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This page will let you know about importance of Indian Cow and it's products, roll of cow in Vadic Indian culture and Ayurveda.

19/08/2020

हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होता था तो किसान कुछ देर के लिए हल चलाना बन्द करके बैल के मल-मूत्र त्यागने तक खड़ा रहता था ताकि बैल आराम से यह नित्यकर्म कर सके, यह आम चलन था ।
हमने (ईश्वर वैदिक) यह सारी बातें बचपन में स्वयं अपनी आंखों से देख हुई हैं ।
जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं । यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा ।

उस जमाने का देसी घी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि 2 हजार रुपये किलो तक बिक सकता है । उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था ।

टटीरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है ।
हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टटीरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था।उस जमाने में आधुनिक शिक्षा नहीं थी ।
सब आस्तिक थे ।
दोपहर को किसान जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा डालता और फिर खुद भोजन करता था ।
यह एक सामान्य नियम था ।

बैल जब बूढ़ा हो जाता था तो उसे कसाइयों को बेचना शर्मनाक सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता था ।
बूढा बैल कई सालों तक खाली बैठा चारा खाता रहता था, मरने तक उसकी सेवा होती थी ।
उस जमाने के तथाकथित अशिक्षित किसान का मानवीय तर्क था कि इतने सालों तक इसकी माँ का दूध पिया और इसकी कमाई खाई है।
अब बुढापे में इसे कैसे छोड़ दें , कैसे कसाइयों को दे दें काट खाने के लिए ?
जब बैल मर जाता तो किसान फफक-फफक कर रोता था और उन भरी दुपहरियों को याद करता था जब उसका यह वफादार मित्र हर कष्ट में उसके साथ होता था । माता-पिता को रोता देख किसान के बच्चे भी अपने बुड्ढे बैल की मौत पर रोने लगते थे ।
पूरा जीवन काल तक बैल अपने स्वामी किसान की मूक भाषा को समझता था कि वह क्या कहना चाह रहा है ।

वह पुराना भारत इतना शिक्षित और धनाढ्य था कि अपने जीवन व्यवहार में ही जीवन रस खोज लेता था । वह करोड़ों वर्ष पुरानी संस्कृति वाला वैभवशाली भारत था , वह अतुल्य भारत था ।
पिछले 30-40 वर्ष में लार्ड मैकाले की शिक्षा उस गौरवशाली सुसम्पन्न भारत को निगल गई ।
हाय रे लार्ड मैकाले !
तेरा सत्यानाश हो । तेरी शिक्षा सबसे पहले किसी देश की संवेदनाओं को जहर का टीका लगाती है , फिर शर्म-हया की जड़ों में तेजाब डालती है और फिर मानवता को पूरी तरह अपंग बनाकर उसे अपनी जरूरत की मशीन का रूप दे देती है।
साभार:- पं. नरेश कुमार शर्मा

07/03/2018

*"झूठा गुड़"*

एक शादी के निमंत्रण पर जाना था, पर मैं जाना नहीं चाहता था।

एक व्यस्त होने का बहाना और दूसरा गांव की शादी में शामिल
होने से बचना..
लेक‌िन घर परिवार का दबाव था सो जाना पड़ा।

उस दिन शादी की सुबह में काम से बचने के लिए सैर करने के बहाने दो- तीन किलोमीटर दूर जा कर मैं गांव को जाने बाली रोड़ पर बैठा हुआ था, हल्की हवा और सुबह का सुहाना मौसम बहुत ही अच्छा लग रहा था , पास के खेतों में कुछ गाय चारा खा रही थी कि तभी वहाँ एक लग्जरी गाड़ी आकर रूकी,

और उसमें से एक वृद्ध उतरे,अमीरी उसके लिबास और व्यक्तित्व दोनों बयां कर रहे थे।

वे एक पॉलीथिन बैग ले कर मुझसे कुछ दूर पर ही एक सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गये, पॉलीथिन चबूतरे पर उंडेल दी, उसमे गुड़ भरा हुआ था, अब उन्होने आओ आओ करके पास में ही खड़ी ओर बैठी गायो को बुलाया, सभी गाय पलक झपकते ही उन बुजुर्ग के इर्द गिर्द ठीक ऐसे ही आ गई जैसे कई महीनो बाद बच्चे अपने मांबाप को घेर लेते हैं, कुछ गाय को गुड़ उठाकर खिला रहे थे तो कुछ स्वयम् खा रही थी, वे बड़े प्रेम से उनके सिर पर गले पर हाथ फेर रहे थे।

कुछ ही देर में गाय अधिकांश गुड़ खाकर चली गई,इसके बाद जो हुआ वो वाक्या हैं जिसे मैं ज़िन्दगी भर नहीं भुला सकता,

हुआ यूँ कि गायो के गुड़ खाने के बाद जो गुड़ बच गया था
वो बुजुर्ग उन टुकड़ो को उठा उठा कर खाने लगे,मैं उनकी इस क्रिया से अचंभित हुआ पर उन्होंने बिना किसी परवाह के कई टुकड़े खाये और अपनी गाडी की और चल पड़े।

मैं दौड़कर उनके नज़दीक पहुँचा और बोला अंकल जी क्षमा चाहता हूँ पर अभी जो हुआ उससे मेरा दिमाग घूम गया, क्या आप मेरी इस जिज्ञासा को शांत करेंगे कि आप इतने अमीर होकर भी गाय का झूठा गुड क्यों खाया ??

