Dr Ganesh K Meena

Dr Ganesh K Meena Contact information, map and directions, contact form, opening hours, services, ratings, photos, videos and announcements from Dr Ganesh K Meena, Doctor, Delhi.

11/07/2025

मेरे गाँव में भूतल में पानी की गंभीर कमी है l तो सिंचाई और पेयजल के लिए सदियों पहले ही कई सारे बड़े बड़े तालाब बना दिए गए l 20-22 साल पहले सरकार ने सिंचाई के लिए फार्म pond निर्माण के लिए अनुदान देना स्टार्ट किया तो लगभग सभी किसानों ने अपने अपने खेतों में फार्म पौंड बनवा लिए l ये सभी तालाब और फार्म पौंड जुलाई में बारिश के पानी से लबालब भर जाते हैं l और फिर गांव के बच्चे, युवा इनमे कूद कूद कर मजे से नहाते हैं l लेकिन बचपन से लेकर आज तक बुजुर्ग लोगों को बच्चों की इतनी सी खुशी भी बर्दाश्त नहीं होती l जैसे ही वे किसी बच्चे को जुलाई अगस्त के महीने में इन तालाब या फार्म पौंड में नहाते देखते हैं तो डांटने लगते है कि मत नहाओ वर्ना बुखार आ जाएगा l पर मेने कभी किसी बच्चे को बुखार आते नहीं देखा l और मेरी पीढ़ी के सभी लोगों को बुजुर्गों की डांट हमेशा फालतू लगी l लेकिन मेडिकल कॉलेज आ कर पता चला कि उनकी डांट निरर्थक नहीं थी l नवंबर 2014 मे एम्स PG में माइक्रो बायोलाजी विषय से एक सवाल आया कि एक लड़की अपनी किसी फ्रेंड के गांव गयी , वापस आने पर उसको नाक से डिस्चार्ज और दिमाग की झिल्ली के इन्फेक्शन (meningitis) की समस्या हुई और 5 दिन में मृत्यु हो गई तो डायग्नॉसिस क्या होगा l ज़वाब था naegleria fowleri l ये मस्तिष्क को खाने वाला bacteria है जो बारिश के ताजा और गर्म पानी वाले तालाब आदि मे पाया जाता है l काफी रेयर है लेकिन बहुत घातक l एक बार इन्फेक्शन होने पर मृत्यु लगभग निश्चित है l ये bacteria मस्तिष्क तक नाक के रास्ते पहुंचता है और कुछ महीनों पहले मेने एक मेडिकल जर्नल में एक आर्टिकल पढ़ा जिसमें जल नेती की वजह से इस bacteria का इन्फेक्शन और मृत्यु हो गयी l

नेग्लेरिया फाउलेरी (Naegleria fowleri)

परिचय:
नेग्लेरिया फाउलेरी एक अमीबा (एककोशीय जीव) है, जिसे आमतौर पर "ब्रेन-ईटिंग अमीबा" कहा जाता है। यह जीव गर्म मीठे पानी जैसे तालाब, झील, हॉट स्प्रिंग्स आदि में पाया जाता है। यह नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है और मस्तिष्क तक पहुँचता है। यह मई से अक्टूबर के महीने या 25 - 46 डिग्री के तापमान में पनपता है l
फ्रेश पानी के झरने, नदी, झीलें, तालाब, ठीक तरीके से स्वच्छ नहीं किए गए स्विमिंग पूल, और कुछ मामलों में नल के पानी से भी हो सकता है l
गोताखोरी या डाइविंग, वाटर स्पोर्ट्स जैसी गतिविधियों में इसका ज्यादा रिस्क होता है

लक्षण (Symptoms):
संक्रमण को प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (PAM) कहते हैं। इसके लक्षण आमतौर पर संक्रमण के 1-9 दिनों बाद शुरू होते हैं:

तेज सिरदर्द
बुखार
मतली और उल्टी
गर्दन में अकड़न
भ्रम, दौरे और कोमा

कोर्स (Course):
संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है। लक्षणों की शुरुआत के बाद 5-7 दिनों के भीतर स्थिति गंभीर हो जाती है। मस्तिष्क की सूजन तेज़ी से बढ़ती है।

पूर्वानुमान (Prognosis):
PAM का मृत्यु दर बहुत अधिक है — लगभग 97%। इलाज शुरू करने में थोड़ी भी देरी जानलेवा हो सकती है। कुछ बहुत दुर्लभ मामलों में ही समय पर पहचान और उपचार से मरीज बच पाते हैं।

निष्कर्ष:
यह एक अत्यंत घातक संक्रमण है, लेकिन बहुत दुर्लभ होता है। गर्म पानी में तैरते समय सावधानी (जैसे नाक में पानी न जाने देना) बरतनी चाहिए।
अगर आप को बुखार आदि के ऊपर लिखे लक्षण आते हैं और पिछले कुछ दिनों में तालाब आदि में नहाए हैं तो तुरंत किसी बड़े सरकारी अस्पताल में जा कर डॉक्टर को पूरी हिस्ट्री बताएं ताकि प्रॉपर जांच के साथ तुरंत इलाज शुरू किया जा सके l

