Dr. Suresh Gandhi Pain Clinic

Dr. Suresh Gandhi Pain Clinic Natural cure of root causes of pain/disease using acupuncture, acupressure, magneto-therapy, laser-therapy, diet-therapy, colour-therapy, moxa-therapy

According to Modern Science,pain signals are transmitted due to injury ,inflammation or tissue damage by specialized nervous cells(Receptors). According to TCM (Chinese Acupuncture) , pain in any area of the body is due to obstruction in Qi and blood, followed in well defined path way called Channel. These obstructions can be cleared by moxibustion , cupping , acupuncture, massage and laser on acupuncture points. BACK PAIN :-
Back muscles get stiffed and tensed, when the nerve of that area, is suppressed by the disc. These muscles are relaxed by moxibustion, cupping and acupuncture. SCIATICA PAIN:-
Nerve of the leg(sciatica) get inflamed and suppressed by disc in spine. Due to excess gastritis, the disc get bulged. Treatment- With diet instructions and cupping on the navel ,helps to reduce gastritis. Sciatica nerve is relaxed by moxibustion and acupuncture therapy. KNEE PAIN:-
It is due to inflammation or shrinkage of the cartilage. Pathway channel of knee is opened by acupuncture and cupping. CERVICAL PAIN:-
Muscles of neck area get stiffed due to suppression of nerve by bulged disc of neck area. Muscles are relaxed by cupping , moxibustion and acupuncture. FROZEN SHOULDER:-
Cartilage of shoulder gets inflamed , which restricts the movement of shoulder. With acupuncture ,moxibustion and laser therapy, we relax the muscles of the shoulder area.

11/11/2024

RELIEF in chronic # KNEE pain with # NUMBER THERAPY

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07/11/2022

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*DR SURESH GANDHI BEIJING UNI. CHINA, AND BERKELEY UNI.USA से एक्यूपंक्चर का गहन अध्ययन करने के बाद 25 साल से एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, ओर साथ मे इलेक्ट्रो होमियोपैथी में भी प्रशिक्षण ओर परिणाम देने में महारथ हासिल की है इसबार ये वेबिनार में आपको TCM MERIDIAN POINT पर ION PUMPING CORD ,Seed, pressure, magnets, Needle,Leaf,Fascia Stimulation and EH MEDICINES APPLICATION के बारे मे महत्वपूर्ण प्रशिक्षण मिलेगा जो त्वरित परिणाम देनेमें सक्षम है। इसके कुछ वीडियो ये मेसेज के साथ शेयर किए है ये अवश्य देखे Recording and Pdf of CLASSES will be provided*

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*For any inquiry Contact: Suresh Gandhi 9999456995, 8076544691,9818023482*

*✍️✍️✍️ कोर्स का प्रारूप कैसा होगा ये जानने के लिए नीचे दिए विडीओ अवश्य देखे*

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03/08/2022

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12/01/2017

सफ़ेद दाग(ल्युकोडर्मा) की सरल चिकित्सा
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ल्युकोडर्मा चमडी का भयावह रोग है,जो रोगी की शक्ल सूरत प्रभावित कर शारीरिक के बजाय मानसिक कष्ट ज्यादा देता है। इस रोग में चमडे में रंजक पदार्थ जिसे पिग्मेन्ट मेलानिन कहते हैं,की कमी हो जाती है।चमडी को प्राकृतिक रंग प्रदान करने वाले इस पिग्मेन्ट की कमी से सफ़ेद दाग पैदा होता है।इसे ही श्वेत कुष्ठ कहते हैं।यह चर्म विकृति पुरुषों की बजाय स्त्रियों में ज्यादा देखने में आती है।

ल्युकोडर्मा के दाग हाथ,गर्दन,पीठ और कलाई पर विशेष तौर पर पाये जाते हैं। अभी तक इस रोग की मुख्य वजह का पता नहीं चल पाया है।लेकिन चिकित्सा के विद्वानों ने इस रोग के कारणों का अनुमान लगाया है।पेट के रोग,लिवर का ठीक से काम नहीं करना,दिमागी चिंता ,छोटी और बडी आंर्त में कीडे होना,टायफ़ाईड बुखार, शरीर में पसीना होने के सिस्टम में खराबी होने आदि कारणों से यह रोग पैदा हो सकता है।

शरीर का कोई भाग जल जाने अथवा आनुवांशिक करणों से यह रोग पीढी दर पीढी चलता रहता है।इस रोग को नियंत्रित करने और चमडी के स्वाभाविक रंग को पुन: लौटाने हेतु कुछ घरेलू उपचार कारगर साबित हुए हैं जिनका विवेचन निम्न पंक्तियों में किया जा रहा है--

१🌷आठ लीटर पानी में आधा किलो हल्दी का पावडर मिलाकर तेज आंच पर उबालें, जब ४ लीटर के करीब रह जाय तब उतारकर ठंडा करलें फ़िर इसमें आधा किलो सरसों का तैल मिलाकर पुन: आंच पर रखें। जब केवल तैलीय मिश्रण ही बचा रहे, आंच से उतारकर बडी शीशी में भरले। ,यह दवा सफ़ेद दाग पर दिन में दो बार लगावें। ४-५ माह तक ईलाज चलाने पर आश्चर्यजनक अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं।

