काया कल्प आयुर्वेद

काया कल्प आयुर्वेद Yoga and Ayurveda

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09/07/2020

People buy all the expensive and fancy products these days to lose weight and stay in shape. Companies claim these products are loaded with fat-burning substances and having these products can make people slim in no time.

Weight loss shakes, supplements, pills - you name it and there is a product in the market claiming to be magical.

What if we tell you, you don’t need all these fancy products. What if we tell you there is a product which is natural, way cheaper than all these fancy products and is easily available almost everywhere. What if we tell you it has way more Vitamin C than an Orange.

It is PAPAYA.

Yes, you read it right. It is papaya and it is full of nutrients.

Papaya is one of the easiest and cheapest available fruit across countries. It is available mostly throughout the year these days.

It is incredibly healthy. Loaded with antioxidants, papaya not only makes you look younger but also boost your immunity.

Here is what 100 gms of papaya has -

-Calories: 59
-Carbohydrates: 15 grams
-Fiber: 3 grams
-Vitamin C: 157% of the RDI
-Vitamin A: 33% of the RDI
-Folate (vitamin B9): 14% of the RDI
-Potassium: 11% of the RDI

It is low in calories. It is a much better snack that your favourite cookies and which have almost 10 times more calories.

It is an amazing source of Vitamin C and has almost twice the amount of Vitamin C than an orange.

It is a great source of Vitamin A. It is amazing for your eyes.

It is a good source of Folate which helps in digestion and your mental health.

It is a good source of Potassium. It regulates fluid balance and reduces blood pressure in your body.

Some of the other benefits of consuming papaya are -
It has anti-cancer properties
it is good for your heart health
it boosts immunity
it protects you against skin damage

There is a myth that pregnant ladies should avoid papaya. Here is the reality - Unripened Papaya contains a chemical called papain which can be harmful to pregnant women. Ripened papaya doesn’t have Papain and it can be consumed by all.

Bottomline
Papaya is an underrated fruit. Today’s media pushes your o buy expensive products and powders and even expensive imported fruits. You don’t need them. Our home-based desi foods and fruits are more than enough to meet our daily nutritional requirements. Papaya is one such great fruit. It can be consumed as salad, it makes a great smoothie or even puddings. Or simply add it in curd to make delicious papaya raita.

04/04/2020

Researchers from IIT-M, Indian Association for the Cultivation of Science have developed a new route by which curcumin, turmeric’s medicinal chemical, can be incorporated into drug nanoformulations.

24/03/2020

रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) की जब बात हो तो गिलोय (GILOY) से बेहतर कुछ भी नहीं।। आयुर्वेद की अमृता गिलोय।। हर पत्ते में आपको स्वस्थ बनाने की क्षमता।।
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19/12/2019
14/12/2019

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02/07/2019

आयुर्वेद में भी होती है सर्जरी

भारत में आज भले ही आयुर्वेद लोगों की पहली पसंद न हो, लेकिन एक वक्त था जब यहां एलोपैथी का नाम तक नहीं था। लोग आयुर्वेद से ही सभी तरह का इलाज कराते थे। इसमें सर्जरी भी शामिल थी। ईसा पूर्व छठी सदी (आज से लगभग 2500 साल पहले) में धंवंतरि के शिष्य सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता की रचना की जबकि एलोपैथी में मॉडर्न सर्जरी की शुरुआत 17-18वीं सदी में मान सकते हैं। आयुर्वेदिक सर्जरी से जुड़ी तमाम जानकारी दे रहे हैं :Dr.Jitender GiLL(Member Council of Indian Medicine)