उनके चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान उभरी उन्होंने कार का गेट वापस बंद करा और मेरे कंधे पर हाथ रख वापस सीमेंट के चबूतरे पर आ बैठे, और बोले ये जो तुम गुड़ के झूठे टुकड़े देख रहे हो ना बेटे मुझे इनसे स्वादिष्ट आज तक कुछ नहीं लगता।

जब भी मुझे वक़्त मिलता हैं मैं अक्सर इसी जगह आकर अपनी आत्मा में इस गुड की मिठास घोलता हूँ।

मैं अब भी नहीं समझा अंकल जी आखिर ऐसा क्या हैं इस गुड में ???

वे बोले ये बात आज से कोई 40 साल पहले की हैं उस वक़्त मैं 22 साल का था घर में जबरदस्त आंतरिक कलह के कारण मैं घर से भाग आया था, परन्तू दुर्भाग्य वश ट्रेन में कोई मेरा सारा सामान और पैसे चुरा ले गया। इस अजनबी से छोटे शहर में मेरा कोई नहीं था, भीषण गर्मी में खाली जेब के दो दिन भूखे रहकर इधर से उधर भटकता रहा, और शाम को भूख मुझे निगलने को आतुर थी।

तब इसी जगह ऐसी ही एक गाय को एक महानुभाव गुड़ डालकर चले गए ,यहाँ एक पीपल का पेड़ हुआ करता था तब चबूतरा नहीं था,मैं उसी पेड़ की जड़ो पर बैठा भूख से बेहाल हो रहा था, मैंने देखा कि गाय ने गुड़ छुआ तक नहीं और उठ कर वहां से चली गई, मैं कुछ देर किंकर्तव्यविमूढ़ सोचता रहा और फिर मैंने वो सारा गुड़ उठा लिया और खा लिया। मेरी मृतप्रायः आत्मा में प्राण से आ गये।

मैं उसी पेड़ की जड़ो में रात भर पड़ा रहा, सुबह जब मेरी आँख खुली तो काफ़ी रौशनी हो चुकी थी, मैं नित्यकर्मो से फारिक हो किसी काम की तलाश में फिर सारा दिन भटकता रहा पर दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था, एक और थकान भरे दिन ने मुझे वापस उसी जगह निराश भूखा खाली हाथ लौटा दिया।

शाम ढल रही थी, कल और आज में कुछ भी तो नहीं बदला था, वही पीपल, वही भूखा मैं और वही गाय।

कुछ ही देर में वहाँ वही कल वाले सज्जन आये और कुछ गुड़ की डलिया गाय को डालकर चलते बने, गाय उठी और बिना गुड़ खाये चली गई, मुझे अज़ीब लगा परन्तू मैं बेबस था सो आज फिर गुड खा लिया।

और वही सो गया, सुबह काम तलासने निकल गया, आज शायद दुर्भाग्य की चादर मेरे सर पे नहीं थी सो एक ढ़ाबे पर मुझे काम मिल गया। कुछ दिन बाद जब मालिक ने मुझे पहली पगार दी तो मैंने 1 किलो गुड़ ख़रीदा और किसी दिव्य शक्ति के वशीभूत 7 km पैदल पैदल चलकर उसी पीपल के पेड़ के नीचे आया।

इधर उधर नज़र दौड़ाई तो गाय भी दिख गई,मैंने सारा गुड़ उस गाय को डाल दिया, इस बार मैं अपने जीवन में सबसे ज्यादा चौंका क्योकि गाय सारा गुड़ खा गई, जिसका मतलब साफ़ था की गाय ने 2 दिन जानबूझ कर मेरे लिये गुड़ छोड़ा था,

मेरा हृदय भर उठा उस ममतामई स्वरुप की ममता देखकर, मैं रोता हुआ बापस ढ़ाबे पे पहुँचा,और बहुत सोचता रहा, फिर एक दिन मुझे एक फर्म में नौकरी भी मिल गई, दिन पर दिन मैं उन्नति और तरक्की के शिखर चढ़ता गया,

शादी हुई बच्चे हुये आज मैं खुद की पाँच फर्म का मालिक हूँ, जीवन की इस लंबी यात्रा में मैंने कभी भी उस गाय माता को नहीं भुलाया , मैं अक्सर यहाँ आता हूँ और इन गायो को गुड़ डालकर इनका झूँठा गुड़ खाता हूँ,

