
08/05/2025
Indian Army
वैदिक विज्ञान अनुसंधान
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Spiritual Essence of
यत्फलं मम पूजायां वर्षमेकं निरन्तरं।
तत्फलं लभते सद्यः शिवरात्रौ मदर्चनात्।।
मद्धर्मवृद्धिकालोऽयं चन्द्राकार इवांबुधेः।
प्रतिष्ठाद्युत्सवो यत्र मामको मंगलायनः।।
यत्पुनः स्तंभरूपेण स्वामिरासमहं पुरा।
स कालो मार्गशीर्षे तु स्यादार्दाऋक्षमर्भकौ।।
आर्द्रायां मार्गशीर्षे तु यः पश्येन्मामुमासखं।
मद्वेरमपि वा लिंगं स गुहादपि मे प्रियः।।
अलं दर्शन मात्रेण फलं तस्मिन् शुभे दिने।
अभ्यर्चनं चेदधिकं फलंइवाचामगोचरम्।।
भोगावहमिदं लिंगं भुक्तिमुक्त्येक साधनं।
दर्शनस्पर्षनध्यानाज्जन्तूनां जन्ममोचनम्।। (२०/८ विद्येश्वर सम्हिता/ शिवपुराण)
नियमित रूप से पूरे वर्ष मेरी पूजा करने से एक निश्चित फल मिलेगा, लेकिन वही फल केवल एक दिन शिवरात्रि पर मेरी पूजा करके तुरंत प्राप्त किया जा सकता है।
जिस प्रकार पूर्णिमा का दिन समुद्र में वृद्धि लाता है, उसी प्रकार यह शिवरात्रि की रात मेरे (शिव के) धर्म की वृद्धि को बढ़ावा देती है।
मार्गशीर्ष के महीने में, जिस दिन आर्द्रा नक्षत्र होता है, मैं लिंग के रूप में आप लोगों के बीच प्रकट हुआ। उस शुभ दिन, आपको मेरा अभिषेक और अन्य उत्सव अनुष्ठान करने चाहिए।
मार्गशीर्ष मास में आर्द्रा नक्षत्र के दिन जो कोई भी पार्वती के साथ मेरे दर्शन करता है, या मेरी मूर्ति या लिंग के दर्शन करता है, वह शनमुख (कार्तिकेय, मेरे छह मुख वाले पुत्र) से भी अधिक प्रिय हो जाएगा।
Har Har Mahadev 🌺🙏
Definitions of Rishi, Muni, Sadhu, Sant & Sanyasi in Hinduism
तितिक्षवः कारुणिकः। सुहृदः सर्व देहिनां।
अजात शत्रवः शान्तः। साधवः साधु भूषणः।। (श्रीमद भगवद गीता 3.25.21)
सभी ये शब्द संस्कृत के हैं और संस्कृत में हर वर्ण और वर्णों के संयोजन का एक अर्थ होता है। इस प्रकार, जिस शब्द का अर्थ है, वह स्वयं शब्द में निहित होता है। ऋषि, मुनि, साधु, संत और संन्यासी हमारे इतिहास में उतना ही योगदान देते हैं जितना एक खुशहाल परिवार में बुजुर्ग देते हैं, क्योंकि हिंदू धर्म के हर वेदिक ग्रंथ में निश्चित रूप से इन अत्यधिक आध्यात्मिक व्यक्तियों का उल्लेख किया गया है। चार मुख्य संप्रदाय हैं, जो महत्वपूर्ण आचार्यों या आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से अनुक्रम में उतरते हैं।
ये वेदिक परंपरा में मुख्य विचारधाराएं भी हैं। प्राचीन काल से इनका भारत में विशेष महत्व रहा है क्योंकि इन्हें समाज के मार्गदर्शक माना जाता था। ये प्रेरित पवित्र व्यक्ति हमेशा अपनी ज्ञान और तपस्या की शक्ति से समाज कल्याण में संलग्न रहते थे और लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए इसका उपयोग करते थे।
Rishi
ऋषि एक दृष्टा या sage है जिसने ध्यान और मनन के माध्यम से उच्च आध्यात्मिक ज्ञान और प्रबोधन प्राप्त किया है। वेदों में, ऋषि एक पवित्र व्यक्ति को दिया गया शीर्षक है, जो अपने शास्त्रों और हर चीज़ के पीछे के विज्ञान के बारे में सब कुछ जानता है। उन्हें कई वर्षों की तपस्या या ध्यान के कारण उच्च स्तर की शिक्षा और समझ प्राप्त होती है।
ऋषियों द्वारा कहे गए शब्द कभी असत्य नहीं होते हैं और इसीलिए उनके द्वारा दिए गए श्राप और वरदान व्यर्थ नहीं जाते। उन्हें वेदों, प्राचीन हिंदू शास्त्रों की रचनाएँ करने वाला माना जाता है। ऋषि (Rishi) का अर्थ है "प्रकाश की किरण, तपस्वी" - ऋ (tri) का अर्थ है "जो पहले ही पार कर चुका है" और षि (shi) का अर्थ है "जो शक्ति स्वरूप बार-बार प्रकट होता है"। ऋषि वास्तव में "तपस्वी जो बार-बार प्रकट होने वाली शक्ति स्वरूपता को पार कर चुका है" का अर्थ रखता है।
ऋग्वेद में 10/150/1-5 में सुख और समृद्धि प्राप्त करने के लिए दिव्य अग्नि के रूप को जागृत करने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। इसमें सर्वोच्च प्रार्थना करने और यज्ञ में भाग लेकर मार्गदर्शन प्राप्त करने पर जोर दिया गया है।
धन, संसाधनों, बुद्धिमत्ता, गुणों और दिव्य गुणों को प्राप्त करने के लिए उपवास रखने का भी उल्लेख किया गया है। अग्निदेव के पवित्र रूप की आह्वान करते समय, अत्रि, भारद्वाज, गविष्ठिर, कण्व और त्रासादस्यु युद्ध में रक्षा करते हैं।
मंत्र पांच ऋषियों का उल्लेख करता है:
अत्रि: भोजन सेवन में संयम रखने वाले।
भारद्वाज: भीतर शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक शक्ति विकसित करते हैं।
गविष्ठिर: भाषण में स्थिरता बनाए रखते हैं और अपने वचनों को पूर्ण समर्पण से पूरा करते हैं।
कण्व: हर पहलू में अंतिम उत्कृष्टता की ओर निरंतर बढ़ते हैं।
त्रासादस्यु: दुश्मनों और प्रतिकूलताओं को दूर करते हैं।
इन ऋषियों का अनुकरण करके कोई स्वयं ऋषि बन जाता है, उनके गुणों को आत्मसात करता है। इसके बदले में दिव्य अपनी पवित्र शक्तियों के माध्यम से सुरक्षा प्रदान करता है।
यह ऋषि बनने का माध्यम है, उच्च ज्ञान प्रकाश प्राप्त करने का मार्ग और अंतिम लक्ष्य।
हिंदू धार्मिक ग्रंथों में मुख्यतः चार प्रकार के ऋषियों का उल्लेख किया गया है:
(A) महर्षि: महर्षि को ऋषियों में उच्च स्थान माना जाता है। एक व्यक्ति जो ज्ञान और तपस्या की उच्चतम सीमा तक पहुंचता है उसे महर्षि कहा जाता है। उनके ऊपर केवल ब्रह्मर्षियों को माना जाता है।
(B) राजर्षि: यदि एक राजा ऋषियों के स्तर का ज्ञान प्राप्त करता है तो उसे राजर्षि कहा जाता है।
(C) देवर्षि: यदि एक देवता अत्यधिक ज्ञान प्राप्त करता है तो उसे देवर्षि कहा जाता है, जैसे नारद मुनि जो एक देवर्षि हैं।
(D) ब्रह्मर्षि: ब्रह्मर्षियों वे होते हैं जिनके पास विशाल आध्यात्मिक ज्ञान होता है, जैसे ब्रह्मर्षि वसिष्ठ और ब्रह्मर्षि विश्वामित्र जो श्री राम के गुरु थे।
Muni
मुनि वह व्यक्ति होता है जिसने भौतिक जीवन का त्याग कर दिया हो और गहन ध्यान एवं आध्यात्मिक अभ्यास में संलग्न रहता हो। वे अक्सर तपस्विता और आत्म-निषेध से जुड़े होते हैं। मुनि (Muni) का अर्थ "सत्य का दृष्टा" होता है - म (ma) का अर्थ "मैं हूँ" और उनि (uni) का अर्थ "घुल गया" होता है; मुनि (Muni) का अर्थ होता है "(जिसमें) मैं घुल गया हूँ"।
मुनि संस्कृत शब्द मनन से निकला हुआ शब्द है, जिसका अर्थ होता है सोचना। मुनियों को हमेशा गहराई से सोचने वाला माना जाता रहा है और उनकी सोचने की शक्ति हमसे बहुत आगे होती है। वे बहुत कम बोलते हैं और मौन रहने की शपथ लेते हैं तथा वेदों और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
Sadhu
साधु एक भटकते हुए तपस्वी होते हैं जिन्होंने सभी भौतिक संपत्तियों को छोड़ दिया हो और आध्यात्मिक अनुशासन एवं भक्ति का जीवन जीते हों। सामान्यतः एक व्यक्ति जो साधना (धर्म में अनुशासित एवं समर्पित अभ्यास) करता है उसे साधु कहा जाता है।
साधु वह व्यक्ति होता है जो हमेशा सही रास्ते पर चलता है और कभी किसी को गलत नहीं करता। कभी-कभी साधु शब्द अच्छे व्यक्ति और बुरे व्यक्ति के बीच अंतर करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। साधु बनने के लिए किसी विद्वान होने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि कोई भी साधना कर सकता है।