03/07/2025

पैनिक डिसऑर्डर
आमतौर पर साइकेट्रिक समस्याओं के मरीज देवी देवता, ऊपर की हवा या नजरंदाज किए जाते है या फिर बाबाओं और झाड़ फूंक की शरण में जाते है। सालों तक परेशान होने के बावजूद मुश्किल से आधे मरीज psychiatrist तक पहुंच पाते है। वो आधे भी किसी और डिपार्टमेंट से रेफर हो कर पहुंचते है। ग्रामीण , कम पढ़े लिखे या मध्यम वर्गीय या गरीब परिवारों के मानसिक रोगियों में मुश्किल से आठ दस प्रतिशत साइकाइट्रिस्ट तक पहुंचते हैं। इसलिए मेडिकल फील्ड में साइकेट्री को अक्सर शहरी अमीर लोगों की ब्रांच माना जाता है। लेकिन पैनिक डिसऑर्डर के मरीज लक्षण शुरू होने के एक महीने के अंदर हॉस्पिटल पहुंच जाते है। लक्षण इतने गंभीर होते हैं कि मरीज चाहते हुए भी नजरंदाज नहीं कर सकता। दिल्ली में साइकेट्री की इमरजेंसी में पहुंचने वाले आधे से ज्यादा मरीज एंजाइटी या पैनिक डिसऑर्डर के होते है। पैनिक डिसऑर्डर एंजाइटी डिसऑर्डर का ही एक प्रकार है। जिसमे शांति से बैठे बैठे व्यक्ति की अचानक से दिल की धड़कन बढ़ जाती है, इतनी तेज की आदमी को खुद सुनाई देने लगती है । घबराहट , मुंह सुखना , चोकिंग या दम घुट कर मरने का अहसास होना, हाथ पैरों में कंपकपी , पसीने पसीने हो जाना , छाती में दर्द या भारीपन , चक्कर आना ये सब पैनिक डिसऑर्डर के लक्षण हो सकते है। आमतौर पर लक्षण कुछ सेकंड्स या दो तीन मिनट्स चलते है। कुछ मरीजों को महीने में एक दो एपिसोड आते है तो कुछ को रोज एक दो एपिसोड हो सकते है। लेकिन लक्षणों की गंभीरता इतनी ज्यादा होती है कि मरीज को अगले एपिसोड का दर लगने लगता है।
आमतौर पर मरीज पहली बार रात को 2-3 बजे के बाद मेडिकल इमरजेंसी में आता है। चूंकि लक्षण बिलकुल दिल के दौरे जैसे होते है तो सबसे पहले कार्डियोलॉजी रेफर किया जाता है। ईसीजी, ट्रॉपोनिन और इकोकार्डियोग्राफी जैसी जांचों के नॉर्मल आने के बाद मरीज का साइकेट्री रेफरल होता है। मरीज मेडिकल इमरजेंसी की जगह अगर डायरेक्ट साइकेट्री ओपीडी पहुंच जाए तो भी रूटीन ब्लड इन्वेस्टिगेशन के साथ थायराइड , वगैरा की जांच और कार्डियोलॉजी और न्यूरोलॉजी रेफरल जरूरी होता है। पैनिक डिसऑर्डर कोई रेयर बीमारी हो ऐसा नहीं है। ये 13-14 साल की उम्र से स्टार्ट हो जाता है और 18-30 साल के एज ग्रुप में इसका प्रचलन 2-3 प्रतिशत है। 30-45 साल के दौर में इसकी संभावना लगभग 3-3.5 प्रतिशत होती है। एंक्सियोलिटिक और SSRI जैसी दवाओं से इसका इलाज किया जाता है । आमतौर पर दवाएं सिम्पटम फ्री होने के बाद कुछ महीने तक कंटिन्यू की जाती है। लेकिन लक्षण दोबारा प्रकट होने की स्थिति में कई सालों तक चल सकती है।
इस तरह के लक्षण होने पर तुरंत नजदीकी हृदय रोग विशेषज्ञ और रिपोर्ट नॉर्मल आने के बाद नजदीकी मनोरोग विशेषज्ञ को दिखाएं l

28/06/2025

विटामिन B12 की कमी (Vitamin B12 Deficiency) –

मन में उदासी, थकान, सुस्ती, याददाश्त में कमी आदि डिप्रेशन के लक्षण होते हैं l हम आमतौर पर मरीज़ को 2 हफ्तों की दवाई लिख कर दो हफ्ते बाद बुलाते हैं l लगभग 20-30 प्रतिशत मरीजों को डोज बढ़ाने और महीने भर दवाई खाने के बाद भी राहत नहीं मिलती तो में पूछता हूँ खाना वेज खाते हैं या नॉन वेज l जो लोग शुद्ध शाकाहारी खाते हैं उनको में विटामिन B12 का सप्लिमेंट्स लिखता हूँ और अगली विजिट पर उनमे आधे से ज्यादा लोग बहुत अच्छा सुधार बताते हैं l कई सारे रिसर्च पेपर के अनुसार लगभग 70 प्रतिशत तक भारतीय आबादी को विटामिन B12 की कमी है l legume फ़सलों जैसे राजमा, आदि के अलावा बाकी किसी शाकाहारी खाने में विटामिन B12 नहीं पाया जाता l हालांकि हमारे शरीर को विटामिन B12 बहुत ही कम मात्रा में लगभग 1 माइक्रो ग्राम प्रतिदिन चाहिए होता है l और किसी स्वस्थ व्यक्ति को 4-5 साल तक भोजन में विटामिन B12 नहीं मिलने के बाद ही इसकी कमी के लक्षण दिखते हैं l लेकिन फिर भी सिर्फ लगभग 30 प्रतिशत भारतीय आबादी में ही प्रचुर मात्रा में विटामिन B12 मिलता है l

1. कारण (Causes):

शाकाहारी भोजन (Vegetarian diet),
पाचन तंत्र की समस्याएं (जैसे पेर्निशियस एनीमिया, intrinsic फैक्टर की कमी, एट्रॉफिक गैस्ट्राइटिस)
शरीर में अवशोषण की कमी (Malabsorption)
बाईपास सर्जरी या बड़ी आंत की बीमारियाँ
इसके अलावा कुछ दवाएं जैसे शुगर की दवाई मेटफॉर्मिन, प्रोटॉन पंप इनहिबिटर या गैस एसिडिटी की गोली pantoprazole वगैरा विटामिन B12 के अवशोषण को अवरुद्ध करती हैं और लंबे समय में इसकी कमी पैदा करती है l आमतौर पर B12 Deficiency के मरीज़ मेडिसिन डिपार्टमेन्ट पहुंचते हैं जहां उन्हें डिप्रेशन का केस मान कर मनोरोग विभाग रेफर कर दिया जाता है l

2. भारत में प्रचलन (Prevalence in Indian Population):
भारत में विशेषकर शाकाहारी लोगों में यह कमी बहुत आम है। विभिन्न अध्ययनों में 30%–70% लोगों में B12 की कमी पाई गई है, खासकर बुज़ुर्गों और गर्भवती महिलाओं में।

3. मानसिक (Psychiatric) लक्षण:

चिड़चिड़ापन, थकान, कमजोरी, ताकत नहीं रहना, डिप्रेशन, एकाग्रता में कमी , गंभीर मामलों में Hallucinations