बेशक आयुर्वेद भारत का बहुत ही पुराना इलाज का तरीका है। जड़ी-बूटियों, मिनरल्स, लोहा (आयरन), मर्करी (पारा), सोना, चांदी जैसी धातुओं के जरिए इसमें इलाज किया जाता है। हालांकि कुछ लोग ही इस बात को जानते हैं कि आयुर्वेद में सर्जरी (शल्य चिकित्सा) का भी अहम स्थान है। सुश्रुत संहिता में स्पेशलिटी के आधार पर आयुर्वेद को 8 हिस्सों में बांटा गया है:
1. काय चिकित्सा (मेडिसिन): ऐसी बीमारियां जिनमें अमूमन दवाई से इलाज मुमकिन है, जैसे विभिन्न तरह के बुखार, खांसी, पाचन संबंधी बीमारियां
2. शल्य तंत्र (सर्जरी): वे बीमारियां जिनमें सर्जरी की जरूरत होती है, जैसे फिस्टुला, पाइल्स आदि
3. शालाक्य तंत्र (ENT): आंख, कान, नाक, मुंह और गले के रोग
4. कौमार भृत्य (महिला और बच्चे): स्त्री रोग, प्रसव विज्ञान, बच्चों को होने वाली बीमारियां
5. अगद तंत्र (विष विज्ञान): ये सभी प्रकार के विषों, जैसे सांप का जहर, धतूरा आदि जैसे जहरीले पौधे का शरीर पर पड़ने वाले असर और उनकी चिकित्सा का विज्ञान है।
6. रसायन तंत्र (रीजूवनेशन और जेरियट्रिक्स): इंसानों को स्वस्थ कैसे रखा जाए और उम्र का असर कैसे कम हो।
7. वाजीकरण तंत्र (सेक्सॉलजी): लंबे समय तक काम शक्ति (सेक्स पावर) को कैसे संजोकर रखा जाए।
8. भूत विद्या (साइकायट्री): मनोरोग से संबंधित।

सर्जरी शुरुआत से ही आयुर्वेद का एक खास हिस्सा रहा है ।
महर्षि चरक ने जहां चरक-संहिता को काय-चिकित्सा (मेडिसिन) के एक अहम ग्रंथ के रूप में बताया है, वहीं महर्षि सुश्रुत ने शल्य-चिकित्सा (सर्जरी) के लिए सुश्रुत संहिता लिखी। इसमें सर्जरी से संबंधित सभी तरह की जानकारी उपलब्ध है।

सर्जरी के 3 भाग बताए गए हैं:
1. पूर्व कर्म (प्री-ऑपरेटिव)
2. प्रधान कर्म (ऑपरेटिव)
3. पश्चात कर्म (पोस्ट-ऑपरेटिव)

इन तीनों प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए 'अष्टविध शस्त्र कर्म' (आठ विधियां) करने की बात कही गई है:
1. छेदन (एक्सिजन): शरीर के किसी भाग को काट कर निकालना
2. भेदन (इंसिजन): किसी भी तरह की सर्जरी के लिए शरीर में चीरा लगाना
3. लेखन (स्क्रैपिंग): शरीर के दूषित भाग को खुरच कर दूर करना
4. वेधन (पंक्चरिंग): शरीर के फोड़े से पूय (पस) या दूषितद्रव लिक्विड को सुई से छेद करके निकालना
5. ऐषण (प्रोबिंग): भगंदर जैसी बीमारियों को जांचना। इसमें टेस्ट के लिए धातु के उपकरण एषणी (प्रोब)की मदद ली जाती है।
6. आहरण (एक्स्ट्रक्सन): शरीर में पहुंचे किसी भी तरह के बाहरी पदार्थ को औजार से खींचकर बाहर निकालना, जैसे: गोली, पथरी या दांत
7. विस्रावण (ड्रेनेज): पेट, जोड़ों या फेफड़ों में भरे अतिरिक्त पानी को सुई की मदद से बाहर निकालना
8. सीवन (सुचरिंग): सर्जरी के बाद (शरीर में चोट लगने से कटे-फटे अंग और त्वचा) को वापस उसी जगह पर जोड़ देना