२🌷बाबची के बीज इस बीमारी की प्रभावी औषधि मानी गई है।५० ग्राम बीज पानी में ३ दिन तक भिगोवें। पानी रोज बदलते रहें।बीजों को मसलकर छिलका उतारकर छाया में सूखालें। पीस कर पावडर बनालें।यह दवा डेढ ग्राम प्रतिदिन पाव भर दूध के साथ पियें। इसी चूर्ण को पानी में घिसकर पेस्ट बना लें। यह पेस्ट सफ़ेद दाग पर दिन में दो बार लगावें। अवश्य लाभ होगा। दो माह तक ईलाज चलावें।

३🌷बाबची के बीज और ईमली के बीज बराबर मात्रा में लेकर चार दिन तक पानी में भिगोवें। बाद में बीजों को मसलकर छिलका उतारकर सूखा लें। पीसकर महीन पावडर बनावें। इस पावडर की थोडी सी मात्रा लेकर पानी के साथ पेस्ट बनावें। यह पेस्ट सफ़ेद दाग पर एक सप्ताह तक लगाते रहें। बहुत ही कारगर उपचार है।लेकिन यदि इस पेस्ट के इस्तेमाल करने से सफ़ेद दाग की जगह लाल हो जाय और उसमें से तरल द्रव निकलने लगे तो ईलाज कुछ रोज के लिये रोक देना उचित रहेगा।

४🌷एक और कारगर ईलाज
लाल मिट्टी लावें। यह मिट्टी बरडे- ठरडे और पहाडियों के ढलान पर अक्सर मिल जाती है। अब यह लाल मिट्टी और अदरख का रस बराबर मात्रा में लेकर घोटकर पेस्ट बनालें। यह दवा प्रतिदिन ल्युकोडेर्मा के पेचेज पर लगावें। लाल मिट्टी में तांबे का अंश होता है जो चमडी के स्वाभाविक रंग को लौटाने में सहायता करता है। और अदरख का रस सफ़ेद दाग की चमडी में खून का प्रवाह बढा देता है।

५🌷श्वेत कुष्ठ रोगी के लिये रात भर तांबे के पात्र में रखा पानी प्रात:काल पीना फ़ायदेमंद है।

६🌷मूली के बीज भी सफ़ेद दाग की बीमारी में हितकर हैं। करीब ३० ग्राम बीज सिरका में घोटकर पेस्ट बनावें और दाग पर लगाते रहने से लाभ होता है।

७🌷एक अनुसंधान के नतीजे में बताया गया है कि काली मिर्च में एक तत्व होता है --पीपराईन। यह तत्व काली मिर्च को तीक्ष्ण मसाले का स्वाद देता है। काली मिर्च के उपयोग से चमडी का रंग वापस लौटाने में मदद मिलती है।

८🌷 चिकित्सा वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सफ़ेद दाग रोगी में कतिपय विटामिन कम हो जाते हैं। विशेषत: विटामिन बी १२ और फ़ोलिक एसीड की कमी पाई जाती है। अत: ये विटामिन सप्लीमेंट लेना आवश्यक है। कॉपर और ज़िन्क तत्व के सप्लीमेंट की भी सिफ़ारिश की जाती है।

बच्चों पर ईलाज का असर जल्दी होता है|
चेहरे के सफ़ेद दाग जल्दी ठीक हो जाते हैं। हाथ और पैरो के सफ़ेद दाग ठीक होने में ज्यादा समय लेते है। ईलाज की अवधि ६ माह से २ वर्ष तक की हो सकती है।
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07/01/2017

*Importance of ph level balance in the body*

It's your pH (pH factor indicates acidic versus alkaline ratio in your body).

In a flashback to high school chemistry, remember that the pH scale goes from 0 to 14.

0 is pure acid, 7 is neutral, and 14 is pure alkaline.

You came into this world with an alkaline pH.
It's how your body was designed and how you're meant to stay.

Without exception, ALL of your organs, tissues, bones and joints work best when your blood pH is slightly alkaline (around 7.365).

If your pH is even just a little too acidic, that's when your body can begin to literally break down. Aches and pains begin to creep up. Tumours (including cancer) can flourish. Diseases can rear their ugly heads. Although a number of factors can contribute to an acid pH, (including stress, environmental toxins, lack of exercise and smoking), far and away the number one factor is your FOOD.

Eating acid-creating foods (especially fast food, processed food, meat, dairy, refined carbs and hard to digest meal combinations) pulls your pH down toward the acid range.

On the other hand, when your diet contains many alkaline foods (like fresh fruits and vegetables) and is easy for your body to break down, you encourage a more alkaline pH.

A snapshot of your innards:

Let's take a look at your innards and see some examples of how your body can break down when you're acidic:

Your Heart
Your heart pumps an unbelievable 13,000 quarts of blood a day -- enough to fill a small swimming pool! If there are toxins in your blood, that puts a huge strain on your heart to do its job. Acid wastes, in your system also rob your blood of oxygen, which causes your heart tissue to deteriorate. And you don't want your ticker breaking down, do you?

Your Liver

The liver serves over 300 different functions -- with two of the most important being, to remove acid wastes from your blood and make alkaline enzymes for your body. If you're like most people who live in industrialized countries, your blood resembles a war zone, with far too many toxins floating around, and your liver is constantly being stressed cleaning them out. If that goes on long enough, it can completely shut down.
And so will you.

Your Pancreas
The pancreas is super important ... in fact, it's responsible for completing digestion in your small intestine. And it helps regulate blood sugar by producing insulin.
Like I said, super important.
More so than any other organ, the pancreas is extremely sensitive to your pH and absolutely CANNOT function when you're acidic -- it MUST have an alkaline environment. If your pancreas is not working right, you can be looking at type II diabetes, (which can kill you FAST).