वे अक्सर लोगों द्वारा पवित्र एवं पूजनीय माने जाते हैं। साधु (Sadhu) का अर्थ "सही (व्यक्ति)" होता है - स (sa) का अर्थ "वह (अभूतपूर्व सत्य)" होता है; अधु (adhu) का अर्थ "अब, वर्तमान में" होता है; साध (sadh) का अर्थ "शरीर उपकरण जो प्राप्त करने की कोशिश कर रहा हो" होता है; उ (oo) का अर्थ "उलट" होता है; साधु (Sadhu) का अर्थ होता है "वह (अभूतपूर्व सत्य) अब जिसमें शरीर उपकरण जो प्राप्त करने की कोशिश कर रहा हो उलट गया हो"।
Sanyasi
संन्यासी वह व्यक्ति होता है जिसने सभी सांसारिक बंधनों को छोड़ दिया हो और पूरी तरह से आध्यात्मिक प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करता हो। उन्हें अक्सर अंतिम मुक्ति की खोज से जोड़ा जाता है तथा जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने की कोशिश करते हैं। सन्यास (sanyas) का अर्थ त्याग करना होता है - स (sa) का अर्थ "वह (प्रारंभिक सत्य)" होता है; न्यास (nyas) का अर्थ "विश्वास करना" होता है; न् (Na) का अर्थ "नहीं" होता है; आस (aas) का अर्थ "यह सब" होता ہے; सन्यास (sanyas) का अर्थ होता "अभूतपूर्व सत्य पर विश्वास करना जो यह सब नहीं (सृष्टि)"।
संन्यासी वे लोग होते हैं जिन्होंने इस संसार को त्याग दिया हो और सभी सांसारिक इच्छाओं को छोड़ दिया हो तथा केवल भगवान तक पहुँचने के लिए एकमात्र मार्ग चुना हो।
एक योगी वह व्यक्ति होता है जो योग या ध्यान का अभ्यास करता हो। योगी अपने आप को संत कहते हैं और अपनी पूरी जिंदगी भगवान की उपासना करते हुए बिताते हैं।
सिद्ध: एक प्रबुद्ध व्यक्ति जिसने आध्यात्मिक साक्षात्कार की चरम सीमा तक पहुँच चुका हो।
आचार्य: वह जो किसी भी आध्यात्मिक ज्ञान के पहलू को सिखाता हो और उदाहरण द्वारा नेतृत्व करता हो।
Sant
संत शब्द अक्सर एक आध्यात्मिक शिक्षक या मार्गदर्शक को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाता ہے जो दूसरों की सेवा एवं भक्ति जीवन जीते हैं। उन्हें सद्गुण एवं भक्ति के उदाहरण माना जाता ہے। संत (sant) संत होते हैं - स (sa) का अर्थ "वह (प्रारंभिक सत्य)" होता ہے; अन्त (ant) का अर्थ "अंत" होता है; संत (sant) का अर्थ "वह (प्रारंभिक सत्य) अंत" होता है। ये सभी शब्द एक स्थिति होने की ओर इशारा करते हैं।
संत वे होते हैं जिन्होंने कठोर तपस्या द्वारा ज्ञान प्राप्त किया ताकि वे समाज को लाभ पहुँचा सकें। संत हमेशा सत्य का पालन करते हैं और प्रबुद्ध होते हैं। कबीर, तुलसीदास संतों के उत्तम उदाहरण हैं। सरल शब्दों में कहा जाए तो संत वे होते हैं जो समाज को सही रास्ता दिखाते हैं।
कई साधु और संन्यासी संत नहीं बन पाते क्योंकि वे अपने परिवारों को छोड़कर मोक्ष प्राप्त करने जाते हैं, जिसका मतलब यह हुआ कि उन्होंने पहले ही अपनी जिम्मेदारियों को छोड़ दिया था। असल शब्दों में, जो संसार और आध्यात्मिकता के बीच संतुलन बनाए रखता ہے उसे सच्चा संत कहा जाता है।
ऋषि शब्द उस व्यक्ति को संदर्भित करता है जिसे वेदिक मंत्र प्रकट होते हैं, पवित्र मंत्रों के लेखक, एक कवि; उन मंत्रों के पुजारी गायक या प्राचीन भारत के संत या sage।
Definition of a Seer (Risi)
प्राचीनतम वेदिक ग्रंथ जैसे ऋग्वेद में 'ऋषि' शब्द कई बार आता है। इसके विभिन्न व्याख्याएँ दी गईं हैं:
ऋग्वेद सर्वानुक्रामण 1-4 'ऋषि' शब्द को उस व्यक्ति के रूप में समझाता ہے जो मंत्र रूप वाक्यांश पढ़ता – यस्य वाक्यम् च ऋषिः।
सायण ने 'ऋषि' को 'जाना' से निकाला। उन्होंने अपने ऋग्वेद पर टिप्पणी की प्रस्तावना में 'ऋषि' शब्द को 'देखना' से जोड़कर बताया कि वेद जो इंद्रिय बोध से परे होते हैं पहले सभी ज्ञानी व्यक्तियों पर भगवान की कृपा द्वारा प्रकट होते हैं।
निर्कुत्त 2-11 यास्क ने औपामण्यवा की राय उद्धृत करते हुए कहा कि 'ऋषिः दर्शनात स्तोमन ददर्श इति औपामण्यवः' इसका मतलब यह हुआ कि वेद शाश्वत होते हैं और इसे किसी एजेंसी द्वारा नहीं बनाया गया था। निर्कुत्त आगे बताता कि मंत्र सीधे ऋषियों को उनके ध्यान एवं पूर्वज्ञान द्वारा प्रकट किए जाते थे इसलिए ऋषियों को 'सूक्त दृष्टारः' कहा जाता था न कि 'सूक्त कर्तारः'।
सतपथ ब्राह्मण ने 'ऋषि' शब्द निकाला 'परिश्रम करना', 'पीड़ित होना' से लिया गया था।
तैत्तिरीय आरण्यक ने 'ऋषि' समझाया अभिः+आ+ऋष 'आगे बढ़ना', 'प्रकट होना'।
इसके व्युत्पत्तिगत अर्थ से परे 'ऋषि' शब्द कवित्व एवं भविष्यवाणी दृष्टिकोण, अदृश्य ज्ञान, धर्मशीलता एवं उत्साह से संबंधित विचार रखता था।
ऋषियाँ प्रेरित कविगण होते थे। सात ऋषियाँ ब्रह्मा के मन-बने पुत्र होते थे जिन्हें आकाश में सात सितारों द्वारा दर्शाया गया था जिनका नाम बड़ा भालू (उर्सा मेजर) नक्षत्र मंडल कहलाता था।
पुरातन समय के सात महान ऋषियाँ तथा चार बुजुर्ग भी मेरी प्रकृति वाले तथा मेरे मन से जन्मे हुए होते थे एवं इनसे ही इस संसार में सभी जीव उत्पन्न हुए थे (भगवद गीता 10-6)
अत्री, ब्रहुगु, कुत्सा, वसिष्ठ, गौतम, कश्यप एवं अंगिरसा अब सप्त ऋषियाँ कहलाते हैं। ये हर मन्वंतर में बदलते रहते हैं (एक मनु की जीवन अवधि एक मन्वंतर होती थी; कुल 14 मनु होते थे)। चार बुजुर्ग: संकर, संनंदनर, संदानर एवं सनत्कुमारर होते थे। सप्तऋषियों ने प्रवृत्ति मार्ग दिखाया जबकि चार ने निवृत्ति मार्ग दिखाया।
“इस प्रकार पिता से पुत्र तक संचरित होकर यह योग राजर्षियों तक ज्ञात रहा; हालाँकि यह पृथ्वी पर लंबे समय तक गायब हो गया।” (भगवद गीता 4-2)
श्री राम, श्री कृष्णा, बुद्ध एवं जनक सभी राजा राजर्षियाँ थे जिन्होंने उच्चतम ज्ञान सिखाया।
Types of Rishis as per Rig Veda
हमारे शास्त्रों में कितने प्रकार के ऋषियाँ मौजूद हैं? वास्तव में अंग्रेज़ी शब्द seer स्वयं संस्कृत शब्द ऋषि से आया था। Seer वास्तव में ऋषि का प्रतिबिंब होता था। ऋग्वेद के दस मंडलों में से आठ मंडल आठ ऋषियों या उनके परिवारों को सौंपे गए:
मंडल 2: ग्र्त्समदा (ब्रहुगु)
मंडल 3: विश्वामित्र
मंडल 4: गौतम (वामदेव)
मंडल 5: अत्री
मंडल 6: भारद्वाज
मंडल 7: वसिष्ठ
मंडल 8: कण्व
मंडल 9: अंगिरा
मंडल 1 एवं 10 विभिन्न ऋषियों को सौंपे गए थे।
बौधायन धर्मसूत्र विभिन्न प्रकार के दृष्टाओं की सूची देता:
श्रुत ऋषिः = वह जो अपने गुरु से वेद सुनता हो
कंद ऋषिः = विभिन्न कंदों वाले ऋषियाँ
तपस्याकारी = वह जो कठोर तपस्या करता हो
सत्यशील = वह जो सत्यवान विद्यार्थी हों
देवऋषिः = देवताओं समान; दिव्य
सप्तऋषिः = सात महान ऋषियाँ
महा ऋषिः = महान/उच्च स्थान
परम ऋषिः = सर्वोच्च/उच्च स्थान
ब्रह्मऋषिः = ब्राह्मण समुदाय के ऋषियाँ
राजऋशी = क्षत्रिय समुदाय के ऋशियाँ (राजा)
जनऋशी = सामान्य मानव जो ऋशी बनता हो
पतंजलि ने महाभाष्य लेखक पाणिनी's अष्टाध्यायी पर दो नए श्रेणी स्थापित किए:
मंत्रकृत = वेदीय मंत्रों के प्रकटकर्ता या रचनाकार
मंत्रकृतसम = वैदंग जैसे कल्पसूत्र लेखक
Ten Types in the Ramayana and Mahabharata
गृहस्थाश्रमिस = गृहस्थ लेकिन ऋशी
उर्ध्वरैतस = जिनकी पत्नियाँ या बच्चे नहीं होते; ब्रह्मचारी
आश्रमा वासी = आश्रम निवास करने वाले
यायावरस = निरंतर यात्रा करने वाले
पुरोहित-वृत्तिका = पुजारी संत
साधारण वृत्तिका = सामान्य प्रकार के ऋशी
शास्त्राद्यापक = शिक्षक ऋशी
शास्त्राध्यापक = शस्त्र प्रशिक्षण देने वाले ऋशी
उग्र तपस्विस = कठोर तपस्या करने वाले
साधारण तपस्विस = सामान्य तपस्या करने वाले