इनके अलावा, घाव कितने तरह के होते हैं, सीवन (घाव सीने या कटे अंगों को जोड़ने) में इस्तेमाल होने वाला धागा कैसा होना चाहिए, सीवन कितने तरह की होती हैं और सीवन का काम किस प्रकार से करें, ये सभी बातें बहुत ही विस्तार से सुश्रुत संहिता मे समझाई गई हैं।
जाहिर है, जब सर्जरी होती है तो इसमें सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स की भी जरूरत होगी। सुश्रुत ने 101 तरह के यंत्रों के बारे में बताया है। विभिन्न प्रकार की चिमटियां (फोरसेप्स) और दर्शन यंत्र (स्कोप्स) शामिल हैं। ताज्जुब की बात है कि सुश्रुत ने चिमटियों का जो वर्णन विभिन्न पशु-पक्षियों के मुंह की आकृति के आधार पर किया था, वे औजार आज भी उसी प्रकार से वर्गीकृत हैं। इन औजारों का उपयोग मॉडर्न मेडिसिन के सर्जन जरूरत के हिसाब से वैसे ही कर रहे हैं, जैसा पहले आयुर्वेद के सर्जन करते थे।
कौन-कौन-सी सर्जरी किन-किन बीमारियों में करनी चाहिए, यह वर्णन भी सुश्रुत संहिता में किया गया है। बड़ी सर्जरी जैसे उदर विपाटन (लेप्रोटमी) किन रोगों में करें और छोटी या बड़ी आंत (स्मॉल या लार्ज इंटस्टाइन) में छेदन (एक्सिजन), भेदन (इंसिजन) करने के बाद उनका मिलान और सीवन (घाव को सीने का काम) किस प्रकार से करें और चीटों का इस्तेमाल कैसे करें, इसके बारे में भी सुश्रुत संहिता में उल्लेख है।

आयुर्वेदिक सर्जरी की खासियत
खून में होने वाली गड़बड़ी को आयुर्वेद में बीमारियों का सबसे अहम कारण माना गया है। इन्हें दूर करने के दो उपाय बताए गए हैं: पहला है, सिर्फ दवाई लेना और दूसरा दवाई के साथ खून की सफाई (रक्त-मोक्षण)। दूषित रक्त को हटाना सर्जरी की एक प्रक्रिया है। इसके लिए आयुर्वेद में खास विधि अपनाई जाती है।

लीच थेरपी
आयुर्वेद में खून की सफाई के लिए जलौकावचरण (लीच थेरपी) का विस्तार से वर्णन किया गया है। जैसे: किस तरह के घाव में जलौका यानी जोंक (लीच) का उपयोग करना चाहिए, यह कितने प्रकार की होती है, जलौका किस प्रकार से लगानी चाहिए और उन्हें किस तरह रखा जाता है, ऐसे सभी सवालों के जवाब हमें सुश्रुत संहिता में मिलते हैं। आर्टरीज और वेन्स में खून का जमना और पित्त की समस्या से होने वाले बीमारी, जैसे: फोड़े, फुंसियों और त्वचा से जुड़ी परेशानियों में लीच थेरपी से जल्दी फायदा होता है।
दरअसल, जलौका दो तरह के होते हैं: सविष (विषैली) और निर्विष (विष विहीन)। चिकित्सा के लिए निर्विष जलौका का प्रयोग किया जाता है। इन दोनों को देखकर भी पहचाना जा सकता है। निर्विष जलौका जहां हरे रंग की चिकनी त्वचा वाली और बिना बालों वाली होती है। सविष जलौका गहरे काले रंग का और खुरदरी त्वचा वाला होता है। इस पर बाल भी होती हैं। अमूमन निर्विष जलौका साफ बहते हुए पानी में मिलती हैं, जबकि सविष जलौका गंदे ठहरे हुए पानी और तालाबों में पाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि जलौका दूषित रक्त को ही चूसती है, शुद्ध रक्त को छोड़ देती है। जलौका (लीच) लगाने की क्रिया सप्ताह में एक बार की जाती है। इस प्रक्रिया में मामूली-सा घाव बनता है, जिस पर पट्टी करके उसी दिन रोगी को घर भेज दिया जाता है।