मैं लाखो रूपए गौ शालाओं में चंदा भी देता हूँ , परन्तू मेरी मृग तृष्णा मन की शांति यही आकर मिटती हैं बेटे।

मैं देख रहा था वे बहुत भावुक हो चले थे, समझ गये अब तो तुम,

मैंने सिर हाँ में हिलाया, वे चल पड़े,गाडी स्टार्ट हुई और निकल गई , मैं उठा उन्ही टुकड़ो में से एक टुकड़ा उठाया मुँह में डाला
बापस शादी में शिरकत करने सच्चे मन से शामिल हुआ।

सचमुच वो कोई साधारण गुड़ नहीं था।

उसमे कोई दिव्य मिठास थी जो जीभ के साथ आत्मा को भी मीठा कर गई थी।

घर आकर गाय के बारे जानने के लिए कुछ किताबें पढ़ने के बाद जाना कि.....,

गाय गोलोक की एक अमूल्य निधि है,
जिसकी रचना भगवान ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है। अत: इस पृथ्वी पर गोमाता मनुष्यों के लिए भगवान का प्रसाद है। भगवान के प्रसादस्वरूप अमृतरूपी गोदुग्ध का पान कर मानव ही नहीं अपितु देवगण भी तृप्त होते हैं।

इसीलिए गोदुग्ध को ‘अमृत’ कहा जाता है। गौएं विकाररहित दिव्य अमृत धारण करती हैं और दुहने पर अमृत ही देती हैं। वे अमृत का खजाना हैं। सभी देवता गोमाता के अमृतरूपी गोदुग्ध का पान करने के लिए गोमाता के शरीर में सदैव निवास करते हैं।

ऋग्वेद में गौ को‘अदिति’ कहा गया है। ‘दिति’ नाम नाश का प्रतीक है और ‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम है। अत: गौ को ‘अदिति’ कहकर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है।

*।। जय गौ माता।।*

25/02/2018

स्वच्छता का यह भी अभियान चला ले

हरे भरे पेड पौधो को कटने से बचा ले
🌲🌳🌴🌱🌿☘🍀

होलिका दहन की अग्रिम शुभकामनाए

शुद्ध कण्डे/गौकाष्ठ की होली जलाए
पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाए

होली पर्व पर हमारे धार्मिक रीति रिवाजों अनुसार गोबर के बने बड़कूलो से होलिका दहन करना चाहिए। परंतु अब समयाभाव के कारण लोग लकड़ीयो का प्रयोग ज़्यादा करने लगे है आया है । और हर घर से गोबर के बडकुले मात्र सांकेतिक आहुत किए जाते है। परंतु इस बार होलिका दहन लकड़ी की बजाय पूर्णत गोबर के कंडो या गौकाष्ठ से करे ताकी वन पर्यावरण की रक्षा के साथ वातावरण की शुद्धि भी हो।
यह सर्वविदित है कि गोबर के कण्डे/गौकाष्ठ जलाने से हवा में उपस्थित हानिकारक विषाणुओ की समाप्ति होती है अधिक मात्रा में प्राणवायु का उत्सर्जन होता है ओर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
इसका दूसरा फ़ायदा यह भी होगा की आसपास की गोशाला और ग्रामीण लोगों में रोज़गार सृजन के साथ उनकी आमदनी का भी एक ज़रिया बनेगा।

20/01/2018

"गौमूत्रे त्रिदिनं स्थाप्यय विषम तेन विशुध्यति"

यदि गाय के खाने में कभी विषैला या हानिकारक तत्त्व आ जाता है तो वह उसको मांस में सोख लेती है तथा मूत्र, गोबर एवं दूध में उत्सर्जित नहीं करती है। इसलिये गोमूत्र पवित्र पवित्र व गौमय मल शोधक है। गौदूध तो विषनाशक है ही, गौमूत्र का पंचगव्य में समावेश हुआ है। पंचगव्य को समस्त रोग नाशक कहा गया है।

"यत्वगस्थि गतं पापं देहे तिष्ठति मामके।
प्राशनात पंचगव्यस्य दहस्य ग्रिरिवेन्धनं।।"

अर्थात: त्वचा से अस्थि तक जो भी रोग मेरे शरीर में हों, वे ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे अग्नि से ईंधन।

15/12/2017
05/12/2017

Benefits of Desi Cow Milk and Ghee

1.As per Ayurvedic tradition, Cow Ghee helps in the growth and development of Children’s brain

2.Regular consumption increases good (HDL) cholesterol (and not bad LDL cholesterol)

3.Stimulates digestion and aids absorption of fat soluble vitamins

4.An excellent all round anti-ageing vegetarian food & external applicant on the skin

Desi Cow milk is like nectar, because it has amino acids which make its protein easily digestible

It is good for kidney

It is a rich source of Vitamins like B2, B3 and A which help increasing immunity

Cow Milk helps in reducing acidity, (a common problem today)

Reduces chances of peptic ulcer

Helps in reducing chances of colon, breast and skin cancer

Desi Cow milk prevents the formation of serum cholesterol

It is one of the best natural anti-oxidants

After mother’s milk, it is only the cow’s milk which gives energy and full protection and is Digestible.

