति मिलती है. साथ ही उसका घर हमेशा धन से भरा रहेगा. इसके अलावा भगवान शिव के कृपा से सभी रोग भी दूर हो जाते हैं.

⚜️३. इत्र
शुक्रवार वाले दिन व्यक्ति अगर नहाने वाले पानी में इत्र मिला कर नहाता है तो कुबेर देवता की कृपा से जीवन में तरक्की होने लगती है. साथ ही व्यक्ति की तिजोरी सालों भर भरी रहती है.

⚜️४. हल्दी
ज्योतिष शास्त्र की माने तो गुरुवार वाले दिन यदि व्यक्ति हल्दी वाले पानी से स्नान करता है तो कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होता है. यदि व्यक्ति इस उपाय को तीन महीने तक करता है तो धन दौलत में वृद्धि होने लगेगी.

⚜️5. नमक और हल्दी
यदि व्यक्ति शनिवार वाले दिन नहाने वाले पानी में नमक और हल्दी मिलाकर स्नान करता है तो इससे शनि महाराज काफी प्रसन्न हो जाते हैं. साथ ही कुबेर देवता और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है

"खूनी नीलम "रत्न ज्योतिष में खूनी नीलम के बारे में भी विवरण मिलता है। इस नीलम में लाल धब्बे खून के रंग के तरह के देखने क...
13/04/2024

"खूनी नीलम "
रत्न ज्योतिष में खूनी नीलम के बारे में भी विवरण मिलता है। इस नीलम में लाल धब्बे खून के रंग के तरह के देखने को मिलते हैं कभी कभी इस पत्थर में लाल खून के रंग की परछाहीं भी देखने को मिलती है। ज्योतिषीय मतानुसार इस रत्न को बेहद सावधानी से ही धारण करना चाहिए, वो भी पूर्ण कुंडली के विश्लेषण के बाद अन्यथा आपको नुकसान से कोई भी नहीं बचा सकता। ऐसा माना जाता है की इस रत्न में शनि और मंगल दोनों के प्रभाव उतपन्न करने की शक्ति होती है। जिनके कुंडली में शनि एवं माँगा दोनों ही लाभप्रद स्थिति में हो उसे ही इस रत्न को धारण करना चाइये। इसके अलावा शनि एवंम मंगल के लाभप्रद फल प्राप्ति लिए इसे पहना जा सकता है.

पहाड़ों पर ही क्यों बनाए गए अधिकांश देवी मंदिर.......देवी के बहुत से ऐसे मंदिर हैं जो पहाड़ों पर बने हुए हैं। देवी के अल...
17/12/2023

पहाड़ों पर ही क्यों बनाए गए अधिकांश देवी मंदिर.......

देवी के बहुत से ऐसे मंदिर हैं जो पहाड़ों पर बने हुए हैं। देवी के अलावा और भी देवताओं के मंदिर पहाड़ों पर बनाए गए हैं जैसे- बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि। पहाड़ों पर मंदिर बनाने के पीछे भी एक विशेष कारण है।

पहाड़ों पर मंदिर बनाने का पहला कारण...........

पहाड़ी पर बने मंदिरों का स्वरूप कुछ-कुछ पिरामिड से मेल खाता है। ग्रीक भाषा में पायर शब्द का अर्थ है अग्नि। पिरामिड का अर्थ है, जिसके मध्य में अग्नि है वह वस्तु।

अग्नि एक प्रकार की ऊर्जा है। अतः पिरामिड का सही अर्थ हुआ- जिसके मध्य में अग्निमय ऊर्जा बहती है। वैज्ञानिक शोधों से भी पता चला है कि पहाड़ी स्थानों पर पॉजिटिव एनर्जी का स्तर आमतौर पर ज्यादा होता है।
जब लोग पहाड़ों पर दर्शन के लिए जाते हैं तो उस पॉजिटिव एनर्जी का असर उनके मनो-मस्तिष्क पर भी होता है। और उनके मन स्पिरिचुअल (आध्यात्मिक) भाव जागते हैं।

पहाड़ों पर मंदिर बनाने का दूसरा कारण...........

प्राचीन भारत के ऋषि मुनि जानते थे कि आने वाले समय में मनुष्य अपनी सुविधा के लिए जंगल आदि सभी नष्ट कर देंगे, ऐसी स्थिति में योग साधना के लिए स्थान शेष नहीं बचेंगे।

मनुष्य रहने के लिए समतल भूमि पर उपयोग करेंगे, ये भी ऋषि-मुनि जानते थे, इसलिए उन्होंने मंदिर के लिए पहाड़ों को चुना। यहां आकर योगी अपनी साधना आसानी से कर सकते हैं, क्योंकि यहां एकांत होता है।
काम कैसा भी हो, उसे पूरा करने के लिए एकाग्रता होनी बहुत जरूरी है। साधना के लिए मन एकाग्र नहीं चाहिए। यह काम एकांत में ही संभव है।

पहाड़ों पर मंदिर बनाने का तीसरा कारण.........

इसके अतिरिक्त एक कारण ये भी है कि पहाड़ों पर प्राकृतिक सौंदर्य अपने मूल रूप में होता है, जो जीवन में ताजगी लाता है।

जब लोग पहाड़ों पर दर्शन के लिए आते हैं तो उन्हें प्राकृतिक सौंदर्य देखने को मिलता है, जो अन्य कहीं देखना संभव नहीं है।

लाभ पंचमी आज*****************दीपावली के बाद लाभ पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन शिव परिवार, मां लक्ष्मी की पूजा के साथ न...
17/11/2023

लाभ पंचमी आज
*****************
दीपावली के बाद लाभ पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन शिव परिवार, मां लक्ष्मी की पूजा के साथ नए व्यापार की शुरुआत करना शुभ माना जाता है।

दीपावली के त्योहार की शुरुआत धनतेरस से होती है और रोशनी के इस त्योहार का अंतिम दिन लाभ पंचमी के रूप में मनाया जाता है। लाभ पंचमी को सौभाग्य पंचमी, ज्ञान पंचमी और लाभ पंचम के नाम से भी जाना जाता है।

मान्यता है इस दिन शिव परिवार और माता लक्ष्मी की पूजा करने से समस्त विघ्नों का नाश होता है और अपने नाम स्वरूप ये तिथि लाभ प्रदान करती है।

लाभ पंचमी की तिथि
================
इस साल लाभ पंचमी 18 नवंबर 2023 शनिवार को है। गुजरात में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। बिजनेस करने वाले लोग इस दिन भी शुभ मुहूर्त में अपना प्रतिष्ठान खोलना पसंद करते है। ये तिथि सुख और समृद्धि बढ़ाती है। प्रगति होती है।

लाभ पंचमी का मुहूर्त
===============
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 17 नवंबर 2023 को सुबह 11 बजकर 03 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 18 नवंबर 2023 को सुबह 09 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी।

प्रातःकाल लाभ पञ्चमी की पूजा का मुहूर्त - सुबह 06:45 - सुबह 10:19

Address

B-29 GEETANJALI ENCLAVE, GROUND FLOOR, NEW DELHI
Delhi
110017

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when RG-World of astrologer & Tarot Rrachita posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Practice

Send a message to RG-World of astrologer & Tarot Rrachita:

Share

Share on Facebook Share on Twitter Share on LinkedIn
Share on Pinterest Share on Reddit Share via Email
Share on WhatsApp Share on Instagram Share on Telegram