प्लास्टिक सर्जरी
प्राचीन काल में युद्ध तलवारों से होते थे और अक्सर योद्धाओं की नाक या कान कट जाते थे। कटे हुए कान और नाक को फिर से किस प्रकार से जोड़ा जाए, इस प्रक्रिया की पूरी जानकारी सुश्रुत संहिता में दी गई है। इसके लिए संधान कर्म (प्लास्टिक सर्जरी) की जाती थी।
इन्हीं खासियतों की वजह से महर्षि सुश्रुत को 'फादर ऑफ सर्जरी' भी कहा जाता है। फिलहाल आयुर्वेद में प्लास्टिक सर्जरी चलन में बहुत कम है।

क्षार सूत्र चिकित्सा: ब्लड लेस सर्जरी का एक प्रकार
शरीर के कई ऐसे हिस्से हैं जिन पर सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स से सर्जरी नहीं करने की बात कही गई है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए गुदा (एनस) में होने वाली समस्याएं, जैसे: अर्श या बवासीर (पाइल्स) और भगंदर (फिस्टुला) में 'क्षार सूत्र चिकित्सा' का इस्तेमाल बहुत कामयाब रहा है। इस इलाज में मरीज को अपने काम से छुट्टी भी नहीं लेनी पड़ती क्योंकि कोई बड़ा जख्म नहीं बनता और खून भी नहीं निकलता। यह ब्लडलेस सर्जरी का बेहतरीन उदाहरण है।
यह सच है कि जब से ऐनिस्थीसिया की खोज हुई है, शरीर के किसी भी हिस्से की सर्जरी करना आसान हो गया है, लेकिन एनस जैसी जगहों पर सर्जरी से मिलने वाली कामयाबी को लेकर अभी निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। यही वजह है कि आयुर्वेद में फिस्टुला या पाइल्स के मामले में सर्जरी इंस्ट्रूमेंट्स (औजारों) की मदद से नहीं बल्कि क्षार (ऐल्कली) की जाती है। क्षार की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह औजार न होते हुए भी किसी अंग को काटने, हटाने की उतनी ही क्षमता रखता है जितना कि कोई सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट।

क्या होते हैं क्षार (ऐल्कली)?
इस काम के लिए कुछ खास औषधीय पौधों का प्रयोग किया जाता है, जैसे: अपामार्ग (लटजीरा), यव, मूली, पुनर्नवा, अर्क
इनमें से जिस भी पौधे का क्षार बनाना हो, उसके पंचांग (पौधे के सभी 5 भाग: जड़, तना, पत्ती, फूल और फल) को सबसे पहले धोकर सुखा लिया जाता है। इसके बाद इनके छोटे-छोटे टुकड़े करके एक बड़े बर्तन में रखकर उसको जला लेते हैं।
जलाने में किसी प्रकार का ईंधन या दूसरी चीजों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। पौधे के टुकड़ों को जला दिया जाता है।
जलने के बाद बनी राख को 8 गुने जल में घोला जाता है। इसके बाद महीन कपड़े से कम से कम 21 बार छानकर उसे तब तक उबाला जाता है जब तक कि पूरा पानी भाप न बन जाए। इसके बाद बर्तन में नीचे जो लाल या भूरे रंग का पाउडर बचता है, उसे ही क्षार कहते हैं। बर्तन से उसे खुरचकर और थोड़ा पीसकर किसी कांच की शीशी में इस तरह से जमा किया जाता है कि उसका संपर्क हवा से पूरी तरह से खत्म हो जाए क्योंकि क्षार हवा की नमी सोखकर अपना असर खो देते हैं।