Your Kidneys
The kidneys create urine and help get rid of excess acid from the body. About one litre of blood passes through them every single minute! If your blood has too much acid and toxins, your kidneys are over-stressed and unable to do their job.
(Ever hear of Dialysis? Kidney stones?)

Your Stomach
When your stomach properly breaks down your food, the small intestine can finish the job and digestion is completed like it should be. But foods that are acid-creating are hard for your stomach to break down, and in its efforts to do its job, it may overproduce acid. The result can be poorly digested food, fewer nutrients being absorbed, and acid rising up into your throat. Acid reflux, GERD, IBS, hiatal hernia and gastritis are all on the rise and this is why. The typical American diet is LOADED with hard to digest, acid-creating food.

Your Colon
Wastes are supposed to easily pass through the colon and "out your back door." But if digestion has not been accomplished properly, they don't move through like they should. Instead they can clog your colon walls, become a breeding ground for bacteria and disease and cause you to put on weight.

Plus, the toxins can be reabsorbed into your bloodstream, make you ill and encourage the development of food sensitivities. It’s no surprise that colon cancer is the number one cancer killer, and that so many people suffer with IBS, dive

rticulosis/itis and chronic constipation, is it?

An acid pH is GOOD -- when you're DEAD.
There is one time when you're SUPPOSED to have an acid pH. When you're DEAD. Your body automatically becomes acidic upon death so it can decompose like it's supposed to. I don't want that happening any time too soon, do you?
So ... how do we get this magic 7.365 pH?
Hopefully you've gotten the idea of how important it is to have a slightly alkaline pH while you're still breathing and vertical.

Now I'll tell you the 4 steps to attaining and maintaining an optimal alkaline pH:

Step 1- Check your pH at regular intervals
You can get a saliva test or urine test kit at most drug stores or health food stores.

The saliva test is the least accurate and urine is slightly more accurate. You can also have your blood tested by a doctor. This is the most accurate measure but also the most expensive. If you want this done and your doctor won't do it, find one who will.

The normal pH for urine is about 6.5-6.8 (it's acidic because urine is an exit for toxins), for saliva 7.0-7.4 and for blood 7.365 is your target.

If you're testing your pH with saliva or urine, it's important to perform the test several times at different times of the day, since pH can be affected by what you eat or drink.

Step 2- Drink pure water

Step 3- Eat more alkaline foods
Remember it's NEVER a good idea to eat processed food, fast food or drink soda. Keep those to a bare minimum or preferably none at all.

Step 4- Keep your digestion efficient
In order to keep your digestion humming, it's vital to eat meal combinations that are easily broken down and don't cause your stomach to over produce acid, and make sure you have adequate enzymes to do the job.

Simply put:
Easy digestion = proper elimination of wastes = a more alkaline pH

Poor digestion = acid waste build-up = Sickness and a more acid pH

Without the proper enzymes for digestion, you can suffer from gas, bloating, constipation, waste build-up ... and you'll have a more acidic pH!

So remember -- while your weight, blood pressure, cholesterol, etc., are all very important too, it's vital to keep your eye on the MOST important number -- your pH.

28/12/2016

*विटामिन संबंधी महत्वपूर्ण तथ्य:- एक बार जरूर पढ़ें 👌
*√विटामिन - 'A'*
√रासायनिक नाम : रेटिनाॅल
√कमी से रोग: रतौंधी
√स्रोत (Source): गाजर, दूध, फल.
*√विटामिन - 'B1'*
√रासायनिक नाम: थायमिन
√कमी से रोग: बेरी-बेरी
√स्त्रोत (Source): मुंगफली, आलू, सब्जीयाँ
*√विटामिन - 'B2'*
√रासायनिक नाम: राइबोफ्लेबिन
√कमी से रोग: त्वचा फटना, आँख का रोग
√स्रोत (Source): दूध, हरी सब्जियाँ
*√विटामिन - 'B3'*
रासायनिक नाम: पैण्टोथेनिक अम्ल
√कमी से रोग: पैरों में जलन, बाल सफेद
√स्रोत (Source): दूध, टमाटर, मूंगफली
*√विटामिन - 'B5'*
√रासायनिक नाम: निकोटिनेमाइड (नियासिन)
√कमी से रोग: मासिक विकार (पेलाग्रा)
√स्रोत (Source): मूंगफली, आलू
*√विटामिन - 'B6'*
√रासायनिक नाम: पाइरीडाॅक्सिन
√कमी से रोग: एनीमिया, त्वचा रोग
√स्रोत (Source): दूध, सब्जी
*√विटामिन - 'H / B7'*
√रासायनिक नाम: बायोटिन
√कमी से रोग: बालों का गिरना , चर्म रोग
√स्रोत (Source): गेहूँ,
*√विटामिन - 'B12'*
√रासायनिक नाम: सायनोकोबालमिन
√कमी से रोग: एनीमिया, पाण्डू रोग
√स्रोत (Source): कजेली, दूध
*√विटामिन - 'C'*
√रासायनिक नाम: एस्कार्बिक एसिड
√कमी से रोग: स्कर्वी, मसूड़ों का फुलना
√स्रोत (Source): आँवला, नींबू, संतरा, नारंगी
*√विटामिन - 'D'*
√रासायनिक नाम: कैल्सिफेराॅल
√कमी से रोग: रिकेट्स
√स्रोत (Source): सूर्य का प्रकाश, दूध,
*√विटामिन - 'E'*
√रासायनिक नाम: टेकोफेराॅल
√कमी से रोग: जनन शक्ति का कम होना
√स्रोत (Source): हरी सब्जी, मक्खन, दूध
*√विटामिन - 'K'*
√रासायनिक नाम: फिलोक्वीनाॅन
√कमी से रोग: रक्त का थक्का न बनना
√स्रोत (Source): टमाटर, हरी सब्जियाँ, दूध...................