02/12/2017
08/11/2017

दिल्ली प्रदूषण > 390 ppm

1. 10 ml देसी गाय के घी से ज्योति जलाए सुबह शाम , आरती के समय

2. अग्निहोत्र , देशी गौवंश के कंडे पर देशी गाय के घी से सूर्योदय , सूर्यास्त के समय

3. चीनी की जगह गुङ खाये , शरीर का अंदर से शोधन होगा।

आदि आदि।

हवा बिकना भी शुरू हो गई , पानी की तरह

आईये पेड़ लगाए , गौवंशपालन को बढ़ावा दे , गौशाला जाए, शारिरिक श्रम को महत्व दे, शर्म त्यागें प्राकृतिक खेती को अपनाए।

28/10/2017

देसी गाय का दूध क्यों हैं अमृत समान।

गाय का दूध पृथ्वी पर सर्वोत्तम आहार है। उसे मृत्युलोक का अमृत कहा गया है। मनुष्य की शक्ति एवं बल को बढ़ाने वाला गाय का दूध जैसा दूसरा कोई श्रेष्ठ पदार्थ इस त्रिलोकी में नहीं है। पंचामृत बनाने में इसका उपयोग होता है। गाय का दूध पीला होता है और सोने जैसे गुणों से युक्त होता है। केवल गाय के दूध में ही विटामिन ए होता है, किसी अन्य पशु के दूध में नहीं।

गाय का दूध अत्यंत स्वादिष्ट, स्निग्ध, मुलायम, चिकनाई से युक्त, मधुर, शीतल, रूचिकर, बुद्धिवर्धक, बलवर्धक, स्मृतिवर्धक, जीवनदायक, रक्तवर्धक, वाजीकारक, आयुष्यकारक एवं सर्वरोग को हरनेवाला है।

कभी नहीं होगा कैंसर।

देसी गाय की पीठ पर मोटा सा हम्प होता है ! जिसमे सूर्यकेतु नाड़ी होती हैं, जो सूर्य की किरणों के संपर्क में आते ही अपने दूध में स्वर्ण का प्रभाव छोड़ती हैं। जिस कारण गाय के दूध में स्वर्ण तत्व समा जाते हैं। देसी गाय का दूध पीने से कभी भी कैंसर का रोग नहीं होगा।

दूध में अनेको खनिज और पौषक तत्व।

वैज्ञानिकों के अनुसार गाय के दूध में 8 प्रकार के प्रोटीन, 6 प्रकार के विटामिन, 21 प्रकार के एमिनो एसिड, 11 प्रकार के चर्बीयुक्त एसिड, 25 प्रकार के खनिज तत्त्व, 16 प्रकार के नाइट्रोजन यौगिक, 4 प्रकार के फास्फोरस यौगिक, 2 प्रकार की शर्करा, इसके अलावा मुख्य खनिज सोना, ताँबा, लोहा, कैल्शियम, आयोडीन, फ्लोरिन, सिलिकॉन आदि भी पाये जाते हैं।

इन सब तत्त्वों के विद्यमान होने से गाय का दूध एक उत्कृष्ट प्रकार का रसायन (टॉनिक) है, जो शरीर में पहुँचकर रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और वीर्य को समुचित मात्रा में बढ़ाता है। यह पित्तशामक, बुद्धिवर्धक और सात्त्विकता को बढ़ाने वाला है। गाय के दूध से 1 ग्राम भी कोलोस्ट्रोल नहीं बढ़ता !

ज़हर भी समा लेती हैं गाय।

यदि गाय कोई विषैला पदार्थ खा जाती है तो उसका प्रभाव उसके दूध में नहीं आता। गाय के शरीर में सामान्य विषों को पचाने की अदभुत क्षमता है। ये ज़हर देसी गाय के गले के नीचे लटकने वाले मांस में ही रह जाता हैं। एक शोध किया गया जिस में हर रोज़ देसी गाय को और अमेरिकन गाय को भोजन में थोड़ा थोड़ा ज़हर दिया गया , और जब उनका दूध निकाला गया तो देशी गाय के दूध में कोई भी ज़हरीला तत्व नहीं मिला और अमेरिकन गाय में वही ज़हर पाया गया जो उसको खिलाया गया।

अनेक बीमारियो में हैं इसके फायदे।

गाय का दूध, जीर्णज्वर, मानसिक रोगों, मूर्च्छा, भ्रम, संग्रहणी, पांडुरोग, दाह, तृषा, हृदयरोग, शूल, गुल्म, रक्तपित्त, योनिरोग आदि में श्रेष्ठ है।