कितने तरह के क्षार?
क्षार दो तरह के होते हैं। जिनका प्रयोग औषधि के रूप में खाने के लिए किया जाता है उन्हें पानीय (खाने लायक) क्षार कहते हैं। जिनका इस्तेमाल घाव या किसी अंग विशेष पर किया जाता है, उन्हें प्रतिसारणीय (शरीर पर लगाने वाले) क्षार कहते हैं। क्षार सूत्र बनाने के लिए शरीर पर लगाने वाले क्षारों यानी प्रतिसारणीय क्षार का प्रयोग किया जाता है।

क्या होता है क्षार सूत्र और ये कैसे बनाए जाते हैं?
पक्के धागे पर क्षार की लगभग 21 परतें चढ़ाकर जो सूत्र या धागा बनाया जाता है उसे ही क्षार सूत्र कहते हैं। इसका इस्तेमाल सर्जरी में किया जाता है।
क्षार सूत्र बनाने के लिए मुख्य रूप से 4 चीजों की जरूरत पड़ती है:
1. पक्का धागा
2. धागा बांधने के लिए एक फ्रेम
3. औषधियां
4. स्पेशलिस्ट

औषधियां: स्नुही दूध (कैक्टस के पौधे से निकला हुआ लिक्विड), उपरोक्त में से कोई भी क्षार (बेस) और हल्दी पाउडर।
सबसे पहले स्पेशलिस्ट सुबह में स्नुही यानी कैक्टस के कांटेदार पौधे के तने पर चाकू से सावधानीपूर्वक तेज चीरा लगाता है। चीरा लगाते ही तने से दूध निकलने लगता है जिसे कांच की शीशी में इकट्ठा कर लिया जाता है। एक फ्रेम पर धागा कस कर पहले ही रख लिया जाता है। करीब 50 ml दूध में रुई को डुबोकर फ्रेम पर लगे धागे पर 10 बार लगाया जाता है। हर बार दूध लगाने के बाद धागे को धूप में रख कर सुखा लेते हैं, फिर उसी पर दूसरा लेप लगाते हैं। इसके बाद 7 बार दूध लगाकर फिर क्षार के पाउडर को धागे के ऊपर लगा कर सुखा लिया जाता है। अंत में 4 बार दूध, फिर क्षार और हल्दी, तीनों को धागे के ऊपर लगाकर तेज धूप में सुखा लिया जाता है और फिर फ्रेम पर से उतार लिया जाता है। करीब 1 फुट लंबे धागे को काटकर कांच की परखनली में रख लिया जाता है। इस परखनली को अच्छी तरह से सील कर दिया जाता है ताकि उसमें हवा न घुस सके। यह काम विशेषज्ञ सर्जरी में इस्तेमाल होने वाले दस्ताने पहनकर करता है क्योंकि स्नुही दूध और क्षार काफी तेज होते हैं। इनमें त्वचा (स्किन) को काटने की क्षमता होती है। विकल्प के तौर पर बढ़िया क्वॉलिटी की पॉलिथीन की थैली में भी क्षार सूत्र को अच्छी तरह से सील करके रखा जा सकता है।
आजकल क्षार सूत्र बनाने में काफी प्रगति हुई है। केंद्रीय आयुर्वेदिक अनुसंधान केंद्र ने आईआईटी, दिल्ली के सहयोग से क्षार सूत्र बनाने की ऑटोमैटिक मशीन तैयार की है, जिसकी सहायता से काफी कम समय में क्षार सूत्र तैयार किए जा सकते हैं।

किन बीमारियों में क्षार सूत्र का इस्तेमाल
क्षार सूत्र का इस्तेमाल अर्श या बवासीर (पाइल्स) और भगंदर (फिस्टुला) जैसी बीमारियों में किया जाता है। यह सर्जरी कहलाती है और इस काम को आयुर्वेदिक सर्जन ही अंजाम देते हैं। अच्छी बात यह है कि इस इलाज में किसी प्रकार की काट-छांट नहीं होती, न ही खून निकलता है।
दूसरी बीमारियां, जिनमें क्षार सूत्र का प्रयोग किया जाता है, वे हैं: नाड़ीवण (साइनस), त्वचा पर उगने वाले मस्से और कील। नाक के अंदर होने वाले मस्से में भी क्षारों का प्रयोग किया जाता है जिससे वे धीरे-धीरे कटकर नष्ट हो जाते हैं। त्वचा पर होने वाले उभार या ग्रंथियों को भी क्षार सूत्र से बांध कर नष्ट किया जा सकता है।