4. तंत्रिका संबंधी (Neurological) लक्षण:

हाथ-पैरों में झुनझुनाहट (Paresthesia)

चलने में असंतुलन

स्मृति दोष

नसों की क्षति (Peripheral neuropathy)

दृष्टि समस्याएं

5. रक्त संबंधी (Hematological) लक्षण:

मेगालोब्लास्टिक एनीमिया

थकावट, कमजोरी

सांस फूलना

पीला पड़ना (Pallor)

ज्यादातर मामलों में सबसे पहले मानसिक लक्षण प्रकट होते हैं, उसके बाद न्यूरोलॉजी संबंधी या खून की कमी के लक्षण दिखते हैं l विटामिन B12 का टेस्ट थोड़ा महँगा होता है इसलिए किसी मरीज़ को डिप्रेशन के लक्षणों के साथ, खून की कमी के लक्षण या CBC मे हीमोग्लोबिन की कमी मिले तो में बिना विटामिन लेवल चेक करवाये ही सप्लिमेंट्स लिख देता हूं l और परिणाम अच्छे होते हैं l

6. विटामिन B12 से भरपूर खाद्य पदार्थ (Foods Rich in Vitamin B12):

पशु उत्पाद: अंडा, मांस, मछली, के अलावा दूध दही भी विटामिन B12 के अच्छे स्रोत है
फोर्टीफाइड अनाज (Fortified cereals)
कई बार सप्लीमेंट्स (Vegetarians के लिए आवश्यक हो सकता है)l

ऐसे किसी भी प्रकार के लक्षण होने पर नजदीकी डॉक्टर या मनोरोग विशेषज्ञ को दिखाएं

26/06/2025

कुछ दिनों पहले एक 30 साल के आसपास की स्त्री अपने पति के साथ आई l उनको कई साल से दस्त की समस्या थी l हर महीने में 8-9 दिन दस्त रहते थे और दिन में कई बार 5-6 बार टॉयलेट जाना पड़ता था l बीच बीच में कभी कभी हफ्तों तक कब्ज की शिकायत भी हो जाती थी l वजन घट गया, थकान, कमजोरी इतनी ज्यादा कि चक्कर आने लगते, खाया पिया भी कुछ नहीं लग रहा l दुबली हो गई एकदम l बहुत परेशान थी l कई जगह दिखाया, कई टेस्ट करवाये पर ज्यादातर नॉर्मल l फिर एम्स के gestro enterology विभाग पहुंची और वहां से रेफर हो कर मनोरोग विभाग l उनको जो समस्या थी उसे मेडिकल की भाषा में irritable bowel syndrome (इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम ) या शॉर्ट में (IBS) -

1. परिचय:
इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) एक सामान्य गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकार है, जिसमें आंतों की गति और संवेदना प्रभावित होती है, लेकिन कोई संरचनात्मक क्षति नहीं होती।

2. प्रस्तुति (Presentation):
IBS आमतौर पर पेट दर्द, सूजन, गैस, और मल त्याग में बदलाव के रूप में प्रकट होता है। कभी हफ्तों तक दस्त हो सकते हैं तो कभी हफ्तों तक कब्ज l कुछ लोगों को दस्त ज्यादा रहते हैं तो कुछ को कब्ज ज्यादा रहती है l भूख नहीं लगना, वजन कम हो जाना, थकान सुस्ती रहना, हाथ पैर दर्द करना जैसे secondary लक्षण भी हो सकते हैं l यह लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं और दैनिक जीवन को प्रभावित कर सकते हैं।

3. IBS को मुख्य रूप से तीन केटेगरी मे बांटा गया है (Subtypes):

IBS-C (Constipation predominant): इनमे कब्ज कब्ज, कठोर मल, अधूरा मलत्याग का एहसास प्रमुख लक्षण होते हैं l

IBS-D (Diarrhea predominant): इन मरीजों मे मुख्य लक्षण बार-बार ढीला दस्त, आदि होते हैं

IBS-M (Mixed type): कभी दस्त, कभी कब्ज – दोनों लक्षण एक साथ।

4. Common Age of Onset:
यह बीमारी आमतौर पर 20-40 वर्ष की उम्र में शुरू होती है।

5. (Gender Differences):
महिलाओं में IBS अधिक पाया जाता है, विशेष रूप से IBS-C। पुरुषों में IBS-D अधिक सामान्य हो सकता है।

6. निदान (Diagnosis): IBS के diagnosis रोम IV criteria के अनुसार किया जाता है l
इसके अनुसार पिछले 3 महीनों में प्रति सप्ताह कम से कम एक दिन एसा हो जिसमें पेट दर्द जो मल त्याग से संबंधित हो।

अन्य संभावित रोगों को बाहर करने के लिए रक्त परीक्षण, स्टूल परीक्षण, और कभी-कभी कोलोनोस्कोपी की जाती है।

7. (Prognosis):
IBS जानलेवा नहीं होता, लेकिन यह दीर्घकालिक हो सकता है और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। सही प्रबंधन से लक्षणों में काफी सुधार संभव है।

8. औषधीय प्रबंधन (Pharmacological Management):
आमतौर पर दस्त या कब्ज की दवाएं, या anti depressant दवाइयां फायदा करती हैं

9. गैर-औषधीय प्रबंधन (Non-Pharmacological Management):

आहार प्रबंधन: लो-फोडमैप डाइट, अधिक फाइबर सेवन (IBS-C में)।

तनाव नियंत्रण: योग, मेडिटेशन, CBT (Cognitive Behavioral Therapy)।

जीवनशैली में बदलाव: नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, भोजन का समय नियमित रखना
अगर किसी को लंबे समय तक दस्त या कब्ज की समस्या होती हैं तो नजदीकी पेट के डॉक्टर ( gastro enterologist ) या मनोरोग विशेषज्ञ से संपर्क करें l