अधिकांश दृष्टा गृहस्थ थे।
प्रमुख संप्रदाय
श्री संप्रदाय: जहाँ मुख्य प्रवक्ता रामानुजाचार्य(जो 12वीं सदी में जीवित रहे), ने विषिष्ट अद्वैत या भगवान एवं उसकी शक्तियों की विविधताओं के साथ एकता सिद्धांत फैलाया जिसे श्री या देवी लक्ष्मी से उत्पन्न माना जाता था।
ब्रह्म संप्रदाय: जहाँ मुख्य प्रवक्ता माध्वाचार्य(जो 13वीं सदी में जीवित रहे), ने विषिष्ट द्वैत या विविधताओं वाली द्वैत सिद्धांत फैलाया जिसे भगवान ब्रह्मा से उत्पन्न माना जाता था।
रुद्र संप्रदाय: जहाँ मुख्य प्रवक्ता विष्णुस्वामी ने शुद्ध द्वैत या शुद्ध पारलौकिक द्वैत सिद्धांत फैलाया; वल्लभाचार्य भी इस संप्रदाय की शाखा माने जाते थे जिन्हें रुद्र या भगवान शिव से उत्पन्न माना जाता था।
कुमार संप्रदाय: जहाँ मुख्य प्रवक्ता निंबार्क ने द्वैत अद्वैत या समकालीन एकता एवं द्वैत सिद्धांत फैलाया जिसे भगवान ब्रह्मा पुत्र कुमारों या जिनमें सनत्कुमार शामिल होते थे से उत्पन्न माना जाता था।
मूर्खेण सह संयोगो विषादपि सुदुर्जरः।
विज्ञेन सह संयोगः सुधारससमः स्मृतः॥
एक मूर्ख मित्र बनाना एवं उसके साथ व्यवहार करना जहर से अधिक हानिकारक होगा लेकिन एक ज्ञानी व्यक्ति के साथ रहना अमृत समान होगा।
WHY HINDU SHOULD AVOID HALAL PRODUCTS
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हिन्दू देवीयों के नाम और परिचय
Goddesses in India are worshipped under various regional names, often syncretized with major pan-Hindu Goddesses like Parvati, Lakshmi, or Adi Parashakti.
Mata Saraswati (Goddess of Knowledge, Daughter of Brahma-Savitri)
Savitri (Wife of Brahma).
Gayatri (Wife of Brahma).
Shraddha (Wife of Brahma).
Medha (Wife of Brahma).
Shatarupa (Wife of Swayambhu Manu).
Aditi (Wife of Kashyapa and mother of the Devas).
Shraddha (Wife of Angira and mother of Brihaspati).
Usha (Daughter of Dyaus).
Mata Lakshmi (Wife of Lord Vishnu, Daughter of Sagar)
Devi Tulsi (Brinda Devi, a part of Lakshmi).
Vindhyavasini Devi Yogamaya (Daughter of Yashoda, sister of Shri Krishna).
Yamuna Devi (Sister of Yamaraja, Kalindi).
Shachi (Wife of Indra, worshipper of Indrani and Jvaladevi).
Devi Aryani (Sister of the ancestor deity Aryama, daughter of Aditi, wife of Sun's son Revanta).
Ambika: (Mother of the tridev, Jagadambe, Durga, Kaithabha, Mahamaya, and Chamunda).
Sati: (Daughter of Daksha Prajapati, wife of Lord Shiva).
Parvati: (Daughter of King Himavan and Queen Mainavati, wife of Lord Shiva, mother of Kartikeya and Ganesha).
Uma: (Goddess of the Earth, also Parvati).
Ganga Devi: (Sister of Parvati, daughter of Himavan).
Bhadrakali: (Mother Mahakali has many forms including Shyama, Dakshina Kalika, Guhya Kali, Kalratri, Bhadrakali, Mahakali, Shmashana Kali, etc.).
Vanadurga: A form of Mata Durga known as Shatpraharini Asuramardini; she appears to protect forests by slaying demons who take refuge there.
Varuni (Wife of Varuna Devi Varuni or Varunani); a pilgrimage called Varuni Panchkosi takes place in Varanasi.
Narmada Devi (Daughter of Shiva or King Maikhal, wife of Sonbhadra).
Navadurga
Shailaputri (Parvati).
Brahmacharini (Parvati).
Chandraghanta (Parvati).
Kushmanda (Parvati).
Skandamata (Parvati).
Katyayani (Daughter of Rishi Katyayana, Mahishasuramardini, Tulja Bhavani).
Kalratri (Parvati).
Mahagauri (Parvati).
Siddhidatri (Parvati); also called Shailaputri due to being the daughter of the Himalayas.
Other Forms According to Durga Saptashati
Brahmani
Maheshwari
Kaumari
Vaishnavi
Varahi
Narasimhi
Aindri
Shivduti
Bhimadevi
Bhramari
Shakambhari
Adishakti
Raktadantika
Ten Mahavidyas;
Kali: Wife of Lord Shiva; daughter of Amba Mata who killed the demon Raktabija; friend to Parvati.
Tara: Daughter of Prajapati Daksha; sister to Sati.
Chhinnamasta: A form of Goddess Parvati; associated with Jaya and Vijaya.
Tripurasundari: Lalita; Raj Rajeshwari; Tripura-Bhairavi; Tripura and Tripura Sundari are all forms of Jagadamba.
Bhuvaneshwari: Manifestation similar to Mahalaxmi; also known as Shakambhari and Durga.
Tripurabhairavi: According to Narada-Panchratra considered a form of Kali; related to the slaying of the demon Mahishasura.
Saptamatrika
A group of seven mother-goddesses, each of whom is the shakti, or female counterpart, of a God. They are Brahmani, Maheshvari, Kaumari, Vaishnavi, Varahi, Indrani, and Chamunda. One text, the Varaha-purana, states that they number eight, including Yogeshvari.
All Yoginis
Tripur Bhairavi
Kaulesh Bhairavi
Rudra Bhairavi
Chaitanya Bhairavi
Nitya Bhairavi
Bhadra Bhairavi
Shmashana Bhairavi
Sakal Siddhi Bhairavi
Sampat Prada Bhairavi
Kameshwari Bhairavi
The Goddess Tripur Bhairavi is closely associated with 'Kal Bhairav'.
Dhumavati: The seventh Mahavidya considered a form of Parvati.
Bagalamukhi: Also known as Pitambara; originated from Sri Vidya; referred to as Vaishnavi.
Devi Matangi: Daughter of Matanga Muni; known as Matagiri.
Devi Kamala: Associated with Lord Vishnu; emerged from the churning of the ocean.
On Diwali day, Shaivites worship Kali while Vaishnavites worship Kamala.
Hindu Goddesses represent specific virtues or powers. For example, Saraswati embodies knowledge, Lakshmi symbolizes wealth and prosperity, and Durga represents strength and protection.
These Goddesses often serve to uphold dharma (cosmic order) and morality within the universe.
Hindu Goddesses often serve dual roles as both nurturing figures and fierce protectors. This duality showcases the balance between compassion and strength in Hindu culture / regional variations in the names and worship of Goddesses
Chandigarh: The city's name is derived from the goddess Chandi, and devotees worship Goddesses like Basanti Mata and Kansa Devi.
Delhi: Jhandewalan, also known as "Maa Jhande Wali," is a prominent Goddess in Delhi, with a temple where a large flag was installed in her honor.
Haryana: Local Goddesses with individual shrines are revered, such as Chhitane Wali Mata, Bhimeshwari Devi, Sawal Devi, Bhanbhori Devi, Bhoja Wali Devi, and Phoolm Devi.
Punjab: Lal Devi is worshipped at her temple in Amritsar, and Julfa Mata's temple in Nangal is also a revered place of worship. Jayanti Devi has a shrine on the Jayanti Majri village hilltop. Goddess Sanjhi is a folk Goddess worshipped during Navaratri.