बवासीर में क्षार सूत्र ट्रीटमेंट
बवासीर में गुदा (एनस) में जो मस्से बन जाते हैं, उनकी जड़ को क्षार सूत्र से कसकर बांध दिया जाता है जिससे वे खुद ही सूख कर गिर जाते हैं। ये काम दो प्रकार से होते हैं। मस्से अगर बड़े हैं तो सर्जन एनस के बाहर (बाह्य अर्श या एक्सटर्नल पाइल्स) और अंदर वाले अर्श (इंटरनल पाइल्स) की जड़ों में क्षार सूत्र को बांध देते हैं। लेकिन अगर मस्से की जड़ें छोटी हैं या फिर ज्यादा अंदर की तरफ हैं तो क्षार सूत्र को अर्धचंद्राकार सुई में पिरोकर उसे मस्से की जड़ों के आर-पार करके जड़ की चारों ओर कसकर बांध दिया जाता है। इस काम में लोकल ऐनिस्थीसिया की जरूरत होती है और कभी-कभी स्पाइनल या जनरल ऐनिस्थीसिया की भी। ऐसे में किसी ऐनिस्थीसिया स्पेशलिस्ट की मदद ली जाती है, जिससे क्षार सूत्र बांधने का काम सही तरीके से हो सके और मरीज को दर्द भी न हो।

फिस्टुला का इलाज
भगंदर यानी फिस्टुला में गुदा के आसपास पहले एक फोड़ा निकलता है। एलोपैथी में इसका इलाज यह है कि इस फोड़े में छेद करके पस को बाहर निकाल दिया जाता है, फिर छेदन करके उस हिस्से को काटकर अलग कर देते हैं। इसके बाद सामान्य तरीके से मरहम-पट्टी करके मरीज को छोड़ दिया जाता है। ऐसे घाव को भरने का समय घाव की लंबाई, चौड़ाई और गहराई के हिसाब से कुछ दिनों से लेकर हफ्तों या महीनों तक हो सकता है। कुछ मरीजों में एक बार ठीक होने के बाद समस्या फिर से उभर आती है और दोबारा सर्जरी की जरूरत पड़ती है। बार-बार सर्जरी की वजह से मरीज के एनल स्फिंक्टर के क्षतिग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाता है जिससे मरीज के मल को रोकने की शक्ति कम हो जाती है। ऐसे में फिस्टुला के इलाज के लिए बहुत ज्यादा सर्जरी भी नहीं की जा सकती। इस स्थिति में क्षार सूत्र-चिकित्सा काफी कामयाब है।
आयुर्वेद एक्स्ट्रा

मस्सों को हटाना मुमकिन
मस्सों की जड़ों में क्षारसूत्र को खास तरह की गांठ द्वारा बांधा जाता है। इसमें मस्सों को अंदर कर दिया जाता है और धागा बाहर की ओर लटकता रहता है। इसे बेंडेज द्वारा स्थिर कर दिया जाता है।
-मस्सों को हटाने में एक से दो हफ्ते का समय लग सकता है।
-इस दौरान क्षारसूत्र के जरिए दवाएं धीरे-धीरे मस्से को काटती रहती हैं और आखिरकार सुखाकर गिरा देती हैं। मस्से गिरने के साथ ही धागा भी अपने आप गिर जाता है। इसमें दर्द नहीं होता।
-इस दौरान मरीज को कुछ दवाओं का सेवन करने के लिए कहा जाता है और ऐसी चीजें ज्यादा खाने की सलाह दी जाती हैं जो कब्ज दूर करने में सहायक हों। इनके अलावा गर्म पानी की सिकाई और कुछ व्यायाम भी बताए जाते हैं।
-क्षारसूत्र चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती होने की भी जरूरत नहीं होती।