22/06/2025

स्लीप हाइजीन -
मेरे पास लगभग रोज 8-10 मरीज़ ऐसे आते हैं जिनको नींद की समस्या होती है l किसी को कम आती है तो किसी को ज्यादा l कम नींद आने की समस्या अगर ज्यादा गंभीर ना हो तो में दवाइयां लिखना अवॉइड करता हूं l मरीज़ को बेमतलब की दवाइयों से बचाना जरूरी है l हर समस्या का इलाज गोली नहीं है l अच्छी गहरी नींद के लिए जो घरेलु उपाय किए जाते हैं उन्हें स्लीप हाइजीन कहा जाता है
स्लीप हाइजीन का मतलब है अच्छी और गहरी नींद के लिए अपनाई जाने वाली आदतें और दिनचर्या। यह नींद की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद करती है।

अच्छी स्लीप हाइजीन के कुछ जरूरी नियम:
1.नियमित नींद का समय रखें – रोज एक ही समय पर सोना और उठना। अगर रात को देर तक नींद नहीं आ रही तो भी सुबह जल्दी उठने का टाइम फिक्स रखें l धीरे धीरे जल्दी नींद आने लगेगी l अगर बिस्तर पर लेटने के 30 मिनट के अंदर नींद नहीं आती तो बिस्तर से उठकर थोड़ा घूम फिर लें l बिस्तर को सिर्फ सोने के काम में लें l उस पर बैठ कर खाना, पिक्चर आदि देखने का काम ना करें l दिन में न सोएं l

2.सोने से पहले स्क्रीन से दूरी बनाएं – रात को 8 बजे बाद मोबाइल, टीवी, लैपटॉप का प्रयोग अवॉइड करें।
भारी खाना रात में न लें – यह नींद में बाधा डाल सकते हैं। रात का खाना 8 बजे से पहले करने की कोशिश करें

3.कमरे का वातावरण शांत और अंधेरा रखें – ठंडा और शांत वातावरण अच्छी नींद में मदद करता है।

4.सोने से पहले रिलैक्स करें – ध्यान, किताब पढ़ना या हल्की स्ट्रेचिंग करें। शाम को भारी एक्सरसाइज न करें l
5.सूर्यास्त के बाद चाय कॉफी बीड़ी सिगरेट कोल्ड ड्रिंक या एनर्जी ड्रिंक वगैरा का इस्तेमाल ना करें l
6.हमारी नींद के साइकिल को melatonin नाम का एक हॉर्मोन नियंत्रित करता है l और इस हॉर्मोन का नियंत्रण सूर्य की रोशनी से होता है l इसलिए रात की शिफ्ट में काम करने वाले लोगों या अँधेरी जगह रहने वाले लोगों को अक्सर नींद की समस्याएं हो जाती हैं l इसलिए अच्छी नींद के लिए सूर्योदय के बाद मॉर्निंग वॉक, थोड़ी देर तेज चलना जिससे दिल की धड़कन बढ़े और साँस फूले अच्छी रहती है l इसे brisk वॉक बोलते हैं l
7.कुछ लोगों रात को सोते टाइम मन मे बहुत से विचार चलने लगते हैं या घबराहट बैचेनी होने लगती है जिसकी वजह से नींद नहीं आती l ऐसे लोग रोज मॉर्निंग वॉक और evening वॉक करें और दिन में अनुलोम विलोम या और कोई डीप breathing एक्सरसाइज करें तो अच्छी नींद आएगी l
किसी भी तरह की नींद की समस्या होने पर आप नजदीकी मनोरोग विशेषज्ञ को दिखा सकते हैं l

क्यों ज़रूरी है स्लीप हाइजीन?
मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है

थकान और तनाव कम होता है

ध्यान और काम करने की क्षमता बढ़ती है

रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है

07/06/2025

कुछ महीनों पहले एम्स के बल्लभगढ़ सेंटर पर posted था l एक दिन एक स्त्री एक 12 साल की लड़की के साथ आई l मेने नाम पता उम्र पूछने के बाद क्या समस्या है पूछा तो लड़की साथ की स्त्री की तरफ देखने लगी l स्त्री ने बताया कि ये 12 साल की हो गई है लेकिन अभी भी बिस्तर में पेशाब कर देती है l लोग चिढ़ाते है तो बुरा लगता है l कुछ दिनों से स्कूल जाना भी बंद कर दिया है l मेने दवाई लिख कर दो हफ्ते बाद आने को बोला l दो हफ्ते बाद लड़की शायद अपनी बुआ के साथ आई l और खुश थी l बुआ ने बताया कि पिछले दो हफ्ते में सिर्फ एक बार बिस्तर में पेशाब किया है l
आमतौर पर बच्चे 4-5 साल तक ब्लैडर कंट्रोल करना सीख जाते हैं l कुछ बच्चे 5 साल के बाद या कभी कभी 15- 16 साल की उम्र तक बिस्तर में पेशाब करते हैं l मेडिकल की भाषा में इसको enuresis बोलते हैं l enuresis के कई कारण हो सकते हैं l जिनमे ADH हॉर्मोन संबंधित गडबड़ी, ब्लैडर की कपैसिटी से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं पर ज्यादातर मामलों में enuresis नींद की स्टेज 2 और स्टेज 3 की गडबड़ी की वज़ह से होता है l कुछ बच्चों मे नींद की स्टेज 3 इतनी ज्यादा गहरी होती है कि पेशाब की थैली या ब्लैडर के संकेत मस्तिष्क तक नहीं पहुंचते l और नतीज़ा सोते समय बिस्तर में पेशाब l मतलब बिस्तर में पेशाब करना असल मे एक नींद की समस्या है l
ऐसे तो इसके कोई गंभीर शारीरिक दुष्प्रभाव नहीं होते l लेकिन बच्चे के अंतर्मन पर निम्नलिखित गंभीर परिणाम हो सकते

1. भावनात्मक और मानसिक प्रभाव
आत्मसम्मान में कमी: बार-बार बिस्तर गीला करने से बच्चे को शर्मिंदगी महसूस हो सकती है और वह खुद को कमतर समझ सकता है।
तनाव और चिंता: सोने से पहले डर लग सकता है कि कहीं फिर बिस्तर न गीला हो जाए, जिससे मानसिक तनाव होता है।
उदासी या अवसाद (डिप्रेशन): अगर यह समस्या लंबे समय तक बनी रहे, तो बच्चे में उदासी और सामाजिक अलगाव के लक्षण आ सकते हैं।
गिल्ट या अपराधबोध: बच्चा यह सोच सकता है कि वह अपने माता-पिता को निराश कर रहा है।