गाय को शतावरी खिलाकर उस गाय के दूध पर मरीज को रखने से क्षय रोग (T.B.) मिटता है।

कारनेल विश्वविद्यालय के पशुविज्ञान के विशेषज्ञ प्रोफेसर रोनाल्ड गोरायटे कहते हैं कि गाय के दूध से प्राप्त होने वाले MDGI प्रोटीन के कारण शरीर की कोशिकाएँ कैंसरयुक्त होने से बचती हैं।

गाय के दूध से कोलेस्टरोल नहीं बढ़ता बल्कि हृदय एवं रक्त की धमनियों के संकोचन का निवारण होता है। इस दूध में दूध की अपेक्षा आधा पानी डालकर, पानी जल जाये तब तक उबालकर पीने से कच्चे दूध की अपेक्षा पचने में अधिक हल्का होता है।

गाय के दूध में दैवी तत्त्वों का निवास है। गाय के दूध में अधिक से अधिक तेज तत्व एवं कम से कम पृथ्वी तत्व होने के कारण व्यक्ति प्रतिभा सम्पन्न होता है और उसकी ग्रहण शक्ति (Grasping Power) खिलती है। ओज-तेज बढ़ता है। इस दूध में विद्यमान ‘सेरीब्रोसाडस’ तत्व दिमाग एवं बुद्धि के विकास में सहायक है।

रेडियोधर्मी विकिरणों के प्रभाव को भी कर देती हैं नष्ट।

केवल गाय के दूध में ही Stronitan तत्व है जो कि अणुविकिरणों का प्रतिरोधक है। Russian वैज्ञानिक (प्रसिद्ध वैज्ञानिक शिरोविच) गाय के घी-दूध को एटम बम के अणु कणों के विष का शमन करने वाला मानते हैं और उसमें रासायनिक तत्व नहीं के बराबर होने के कारण उसके अधिक मात्रा में पीने से भी कोई ‘साइड इफेक्ट’ या नुकसान नहीं होता।

तुरंत शक्ति देना वाला हैं इसका दूध।

प्रतिदिन गाय के दूध के सेवन से तमाम प्रकार के रोग एवं वृद्धावस्था नष्ट होती है। एलोपैथी दवाओं, रासायनिक खादों, प्रदूषण आदि के कारण हवा, पानी एवं आहार के द्वारा शरीर में जो विष एकत्रित होता है उसको नष्ट करने की शक्ति गाय के दूध में है।

आज यह भारत और पाकिस्तान में सबसे अच्छी नस्लों की गाय में से एक गाय है । साहिवाल गाय को पंजाब में साहिवाल जिले से उत्पन्न...
10/10/2017

आज यह भारत और पाकिस्तान में सबसे अच्छी नस्लों की गाय में से एक गाय है । साहिवाल गाय को पंजाब में साहिवाल जिले से उत्पन्न हुई गाय माना जाता है |
साहिवाल गाय और गायों के मुकाबले ज़्यादा और प्रोटीन युक्त दूध देती है |

विशेषताएं:
गहरा शरीर , ढीली चमड़ी, छोटा सिर व छोटे सींग इस गाय की प्रमुख विशेषताएँ हैं |

साहिवाल गाय का शरीर लंबा और मांसल होता है तथा इनकी टाँगे छोटी होती है ।

इनका स्वभाव कुछ आलसी होता है तथा इसकी खाल चिकनी होती है ।

इनकी पुंछ पतली और छोटी होती है।

ढीली चमड़ी होने के कारण इसे लोग लोला भी कहते हैं |

नर गाय का वजन 450 से 500 किलो और मादा गाय का वजन 300-400 किलो तक हो सकता है |

नर साहिवाल के पीठ पर बड़ा कूबड़ होता है व इसकी ऊंचाई 136 सेमी तक हो सकती है

मादा कि ऊंचाई 120 सेमी के आसपास होती है ।
ये लाल और गहरे भूरे रंग की होती है |

कभी-कभी इनके शरीर पर सफेद चमकदार धब्बे भी होते हैं ।
यह गाय एक दिन में 10 से 16 लीटर तक दूध देती है |
अपने एक दूग्ध्काल के दौरान ये गायें औसतन 2270 लीटर दूध देती हैं |

29/09/2017

Benefits Of Cow(Indian Breed) Ghee:

If you ever have heard anything bad about cow ghee, please forget that for a moment and read the following. Cow Ghee is probably the most sacred, spiritual and physically health benefiting substances that is ever known to human beings. A person who is allergic to dairy products or gluten, need not be allergic to ghee. If you fail to consume ghee, there are so many ways it can be used for skin, nasal drops, e***a etc.

Remember, "Ghee" means "Cow ghee". Ghee calms Pitta and Vata. Hence, it is ideal for people with Vata-Pitta body type and for those suffering from Vata and Pitta imbalance disorders.
Ghee is quite similar to milk in qualities, but unlike milk, ghee improves digestion.