आयुर्वेदिक सर्जरी के बाद 10 बातें जो जरूर ध्यान रखें:
1. सर्जरी से पहले मरीज और उसके रिश्तेदारों को होने वाले सर्जरी और उसके नतीजे के बारे में पूरी जानकारी रखनी चाहिए।
2. सर्जरी के पहले और बाद में क्या नहीं खाना, खाना कब और कैसे शुरू करना है जैसी बातें आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से ही करनी चाहिए।
3. दवाई कब लेनी है, खाने के बाद लेनी है या पहले, अगर पहले लेनी है तो कितनी देर पेट खाली रहने के बाद, दवाई लेने के कितनी देर बाद खाना खाना है, जैसी बातों को अच्छी तरह से समझ लें।
4. सर्जरी के बाद जख्म की साफ-सफाई, पट्टी आदि डॉक्टर की देखरेख में ही करवाएं क्योंकि आपकी थोड़ी-सी जल्दबाजी और लापरवाही सर्जरी को असफल बना सकती है।
5. किसी भी प्रकार की एक्सरसाइज या शारीरिक मेहनत तब तक न करें जब तक कि आपका डॉक्टर इसकी इजाजत न दे।
6. फिजिकल रिलेशन बनाने में जल्दी न करें और डॉक्टर के निर्देशों का पालन करें।
7. शरीर की सफाई रखें और गर्मी में ठंडे पानी से और सर्दी में गर्म पानी से नहाएं।
8. कपड़े और बेड की चादर आदि को हर दिन बदलें ताकि इन्फेक्शन दूर रहे।
9. कार या बाइक चलाने की जल्दी न करें। पूरी तरह से ठीक होने तक इंतजार करें।
10. अपने सर्जन में, उनकी योग्यता में पूरा विश्वास रखें। सर्जरी के बाद होने वाली किसी भी समस्या जैसे, घाव से खून आने, भूख न लगने, बुखार हो जाने, दस्त होने, घाव में दर्द होने, पेशाब में परेशानी होने पर फौरन ही डॉक्टर से संपर्क करें।

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जरूरी सवालों के जवाब?

- किस तरह की सर्जरी आयुर्वेद से करनी चाहिए और किस तरह की नहीं?
किसी भी इलाज की विशेषता उसकी अपनी टेक्नॉलजी और दवाइयां होती हैं। बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी सर्जरी में भी आयुर्वेद के सर्जन आयुर्वेदिक से जुड़ी तकनीक और दवाओं का ही इस्तेमाल करते हैं। माना जाता है कि ऐसा कोई भी इलाज जिसमें दूसरी फील्ड के तरीकों और इलाज का इस्तेमाल करना पड़े, अपनी विशेषता खो देता है। जैसे यदि किसी मरीज को सर्जरी के दौरान किसी भी अवस्था में वेन्स के द्वारा (इंट्रा-वीनस) ग्लूकोज, वॉटर, मिनरल्स, ब्लड और दवाइयां देने की जरूरत पड़े तो यह आयुर्वेद के बुनियादी उसूलों के खिलाफ है। इस बात पर जोर दियाय जाता है कि जहां आयुर्वेद और एलोपैथी के बीच कोई फर्क ही न रहे, ऐसी सर्जरी आयुर्वेदिक सर्जन को नहीं करनी चाहिए। हां, लोकल एनिस्थीसिया या पूरी तरह से बेहोश करने की जरूरत हो तो सिर्फ मदद के तौर पर एलोपैथी के इस तरीके का इस्तेमाल के लिए विशेषज्ञ की सहायता ली जा सकती है।

- अगर कोई सर्जरी होती है तो आयुर्वेद में क्या इसके लिए कोई अतिरिक्त चुनौती भी है?
सर्जरी किसी भी तरह की हो चुनौती तो होती है, लेकिन आयुर्वेद की सर्जरी कम जोखिम वाली है।

