Tanvvii Mahajan

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जब कोई साथ चलता है, तो सफ़र मीठा लगने लगता है…पर सच तो यह है कि ज़िन्दगी की रगों में धड़कनें किसी और की मौजूदगी से नहीं,...
26/11/2025

जब कोई साथ चलता है, तो सफ़र मीठा लगने लगता है…
पर सच तो यह है कि ज़िन्दगी की रगों में धड़कनें किसी और की मौजूदगी से नहीं, हमारी अपनी हिम्मत से चलती हैं।
जब कोई था, हम जी रहे थे—
अपनी उम्मीदों के सहारे, अपने सपनों के सहारे।
जब कोई नहीं था, तब भी हम जी ही रहे थे—
टूटे पलों को जोड़कर, खालीपन को सीने में छुपाकर।
और जब कोई नहीं रहेगा…
तब भी जीवन अपनी राह बनाएगा,
हम अपने आँसुओं की स्याही से फिर एक नया अध्याय लिख ही देंगे।
मन की धरती पर उगने वाली शक्ति
कभी किसी एक रिश्ते पर टिकी नहीं होती।
हम खुद ही अपनी डोर हैं,
खुद ही अपनी रोशनी, खुद ही अपना सहारा।
ज़िन्दगी का सत्य यही है—
लोग आते हैं और चले जाते हैं,
पर इंसान अपनी साँसों, अपने साहस,
और अपनी कहानी से जीता रहता है। ✨📖

20/11/2025
01/11/2025
01/11/2025
💔 डर का व्यापार — और कैसे तुम्हारे जज़्बातों का सौदा किया जाता है 💔आजकल डर सिर्फ़ एक एहसास नहीं रहा, वो एक व्यापार बन गय...
30/10/2025

💔 डर का व्यापार — और कैसे तुम्हारे जज़्बातों का सौदा किया जाता है 💔
आजकल डर सिर्फ़ एक एहसास नहीं रहा, वो एक व्यापार बन गया है — और सबसे दर्दनाक बात ये है कि वही लोग, जिनसे हम मदद की उम्मीद करते हैं, अक्सर हमारे डर का फायदा उठाते हैं।
कई बार डर को पैकेट में डालकर बेचा जाता है — और हम उन्हें लेना शुरू कर देते हैं, क्योंकि डर में हम साफ़ सोच नहीं पाते।

धर्म का डर:
कई बार धर्म के नाम पर डर पैदा कर दिया जाता है — “अगर तुम यह नहीं करोगे तो...” या “तेरे साथ अंजाम बुरा होगा।”
ये डर लोगों को दोषी बनाता है, उनकी आत्मा को असुरक्षित दिखाता है और फिर “समाधान” के नाम पर उनसे पैसे, समय या वफादारी माँगी जाती है। धर्म तो दिल को सुकून देता है — पर जब वह डर का हथियार बन जाए, तो वह इंसान से इंसानियत छीन लेता है।

अस्ट्रोलॉजर्स का डर:
किसी के ग्रह-नक्षत्र की बातें सुनकर लोग भविष्य के खौफ में जीने लगते हैं — “तुम्हारी kismat में…”, “निर्वाण तभी होगा जब…”।
कुछ लोग तभी काम आते हैं जब वे डर दिखाकर उपाय बेच दें — महंगे तंत्र, अनुष्ठान,जैसे उपाय। असल में सलाह चाहिए थी, पर डर ने हमें बेचैन और निर्भर बना दिया।

असफलता का डर:
“अगर तुम फेल हो गए तो क्या होगा?” — यही सवाल तुम्हें बेचारा बनाता है।
कोर्स, सेमिनार, ‘ज़िंदगी बदलने वाले’ प्रोग्राम बेचने वाले यही डर जगाते हैं:
डराओ — और फिर वही बेचो जो तुम्हें बचाता हुआ दिखे ।सफलता के रास्ते में असफलता भी सीख है, पर डर ने हमें स्थिर और डरपोक बना दिया।

पीछे रह जाने का डर:
सोशल मीडिया पर सभी की चमक-दमक दिखाकर तुम्हें छोटा और पीछे महसूस कराया जाता है।
तड़प की जगह ‘तुरंत हल’ बताने वाले, महंगी चीज़ें खरीदने के लिए उकसाते हैं — ताकि तुम “आगे” रह सको। वो तुम्हारा आत्म-सम्मान नहीं, तुम्हारा धन चाहते हैं।