ए1 दूध का मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभावजन्म के समय बालक के शरीर मे blood brain barrier नही होता . माता के स्तन पान कराने ...
10/09/2017

ए1 दूध का मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव

जन्म के समय बालक के शरीर मे blood brain barrier नही होता . माता के स्तन पान कराने के बाद तीन चार वर्ष की आयु तक शरीर में यह ब्लडब्रेन बैरियर स्थापित हो जाता है .इसी लिए जन्मोपरांत माता के पोषन और स्तन पान द्वारा शिषु को मिलने वाले पोषण का, बचपन ही मे नही, बडे हो जाने पर भविष्य मे मस्तिष्क के रोग और शरीर की रोग निरोधक क्षमता ,स्वास्थ्य, और व्यक्तित्व के निर्माण में अत्यधिक महत्व बताया जाता है .

बाल्य काल के रोग Pediatric disease.

आजकल भारत वर्ष ही में नही सारे विश्व मे , जन्मोपरान्त बच्चों में जो Autism बोध अक्षमता और Diabetes type1 मधुमेह जैसे रोग बढ रहे हैं उन का स्पष्ट कारण ए1 दूध का बीसीएम7 पाया गया है.

वयस्क समाज के रोग –Adult disease

मानव शरीर के सभी metabolic degenerative disease शरीर के स्वजन्य रोग जैसे उच्च रक्त चाप high blood pressure हृदय रोग Ischemic Heart Disease तथा मधुमेह Diabetes का प्रत्यक्ष सम्बंध बीसीएम 7 वाले ए1 दूध से स्थापित हो चुका है.यही नही बुढापे के मांसिक रोग भी बचपन में ए1 दूध का प्रभाव के रूप मे भी देखे जा रहे हैं.

मुख्य रूप से यह हानिकारक ए1 दूध होल्स्टिन फ्रीज़ियन प्रजाति की गाय मे ही मिलता है, यह भैंस जैसी दीखने वाली, अधिक दूध देने के कारण सारे डेरी उद्योग की पसन्दीदा गाय है. होल्स्टीन फ्रीज़ियन दूध के ही कारण लगभग सारे विश्व मे डेरी का दूध ए1 पाया गया . विश्व के सारे डेरी उद्योग और राजनेताओं की आज यही कठिनाइ है कि अपने सारे ए1 दूध को एक दम कैसे अच्छे ए2 दूध मे परिवर्तित करें. आज विश्व का सारा डेरी उद्योग भविष्य मे केवल ए2 दूध के उत्पादन के लिए अपनी गौओं की प्रजाति मे नस्ल सुधार के नये कार्य क्रम चला रहा है. विश्व बाज़ार मे भारतीय नस्ल के गीर वृषभों की इसी लिए बहुत मांग भी हो गयी है. साहीवाल नस्ल के अच्छे वृषभ की भी बहुत मांग बढ गयी है.
सब से पहले यह अनुसंधान न्यूज़ीलेंड के वैज्ञानिकों ने किया था.परन्तु वहां के डेरी उद्योग और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से यह वैज्ञानिक अनुसंधान छुपाने के प्रयत्नों से उद्विग्न होने पर, 2007 मे Devil in the Milk-illness, health and politics A1 and A2 Milk” नाम की पुस्तक Keith Woodford कीथ वुड्फोर्ड द्वारा न्यूज़ीलेंड मे प्रकाशित हुई. उपरुल्लेखित पुस्तक में विस्तार से लगभग 30 वर्षों के विश्व भर के आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और रोगों के अनुसंधान के आंकडो के आधार पर यह सिद्ध किया जा सका है कि बीसीएम7 युक्त ए1 दूध मानव समाज के लिए विष तुल्य है.

A1 और A2 दूध का विज्ञान :आधुनिक विज्ञान का यह मानना है कि सृष्टि के आदि काल में, भूमध्य रेखा के दोनो ओर प्रथम एक गर्म भू...
10/09/2017

A1 और A2 दूध का विज्ञान :