2. सामाजिक प्रभाव
सामाजिक गतिविधियों से दूरी: बच्चा स्कूल ट्रिप, कैंप या स्लीपओवर से बचने लगता है ताकि उसकी समस्या दूसरों को पता न चले।
मज़ाक उड़ना या ताने सुनना: अगर किसी को पता चल जाए तो बच्चे का मज़ाक उड़ाया जा सकता है।
परिवार में तनाव: भाई-बहन चिढ़ा सकते हैं और माता-पिता नाराज़ हो सकते हैं, जिससे घरेलू माहौल प्रभावित होता है।

3. शैक्षणिक और विकास पर प्रभाव
नींद में बाधा: बार-बार उठने या चिंता के कारण नींद पूरी नहीं होती, जिससे स्कूल में ध्यान और प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है।
स्वतंत्रता में देरी: बच्चा खुद को दूसरों की तुलना में छोटा या असमर्थ महसूस कर सकता है।

4. शारीरिक प्रभाव (कम आम)
त्वचा में जलन: पेशाब के संपर्क में रहने से त्वचा पर रैश या जलन हो सकती है।
मूत्र मार्ग संक्रमण (UTI): यदि इसका कारण कोई अंदरूनी शारीरिक समस्या है तो संक्रमण की संभावना हो सकती है।

5. माता-पिता और परिवार पर प्रभाव
माता-पिता का तनाव: वे चिंता, झुंझलाहट या असहायता महसूस कर सकते हैं।
आर्थिक बोझ: बार-बार कपड़े धोना, विशेष बेडशीट खरीदना खर्चीला हो सकता है।

निष्कर्ष:
एन्यूरिसिस एक सामान्य और अक्सर अस्थायी समस्या है। यह किसी की गलती नहीं होती और ज्यादातर मामलों में उम्र के साथ ठीक हो जाती है। इसे सहानुभूति और समझदारी से संभालना ज़रूरी है
इलाज- बिस्तर में पेशाब करने की समस्या का दवाइयों से इलाज होता है l अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने imipramine नाम की दवाई को इसके लिए अप्रूव्ड किया है यह दवाई नींद की स्टेज 3 मे बदलाव करती जिसके परिणामस्वरूप रात में पेशाब लगने पर बच्चे की नींद खुल जाती है l अगर आपका बच्चा 5 साल की उम्र के बाद भी बिस्तर में पेशाब करता है तो नजदीकी मनो चिकित्सक से संपर्क करें l
इसके अलावा कुछ घरेलु उपाय भी किए जा सकते हैं जैसे-

मूत्र दिनचर्या का पालन: दिनभर नियमित रूप से और सोने से पहले पेशाब कराना।
तरल सेवन नियंत्रण: शाम को तरल पदार्थों का सेवन सीमित करना।
मूत्र प्रशिक्षण: बच्चे को मूत्राशय को लंबे समय तक रोकने का अभ्यास कराना।
मूल्यांकन और समर्थन: बच्चे को दंडित न करें; सहानुभूति और प्रोत्साहन दें।
अलार्म थेरेपी: पेशाब आने पर बजने वाला अलार्म उपयोग करना जिससे बच्चा जाग जाए।
मनोवैज्ञानिक सहायता: यदि तनाव या चिंता कारण हो तो काउंसलिंग कराना

03/06/2025

रेस्टलेस लेग सिंड्रोम (Restless Leg Syndrome - RLS) गाँव में लोग इसे पैरों की भड़भड़ाहट बोलते हैं

1. लक्षण (Characteristic Symptoms):

पैरों में असहजता, बैचेनी या खिंचाव जैसा एहसास
पैरों को हिलाने की तीव्र इच्छा
लक्षण आराम करते समय या रात को ज़्यादा होते हैं
चलने या पैरों को हिलाने से राहत मिलती है
मुख्य रूप से पैरों की पिंडलियों में होता है
चलने, तीव्र एक्सरसाइज, पैरों को रगड़ने या लात मारने से अस्थायी आराम मिलता है
उम्र के साथ, तनाव के दौरान, गर्भावस्था के दौरान, कॉफी, शराब आदि से लक्षणों की तीव्रता बढ़ती है l
कई बार बुखार के दौरान कुछ राहत मिल सकती है

2. कारण (Causes):

मुख्य कारण अज्ञात (idiopathic), लेकिन कई बार न्यूरोलॉजिकल कारण हो सकते हैं

डोपामिन असंतुलन
आयरन की कमी - एनीमिया
शुगर की बीमारी
कुपोषण

3. सुधार करने वाले कारक (Factors Improving):

चलना-फिरना
गर्म पानी से स्नान
हल्की स्ट्रेचिंग
आराम और नींद की अच्छी आदतें

4. लक्षण बिगाड़ने वाले कारक (Factors Worsening):

लंबे समय तक बैठना या यात्रा करना
नींद की कमी
कैफीन, शराब, और तंबाकू का सेवन
तनाव

5. सामान्य शुरुआत की आयु (Usual Age of Onset):

किसी भी उम्र में हो सकता है, लेकिन अधिकतर मध्यम आयु (30-40 वर्ष) में शुरू होता है
उम्र के साथ लक्षण बढ़ सकते हैं

6. चिकित्सीय कारण (Medical Causes):

आयरन की कमी (Anemia)
किडनी रोग
पार्किंसन रोग
गर्भावस्था (अस्थायी RLS)
मधुमेह (Diabetes)

7. आनुवंशिकता (Genetics):

लगभग 60 प्रतिशत मामलों मे पारिवारिक इतिहास अक्सर पाया जाता है
कई बार अनुवांशिक कारणों से यह रोग पीढ़ियों में पाया जाता है

8. राहत देने वाले सामान्य व्यायाम (Common Relieving Exercises):

पैरों की स्ट्रेचिंग
योग और ध्यान
टहलना
पिंडलियों की और जांघों की हल्की मसाज
गर्म/ठंडे पैक
इलाज के लिए नजदीकी मनो चिकित्सक से संपर्क करें