किसी अपनों को खोने का डर:
“अगर तुमने ये नहीं किया तो कोई तुम्हें छोड़ देगा / बिमार हो जाएगा” — रिश्तों के नाम पर भी डर बेचा जाता है।
लोग भावनाओं का इस्तेमाल करके तुम्हें नियंत्रित करते हैं — प्यार का लेबल है पर सब बातों का डर उनके फायदे का साधन बन जाता है।

बिमारी का डर:
स्वास्थ्य की चिंता जायज़ है, पर कुछ लोग इसे बड़ा-चौका कर देते हैं — “तुम्हारे अंदर यही बीमारी आ रही है” — और औषधि, चूर्ण, इलाज बेच देते हैं।
सच ये है: समझदारी और सही जानकारी ही बचाव है; डर में दी गई क्विक-फिक्स अक्सर नुक़सान देती हैं।

पिछड़ जाने का डर (प्रोफेशनल/सामाजिक):
नौकरी, प्रतिष्ठा, नाम — इन सब के डर से तुम ऐसे लोगों के जाल में फँस जाते हो जो ‘सफलता का शॉर्टकट’ बेचते हैं।
वो तुम्हारा भरोसा खरीदते हैं, तुम्हारी मेहनत नहीं।
ये सब कैसे होता है? सरल — पहले डर पैदा करलो, फिर उसका समाधान महँगे दाम पर बेच दो। ये तीन कदम अक्सर एक साथ चलते हैं:
शंका पैदा करना — छोटी सी बात को बड़ा कर देना।
असुरक्षा गाढ़ा करना — बार-बार वो बात दोहराकर तुम्हें टूटने पर मजबूर करना।
“उपाय” परोसना — वही जो उन्हें फायदेमंद बने: पूजा, सलाह, कोर्स, दवा, अनुष्ठान, या महँगी सलाह।
पर एक सच्ची बात — डर का बाजार तब तक काम करेगा जब तक तुम उसकी दुकान में आते रहोगे।
तुम्हारे पास भी रास्ता है:
सवाल पूछो।
सच्चाई जानो; लोग जो तुरंत ‘100% गारंटी’ दें, उन पर शक करो।
भरोसेमंद लोगों से सलाह लो — और अगर जरूरत पड़े तो प्रोफेशनल मदद (डॉक्टर, थेरेपिस्ट, लाइसेंसधारी काउंसलर) अपनाओ।
अपने डर का नाम पहचानो — जब नाम होगा तो वह छोटा दिखेगा।
और सबसे ज़रूरी: अपनी दिल की आवाज़ पर भरोसा रखो। ❤️

जब तुम डर की दुकान से बाहर निकल कर अपनी हिम्मत खरीदते हो, तो असल स्वतंत्रता मिलती है — और यही असली जीना है।
#डरका_व्यापार

प्यार की भाषाकल एक नन्ही-सी चिड़िया अचानक मेरे घर उड़ती हुई आ गई। पहले तो बहुत घबराई हुई थी — कभी इधर, कभी उधर... जैसे अ...
16/10/2025