27/12/2016

🌺पुदीना के आयुर्वेदिक गुण🌺

🌼पुदीना ग्रीष्मऋतु में अत्यंत स्वास्थ्यप्रद घरेलू औषधि के रूप में उपयोगी है।। पुदीना हमारे देश के घर घर में उपयोगी होने के कारण बाग बगीचों में,, क्यारियों में लगाया जाता है।। यह प्राकृतिक रूप से कश्मीर एवं हिमालय के छेत्र में स्वयं उग जाता है।। गरमी के दिनों में पाचन संबंधी विकारों को रोकने के लिए बेहद लाभदायक औषधि है।। उलटी,, दस्त,, गैस,, अपच,, अफारा में गोली या स्वरस दोनों प्रकार से सेवन करना लाभप्रद है।। पुदीना में मौजूद फाइटोन्यूट्रिएटस् कई बिमारियों से बचाते है।। पत्तों का प्रयोग सलाद के साथ किया जाता है।। पुदीना की स्वादिष्ट चटनी सेवन करते हैं।। दही के रायता इत्यादि पेय में पुदीना स्वाद एवं स्वास्थ्य बढ़ाने वाला है।। दोपहर के भोजन के बाद दही का रायता अमृततुल्य माना गया है।।

🌼पुदीना में एंटीवैक्टीरिया एवं एंटी इन्फ्लेेमेेन्टरी गुण भी है।। पुदीना के सेवन से मुँह की बदबू दूर होती है।। पेट की मरोड़ पुदीने के सेवन से दूर होती है।। नीबू तथा पुदीना के साथ ब्लैक टी एक स्वास्थ्यप्रद पेय है।।

🌼पेट की मरोड़ पुदीने के सेवन से दूर होती है।। प्राय: बाजार में उपलब्ध होता है।। पुदीना के पत्ते तथा डंठलों को धोकर प्रयोग करते है।। यदि सुखाकर रखना हो तो पत्तों को धोने के बाद छाया में सुखाना चाहिए।। सूख जाने के बाद चूर्ण बनाकर रखते है।। पीसकर गन्ने के रस में मिलाकर पीते है।।

🌺आयुर्वेदिक गुण- धर्म🌺

🌼पुदीना कफनाशक,, वात नाशक,, गर्भाशय संकोचक,, दरद नाशक,, दुर्गंधनाशक,, मूत्र बढ़ाने वाला,, विष नाशक,, ज्वर नाशक,, त्वचा संबंधी विकारों को दूर करने वाला है।। पाचन शक्ति की कमी,, मूत्र का सन्क्रमण,, कृमि रोग,, दंत रोगों को दूर करता है।। हृदय के लिए हितकारक होता है।।

🌺घरेलू उपयोग🌺

🌼प्रसूतिका ज्वर में-- प्रसव के बाद ज्वर होने पर पुदीने का १० ग्राम रस पिलाने से लाभ होता है,, गर्भाशय की शुद्धि होती है।।

🌼हैेेजा में-- १० ग्राम पुदीने के रस में ५ ग्राम नीबू का रस मिलाकर दिन में ३ बार पिलाने से लाभ होता है।।

🌼टाइफाइड में-- पुदीना,, वन तुलसी और काली तुलसी के पत्तों का १५ ग्राम रस में ५ ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है।। टायफाइड में एक माह तक फलों का रस पथ्य के रूप में देना चाहिए ।।मिर्च मसाले तथा तले खाद्य से परहेज करें।।

🌼ज्वर में-- पुदीना के १५ ग्राम पत्ते और एक गाँठ अदरक को २०० ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होता है।।

🌼उदरसूल में-- पुदीने का एक चम्मच रस में ३-४ काली मिर्च पीसकर शहद के साथ चाटने से लाभ होता है।।

🌼उलटी में-- पुदीना रस ६ ग्राम,, सेंधा नमक २ ग्राम पीसकर पानी में घोलकर छान लें,, थोड़ी थोड़ी मात्रा में पीने से लाभ होता है।। पित्त प्रकोप के कारण उलटी होने पर थोड़ी मिश्री मिलाकर सेवन करें।।

🌼अजीर्ण में-- ५ ग्राम पुदीना रस के साथ ५ ग्राम जीरा,, एक ग्राम नमक मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।।

🌼उलटी,, दस्त,, वायु विकार एवं अपच में-- पुदीना चूर्ण २५ ग्राम को २ गिलास पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर २५० ग्राम नीबू रस सहित ५०० ग्राम देशी खाँड की चासनी में मिलाकर रख लें।। इस औषधि को २० ग्राम सेवन करने से पित्त विकार दूर होता है।। भूख बढ़ती है।। पाचन शक्ति बढ़ती है।।

🌼गले की खराश में-- गले के दरद एवं खराश में ५ बूँद रस बतासे या शहद में ३-४ बार सेवन करने से लाभ होता है।।

🌼शीत पित्ती होने पर-- ५ ग्राम पुदीना को पीसकर पानी में घोलकर स्वादानुसार चीनी मिलाकर सुबह शाम सेवन करने से लाभ होता है।।

🌼कष्टार्त्व में-- स्त्रीयो को मासिक धर्म की शिकायत होने पर पीड़ा तथा रजोरोध मिटाने के लिए पुदीने का रस थोड़ा गरम करके १० ग्राम देने से शीघ्र लाभ होता है।।