फरवरी 2020 मे जम्मू के उधमपुर में कफ सिरप पीने के बाद 11 बच्चों की मौत हो गई l 2023 मे अफ्रीकी देश gambiya मे कफ सिरप पी...
02/06/2025

फरवरी 2020 मे जम्मू के उधमपुर में कफ सिरप पीने के बाद 11 बच्चों की मौत हो गई l 2023 मे अफ्रीकी देश gambiya मे कफ सिरप पीने से 66 बच्चों की मौत हो गयी l अमेरिकन अकैडमी ऑफ pediatrics 6 साल से कम उम्र के बच्चों में कफ सिरप की मना करता है l क्योंकि छोटे बच्चों मे कफ सिरप की उपयोगिता साबित नहीं हो पाई है l भारत सरकार ने भी 4 साल से कम उम्र के बच्चों में chlorpheniramine और phenylephrine घटक वाली कफ सिरप को प्रतिबंधित किया हुआ है l लेकिन कुछ झोलाछाप बंगाली डॉक्टर अभी भी बच्चों को कफ सिरप लिख कर बच्चों की जान को खतरे में डाल रहे हैं l l आज गाँव के एक पुराने साथी ने फोन किया कि 5 महीने के बेटे की तबीयत खराब है l खांसी है और एक दवाई की बोतल की फोटो भेजी कि किसी फर्जी डॉक्टर ने ये फ़लाना कफ सिरप दी है l उस मे भी एक घटक chlorpheniramine था l साथियों डॉक्टर की 200 रुपये फीस बचाने के चक्कर में अपने बच्चों की जान खतरे में ना डालें l किसी शिशु रोग विशेषज्ञ को ही दिखाएं जिसके पास MBBS के अलावा MD pediatrics या कम से कम DCH की डिग्री हो l 5 साल से कम उम्र के बच्चों में पेट के इन्फेक्शन और साँस के इन्फेक्शन मौत के सबसे बड़े कारण है l भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय integrated management of neonatal and childhood illness या IMNCI के अंतर्गत 5 साल से कम उम्र के बच्चों में साँस की बीमारियाँ, दस्त, कुपोषण आदि के इलाज के लिए दिशानिर्देशों जारी करता है l इनके दिशानिर्देशों में इन बीमारियों के खतरे के लक्षणों की पहचान भी शामिल है l ये गाइड लाइन के अनुसार 2 - 12 महीने तक के बच्चों में खांसी के साथ श्वास की दर 50 प्रति मिनट से ज्यादा है या साँस लेने पर आवाजें आ रही है या साँस लेने पर छाती अंदर धंस रही है या बच्चा सुस्त हो गया है और दूध पीना कम कर दिया है तो ये खतरे का लक्षण है और बच्चे को तुरंत बच्चों के डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए l

24/05/2025

स्किज़ोफ्रेनिया: सबसे खतरनाक मानसिक बीमारी l schizophrenia को pathologist का कब्रिस्तान कहा जाता है l क्योंकि सदियों की रिसर्च के बावजूद टिशू या कोशिकाओं के स्तर पर कोई कोई गडबड़ी अभी तक नहीं मिल पाई l
स्किज़ोफ्रेनिया एक जटिल और दीर्घकालिक मानसिक विकार है जो सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके को प्रभावित करता है। यह आमतौर पर किशोरावस्था के अंत या युवा वयस्क अवस्था में शुरू होता है।

मुख्य लक्षण
स्किज़ोफ्रेनिया के लक्षणों को दो प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जाता है:

1. पॉज़िटिव लक्षण (Positive Symptoms):
ये ऐसे लक्षण होते हैं जो सामान्य व्यवहार में "जोड़े" जाते हैं।

भ्रम (Delusions): झूठे लेकिन दृढ़ विश्वास। इसके प्रकार:

भ्रांति ग्रंथि (Persecutory): "कोई मुझे नुकसान पहुँचा रहा है।" सीबीआई मुझ पर नज़र रख रही है l चारों तरफ CCTV कैमरा लगे हैं जिनसे मुझ पर नज़र रखी जा रही है l लोग मेरे बारे में बात करते हैं l मे जो सोचता हूं वो सबको पता चल जाता है l मेरे घरवाले मेरे खिलाफ साजिश रच रहे हैं या मुझे मारना चाहते हैं, या मेरे खाने कुछ मिला देते हैं l

भव्यता भ्रम (Grandiose): "मैं कोई महान व्यक्ति हूँ।"

संदेह भ्रम (Referential): "टीवी या रेडियो मेरे बारे में बात कर रहा है।"

भ्रम अनुभव (Hallucinations): वास्तविकता में कुछ ना होते हुए भी उसे अनुभव करना। इसके प्रकार:

श्रवण (Auditory): आवाजें सुनाई देना (सबसे सामान्य)।

दृश्य (Visual): काल्पनिक चीजें देखना।

घ्राण (Olfactory): अजीब गंध का अनुभव।

स्पर्श (Tactile): त्वचा पर कुछ महसूस होना।

भाषण में अव्यवस्था (Disorganized Speech): विचारों का तारतम्य ना होना।

व्यवहार में अव्यवस्था (Disorganized or Catatonic Behavior): उद्देश्यहीन, अजीब या निष्क्रिय व्यवहार।

2. नेगेटिव लक्षण (Negative Symptoms):
ये ऐसे लक्षण हैं जिनमें सामान्य कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है:

अभिव्यक्ति की कमी (Flat Affect): चेहरे के भावों में कमी।

अवसाद (Anhedonia): आनंद की कमी।

सामाजिक वापसी (Social Withdrawal)

प्रेरणा की कमी (Avolition)

रोग की प्रगति (Course) और दीर्घकालिक परिणाम:
प्रारंभ: धीरे-धीरे या अचानक शुरू हो सकता है।

कोर्स: कुछ मामलों में एपिसोड के बीच रिकवरी होती है, तो कुछ में लगातार लक्षण बने रहते हैं।

प्रग्नोसिस (Prognosis): लगभग 25% मरीज पूर्णतः ठीक हो सकते हैं।50% मरीजों को रिलेप्स होते हैं पर औषधियों से नियंत्रण संभव है। 25% मामलों में गंभीर रूप से कार्यात्मक बाधा हो सकती है।