प्यार की भाषा
कल एक नन्ही-सी चिड़िया अचानक मेरे घर उड़ती हुई आ गई। पहले तो बहुत घबराई हुई थी — कभी इधर, कभी उधर... जैसे अपनी जान बचाने की कोशिश कर रही हो। फिर थककर ज़मीन पर बैठ गई। मैंने धीरे से उसे अपने हाथों में उठा लिया। लगा — बेचारी इतने समय से उड़ रही है, ज़रूर प्यास लगी होगी। मैंने हथेली में पानी भरा और उसके पास किया... उसने धीरे-धीरे चोंच डुबोकर पानी पी लिया।
फिर मैंने उसे थोड़ा प्यार से सहलाया, उससे बातें कीं। जब मैंने उसे तरबूज़ के टुकड़े दिए तो उसने बहुत आराम से खाना शुरू किया — जैसे उसे भरोसा हो गया हो कि “यह इंसान मुझे नुकसान नहीं पहुँचाएगा।”
जब वह थोड़ी सुकून में लगने लगी, मैंने सोचा अब इसे आज़ाद कर दूँ। लेकिन जैसे ही मैंने उसे छोड़ने की कोशिश की, वो उड़कर दूर नहीं गई — बार-बार मेरी बाँह पर, मेरी हथेली पर आ बैठती रही। मैं उसे बाहर भी ले गई ताकि वो खुली हवा में उड़ सके, मगर वह फिर भी मुझे छोड़ने को तैयार नहीं थी।
अब आप सोच रहे होंगे, मैं ये सब क्यों बता रही हूँ?
क्योंकि ये छोटी-सी चिड़िया हमें एक बहुत बड़ी सीख दे गई —
कि प्यार की तरंगें (vibrations) हर जीव समझता है, चाहे वो इंसान हो या पक्षी।
जब कोई आपकी energy, आपकी niyat (नियत) महसूस कर लेता है कि “यहाँ मैं सुरक्षित हूँ”, तो वो खुद-ब-खुद सहज हो जाता है।
हम इंसान तो उनसे कहीं अधिक संवेदनशील हैं — हम शब्दों से, नज़रों से, या कई बार बिना कुछ कहे भी किसी के भाव समझ लेते हैं। अगर कोई आपके साथ सहज महसूस करता है, इसका मतलब है कि उसने आपकी नीयत पर भरोसा किया है। अब यह हमारे हाथ में है कि हम उस भरोसे को निभाएँ या तोड़ दें।
सोचिए, वो नन्ही-सी चिड़िया मुझ पर कितना भरोसा कर रही थी कि मैं उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगी — तभी तो मेरे साथ ही ठहरी रही। उसी तरह, जब कोई इंसान हमारे साथ विश्वास से जुड़ता है, तो हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम उसके भरोसे की रक्षा करें, उसे कभी असुरक्षित या असहज महसूस न होने दें।
अगर किसी कारणवश आप किसी का विश्वास निभा नहीं सकते, तो शुरुआत में ही किसी को अपने करीब आने मत दीजिए, ताकि वो सतर्क रह सके।
आज के दौर में जो रिश्ते इतनी जल्दी टूट रहे हैं, उसकी सबसे बड़ी वजह यही है — हम विश्वास तो दे देते हैं, पर उसे निभाने की क्षमता खो चुके हैं।
💫 कभी भूलिए मत — “प्यार शब्दों से नहीं, नीयत से समझ आता है।”

13/10/2025
🌿 दिखावे से परे का जीवन 🌿हम सबके अंदर कहीं न कहीं यह चाह रहती है कि –"मैं जो भी अच्छा करूँ, लोग उसे देखें, acknowledge क...
08/10/2025

🌿 दिखावे से परे का जीवन 🌿
हम सबके अंदर कहीं न कहीं यह चाह रहती है कि –
"मैं जो भी अच्छा करूँ, लोग उसे देखें, acknowledge करें, सराहें।"
पर सच तो यह है कि जब तक हम इस acknowledgment की चाह में बंधे रहेंगे,
हम किसी भी काम को सहजता और ईमानदारी से करना सीख ही नहीं पाएंगे।
👉 क्यों?
क्योंकि उस समय हमारा ध्यान काम पर नहीं,
बल्कि इस बात पर होता है कि “लोग क्या सोचेंगे?”
क्या मेरी मेहनत सबको दिखी?
क्या सबने मेरी तारीफ़ की?
क्या मुझे credit मिला?
धीरे-धीरे यह चाह एक बोझ बन जाती है।
इंसान हर काम करते समय validation खोजने लगता है।
और इस तरह पूरी ज़िंदगी का कीमती समय दिखावे, तुलना और approval में बीत जाता है।
🌸 असली सुंदरता तब आती है जब हम अच्छे काम सिर्फ इसलिए करें
क्योंकि वो सही हैं और ज़रूरी हैं —
न कि इसलिए कि लोग हमें अच्छा कहें।
जब काम acknowledgment के बिना भी संतोष देने लगे,
तभी इंसान का कर्म पूजा बनता है।
और तब आत्मा को वह शांति मिलती है,
जो किसी तालियों की आवाज़ में कभी नहीं मिल सकती।
💡 जीवन मंत्र:
“अच्छा करो क्योंकि वह तुम्हारी आत्मा को सुकून देता है,
न कि इसलिए कि लोग तुम्हें सराहेंगे।”

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