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ब्रह्मोपास्याब्रह्मशक्तिर्ब्रह्मसृष्टिविधायिनी ॥ 🌺🙏 ॐ तत्सत् ॥
चार दिशाओं में हैं चार धाम, जगतगुरू शंकराचार्य ने किया था इनकी यात्रा का प्रचार
स्कंद पुराण के तीर्थ प्रकरण के अनुसार चार धाम यात्रा को महत्वपूर्ण माना गया है। चार धामों के दर्शन करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा भी बढ़ती है। ये चार धाम चार दिशाओं में स्थित है यानी उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण रामेश्वर, पूर्व में पुरी और पश्चिम में द्वारिका पुरी। प्राचीन समय से ही ये चार धाम तीर्थ के रूप मे मान्य थे, लेकिन इनके महत्व का प्रचार जगत गुरु शंकराचार्य जी ने किया था।
ग्रंथों के अनुसार प्राचीन तीर्थ स्थलों पर जाने से पौराणिक ज्ञान बढ़ता है। देवी-देवताओं से जुड़ी कथाएं और परंपराएं मालूम होती हैं। प्राचीन संस्कृति को जानने का मौका मिलता है। मंदिर के पंडित और आसपास रहने वाले लोगों से संपर्क होता है, जिससे अलग-अलग रीति-रिवाजों को जानने का अवसर मिलता है। भगवान और भक्ति से जुड़ी मान्यताओं की जानकारी मिलती है। जिसका लाभ दैनिक जीवन की पूजा में मिलता है। इसलिए चार धामों को अलग-अलग दिशाओं में स्थापित किया गया है।
बद्रीनाथ धाम
यह तीर्थ बद्रीनाथ के रूप में भगवान विष्णु को समर्पित है। ये अलकनंदा नदी के किनारे बसा है। माना जाता है इसकी स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने की थी। इस मन्दिर में नर-नारायण की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञान ज्योति का प्रतीक है। यहां पर श्रद्धालु तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। यहां पर वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। बद्रीनाथ मंदिर के कपाट अप्रैल के आखिरी या मई के शुरुआती दिनों में दर्शन के लिए खोल दिए जाते हैं। लगभग 6 महीने तक पूजा के बाद नवंबर के दूसरे सप्ताह में मंदिर के पट फिर से बंद कर दिए जाते हैं।
रामेश्वर धाम
रामेश्वर तीर्थ तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में समुद्र के किनारे स्थित है। जो कि भगवान शिव को समर्पित है। यहां शिवजी की पूजा लिंग रूप में की जाती है। जो कि बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है। माना जाता है कि भगवान राम ने ही इस रामेश्वरम् शिवलिंग की स्थापना की थी।
पुरी धाम
यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है।
Tree can store Water
Andhra Pradesh Forest Department authorities cut the bark of an Indian laurel tree in Papikonda National Park to find that the tree stores water in the summer.
This knowledge was shared with the Forest department by the Konda Reddi tribe, a Particularly Vulnerable Tribal Group inhabitating the Papikonda hill range in the Godavari region.
महाशिवरात्रि का रहस्य
महाशिवरात्रि, हर माह अमावस्या से पहले आने वाली रात को शिवरात्रि कहा जाता है। किंतु फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
यह रात महीने की सबसे अंधेरी रात होती है। महाशिवरात्रि साल की सबसे अंधेरी रात है और इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है क्योंकि उत्तरायण या सूर्य की उत्तरी गति के पूर्वार्द्ध में आने वाली इस रात को पृथ्वी एक ख़ास स्थिति में आ जाती है, जब हमारी ऊर्जा में एक प्राकृतिक उछाल आता है।
शिवरात्रि बोधोत्सव: यह एक ऐसा महोत्सव है, जिसमें हमें यह बोध होता है कि हम भी शिव का अंश हैं और उनके संरक्षण में हैं। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य की भीतरी ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है।
साधकों के लिए महत्व: महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं, जबकि साधकों के लिए, यह वह दिन है जब वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे।
आधुनिक विज्ञान और शिव: आधुनिक विज्ञान ने कई चरणों से होते हुए यह प्रमाणित किया है कि आप जिसे जीवन के रूप में जानते हैं, वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है।
महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक अर्थ
अज्ञानता का नाश: रात्रि का अर्थ अज्ञानता से है। जब धरती पर पापाचार फैलता है, तब भक्त आत्माएं दुखी होकर परमात्मा का आवाहन करती हैं। तब परमपिता परमात्मा शिव का इस धरती पर अवतरण होता है।
सृष्टि की शुरुआत: माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में अवतरण हुआ था। ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए।
समुद्र मंथन: समुद्र मंथन से हलाहल विष उत्पन्न हुआ था, जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में रख लिया था। इस घटना से भगवान शिव 'नीलकंठ' के नाम से प्रसिद्ध हुए।
शिव शब्द का अर्थ: 'शिव' का अर्थ 'वह जो नहीं है' होता है। सृष्टि 'वह जो है' होती है। इसलिए सृष्टि के स्रोत को शिव नाम से जाना गया।
ध्वनि और शक्ति: शिव शब्द या ध्वनि में वह सब कुछ विसर्जित कर देने की क्षमता होती है, जिसे आप 'मैं' कहते हैं।
आध्यात्मिक जागृति: महाशिवरात्रि एक अवसर और संभावना है, जब आप स्वयं को हर मनुष्य के भीतर बसी असीम रिक्तता के अनुभव से जोड़ सकते हैं।
कल्याणकारी तत्व: शिव का अर्थ ही कल्याणकारी और मंगलकारी होता है। इसलिए वह सदाशिव हैं।
महाशिवरात्रि केवल उपवास और जागरण का समय नहीं, बल्कि आत्म जागृति का अवसर भी है। इस शुभ रात्रि पर हम सभी को अपनी आत्मा की गहराइयों में जाकर अपने भीतर की ऊर्जा को पहचानने का प्रयास करना चाहिए।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र
प्रसिद्ध शिव पंचाक्षर स्तोत्र पांच पवित्र अक्षरों की शक्ति, न-म-शि-वा-य की स्तुति करता हैं ।
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै नकाराय नमः शिवाय
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय
तस्मै मकाराय नमः शिवाय
शिवाय गौरीवदनाब्जबृंदा
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
तस्मै शिकाराय नमः शिवाय
वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमूनीन्द्र देवार्चिता शेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय
तस्मै वकाराय नमः शिवाय
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै यकाराय नमः शिवाय
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ ।
शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते ll
जो शिव के समीप इस पंचाक्षर का पाठ करते हैं, वे शिव के निवास को प्राप्त करेंगे और आनंद लेंगे।
विश्व का एकमात्र पानी के नीचे स्थित नरसिम्हा मंदिर
यह दिव्य मंदिर उत्तरी कर्नाटक के बीदर शहर से एक किलोमीटर दूर है, जिसे झरानी नरसिम्हा मंदिर कहा जाता है।
भगवान नरसिम्हा के दर्शन के लिए भक्तों को कमर तक पानी से भरी सुरंग से गुजरना पड़ता है। यह मंदिर मणिचूला की पहाड़ी श्रृंखला (गुफा में) में स्थित है, जहां पानी लगभग 300 मीटर की ऊंचाई से बहता है।
जैसे अष्ट विनायक मंदिर, द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर, अष्टादश शक्ति पीठ, नव नरसिम्हा मंदिर हैं। वे हैं अहोबिलम यादगिरिगुट्टा, मालाकोंडा, सिम्हाचलम, धर्मपुरी, वेदाद्रि, अंतर्वेदी, मंगलगिरि और पेन्चालाकोना।
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ATHARV VED (अथर्ववेद) CONCEPTS and EXTRACTS
The Atharva Veda, the fourth Veda, is a treasure of mysterious rituals, mantras, and secret knowledge. It provides insights into influencing reality through esoteric practices.
Unlike the Rig, Sama, and Yajur Vedas, the Atharva Veda is filled with magical hymns and ta***ic rituals. It reveals mantras for healing, protection, and even curses, making it the foundation of Vedic occult science.
The Atharva Veda includes mantras believed to affect both physical and spiritual realms. The Bhutanashini mantras are said to drive away evil spirits, while medicinal mantras invoke the healing properties of herbs.
Many hymns offer protection against witchcraft and black magic. The recitation of the Apamarga Sukta is performed to dispel negative energy and counteract malevolent mantras. It is still used in ta***ic rituals today.
The Atharva Veda details esoteric practices for attracting love, wealth, and power. The Kamana Sukta contains hymns that invoke divine powers to fulfill desires and influence the mind.
Specific yajnas (fire rituals) are described to control cosmic energies. The Brahmavarchas Yajna is believed to enhance spiritual power and awaken latent siddhis (mystical abilities), including hymns dedicated to serpents.
The recitation of the Sarpa Sukta is done for protection against snake bites and to gain the favor of serpent deities, linking the Vedas to Naga Lok (serpent realm).
The Vedas reveal secret uses of herbs for healing and protection. The Oushadhi Sukta describes the mysterious properties of plants, making the Atharva Veda a precursor to Ayurveda and Vedic chemistry.
Fire (Agni) is mentioned as a medium for communicating with higher realms. Ta***ic practitioners use Vedic fire rituals to control cosmic powers and receive divine guidance.
The Pushti Sukta includes rituals invoking Lakshmi for wealth and abundance. The Vedas emphasize that proper intention and pronunciation of mantras are crucial for manifesting prosperity.
Many hymns from the Atharva Veda were later incorporated into ta**ra, forming the basis for esoteric practices like Aghora sadhana and Shabar mantras, which are still practiced by advanced practitioners today.
सं श्रुतेन गमेमहि।
हम वेदोपदेश से युक्त हों।[अथर्ववेद 1.1.4]
One should get an opportunity-chance to acquaint himself with the Ved. Education is the most tedious-difficult job for some. Even if, an imprudent-ignorant get an opportunity, he tries to skip it. Still, he may be able to listen to the lectures, sermons, preaching by the sages, Sadhus, Pandits, scholars. Listen, analyse, try to grasp (understand, acquire) the gist (nectar, elixir, extract, theme) of the Veds. This will open avenues for the devotee to Parmanand, Bliss, extreme pleasure, Moksh.
स्वस्ति मात्र उत पित्रे नो अस्तु स्वस्ति गोभ्यो जगते पुरुषेभ्यः।
विश्व सुभूतं सुविदत्रै नो अस्तु ज्योगे व दृशेम सूर्यम्॥
हमारे माता-पिता का कल्याण हो। गायें, सम्पूर्ण संसार और सभी मनुष्योंका कल्याण हो। सभी कुछ सुदृढ़ सत्ता, शुभ ज्ञान से युक्त हो तथा हम चिरन्तन काल तक सूर्य को देखें।[अथर्ववेद 1.31.4]
Let our parents-ancestors be blessed. Let cows & the whole world be blessed. Every thing should be associated with auspicious might (& power) and auspicious knowledge-enlightenment and we should see the Sun for an infinite period.