आधुनिक विज्ञान का यह मानना है कि सृष्टि के आदि काल में, भूमध्य रेखा के दोनो ओर प्रथम एक गर्म भूखंड उत्पन्न हुवा था ..इसे भारतीय परम्परा मे जम्बुद्वीप नाम दिया जाता है. सभी स्तन धारी भूमी पर पैरों से चलने वाले प्राणी दोपाए, चौपाए जिन्हें वैज्ञानिक भाशा मे अ‍ॅग्युलेट मेमल ungulate mammal के नाम से जाना जाता है, वे इसी जम्बू द्वीप पर उत्पन्न हुवे थे.इस प्रकार सृष्टि में सब से प्रथम मनुष्य और गौ का इसी जम्बुद्वीप भूखंड पर उत्पन्न होना माना जाता है.
इस प्रकार यह भी सिद्ध होता है कि भारतीय गाय ही विश्व की मूल गाय है. इसी मूल भारतीय गाय का लगभग 8000 साल पहले, भारत जैसे गर्म क्षेत्रों से योरुप के ठंडे क्षेत्रों के लिए पलायन हुवा माना जाता है.
जीव विज्ञान के अनुसार भारतीय गायों के 209 तत्व के डीएनए DNA में 67 पद पर स्थित एमिनो एसिड प्रोलीन Proline पाया जाता है. इन गौओं के ठंडे यूरोपीय देशों को पलायन में भारतीय गाय के डीएनए में प्रोलीन Proline एमीनोएसिड हिस्टीडीन Histidine के साथ उत्परिवर्तित हो गया. इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में म्युटेशन Mutation कहते हैं.
(Ref Ng-Kwai-Hang KF,Grosclaude F.2002.:Genetic polymorphism of milk proteins . In:PF Fox and McSweeney PLH (eds),Advanced Dairy Chemistry,737-814, Kluwer Academic/Plenum Publishers, New York)
(देखें-Kwai-रुको KF, Grosclaude F.2002:. दूध प्रोटीन की जेनेटिक बहुरूपता. में: पीएफ फॉक्स और McSweeney PLH सम्पादित लेख “ उन्नत डेयरी रसायन विज्ञान ,737-814, Kluwer शैक्षणिक / सर्वागीण सभा प्रकाशक, न्यूयॉर्क)

1. मूल गाय के दूध में Proline अपने स्थान 67 पर बहुत दृढता से आग्रह पूर्वक अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित अमीनोएसिड आइसोल्यूसीन Isoleucine से जुडा रहता है. परन्तु जब प्रोलीन के स्थान पर हिस्टिडीन आ जाता है तब इस हिस्टिडीन में अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित आइसोल्युसीन से जुडे रहने की प्रबल इच्छा नही पाई जाती. इस स्थिति में यह एमिनो एसिड Histidine, मानव शरीर की पाचन कृया में आसानी से टूट कर बिखर जाता है. इस प्रक्रिया से एक 7 एमीनोएसिड का छोटा प्रोटीन स्वच्छ्न्द रूप से मानव शरीर में अपना अलग आस्तित्व बना लेता है. इस 7 एमीनोएसिड के प्रोटीन को बीसीएम 7 BCM7 (बीटा Caso Morphine7) नाम दिया जाता है.

2. BCM7 एक Opioid (narcotic) अफीम परिवार का मादक तत्व है. जो बहुत शक्तिशाली Oxidant ऑक्सीकरण एजेंट के रूप में मानव स्वास्थ्य पर अपनी श्रेणी के दूसरे अफीम जैसे ही मादक तत्वों जैसा दूरगामी दुष्प्रभाव छोडता है. जिस दूध में यह विषैला मादक तत्व बीसीएम 7 पाया जाता है, उस दूध को वैज्ञानिको ने ए1 दूध का नाम दिया है. यह दूध उन विदेशी गौओं में पाया गया है जिन के डीएन मे 67 स्थान पर प्रोलीन न हो कर हिस्टिडीन होता है.
आरम्भ में जब दूध को बीसीएम7 के कारण बडे स्तर पर जानलेवा रोगों का कारण पाया गया तब न्यूज़ीलेंड के सारे डेरी उद्योग के दूध का परीक्षण आरम्भ हुवा. सारे डेरी दूध पर करे जाने वाले प्रथम अनुसंधान मे जो दूध मिला वह बीसीएम7 से दूषित पाया गया. इसी लिए यह सारा दूध ए1 कह्लाया
तदुपरांत ऐसे दूध की खोज आरम्भ हुई जिस मे यह बीसीएम7 विषैला तत्व न हो. इस दूसरे अनुसंधान अभियान में जो बीसीएम7 रहित दूध पाया गया उसे ए2 नाम दिया गया. सुखद बात यह है कि विश्व की मूल गाय की प्रजाति के दूध मे, यह विष तत्व बीसीएम7 नहीं मिला,
इसी लिए देसी गाय का दूध ए2 प्रकार का दूध पाया जाता है.
देसी गाय के दूध मे यह स्वास्थ्य नाशक मादक विष तत्व बीसीएम7 नही होता. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान से अमेरिका में यह भी पाया गया कि ठीक से पोषित देसी गाय के दूध और दूध के बने पदार्थ मानव शरीर में कोई भी रोग उत्पन्न नहीं होने देते. भारतीय परम्परा में इसी लिए देसी गाय के दूध को अमृत कहा जाता है.

