27/08/2025
"वैद्यों के लिए समवाय संबंध को समझना केवल दार्शनिक विषय नहीं है, बल्कि यह उनकी clinical success की कुंजी भी है।”
✅ समवाय सम्बन्ध, होता है =
• नित्य (Always present): यह हमेशा रहने वाला संबंध है, किसी भी काल में टूटता नहीं।
• एक ही प्रकार का (Unique): समवाय का सिर्फ़ एक ही प्रकार होता है, जैसे संयोग के कई रूप होते हैं लेकिन समवाय का नहीं।
• अविच्छेद्य (Inseparable): जिस वस्तु से यह सम्बन्ध हटा दिया जाए, उस वस्तु का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
✅ वैद्यकीय दृष्टि से क्यों ज़रूरी है?
1. औषधि का असर समझना
औषधि के गुण (जैसे – उष्ण, शीत) - जैसे तेजपत्ता = उष्ण, चंदन = शीत .... हमेशा उस औषधि में समवाय से ही जुड़े रहते हैं।
इसे न समझने पर यह तय करना कठिन होगा कि कौन-सी दवा किस रोग में देनी है।
2. दोषों का स्वरूप पहचानना
वात, पित्त, कफ अपने गुणों से ही काम करते हैं।
वात = हल्का व गतिशील, पित्त = उष्ण व तीक्ष्ण, कफ = स्निग्ध व स्थिर
ये गुण नित्य और अविच्छेद्य हैं। इन्हें न समझने पर रोग का निदान कठिन होगा।
3. इलाज में भ्रम
अगर दवा का कौन-सा गुण शरीर में क्या करता है, तो चिकित्सक सही औषध-निर्णय नहीं कर पाएगा।
गुण और द्रव्य का inseparable relation जाने बिना चिकित्सा अधूरी।
4. शरीर की रचना समझना
हड्डी की कठोरता, त्वचा का रंग — ये सभी धातु और गुण के समवाय से जुड़े हैं। अर्थात अविच्छेद्य रूप से जुड़े हैं।
इसे न समझने पर शरीर की समग्र समझ अधूरी रह जाती है।
5. जीवन और आत्मा का सम्बन्ध समझना:
जब तक आत्मा शरीर से समवाय सम्बन्ध में जुड़ी है, तभी तक जीवन है। यही सम्बन्ध टूटने पर मृत्यु होती है।
समवाय को समझे बिना “जीवन और मृत्यु का रहस्य” भी अधूरा रहेगा।
✅ यही कारण है कि समवाय संबंध को गहराई से समझना वैद्य की चिकित्सा और जीवन-दर्शन दोनों की सफलता की कुंजी है।
बेहतर क्लीनिकल परिणामों के लिए, आप भी आयुर्वेद के सिद्धांतों को गहराई से समझते रहें। 🙏
- आयुर्वेदाचार्य डॉ. अभिषेक
Ayurvedacharya Dr. Abhishek Abhishek Gupta