हिरण्यवर्णाः शुचयः पावका यासु जातः सविता यास्वग्निः।
या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु॥
जो जल सोने के समान आलोकित होने वाले रंग से सम्पन्न, अत्यधिक मनोहर शुद्धता प्रदान करने वाला है, जिससे सविता देव और अग्नि देव उत्पन्न हुए हैं। जो श्रेष्ठ रंग वाला जल अग्नि गर्भ है। वह जल हमारी व्याधियों को दूर करके हम सबको सुख और शान्ति प्रदान करे।[अथर्ववेद 1.33.1]
Water having the aura like gold (when Sun light is reflected & refracted through it), provides extreme level of purity (Its a natural cleanser due to the presence of oxygen in it.), out of which demigods named Savita (Sury-Sun) & Agni-fire have evolved (Nar-water, Bhagwan Narayan Shri Vishnu evolved out it through a golden egg, leading to evolution of Sun). Which is the source of golden coloured fire. It cures all our diseases and provides us pleasure, solace & comforts.
यासां राजा वरुणो याति मध्ये सत्यानृते अवपश्यज्जनानाम्।
या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु॥
जिस जल में रहकर राजा वरुण, सत्य एवं असत्य का निरीक्षण करते चलते हैं। जो सुन्दर वर्ण वाला जल अग्नि को गर्भ में धारण करता है, वह हमारे लिए शान्तिप्रद हो।[अथर्ववेद 1.33.2]
Varun Dev-deity of water resides in it and analyse truth & falsehood. Water which has golden coloured fire in its womb should grant us solace, peace, tranquillity.
यासां देवा दिवि कृण्वन्ति भक्षं या अन्तरिक्षे बहुधा भवन्ति।
या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु॥3॥
जिस जल के सारभूत तत्व तथा सोमरस का, इन्द्र आदि देवता द्युलोक में सेवन करते हैं, जो अन्तरिक्ष में विविध प्रकार से निवास करते हैं। अग्निगर्भा जल हम सबको सुख और शान्ति प्रदान करे।[अथर्ववेद 1.33.3]
The water which contain fire in it, the basic elements of which & the Somras consumed by the demigods & Indr Dev, present in the space-heavens grant us pleasure, peace, solace & tranquillity.
शिवेन मा चक्षुषा पश्यतापः शिवया तन्वोप स्पृशत त्वचं में।
घृतश्चुतः शुचयो याः पावकास्ता, न आपः शं स्योना भवन्तु॥4॥
हे जल के अधिष्ठाता देव! आप अपने कल्याणकारी नेत्रों द्वारा हमें देखें तथा अपने हितकारी शरीर द्वारा हमारी त्वचा का स्पर्श करें। तेजस्विता प्रदान करने वाला शुद्ध तथा पवित्र जल हमें सुख तथा शान्ति प्रदान करे।[अथर्ववेद 1.33.4]
Hey the deity of water-Varun Dev! Have a look over us through your blessing eyes and touch us through your soothing touch (through the body). The water which gives us energy-nourishes us should grant us pleasure and peace (solace, tranquillity).
THREE KINDS OF FIRE तीन प्रकार की अग्नि :: दावानल (jungle fire), बड़वानल fire in the ocean) और जठराग्नि (fire in the stomach)। बड़वानल-जल में उपस्थित अग्नि; fire present in water.
यासां देवा दिवि कृण्वन्ति भक्षं या अन्तरिक्षे बहुधा भवन्ति।
या अग्निं गर्भं दधिरे सुवर्णास्ता न आपः शं स्योना भवन्तु॥
जिस जल के सारभूत तत्व तथा सोमरस का इन्द्र आदि देवता द्युलोक में सेवन करते हैं। जो अन्तरिक्ष में विविध प्रकार से निवास करते हैं। अग्निगर्भा जल हम सबको सुख और शान्ति प्रदान करे।[अथर्ववेद 1.33.3]
The water which appeared from the womb of fire, the extract, nectar, elixir of which is sipped by demigods-deities in the higher abodes-heavens, should grant us peace, tranquillity & solace.
शिवेन मा चक्षुषा पश्यतापः शिवया तन्वोप स्पृशत त्वचं में।
घृतश्चुतः शुचयो याः पावकास्ता, न आपः शं स्योना भवन्तु॥
हे जल के अधिष्ठाता देव! आप अपने कल्याणकारी नेत्रों द्वारा हमें देखें तथा अपने हितकारी शरीर द्वारा हमारी त्वचा का स्पर्श करें। तेजस्विता प्रदान करने वाला शुद्ध तथा पवित्र जल हमें सुख तथा शान्ति प्रदान करे।[अथर्ववेद 1.33.4]
Hey Varun Dev! Please look at us through your eyes granting us pleasure for our welfare and touch our skins through your body. The pure & energy giving water should give us solace, peace & tranquillity.
वरुण सूक्त :: ऋषि :- शुनःशेप एवं वशिष्ठ, निवास स्थान :- द्युस्थानीय, सूक्त सँख्या 12.
वरुण देव द्युलोक और पृथ्वी लोक को धारण करने वाले तथा स्वर्गलोक और आदित्य एवं नक्षत्रों के प्रेरक हैं। ऋग्वेद में वरुण का मुख्य रूप शासक का है। वह जनता के पाप पुण्य तथ सत्य असत्य का लेखा-जोखा रखते हैं। ऋग्वेद में वरुण देव का उज्जवल रूप वर्णित है। सूर्य उसके नेत्र हैं। वह सुनहरा चोगा पहनते हैं और कुशा के आसन पर बैठते हैं। उसका रथ सूर्य के समान दीप्तिमान है तथा उसमें घोड़े जुते हुए हैं। उसके गुप्तचर विश्वभर में फैलकर सूचनाएँ लाते हैं। वरुण रात्री और दिन के अधिष्ठाता हैं। वह संसार के नियमों में चलाने का व्रत धारण किए हुए हैं। ऋग्वेद में वरुण देव के लिए क्षत्रिय स्वराट, उरुशंश, मायावी, धृतव्रतः दिवः कवि, सत्यौजा, विश्वदर्शन आदि विशेषणों का प्रयोग मिलता है।
जिह्वाया अग्रे मधु मे जिह्वामूले मधूलकम्।
ममेदह कृतावसो मम चित्तमुपायसि॥
मेरी जिह्वा के अग्र भाग में मधुरता-माधुर्य हो। मेरी जिह्वा के मूल में मधुरता हो। मेरे कर्म में माधुर्य का निवास हो और हे माधुर्य! मेरे हृदय तक पहुँचो।[अथवर्वेद 1.34.2]
The tip & root of my tongue should have sweetness. My deeds-endeavours should have sweetness (politeness) in them. Hey sweetness! Please reach my heart.
MANTRA WHEN GOING TO WORK
ओं मधुमन्मे निक्रमणं मधुमन्मे परायणम्।
वाचा वदामि मधुमभ्दूयासं मधुसंदृशः॥
मेरा निकट आना, मिलना मधुयुक्त, मधुर हो। मेरा प्रत्यागमन, बिछुड़ना, वियुक्त होना मधुर हो। मैं वाणी से मधुर बोलूँ। मैं मधु के समान दृष्टि से युक्त हो जाऊँ।[अथर्ववेद 1.34.3]
My arrival & departure should cause happiness. I should speak words causing happiness-pleasure. I should perceive happiness all around
मे :: मेरा नि-क्रमणम् निकट आना, मिलना। मधुमत् :: मधुयुक्त, मधुर हो। मे :: मेरा परा-अयनम् प्रत्यागमन, बिछुड़ना, वियुक्त होना। वदामि :: बोलूँ। मधु-सम्-दृशः :: मधु-सदृश। भूयासम् :: हो जाऊँ।
एक एव नमस्यो विक्ष्वीडय:।
एक परमेश्वर ही पूजा के योग्य और प्रजाओं में स्तुत्य है।[अथर्ववेद 2.2.1]
One should be devoted to the God. Amongest all creations, creatures, living beings, no one is eligible to be worshipped. If one worship a human being, devil, Rakshas-Demon, he is sure to gain incarnation-next birth, as per the qualities-characteristics of that particular species.
यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः॥
जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं और न इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो।[अथर्ववेद 2. 15.1]
(द्यौश्च :- द्यौः च, बिभीतो :- बिभीतः, एवा :- एवं)
The manner in which the earth and the sky can not be destroyed-abolished & are free from fear, one should also be fearless.
यथाहश्च रात्रीं च न बिभीतो न रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः॥
जिस प्रकार दिन एवं रात को भय नहीं होता और इनका नाश नहीं होता, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम्हें भी भय नहीं होना चाहिये।[अथर्ववेद 2. 15.2]
(यथाहश्च :- यथा अहः च)
The way the day & the night are free from fear & can not be abolished, the soul too is indestructible-imperishable.
यथा सूर्यश्च चन्द्रश्च न बिभीतो न रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः॥
जिस प्रकार सूर्य एवं चंद्र को भय नहीं सताता और इनका विनाश नहीं होता, उसी भाँति हे मेरे प्राण! तुम भी भय का अनुभव न करो।[अथर्ववेद 2. 15.3]
(सूर्यश्च :- सूर्यः च, चन्द्रश्च :- चन्द्रः च)
The manner Sun & Moon are not affected by fear, they can not be vanished-destroyed, the soul too can not be destroyed. Thus one should be fearless.