इलाज : schizophrenia के इलाज में मुख्य तौर पर antipsychotic नामक दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है l

क्या स्किज़ोफ्रेनिया के साथ सामान्य जीवन संभव है?
हाँ, सही समय पर इलाज, नियमित दवा, मनोचिकित्सा (Psychotherapy), पारिवारिक सहयोग और समाज में स्वीकृति से व्यक्ति पढ़ाई, नौकरी और रिश्तों में संतुलन बनाकर सामान्य जीवन जी सकता है। कई लोग इलाज के साथ स्वतंत्र रूप से जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

अगर आपके आसपास कोई इस तरह के लक्षण दिखा रहा है, तो जल्द से जल्द नजदीकी मनोचिकित्सक से संपर्क करें। स्किज़ोफ्रेनिया का इलाज संभव है।

21/04/2025

साल भर पहले NDDTC में एक पेशेंट आया l एक 25- 26 साल का लड़का l फाइल में डायग्नॉसिस लिखा था opioid dependence, यानी smack की लत l पिछला फॉलो अप एक साल पहले का था l मतलब एक साल से दवाई लेने नहीं आया l मेने पूछा कहाँ थे एक साल तो बोला जेल l मेने पूछा एक साल जेल में रहे तो नशा तो छूट गया होगा l बोला कि जेल में भी मिल जाता था l मेने पूछा क्यों गए जेल तो बोला एक दोस्त के चक्कर में l उसने बोला गाजियाबाद के घर में चोरी करते हैं बहुत पैसा है उसके मालिक के पास l एक चोरी में ज़िन्दगी भर का जुगाड़ हो जाएगा lतो रात को 3-4 बजे के आसपास घुस गए उस घर में l उसका मालिक विदेश में रहता था l लेकिन घर में कुछ अलार्म सिस्टम लगा था l जैसे ही हम दोनों घर में घुसे तो मालिक के पास कोई अलार्म बज गया l उसने किसी आदमी को भेजा घर में l जैसे ही आदमी ने दरवाजा खटखटाया हम दोनों घबरा गए l बाहर भागे तो उसने पकड़ लिया l पकड़े जाने के डर से उसको चाकू मार दिया l उसी दिन पुलिस ने उठा लिया l तब से जेल में था l एक महीने पहले छूटा l मेंने बोला देख लिया दोस्ती का नतीज़ा l दोस्त लोग ऐसे ही फंसाते है l अभी कहां है दोस्त ? जेल में है या छूट गया ? बोला उसके घरवालों ने एक महीने बाद ही ज़मानत करवा दी तो पहले ही बाहर आ गया l मेने पूछा तुम्हारे घरवालों ने नहीं करवाई? कोन कोन है तुम्हारे परिवार में ? बोला सब है पापा मम्मी, भाई बहन, बीबी 3 साल का बेटा l लेकिन जब पुलिस ने पकडा तो घरवालों ने बोला सड़ने दो इसको जेल में lमेंने पूछा जेल में याद नहीं आई बेटे की? तो अचानक से रोने लगा l दो मिनट बाद बोला बहुत याद आई सर , रोज याद आती थी l पर कुछ कर नहीं सकता था l बेटा दो साल का था तब जेल गया था, अब तीन साल का हो गया l पहले घर आता था तो खूब खेलता था बेटे के साथ l अब जेल से आया तो उसने पहचाना भी नहीं मुझे l मेने पूछा घर में कमाने वाला कोन कोन है ? तुम जेल गए तो खर्चा केसे चला घर का? बोला बीबी ने सिलाई का काम किया l मेने पूछा तुम क्या करते हो? बोला पहले बाइक मेकेनिक का काम करता था l अभी कुछ नहीं करता l तो smack का नशा केसे लगा मेने पूछा l उसने बताया कि कि बाइक मेकेनिक का काम करता था सर l बहुत अच्छा धंधा चल रहा था l रोज 2-3 हजार कमा लेता था l घरवाले खुश थे l भाई बहन सब प्यार करते थे l लेकिन 4-5 साल पहले कुछ थकान सी महसूस होने लगी l दोपहर बाद एसा लगता था बस सो जाओ दुकान बंद करके l तो एक दोस्त ने एक सिगरेट पिलाई कि ये पी के देख l उसको पी के मुझे बहुत अच्छा लगा l ताकत सी आ गई शरीर में l काम करके भी थकान नहीं होती थी l तो शुरुआत में ऐसे ही शौक शौक मे पिया कि काम धंधा बढ़िया चल रहा है l कौनसा मुझे हमेशा पीना है l जब मन करेगा छोड़ दूँगा l ऐसे ही शौकिया पीते पीते कब लत लग गई पता नहीं चला l पहले सिगरेट मे भर के दिन मे एक बार पीता था l फिर पन्नी में पीने लगा l दिन में 3 से 4 बार पीने लगा l कुछ महीनों में ही पता चल गया कि लत लग चुकी है l बहुत छोड़ने की कोशिश भी की l लेकिन नहीं पीता तो हड्डियों में भयंकर दर्द होता, नाक बहने लगती, आंसू, छींक, सिर दर्द, दस्त लग जाते l एसा लगता जान निकल जाएगी l हर बार सोचता बस आज लास्ट l लेकिन कभी लास्ट नहीं हो पाया l पीना ही पड़ती l धीरे धीरे काम धंधा भी छूट गया l नशे में ही दिन गुजर जाता l काम पर जाने का टाइम ही नहीं मिलता l पेसे खत्म हो गए l शुरुआत में घर में छोटी मोटी चोरी की l फिर दोस्त ने बताया कि एक बड़ी चोरी करते हैं l और यहां तक पहुंच गया l पहले 2-3 लोगों को रोजगार देता था l अब बच्चे पालने को पेसे नहीं है l मेने पूछा घरवाले क्या कहते हैं l बोला घरवालों ने सब रिश्ते तोड़ लिए l एक ही घर में रहते हैं लेकिन मम्मी पापा ने बोलना बंद कर दिया l छोटा भाई पहले मेरा झूठा खा लेता था, एक ही थाली में खाते थे l लेकिन अब में जिस गिलास से पानी पीता हूं उससे पानी भी नहीं पीता l मेने कहा सिर्फ थकान के लिए तुम्हें नशा करने की जरूरत नहीं थी l कुछ विटामिन वगैरा की कमी रही होगी l डॉक्टर के पास जाते जांच करवाते तो ठीक हो जाते l
आम लोगों को लगता है कि नशे का आदि व्यक्ति जानबूझ कर नशा नहीं छोड़ना चाहता l पंचायतें की जाती है प्रचार होता है नशे की बुराईयां समझाने के लिए l हकीकत ये है कि नशा करने वाले से ज्यादा नशे की बुराई कोई और नहीं समझता l नशेड़ी रोज कसम खाते हैं कि बस आज लास्ट l आज के बाद बिलकुल नहीं पीना l बाकी दुनिया तो नशे के आर्थिक दुष्परिणाम देख कर नशे का विरोध करते हैं l नशे के शारीरिक और मानसिक दुष्परिणाम सिर्फ नशा करने वाला समझता है l वो रोज टूटता है और रोज खुद को इकट्ठा करता है l वो रोज जीत का संकल्प लेता है और रोज खुद को हारते हुए देखता है l रोज उस घड़ी को कोसते है जब पहली बार नशा लिया l उसकी जिन्दगी में प्रतिपल संघर्ष है l और ज्यादातर का नशा ऐसी छोटी मोटी भूलों से शुरू हुआ l पर smack के नशे का इलाज सम्भव है l smack छोड़ना शराब और बीड़ी सिगरेट छोड़ने से ज्यादा आसान है l क्योंकि इसके लिए प्रभावशाली गोली उपलब्ध है l एम्स दिल्ली के गाजियाबाद केंद्र पर ये दवाइ मुफ्त मिलती है l जितनी जल्दी इलाज शुरू होगा छूटने के चांस उतने ही ज्यादा l जो लोग एक दो साल के अंदर दवाई शुरू कर देंगे उनका कुछ महीनों में छूट जाएगा l जिनको 5-6 साल से ज्यादा हो गए उनको कई साल तक या कुछ मामलों में बीपी शुगर के मरीज़ की तरह ज़िन्दगी भर दवाई खानी पड़ेगी l जो इलाज नहीं लेंगे उनकी जमीन जायदाद बिक जाएगी , बीबी बच्चे भूखे मरेंगे और फिर जेल ही अंतिम परिणति होगी l तीसरा कोई विकल्प नहीं है l जो लोग एम्स से इलाज शुरू करना चाहते हैं उनकी में मदद कर सकता हूं l बाकी ना पंचायतों से छूटेगा, ना सामाजिक पाबंदियों से l प्रशासन और नेता तो चाहेंगे कि ये कभी नहीं छूटे l ये उनकी कमाई का जरिया है l

