04/06/2022
आयुर्वेद एक सम्पूर्ण व पूर्णतः वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति है व यह सदैव हर काल में रिसर्च पर आधारित रही है , यह समयानुकूल परिवर्तन भी स्वीकार करती है।
इसमें एक विषय रस शास्त्र है जिसे साधारण भाषा में फार्मेसी समझ सकते हैं, इसे पूरे एक वर्ष पढ़ाया जाता है ,इसमें तीन वर्ष का स्नातकोत्तर कोर्स MD (Ay) भी होता है।इसमें आयुर्वेद की दवाएं बनाना सिखाया जाता है।
आयुर्वेद की दवाएं दो प्रकार की होती हैं।
1 क्लासिकल: जो पूर्व के विभिन्न ग्रंथों में वर्णित हैं।जैसे सितोपलादि चूर्ण,अर्जुनारिष्ट आदि
2 पेटेंट:जो विभिन्न दवा कंपनियां अपने फॉर्मूले से बनाती हैं जैसे Liv 52,आदि
क्लासिकल दवा स्वरस,फॉन्ट,क़ुआथ(काढ़ा) चूर्ण,वटी,भस्म,अर्क ,आसव ,अरिष्ट,अवलेह(चटनी)आदि कई रूपों में आती है।इसमें समयानुरूप बनाने के तरीकों में भी परिवर्तन हुए हैं।यह सभी फॉर्मूले विभिन्न शोधों के बाद ही निर्धारित हुए हैं इनके घटकों में साधारणतया कोई परिवर्तन नहीं होते हैं।1996 तक विभिन्न कंपनियों के आयुर्वेदिक इंजेक्शन भी आते थे जिनके अत्यंत आश्चर्य जनक परिणाम मिलते थे ,परन्तु फार्मा कंपनियों की साज़िश से उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया।साधारणतया पूर्व,वर्तमान तथा भविष्य के सभी रोगों की दवा क्लासिकल रूप में मौजूद है।कौन सी दवा किस रोगी को किस रूप में देनी है यह सिर्फ और सिर्फ क्वालिफाइड वैद्य ही बता सकता है।जिसकी डिग्री लगभग 1982 के बाद पूरे भारतवर्ष में BAMS ही है, जो साढ़े पाँच वर्ष का नियमित कोर्स है ,जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त कॉलेज से ही होती है,न तो यह पत्राचार से होता है और न इससे कम समय में, इसलिये सभी इस बात को स्पष्ट समझ लें कि लगभग 60 वर्ष से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति BAMS के अलावा किसी अन्य डिग्री को लिखकर अपने को वैद्य होने का दावा करता है तो वह संदिग्ध है।
2 पेटेंट दवा:कोई भी दवा निर्माता इसे अपनी निर्धारित शोध प्रक्रिया के द्वारा बनाता है जिसके लिये समय समय पर प्रदेश एवं देश की सरकारों ने नियम बनाये हैं कोई भी पेटेंट दवा बिना इन नियमों का पालन किये यदि बनाई जाती है तो वह गैर कानूनी है।
इसलिये क्लासिकल और पेटेंट का अंतर समझिये।पेटेंट दवा भी शुद्ध व उच्च गुणवत्ता की होती है यह कंपनी की साख पर निर्भर करता है ,सभी बड़ी कंपनी डाबर,वैद्यनाथ,झंडु, ऊंझा,आर्य वैद्यशाला आदि दोनों प्रकार की दवा बनाते हैं व सभी नियमों का पालन करते हैं व कभी भी मार्केट में बड़े चढे दावे नहीं करते व न ही सनसनी फैलाते हैं।
चरक,हिमालय,एमिल आदि कंपनी मुख्यतः पेटेंट दवा बनाती हैं जो साधारणतया सभी नियमों का पालन करती हैं, इनकी दवा, टैबलेट, कैप्सूल, सीरप आदि आधुनिक रूपों में होती है परंतु होती पूर्णतयः आयुर्वेदिक ही है,कायदे में इनका प्रयोग भी BAMS की सलाह से ही करना चाहिये परंतु कुछ दवा विक्रेता व अन्य पैथी के चिकित्सक भ्रम पैदा करते हुए इन्हें मरीजों को देते हैं जिससे कभी भी उन्हें हानि हो सकती है क्योंकि कौन सी दवा में अंदर क्या घटक है व उसे कितने दिन खाना है यह वही बता सकता है जिसने साढ़े पांच साल BAMS पढ़ा है।
आयुर्वेद की दवा चाहे क्लासिकल हो या पेटेंट मरीज की प्रकृति व रोग की अवस्था के अनुसार ही निर्धारित की जाती है कोई भी दवा निरापद नहीं है न ही लम्बे समय प्रयोग कर सकते हैं यह सिर्फ क्वालिफाइड वैद्य ही निर्धारित कर सकता है।
मैथी, सौंठ, लौंग,दालचीनी,काली मिर्च,अजवायन ,गिलोय ,अश्वगंधा जैसी रोज प्रयोग की जाने वाली दवा भी लंबे समय में किसी को भी हानि पहुंचा सकती है।इसलिये आयुर्वेद के नाम पर कुछ भी लें तो डिग्री वाले चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
डॉ अरूण छाजेड़
🙏🙏🙏🙏🙏🙏