यथा ब्रह्म च क्षत्रं च न बिभीतो न रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः॥
जैसे ब्रह्म एवं उसकी शक्ति को कोई भय नहीं होता और उनका विनाश नहीं होता, वैसे ही हे मेरे प्राण! तुम भय से मुक्त रहो।[अथर्ववेद 2.15.4]
The manner Brahm & his might are fearless, since they can not be destroyed one should be free from fear. Soul is imperishable.
यथा सत्यं चानृतं न बिभीतो न रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः॥
जैसे सत्य तथा असत्य किसी से भय नहीं खाते और इनका नाश नहीं होता, वैसे ही हे मेरे प्राण! तुम्हें भी भय नहीं होना चाहिए।[अथर्ववेद 2.15.5]
(चानृतं :- च अनृतं)
The truth and falsehood persists for ever without fear & can not be vanished, the soul too is for ever-imperishable.
यथा भूतं च भव्यं च न बिभीतो न रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः॥
जिस भाँति भूतकाल तथा भविष्यकाल को किसी का भय नहीं होता और जिनका विनाश नहीं होता, उसी भाँति हे मेरे प्राण! तुम भी भय से मुक्त रहो।[अथर्ववेद 2. 15.6]
The manner in which past the future are without fear & can not be vanished, one-soul too can not be perished, thus the individual should be fearless.
शिवा भव पुरुषेभ्यो गोभ्यो अश्वेभ्य: शिवा।
शिवास्मै सर्वस्मै क्षेत्राय शिवा न इहैधि॥
हे नववधू! पुरुषों के लिये, गायों के लिये और अश्वों के लिये कल्याणकारी हो। सब स्थानों के लिये कल्याण करनेवाली हो तथा हमारे लिये भी कल्याण मय होती हुई यहाँ आओ।[अथर्ववेद 3.28.3]
Hey the newly married bride! Come to become auspicious-beneficial to the men, cows, horses, all places-locations and all of us (in the family, house, home).
अनुव्रतः पितुः पुत्रो मात्रा भवतु संमनाः।
जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम्॥
पुत्र पिता के अनुकूल उद्देश्य वाला हो। पत्नी पति के प्रति मधुर और शान्ति प्रदान करने वाली वाणी बोले।[अथर्ववेद 3.30.2]
The son should act as per his father to accomplish his tasks, projects. The wife should be devoted to the husband granting him peace & pleasure speaking sweet words.
Its the earnest desire of the father & the Guru that his son-disciple should progress through righteous, honest, pious, virtuous means. He should follow the Karm, Gyan & Bhakti Marg. He should make efforts to attain the God through Satvik means. Let the God bless him with Anay Bhakti-devotion, Prem-love in the feet of the Almighty. He should be spiritual and pragmatic. He should be truthful & cooperative. Love and protect his progeny.
(पुत्रः) पुत्र, (पितुः) पिता का, (अनुव्रतः) अनुव्रत हो अर्थात् उसके व्रतों को पूर्ण करे। पुत्र (मात्रा) माता के साथ, (संमनाः) उत्तम मनवाला, (भवतु) हो अर्थात् माता के मन को सन्तुष्ट करने वाला हो। (जाया) पत्नी को चाहिए कि वह (पत्ये) पति के साथ (मधुमतीम्) मीठी और (शन्तिवाम्) शान्तिप्रद (वाचम्) वाणी, (वदतु) बोले।
मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्मा स्वसारमुत स्वसा।
सम्यञ्चः सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया॥
भाई अपने भाई से प्रेम करे-द्वेष न रखें; बहन अपने बहन से प्रेम करें और विद्वेष न रखें। समान गति और समान नियमवाले होकर कल्याणमयी वाणी-मधुर वचन बोलें। [अथर्ववेद 3.30.3]
Brothers & sisters should have mutual love & respect for each other without enmity. They follow the same rules-regulation in the family and use loving soothing-pleasing words.
There should be no ill will, rivalry, competition amongest the brother & sisters or the other members of the family.
ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो मा वि यौष्ट संराधयन्तः सधुराश्चरन्तः।
अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्वः संमनसस्क्र्णोमि॥
वृद्धों का सम्मान करनेवाले, विचारशील, एक मत से कार्य सिद्धि में संलग्न, समान धुरवाले होकर विचरण करते हुए तुम विलग मत होओ। परस्पर मधुर सम्भाषण करते हुए आओ। मैं तुहें एक गति और एक मति वाला करता हूँ।[अथर्ववेद 3.30.5]
You respect your elders, are thoughtful, busy in endeavours with one voice-unitedly, having common interest, target, goal, should never depart-separate from one another. Come to me talking sweet-pacifying words. I grant you equal speed-strength and intellect-prudence.
सध्रीचीनान् व: संमनसस्कृणोम्येक श्नुष्टीन्त्संवनेन सर्वान्।
देवा इवामृतं रक्षमाणा: सामं प्रात: सौमनसौ वो अस्तु॥
समानगति और उत्तम मन से युक्त आप सबको मैं उत्तम भाव से समान खान-पान वाला करता हूँ। अमृत की रक्षा करनेवाले देवों के समान, आपका प्रातः और साँय कल्याण हो। [अथर्ववेद 3.30.7]
न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति।
देवाँश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित्ताभिः सचते गोपतिः सह॥
मनुष्य जिन वस्तुओं से देवताओं के हेतु यज्ञ करता है अथवा जिन पदार्थों को दान करता है, वह उनसे संयुक्त ही हो जाता है; क्योंकि न तो वे पदार्थ नष्ट होते हैं, न ही चोर चुरा सकता है और न ही कोई शत्रु उन्हें बलपूर्वक छीन सकता है।[अथर्ववेद 4.21.3]
The goods used by the devotee for the sake of offerings or donations to the demigods-deities, are never lost, since he gets connected to them & these goods are not destroyed, neither a thief can steal them nor an enemy can sn**ch them by force.
I grant excellent eating-living habits to you; the people working in unison-together. You are blessed like demigods who protect the ambrosia from morning till evening i.e., through out the day.
स नो मुञ्चत्वं हस:।
यह ईश्वर हमें पापों से मुक्त करे। [अथर्ववेद 4.23.1]
One is requesting the Almighty to clear him of sins. Sins are the out come of wicked-evil deeds of previous & present births. They appear in the form of pain, torture, difficulties, illness, tensions, troubles etc.
शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु नः॥
दैवीगुणों से युक्त जल हमारे लिए हर प्रकार से कल्याणकारी और प्रसन्नतादायक हो। वह आकांक्षाओं की पूर्ति करके आरोग्य प्रदान करे। [अथर्ववेद 6.1.1]
Water having divine properties should be beneficial to us & grant us happiness-pleasure. It should be auspicious to us.
आपः :: जल, water.
अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा। अग्निं च विश्वशम्भुवम्॥
सोम का हमारे लिए उपदेश है कि दिव्य जल, हर प्रकार से औषधीय गुणों से युक्त है। उसमें कल्याणकारी अग्नि भी विद्यमान है। [अथर्ववेद 6.1.2]
The Som-Moon has a message to humanity that the divine water has all sorts of divine medicines in it, along with the fire beneficial to humans.
The Moon is the master of all medicines present in the vegetation & Ayur Vedic medicines (herbs, plants, shrubs etc.) The Jadi-Booti i.e., herbs grow during night in the presence of Moon light.
शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु नः॥
दैवीगुणों से युक्त जल हमारे लिए हर प्रकार से कल्याणकारी और प्रसन्नतादायक हो। वह आकांक्षाओं की पूर्ति करके आरोग्य प्रदान करे।[अथर्ववेद 6.1.1]
Water having divine properties should be beneficial to us & grant us happiness-pleasure. It should be auspicious to us.
हे आप-जल! पीते समय आप काम्य दैवी गुणों से युक्त हों। वे काम्य दैवी गुण आप से हम में प्रवाहित हों।[अथर्ववेद 6.1.1]
O-Hey Water! You should be enriched with divine properties-characterises and these traits should flow into us , when we drink you.
दैवी गुणों से युक्त आप-जल हमारे लिए हर प्रकार से कल्याणकारी और प्रसन्नता दायक हो। वह आकांक्षाओं की पूर्ति करके आरोग्य प्रदान करे।
May the auspiciousness which supports you, flow to us.
अप्सु मे सोमो अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा। अग्निं च विश्वशम्भुवम्॥
सोम का हमारे लिए उपदेश है कि दिव्य आप-जल हर प्रकार से औषधीय गुणों से युक्त है। उसमें कल्याणकारी अग्नि भी विद्यमान है।[अथर्ववेद 6.1.2]
The Moon says that the divine water is full of medicinal properties and has fire in it.
सोम का हमारे लिए उपदेश है कि दिव्य जल, हर प्रकार से औषधीय गुणों से युक्त है। उसमें कल्याणकारी अग्नि भी विद्यमान है।
The Som-Moon has a message to humanity that the divine water has all sorts of divine medicines in it, along with the fire beneficial to humans.
The Moon is the master of all medicines present in the vegetation & Ayur Vedic medicines (herbs, plants, shrubs etc.) The Jadi-Booti i.e., herbs grow during night in the presence of Moon light.
Hydrogen burns in the presence of oxygen to produce water & vice-versa.
आपः प्रणीत भेषजं वरुथं तन्वे 3 मम। ज्योक् च सूर्यं दृशे॥
दीर्घकाल तक मैं सूर्य को देखूँ अर्थात् जीवन प्राप्त करुँ। हे जल! शरीर को आरोग्यवर्धक दिव्य औषधियाँ प्रदान करो।[अथर्ववेद 6.1.3]
Let me see-observe the Sun for long. Hey water-Varun Dev! Kindly grant divine medicines for our body.
Hey water! Let my body be granted with divine medicines to increase (enhance, boost) immunity, so that I am able to see the Sun for long.