- मान लें, किसी ने आयुर्वेदिक डॉक्टर से सर्जरी कराई। अगर कोई समस्या आ गई तो क्या वह दोबारा आयुर्वेदिक सर्जन के पास जाए या एलोपैथिक सर्जन के पास?
अमूमन आयुर्वेदिक सर्जरी के बाद होने वाली किसी भी समस्या के लिए पहले उसी आयुर्वेदिक सर्जन के पास जाना चाहिए, जिसने सर्जरी की है। ध्यान देने वाली बात यह है कि मरीज का सर्जन में विश्वास और सर्जन का खुद में विश्वास मरीज को जरूर फायदा पहुंचाता है। यही किसी भी इलाज की कामयाबी की चाबी है। कई बार ऐसा देखा जाता है कि मरीज को सब कुछ करने के बाद भी मॉडर्न सर्जन से फायदा नहीं मिल रहा है तो वह आयुर्वेदिक सर्जन के पास पहुंचता है। यहां भी फायदा न मिलने पर वह वापस एलोपैथिक सर्जन के पास चला जाता है। तो कहने का मतलब यह है कि मरीज को फायदा होना चाहिए और इसके लिए वह कहीं भी, किसी के भी पास जाने के लिए आजाद है। यह एक सामान्य चलन है।

- आयुर्वेद की सर्जरी एलोपैथी से अलग और बेहतर कैसे है?
आयुर्वेदिक सर्जरी और एलोपैथिक सर्जरी दोनों ही अपने आप में खास हैं। इनमें आपस में कोई कॉम्पिटिशन या विरोध नहीं है। आयुर्वेद की प्लास्टिक सर्जरी और क्षार सूत्र चिकित्सा को एलोपैथी ने खुशी से अपनाया है। आधुनिक एलोपैथिक सर्जन भी इन विधियों से मरीजों का इलाज कर रहे हैं। सर्जरी एक तकनीक है जो दोनों विधियों में लगभग सामान्य है। अगर कोई फर्क है तो वह दवाइयों का है जो सर्जरी के दौरान मरीज को दी जाती है और उन्हीं के आधार पर हम एक को आयुर्वेदिक सर्जरी और दूसरी को एलोपैथिक सर्जरी कहते हैं। इनमें कुछ अपवाद हैं, जैसे: क्षार सूत्र चिकित्सा, अग्नि कर्म, जलौका-लगाना और रक्त मोक्षण सिर्फ आयुर्वेद की खासियत हैं। वहीं, ऑर्गन ट्रांसप्लांट, बाईपास सर्जरी, लेजर और की-होल रोबॉटिक सर्जरी आदि एलोपैथी की खासियत हैं।

- क्या नहीं खाना और क्या खाना चाहिए?
इस विषय में डॉक्टर के निर्देशों का पालन करें। आयुर्वेद में अमूमन कम तेल और कम मिर्च-मसालों वाली चीजें ही खाने के लिए कहा जाता है। यदि मरीज को शुगर और हाई बीपी की समस्या है तो डॉक्टर ने जिस तरह का खाना बताया है, उसका पूरी तरह से पालन करना चाहिए। यह भी मुमकिन है कि डॉक्टर कुछ दिनों के लिए सिर्फ तरल पदार्थ लेने को कहे। ऐसे में डॉक्टर की कही गई बातों को जरूर मानें। वह जिस तरह का पेय लेने को कहे, वही लें। अपने मन से कुछ भी न लें।

Source - Fb Post Dr Jitendra Gill

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21/06/2019

* International Yoga Day is a reminder that we must keep our mental, emotional, spiritual and physical health before anything else and take some time out to nourish and nurture it with yoga. Wishing you and your loved ones a very

International Yoga Day.

20/12/2018

It’s claimed that people with diabetes could prevent high blood sugar symptoms by drinking tea. But how much tea should you consume per day?

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