12/04/2025

🤣🤣

बचपन में हम देखते थे कि जब कुत्ते के पिल्लों का जन्म होता था तो कुछ माताएं अपने पिल्लों को खा जाती थी l हम मानते थे कि भ...
17/03/2025

बचपन में हम देखते थे कि जब कुत्ते के पिल्लों का जन्म होता था तो कुछ माताएं अपने पिल्लों को खा जाती थी l हम मानते थे कि भूख लगने की वजह से माताएं अपने पिल्लों को खा जाती हैं l पर पूरे जंतु जगत में कोई माता अपने बच्चों को सिर्फ भूख की वजह से नहीं खाती l अब हमें पता है कि ये एक मानसिक बीमारी है जिसे पोस्ट पार्टम साईकोसिस कहा जाता है l और ये मानसिक बीमारी सिर्फ कुत्ते बिल्ली ही नहीं बल्कि इंसानो में भी होती है l बच्चे के जन्म के बाद के एक महीने के दौरान स्त्रियों उदासी, नकारात्मक विचार जैसे लक्षण आते हैं जिन्हें पोस्ट partum blues बोलते हैं l ज्यादातर मामलों में ये लक्षण स्वत: ठीक हो जाते हैं और कोई दवाई की जरूरत नहीं पड़ती l कुछ मामलों में ये लक्षण डिप्रेशन की हद तक बढ़ जाते हैं l जिन्हें इलाज की जरूरत होती है l 1000 बच्चों के जन्म पर 1-2 स्त्रियों को गंभीर लक्षण आते हैं जिनमे Hallucinations और delusions भी हो सकते हैं, बच्चे को नुकसान पहुंचाने वाले विचार भी आ सकते हैं l सभी गांवों में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमे किसी स्त्री के कई बच्चों की जन्म के कुछ समय बाद ही रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो जाती हैं l इन सभी मामलों की psychiatrist द्वारा जांच होनी चाहिए l डॉक्टर प्रभा चंद्र और डॉक्टर सुब्रह्मण्यम गणेश ने भारतीय महिलाओं मे इस तरह की बीमारियों पर अध्ययन किया l जुलाई 2002 को एक अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में छापे उनके रिसर्च पेपर के अनुसार 43 प्रतिशत भारतीय माताओं को अपने बच्चे को मारने के विचार आते हैं और 36 प्रतिशत माताओं ने नवजात की जिंदगी के लिए खतरा पैदा करने वाले व्यवहार को स्वीकार किया l नवजात शिशु अगर फीमेल है तो इस तरह के विचार और व्यवहार में वृद्धि दर्ज की गई l
अभी खबर है कि किसी स्त्री ने अपनी 17 दिन की नवजात शिशु को पानी में डूबा कर मार डाला l परंपरागत सामाजिक विश्वास और बेटे की चाह से अलग इस घटना की psychiatric जांच भी होनी चाहिए l आमतौर पर बेटे की चाह रखने वाले और कठोर से कठोर हृदय वाले लोग भी अपने नवजात की जान नहीं ले पाते l निश्चित रूप से कुछ मानसिक लक्षण रहे होंगे l और अगर कोई मानसिक बीमारी है तो इस स्त्री के सभी बच्चों की जान खतरे में रहेगी बेटी की भी और बेटों की भी l आने वाली हर डिलिवरी के बाद ये लक्षण भी आयेंगे l

Address

Delhi

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Dr Ganesh K Meena posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share

Category