शं न आपो धन्वन्याः 3 शभु सन्त्वनूप्याः।
शं नः खनित्रिमा आपः शमु याः कुम्भ आमृताः शिवा नः सन्तु वार्षिकीः॥
सूखे प्रान्त (मरुभूमि) का जल हमारे लिए कल्याणकारी हो। जलमय देश का जल हमें सुख प्रदान करे। भूमि से खोदकर निकाला गया कुएँ आदि का जल हमारे लिए सुखप्रद हो। पात्र में स्थित जल हमें शान्ति देने वाला हो। वर्षा से प्राप्त जल हमारे जीवन में सुख-शांति की वृष्टि करने वाला सिद्ध हो।[अथर्ववेद 6.1.4]
Water from various sources like desert, a place with plenty of water, in the pots i.e., stored water and the rain water should grant us pleasure-comfort.
शमीमश्वत्थ आरूढ़स्तत्र पुंसवन कृतम्।
तद्वै पुत्रस्य वेदनं तत् स्त्रीष्वाभरामसी॥
शमी (छौकड़ ) वक्ष पर जो पीपल उगता है, वह पुत्र उत्पन्न करने का साधन है। यह पुत्र-प्राप्ति का उत्तम साधन है। वह हम स्त्रियों को देते हैं।[अथर्ववेद 6.11.1]
ईर्ष्याया ध्राजिं प्रथमां प्रथमस्या उतापराम्।
अग्निं हृदह्यं शोकं तं ते निर्वापयामसि॥
परमात्मा की वाणी है, हे ईर्ष्या संतप्त पुरुष! हम ईर्ष्या की पहली ही वेगवती गति को, ज्वाला को बुझाते हैं। पहली के बाद वाली ज्वाला को भी बुझाते हैं। इस तरह हे मनुष्य! तेरी उस हृदय में जलने वाली अग्नि को तथा उसके शोक–संताप को बिल्कुल शान्त कर देते हैं अर्थात् मनुष्य दूसरे की वृद्धि देख कर कभी ईर्ष्या न करे। द्वेष की परम्परा का अवसान। [अथर्ववेद 6.18.1]
Envy & enmity amongest us should be eliminated making us free from pain, sorrow, worries.
अनमित्रं नो अधरादनमित्रं न उत्तरात्।
इन्द्रानमित्रं न पश्चादनमित्रं पुरस्कृधि॥
हे प्रभु इन्द्र! हमारे लिए नीचे से निर्वैरता, हमारे लिए ऊपर से निर्वैरता, हमारे लिए पीछे से निर्वैरता और हमारे लिए आगे से निर्वैरता तू हमारे लिए कर दे अर्थात् हम सदा निर्वैर हो कर रहें। परिवार में सब मिलकर रहें।[अथर्ववेद 6.40.3]
We should reject enmity and live together like a family.
परोSपेहि मनस्याप किमशस्तानि शंससि।
परेहि न त्वा कामये वृक्षां वनानि सं चर गृहेषु गोषु मे मनः॥
हे मेरे मन के पाप समूह! दूर हो जाओ। अप्रशस्त की कामना क्यों करते हो! दूर हटो, मैं तुम्हारी कामना नहीं करता। वृक्षों तथा वनों के साथ रहो, मेरा मन घर और गायों में लगे। [अथर्ववेद 6.45.1]
अप्रशस्त :: प्रशंसा किया हुआ, प्रशंसा योग्य; expansive, smashing.
Sins present in my heart move away from me. I do not long for anything undesirable (earning through wrong, unpious, wicked, evil means). Stay with the trees in the forests. Let my interest develop-grow in my house & cows.
Trees, shrubs, wine, plants are lower forms of organism-living beings, which are born due to the sins of their earlier births. Cows are worshipped and fed in the house, due to the presence of highly useful enzymes for humanity present in their body. One should never kill a cow, eat meat eggs.
तस्य ते भक्तिवांस: स्याम।
हे प्रभो! हम तेरे भक्त हों। [अथर्ववेद 6.79.3]
One is seeking asylum, shelter, protection under the Almighty. One can attain the God through Karm Yog, Gyan-Sankhy Yog and Bhakti Yog. Bhakti Yog is considered to be Ultimate. As a matter of fact Karm is essential in Gyan and Bhakti Yog, while both Karm Yog and Gyan Yog constitute an inseparable component of Bhakti Yog. Kam Yog is another means of realisation of God, which needs extreme dedication, devotion, Bhakti (समर्पण).
सर्वो वा एषोSजग्धपाम्पा यस्यान्नं नाश्नन्ती।
जिसके अन्न में अन्य व्यक्ति भाग नहीं लेते, वह सब पापों से मुक्त नहीं होता।[अथर्ववेद 9.2.9]
One is freed from his sins if meals (food, food grains) are not shared by others.
“अतिथि देवो भव” is an ancient Indian tradition. Feeding the guests removes-relieves, one of his accumulated sins. But times are changing fast. If you allow the entry of unscrupulous elements in your house, they may endanger your life & property.
[दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख कये को होए॥]
य इत् तद् विदुस्ते अमृतत्व मानशु:।
जो उस ब्रह्म को जान लेता है, वो मोक्ष पद प्राप्त कर लेता है।[अथर्ववेद 9.10.1]
One who identifies the God (present within himself), attains Salvation.
यज्ञो विश्र्वस्य भुवनस्य नाभि:।
यज्ञ ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को बाँधने वाला नाभि स्थल है।[अथर्ववेद 9.10.14]
Yagy, Hawan, Agnihotr, Sacrifice in the holi fire generates the binding force for the universe, like the naval in the human body. This is considered to be the most noble, pious, holy deed.
हिरण्यस्त्रगयं मणि: श्रद्धां यज्ञं महो दधत्। गृहे वसतु नोSतिथिः॥
स्वर्ण की माला पहनने वाला, मणि स्वरूप यह अतिथि श्रद्धा, यज्ञ और महनीयता को धारण करता हुआ हमारे घर में निवास करे।[अथर्ववेद 10.6.4]
The guest wearing golden chain in his neck, who himself is like jewel decorated with reverence, Yagy and significance, should reside in our house.
Its about the recognised person in the society who is well known for his ascetic practices, celibacy etc.
प्राणो ह सत्य वादिन मुत्तमे लोक आ दधत्।
प्राण सत्य बोलने वाले को श्रेष्ठ लोक में प्रतिष्ठित करता है।[अथर्व वेद 11.4.11]
One who resort to truthfulness is established in upper abodes-7 heavens, by the Almighty.
प्राण-प्राण वायु-आत्मा-परमात्मा-Almighty.
ब्रहचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाण्घत।
ब्रह्मचर्य रूपी तपोबल से ही विद्वान लोगों ने मृत्यु को जीता है।[अथर्ववेद 11.5.19]
Asceticism, chastity, staunch meditation (ध्यान, तपस्या, समाधि), are the means of winning, overcoming, overpowering the death. One must remember that one day or the other, sooner or later, death is bound to come. However, one can elongate his life span. Even the God do not claim to be Ajar-Amar (अजर-अमर, indestructible, imperishable). A few people Like Hanuman Ji Maharaj, Prahlad Ji, Bahu Bali, Lomesh, Markandey, Vibhishan, Krapa Chary, Ashwasthama are considered to be Chiranjivi-one who live a long life (in millions of years).
MOTION OF EARTH
विश्वरूपां ध्रुवां भूमिं पृथिवीमिंद्रगुप्ताम।
[अथर्ववेद 12.1.11]
स्थिर का अर्थ भी सर्वथा गतिहीन नहीं होता।
यहाँ पर ध्रुवा का अर्थ अगतिशील कर दिया, जबकि यहाँ ये अर्थ समीचीन नहीं है।मूल शब्द ध्रुव है, जिसका स्त्रीलिंग ध्रुवा है।
ध्रुव :: सनातन; Permanent, lasting, eternal, unchangeable. Fixed with respect to some other object.
यथा सिन्धुर्नदीनां साम्राज्यं सुषुवे वृषा।
एवा त्वं सम्राज्ञ्येधि पत्युरस्तं परेत्य॥
जिस प्रकार समर्थ सागर ने नदियों का साम्राज्य उत्पन्न किया है, उसी प्रकार पति के घर जाकर तुम भी सम्राज्ञी बनो।[अथर्ववेद 14.1.43]
The manner in which Sagar-forefather of Bhagwan Shri Ram had developed a net work of rivers for nourishing humanity & crops, you should also become helpful and the queen of hearts in your in laws house.
सम्राज्ञ्येधि श्वशुरेषु सम्राज्ञ्युत देवृषु।
नन्दान्दु: सम्राज्ञ्येधि सम्राज्ञ्युत श्वश्र्वा:॥
ससुर की सम्राज्ञी बनो, देवरों के मध्य भी सम्राज्ञी बन कर रखो, ननद और सास की भी सम्राज्ञी बनो।[अथर्ववेद 14.1.44]
You should become the empress of your father & mother in law, brothers & sisters of your husband.
You should win the heart of every one in the family of your husband and rule their hearts, through your service, manners and speech.
तद् यस्यैवं विद्वान् व्रात्यो राज्ञोSतिथिर्गृहानागच्छेत्।
श्रेयांसमेनमात्मनो मान्येत्…॥
ज्ञानी और व्रतशील अतिथि जिस राजा के घर आ जाये, उसे अपना कल्याण समझना चाहिये।[अथर्ववेद 15.10.1-2]
The king should consider himself obliged, if has an enlightened and dedicated guest who resort himself to fasting.
मधुमतीं वाचमुदेयम्।
मैं मीठी वाणी बोलूँ। [अथर्ववेद 16.2.2]
One must be soft (speak soothing, sweet words) spoken. He should speak in sweet voice, consoling others.