🌼बर्र,, बिच्छू तथा चूहे के दंश पर-- पुदीने का रस दंशस्थल पर लगाएँ तथा ४-५ पत्तों को पान में रखकर खाने से विकार नष्ट होते हैं।

🌼कफ विकार में-- फेफड़े में कफ जमा होने पर निवारण के लिए ५ ग्राम पत्तों को ३-४ अंजीर के साथ पीसकर सेवन करने से कफ निकल जाता है।।

🌼घाव बिगड़ने पर-- पुदीने के पत्तों को पीसकर लेप करने से घाव ठीक होता है।। सन्क्रमण नष्ट होता है।।

🌼त्वचा के काले दाग पर-- त्वचा की कांति बढ़ाने के लिए,, काले दागों के निवारण के लिए पुदीने के रस को बराबर मात्रा में रेक्टीफाइड स्प्रिट के साथ पका कर लगाने से काले दाग मिटते हैं।।

🌼आंत्रकृमि होने पर-- ताजे पत्तों का रस पीने से तथा रस की वस्ति देने से आंत्रकृमि नष्ट होता है।।

🌼पीनस में-- पुदीने का ४-५ बूँन्द रस नाक मे टपकाने से लाभ होता है।।

🌼कान दरद में-- २-३ बूँद रस कान में टपकाने से लाभ होता है।।

🌼मुँह के छालों पर-- पुदीने के पत्तों को पीसकर जीभ पर लेप करने से लाभ होता है।।

🌼सरदी जुकाम में-- पुदीना की पत्तियाँ पानी में उबालकर नाक एवं मुँह में भाप लेने से लाभ होता है।।

🌼अरूचि में-- पुदीना,, खजूर,, मुनक्का,, जीरा तथा जटामांसी ,, हींग और काली मिर्च स्वादानुसार मिलाकर चटनी बना कर नीबू का रस मिलाकर खाने से लाभ होता है।।

🌼उलटी दस्त मरोड़,, जी मिचलाना तथा हैेेजा में-- पुदीने का ५० ग्राम पत्ते को २०० ग्राम रेक्टीफाइड स्प्रिट में मिलाकर शीशी में भरकर रख दें।। इस औषधि को ५-१० बूँन्द देने से लाभ होता है।।

🌼रायता के रूप में-- पुदीने की पत्तियों को सुखाकर पीसकर दही या छाछ में मिलाकर स्वादानुसार काला नमक मिलाकर रायता बना कर दोपहर के भोजन के बाद पीना लाभप्रद होता है।

🌼शीतल पेय के रूप में-- कच्चे आम को उबालकर गूदा निकालकर पुदीने की पत्तियों को पीसकर स्वादानुसार जीरा,, सेंधा नमक,, मिश्री मिलाकर पन्ना बनाकर पीने से गरमी,, लू से बचाव होता है।।

🌼खट्टी मीठी चटनी-- पुदीना,, कच्चा आम,, हरी मिर्च,, स्वादानुसार नमक और गुड़ मिलाकर पीस लें,, यह चटनी भोजन के साथ रूचि पैदा करती है।।

🌼सलाद के साथ-- पुदीना की पत्तियों को सलाद में मिलाकर खाने से औषधि का काम करता है।। हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करता है।। इसे खीरा,, ककड़ी,, गाजर,, मूली,, पत्तागोभी,, टमाटर, चुकंदर,, धनिया पत्ती आदि में सलाद के साथ पुदीने की पत्तियों को मिलाकर सेवन करना चाहिए।

09/12/2016

*🎄अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है विटामिन डी🎄*
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⚫हर इंसान को विटामिन की जरूरत होती है, लेकिन खासतौर से महिलाओं को पुरुषों की तुलना में विटामिन डी की अधिक जरूरत होती है, क्योंकि महिला को अपने जीवनकाल में जिन चरणों से गुजरना पड़ता है, वैसे पुरुषों के साथ नहीं होता। विटामिन-डी शरीर के विकास, हड्डियों के विकास और स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। धूप के संपर्क में आने पर त्वचा इसका निर्माण करने लगती है। हालांकि यह विटामिन खाने की कुछ चीजों से भी प्राप्त होता है, लेकिन इनमें यह बहुत ही कम मात्रा में होता है। केवल इनसे विटामिन-डी की जरूरत पूरी नहीं हो जाती है। नए अध्ययनों से सामने आया है कि विटामिन डी की कमी से दिल संबंधी बीमारियां होने का खतरा है और अन्य कई गंभीर बीमारियां हो सकती है।
⚫विटामिन डी शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगों को ठीक तरह से संचालित करने में मदद करता है। हांलाकि हड्डियों के अलावा दूसरी बीमारियों की जानकारी ज्यादा नहीं है, लेकिन इसकी कमी से कई गंभीर विकार जैसे कि इम्यूनिटी, ऑटो इम्यूनिटी का बढऩा, मायोपेथी, डायबिटीज मैलीटिस और कोलन, स्तन व प्रोस्टेट कैंसर हो सकते है।
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*🎄 महिलाओं के लिए खास -*
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⚫विटामिन डी की कमी महिलाओं में उन दिनों में काफी परेशान करता है। इसलिए इसकी पूर्ति से महिलाओं को उन दिनों के दौरान होने वाले प्रीमेन्सट्रअल सिंड्रोम में भी सहायता मिलती है। जिन औरतों में विटामिन डी की कमी होती है, उनके बच्चों को विटामिन डी और कम मात्रा में मिल पाता है। ऐसे में बच्चे में रिकेट्स होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए महिलाओं को स्तनपान के दौरान शुरुआती तीन माह में विटामिन डी के सप्लीमेंट्स सावधानीपूर्वक लेने चाहिए, क्योंकि इससे यूरेनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन का खतरा बढ़ सकता है। मुंबई स्थित पी डी हिंदुजा हास्पिटल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डा।संजय अग्रवाल का कहना है कि सिर्फ यह एक ऐसा विटामिन है, जो हमें मुफ्त में उपलब्ध है। पर विटामिन डी हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। यह शरीर में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करता है, जो तंत्रिका तंत्र की कार्य प्रणाली और हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। शरीर में विटामिन डी की उचित मात्रा उच्च रक्तचाप के खतरे को कम करता है। इसकी कमी से मेनोपॉज के बाद महिलाओं में आस्टियोपोरेसिस का खतरा बढ़ जाता है।
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*⚫विटामिन डी का सबसे अच्छा स्त्रोत सूर्य की किरणें हैं।* जब हमारे शरीर की खुली त्वचा सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में आती है तो ये किरणें त्वचा में अवशोषित होकर विटामिन डी का निर्माण करती हैं। अगर सप्ताह में दो बार दस से पंद्रह मिनट तक शरीर की खुली त्वचा पर सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणें पड़ती हैं तो शरीर की विटामिन डी की 80-90 प्रतिशत तक आवश्यकता पूरी हो जाती है। सूर्य की किरणों के बाद काड लीवर ऑयल विटामिन डी का सबसे अच्छा स्त्रोत है