पंचगव्य गाय के दूध, दही, घी, गौमूत्र और गौबर के पानी को सामूहिक रूप से पंचगव्य कहा जाता है. आयुर्वेद में इसे औषधि की मान...
10/09/2017

पंचगव्य

गाय के दूध, दही, घी, गौमूत्र और गौबर के पानी को सामूहिक रूप से पंचगव्य कहा जाता है. आयुर्वेद में इसे औषधि की मान्यता है. हिन्दुओ के कोई भी मांगलिक कार्य इसके बिना पूरे नहीं होते।

पंचगव्य का चिकित्सकीय महत्व:

पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर के द्वारा किया जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर के रोगनिरोधक क्षमता को बढ़ाकर रोगों को दूर किया जाता है। गोमूत्र में प्रति ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। दही एवं घी के पोषण मान की उच्चता से सभी परिचित हैं। दूध का प्रयोग विभिन्न प्रकार से भारतीय संस्कृति में पुरातन काल से होता आ रहा है। घी का प्रयोग शरीर की क्षमता को बढ़ाने एवं मानसिक विकास के लिए किया जाता है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं जो क्षुधा को बढ़ाने में सहायता करते हैं। पंचगव्य का निर्माण देसी मुक्त वन विचरण करने वाली गायों से प्राप्त उत्पादों द्वारा ही करना चाहिए।

पंचगव्य निर्माण:

सूर्य नाड़ी वाली गायें ही पंचगव्य के निर्माण के लिए उपयुक्त होती हैं। देसी गायें इसी श्रेणी में आती हैं। इनके उत्पादों में मानव के लिए जरूरी सभी तत्त्व पाये जाते हैं। महर्षि चरक के अनुसार गोमूत्र कटु तीक्ष्ण एवं कषाय होता है। इसके गुणों में उष्णता, राष्युकता, अग्निदीपक प्रमुख हैं। गोमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फुर, अमोनिया, कॉपर, लौह तत्त्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फास्फेट, सोडियम, पोटेसियम, मैंगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सिअम, नमक, विटामिन बी, ऐ, डी, ई; एंजाइम, लैक्टोज, हिप्पुरिक अम्ल, कृएतिनिन, आरम हाइद्रक्साइद मुख्य रूप से पाये जाते हैं। यूरिया मूत्रल, कीटाणु नाशक है। पोटैसियम क्षुधावर्धक, रक्तचाप नियामक है। सोडियम द्रव मात्रा एवं तंत्रिका शक्ति का नियमन करता है। मेगनीसियम एवं कैल्सियम हृदयगति का नियमन करते हैं।
तीन भाग देसी गांय का शकृत (गोबर) , तीन ही भाग देसी गांय का कच्चा दूध, दो भाग देसी गांय के दूध की दधि, एक भाग देसी गांय का घृत इन्हें मिश्रित कर लें विष्णु धर्म में कहा गया है जितना पंचगव्य बनाना हो उसका आधा अंश गौमूत्र का होना चाहिए | अर्थात उक्त मिश्रण जितनी मात्र में हो उतने ही मात्र में गौमूत्र होना चाहिए, शेष कुशाजल होना चाहिए।

गोमूत्रं गोमय क्षीरं दधि सर्पि कुशोदकम्।
पंचचगव्य मिदम् प्रोक्तम्महापातक नाशनम् ॥

30/08/2017

हिंदू धर्म के अनुसार 33 करोड़ देवी-देवता हैं, ऐसा माना जाता है। प्राचीन काल से असंख्य देवी-देवताओं को पूजने की परंपराएं चलन में है। इस संबंध में सामान्यत: सभी की जिज्ञासा रहती है कि क्या वाकई में हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं। संस्कृत में कोटि शब्द के दो अर्थ होते हैं, एक अर्थ है प्रकार और दूसरा अर्थ है करोड़।
देवी-देवताओं के संदर्भ में भी कोटि शब्द का पहला अर्थ 'प्रकार' ही काम में लिया गया है।

हिंदू धर्म के इन 33 देवी-देवताओं की गणना इस प्रकार हैं। देवताओं की इन 33 कोटि में आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, इंद्र और प्रजापति शामिल है
12 आदित्य:- अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, वैवस्वत और विष्णु

8 वसु:-आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष, प्रभाष

11 रूद्र:- मनु, मन्यु, शिव, महत, ऋतुध्वज, महिनस, उम्रतेरस, काल, वामदेव, भव और धृत-ध्वज

2 अश्विनी:- अश्विनी तथा कुमार (कुछ लोग इंद्र तथा प्रजापति के स्थान पर अश्विनी कुमारों को मानते हैं।

इस प्रकार कुल 12 आदित्य + 8 वसु + 11 रूद्र + 2 अश्विनी कुमारों को मिलाकर कुल 33 कोटी देवता होते हैं।

If you are a victim of Gastric / Diabetes / Migraine / sinusitis / early menstruation etc.. then it's time to drink Desi...
28/08/2017

If you are a victim of Gastric / Diabetes / Migraine / sinusitis / early menstruation etc.. then it's time to drink Desi Cow (A2) Milk.

A1 Milk Side Effects

Reason 1: Negative effects on the Digestive system by A1 Milk.

Reason 2: Risk of Type 1 diabetes by A1 Milk

Reason 3: Risk of heart diseases by A1 Milk

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