सुश्रुतौ कर्णो भद्रश्रुतौ कर्णौ भद्रंश्लोकं श्रूयासम्।
शुभ और शिव वचन सुनने वाले कानों से युक्त मैं केवल कल्याणकारी वचनों को ही सुनूँ।[अथर्व वेद 16.2.4]
I should listen only to those words, through my ears, which are meant only for listening to pious & Shiv Vachan-Truthfulness.
[ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोय
औरन कू शीतल करै आपहुँ शीतल होए।]
परैतु मृत्युरमृतं न ऐतु।
मृत्यु हम से दूर हो और हमें अमृत पद हो।[अथर्ववेद 18.3.62]
One should be away from death attaining a permanent place-seat in the abode of the Almighty. One desires to be free from the cycle of rebirth. He wish to attain Salvation-proximity to the Almighty.
शान्ता द्योः शान्ता पृथिवि शान्त मिदमुर्वन्तरिक्षम।
शान्ता उदवन्तीरापः शान्ता नः सन्त्वोषधीः॥
पृथ्वी-ब्रह्माण्ड, अन्तरिक्ष, समुद्र-जल, स्वर्ग, औषधियाँ शान्त हों।[अथर्ववेद 19.9.1]
Let the heavens be at peace, the earth be at peace, the vast space that we perceive between earth and heaven be at peace, the waters of the ocean be at peace, & all the medicinal plants be beneficial to us.
शान्तानि पूर्वरूपानी शान्तं नो अस्तु कृताकृतम्।
शान्तं भूतं च भव्यं च सर्वमेव शमस्तु नः॥
हमारे समस्त पापकर्म शान्त-नष्ट हो जायें, भूल-चूक दुरुस्त-सही हो जायें, प्रारब्ध (पूर्व जन्मों के कर्मों का फल) सही हो जाये, समस्त दोष (राग, द्वेष, रोग, मोह) शान्त हो जायें, हमारे कहे-अनकहे दोष (प्रकट-अप्रकट दोष) शान्त-नष्ट हो जायें) [अथर्ववेद 19.9.2]
Let our Pap-Karm (Sins, evils, wickedness) be lost-neutralised, omissions and commissions be rejected-improved, our destiny be modified to become beneficial-helpful to us, all our defects viz. attachments, envy, indulgence be lost-removed to become beneficial to us, revealed-unrevealed personality disorders (Rag, Dwesh, Moh) be rectified.
इयं या परमेष्ठनी वाग्देवी ब्रह्मसंशिता।
ययैव ससृजे घोरं तयैव शान्तिरस्तु नः॥
ब्रह्मा द्वारा परिष्कृत यह परमेष्ठी की वाणी रूपी सरस्वती देवी, जिसके द्वारा भयंकर कार्य किये जाते हैं, यही हमें शान्ति प्रदान करनेवाली हो।[अथर्ववेद 19.9.3]
माता सरस्वती (विद्या, वेद ज्ञान) जो ब्रह्मा जी को प्राप्त सर्वोच्च शक्ति है, हमारा कल्याण करे और हमें शान्ति प्रदान करें।इसका दुरूपयोग श्राप या किसी का अपमान आदि में नहीं करना चाहिये।
परमेष्ठी :: पारलौकिक, भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अग्नि आदि देव गण, एक जिन का नाम, शलिग्राम का एक विशेष भेद, विराट् पुरुष, चाक्षुष मनु, गरुड़ जी, आध्यात्मिक शिक्षक-गुरु।
Our speech, words which may cause-yield dangerous results, should be purified by Brahma Ji to become soothing.
Let Maa Saraswati who is the Supreme power granted to the creator Brahma Ji in the form of enlightenment & Ved Gyan do our welfare & prevent us from misusing speech. One should never use foul, derogatory language against others.
इदं यत् परमेष्ठिनं मनो वां ब्रह्मसंशिता।
येनैव ससृजे घोरं तेनैव शान्तिरस्तु नः॥
परमेष्ठिन ब्रह्मा जी द्वारा तीक्ष्ण किया गया यह आपका मन, जिसके द्वारा घोर पाप किये जाते हैं, वही हमें शान्ति प्रदान करे।[अथर्ववेद 19.9.4]
The innerself (psyche, mood, intellect) nurtured-sharpened by Brahma Ji-the creator, which indulges one in worst sins should lead us to peace, solace & tranquillity.
Kam Dev, Moon & Brahma Ji deviates the humans from devotion to worldly affairs. One has to concentrate himself in devotion to attain Moksh-Salvation, performing his worldly duties side by side.
इमानि यानी पञ्चेन्द्रियाणी मनः षष्ठानि मे हृदि ब्रह्मणा संशितानि।
यैरेव ससृजे घोरं तैरेव शान्तिरस्तु नः॥
ब्रह्मा जी के द्वारा सुसंस्कृत ये जो पाँच इन्द्रियाँ और छटा मन, जिनके द्वारा घोर कर्म किये जाते हैं, उन्हीं के द्वारा हमें शान्ति मिले।[अथर्ववेद 19.9.5]
The 5 sense organs & the sixth inner self which compels us to perform worst deeds-sins, should grant us peace, solace & tranquillity.
Its the tendency of all humans to attain all sorts of luxuries-comforts through fair or foul means. One has to restraint & control his mind & heart with firm determination and divert himself to the welfare of humanity, devotion to the God. he should never neglect his duties towards the family, society and the state.
शं नो मित्रः शं वरुणः शं विवस्वांछमन्तकः।
उत्पाताः पार्थिवान्तरिक्षा: शं नो दिविचरा ग्रहा:॥
मित्र हमारा कल्याण करे, वरुण, सूर्य और यम हमारा कल्याण करें, पृथ्वी एवं आकाश में होने वाले अनिष्ट हमें सुख देने वाले हों तथा स्वर्ग में विचरण करनेवाले ग्रह भी हमारे लिये शान्ति दायक हों।[अथर्ववेद 19.9.7]
अनिष्ट :: अवांछित, अशुभ, अहित, अमंगल; unwelcome, forbidding, undesirable.
Mitr, Varun, Sury-Sun, Yam (demigods) should should perform our welfare. Changes occurring over the earth & the sky should give us pleasure-comfort. The planets wondering in the heaven should also be beneficial to us.
इदमुच्छ्रेयो अवसानमागां, शिवे मे द्यावापृथिवी अभूताम्।
असपत्ना: पृदिशो मे भवन्तु, न वै त्वा द्विष्मो अभयं नो अस्तु॥
हे भाई! मैं ही तेरे साथ द्वेष करना छोड़ देता हूँ। अब यह ही कल्याणकर है कि मैं अब समाप्ति पर आ जाऊँ, शत्रुता की परम्परा का विराम कर दूँ। द्यौ और पृथिवी भी मेरे लिए अब कल्याणकारी हो जाएँ। सभी दिशाएँ मेरे लिए शत्रु-रहित हो जाएँ। मेरे लिए अब अभय ही अभय हो जाए। हम सदा निर्वैर हों।[अथर्ववेद 19.41.1]
Let us reject enmity, the earth and the space should become beneficial-Blissful to us, free from enemies.
पश्येम शरदः शतम्। जीवेम शरदः शतम्॥
बुध्येम शरदः शतम्। रोहेम शरदः शतम्॥
पूषेम शरदः शतम्। भवेम शरदः शतम्॥
भूयेम शरदः शतम्। भूयसीः शरदः शतात्॥
हम सौ शरदों तक देखें, यानी सौ वर्षों तक हमारे आँखों की ज्योति स्पष्ट बनी रहे। सौ वर्षों तक हम जीवित रहें; सौ वर्षों तक हमारी बुद्धि सक्षम बनी रहे, हम ज्ञानवान् बने रहें। सौ वर्षों तक हम वृद्धि करते रहें, हमारी उन्नति होती रहे। सौ वर्षों तक हम पुष्टि प्राप्त करते रहें, हमें पोषण मिलता रहे। हम सौ वर्षों तक बने रहें। सौ वर्षों तक हम पवित्र बने रहें, कुत्सित भावनाओं से मुक्त रहें। सौ वर्षों से भी आगे ये सब कल्याणमय बातें होती रहें। [अथर्ववेद 19.67.1-8]
शरद् शब्द सामान्यतः छः वार्षिक ऋतुओं में एक के लिए प्रयुक्त होता है। क्योंकि प्रति वर्ष एक शरद ऋतु आनी है, अतः उक्त मंत्रों में एक शरद् का अर्थ एक वर्ष लिया गया है।
Our eye sight should remain intact for 100 years. We should survive for 100 years. Our intelligence-prudence should remain intact for 100 years. and we should remain enlightened. We should continue progressing for 100 years. We should continue getting nourishment for 100 years. We should live for 100 years as virtuous, righteous, honest, truthful, auspicious free from evils-wickedness. All this should continue to be beneficial to us thereafter as well.
In Sat Yug longevity was for 400 years and in Kali Yug its just 100 years. But one may survive even more than that by practicing Yog, exercise, vegetarian limited food in a pollution free environment.
सर्वमेव शमस्तु न:।
हमारे लिए सभी कुछ कल्याणकारी हो।[अथर्ववेद 19.9.14]
Everything for us should be beneficial to us.
प्रियं मा कृणु देवेषु प्रियं राजसु मा कृणु।
प्रियं सर्वस्य पश्यत उत शूद्र उतार्ये॥
मुझे ब्राह्मणों में प्याराकर। मुझे क्षत्रियों में, शूद्र वर्ग में तथा वैश्य वर्ग में प्यारा (कृणु) बना। मुझे सब देखने वाले का प्रिय बना।[अथर्ववेद 19.62.1]
Let me become dear to the Brahmns, Kshatriy, Vaweshy and the Shudr. I should become dear to all those who see me.
#आध्यात्मिकभारत
Mahavir Enclave, Dashrath Puri
Delhi
110045
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