⚫इसके अलावा दूध, अंडे, चिकन, मछलियां , भी विटामिन डी के अच्छे स्त्रोत हैं। विटामिन डी को सप्लीमेंट के रूप में भी लिया जा सकता है।
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*🔳विटामिन-डी की कमी के लक्षण -*
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⚫दर्द या तेज दर्द, कमजोरी एवं ओस्टियोमेलेशिया और हड्डियों का दर्द (आमतौर पर कूल्हों, पसलियों और पैरों आदि की हड्डियों में) साथ ही खून में विटामिन-डी की कमी होने पर कार्डियोवेस्क्युलर रोगों से मृत्यु, याददाश्त कमजोर होना आदि की आशंकाएं प्रबल होती हैं।
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*⚫विटामिन डी की कमी का प्रभाव-*
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🌺 विटामिन डी की कमी से कैल्शियम तथा फास्फोरस आंतों में शोषित नहीं हो पाते हैं, परिणाम स्वरूप अस्थियों तथा दांतों पर कैल्शियम नहीं जम पाता है। जिसके फलस्वरूप वे कमजोर हो जाते हैं। दुर्बल हड्डियां शरीर का भार नहीं सह पातीं और उनमें अनेक प्रकार सकी विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं। इसकी कमी से चार प्रकार के रोग होते हैं। रिकेट्स, पेशीय मरोड, अस्थि विकृति या आस्टोमलेशिया हैं। महिलाओं में विटामिन डी की कमी अनेक प्रभाव उत्पन्न करती है शोधकर्ताओं ने अपने शोध में कहा है कि इसकी कमी से फेफडों की बनावट और कामकाज में अंतर आ जाता है। तथा इनकी कार्य करने की क्षमता मे कमी आती है, साथ ही फेफडें सिकुड भी जाते हैं और इस वजह से वायु को बहुत ज्यादा प्रतिरोध का सामना करना पडता है।
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*◾बचाव-*
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🌺 कम से कम 75 प्रतिशत शरीर को रोजाना विटामिन डी पूरा करने के लिए सूर्य की सीधी रोशनी की जरूरत होती है। कुछ साल पहले विभिन्न अध्ययनों ंने विटामिन डी की सुरक्षात्मक भूमिका के बारे में कई जानकारियां दी। सूरज की रोशनी में कम जाने, सनस्क्रीन लगाने और अस्वस्थ खान पान की वजह से विटामिन डी की कमी होती जा रही है। विटामिन डी के स्तर को जानने के लिए रूटीन सीरम काफी महंगा है, इसलिए सभी को कराने का परामर्श नहीं दिया जाता लेकिन विटामिन डी की कमी के बढ़ते मामलों को देखते हुए समय रहते टेस्ट करवा लेना चाहिए। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में विटामिन डी के सप्लीमेटं लेना बहुत जरूरी है ताकि इसकी कमी से बचा जा सके। विटामिन-डी मधुमेह, उच्च रक्तचाप, ग्लुकोल इनटॉलरेंस और मल्टिपल स्क्लेरोसिस आदि बीमारियों से बचाव और इलाज में महत्वपूर्ण हो सकता है।
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*◾आहार से पूर्ति भी जरूरी-*
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🌺विशेषज्ञों के अनुसार ज्यादातर भारतीयों की डाइट में विटामिन डी की कमी ही पाई गई है क्योंकि खाने के स्त्रोत कम है, लोग शाकाहारी है और मार्किट में उपलब्ध ज्यादातर उत्पाद विटामिन डी फोर्टीफाइड नहीं होते है। बहुत कम लोगों को विटामिन डी से होने वाले फायदों की जानकारी है। विटामिन डी केवल प्राणिज्य पदार्थों में ही पाया जाता है। वनस्पति जगत में यह बिल्कुल नहीं प्राप्त होता है। इसके मुख्य स्राोत मछली का तेल, वेसीय मछली, अण्डा, मक्खन पनीर, वसायुक्त दूध तथा घी हैं। सूर्य की किरणों के द्वारा भी हमें विटामिन डी मिलता है। इसका सबसे अच्छा और सस्ता स्रोत धूप है। शरीर को जरूरी विटामिन डी की मात्रा रोजाना पांच मिनट धूप में रहने से मिल सकती है। हमारी स्किन में एर्गेंस्टरॉल नामक एक पदार्थ होता है, जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से विटामिन डी में बदल जाता है।
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*🔴सावधानी बरतें-*
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⚫उम्र, नस्ल, मोटापा, किडनी सबंधी बीमारी लीवर की बीमारी और दूसरी अन्य मेडिकल स्थितियां जैसे कि क्रोहिन बीमारी, कायस्टिक फिबरोसिस और सिलियक बीमारी भी विटामिन डी की कमी के कारण होते है। जो रोगी बहुत तरह की दवाइयों जिसमें एंटीेकोव्ंयूसेटं और एड्स/एचआईवी से जुड़ी दवाइयां लेते है उन्हें भी विटामिन की कमी होने का रिस्क रहता है। तो आजकल विटामिन डी की कमी के बढ़ते मामलों को देखते हुए लोगों को इसके प्रति जागरूक होने की जरूरत है और सरकार को भी विटामिन डी की स्क्रीनिंग, फोर्टीफिकेशन और सप्लीमेटं को लेकर राष्ट्रीय नीति बनाने की जरूरत है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की इसकी जरूरत के बारे में पता चले।

26/11/2016

विटामिन "एफ"
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विटामिन `एफ´ सामान्यत: तेल युक्त बीजों में पाया जाता है।
विटामिन `एफ´ घी, तेल और चर्बी में नहीं पाया जाता है।
विटामिन `एफ´ की कमी हो जाने से प्रोस्टेट-ग्लैण्ड की शोथ (सूजन) हो जाती है।
यदि शरीर में विटामिन `एफ´ की कमी हो जाए तो शरीर में स्थित अन्य विटामिन विशेष करके विटामिन `ए´, `डी´, `ई´ और `के´ शरीर का अंश नहीं बन पाते हैं।
भारत में अभी तक विटामिन `एफ´ का प्रचलन नहीं है जबकि इसकी खोज हुए वर्षों हो चुके हैं। विदेशों में यह प्रयोग हो रहा है, विशेषकर अमरीका में अत्यधिक प्रचलन में है।
विटामिन `एफ´ हाई ब्लडप्रेशर का रोग कम करता है।
विटामिन `एफ´ बुढ़ापे के रोगों के लिए रामबाण साबित होता है।
विटामिन `एफ´ के प्रयोग से आयु बढ़ती है।
यह सूरजमुखी के फूलों के बीजों में अधिक मात्रा में पाया जाता है।
क्षय रोग के लिए कद्दू और उसके बीज अति लाभदायक होते हैं, क्योंकि उनमें विटामिन `एफ´ काफी मात्रा में पाया जाता है।
विटामिन `एफ´ की शरीर में कमी हो जाने पर बाल खुश्क, खुरदरे तथा निर्जीव से हो जाते हैं।
विटामिन `एफ´ की कमी से पित्ताशय में रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
विटामिन `एफ´ की कमी से मूत्र रुक जाता है क्योंकि प्रोस्टेट ग्लैण्ड की सूजन उत्पन्न हो जाती है।
अगर त्वचा की पपड़ियां उतर रही हों तो तुरन्त समझना चाहिए कि शरीर में विटामिन `एफ´ की कमी हो चुकी है।
विटामिन `एफ´ के प्रयोग से बुढ़ापे में प्रोस्टेट-ग्लैण्ड का रोग हो जाता है और रोगी की संभोग शक्ति बढ़ जाती है।
बुढ़ापे में विटामिन `एफ´ के प्रयोग से रक्तवाहिनियों की कठोरता समाप्त हो जाती है और रक्तवाहिनियां नरम-मुलायम हो जाती हैं।
विटामिन `एफ´ रक्त में कोलोस्ट्रॉल की मात्रा को कम करता है।
कद्दू के बीजों की गिरी में विटामिन `एफ´ काफी मात्रा में विद्यमान होता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सक हजारों वर्षा से कद्दू के बीजों का चिकित्सा में प्रयोग करते आ रहे है, जाहिर है वे कद्दू के बीजों की मींगी में स्थित क्षय रोग (टी.बी.) को दूर करने वाली शक्ति से परिचित रहे होंगे-जबकि चिकित्सा विज्ञान ने आज खोज निकाला है कि कद्दू की मींगी में क्षय रोग को समाप्त करने के लिए विटामिन `एफ´ होता है।
विटामिन `एफ´ के प्रयोग से हृदय शक्तिशाली हो जाता है और हृदय के कई विकार शान्त हो जाते हैं।
एक्जिमा रोग का कारण शरीर में विटामिन `एफ´ की कमी हो जाना भी होता है।
राक्षसी भूख का एक कारण शरीर में विटामिन `एफ´ की कमी भी होती है।
गुर्दों के रोग विटामिन `एफ´ की कमी के कारण होते हैं।
विटामिन `एफ´ के प्रयोग से सिर के बाल सुन्दर और चमकीले हो जाते हैं।
विटामिन `एफ´ के प्रयोग से शरीर में चुस्ती-फुर्ती और रक्त का संचार होता है।
कद्दू के बीजों की गिरी प्रयोग करने से पागलों का पागलपन भी ठीक हो जाता है। कद्दू के बीज में विटामिन `एफ´ होता है।
कद्दू की मींगी अनिद्रा रोग को ठीक कर देती है।
कद्दू की मींगी का प्रयोग करने से फेफड़ों से रक्त आना बन्द हो जाता है।
कद्दू की मींगी दिमाग की खुश्की और गर्मी के ज्वर का नाश करती है।

25/11/2016

🌺🙏🏻🌺 *!! अमरूद की पत्तियों में छुपा है कई बीमारी का इलाज !!* 🌺🙏🏻🌺

*1. अमरूद की पत्तियां के फायदे !!*
अमरूद एक पसंदीदा फल है। यह स्वादिष्ट होने के साथ-साथ कई तरह के स्वास्थ्य गुणों से भी भरपूर है। हालांकि, हममें से ज्यादातर लोग इस तथ्य से पूरी तरह से अनजान हैं कि अमरूद के पत्ते भी बहुत फायदेमंद होते है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अमरूद के पत्तों में मौजूद अद्भुत एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में मदद करते है। त्वचा, बाल और स्वास्थ्य की देखभाल के लिये अमरूद की ताजी पत्तियों का रस या फिर इसकी बनी हुई चाय बहुत ही फायदेमंद होती है। आइए जानें अमरूद की पत्तियां स्वास्थ्य के लिए किस प्रकार से फायदेमंद होती है !!

*2. वजन में लाये कमी !!*
अमरूद की पत्तियां जटिल स्टार्च को शुगर में बदलने की प्रक्रिया को रोकता है जिसके द्वारा शरीर के वजन को घटाने में सहायता मिलती है। अमरूद के पत्ते कार्बोहाइड्रेट की गति को रोकता है, जो उपलब्ध यौगिक के रूप में लीवर में टूटता है और वजन घटाने का समर्थन करता है !!

*3. मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद !!*
जापान में यकुल्ट सेंट्रल इंस्टीट्यूट में अमरूद के पत्तों से बनी चाय पर एक शोध किया गया। शोध के निष्कर्ष के अनुसार, अमरूद पत्ती से बनी चाय में एल्फा-ग्लूकोसाइडिस एंजाइम गतिविधि को कम कर मधुमेह रोगियों में प्रभावी रूप से रक्त शर्करा को कम करती है। इसके अलावा यह सुक्रोज और माल्टोज को सोखने से शरीर को रोकती है जिससे शुगर का स्तर नियंत्रित रहता है। अमरूद की पत्ती से बनी चाय 12 सप्ताह पीने से इंसुलिन के उत्पादन में वृद्धि के बिना रक्त में शर्करा के स्तर को कम कर सकते हैं !!

*4. कार्डियोवस्कुलर प्रभाव !!*
अमरूद के पत्तों से बनी चाय दिल और संचार प्रणाली के लिए उपयोगी होती है। 2005 में प्रकाशित एक प्रयोगशाला अध्ययन के मुताबिक, अमरूद के पत्तों में मौजूद यौगिक रक्तचाप और हृदय की दर को कम करने में मदद करते हैं। अमरूद के पत्तों से बनी चाय के सेवन से ब्लड लिपिड, ब्लड में कोलेस्ट्रॉल का निम्न स्तर और अस्वस्थ ट्राइग्लिसराइड्स में सुधार करने में मदद मिलती है !!

*5. डायरिया का उपचार !!*
अमरूद की पत्तियां डायरिया और पेचिश के लिए अद्भुत उपचार भी है। समस्या होने पर 30 ग्राम अमरूद की पत्तियां और एक मुट्ठी चावल के आटे को दो गिलास पानी में मिलाकर उबाल लें। डायरिया के इलाज के लिए इस मिश्रण को दिन में दो बार पीयें। पेचिश के इलाज के लिए, अमरूद की पत्तियों और जड़ों को लेकर 90 डिग्री सेल्सियस पर 20 मिनट के लिए उबालें। इस पानी को छानकर दिन में दो बार पेचिश से राहत पाने तक लें !!

*6. पाचन तंत्र को दुरुस्त रखें !!*
अमरूद की पत्तियां पाचन एंजाइम के उत्पादन को बढ़ाकर पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने में मदद करता है। शक्तिशाली एंटी-बैक्टीरियल एजेंट प्रभावी ढंग से पेट के अस्तर से हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने और बैक्टीरिया से विषाक्त एंजाइमों के प्रसार को रोकने में मदद करता है। अमरूद के पत्तों फूड प्वाइजनिंग, उल्टी और मतली से भी राहत प्रदान करते हैं !!

*7. एलर्जी दूर करें !!*
अमरूद की पत्तियों का रस किसी भी प्रकार की एलर्जी को दूर कर सकता है। अमरूद की पत्तियों में एलर्जी अवरोधक गुण पाया जाते है यह उस वायरस को खत्म करता है जिससे एलर्जी पैदा होती है। साथ ही यह एलर्जी से होने वाली खुजलाहट को दूर करने में भी मददगार होता है। एलर्जी में खुजलाहट बहुत ही आम होता है। अत: एलर्जी को कम करने से खुजलाहट अपने आप कम हो जाती है !!

*8. मुंहासे की समस्या से निजात दिलाये !!*
अमरूद की पत्तियों एंटीसेप्टिक होने के कारण बैक्टीरिया को दूर करने में मदद करती है। मुंहासे की समस्या में ताजी पत्तियों को पीस कर दाग धब्बों के साथ मुंहासो पर लगाएं। नियमित रूप से ऐसा करने से धीरे-धीरे मुंहासों की समस्या दूर हो जाती है !!

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